कहानी - बड़े घराने की बहू (पार्ट 12)
लेखिका - आस्था जैन " अन्तस्"
श्रेणी - हॉरर, आध्यात्मिक, स्त्री-विमर्श, सस्पेंस-थ्रिलर
......

राहुल उस औरत की काली आँखों से डरकर तुरन्त दूर खड़ा हो गया और चिल्लाता हुआ पैलेस के अंदर घुस गया । 
वो पैलेस में बेतहाशा भागे जा रहा था , अपने केबिन मे आकर वो अपनी टेबल के नीचे छुप गया और थर थर काँपने लगा । 

अचानक उसे लगने लगा कि उसके टेबल की जमीन हल्की और नाजुक होती जा रही है देखते देखते वो हिस्सा गायब हो गया और राहुल नीचे गिर पड़ा , 

" आह.....माँ" राहुल कराहता हुआ खड़ा हुआ और ऊपर देखने लगा , ऊपर की तरफ़ गायब हुए हिस्से से उसे उसकी टेबल का निचला हिस्सा साफ साफ दिख रहा था ,वहाँ से सीढ़ियाँ नीचे की तरफ़ आतीं थीं जिनपे ढुलक कर वो नीचे गिर पड़ा था।

उसने अपने चारों तरफ देखा तो उसकी आँखें फ़टी रह गईं । वो एक आलीशान कमरे में था जो बनावट में पैलेस के ऊपरी मंजिल के कमरों की ही तरह था लेकिन इसकी भव्यता बिल्कुल अलग थी ।
कौड़ी की सफेद पुताई से चमचमाती दीवारें उनपे अद्भुत कलाकारी , राहुल ने हाथ लगा कर देखा तो ये भी ठीक उसी तरह की थी जो उसे अंधेरे गलियारे में मिली थीं ।
बीच कमरे में रखी विशाल आरामदायक शैय्या , ऊपर छत पे लगा हुआ सुंदर जगमगाता हुआ झूमर , चारों तरफ सुंदर सजावट , इत्र की भीनी खुशबू,चारों तऱफ एंटिक शो पीस, पर्दे।
राहुल को तभी उस कमरे का दरवाजा खुलने की आवाज़ आई राहुल झट से एक पर्दे के पीछे छिप गया।
एक लड़की ने आकर भीतर से दरवाजा बंद कर लिया और उस विशाल पलंग के सहारे ज़मीन पर बैठ गई।

राहुल ने उसका चेहरा देखा तो उसका मुँह खुला ही रह गया। उसके सिर पे वही बेंदा था जो दयान ने शापित किया था।
वो लड़की दोनो हाथों से अपना चेहरा ढाँके सिसक रही थी।

" क्या पाप किया है मैंने देवता, क्यों मेरी ये परीक्षा, क्यों मेरे बलिदान और मेरे त्याग को अनिवार्य समझा जाता है, तुम तो कहते हो कोई तुम्हारे साथ अच्छा करे तुम उसके साथ अच्छा करो , फिर मुझे देवी कहकर मेरे साथ अन्याय क्यों , 
क्यों मुझे मेरे त्याग का प्रतिफल प्राप्त नहीं होगा । क्या एक बड़े घराने में जन्म लेने की , एक बड़े घराने में बहु बनकर आने की यही सजा है कि हर बार मेरे उत्सर्ग के लिये यही शब्द मिलते हैं मुझे कि मेरे बलिदानों का ऋण कभी चुकाया नहीं जा सकता। 
क्यों दैवव ये अन्याय क्यों , पर मैं हार नहीं मानूँगी दैव, शायद कभी भविष्य में मेरे उत्सर्गो का मोल लगाया जाये , मुझे देवी से अधिक एक मनुष्य समझा जाए।"

राहुल उसकी बातों से भावुक हो रहा था। जैसे ही उसकी आँखों से एक आँसू गिरा बो लड़की गायब हो गई।

राहुल उसे चारों तरफ़ ढूढने लगा , वो कमरे से बाहर निकलकर उसे ढूढ़ने लगा, हर कमरे का वही नज़ारा था , हर कमरे में उसे हर उम्र की रोती हुई कोई लड़की , बच्ची, स्त्री, प्रौढा या वृद्धा मिल जाती ।

इनमे उसे वो स्त्रियां भी मिलीं जो उसने तेजाब से गलते हुए और पेड़ से बंधकर जलते हुए देखीं थी। 

अब राहुल ने भावुक होने की जगह दिमाग से काम लेना शुरू किया।

अधिकतर स्त्रियों की वेशभूषा उस लड़की जैसी थी, कुछ की बिल्कुल नए जमाने जैसी ,  कुछ की बहुत पुरानी, सबकी अपनी अपनी अलग कहानी थी। राहुल समझ रहा था ये सब अलग अलग समय से हैं ।

कोई बेड़ियों से बंधी देवी थी, तो कोई खूंटे से बंधी जानवर, किसी को परित्यक्ता का नाम मिला था ,तो किसी को नोच खाया गया था , किसी को समाज के उसूलों ने जलाया था, तो किसी का अनरवत शोषण हो रहा था ,चाहे वो किसी भी समय की हो ,  सब अपनी कहानी कह रहीं थी। 

वक्त ने सिर्फ तस्वीर की फ्रेम बदल दी थी, चित्र में स्त्री की दशा एक ही सी थी।

जिसकी कहानी पे राहुल अत्यधिक भावुक हो कर रोने लगता या उनके साथ हुए अन्याय को देखकर उसके गुस्से का लावा आँसू बनकर बहता तो उसे उस कहानी को घटित होते हुए भी देखना पड़ रहा था, जो उसके लिये कहीं ज्यादा कष्टकारी था। क्योंकि वो कहीं किसी की मदद नहीं कर पा रहा था।

पैलेस की नीचे तीनों मंजिल के सभी कमरों में यही हालत थी। चौथी मंजिल तक आकर भी राहुल को वो लड़की दुबारा नहीं मिली। 

नीचे की तरफ़ आखिरी चौथी मंजिल में कमरे नहीं थे , वो पूरा बड़ा सा हॉल था जिसके बीच मे जलाशय था जिसका पानी बेहद काला और बदबूदार था , अपने मुँह पर हाथ रखे ऊपर से सीढ़ियाँ उतरता हुआ राहुल उस हॉल में कदम रखने ही वाला था कि उसे महसूस हुआ कि कोई उसके दिमाग को अपनी तरफ़ खींच रहा है, उसके भाव बिना रुके एक ही तरफ बहे जा रहे थे ...... स्नेहा ।

आखिरकार उससे वहाँ खड़ा न  रहा गया और वो वापस भागता हुआ ऊपर आया , सभी स्त्रियां , सब बच्चियां , सब वृद्धा, अपने अपने कमरों के बाहर खड़ीं उसे भागता देख रहीं थी और शैतानी हँसी हँस रहीं थीं जिसमें उनके रुदन जैसी ही पीडा, विवशता, क्रोध था।

इतनी तेज़ आवाजों के चारों तरफ़ से आने के कारण , उसके कानों में दर्द होने लगा और ख़ून भी बहने लगा। 
पर वो बिना रुके उस कमरे तक गया , जहां वो ऊपर से गिरा था। 

उन्हीं सीढ़ियों से वो वापस ऊपर अपने केबिन की तऱफ जाने लगा तभी उस कमरे में उसे एक आवाज़ सुनाई दी।

" सुनो वापस तो आओगे न, दो नई कहानी और सुनने , एक जिसका जबरन ग़लत इंसान से विवाह हुआ, और एक जिसका गोद भराई में  बेइज्जत करके  परित्याग कर दिया गया " 
उस आवाज में क्रोध , घृणा, बदले , विनाश की इच्छा बहुत अच्छे से ज़ाहिर थी।
राहुल ने पलट कर नीचे देखना चाहा लेकिन उसके सामने एक ही तस्वीर थी स्नेहा की जिससे वो स्वयं के भावों को मुक्त न कर सका और सीढ़ियाँ चढ़कर अपने केबिन में आ गया। 

टेबल के बाहर आते ही उसने पलट के पीछे देखा तो टेबल के नीचे की जमीन अब बन्द थी।

वो लपककर घर की तरफ़ दौड़ा पर केबिन के बाहर आते ही उसे लगा कोई दौड़कर ऊपर दूसरी मंजिल पर जा रहा था ।

राहुल का दिल धक्क से रह गया । हे भगवान और क्या बाकी है अब , आज की रात की कोई सुबह है भी या नहीं। 

2 पल सोचने के बाद राहुल भी ऊपर चला गया उसी अंधेरे में उस साये का पीछा करता हुआ।

वो कोई लड़की थी जो राहुल के कमरे की तरफ़ जा रही थी जिस कमरे में वो रुका करता था जब पैलेस में ही रहना होता था उसे।

राहुल भी अपने डर को काबू करता हुआ उसके पीछे कमरे में गया। 
वो लड़की कमरे में जाते ही फ़ूट फ़ूट कर रोने लगी।

राहुल ने जाते ही कमरे की लाइट का स्विच ऑन कर दिया , 

" स्नेहा...." राहुल बोला और स्नेहा पलट कर रोते हुए उसके गले लग गई।

" कित्ती देर से ढूढ रही हूँ आपको  ,  कहाँ थे आप,  पता है कितना डर गई थी मैं , क्यों आये आप यहाँ " स्नेहा रोये जा रही थी ।

" जरूरी काम था " राहुल स्नेहा को खुद से दूर करते हुए बोला।

" ये इतना सूजी क्यों है आपकी आँखे, आप रोये थे क्या  , क्या हुआ है राहुल , बताइए न" स्नेहा उसके चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए बोली।

" नहीं वो केबिन में काम कर रहा था  न इसलिए , अभी सो जाता हूँ घर जाके अभी सही हो जाऊँगा" कहकर राहुल मुड़ गया।

स्नेहा उसके सामने आकर बोली, " झूठ क्यों बोलते हो हमेशा मुझसे " 

" कहा न काम मे बिजी था , अच्छा एक बात बताओ , तुमने मुझे अभी याद किया क्या , कुछ देर पहले "

" याद ?  मैं आपके घर से आने के बाद पागलों की तरह आपको ढूढ़ रही हूँ , रावत अंकल  और दयान भी रास्ते मे बगीचे में सब जगह आपको ढूढ़ रहे हैं , आप कह रहे हो कि मैं केबिन में काम कर रहा था, अभी अभी आ रही  हूँ आपके केबिन से ,आप वहाँ थे ही नहीं , कहीं भी नहीं थे , आख़िर में हार कर मैं यहाँ आकर मैं रोने लगी। आप पूछ रहे है याद किया क्या " 

" अच्छा , अंकल को और दयान को फोन करके बोल दो , मैं मिल गया हूँ और ठीक हूँ , और माँ को भी , वो चिंता कर रही होंगी "

" माँ को झूठ बोल दिया था कि तुम ठीक हो वरना वो परेशान होतीं  " 

" तुम यहीं रुको सबके पास,मैं घर जा रहा हूँ , दयान से जरुरी बातें करनी है मुझे , कल मिलता हूँ  तुम अपना ध्यान रखना, ठीक है "

" ठीक है , रावत अंकल को मैं फोन करके बुला लेती हूँ वरना आप फिर रास्ता भटक जाएंगे , पर आप पहले घर जाकर मुझे मेसेज करना कि आप पहुँच गए हो " 

" हम्म , अब जाओ अपने  कमरे में " कहकर राहुल बाहर निकल गया । स्नेहा उसे पैलेस के बाहर तक छोड़ने आई।

राहुल ने एक बार पलट कर मुस्कुरा कर उसे देखा और रावत जी के साथ चला गया।

घर पहुंच कर राहुल ने देखा माँ जाग रहीं थीं , दयान उसके कमरे में  उसका इंतजार कर रहा था।

माँ को सुलाकर राहुल ने दयान और रावत जी के साथ बैठकर सारी बातें बताईं ।

दयान - " क्या तुम पूरी तरह आश्वस्त हो कि वो बेंदा वही था जिसे मैंने शापित किया था "

राहुल - " हाँ , मैं इसीलिए अभी सब कुछ बता रहा हूँ क्योंकि मैं नही चाहता कोई भी चीज सुबह तक मैं भूल जाऊँ , क्योंकि मैंने कुछ घण्टे तक बहुत गहरी मानसिक वेदना झेली है" 

दयान - " अब मुझे कुछ कुछ समझ आ रहा है, वो बेंदा मुझे उसी बाबा के पास से मिला था जिसके वश में मेरी माई की आत्मा है, जरूर उस बाबा का पैलेस की आत्माओ से कुछ न कुछ कनेक्शन है ही" 

रावत जी - "लेकिन इतनी सारी चीज़ों को देखने के , झेलने के बाद भी तुम वहाँ से वापस कैसे आ पाए, जहाँ तक मैं तुम्हे बचपन से जानता हूँ , तुम्हारा मनोबल इतना शक्तिशाली कभी नहीं रहा, और इतने सब के बाद भी तुम हमे सब कुछ बता पा रहे हो "

दयान - " ये तो साफ है कि तुम सच जानते हो इसीलिए उन्होंने तुम्हे ये सब करके डराने की कोशिश की है , लेकिन उनके मायाजाल से तुम लड़ कैसे सके और वापिस भी आ गए ये सच मे आश्चर्य है, क्या तुमने कोई विद्या सिद्ध की है, कोई हवन कोई पूजा जिसमे तुमने अंतिम आहूति दी हो , बताओ " 


राहुल - " नहीं , मैंने ऐसा कुछ भी नही किया है, बस उस परिस्थिति में मुझे माँ  और दददू के आशीर्वाद ने ही सहारा दिया , और जब मैं नीचे की चौथी मंजिल में जा रहा था तब मुझे लगा कि स्नेहा मुझे बुला रही है और सब कुछ छोड़कर मैं वापस आ गया"

रावत जी - " ये दददू कौन हैं राहुल"

राहुल - " वही जो पहले हमारे मोहल्ले के मंदिर में आया करते थे , मैं उनके साथ खेला करता था, वो मुझे अक्कू कहते थे , अभी इन दिनों भी वो मेरा मार्गदर्शन कर रहे हैं , बस मैं उन्हें पहचान नहीं पाया था " 

दयान - " क्या तुम स्नेहा से प्रेम करते हो ?" 

राहुल - "शायद हाँ "

दयान - " क्या तुम दोनों के बीच कभी ऊर्जा चक्र का निर्माण हुआ है "

राहुल - " नहीं , लेकिन दददू ने 2 दिन पहले मेरे साथ ऊर्जा चक्र का निर्माण किया था , और मुझे उस जंगल में याद आया कि बचपन मे भी दददू मुझे ऊर्जा चक्र का निर्माण करना सिखाते थे "

दयान - " शायद अनजाने ही तुमने स्नेहा के साथ ऊर्जा चक्र का निर्माण किया है , जो कि उन्हीं लोगों के साथ संभव है जिनकी आपके साथ आत्मीयता हो और उनके मन पवित्र हों, तभी तुम वापस आ सके हो वरना तुम कभी उस मायाजाल से वापस नहीं आ सकते थे"

राहुल - " जो भी हो , लेकिन मैंने काफी कुछ देखा है , मैं इन सबकी सत्यता परखना चाहता हूँ क्योंकि जाते जाते उस लड़की ने मुझे दुबारा आने को कहा था और शायद अप्रत्यक्ष रूप से कल्पना और माँ की तरफ इशारा भी किया था। "

दयान - "जरूर , अभी तुम आराम करो, कल जब सब लोग संगीत और मेंहदी में व्यस्त होंगें , तब हम तुम्हारे देखे हर दृश्य की सत्यता की परख करेंगें , तुम्हारी माई को हमने सब कुछ तुम्हारे जाने के बाद ही समझा दिया था , वो वहाँ नहीं जाएंगी अब और कल्पना को कुछ पता नहीं है तो शादी तक शायद वो सुरक्षित ही है"

सभी अपने अपने कमरों में जाकर सो गए। दयान कुछ जरूरी चीजों के लिए अपने पुराने घर की तरफ़ निकल गया।

सुबह माँ की प्यारी आवाज के साथ राहुल की नींद खुली । माँ से आशीर्वाद लेकर राहुल ने अपने दिन की शुरुआत की।
कल रात के दृश्य उसकी आँखों मे अब भी तैर रहे थे 
वो और रावत जी नाश्ते की टेबल पे दयान का इंतजार कर रहे थे  तभी राहुल को याद आया कि उसने कल स्नेहा को बताया ही नहीं कि वो घर सुरक्षित आ गया है ।
उसने मेसेज किया लेकिन कोई जवाब नहीं आया तो उसने कॉल की लेकिन उसका भी कोई जवाब नहीं।

उसने रावत जी से कहा - " मैं जरा पैलेस होकर आता हूँ , स्नेहा कॉल का जवाब नही दे रही ,देख आऊँ जरा वहाँ सब ठीक तो है " 

रावत जी - " अभी मेरी नव्यम से बात हुई थी , वहाँ कि सब तैयारियां अच्छी चल रहीं हैं , और स्नेहा को मैंने कल रात ही बता दिया था कि तुम अच्छे से घर आ गए हो " 

राहुल - " अच्छा हुआ उसे कुछ पता नहीं है , वरना मुझे कल पैलेस से अकेले आने ही न देती , और मैं खुद भी उसे वहाँ नहीं छोड़ता फिर कल्पना को लेकर काफ़ी दिक्कत खड़ी हो जाती , वो कल्पना के साथ रहेगी तो कल्पना की फिक्र नही रहेगी "

"क्या तुम्हें लगता है , उसे कुछ नही पता " बाहर से आते हुए दयान ने उससे पूछा ।

" क्यों , आप लोगों ने उसे कुछ बताया क्या " हड़बड़ाते हुए राहुल कुर्सी से खड़ा हो गया।

" नहीं , पर शायद उसने हमारी बातें सुनी हैं , मुझे तो लगता है कि उसे हमसे भी ज्यादा कुछ पता है, तुम्हे पैलेस में न पाकर
मैं और रावत जी तुम्हें पूरे रास्ते मे ढूढ़ने निकल पड़े, लेकिन वो पैलेस में ही ढूढ़ती रही  , जैसे उसे पूरा भरोसा हो कि तुम वहीं हो " दयान ने कहा।

राहुल - " पता नहीं ,उसने ये भी कहा था कि मैं रावत अंकल के साथ ही घर जाऊँ वरना फिर से रास्ता भटक जाऊँगा, उसे कैसे पता चला कि मैं रास्ता भटका था ,जबकि मैं तो उसे वहीं पैलेस में मिला था " 

" अगर वो सब जानती है तो खुद भी बहुत बड़े खतरे में है , तुम्हे उसे कल वहाँ छोड़ कर नहीं आना चाहिए था राहुल " 
दयान ने कहा पर उसकी बात पूरी होने से पहले ही राहुल दौड़ता हुआ घर से बाहर निकल गया था वापस पैलेस की ओर .....

क्रमशः ....