कहानी - बड़े घराने की बहू
लेखिका - आस्था जैन " अन्तस्"

श्रेणी - हॉरर, सस्पेंस-थ्रिलर, आध्यात्मिक, स्त्री-विमर्श

पार्ट 8
" आधा घण्टा हो गया अंकल , वो कुछ नहीं बोला , और लगता भी नहीं कि कुछ बोलेगा" राहुल ने निराश होते हुए कहा।

" अये रावत साहब , मैं तो पहले ही बोल्या था , थे ही न माने, भाया निरा गूँगा है जेतांत्रिक, जब से आयो है घूँघट सो काढ़े बैठो है" थाने दार अपनी हरियाणवी मूँछो की डिज़ाइन सही करते हुए बोला।

उसकी  टेबल के सामने ही मुकेश रावत बैठे थे। वे कुछ सोचकर थानेदार की तरफ़ झुकते हुए धीरे से  बोले ,- " इस तांत्रिक की जमानत करवाना चाहे अगर तो कुछ ले दे के अगर...." 

" के बात करो हो भाया, राम राम, जे म्हारी आखिरी पोस्टिंग से इस इलाके में , राधौगढ़ आणे से पेहले ही म्हारी माई सौंगध धराई से म्हाने , घूस की माटी भी न ले सकूँ मैं " कहकर थानेदार अपनी फाइल्स में व्यस्त हो गया।

"मैंने वहाँ बहुत सी चीजें महसूस की थीं उस घर मे जो सिर्फ़ मेरा भरम नहीं हो सकतीं अंकल , मुझे अब भी लगता है कि कुछ न कुछ तो है जो हमसे छूट रहा है " थाने से बाहर आकर राहुल ने रावत जी से कहा।

" मैं यहाँ किसी तरह उस तांत्रिक के बारे में पता लगाने की कोशिश करता हूँ , तुम पैलेस जाओ , वहाँ हल्दी होनी है , तुम्हारी भी जरूरत है वहाँ अब तुम घर के बड़े बेटे जो हो , जाओ"

" आप अब भी उन सबसे नाराज तो नहीं हैं न अंकल "

"अगर रामायणी सबको माफ कर देगी तो मैं भी कर दूँगा, तुमने अपना लिया सबको ये देख के मैं थोड़ा हैरान जरूर हूँ  " 

" अपना तो नहीं पाया हूँ अंकल लेकिन मुझे उनसे शिकायत भी नही है , उनसे शिकायत रखने का मतलब होगा कि मेरी माँ ने मुझे अच्छी परवरिश नहीं दी ,या मेरे पालन पोषण में कोई कमी रखी थी, ऐसा तो है नही , मैं जो हूँ वो मेरी माँ ने मुझे बनाया है तो किसी से शिकायत होने का तो सवाल ही नहीं, हाँ उन सबने मेरी माँ के साथ जो कुछ भी किया है उसे तो वो सब भुगत ही चुके हैं बरसों तक ख़ौफ़ के साये में जीकर और अब सबको अपनी गलती का अहसास भी है"

"बिल्कुल अपने बाप पे नहीं गए हो , बल्कि दादा पे गए हो " 

" माँ भी यही कहती है, लेकिन माँ के पास उनकी कोई तस्वीर नहीं थी इसलिए मैंने उन्हें देखा भी नहीं "

" कोई बात नहीं नव्यम से ले लेना उसके पास जरूर होगी" 

"अगर आज दादा जी होते तो वो भी सबको माफ़ कर ही देते" 

" क्या पता वो अभी भी हों, जब मुझे पता चला था कि रामायणी के जाने के बाद नायक के पिताजी ख़ुद घर छोड़ कर अपनी बहू और बच्चे को ढूढ़ने निकल पड़े हैं , तो मैने उन्हें बहुत ढूंढा लेकिन वो ख़ुद ही लापता हो गए , ख़ैर वो जहाँ भी होंगें जरूर किसी मंदिर में या बस्ती में प्रवचन देते होंगें बड़े धार्मिक व्यक्ति थे, पूजा, पाठ ,कथा , भजन से ज्यादा उपदेश में विश्वास रखते थे। उपदेश को जीवन का व्यवहार बनाने में "

" क्यों भाई साहब ,क्या बहस कर रहे थे आप थानेदार से , कुछ बात हो तो मैं मदद करूँ " एक आदमी मुस्कुराते हुए रावत जी से बोला।

रावत जी भी मुस्कुराये , राहुल से बोले , " तुम चलो मैं आता हूँ अभी कुछ बात बनती है तो कॉल करके बताऊँगा"

राहुल उन दोनों को बातें करता छोड़ पैलेस की तऱफ चल दिया , रास्ते में मन्दिर से भजन की आवाजें आ रहीं थीं, राहुल का मन हुआ अंदर जाया जाए , वो मन्दिर के बाहर अपने जूते उतारने लगा मन्दिर के प्रांगण में पानी की टँकी के पास उसे दद्दू बैठे दिखाई दिए , वो ख़ुश हो गया,

उनके पास आकर बोला , -" आप यहाँ क्यों बैठे हैं दद्दू , चलिये अंदर मातारानी के कितने सुंदर भजन गा रहे हैं सब "

दद्दू मुस्कुराते हुए बोले, - " माँ के सामने कोई भी चुप नहीं रह सकता, हर स्त्री के अंदर माँ है, हर पुरूष के अंदर एक बच्चा है जो अपनी माँ से कुछ नही छुपा सकता ,  मन के सब भेद खोल देता है, माँ और बच्चे के बीच स्नेह की वो ऊर्जा होती है जिसमें बच्चे की सारी गलतियाँ सारे पाप धुल जाते हैं " 

" अच्छा , पर मुझे तो लगता है आप तो माँ से नाराज होकर बाहर बैठे हैं " कहकर राहुल उन्हीं के पास बैठ गया।

"मैं तो यहाँ तेरे लिए बैठा हूँ "

" सच दद्दू , आपको कैसे पता कि मैं आने वाला हूँ " 

" सुबह जबसे छोड़ के आया था तबसे मुझे ही याद कर रहा है , बोल सच कह रहा हूँ न" 

" हाँ , मुझे आपसे बहुत कुछ पूछना था दद्दू" 

"बोल क्या पूछना चाहता है "

"आप ग़लत मत समझियेगा , मैं समझता हूँ कि साधारण भेष में आप कोई दिव्य पुरुष हैं पर कुछ सवाल हैं , उस दिन मेरे केबिन में  आपने आग कैसे लगाई थी मुझे सम्मोहित करके "

दद्दू बच्चों की तरह खिलखिलाकर हँस दिए, -" तुम्हे अब भी लगता है आग मैंने लगाई "

" तो फ़िर , वो सब..." 

" ऊर्जा समझते हो किसे कहते हैं "दद्दू गम्भीर होते हुए बोले।

राहुल विज्ञान संकाय से पढ़ा हुआ छात्र था , तुरन्त बोल पड़ा , " किसी कार्य को करने की क्षमता को ही उसकी ऊर्जा कहते हैं " 

"वाह , अब बताओ कार्य की श्रेणी में क्या क्या आता है , सब आता है जो भी हम करते है, हमारा बोलना, सुनना, समझना, खाना पीना ,सोना , सब मे ऊर्जा  समाहित है या ये सब कार्य ऊर्जा के कारण ही संपन्न होते हैं , बताओ वो ऊर्जा क्या है"

" अम्म्म.....पता नहीं"

" जिंदा दिमागों से ही दुनिया भर का फ़साद है,
मुर्दे तो कभी अपनी कब्र से शिकायत नहीं करते" दद्दू ने मुस्कुराते हुए कहा ।

"वाह आपको शायरी करना भी आता है दद्दू" 

" उल्लू के पठ्ठे , शायरी पे मत जाओ, शब्दो पे जाओ "

" समझ गया , दिमाग ही वो ऊर्जा है"

" दिमाग एक अंग है बस , वो भी उसी ऊर्जा से संचालित होता है जिससे सारे कार्य संचालित हो रहे हैं " 

" कौन सी ऊर्जा दद्दू "

" आत्मा , ओंकार स्वरूप आत्मा , तुम्हारी आत्मा , मेरी आत्मा , हर आत्मा की भिन्न सत्ता है , एक का दूसरे में कोई हस्तक्षेप नहीं " 

" लेकिन दददू , अभी तो आपने कहा , सारे कार्य उसी ऊर्जा के कारण होते हैं अब आप कह रहे हैं कोई हस्तक्षेप नहीं"

" मैंने तुमसे कुछ और भी कहा था कुछ दिन पहले याद करो " 

राहुल याद करते हुए बोला, - " जब द्रव्य,काल  , क्षेत्र, भाव और भव का संयोग होता है, तभी कोई कार्य होता है "


" हम्म, हमे प्रतिपल जो भाव आते हैं उनका उद्गम आत्मा है , हमारा अंतस , उससे आने वाला हर भाव विशुद्ध है , निर्मल है , सहज है , पुनः अपने उद्गम में जाने को सज्ज है"

" मतलब "

" मलतब ओम 🕉️ को देखो, क्या जानते हो इसके बारे में " दादाजी ने मंदिर में एक दीवार पे पेंट किये हुए ॐ की ओर संकेत किया 

" ये तो हमारे धार्मिक प्रतीक हैं दद्दू , हमे इनका सम्मान करना चाहिए ये पवित्र और शुभ माने जाते है"

" पवित्र क्यों, शुभ क्यों, क्या सिर्फ चंद पन्नो में लिखा है इसलिए"

" हाँ, शास्त्रों मे लिखा है सब मानते हैं और झूठ भी तो नहीं है,  इनके संपर्क में आने पर मन को शांति भी मिलती है "

" कारण ?, जिस तरह नवजात बच्चे की भूख सिर्फ माँ के दूध से शांत हो सकती है उसी तरह हमारे अंतस की शांति स्वयं में ही है जिसका प्रतीक है ॐ, "उ" हमारी आत्मा का प्रतीक है, फिर जो रेखा इसमें से निकलकर इसमे ही मिल जाती है, वो आत्मा के भावों का प्रतीक है जो आत्मा से निकलकर आत्मा में ही समाहित हो जाते हैं ," ँ " उस अवस्था का प्रतीक है जो जब आत्मा अपनी सम्पूर्ण ऊर्जा के साथ सिद्ध अवस्था ( अशरीरी अवस्था) को प्राप्त हो जाता है ,यही सब धर्मों के सार है, जीवन का सार है, संघर्ष का सार , बाकी सब आडम्बर है मोह माया है , ॐ आत्मा की पूर्णता का प्रतीक है, इसलिए स्वयं ऊर्जावान है, 'माँ' कहीं लिख भी दो या सुन लो तो भाव वैसे ही हो जाते हैं जैसे मानो माँ सामने है, इसीलिए इन पवित्र प्रतीकों को नित्य लिखा बोला उच्चरित किया जाता है ताकि हम अपने आप को भूलें नहीं अपना लक्ष्य न भूलें वो लक्ष्य आत्मा की पूर्णता है, आत्मा की संसार से मुक्ति है, अब समझे " 

"थोड़ा बहुत, पूरा नही समझा "

" मैंने जो समझाया उसपे विचार करना , जब प्रश्न उठें तो वापस से आना मेरे पास, टेंशन वाली कोई बात नहीं " 

" भाव अगर आत्मा से आते हैं , आत्मा में ही चले जाते हैं तो दुख, क्रोध, प्रेम, हँसी , वासना, इच्छा ये सब कहाँ से आते हैं दद्दू " 

" ये परिणमन है , बदलाव है , आत्मा से सहज सरल भाव आये किन्तु आत्मा में न जाकर बाहर चले गए कभी शरीर में , कभी रिश्तों में , कभी खाने में , कहीं पीने में , कहीं सोने में,  चक्र चल रहा है बच्चे,बिना रुके, आत्मा की ऊर्जा उसके भावो के रूप में बाहर जा रही है, ॐ अधूरा है उसकी ऊर्जा व्यय हो रही है संसार में, आत्मा के अलावा कहीं भी तुम्हारा भाव जाए वो कलुषित ही होता है , उसी विकारी भाव के अलग अलग रूप हैं दुख, क्रोध, प्रेम, हँसी , वासना, इच्छा , ईर्ष्या, तृष्णा और भी न जाने क्या क्या " 

" पर इन सबका उस दिन केबिन की घटना से क्या संबंध दद्दू"

" बिना इसके तो कुछ घटित होता ही नही बच्चे, मैंने अपने भावों की ऊर्जा से तुम्हारे भावों की ऊर्जा में समाहित करके कुछ समय के लिए एक ऊर्जा चक्र विनिर्मित किया जिससे और तुमसे कुछ कहा, तुमने वही किया, जब ऊर्जा चक्र समाप्त हुआ तो वो वस्तु (बेंदा) जो कि शापित था मतलब कि नकारात्मक ऊर्जा का उसमे किसी विधि द्वारा आरोपण किया गया था वो बेंदा हमारे ऊर्जा चक्र की सकारात्मक ऊर्जा सहन न कर सका और उस जगह का तापमान इतना बढ़ गया कि वहाँ रखे तुम्हारे कागजात जल गए।"

" ये ऊर्जा चक्र क्या है , कैसे बनाया आपने, मैंने तो पहले कभी नहीं सुना, और वो बिना बनाये भी आप मुझसे कहते तो मैं आपकी बात सुनता जरूर "

" मैं जानता हूँ तुम जरूर सुनते लेकिन मैं नहीं चाहता था कोई और सुने "

"पर वहाँ तो कोई नहीं था आपके और मेरे अलावा" 

" हमें दिखता नहीं पर हम अनगिनत ऊर्जाओं से घिरे हुए हैं कुछ स्थूल शरीर में विद्यमान हैं जिन्हें हम देख सकते हैं और कुछ सूक्ष्म शरीर मे विद्यमान हैं जिन्हें हम देख नहीं सकते , इन दोनों ही तरह की ऊर्जाओं में कई सकारात्मक होती हैं कई नकारात्मक , मैं नहीं चाहता था वो मेरा कहा हुआ सुने " 

" और अभी जो आप बोल रहे हो वो सब भी तो वो नकारात्मक ऊर्जाएं या आत्माएं सुन रही होंगी न "

" ये मंदिर है बच्चे , यहाँ सूक्ष्म शरीर की सिर्फ सकारात्मक आत्माएं ही आ सकती हैं और स्थूल शरीर की सारी आत्माएं अंदर बैठी हुईं है " 

" इसीलिए मन्दिर में शांति महसूस होती है, अच्छा लगता है क्योंकि यहाँ सकारात्मक ऊर्जाएं एकत्रित होती रहती हैं"

" सही समझे हो , अब जाओ , अपने कार्य मे सफल हो"

" पर मेरे और भी सवाल हैं, आपको कैसे पता चला सुर्या होटल में आग लगने वाली थी,आप कल रात अचानक कैसे आये जंगल में, और आप मेरे सपने में भी आये थे सुबह अजीब जगह थी सपने  वो और आप यहाँ मेरा इंतजार क्यों कर रहे थे "

"बहुत सवाल करते हो, उचित समय आने पर ही उचित कार्य होता है, जबतक पहला पन्ना न पलट लो तब तक दूसरे को पलटने का प्रयास ही व्यर्थ है मैनेजर साहब , जाओ अब "

राहुल उनके चरण स्पर्श करके , अंदर मन्दिर में दर्शन करके वापस पैलेस की तरफ़ चल दिया । 

तभी उसके पास रावत अंकल का कॉल आया कि उन्हें कुछ भी पता नही चल सका उस तांत्रिक के बारे में बस इतना पता चला है कि वो थाने आने के बाद बस एक बार रोया था बच्चों की तरह फुट फूटकर , बस ।

राहुल को दददू की बात याद आई, " माँ के सामने कोई बच्चा चुप नहीं रह सकता"  ... "माँ ही मेरी परेशानी हल कर सकती है " सोचता हुआ वो तेज कदमों से चलते  हुए पैलेस की तरफ बढ़ गया ।

क्रमशः ..