कहानी -बड़े घराने की बहू 

लेखिका - आस्था जैन "अन्तस्"

श्रेणी - हॉरर, सस्पेंस-थ्रिलर, स्त्री-विमर्श, आध्यात्मिक

पार्ट 7

रामायणी पैलेस के सबसे बड़े हॉल को गुलाबी, सफेद और पीले रंग के पर्दों , गुब्बारों,झालरों और आर्टिफिशियल फूलों से सजाया गया था , हॉल के दोनों तरफ़ वर और वधू के हल्दी की रस्म के लिए इंतजाम कर दिए गए थे हॉल के बीचों बीच गोलाकर बड़े से एंटिक बर्तन में पानी में इत्र और गुलाब की पंखुड़ियों को सजाया गया था .... 

राहुल एक एक चीज का अच्छे से मुआएना कर रहा था , कहीं कोई कमी तो नहीं , इस समय उसे बहुत अच्छा महसूस हो रहा था , कोई दर्द नही कोई तकलीफ़ नहीं , उस सपने के बाद से उसका मन बहुत खुश था , परेशानियाँ अब भी उसके सामने कई थीं लेकिन अब परेशान मन की जगह शांत मन से वो सब चीज़ें हल करने के लिए सज्ज था।

" मैनेजर साहब को शायद आराम रास नही आता" 
स्नेहा ने राहुल के सामने आते हुए कहा।

"तुम्हारी बहन की शादी है, कोई काम नहीं है तुम्हें जब देखो तब कभी मेरे आगे कभी पीछे " राहुल मुस्कराते हुए बोला।

" वाह जी वाह ,ये सारा डेकोरेशन मैने करवाया है अपनी निगरानी में करवाया है, हल्दी के उबटन मैंने तैयार करवाये, और सारे कजिन्स को इस शहर का पूरा एक चक्कर मैं लगवा के आई , माँ को यहाँ आने के लिए मैंने मनाया, रावत अंकल को भी मैंने कल रात के बारे में सब बताया , आप तो सुबह से आराम कर रहे हैं आपको क्या पता मैंने क्या क्या किया, बड़े आये कहने वाले कोई काम नही है क्या " अच्छा खासा भाषण सुनाकर स्नेहा वापस जाने लगी।

"अरे वाह , क्या बात है , लेकिन एक काम तो तुम बताना भूल ही गई"

" क्या ...." स्नेहा सोचते हुए बोली

" इतने अच्छे से इतना प्यारा लहंगा पहनकर तुम तैयार भी तो हुईं और इतनी झनकती हुईं पायलें भी पहन रखीं हैं" राहुल मुस्कुराते हुए बोला

" सीधे से तारीफ़ करनी नही आती आपको" 

" हाँ आती है न, कभी मौका तो दो" कहकर राहुल स्नेहा के पास आने लगा।

" पागल हो क्या , अभी सब लोग आते जा रहे हैं यहाँ" स्नेहा पीछे होते हुए बोली ।

"ओहो , मतलब लोगों के यहाँ आने से दिक्कत है, मेरे पास आने से नहीं " अपनी भौहें ऊपर उठाकर राहुल बोला 

" बड़े शरीफ़ बनते हो सबके सामने पर हो नहीं " कहकर झूठा गुस्सा दिखाते हुए स्नेहा अपनी दीदु के कमरे के तऱफ चली गई।
कुछ देर सोचने के बाद राहुल भी उसी तरफ़ चला गया।

कविता ऑन्टी का कमरा कल्पना के कमरे से पहले ही था जिसका दरवाजा आधा खुला हुआ था ,अंदर कविता, नीति रेखा बुआ और रामायणी थी , सब आपस मे बातें कर रहीं थीं ..

उनकी आवाजें सुनकर राहुल वहीं दरवाजे की ओट में खड़ा होकर उनकी बातें सुनने लगा ... 

नीति (सुबकते हुए) - "मैं अपने अपराध बोध में घुली जा रही हूँ रामायणी,  मेरा बेटा मेरी शक्ल भी नहीं देखना चाहता , और नायक जी के मन मे जीतना तुम्हारे लिए प्रेम है अब उतनी ही घृणा मेरे लिए है, पर मैं इसी के योग्य हूँ, बस एक इच्छा है कि यदि तुम मुझे माफ़ कर सको तो मेरी आत्मा प्रायश्चित के योग्य हो जाएगी।"

रेखा - "जाने भी दो न रमा, हम सब समझ सकते हैं तुमने कितने कष्ट झेले होंगें अकेले , पर दोषी तो हम सब ही हैं , इस बेचारी का अकेला का ही तो दोष नहीं , फ़िर सजा भी उसे मिल ही रही है फिर माफ़ी भी क्यों न मिले, माफ़ कर दे रमा उसे भी ,हमें भी।"

रामायणी - " मैं कोई देवी नहीं हूँ जीजी जो सब कुछ भूलकर महान बन जाऊँ और सबको माफ़ कर दूँ, मैं भी इंसान हूँ , अगर मैं सबको माफ़ करूँगी तो पूरे मन से करूँगी सिर्फ़ दिखाने के लिए नहीं और उसके लिए मुझे कुछ समय चाहिए लेकिन इतना भरोसा आप रख सकती हैं कि मेरे मन मे किसी के लिए मैल नहीं है वरना मैं यहाँ नहीं आती आप सबकी खुशियों में शामिल होने"

कविता- " कैसी बातें करती हो रमा, हम सबकी खुशियो पे तुम्हारा भी हक है, उतना ही जितना पहले था, ये बच्चे भी तुम्हारे बच्चे ही हैं , तुम जैसी पवित्र आत्मा का आशीर्वाद इन्हें मिलेगा तो इनका जीवन निखर जाएगा ।"

रामायणी -" शुक्र है तुमने मुझे पवित्र आत्मा कहा, चुड़ैल या बुरी आत्मा नहीं "

सबके चेहरे उतर गए, सबने शर्म से सिर झुका लिया कि रामायणी एकाएक खिलखिला कर हँसने लगीं ।

कविता और नीति भी हँसने लगीं ।

रेखा - " अरे देखो तो सही , ये भी कोई हँसने वाली बात है भला"

नीति -" अरे दीदी , कुछ याद आ गया, पहले मैं और रमा, कविता को ख़ूब डराया करते थे , और कविता हमें चुड़ैल कहा करती थी " 

रामायणी - " एक बार तो इतना डर गई कि 2 दिन तक इसे बुखार रहा , फ़िर तबसे हमने डराना बन्द कर दिया ।"

तीनों सहेलियां आपस में गले मिल गईं और रेखा बुआ ने तीनों की एक साथ नज़र उतार ली।

कविता - " तुमने कहा था तुम मेरी बेटी को मेरी तरह डरपोक न बनने दोगी , अपने जैसी बनाओगी, तुम्हे हमारा वादा याद है ना"

रामायणी - " हाँ, याद है लेकिन अब कल्पना नीति की बहू है और उसी की जिम्मेदार भी , मैं नीति का हक नहीं छीन सकती"

कविता - " मैं कल्पना नहीं , स्नेहा की बात कर रही हूँ रमा "

नीति - " सही तो कह रही है कविता , स्नेहा अच्छी लड़की है  , राहुल का साथ जीवन भर निभाएगी , मेरी मानो रमा , तुम दोनों का वादा भी रह जायेगा " 

रामायणी - " नहीं नीति, तब हमने यूँ ही हँसी मजाक में बातें की थीं , मैं इससे नाराज़ नहीं हूँ कि कल्पना मेरी बहु न बनी , सच मानो , नव्यम भी मेरे लिए राहुल जैसा है , लेकिन सिर्फ अपनी बात मनवाने के लिए मैं दो जिंदगी दांव पर नहीं लगा सकती भले वो कल्पना हो या स्नेहा "

कविता - "तो मैं कब कहती हूँ कि उनकी आज शादी करवा दो, अरे बात तो कर सकते हैं ना, फिर बच्चों की मर्ज़ी, साथ तो उन्हें ही रहना है ना "

रामायणी - "ठीक है , मैं राहुल से बात करूँगी "

नीति - " वैसे हमारी स्नेहा जैसी सुन्दर और सुशील बच्ची दूसरी न होगी, सच मानो उसके अलावा यहाँ किसी में हिम्मत न थी कि तुम्हे मनाकर ले आये"

रामायणी ( मुस्कुराते हुए )- "सो तो है, बच्ची सच मे बहुत समझदार है, लगता है आप ही पे गई है जीजी "

रेखा ( ख़ुश होते हुए) - "  और नहीं तो क्या, वो और मैं न होऊँ तो कोई काम न हो , अब देखो सब खड़ी बातें कर रही हो , चलो नीचे , मैं कल्पना को लेके आती हूँ हल्दी के लिये , नीति तू भी  देख नव्यम तैयार हुआ या नहीं " 

" जी दीदी " मुस्कराते हुए तीनों सहेलियों ने कहा और कमरे से निकलकर नीचे की तरफ चलीं गईं, और रेखा बुआ कल्पना के कमरे की तरफ़ चलीं गईं ।

राहुल कमरे के बाहर रखे बड़े से शो पीस के पीछे छुप गया जब वो मुस्कराता हुआ वापस जाने को हुआ कि उसे कमरे में से पायलों की आवाज आई।

"सब तो निकल गए फ़िर अंदर कौन है " फुसफुसाते हुए राहुल धीरे से दरवाजे को धकेला कि किसी ने अंदर से दरवाजा खोल दिया और राहुल सन्तुलन बिगड़ने की वजह से कमरे के अंदर की तरफ़ ज़मीन पे गिर गया ( जरुरी थोड़े ही न है हर बार हीरो हीरोइन साथ में गिरे, थोड़ा प्रेक्टिकल भी सोचा करो भाई 😀😀) 

" आह माँ , मर गया" राहुल चिल्लाया

" ओह, सो सॉरी , आपको लगी तो नहीं , वो मैं ... मुझे पता नहीं था आप बाहर है तो " स्नेहा राहुल को संभालते हुए बोली।

" मुझे भी नही पता था तुम अंदर हो , तुम सच में छुप छुप के बाते सुनती हो , कहाँ छुपी थी वैसे" राहुल खड़े होते हुए बोला

" वो बेड के नीचे , और आप?" स्नेहा मुस्करा कर शरमाते हुए बोली

" मैं , नहीं तो मैं कहाँ छुपा था ,मैं तो यहाँ से जा रहा था "
राहुल हड़बड़ाते हुए बोला और बाहर जाने लगा 

" झूठ , आप भी छुप छुप कर बातें सुनते हैं तभी तो आपके ये गाल लड़कियों जैसे लाल हो रखे हैं " स्नेहा उसके गाल खींचते हुए बोली।

" नहीं वो...मैं तो बस...ठीक है ..हाँ सुन लिया तो? "

" तो बारात की तैयारी करो दूल्हे राजा " स्नेहा ने हँसते हुए कहा और जाने लगी। राहुल ने उसका हाथ पकड़ अपने करीब लाते हुए पूछा - "स्नेहा, मज़ाक नहीं , सच कहो "

" क्या सुनना चाहते हो , जो सुनना चाहते हो वो शादी के बाद ही सुनने मिलेगा "

" मैं इंतजार करूँगा " राहुल स्नेहा की आँखों से आँखों मिलाते हुए , दो पल को दोनो खो से गये ।

उनके कमरे के बाहर खड़ीं कल्पना , रेखा बुआ और साथ कि खड़ी लड़कियां मुस्करा रहीं थीं ।

" अब बच्चों से बात करने की जरूरत नही , मैं ही सबको हाँ कर देती हूँ " रेखा बुआ मुस्कुराते हुए बोलीं 

राहुल ने स्नेहा का हाथ छोड़ दिया और शरमाते हुए नीचे चला गया।

" वाह हल्दी मेरी है, पर शरम का रंग मेरी बहन पे खिल रहा है " कल्पना मुस्कुराते हुए बोली 

" क्या दीदु, चलो मैं आपको नीचे ले चलती हूँ " 

नीचे जाते ही राहुल की नज़र रावत अंकल की तरफ गई , उन्होंने उसे अपने पीछे आने का इशारा किया और अपने कमरे की तरफ़ चले गए।

राहुल को याद आया कि तांत्रिक के बारे में भी रावत अंकल से जरूरी बात करनी है और वो उनके पीछे पीछे चल दिया।

क्रमशः ...