कहानी - बड़े घराने की बहू ( भाग 10)

लेखिका - आस्था जैन " अन्तस्"

श्रेणी - हॉरर, आध्यात्मिक, स्त्री-विमर्श, सस्पेंस-थ्रिलर


" यों तो मणे घणी ईमानदारी से लास्ट पोस्ट पे रहणा था , पण इब थे म्हारे को इतनी दुहाई दे रहे हो तो मैं खुशी ख़ुशी सब सेटलमेंट कर लूँगा , कोई न , पण म्हारी ई बात गांठा ने बांध लेना रावत ,कल कुछ भी गलत ई तांत्रिक ने करया फ़िर सारी जिम्मेदारी तुम लोगां की ही रहवेगी " थानेदार ने कहा और जमानत के कागजात रावत साहब के आगे रख दिये।

" हम सब बड़ी मुसीबत में है थानेदार साहब वरना मैं खुद गैरकानूनी तरीकों के खिलाफ हूँ , और दयान कुछ दिन बाद सरेंडर कर ही देगा , उसने वादा किया है" रावत साहसब बोले और हाथ जोड़कर थाने से बाहर आ गए जहाँ एक कार में , रामायणी जी, राहुल और दयान (तांत्रिक) उनका इन्तजार कर रहे  थे।

सब लोग राहुल के घर पहुँचे , दयान को नहला धुला कर राहुल ने अपने ही कपड़े दे दिए। जब वो बाहर आया तो सब उसे देख हैरान रह गए वो तांत्रिक भेष से बहुत ही अलग एक सामान्य सा लड़का लग रहा था, हाँ बस बाल और दाढ़ी उसकी उतनी ही बढ़ी हुई थी।

" तुम तो बहुत अच्छे लग रहे हो , दयान, शेविंग और कर लेते , मेरे छोटे भाई लगते" राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा ।

" नहीं , अभी मुझे बहुत चीजें करनी होगी जिसमें ये बहुत काम आएंगे " दयान ने कहा और खाने की टेबल पे सबके साथ आकर बैठ गया। राहुल को उसकी बात का कुछ मतलब समझ नहीं आया, लेकिन समझ तो काफी कुछ नही आ रहा था , अभी सब उलझा हुआ था।

" तुम्हें पता कैसे चला कि पैलेस में कई बुरी आत्माओं का गैंग सक्रिय है " राहुल ने भी उसके साथ बैठते हुए पूछा।

" वो बेंदा जानते हो , उसे शापित करके मैंने ही वहाँ पहुँचाया था , भेष बदल कर कल्पना को उसे मैंने ही बेचा था, उस बेंदा ने अपना असर दिखाया , दूध के जरिये । हमारी योजना सिर्फ इतनी थी कि तुम सब लोगों को डरा कर पैलेस से भगा दिया जाए और पैलेस की बदनामी हो "

" ये तो करण का प्लान था तुम्हे इसमें क्या फायदा था " वहीं बैठे रावत जी ने पूछा 

दयान -" मैं जिस विद्या को प्राप्त करके अपनी माई को आज़ाद करा सकता था , उसे सिद्ध करने के लिए मुझे एक व्यक्ति की जरूरत थी , जिस पर वो विद्या अपनी शक्तियों का प्रयोग दिखा सके , और वो व्यक्ति कविता जी थीं उन्ही पे मेरा प्रेत अपनी शक्तियों को प्रयोग कर सकता था क्योंकि उनका मनोबल बहुत कम था और वो बेहद संवेदनशील भी थीं"

सबके मुँह खुले रह गए

दयान मुस्करा दिया , रामायणी जी की तरफ़ मुँह करके बोला, "माई , मैं कविता जी की जान नहीं लेने वाला था , सिर्फ कुछ प्रयोग जो मेरी माई की खातिर थे बस" 

राहुल -" इसीलिए कविता आंटी इतना डरी हुईं थीं, हवा से बातें करती थीं और बुआ पर वो अटैक भी उन्होंने तुम्हारे बेंदा वाले प्रेत के वश में किया था लेकिन बेंदा तो उस दिन के बाद से मेरे पास था और जल भी गया था"

दयान - " हाँ लेकिन प्रेत बेंदा से बंधा नहीं था , उसे तो स्वतंत्र रूप से भेजा गया था , मगर वो प्रेत पैलेस के अंदर भी प्रवेश नहीं कर सका यहाँ तक कि बेंदा भी पैलेस के बाहर ही उस दूध को काला कर सका, अंदर जाने के बाद जैसे वो भी निष्क्रिय हो गया , तभी मुझे शक हुआ कि पैलेस में भी कोई शक्ति है जो मेरी भेजी हुई शक्तियों को अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं दे रही, इसलिए मेरे प्रेत ने पैलेस के बाहर से ही कविता जी को सम्मोहित करने की कोशिश की ताकि उनके जरिये पता लग सके कि पैलेस के किस हिस्से में पवित्र कलश है, कोई पूजा हुई है, कोई हवन हुआ है, कुछ भी पवित्र क्रिया या पवित्र वस्तु का वास है  या नहीं , और कविता जी के जरिये यही पता चला कि पैलेस में कुछ भी पवित्र नहीं था मतलब साफ था कि वहाँ कोई बुरी शक्ति ही है, जो संख्या में अधिक ही है। "

राहुल - "तुम्हें ये कैसे पता चला कि वो आत्माएं ये शादी होने देना चाहती हैं कोई कारण इसका ?"

दयान , - " नहीं जानता , आपकी माँ के आने के बाद कविता जी का मनोबल बढ़ गया था उन्हें विश्वास हो गया कि कोई बुरी शक्ति उनके आस पास नहीं है और उनका कुछ बुरा नहीं कर सकती , पैलेस के अंदर तो प्रेत वैसे भी उनपर अपनी विद्या प्रयोग नहीं कर सकता था , मनोबल बढ़ने के कारण सम्मोहन भी असम्भव था , इसलिए गुस्से में सगाई के दिन वो स्वयं अंदर गया इस निश्चय के साथ कि शादी जरूर होगी ,और उसे प्रवेश मिल गया, अंदर आकर उसने कविता जी को डराना चाहा ताकि अपने वश में कर सके लेकिन पैलेस की शक्तियों ने उसकी इस हरकत पे उसे उठाकर बाहर फेंक दिया, तभी वो गुस्से और अपमान से भरा हुआ मेरे पास आया और उसी के वश में मैंने तुम सब के साथ उस घर और जंगल मे वो सब किया "

राहुल ,- " ओह , मतलब वो प्रेत तुम्हारे अंदर था उस वक्त"

दयान , - " नहीं , संभव ही नहीं , जिस शरीर में एक आत्मा का वास हो वहाँ दूसरी आत्मा नहीं आ सकती , हाँ जिस तरह एक इंसान दूसरे इंसान को डरा धमकाकर अपने मन की उससे करवाता है , वैसा ही उस प्रेत ने मुझसे करवाया "

राहुल - " मतलब भूत प्रेत शरीर के अंदर नहीं आ सकते "

दयान - " हाँ , कभी भी नही , वो बस डरा सकते हैं , यही उनकी हद है" 

रामायणी- " लेकिन शादी का क्या , दो दिन बाद शादी है, पैलेस छोड़कर तो वो आत्माएं हमें जाने न देंगीं , और शादी हुई तो न जाने क्या गज़ब हो "

दयान , - " बिना समस्या का आरंभ जाने उसका अंत असम्भव है माई , मैं जल्दी ही सब पता लगा लूँगा बस तब तक आप सब अपना ख़्याल रखियेगा उस पैलेस में क्योंकि
आप सब जानते हैं और शादी न हो ये भी चाहते हैं तो हो सकता है वे आत्माएं आपको डराएं , बाकी सब को भी अभी कुछ मत बताइएगा " 
  सबने सहमति में सिर हिलाया।

खाना खाने के बाद राहुल अपनी माँ के कमरे में गया और कहा, " मैं पैलेस जा रहा हूँ माँ, थोड़ी देर में आ जाऊँगा, आप अपना ध्यान रखना "

" मैं ठीक हूँ ,तुम जाओ पैलेस , वैसे भी वहाँ सब हल्दी की पूरी रस्म के दौरान तुम्हें ढूढ़ रहे थे  , तुम आये भी तो इतनी देर से फिर मुझे लिवा लाए , सब फ़िक्र कर रहे होंगें वहाँ कि जाने क्या बात हो गई, किसी को कुछ बताना मत वरना सब डर जाएँगे और हाँ स्नेहा से भी ध्यान से मिल लेना "
रामायणी जी ने कहा।

" मुझसे मिलने आने की क्या जरूरत है  , मैं तो यहीं आ गई हूँ" कमरे के दरवाजे पे खड़ी स्नेहा ने कहा।

" तुम , तुम घर में अंदर कैसे आईं" राहुल ने पूछा

" वो आपके घर मे एक गुप्त यंत्र है जिसे दरवाजा कहते हैं जो कि खुला हुआ था उसमें से रावत अंकल बाहर जा रहे थे और उन्होंने मुझे भी अंदर आने दिया तो मैं आ गई" स्नेहा ने कहा।

रामायणी जी मुस्कुरा दीं , बोलीं, - " वहाँ सब कैसे हैं , स्नेहा , मुझे जल्दबाजी में वहाँ से ऐसे आना पड़ा "

" वो मम्मी को आपसे कुछ जरूरी बात करनी थी , हल्दी के बाद , बस वो नहीं हो पाई तो आप उनसे फ़ोन से जल्दी से बात कर लो , वो आपको कॉल कर रहीं है लेकिन आपका कॉल कोई अटेंड ही नही कर रहा था , मम्मी को उधर बहुत सारा काम है वरना वो खुद यहाँ आ जातीं आपसे बात करने , इसलिए मैं आई हूँ "

" हाँ तो तुम्हे कोई काम नहीं है शादी का, जब देखो , जहाँ देखो आ जाती हो" राहुल ने गुस्से में कहा और बाहर चला गया।

" आप मम्मी से बात कर लेना प्लीज , मैं अभी आई " स्नेहा ने रामायणी जी के पैर छुए और जल्दी से राहुल के पीछे पीछे चल पड़ी।

" क्या हुआ गुस्सा , क्यों हो" स्नेहा ने राहुल के सामने आकर कहा।

राहुल -" बीच सड़क पे रात के 8 बजे क्या ड्रामा करना है तुम्हें "

स्नेहा - " मैं कहाँ कोई ड्रामा कर रही हूँ , तुम ही सुबह से गायब हो और माँ को लेकर कहाँ गए थे , हल्दी की रस्म में क्यों नहीं आये, और अभी माँ किस बारे में कह रहीं थीं कि किसी को मत बताना"

राहुल - "मतलब तुमने मेरी और माँ की बातें भी छुप कर सुन लीं, ठीक है अब तुम सब कुछ छुप छुप के ही सुनकर पता कर लो , मुझे बहुत काम है "

स्नेहा - " किसी के सवालों से  बचने का अच्छा तरीका है, खुद ही उबल पड़ो, भाड़ में जाओ"

स्नेहा वापस राहुल के घर के तऱफ चली गई।

राहुल पैलेस की तरफ़ चल दिया , पैलेस के थोड़ा पास पहुँचने पर जब उसने पैलेस का नज़ारा देखा तो उसकी आँखें फ़टी रह गईं ।

सामने की इमारत वर्तमान के रामायणी पैलेस जैसी ही थी लेकिन बिल्कुल भयावह, मनहूसियत की हवाएं जैसे पैलेस
को घेरे हुए थीं  , तीन मंजिला पैलेस जैसे वो जीती जागती युद्व भूमि हो जहाँ 2क्षण पहले ही युद्धविराम हुआ हो । 
अपलक आँखे फाड़े राहुल सामने के नजारे को खड़ा देखता ही रह गया, उसकी नज़र पैलेस के सबसे ऊपरी हिस्से पर गई जहाँ से एक लाल आग से जलता हुआ भाला सारे अंधेरे को चीरते हुए उसी की तरफ फेंका जा रहा है ।
उस जलते हुए भाले को अपनी ओर आता देख राहुल चीख़ते हुए सड़क पर गिर पड़ा और अपनी आँखें बंद कर लीं ।
1 मिनट तक जब कुछ नहीं हुआ तो उसने डरते हुए आँखे खोलीं तो चिहुँक कर खड़ा हो गया , सामने नव्यम खड़ा था ।
उसने हाथ देकर राहुल को उठाया और हँसते हुए कहा, "भाई शादी तो 2 दिन बाद है , अभी से नागिन डांस करोगे सड़क पर तो बारात वाले दिन थक जाओगे " 

राहुल ने उसकी बात का  कोई जवाब नही दिया और पैलेस को घूर कर देखने लगा क्योंकि अब पैलेस पहले जैसे ही था कोई बदलाव नहीं , राहुल नव्यम के साथ पैलेस के अंदर आया, अपने केबिन में जाकर सारा जरूरी काम देखा और नाईट शिफ्ट के स्टाफ के साथ एक मीटिंग अटेंड की और कल होने वाले मेंहदी और संगीत की सारी तैयारियों की सारी डीटेल्स चेक करने के बाद वापस घर जाने के लिए निकल गया। वो अपने केबिन के अलावा पैलेस के किसी और हिस्से में नहीं गया । 

बगीचा जो उसकी पसन्दीदा जगह थी पूरे पैलेस में वहाँ उसने एक नजर भी नहीं देखा , रात को रोशनी में खूबसूरती से नहा जाने वाला बगीचा उसे आज शमशान सा मनहूस नजर आ रहा था।

पैलेस से निकलकर रास्ते मे जल्दी जल्दी चलते हुए राहुल सोच रहा था "इतने लोगों की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है, ये शादी हुई तो भी कुछ ग़लत होगा और इसे रोकना भी अब मेरे बस की बात नहीं , वो दयान भी पूरी बात नही बताता , क्या करूँ , कैसे पता करूँ , कैसे रोकूँ ये सब , मुझे लगा पहले  करन की दिक्कत है उसे हल किया , फिर ये तांत्रिक समस्या बन गया , अब वो बोलता है ख़तरा खुद पैलेस ही है , सब की जान दांव पे लगा दी मैंने इस मनहूस जगह शादी ऑर्गनाइज करके " 

रात के 10 बज रहे थे , राहुल जल्दी जल्दी चल रहा था , उसके घर और पैलेस के बीच ज्यादा फासला नहीं था , फिर वो इतना तेज भी चल रहा था तो अबतक घर क्यों नहीं पहुँचा , अचानक ये ख्याल आते ही राहुल के कदम ठिठक गए। उसने तुरंत घूमकर चारों तरफ़ देखा , वो सड़क पे था ही नहीं , ये  तो कोई लम्बा चौडा गलियारा या सुरंग थी , डीम अंधेरे में नहाया हुई जिसकी दीवारों के ऊपरी हिस्से से हल्का सा प्रकाश आ रहा था।

" हे भगवान अपने ख़यालो में डूबा हुआ मैं कहाँ आ गया "
परेशान होकर राहुल वहीं डीम अंधेरे में दीवार से लग कर खड़ा हो गया ।

कुछ सेकंड बाद ही उसे महसूस हुआ दीवार कितनी ठंडी थी , उसने दीवार को हाथ से  छूकर देखा 
" वाह, ये तो कौड़ी की पुताई है,  ऐसी पुताई किये हुए कुछ पत्थर तो पैलेस के ऊपरी मंजिल में मिले थे , हाँ यार इस इस दीवार की नक्काशी भी उन्हीं पत्थरों से मिलती जुलती है "

"कहीं मैं पैलेस में ही तो नहीं , पर ये कौन सा हिस्सा है पैलेस का "
राहुल परेशान हो गया।
तभी उसे पीछे की तरफ़ से आवाज आई किसी के फुसफुसाने की ।
राहुल दीवार का सहारा लेता हुआ वापस उस तरफ़ बढ़ने लगा लगभग चलते चलते वो थक गया लेकिन न ही रास्ता खत्म हो रहा था न दीवार और न ही वो फुसफुसाहट और न ही अंधेरा । 

" आखिर किस भुलभुलैया में फँस गया यार" कहकर राहुल ने गुस्से में दीवार पर लात मारी और उसका पैर दीवार के आरपार हो गया । 
लेकिन उसके हाथ पहले की ही तरह दीवार पर थे , हाथ आर पार नहीं जा रहे थे ।
" अब ये सब क्या करामात है " सोचता हुआ राहुल हाथों से दीवार टटोलता हुआ नीचे झुका , दीवार के निचले हिस्से से हाथ भी आर पार हो गए ।
" ओह मतलब दीवार पूरी नहीं है " फिर टटोलने पर उसे अहसास हुआ आसपास दीवार पूरी थी केवल उसी जगह नीचे दीवार नहीं थी, मतलब ये कोई रास्ता भी हो सकता है ।
मन मे अपनी माँ को प्रणाम करके हिम्मत जुटाकर राहुल उस हिस्से में से  झुक कर आर पार निकल गया लेकिन वो तो कोई गहरी गोल सुरंग थी जो लगातार नीचे की तऱफ जा रही थी , राहुल गिरता जा रहा था , कोई अंत ही नहीं था उस सुरंग का ।
" अबे बस करो यार , और कितना गिराओगे " राहुल चिल्लाया और चिल्लाने के साथ ही वो पानी में गिर पड़ा ।
राहुल  को  तैरना आता था , सुरंग किसी पानी के जलाशय में बहुत गहरे में थी , राहुल को बहुत तैरकर ऊपर आना पड़ा , बाहर आकर देखा तो शायद नदी थी , चारों ओर गहरी घनी रात और अपने रहस्यों को समेटे खड़ा हुआ जंगल ।

क्रमशः .....