कहानी - बड़े घराने की बहू (पार्ट 11)
लेखिका - आस्था जैन " अन्तस्"
श्रेणी - हॉरर, आध्यात्मिक, स्त्री-विमर्श, सस्पेंस-थ्रिलर
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" क्या वो सब सच था " नदी के किनारे एक पत्थर पे बैठा हुआ राहुल सोच रहा था, दोनों तरफ घना जंगल था, किसी भी तरफ़ जाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी ।

अजीब अजीब सी अस्पष्ट आवाजें दोनों तऱफ से आ रहीं थीं जो उस अंधेरे को और भी भयावह बना रहीं थीं ।

"दयान ने कहा था कि पैलेस की बुरी आत्माएं मुझपर हमला कर सकती हैं , कहीं मैं इनके जाल में ही तो नहीं फंस गया " सोचते सोचते राहुल का bp हाई होता जा रहा था । 

" क्या करूँ, कहाँ जाऊँ  , किसे आवाज लगाऊँ, यहाँ कोई आया तो मिल भी जाऊँगा ,जंगल मे चला गया तो खुद ही खो जाऊँगा " 

उसे सबकी बहुत याद आ रही थी , " दद्दू ने कहा था जब बुलाओगे आ जाऊँगा अब क्यों नहीं आ रहे, जाने कहाँ फंसा हूँ मैं तो आ नहीं रहे, स्नेहा भी आगे पीछे मंडराती रहती है, अब क्यों नहीं आ रही , माँ तुम तो हमेशा साथ रहती थीं, अब देखो कितना अकेला हो रहा हूँ यहाँ , ऊपर से ये आवाजें " राहुल ने अपने कान बन्द कर लिए।

" मैं जानता तो तुम्हारे बारे में बहुत कुछ हूँ अक्कू"
अचानक से राहुल के दद्दू के कहे शब्द याद आये जो उन्होंने उसे पहली बार मिलने पर कहे थे।

"मैं पहचान कैसे नही पाया उन्हें , वो मुझे पहचान गए , मैंने उन्हें जाने ही क्यों दिया"
राहुल रोने लगा ।

तभी एक स्पष्ट और तेज़ आवाज़ उसके कानों में पड़ी,
" रो मत "

राहुल झटके से डर के मारे खड़ा हो गया , आस पास सब जगह देखने लगा, उसे आश्चर्य हो रहा था इतने अंधेरे में भूत से खड़े दिखने वाले पेड़ अब ठीक ठीक दिख रहे थे , जंगल उतना भी घना नहीं लग रहा था ।

" लगता है सुबह होने वाली है , अब मैं यहाँ से निकल सकता हूँ"  सोचकर राहल जिस तरफ़ बैठा था उसी तरफ़ के जंगल मे घुस गया।

" साली , तेरे पूरे खानदान  को मार कर तुझे इसी लिये उठा कर लाएं है क्या , कि तुझपे दया कर सकें " 

किसी आदमी की अजीब सी आवाज़ सुनकर राहुल ठिठक गया , आवाज बगल की झाड़ी में से आ रही थी उसी दिशा में वो धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा।

" अरे , हम बदला लेने  के लिए लेकर आएं है तुझे, देख क्या रहे हो सब टूट पड़ो" 

ये अलग आवाज थी । 

राहुल का दिमाग ठनका उसने पास से एक मोटी लकड़ी उठाई और आगे बढ़ गया।

लेकिन सामने कोई आदमी था ही नहीं , एक औरत जमीन पे पड़ी हुई थी जो चिल्लाना चाह रही थी लेकिन चीख़ नही पा रही थी उसका मुँह बंधा हुआ था, उसे लगातार कोई मारे जा रहा था , लेकिन वहाँ था कोई भी नहीं सिवाय उस औरत के, राहुल को समझ नहीं आ रहा था क्या करे, वो लकड़ी फेंक कर उस औरत के पास आया उसने उसकी मदद करने की कोशिश की , लेकिन ये क्या वो तो उसे छू भी नहीं पा रहा था।
औरत बड़ी पीड़ा और दयनीय भाव से रोते हुए उसकी ओर देख रही थी, लेकिन वो कुछ नहीं कर पा रहा था और आखिरकार वो औरत बेहोश हो गई । 

कोई उसे उठाकर झाड़ियों में और अंदर की तरफ ले गया , राहुल उस ओर भागा , लेकिन एक हद तक आकर वो जैसे जम गया वो आगे नहीं बढ़ पा रहा था , अंदर घनी झाड़ियों में से उस औरत के चीखने चिल्लाने की आवाजें आ रही थीं लेकिन राहुल हिल भी नही सकता था, जैसे दर्द और बेबसी की एक सदी बीतने के बाद राहुल को लगा कि वो हिल पा रहा है लेकिन तभी उसे खून से लथपथ वो औरत दिखाई दी वो बेहोश थी कोई उसे घसीटते हुए नदी की ओर ले जा रहा था , राहुल भी उसी ओर भागा , नदी किनारे किसी ने उसके पूरे शरीर पे तेज़ाब डाल दिया, वो औरत बेहोशी में भी उस असहनीय पीड़ा के कारण छटपटा रही थी , चिल्ला रही थी ।
राहुल के कान फ़टे जा रहे थे वो बार बार उसके पास जा रहा था लेकिन उसे छू भी नहीं पा रहा था । साथ ही साथ कई लोगों की शैतानी हँसी भी उसे सुनाई दे रही थी । 

राहुल गालियां देता हुआ चिल्ला रहा था "कौन है, सामने आओ , क्यों कर रहे हो इस औरत के साथ ऐसा , सामने आओ" लेकिन चीख़ने के अलावा वो और कुछ न कर सका।
उस औरत के ऐसे ही शरीर को नदी में ढकेल दिया गया।

राहुल हार कर वहीं बैठ गया और चीख चीख कर रोने लगा।

तभी एक और आवाज़ आई " रो मत"

राहुल खड़ा हुआ , उसने अपने आँसू पोंछते हुए आस पास देखा , कोई नहीं था , तभी उसे जंगल से किसी के चीख़ने की आवाज सुनाई दी और धुँआ भी दिखाई दिया।

वो दौड़ते हुए उस तरफ़ भागा  , आधे से ज़्यादा जंगल पार कर लेने के बाद उसे एक बस्ती दिखाई दी  , उसी बस्ती में एक घर के पिछले हिस्से में आग लगी हुई थी, पूरी बस्ती में सन्नाटा पसरा हुआ था , एक घर के पीछे आग का धुँआ उठ रहा था वो धुँआ बहुत अजीब था , जिसमें किसी की चीखें मिली हुई थीं , राहुल भाग कर उस घर के पीछे गया तो उसने जो देखा उसकी आँखें पथरा गईं।

उस घर के पीछे एक पेड़ से बाँध कर एक औरत को जलाया जा रहा था । पर वहाँ कोई नहीं था उस औरत के अलावा , सिर्फ उसकी चीख़ें थीं और अनगिनत आवाजें ।

" ये चुड़ैल ऐसे ही मरनी चहिये थी, अब गाँव मे कोई ख़तरा नही है "

" जाने कबसे इस कुल्टा को रखा हुआ था घर मे  , अब इसे इसके कर्मों की सजा मिल रही है"

" ऐसी औरतों के साथ यही होना चाहिए, अपना लड़का था नहीं , मेरे बेटे पे नज़र थी इस डायन की, अच्छा हुआ गाँव से बला टली " 

राहुल ने अपने कान बन्द कर लिए और चिल्लाने लगा , " चुप हो जाओ सब , वो जल रही है , तुम सब इतने निष्ठुर कैसे हो सकते हो, सामने आओ मेरे , रोको इस आग को "

तभी एक बच्ची की आवाज की करुण आवाज उसे सुनाई दी।

" माई, माई , माई , हमें छोड़ के मत जाओ माई "

और अगले ही क्षण 2 बच्चियां रोती हुईं दौड़कर उस औरत से जाकर लिपट गईं 

राहुल चिल्लाया "वो जल चुकी है  , वहाँ मत जाओ , तुम भी जल जाओगी , रुको " 

राहुल ने दौड़कर उन बच्चियों को रोकने की कोशिश की , लेकिन पिछली ही बार की तरह वो कुछ नहीं कर पा रहा था।

आखिरकार अनंत रुदन, पीड़ा और आर्तनाद से भरे उस वातावरण में दोनो बच्चियां भी जल कर राख हो गईं और राहुल चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाया , वो वहीं बैठ कर रोने लगा, चीख़ने लगा उसे लगा वो अपना मानसिक संतुलन 
हमेशा के लिए खो देगा।

" माँ .... माँ , मैं क्या करूँ , मैं किसी को बचा नहीं पाया माँ" 
अचानक उसे अपनी माँ के चेहरा अपने अवचेतन मन मे दिखा , 
वो थोड़ा शान्त हुआ तो  उसे अपना वही सपना याद आया , शांत, सहज निर्मल वातावरण , श्वेत शिलाखण्ड उनपे ॐ कार के ध्यान में लीन दद्दू , वो 5 साल का राहुल दौड़कर उनके पास आया, और उनके बगल में बैठकर ध्यान लगाने लगा , ॐ , ॐ, ॐ, ॐ ॐ ......

थोड़ी देर बाद उसे सहज महसूस हुआ तो उसने अपनी आँखें खोलीं , वो पैलेस के बगीचे में पड़ा हुआ था। उसने उठ कर चारो तरफ़ देखा , अभी भी रात थी।

उसने नज़र उठाकर पैलेस की तरफ़ देखा , सबसे ऊपर की मंजिल पे रामायणी जी खड़ी हुई थीं और देखते देखते एक पुतले की तरह नीचे ढुलक गईं , राहुल भागता हुआ उस तऱफ गया , रामायणी जी का शव जमीन पर पड़ा हुआ था, राहुल ने उनकी नब्ज़ देखी तो उसका दिल बैठ गया।
" माँ , माँ उठो माँ , माँ......" 
राहुल की आँखों से आँसू बह निकले । उसने अपनी माँ के गले लग कर  ज़ोर ज़ोर से रोने लगा
तभी उसे लगा उसकी माँ के शरीर में कुछ हलचल हो रही है उसने सिर उठाकर रोते हुए बड़ी उम्मीद से अपनी माँ की तरफ़ देखा तो उसका शरीर बर्फ़ सा जम गया।
ये उसकी माँ नहीं थी , बल्कि कोई और ही औरत थी ।
उस औरत ने अपनी काली स्याह आँखें खोलकर राहुल की तरफ़ देखते हुए भर्राई आवाज़ में कहा , " रो मत" ....

क्रमशः ...