कहानी - जल पिशाच ( भाग 9)

लेखिका - आस्था जैन " अन्तस्"

श्रेणी - हॉरर, सस्पेंस-थ्रिलर, साइंस-फ़िक्शन




सफ़ेद समतल मैदान पार करते ही पिया को लगा कि उसे पहाड़ चढ़ना होगा लेकिन पहला पत्थर छूते ही पहाड़ ने उसे अंदर आने के लिए जगह दे दी।

ठीक पिया के आकार के जैसा दरवाजा उसके सामने था , पिया सोच रही थी कि अगर वो एक इंच भी लम्बी हो जाये तो इस दरवाजे से बाहर नहीं निकल सकती, पीछे सफ़ेद सूना मैदान था, आगे गहरा नीले से भी नीला अँधेरा, मन मे उमड़ते हज़ारों सवाल और चिंता..., आख़िर पिया ने अंदर जाने का फैसला किया।

" क्या ये मौत के खेल खेलने से पहले मैं अपने पापा को नहीं मिल सकती थी, वहाँ कितना कुछ मेरे पीछे है जिसे मेरी जरूरत है, मेरे पापा को, मेरी ड्यूटी को, मेरे शहर को, और मैं यहाँ बेफकूफ़ी भरे खेल और नज़ारे देखने को मजबूर हूँ , क्या इनका कोई अंत नहीं है ...." पिया को लग रहा था जैसे उसे यहाँ रहते एक सदी बीत चुकी है और वो अब कभी वापस नहीं जा सकेगी क्योंकि यहाँ गहरे अँधेरे में हाथ पैर मारती हुई पिया को अब तक कुछ नही मिला था और वापस जाने का भी दरवाजा शायद गायब हो चुका था।

" आउच ..." पिया चिल्ला पड़ी जब किसी सीढ़ीनुमा चीज़ से उसका पैर टकरा गया , पहली बार इस जगह उसे असल मे चोट लगी थी, अँधेरे में टटोलते हुए उसने पहली सीढ़ी पर पैर रखा और अचानक हुए हल्के लाल उजाले से उसकी आँखे बंद हो गईं।

पिया ने दुबारा आँखे खोलीं तो वो एक पत्थर के गोल कमरे में थी जिसमें से साँप के कुण्डली की तरह पत्थर की सीढ़ियाँ गोल घूमती ऊपर की ओर जा रही थीं , कमरा भी साधारण नहीं था, यूँ लगता था मानो आधे अंतरिक्ष की जगह घेरे हुए हो, और पत्थरों में अजीब प्रकार की सजीवता थी, पिया को लगा कि वे पत्थर उसके प्रति आभार प्रकट कर रहे थे ।

हल्के से मुस्कुराते हुए पिया ने अगली सीढ़ी पर कदम रखा और देखा कि क्या उसके आस पास कुछ बदल गया था लेकिन सबकुछ वैसा ही पाकर उसने राहत की सांस ली और लाल रोशनी में चमकते हुए पत्थरों की अगली सीढ़ी पर कदम रखा । 

6वें पत्थर की सीढ़ी पर पैर रखते ही पिया की सारी निराशा और दुःख पीछे ही कहीं छूट गया , अब उसका आगे बढ़ने का अंदाज ही बदल गया था वो किसी राजकुमारी की तरह आगे बढ़ रही थी, उसे अपने मन मे अचानक हो रहे इन बदलावों से बढ़ा सुखद आश्चर्य हुआ, 12 वीं सीढ़ी पार करते ही आस पास सीढ़ियाँ सोने से चमकने लगीं, 18वीं सीढ़ी पर कदम रखते ही पिया की वेशभूषा बदल गई, इसी तरह हर 6 सीढ़ियों के बाद पिया के बाहर और अंदर का परिवेश बदलता जा रहा था , दीवारें सोने के गहनों और हीरे जवाहरातों से जगमगा रही थी और अंतिम सीढ़ी पर पैर रखते ही पिया का चेहरा अपने आस पास असीम सम्पत्ति और वैभव के गर्व से दमक रहा था।

अपने शाही लिबास में इठलाती हुई पिया ने आख़िरी सीढ़ी के सामने खुले अपने ही आकार के दरवाजे के बाहर जाने की कोशिश करने लगी लेकिन दरवाजे का आकार उतना ही था जितना पहाड़ के अंदर अत्तर समय नीचे के दरवाजे का था , अपने सिर पर लगे जामुनी रंग के तीन छोटे हीरों से सजे मुकुट के कारण पिया उस दरवाजे के बाहर नहीं जा सकती थी , उस मुकुट के लिए दरवाजे में जगह नहीं थी।

पिया अपने मुकुट को हटाना नहीं चाहती थी , वो उसके वैभव का प्रतीक था, लेकिन पिया को आगे बढ़ना था, अपने पापा के पास वापस जाने के लिए , शहर के लोगों की सुरक्षा के लिए, नीचे चढ़ते वक्त जो विचार उसके मन मे थे वे दुबारा उसी तीव्रता से मन की दीवारों पर चोट करने लगे , पिया ने अपने सिर से मुकुट हटा दिया, उसकी पोशाक राजसी नही रही बल्कि पहले जैसी सादा शर्ट और जीन्स में बदल गई उसके चेहरे से जैसे सारा नूर खो गया , उसने पीछे मुड़कर देखा, सीढ़ियां फिर से पत्थर की हो गईं थीं, आस पास दीवारों की रंगत भी पहले जैसी हो गई, सब वैभव गायब हो गया , पिया ने अपने हाथ की तरफ देखा मुकुट गायब था और उसकी जगह उसके हाथ मे एक जामुनी रंग का हीरे का टुकड़ा रह गया , पिया ने उसे अपनी मुठ्ठी में बन्द कर लिया और दरवाजे के पार निकल आई।

उसे उम्मीद थी कि पहाड़ के ऊपर लगी तीन पंखुड़ियां उसे दिखाई देंगी और सामने फैला सफ़ेद बर्फ़ का समतल मैदान , लेकिन उसे यक़ीन नहीं हुआ वो एक झटके के साथ उसी हिमखंड पर दुबारा खड़ी थी और अचानक झटका लगने से उसके हाथ से वो जामुनी हीरे का टुकड़ा गिर गया , वो कहाँ गिरा था ये पिया देख नहीं पाई क्योंकि उसकी उस विशाल पुस्तकालय पर जमी हुई थी जिसमें वो तैर रही थी, उसका हिमखंड उन फैली हुई किताबों के बीच तैर रहा था और सभी किताबों पर एक जैसी नीले रंग की जिल्द चढ़ी हुई थी, किसी पर कोई नाम या निशान नहीं था , इस अजीब से नजारे को देख कर पिया चकरा गई तभी उसे अपने हिमखंड में कम्पन महसूस हुआ , अबतक ये हिमखंड उसे कई आड़ी टेढ़ी, ऊँची नीची जगह ले जा चुका था लेकिन हमेशा स्थिर रहा था और अब सिर्फ़ किताबों के कारण तो कम्पन नहीं कर सकता , लेकिन पिया इसका कोई उपाय कर पाती उससे पहले ही हिमखंड का कम्पन बन्द हो गया और पिया किसी पुरानी टूटने की कगार पर पहुँच चुकी कुर्सी की तरह कांपने लगी, उसके पास,बिल्कुल सामने विभु का सफ़ेद हो चुका शरीर शिथिल पड़ा हुआ था । 

.......

संयोगी को सामने काँच से चिपकी हुई भयानक आकृति से ज्यादा डरावनी परी की चीखें लग रही थीं, एकदम सदमे से उबरकर उसने फ़िर से गाड़ी स्टार्ट की , सामने काँच से चिपकी हुई आकृति गायब हो चुकी थी लेकिन पीछे की सीट से परी के चिल्लाने की आवाजें लगातार आ रही थीं , संयोगी ने थाने के सामने गाड़ी रोककर नीचे उतरने से पहले पीछे देखा तो परी नेहा की गोद मे दुबकी हुई रो और चीख़ रही थी , संयोगी ने नेहा की तरफ़ देखा तो वो हकलाते हुए बोली -" पिछले मोड़ ... पर... किसी ने उसे छुआ ...... का - काँच खुला था खिड़की का ..."

संयोगी बिना कुछ कहे गाड़ी से नीचे उतरने के लिए तैयार हुई तभी पीछे बैठा आदमी बोला - " वो तुम्हें दिख नहीं रहे, नीचे उतरते ही चूस डालेंगे, मेरी मानो वापस चलो " 

" आपका दिमाग ख़राब ...." संयोगी चिल्लाने ही वाली थी कि उसे बगल के काँच पर किसी के हाथों के पटकने की आवाज़ आई उसने देखा संवर एक हाथ से खन्ना जी को संभाले हुए था और दूसरे हाथ से उसके दरवाजे के काँच को खटखटा रहा था 

संयोगी ने तुरन्त गाड़ी अनलॉक करके उन्हें गाड़ी में बैठने दिया, बीच की सीट के तीनों लोग तुरन्त पीछे पहुँच गए , खन्ना जी को सबने बीच की सीट पर लिटा दिया और संवर संयोगी के साथ आगे बैठ गया, संयोगी ने गाड़ी तुरन्त वापस मोड़ ली और संवर की तरफ़ देखा।

" ग़जरीगांव हाइवे की तरफ़ चलो , शायद उस फार्म हाउस के आस पास ही विभु मिल जाएगा हमें ..." 
संवर ने हाँफते हुए कहा और अपना सिर पीछे की तरफ़ टिका लिया ।

" ये ... ये सब क्या हो रहा है..." संयोगी ने पूछा।

" पता नही, जानवर हैं साले, किसी को नहीं छोड़ रहे , मुझे .. मुझे तो डर हैं कि सुबह तक कोई जिंदा बचेगा भी कि नहीं " संवर उसी तरह सिर पीछे टिकाए आँखे बंद करे बुदबुदाता रहा।

" क्या हुआ तुम्हारे साथ, खन्ना सर के साथ ..." संयोगी मिरर में पीछे सीट पर लेटे कराहते हुए खन्ना जी को देखते हुए चिंता से पूछा।

" नहीं पता , उनका एक हाथ सूख रहा है ...., मेरी समझ नहीं आ रहा मैं क्या करूँ ...मुझे बस विभु के पास जाना है वही खन्ना सर को बचा सकता है " संवर ने पीछे देखते हुए हताशा से कहा।

" इन्हें कोई नहीं बचा सकता ......, इन्हें पानी की जरूरत है, अगर पानी नहीं मिला तो हाथ के प्रदूषक सारा शरीर दूषित कर देंगे, अगर पानी पिला दिया तो उस पानी मे घुलकर प्रदूषकों की संख्या बढ़ जाएगी और फिर ये .... ये जल पिशाच बन जायेगा " उस आदमी के अजीब से शब्द सुनकर बाकी सब उसे डर और गुस्से से घूर रहे थे हालांकि संयोगी भी ये सब सुनकर सहज नहीं रह गई थी लेकिन उसे अपने बगल के काँच के तिरकने का अहसास हो रहा था इसलिए उसने गाड़ी नहीं रोकी।

" मैं - मैं नहीं जानता , मैं सिर्फ ये जानता हूँ कि इन्हें विभु बचा सकता है बस .... पर आ - आप कौन है और ये सब कैसे कह रहे हैं .... और आपने अभी कहा - जल पिशाच , कौन हैं जल पिशाच, क्या ये जानवर ही जल पिशाच हैं ..." संवर पीछे मुड़कर लगातार सवाल करता जा रहा था और वो आदमी उसी तरह सबसे पीछे की दाएँ तऱफ की सीट पर बैठा हुआ बीच की सीट पर लेटे खन्ना जी को घूरता रहा जब संवर के सवाल खत्म नहीं हुए तो चालीस मंजिल ऊपर से आती हुई आवाज़ उनके मुँह से निकली जिसे शायद वो खुद भी नहीं सुन सका था...

" आपने जवाब नहीं दिया , पिया..... कौन है ये ?" संवर अब परेशान हो उठा था।

" मैं - वो - मैं नहीं जानती " अब परेशानी और डर संयोगी के चेहरे पर भी फैल रहा था।

" मैं ......., मैंने  ही इन्हें बुलाया और इन्होंने मेरा सबकुछ छीन लिया ...., मैं मदद चाहता था मेरे साथ धोखा हुआ , मेरा हर आविष्कार सिर्फ़ एक खोज साबित हुआ है पर ये खोज भयानक है .... मुझे उन पिशाचों को नहीं जगाना चाहिए था ..., मुझे इनका तोड़ नहीं पता , सब मारे जाएंगे, प्रलय नजदीक है ..." 
आदमी बड़बड़ाता रहा और फार्महाउस के सामने खड़ी गाड़ी में बैठे सभी लोग उसकी बड़बड़ाहट सदमे से सुनते रहे बस राहिल खन्ना ने ही उसकी कोई बात नहीं सुनी , उनके हाथ के साथ साथ अब गले का आधा हिस्सा भी सूख रहा था और वे भयानक तरीके से साँस लेने के लिए छटपटा रहे थे। ......

क्रमशः ...

Do comment and share , agr sbne is part pe comment krke nhi btaya ki part kaisa tha to fir 10th part 10 din bad hi aayega .....🙄 Soch lo mai jhooth nhi bolti , jal pishach ki ksm 👻👻👻👻


नमस्ते!
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स्टेप नंबर एक-