"मौन और मुखर दुख" 

कितने दुख थे सहे गए, कितनों पर विरोध हुआ होगा,

कितने दुख थे दिए गए, कितनों को बेचा गया होगा ।

जो दिखा वो दुख सच्चा था या माया ने छिपा लिया ,

कहीं एक दुख मुखर हुआ जब, तो दूजा मौन रहा होगा।

देख पालतू बिल्ली कुत्ते, उनके भाव समझ जाते हैं,

उन मूकों की पीड़ा कौन सुने, जो जीते जी काटे जाते हैं।

कहीं माँस की खातिर कटते , चीख़ नही वो पाते हैं,

कहीं दूध के लिए है बंधक , पल पल रोते जाते हैं।

क्या इनके दोहन शोषण का दुख कभी मानव ने समझा होगा

कहीं एक दुख मुखर हुआ जब, तो दूजा मौन रहा होगा।

बिछड़े दो प्रेमी के दुख को, सब गीत सदा ही गाते हैं ,

बाबू सोना बेबी के आँसू , हृदय को बहुत रुलाते हैं।

पर वीरवधु के विरह को तो, शब्द नही सह पाते हैं,

आहूत हुए पर मौन रहे, वो किस्से कहाँ सुनाते हैं।

सब देकर भी सब ख़ोया, उस पीड़ा को कौन समझा होगा?

कहीं एक दुख मुखर हुआ जब, तो दूजा मौन रहा होगा।

एक शिशु के रुदन को तो , सब ही दुनिया सुन पाती है।

उस अजन्मी जान का क्या, जो ऑमलेट बना दी जाती है।

क्या करुणा भी पक्षपाती है , जो भेदभाव कर जाती है।

कैसी परिणति दुख की देखो, बस रूप बदल कर आती है।

क्या किसी ने हर एक के दुख को एक समान समझा होगा ?

कहीं एक दुख मुखर हुआ जब, तो दूजा मौन रहा होगा।

वो दो प्रेमी घर से भागे , उनकी दुविधा सबने समझी ,

बाप बनकर हुआ बेइज्जत, उसकी सूरत किसने देखी?

प्रसव हुआ तब सबने जानी, पीड़ा हर एक जननी की,

वही वृद्धाश्रम ढूढे है अब, वो बेबस माँ किसने देखी?

क्या खुद उन हालातों में आकर, माँ बाप का दुख समझा होगा?

कहीं एक दुख मुखर हुआ जब, तो दूजा मौन रहा होगा।

रूप कई हैं , कई भेद हैं,  रही मौन उस पीड़ा के,

वर्णन में तो तार भी टूटे , कवि के शब्दों की वीणा के

आधा जगत सदा से ही, यूँ मौन वेदना पीता हैकोई

दुख क्षणिक है तो, कोई दुख की परिणीता है।

सुख अमृत के भ्रम में ही, सबने दुख विष पिया होगा ।

कहीं एक दुख मुखर हुआ जब, तो दूजा मौन रहा होगा।

कोई रोकर सहता है दुख, कोई चीख़ पुकार मचाता है,

कोई साधना बना के दुख को, जीवन को जी जाता है।

दुख सहता है हर कोई, पर दूजे का समझ न पाता है,

अरे जगत में हम सबका एक दुख से ही तो नाता है।

संघर्ष है जीवन, दुख ही पथ है, हमको राही चुना होगा।

कहीं एक दुख मुखर हुआ जब, तो दूजा मौन रहा होगा।

-अन्तस्