लेखिका - आस्था जैन "अन्तस्"
फार्महाउस से थोड़ी दूर रात के गहरे सन्नाटे में कुछ आवाजे शोर मचा रही थीं। आस पास की मिट्टी में हवा जैसी हलचल थी। निर्जन पड़े उस इलाके में दो आकृतियां प्रकट हो रही थीं। उनके आस पास की हवा में नमी बहुत ज्यादा बढ़ गई थी मानो हल्की सी बारिश हो रही हो।
पिया और विभु उस सुनसान में खड़े एक दूसरे को देख रहे थे।
" यहाँ बहुत गर्मी लग रही है। ऐसा लग रहा है कि मानो त्वचा जल जायेगी। " विभु अपने आस पास देखते हुये कह रहा था।
"शायद हमारी शक्तियों की वजह से ही हमे ये दिक्कत हो रही है विभु। हमे थोड़ा समय लगेगा एडजस्ट करने में। अभी तो रात है तापमान कम है। लेकिन जब दिन में धूप होगी तब कैसे सर्वाइव कर पाएंगे हम.... अ .... हमारी चम्पो कहाँ है विभु" पिया ने परेशानी से कहा।
" पता नही यार, जलेश्वर बाबा ने तो कहा था कि हमारे साथ ही आएगा। अरे ये क्या है तुम्हारे बालों में, बर्फ़ फँसी रह गई क्या ? "
विभु ने पिया के सिर की तरफ इशारा करते हुए कहा।
पिया ने बालों पर हाथ फेरा तो उसे बालों में फंसा हुआ बर्फ़ का एक चौकोर टुकड़ा मिला। विभु ने उस टुकड़े को पिया के बालों से बाहर निकालने में उसकी मदद की।
" ये शायद जलेश्वर की दुनिया की बर्फ तुम्हारे पास रह गई, क्या करें फेंक दे ? "विभु ने उस बर्फ़ के टुकड़े को अपने हाथ मे लेते हुए कहा।
" नही , नही, हो सकता है ये हमारी शक्तियो का ही कोई हिस्सा हो। इसे अपने पास ही रख लेती हूँ मैं। लेकिन चम्पो कहाँ है यार दिख ही नही रही। याद है न जलेश्वर ने क्या कहा था कि वो हिम शक्ति, वो ही बर्फ़ का वो आदमी है जिसे हमने इसी दलदल से बाहर निकलते हुए देखा था। कहीं ऐसा तो नही कि वो फिर से दलदल में चला गया हो " पिया ने रुआंसी होकर कहा।
" मैं आपका हिमशक्ति ही हूँ स्वामिनी " उस बर्फ़ के टुकड़े में से आवाज आईं और वो विभु के हाथ से सरककर जमीन पर गिर पड़ा। पिया के चेहरे पर दुनिया भर की खुशी थी और विभु थोड़े चिड़ भरे भाव से उस बर्फ़ के टुकड़े को देख रहा था जोकि एक आदमी का रूप ले रहा था। ठीक उसी रात की तरह आज भी उन दोनों के सामने बर्फ़ का एक आदमी खड़ा हुआ था। उस बर्फ़ की तराशी हुई मूर्ति के जैसे आदमी के वस्त्र भी मानो बर्फ़ के ही थे। संगमरमर से सफेद चेहरे पर मुस्कुराहट साफ झलक रही थी जबकि पिछली बार इसी चेहरे पर क्रोध, असंतोष और पीड़ा देखी थी पिया ने।
" प्रणाम स्वामिनी " हिम शक्ति ने पिया को प्रणाम किया।
" ये अकेली जल संरक्षक नही है , मैं भी जल सरंक्षक हूँ और इस हिसाब से मैं भी तुम्हारा स्वामी हुआ" विभु ने चिढ़ते हुए कहा।
" नहीं , सबसे पहले स्वामिनी ने ही जलेश्वर को ढूढ़ने की पहल की। मैं सबसे पहले उन्हें ही जलेश्वर के संसार मे लेकर गया था। उन्होंने ही मुझे टूटने से बचाया और आखिर में मुझे साथ लाने का फैसला भी उन्ही का था। इसलिए यही मेरी स्वामिनी हैं। आप जल संरक्षक की शक्तियां प्राप्त करके जल संरक्षक तो बन सकते है लेकिन मेरे स्वामी नही बन सकते। " हिम शक्ति ने विन्रमता से कहा।
विभु - " लेकिन तुम्हारा नाम चम्पो मैंने ही रखा है। समझे और पिया के साथ मैं भी था वहाँ उसके ...."
पिया - " शांत रहो न विभु, क्यों लड़ रहे हो, चुप रहो एकदम, और हाँ चम्पो.... अ ... मेरा मतलब .. तुम्हारा नाम क्या है ? "
हिम शक्ति - " मेरा कोई नाम नही है , कोई पहचान नही है स्वामिनी।"
पिया - " देखो मैं तुम्हारी कोई स्वामिनी मालिक वालिक नही हूँ। हम दोनो दोस्त हैं। दरअसल हम तीनों ही दोस्त हैं। ओके , और तुम्हे हम चम्पो ही बुलाएंगे ठीक है न"
हिमशक्ति - " जो आप उचित समझे परन्तु मेरे लिए आप मेरी स्वामिनी ही रहेंगी"
" अच्छा ठीक है , अब ये बताओ कि तुम इस दलदल में क्या कर रहे थे तुम्हें तो जलेश्वर के स्वर्ग जैसे संसार मे रहना चाहिए था न" विभु ने पूछा।
" मैं दंड भुगत रहा हूँ " कठोर मुद्रा बनाते हुए हिमशक्ति ने कहा।
" तुम्हे किसने दण्ड दिया और क्यों" पिया ने हैरानी से पूछा।
" बहुत दीर्घ कथा है स्वामिनी। इस की चर्चा बाद में भी की जा सकती है अभी वर्तमान पर ध्यान लगाना ज्यादा जरूरी है " हिमशक्ति ने गम्भीर होते हुए कहा।
" ठीक है चम्पो, अभी की बात करते हैं। अभी हमें जल पिशाचो को ढूढना होगा ताकि हम उन्हें खत्म कर सकें। बताओ कहाँ मिलेंगे वो कमीने। लेकिन उससे पहले मुझे मेरे दोस्तों से मिलना है और पिया को भी उसके पापा से मिलवाना है। " विभु ने आगे बढ़कर हिमशक्ति से कहा।
" हाँ , पापा जरूर पुलिस स्टेशन में होंगें। या फिर कहीं गए होंगे तो पुलिस स्टेशन में किसी को पता ही होगा कि वो कहाँ है, हमे पुलिस स्टेशन ही चलना चाहिए.... " पिया ने कहा।
" आप पहले आँखे बंद कीजिए और अपने हाथों को अपनी आँखों पर रख कर जिस जगह जाने की आप बात कर रही हैं वहाँ के बारे में सोचिए। आपको दिख जाएगा कि वहाँ इस समय क्या परिस्थिति है " हिम शक्ति ने कहा।
" ऐसा कैसे हो सकता है? ऐसी किसी शक्ति तो मुझे नही मिली थी जलेश्वर लोक में " पिया ने सोचते हुए कहा।
" जब आप नीली किताबो के समंदर में से निकलने में सफल हुई थीं तभी ये शक्ति आपको मिल गई थी। " हिमशक्ति ने कहा।
" तो ये शक्ति मुझे भी मिली होगी न , मतलब मैं भी उस नीली किताबो के समुद्र से बाहर निकला था पिया के साथ और जब उसने मुझे धक्का देकर नीचे गिरा दिया था तब मैंने ही देखा कि किताबो के नीचे एक रास्ता दिया हुआ था जिस पर से हम तुम्हारे जरिये बाहर निकले थे। तो मुझे भी ये शक्ति मिली होगी न " विभु ने उत्सुकता से कहा।
" हां , आपको भी उसी समय ये शक्ति प्राप्त हुई थी परन्तु तिकोने बैंगनी कमरे और ऊंचे जामुनी पहाड़ को पार करने के बाद मिली शक्तियाँ सिर्फ मेरी स्वामिनी को मिली थीं" हिम शक्ति ने जवाब दिया।
" पर इसमें मेरी क्या गलती है, हम दोनों ने तुम्हे देखा था ,हम दोनों ही उस मुर्दाघर में जल पिशाचो के पानी मे डूबे थे। अगर पिया मुझसे पहले ही जलेश्वर बाबा की दुनिया मे पहुँच गई तो इसमें मेरी क्या गलती है " विभु गुस्से में था।
" जल पिशाचों का वो पानी उन लाशों को जल पिशाच की अनुसन्धान शाला तक लाने के लिए था। आप दोनों भी उसमे डूब गए इसलिये आप के अंदर जल पिशाचों को देखने और पहचानने की शक्ति आ गई थी, साथ ही साथ आपके शरीरों में भी जल पिशाचो के कुछ अवगुण आ गए थे लेकिन आपका हृदय पवित्र होने के कारण वे अवगुण गुणों में बदल गए उस समय तक भी आप जल संरक्षक नही बने थे। जल संरक्षक आप तब बने जब आपने जलेश्वर के संसार में प्रवेश किया। और हाँ विभुति आपकी गलती यह है कि आपने उस रात स्वामिनी के साथ ही मेरे मुंह से जलेश्वर का नाम सुना। तब भी आपने जलेश्वर तक पहुँचने का कोई प्रयास नही किया। इसके बाद भी आप जलेश्वर के संसार मे तभी पहुँचे जब आपने मेरी स्वामिनी को याद किया था। आपका अपना कोई प्रयास नही था जलेश्वर से जुड़ने का या उनके बारे में जानने का, आपको सिर्फ अपने दोस्तों की परवाह थी।" हिम शक्ति ने कठोर शब्दो मे कहा।
" जल पिशाच की अनुसन्धान शाला, मतलब जल पिशाच की लैब, ये क्या है ? " पिया ने पूछा
" इसी अनुसन्धान शाला में एक वैज्ञानिक ने तंत्र और विज्ञान के जरिये जल पिशाचों को धरती पर लाया। पहले जल पिशाच ने धरती पर आते ही उस वैज्ञानिक को मार डाला और खुद उसके शरीर पर अपना अधिकार कर लिया। उसमे बाकी लोगो को मारकर उनके शरीर हासिल करने की शक्ति नही थी इसलिए उसने लाशों के जरिये अपने जैसे सौ जल पिशाच बनाने का तरीका ढूढा , बाद में क्या हुआ मैं नही जानता क्योंकि उसके बाद से मैं आपके साथ था जलेश्वर संसार में। जलेश्वर के संसार मे जाने से पहले मेरी पास भी किस जगह क्या हो रहा है ये जानने की शक्ति थी परन्तु तीन रंगों की पहेली सुलझाते समय मैं वो शक्ति खो चुका हूँ। अब मुझमें सिर्फ अपना आकर बदलने की शक्ति बची है , अब मैं आपको कुछ नही बता सकता कि कहां क्या हो रहा है " हिम शक्ति ने कहा।
"अच्छा तो ये तो बता सकते हो न कि वो लैब कहाँ है क्योंकि उसके बारे में तो तुम्हे पहले से पता है " विभु ने पूछा।
" आप भी उस अनुसन्धान शाला में गए हैं , आप अपने हाथों को अपनी आँखों पर रखकर ध्यान कीजिये आप को पता चल जाएगा " हिम शक्ति ने बिना उसकी ओर देखे जवाब दिया।
विभु जबड़े भींचते हुए हिम शक्ति को गुस्साई आँखों से देख रहा था। पिया उन दोनों बीच आ गई और बोली - " अच्छा, ठीक है, विभु तुम उस लैब का पता लगाने की कोशिश करो और मैं पुलिस स्टेशन के बारे में पता लगाने की कोशिश करती हूँ "
पिया ने अपने हाथों को अपनी आँखों पर रखा और पुलिस स्टेशन के बारे में सोचने लगी। थोड़ी ही देर में पुलिस स्टेशन का वर्तमान हाल उसे दिखाई देने लगा।
रात के अंधेरे में किसी मुरझाई हुई उम्मीद के जैसा एक बल्ब पुलिस स्टेशन के बाहर जल रहा था।
दरवाजे खुला हुआ था जिसके पास ही एक आधा मानव शरीर पड़ा हुआ था। दरवाजे के अंदर मेन हॉल में कोई भी नही था। खन्ना सर के केबिन में भी कोई नही था। लॉक अप के अंदर कटे हुए कुछ मानव अंग पड़े हुए थे।
" वहाँ कुछ भी नहीं है "पिया ने अपनी आँखे खोलीं।
और हताश से स्वर में बोली।
" विभु, विभु कहाँ गया?" अपने आस पास विभु को न पाकर पिया ने घबराते हुए हिमशक्ति से पूछा।
" वे उस इमारत के अंदर गए हैं " हिम शक्ति ने जवाब दिया।
" हमे भी उसके साथ जाना होगा, चलो " पिया ने हिमशक्ति से कहा और फार्महाउस की ओर बढ़ गई।
फार्महाउस के मुख्य दरवाजे पर पिया को मानव आंते और ढेर सारा खून दिखाई पड़ा। वो घबराते हुए अंदर गई। गलियारे में बने कमरों के दरवाजे खुले हुये थे। विभु उनमें से कहीं नही था। तभी पिया की नजर गलियारे के छोर पर बनी दीवार पर गई वहाँ एक दरवाजा था।
" यहाँ तो एक दीवार थी। ये दरवाजा कैसे आ गया। "
पिया उस दरवाजे के पास जाकर हैरान होते हुए बोली।
" ये जल पिशाच की अनुसंधान शाला का दरवाजा है जिसे उस वैज्ञानिक थॉमस ने अपने तंत्र से गायब कर रखा था। साधारण मानव इसे देख नही सकते लेकिन अब आप एक जल संरक्षक है इसलीए आप इसे देख सकती हैं। " हिम शक्ति ने कहा।
" तुम्हे कैसे पता कि यही जल पिशाच की लैब है और पता था तो पहले क्यों नही बताया" पिया ने पूछा।
" विभुति भी अपनी शक्तियो का प्रयोग करना सीखें इसलिए मैंने पहले नही बताया था। और हाँ मुझे जलेश्वर के संसार में जाने से पहले तक का सबकुछ पता है लेकिन उतना ही बता सकता हूँ जितना आप जानना चाहती हैं मेरी स्वामिनी " हिम शक्ति ने पिया को देखकर मुस्कुराते हुए कहा।
" ठीक है, अभी हमे इसके अंदर चलना चाहिए, आओ " पिया ने दरवाजे को धकेलते हुए अंदर प्रवेश किया।
अंदर बड़ा सा एक कमरा था जिसमे एक तरफ लैब थी और दूसरी तरफ खाली पिंजरे। उन्ही में से एक पिंजरे के पास विभु हताश होकर खड़ा था।
पिया ने पीछे से आकर उसके कंधे पर हाथ रखा।
" जब मैंने वासु और राधे को याद किया था तब मैं इसी जगह आ गया था। वो दोनो इसी पिंजरे में कैद थे। यहाँ और भी लाशें थीं बाकी के पिंजरों में। और वो जल पिशाच भी थे जिन्होंने मुझपर हमला किया था। लेकिन अब यहां कोई नही है " विभु ने रुंधे हुए गले से कहा।
" उन लाशों को यहाँ इस पिंजरे में जल पिशाच बनाने के लिए रखा गया था। यहां अब कोई लाश नही है इसका मतलब यही है कि वे सब अब जल पिशाच बन चुके हैं और तबाही मचाने के लिए चारों तरफ फैल गए होंगे। " पिया ने दुखी होते हुए कहा ।
" लेकिन वासु और राधे लाश नही थे। वो दोनो जिंदा थे । मैंने खुद देखा था उन्हें" विभु अब रो पड़ा था।
पिया को समझ नही आ रहा था कि वो क्या कहे , की करे , उसने हिमशक्ति की ओर देखा और पूछा - " क्या तुम्हें उन दोनों के बारे मे कुछ पता है "
" हाँ , प्रथम जल पिशाच ने अपने पानी के जरिये लाशों को अपनी लैब में बुलाना इन दोनों के यहां आने के बाद ही किया था। दरअसल इससे पहले वो खुद कब्रिस्तान जाकर लाशों को इस लैब में लाता था। राधे और वासु ने उन लाशों को रास्ते मे देख लिया था और वो यहाँ तक आ गए। जल पिशाच ने उन्हें बंदी बना लिया वो उन्हें मार नही पाया जब उन्हें जल पिशाच बनाने की कोशिश की तो वो भी सफल नही हुई। अब बाद में उनका क्या हुआ मैं नही जानता मेरी स्वामिनी"
हिम शक्ति का जवाब सुनकर पिया थोडी निराश हुई लेकिन विभु गुस्से से बिलबिला उठा।
उसने चीखते हुए हिमशक्ति से कहा - " तुम एक घटिया शक्ति हो। जब तुम जानते थे कि वो दोनो जल पिशाच की लैब में जा रहे थे तो उन्हें रोका क्यों नही, उन्हें बचाया क्यों नहीं। किसी और को भी जल पिशाच के बारे में क्यों नही बताया "
"क्योंकि मेरे पास सब कुछ देखने जानने के अलावा कोई शक्ति नही थी। क्योंकि मैं किसी के सामने नही आ सकता था। क्योंकि मैं इतना शक्तिहीन हो चुका था कि फिर से इस दुनिया मे नही आना चाहता था । क्योंकि मैं इतना बेबस था कि अपनी बच्ची को भी नही बचा पाया था। क्योंकि मैं कुछ नही कर सकता था कुछ भी नही " हिम शक्ति के संगमरमर जैसे चेहरे पर दुनिया भर का दर्द और गुस्सा झलक आया था। पिया और विभु दोनो ही उसकी बातें सुनकर स्तब्ध रह गए थे।
क्रमशः .....
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2 Comments
Him Shakti kitna dard bhara h apne andar Jo usne nikal Diya main him Shakti ki bhi kahani jarur padna chahunga ab dekhte h kaise in Sb ki mulakat hogi wait h agle bhag ka
ReplyDeleteThanku bhai 😍
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