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कहानी - जल पिशाच ( भाग 10) 

लेखिका - आस्था जैन " अन्तस् "

श्रेणी - हॉरर ,सस्पेंस-थ्रिलर, साइंस-फिक्शन

...

" ये तुम क्या कर रही हो परी " संवर चिल्लाया ।

सभी उस आदमी की बड़बड़ाहट में इतने खोए हुए थे कि खन्ना जी की तरफ़ किसी का ध्यान ही नहीं गया था , वो प्यास से छटपटा रहे थे और परी पीछे की सीट से आगे झुक कर उन्हें बोतल से पानी पिला रही थी जिसमें से आधा उनकी सीट पर फैल रहा था। संवर की चीख़ सुनकर वो अनजान आदमी अपनी बड़बड़ाहट भूल गया और उसने सदमे से दोनों हाथ अपने मुँह पर रख लिए।

" वो हमारे पेरेंट्स की उम्र के है, उनकी हालत तो देखो संवर ...." परी ने उससे कहा , आस पास हो रही घटनाओं से वो अब भी डरी हुई थी।

" पर अगर वो भी उसी के जैसे बन गए तो ..." संवर ने चिंता से कहा।

" इसका हाथ सही हो रहा है ......., मैंने कहा था न , पानी मिलते ही ये जल पिशाच बन जायेगा , देखो ये बन रहा है , मेरी रिसर्च कभी गलत नहीं होती" वो आदमी बोला।

" आप आखिर हैं कौन , आप जानते हैं ये इस शहर के डीएसपी है , हमे इनकी जान बचानी ही होगी और ये इंसान है कोई भूत प्रेत या पिशाच नहीं , संयोगी मुझे लगता है अब हमें इन्हें यहीं उतार देना चाहिए, मुझे तो लगता है इन्हीं में कोई गड़बड़ है " नेहा ने उस आदमी को घूरते हुए कहा।

" अंकल अब ठीक लग रहे हैं और होश में भी आ रहे है , हैं ना " परी ने कहा।

" तुम लोगों के साथ हुआ क्या था संवर " नेहा ने पूछा ।

" मुझे लगता है हमें पहले फार्महाउस के अंदर चलना चाहिए , गाड़ी के बहुत से  काँच तिरक चुके हैं , हम बाहर ज्यादा सेफ नहीं हैं " संयोगी ने गाड़ी से नीचे उतरकर चारों तरफ़ चौकस निगाहो से देखते हुए कहा, सभी लोग फार्महाउस के अंदर आ गए , वो आदमी उन लोगों के साथ रहने की गरज से खन्ना जी को फार्महाउस के अंदर लाने में संवर की मदद कर रहा था , खन्ना जी हल्के हल्के होश में आ रहे थे ।

" अब बताओ क्या हुआ था पुलिस स्टेशन में " संयोगी ने पूछा । सभी फार्महाउस के नीचे के कमरे में ही बैठ गए थे और एक कुर्सी पर खन्ना जी आराम कर रहे थे उनकी आँखें खुली हुईं थीं पर वो बोल नहीं रहे थे , कमरा मुख्य गेट के सबसे पास था , शायद उसमे पहले सिक्योरिटी गार्ड रहता था जो फिलहाल पुलिस की कस्टडी में था।

संवर ने उसे सब बताया - " मैं खन्ना सर के साथ अंदर गया था लॉक अप वाले हिस्से में, वहाँ तीन आदमी थे और एक लड़का था बिल्कुल मेरी उम्र का , तीनों बेहोश पड़े थे और सूखते जा रहे थे , हमने उन्हें उठाने की कोशिश की लेकिन तब तक वो शायद मर चुके थे, लड़का एक कोने में खड़ा था , तभी शायद तुम्हारे चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी , मैं भागकर बाहर आया लेकिन तब तक तुम जा चुकी थीं, मैं वापस अंदर गया खन्ना जी को लेने तो वो बेहोश जमीन पर पड़े थे उनकी उंगलियाँ सिकुड़ रही थीं , वो लड़का जो कोने में खड़ा था अब जमीन पर पड़ा था , एक गन्दा और बिल्कुल पतला एकदम मरियल सा आदमी किसी वहशी जानवर की तरह उस लड़के की आँतो को चूस रहा था, मैं खन्ना सर को घसीट कर लॉकअप के कमरे से दूर ले जा रहा रहा था और उस लड़के का पूरा शरीर सिकुड़ रहा था बस गर्दन से ऊपर का हिस्सा सही था , पता नही कैसे उसने मुझसे कहा कि वो देख पा रहा है कि विभु उसे बचा सकता है और फिर उसका सिर भी सिकुड़ गया और वो मर गया , मैं नहीं जानता कि विभु के साथ क्या हुआ है वो कहाँ है कैसा है लेकिन मेरे दिमाग में पहला ख़्याल यही आया कि मैं यहाँ फार्महाउस में आकर विभु को ढूँढू , मैं किसी तरह उन्हें लेकर बाहर आया और तुम्हारी गाड़ी मुझे दिख गई , बस ....." 

नेहा अपना मोबाइल उसे दिखाते हुए बोली - " मेरे पास तुम्हारा मैसेज आया था , तुमने लिखा था घर चली जाओ और पानी से दूर रहना " 

"नहीं , मेरे ...... मेरे पास मेरा मोबाइल नहीं है, मुझे नही पता किसने मैसेज किया था तुम्हें, तो क्या इसीलिए तुम लोग मुझे छोड़कर चली गईं थीं " संवर ने अपनी जीन्स की जेब टटोलते हुए कहा ।

संयोगी ने सिर झुकाकर अपराध बोध से कहा , " मुझ पर किसी ने हमला किया था वहाँ , मैं ही चिल्ला कर भाग गई थी , पर जल्द ही वापस लौट आई और रास्ते में ये हम लोगों को मिले थे, हमने इनकी मदद करना सही समझा " 

संयोगी के शब्दों से लग रहा था कि उसे आखिरी में कहे गए शब्दों का ज्यादा अफ़सोस था । परी और नेहा भी उस आदमी को ही घूर रही थीं जो सभी दीवारों को एक एक करके हाथों से ठोक रहा था ।

संवर ने उससे कहा - " कोई बात नहीं , वो शैतान सच मे बहुत डरावने हैं , उनके चोगे के बिना उनके गन्दे शरीर को देखना बहुत ही ज्यादा डरावना था " 

" ये फार्महाउस तो पिया ने सील करवा दिया था न" परी ने कहा।

" हाँ लेकिन आज सुबह ही जब विभु गायब हुआ तो उसके मोबाइल की लोकेशन यहीं की मिली थी, दोपहर से एक टीम फार्महाउस और आस पास के इलाके की छानबीन कर रही थी, इसीलिए मेन गेट और सारे कमरे खुले हुए हैं लेकिन फिलहाल यहाँ न तो कोई टीम दिख रही है और न ही विभु " संवर ने अपनी शर्ट की दाएँ हाथ की आस्तीन को मोड़ते हुए परी को सब बताया।

" क्या हुआ क्या तुम्हे भी उन जल पिशाचों ने ...." उस आदमी ने संवर की कलाई को देखते हुए कहा।

"नहीं पता, बस हाथ मे थोड़ी जलन महसूस हो रही है ,  पर आपने अभी तक नही बताया कि आप कौन हैं " संवर ने उससे पूछा ।

वो आदमी संवर के पास आ गया और उसकी कलाई को देखने लगा फिर थोड़ी देर बाद बोला , - " मेरा नाम थॉमस जाधव है,  मैं पेशे से एक साइंटिस्ट हूँ , मेरा मतलब है कि साइंटिस्ट था, एक सरकारी अनुसंधान केंद्र के रसायन विभाग में काम करता था पर निकाल दिया गया फिर एक प्राइवेट स्कूल में रसायन विज्ञान पढ़ाने लगा , मैं थ्योरी ही ज्यादा पढ़ाया करता हूँ इसका नतीजा ये हुआ कि ...... कि ये तोंद पिछले 4 सालों से मेरे साथ है ,मुझे इससे कभी नफरत नहीं हुई मगर आज इसकी वजह से भागने में मुझे काफ़ी तकलीफ़ हुई ..." 

संवर अबतक खन्ना जी के पास पहुँच चुका था वो कुछ बोलने की कोशिश कर रहे थे ।

" कोई मुझे बता सकता है कि कितने बजे रहे हैं वो क्या है कि मैं जल्दबाजी में अपना मोबाइल अपनी पर्सनल लैब में छोड़ आया हूँ " थॉमस ने पूछा ।

" तीन बज कर दस मिनट " नेहा ने अपने मोबाइल में देखकर बताया।

" अब शायद उनका असर कम हो रहा है और शायद हम सुरक्षित हैं उनसे भी और डीएसपी से भी " थॉमस ने मुस्कुराते हुए कहा ।

" आप कैसे हैं सर, कैसा महसूस हो रहा है " संवर ने उनका सिर अपनी गोद मे लेते हुए कहा।

" आह ....मैं..... अच्छा हूँ .....बस ..... आराम चाहता हूँ " कहते कहते ही खन्ना जी सो गए ।

" वैसे मैं भी थक गया हूँ , मैं भी सोना चाहूँगा " थॉमस ने कहा और पास के अस्त व्यस्त पलंग पर पसर गया।

" तुम लोग भी पास के कमरे में अच्छे से चेक करके थोड़ा आराम कर लो औऱ साथ ही रहना " संवर ने अपनी कलाई को दूसरे हाथ से सहलाते हुए कहा।

संयोगी ने न में सिर हिलाते हुए कहा " नहीं , पहले मुझे कुछ जानना है, प्रोफेसर ने कहा था  कि खन्ना सर जल पिशाच बन जाएंगे पर वो बिल्कुल ठीक हैं , और ये जल पिशाच है क्या ,मुझे लगता है ये सब कुछ जानते हैं " 

संवर ने पलंग पर खर्राटे लेते हुए प्रोफेसर को देखा और कहा - " जिस तरीके से ये इंसान सो रहा है , हम इसे जगा नही सकते न ही कुछ पूछ सकते हैं  तुम सब जाकर आराम करो , वैसे भी मैं शर्ट हटाना चाहता हूँ , मुझे बहुत जलन हो रही है " 

" ठीक है , हम तीनों बगल वाले कमरे में हैं, खन्ना अंकल का मोबाइल ऑन रखना और हम तीनों के पास हमारे मोबाइल हैं ही, और हाँ कमरा लॉक मत करना अगर कहीं से दुबारा वो शैतान आए तो भागने में दिक्कत आएगी " संयोगी ने उसे समझाया और वे तीनों बगल वाले कमरे में चलीं गईं जो बिल्कुल खाली था बस कुछ रोज़ की जरूरत के सामान के खाली डिब्बे उसमें रखे हुए थे ।

" यकीन नहीं होता इस फार्महाउस में कुछ दिन पहले तक पार्टी हुआ करती थीं और आज ये किसी भूतिया बंगले से कम नहीं लगता " परी ने नेहा के बगल में जमीन पर लेटते हुए कहा।

नेहा ने उसके सिर पे हाथ फेरा और बोली - " तुम आज बहुत डर गई थी, शायद सबसे ज्यादा, इसलिए तुम्हे सब भूतिया दिख रहा है , वैसे डीएसपी सर को सही टाइम पर पानी देकर तुमने अच्छा ही किया, क्या हुआ संयोगी, थोड़ा आराम कर लो  " 

संयोगी सभी दीवारों से दूर कमरे के बीच में बैठी हुई थी , " कैसे आराम करूँ हमारे तीन दोस्त गायब हैं, पिया गायब है, क्या चल रहा है कुछ समझ नही आ रहा, मुझे लग रहा है कि सुबह होने पर हमें पूरे शहर में लाशें मिलेंगी " 

" इतना मत सोचो, मुसीबत में तो हम सब ही हैं पर कोई न कोई हल तो निकलेगा ही , मुझे भी लगता है कि ये प्रोफेसर बहुत कुछ जानता है " नेहा ने कहा।

" मैंने कभी यकीन नही किया था कि भूत या पिशाच जैसा कुछ होता है " परी ने कहा।

" पता नही ये जो भी है बहुत बड़ी मुसीबत है ..." संयोगी ने कहा और नेहा की गोद मे सिर रखते ही उसकी आँखे बंद हो गईं, मुसीबत के डर पर पूरी रात की नींद भारी पड़ गई ।

क्रमशः 

Writer's note - देखिये अब कहानी कैसी भी जा रही हो, मगर आप मे से कोई कमेंट मत करना , चाहे कुछ भी हो जाये, मगर आप कमेंट मत करना, भले कुछ भी गलत हो रहा हो मुझसे लिखने में या कुछ बहुत बेहतरीन हो रहा हो मगर आप कमेंट मत करना ,
ठीक है :)