कहानी - जल पिशाच ( भाग 8)
लेखिका - आस्था जैन " अन्तस् "
श्रेणी - हॉरर, सस्पेंस - थ्रिलर , साइंस - फिक्शन
संयोगी कुछ और देख पाती या सुन पाती इससे पहले ही उसके दाएँ तऱफ रखे डेस्क पर एक टेलीफोन बजने लगा , चारों तरफ की दीवारों को घूरते हुए बड़ी सावधानी से उस डेस्क तक पहुँची, लगातार बज रही ट्रिन ट्रिन की आवाज़ उसके अंदर के डर को बढ़ाती जा रही थी जैसे ही संयोगी ने स्पीकर उठाया तो ट्रिन ट्रिन की आवाज़ बन्द हो गई और दूसरी ओर से दहशत और घबराहट से डूबती हुई किसी औरत की आवाज़ सुनाई दी.... " उतेरे जाकप तिलरी नाग में "
" क्या ....." संयोगी को पूरी तरह भरोसा था कि ये आवाज किसी शैतान की थी जो किसी शैतानी भाषा मे संयोगी के मरने की भविष्यवाणी कर रही थी।
" उस ने जान ले ली, मेरे पति की .... उसने ... उ.....उ.." और एक गहरी खामोशी दूसरी ओर पसर गई और इधर संयोगी के सिर पर एक एक पल दहशत के बम की तरह फूट रहा था ।
" हलो.., क्या हुआ है, कौन हैं आप " अपनी आवाज़ को भरसक संयमित रखने का प्रयास करती हुई संयोगी ने कहा लेकिन अगले ही वो पल चीख़ कर ज़मीन पर गिर पड़ी जैसे उसे उस फ़ोन से उसके कान में बिजली का तेज़ करंट लगा हो ।
उसने सदमे अपना हाथ उस कान पर लगाया जिस पर दो पल पहले टेलिफोन का रिसीवर लगा हुआ था, उसके कान पर पानी लगा हुआ था जिसे संयोगी ने जल्दी से अपने हाथ से पोंछ लिया और जल्दी जल्दी घसिटते हुए दरवाज़े तक पहुँच गई , दरवाज़े से बाहर गिरते पड़ते भागती हुई संयोगी जल्दी से गाड़ी के पास पहुँची , परी और नेहा उसी का इंतज़ार कर रहीं थीं , संयोगी पागलों की तरह बड़बड़ा रही थी और तेज़ रफ़्तार में गाड़ी चला रही थी ।
कुछ मिनट बाद ही जब उसे होश आया तो उसने गफी रोक दी, वे तीनों उस बुलेरो गाड़ी के साथ एक रिहायशी इलाके में आ चुकी थीं ।
" बताओगी कि हुआ क्या है, संवर कहाँ हैं ,खन्ना अंकल कहाँ हैं , संयोगी जवाब दो "नेहा उस पर बुरी तरह बिफ़र रही थी।
" मैं - मैं अंदर- मैं अंदर गई थी , वहाँ किसी का फ़ोन आया, और....और जब मैंने उसे उठाया तो उसमें से पानी की तेज़ धार मेरे कान पर पड़ी, उसके रिसीवर में से बिल्कुल बर्फ़ जैसा एक हाथ बाहर निकल रहा था , मैं डर गई, मैं- मैं - भाग आई " और स्टेयरिंग पर सिर पटक कर संयोगी सुबकने लगी।
परी और नेहा दोनों ही बुरी तरह हिल चुकी थीं ।
" हम घर चलते हैं ..." परी ने गिड़गिड़ाने जैसी आवाज़ में कहा।
" नहीं, हमे संवर, खन्ना अंकल, वासु, राधे, विभु सबको ढूंढना होगा, और पिया वो भी तो गायब है ..., हम वापस थाने चलते हैं" संयोगी ने पूरे विश्वास के साथ कहा।
" लेकिन हम वहाँ नही जा सकते हैं, हम किसी को नहीं ढूंढ सकते, वहाँ खतरा है " परी ने रोते हुए कहा।
" हाँ, खतरा पूरे इलाके में है, हम कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं, उस फ़ोन की आवाज़ सुनकर लगता है वो शैतान एक नहीं बल्कि बहुत सारे हैं और तेज़ी से हर जगह पहुंच कर लोगों को मार रहे हैं, मैं अचानक डर गई थी पर अब मैं ठीक हूँ, हमें उन सबको ढूंढ़ना ही होगा परी, हौंसला रखो " संयोगी ने उसका हाथ अपने हाथ में मजबूती से थामते हुए कहा।
" जहाँ हो , वहीं रहो, हो सके तो घर चली जाओ, पूरा इलाका खतरे में है, शायद हमारा मोहल्ला हमेशा की तरह ज्यादा सुरक्षित साबित हो, घर जाओ, किसी तरह के पानी को मत छूना "
" क्या बक़वास कर रही हो नेहा " संयोगी ने चिढ़ से पीछे सिर घुमाकर नेहा की तरफ देख कर कहा।
" संवर, संवर का मैसेज है, .... मतलब वो ठीक है और हमसे घर जाने को कह रहा है " परी ने नेहा के मोबाइल में देखते हुए कहा।
" शायद उसने मुझे भागते हुए देख लिया होगा कि कैसे मैं गाड़ी लेकर भाग आई उसे वहाँ अकेला छोड़कर ..." संयोगी ने गहरे पश्चताप से अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा छुपा लिया लेकिन अगले ही पल मन मे किसी बात का पक्का फ़ैसला करके उसने गाड़ी घुमाई और वापस थाने की ओर दौड़ा दी ।
" वो वहाँ लड़ रहा होगा और उसे लगता है कि हम नहीं लड़ सकते इसलिए डर कर भाग गए " नेहा ने सदमे से कहा।
" उसने हमसे घर जाने को कहा है ..." परी ने धीमे से कहा।
" अच्छा तो मैं पहले तुम्हें घर छोड़ आती हूँ फ़िर वापस संवर के पास जाऊँगी चाहे वो तबतक मर ही क्यों न जाये , ठीक है ?" संयोगी ने ग़ुस्से से चिल्लाते हुए कहा।
परी को अपराध बोध हुआ वो बोली - " नहीं..., मैं , मैं ठीक हूँ , क्या हुआ.... "
संयोगी ने अचानक ही गाड़ी रोक दी थी, वो फटाक से दरवाजा खोल कर बाहर सड़क पर आ गई , गाड़ी के सामने एक आदमी घुटने के बल ज़मीन पर गिरा हुआ था , " हेल्प ..... हेल्प ...." वो डूबती हुई आवाज़ में कह रहा था।
संयोगी ने हाथ देकर उस आदमी को उठने में मदद की और गाड़ी की पिछली सीट पर बिठा दिया , नेहा ने भी उसकी मदद की।
वो आदमी शायद बहुत दूर से तेज़ी से दौड़ता हुआ आया था इसलिए बहुत बुरी तरह हाँफ रहा था , उसके हल्के पीले रंग के चेहरे पर चौकोर फ्रेम का चश्मा लगा हुआ था , दौड़ने से सबसे ज्यादा तकलीफ़ उसकी तोंद को हुई होगी इसलिए वो एक हाथ अपनी तोंद पर फेर रहा था और एक हाथ से अपने सीने को दबाये हुए था ।
संयोगी ने सामने की सड़क के दाएँ मोड़ पर जैसे ही गाड़ी मोड़नी चाही वो आदमी चिल्ला उठा- " नो नो, उधर नहीं, उधर कोई इंसान नहीं है ... बैक करो "
संयोगी ने खीझते हुए गाड़ी उसी मोड़ पर रोक दी , पीछे बैठा आदमी अब पहले से अधिक सामान्य हो चुका लेकिन उसके चेहरे पर दहशत और घबराहट साफ़ दिख रही थी।
"देखिये, वहाँ थाने में हमारा दोस्त फँस गया है .. हमे उसे ..." संयोगी की बात को उस आदमी ने एक झटके में काट दिया।
" उधर कोई नहीं है, उधर बस वो पिशाच हैं , बात समझ मे आती है या नहीं ईडियट, मैं वहीं से भाग कर आ रहा हूँ, सबको चूस चूस के मार डालेंगें वो ...." वो आदमी आगे कुछ और कह पाता उससे पहले ही उनकी गाड़ी के सामने के काँच के ज़ोरदार चटकने की आवाज़ हुई ।
सब अपनी सीट से उछल गए, सामने के काँच पर कोई सिकुड़ा हुआ इंसानी हाथ चिपका हुआ था और उसके वज़न से गाड़ी का काँच तिरक रहा था , सामने सुनसान रास्ता था, बाईं तरफ़ खाली मैदान और दाईं तरफ़ के एक मकान से आ रही रोशनी में उस हाथ के मालिक का शरीर एक धूसर चोगे में लिपटा हुआ दिख रहा था ।
....
पिया के पास मरने के अलावा और कोई चारा नही था, उसने अपनी नम आँखे बंद करके अपने आपको उन तीन दीवारों के बीच मे दब कर कचूमर बनने के लिए तैयार कर लिया , उसे अपने दोनों कन्धों पर दीवारों का अहसास हुआ , ऊपर से सारे बैंगनी गोले एक साथ नीचे टपके लेकिन वो पिया को छू पाते उससे पहले ही दोनों दीवारों ने एक जोरदार धक्का उसके दोनों कंधों पर दिया और उसे सामने वाली दीवार पर धकेल दिया ।
पिया उस झरने की तस्वीर वाली दीवार से टकराने की जगह उसके आर पार चली गई और मुँह के बल नीचे गिर पड़ी, उसने अपनी चोट खाई नाक मलते हुए सिर ऊपर उठाया तो वो अपने उसी हिमखंड पर गिरी हुई थी जो सफ़ेद संगमरमर जैसे मैदान पर स्थिर रखा हुआ था और सामने खड़े एक पहाड़ की चोटी पर तीन जामुनी रंग की पंखुड़ियों जैसी आकृति गोल गोल घूम रही थी ।
" मैं उस दीवार के आर पार कैसे हो गई " पिया सदमे से फुसफुसाई।
" क्योंकि तुम प्रथम जल-संरक्षक हो " एक आवाज़ गूँजी , पिया को लगा कि शायद ये आवाज सामने खड़े बर्फ़ के सफ़ेद पहाड़ से आई हो या उन घूमती हुई पंखुड़ियों से .... क्योंकि इनके अलावा और कोई चीज़ उसे आस पास दिख नहीं रही थी, उसने पीछे मुड़कर देखा तो कोई दीवार या कमरे का कोई अस्तित्व नहीं था बल्कि कोई बर्फ़ का बादल या पहाड़ या वो हिमपर्वत भी उसे नहीं दिखाई दिया ।
उसे लग रहा था वहाँ वो सबकुछ है जो उसने पहले यहाँ आकर देखा था लेकिन वो उनके आकार को देख नही सकती बावजूद इसके उन सब चीजों के होने का अहसास उसे हो रहा है।
" ज- जल -संरक्षक , .... ये क्या होता है, कहाँ हूँ मैं, कौन हो आप, कहाँ से बोल रहे हो, मैं यहाँ कैसे आई, मैं वापस कैसे जाऊँ , बोलो, कोई तो जवाब दो ..... कहाँ हूँ मैं " अपने किसी भी सवाल का जवाब न मिलने पर पिया के सब्र का बांध टूट गया और एक आँसू उसके गालों से ढुलक कर उस हिमखंड पर गिर पड़ा जिस पर पिया मुँह के बल गिरी हुई थी।
पिया ने देखा वो आँसू आधा सुर्ख़ जामुनी रंग और बाकी का आधा सुर्ख़ बैंगनी रंग में बदल गया था और पलक झपकाते ही दोनों रंगों ने अपनी जगह बदल ली और फिर उसी जगह आ गए, उस बूँद के दोनो हिस्से लगातार रंग बदल रहे थे जिससे पता लगा पाना मुश्किल हो रहा था कि कौन सा हिस्सा किस रंग का है।
पिया संभलते हुए उस हिमखंड पर बैठ गई और उस आँसू की बूँद को छूने की कोशिश की, वो अब ठोस मोती जैसी लग रही थी जो उसी हिमखंड से चिपकी रह गई थी।
पिया ने नज़र उठाकर सामने खड़े पहाड़ को देखा , कुछ सोचा और उस हिमखंड से उतर कर उस पहाड़ की ओर चल दी ।
क्रमशः ......
Do comment and subscribe this blog 😊
14 Comments
अल्टीमेट
ReplyDeleteThanks :)
ReplyDeleteSuprr
ReplyDeleteThanks
DeleteAwesome Jalpari
ReplyDeleteThanks didu
Delete👌👌
ReplyDeleteThanks
Delete𝙝𝙤𝙬 𝙘𝙖𝙣 𝙄 𝙨𝙪𝙗𝙨𝙘𝙧𝙞𝙗𝙚 𝙩𝙝𝙞𝙨 𝙗𝙡𝙤𝙜𝙨
ReplyDeleteI am to upload a video about it very soon
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteThanks sir
DeleteSuper se bhut upar mtlb ek type se kahe to hero h piya ar ho sakta h un 7 dosto m se bhi ho ar ho ku ki jisne bhi piya ko bola usne pahla bola isse saf jahir h ki ar h dekhte h Kya hota h
ReplyDeletePiya will be the main lead in last
Delete