कहानी - बड़े घराने की बहू ( भाग 9)
लेखिका - आस्था जैन " अन्तस्"
श्रेणी - हॉरर, आध्यात्मिक, सस्पेंस-थ्रिलर, स्त्री-विमर्श
बड़े घराने की बहू
" माई , मुझसे पाप हो गया माई ,.......... मैंने सब उसके वश में किया माई, ......मैंने बहुत कोशिश की ,....... मगर मैं हार गया माई , वो जीत गया, माई...... "
पूरा थाना तांत्रिक के करुण विलाप से गूँज रहा था, सलाखों के अंदर तांत्रिक अपना सिर रामायणी जी के कदमों में रख कर रुदन कर रहा था और रामायणी जी वात्सल्य भाव से उसके सिर पे हाथ फेर रही थीं,
सलाखों के बाहर खड़े थानेदार, राहुल और रावत जी भावुक हो रहे थे ।
जब मन का सारा लावा अपने विलाप से बाहर निकाल लिया तब तांत्रिक रामायणी जी से बोला, "माई , मुझ अधम का उद्धार करोगी?"
" तुम्हारा मन तो बच्चे जैसा साफ है, तुमसे क्या अधर्म हो गया जो खुद को अधम कहते हो" रामायणी जी ने कहा
"मैंने जो चक्र रचा था, मैं उसी में फँसा जाता हूँ , माई, मुझे इस भँवर से निकाल लो माई, मैं तुम्हारे चरणों पड़ता हूँ , तुम दिव्य आत्मा हो , तुम्हीं से मेरा उध्दार होगा माई"
" आत्मा सबकी दिव्य होती है, आत्मा तो है ही दिव्य चाहे फिर किसी की भी हो,बस देर तो पहचानने की है, चलो , पहले कुछ खाओ तुम जब से यहाँ आये हो कुछ खाया नहीं , खाओगे नहीं तो उध्दार के बारे में कैसे सोच पाओगे "
रामायणी जी ने मुस्कुराते हुए कहा
" मैं कल रात तुम्हारे बेटे को दफ़न कर रहा था , तुम मुझको खाने को पूछती हो, माई, मैं इतने स्नेह के लायक नहीं, अगर होता तो मेरी ही सगी माई मुझे क्यों कर छोड़ जाती "
" देखो जब तक तुम कुछ खाओगे नहीं , मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूँगी , समझे"
तान्त्रिक अपने आँसू पोंछते हुए सामने रखे डिब्बे में से उठाकर खाना खाने लगा जो रामायणी जी लेकर आईं थीं।
" जे मानुष री बड़ी बड़ी लाल आंख्या देख कल रात म्हारे सारे पुलिस वाले काँप गए और जे भला मानुष थारी माँ साहिब के सामणे कैसे डाबर (बच्चे) सा रोये है " थानेदार आश्चर्य से बोला ।
रावत जी बोले " आप बस हमें थोड़ी देर बात इससे बात और करने दें तो ..."
" हाँ हाँ पण म्हारे सामणे, और ज़मानत री सोचणा भी मत भाया, जे बहुत भयंकर आदमी लागे से , रिस्क मैं न ले सकूँ" थानेदार ने कहा।
जब तांत्रिक ने खा लिया तो राहुल और रावत जी भी अंदर आ गए और तांत्रिक के पास ही बैठ गये।
" कल का भूखा न था माई, 3 दिन से भूखा था, जो तंत्र मैं कर रहा था उसकी विधि के लिए " तांत्रिक सिर झुकाए रामायणी जी के पैरों में बैठा था ।
" तुम्हारा नाम क्या है , और ये सब क्यों करते हो" राहुल ने कुछ हिचकते हुए पूछा।
" दयान नाम रखा था मेरी माई ने मेरा, 5 साल का था जब वो मुझे छोड़ कर चली गई , बाद में मेरे बाप ने दूसरी शादी कर ली, वो और उसकी दूसरी बीवी मुझे बहुत मारते थे खाना नहीं देते थे , पर मैं सब सहता रहा मुझे लगा कि मेरी माई यहीं लौट कर आएगी पर एक दिन मैंने उनको बात करते हुए सुना कि मेरे बाप और उसकी दूसरी बीवी ने ही मेरी माई को मार डाला था, मेरी माई मर गई थी .." दयान फ़िर से रोने लगा ।
रामायणी जी ने उसके सिर पे फ़िर से हाथ रख दिया । उसे थोड़ा सम्बल मिला तो उसने फिर से कहना शुरू किया।
" मैं घर छोड कर जंगल भाग गया, वहाँ मुझे एक बाबा मिला उसने मुझे भरोसा दिलाया कि मुझे मेरी माँ से मिलाएगा , मैं उसकी बातों में आ गया ,
15 साल तक उसने मुझे कई काली विद्याएँ सिखाई फिर मुझसे कहा कि मुझे बलि देनी होगी तब मेरे से वो विद्या सिद्ध होगी जिससे मैं अपनी माँ की आत्मा को वापस बुला सकूँगा, मैं वापस घर आया, उस घर मे मेरे बाप की एक बेटी भी थी, मैंने उसे छल से बीमार कर दिया,
फ़िर सामने आकर उसे अपनी विद्या से ठीक कर दिया, मेरे बाप की दूसरी बीवी ने मुझे खुश होकर घर मे रहने दिया , कुछ दिन उन लोगों के साथ रहने के बाद मैंने उन दोनों को एक अमावस्या को बलि दे दिया , उसकी बेटी को मैंने बेहोश कर दिया , वो मुझे भाई कहती थी उसका कोई दोष भी नहीं था इसलिए मैंने उसकी बलि नहीं दी, वो अपने माँ बाप के लिए बहुत रोई तब मैंने उसे समझा बुझाकर उसकी नानी के घर भेज दिया , लेकिन बाद में मुझे बहुत आत्म ग्लानि हुई , मैंने उसकी दुनिया उजाड़ दी उसे अनाथ कर दिया, पर अब मैं कर भी क्या सकता था मैं इस व्यूह में उतर चुका था और वापस नही जा सकता था जो विद्या मैंने बलि देकर सिद्ध की थी उसे अगली अमावस्या तक मुझे प्रयोग करना भी अनिवार्य था,
उस बाबा ने आकर मेरी मदद की उसी घर मे सब विधि विधान से मैंने उस विद्या का प्रयोग किया और अपनी माई की आत्मा से बात करने की कोशिश की , लेकिन मेरे साथ धोखा हुआ,
उस बाबा ने मेरी माई की आत्मा के आव्हान के लिए मेरा प्रयोग किया था, उसने अपनी विद्या से माई की आत्मा को वश में कर लिया और चला गया,
मैं कुछ न कर सका क्योंकि मैं उतना शक्तिशाली नहीं था विद्याओ में ।
अपनी माई की आत्मा को मुक्त करवा सकूँ , इसीलिए 2 साल से ये सब कर रहा हूँ, लेकिन मुझे कोई ऐसी विद्या सिद्ध न हुई अब तक ऐसी जिससे मैं बाबा की विद्याओं पर विजय प्राप्त कर सकूँ ।
पर मैंने आज तक कोई बलि नहीं दी उस दिन के बाद से, जानवर भी मैं जंगल से मरे हुए ढूढ़ कर लाता हूँ ।"
" तो फिर तुमने मुझे दफ़न करने की कोशिश क्यों की भाई" राहुल ने आहिस्ते से पूछा।
" मैंने जिस शक्तिशाली प्रेत को शादी रोकने के लिए पैलेस में पहुँचाया था , वो वहाँ से वापस आ गया था , वो बेहद गुस्से और अपमान से भरा हुआ था इसलिए उसने मुझसे वो सब कराया"
" पर पैलेस से वापस कैसे..." रावत जी ने पूछा जिनके चेहरे पर हवाईयां उड़ रही थीं
" वो प्रेत 3 दिन से कोशिश कर रहा था पैलेस के अंदर जाने के लिए लेकिन उसे किसी भी तरीके से सफलता नहीं मिली थी, क्योंकि पैलेस में एक नहीं कई आत्माओं का आधिपत्य है, जिनसे लड़ पाना किसी भी शक्ति के लिए मुमकिन नही है "
" मतलब उन आत्माओ ने हमारी मदद की" रामायणी जी ने कहा।
" नहीं माई वो सारी बुरी आत्माएं है , अगर वो चाहती हैं कि ये शादी हो तो इसमें कोई बुरा मकसद ही होगा, और उन्हें रोक पाना किसी के बस में नहीं है "
वहाँ बैठे तीनों लोगों के चेहरे सफ़ेद पड़ गए ।
क्रमशः ....
1 Comments
Ye to alag hi rahasya samne aa rha h ab pata ni Kya hone Wala hai
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