जल पिशाच (भाग 6)
- आस्था जैन "अन्तस्"

" यहाँ कुछ नहीं मिलेगा पिया , हम बहुत समय बर्बाद कर चुके हैं " खन्ना ने कहा।
" पर वो बर्फ़ का आदमी इसी जगह से निकला था डैडू"
पिया ने कहा ।
खन्ना ,पिया , संवर और विभु काफी देर से उस जगह थे , खन्ना ने अपनी टीम के जरिये उस दलदल जैसी जगह में से एक सडी गली लाश बरामद कर ली थी जो शायद अम्बर की थी , असल मे वो दलदल जैसी दिखने वाली जगह कोई खाली गड्ढे जैसी थी जिसे कीचड़ से लबालब भर दिया गया हो .... लगभग 5 फुट तक उस गड्ढे का कीचड़ निकाला जा चुका था और और आगे बस 3 या फुट गहराई का ही कीचड़ बाकी था , लाश मिल चुकी थी लेकिन जिसे पिया ढूँढ़ रही थी वो बर्फ़ का आदमी उन्हें नजर नहीं आ रहा था , खन्ना के सब्र का बाँध टूटता जा रहा था , आख़िर गड्ढा पूरा साफ हो गया , ठोस जमीन खोदना बेफकूफ़ी थी ।
पिया और विभु एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे .. ... विभु ने आगे बढ़कर उस गड्ढे में देखा लगभग 8  फुट गहरेऔर 4 फुट चौड़े उस गड्ढे में कहीं कोई जगह ऐसी नही थी जिसके जरिये किसी दूसरी दुनिया मे पहुँचा जा सके ... वो उदास सा वापस पिया के पास आ कर बोला " हो सकता है, वो यहाँ से चला गया हो "
पिया गुस्से में पैर पटकती हुई वहाँ से चली गई।
" अब हमें वासु और राधे को ढूंढ़ने की चिंता करनी चाहिए, अम्बर और उस कार हादसे में हुई मौत की वजह तो हम जान ही चुके हैं " संवर ने खन्ना जी से कहा।
" चिंता तो इसकी भी है कि ये लाशें रोज क्यों मिल रही हैं और इन्हें इस फार्महाउस में कैसे अजीब तरीके से लाया जाता है , कौन लाता है, जिस दिन ये बर्फ़ का आदमी निकला था उसी दिन से ये सब हो रहा है , हो न हो वासु और राधे भी इन्ही सब मे फंसे होंगें " विभु ने कहा तो अलग अलग घटनाओं की कड़ियाँ संवर और खन्ना के दिमाग मे एक सिरे से जुड़ने लगीं।
....
" तुम्हे नही लगता कि कुछ अजीब है ....." पिया ने धीमी आवाज में मोबाइल से किसी से बात करते हुए कहा।
"अजीब ...... हाँ .. अ .. मेरा मतलब अजीब तो है ही ... पर शायद तुम्हें देर से महसूस हुआ है ..." विभु ने मुस्कुराते हुए उधर से जवाब दिया ।
" मतलब तुम्हें भी ...."
" हम्म , लेकिन तुमसे पहले ...."
" तो बताया क्यों नहीं, डैडू अकेले मेरी बात पे भरोसा नही करेंगे "
" हर बात पे तो गन तान देती हो, बताता कैसे .."
" आय एम सॉरी, पर मुझे बताओ तुम्हारे साथ वही सब अजीब हो रहा है क्या ,जो अभी अभी मेरे साथ हुआ है, ओह गॉड मुझे तो पानी पीने से पहले भी सौ बार सोचना पड़ेगा अब ..."
" क्या..... ,किस बारे में बात कर रही हो , क्या हुआ तुम्हारे साथ "
" वही जो तुम्हारे साथ हो रहा है इडियट , अभी तुमने ही तो कहा "
" साफ साफ बताओ क्या हुआ ..."
" जब से उस जगह से वापस आई हूँ, सब अजीब हो रहा है , लगता है जैसे ये बॉडी मेरी है ही नहीं , पता नही क्या है पर अजीब है, तुम्हे पता है जब मैं वाश बेसिन में अपना मुँह धो रही थी तो मुझे महसूस हुआ कि सामने मिरर में मेरा चेहरा था ही नहीं .... मुझे महसूस हो रहा था मेरा चेहरा पानी सोख रहा है, मैं पानी पीने गई तो तो मुझे मेरे गले मे पानी महसूस ही नही हुआ ... , और ........और अभी मुझे बहुत बुरा सपना आया .... "
" ओह, मैं तो आते ही सो गया था , कल रात का जागा था न, और नहाया भी 2 ही दिन पहले हूँ तो मुझे अभी ऐसा कुछ फील नही हुआ पिया "
" पर तुमने अभी कहा कि..."
" वो मुझे कुछ और समझ आया, तुम घबराओ मत , हम खन्ना सर से बात करते हैं "
" ओह गॉड, उन्हें वो बर्फ़ का आदमी नही मिला वहाँ , याब उन्हें मेरी किसी बात पे यकीन क्यों होगा, मुझे लगा ये सब शायद उस मुर्दाघर में हुए अजीब हुए हादसे की वजह से हो रहा है और तुम भी वहाँ मेरे साथ थे इसलिए मैंने तुम्हें कॉल किया कि शायद तुम्हे भी कुछ अजीब फील हुआ हो लेकिन ये सब शायद मेरे ही साथ हो रहा है ..."
" इट्स अमेज़िंग ...... मेरे साथ भी वही हो रहा है पिया, मेरा हाथ वाश बेसिन में है , मेरा हाथ नल के पानी को सोख रहा है , पूरी तरह ..... ओह गॉड, मेरा चेहरा भी मिरर में इनविसिबल है,..... हो क्या रहा है ये ...." उधर से विभु की काँपती आवाज़ आ रही थी।
" पानी पीकर देखो विभु , जल्दी ..."
" यस , मैं फील नही कर पा रहा , मेरे गले मे पानी जा रहा था नही "
" हमारे साथ कुछ गलत है .... क्या होगा जब ये मुसीबत बाकी सबके सिर पर सवार होगी, कुछ बहुत गलत होने वाला है इस शहर में ...."
" शहर का पता नही, मुझे मेरे दोस्तो की चिंता हो रही है .... पता नहीं वो कहाँ होंगें , कहीं उनके साथ भी ऐसा कुछ न हुआ ...... हो .."
" हम उन्हें ढूँढ़ लेंगें विभु , ... हलो .... हलो ... विभु ... आर यू  देयर .... हलो ..... क्या हुआ .... हलो ..."
" मैं .... मैं अपने दोस्तो के पास हूँ , बाद में बात करता हूँ " उधर से विभु की सीधी सपाट आवाज आई और पिया ने मजाक समझ कर अपनी आँखों की पुतलियाँ ऊपर घुमाते हुए कॉल कट कर दिया और  धीरे से फुसफुसाई " रियली एन इडियट"
......
विभु की साँसे उसके फेफड़ो में से बाहर आना भूल चुकी थीं ,  इतने दिनों से जिन दोस्तो को देखने के लिए भी वो तड़प रहा था वो आज उसके सामने थे, काश वो संवर को अपने साथ ले आता तो वो भी कितना खुश होता ... लेकिन वो यहाँ कैसे आया.. विभु की नजरें अब आस पास दौड़ रही थीं, धूमिल भूरे रंगों की मानव आकृतियाँ उसने अपने आस पास देखीं , जो उस कमरे में अपने अपने कामों में तत्परता से संलग्न थीं ....कमरा किसी बड़े हॉल जैसा था जो दो हिस्सों में बंटा हुआ था , एक तरफ बड़े बड़े छत को छूते हुए पिंजरे थे जो शायद प्लास्टिक के थे , पिंजरे के अंदर कई मानव शरीर रखे थे उन्हीं में से एक में वासु और राधे एकसाथ बन्द थे , दोनों के शरीर पिंजरे में बिना किसी सहारे के झूल रहे थे , दोनो शायद बेहोश थे या फिर.......,
विभु उनके पिंजरे के पास ही खड़ा था उसने हल्के से उन दोनों को आवाज़ दी तो उनकी आँखें खुल गईं , चेहरे पे मुस्कुराहट फैल गई पर अगले ही पल खौफ़ से दोनों के शरीर कांपने लगे उनकी नज़र विभु के पीछे हॉल के दूसरे हिस्से पर टिकी हुई थी , विभु ने भी अपने पीछे मुड़कर देखा तो उसके पैर डर की वजह से इतनी जोर से कांपने लगे कि उसे लगा कि वो किसी भी पल फ़र्श पर गिर पड़ेगा...
विभु के पीछे हॉल के दूसरे हिस्से का जो नजारा था उसकी कल्पना शायद उसने अपने पूरे जीवन मे भी नहीं की थी..., किसी हॉरर सीरीज ,मूवी या किताब ने उसे इतना भयानक नजारा नहीं दिखाया था .... और अगले ही पल उसके पैरों ने जवाब दे दिया और चेतनाशून्य होकर वो फ़र्श पर गिर पड़ा ।
.....
" संवर ....., संवर ......, विभु, दरवाजा खोलो यार ......संवर ...." बाहर से आवाजें आ रही थी जिनकी वजह से संवर की नींद टूट गई और वो आँखे मलता हुआ बाहर आ गया पर दरवाजा खोलते ही उसकी आधी बची नींद भी पूरी उड़ गई ।
"तुम लोग ..... क्या हुआ " संवर ने पूछा।
" वही तो हमें पूछना है, क्या हुआ ... कल रात से गायब हो तुम दोनों, क्या हुआ कुछ पता चला वासु और राधे का " परी ने अंदर आते हुए कहा, उसके साथ नेहा और संयोगी भी थीं।
" नहीं वो ..... , वो कुछ खास नही पता चल सका , खन्ना सर देख रहे हैं केस को, लेकिन जो सब हो रहा है उसके चलते लगता है कि किसी पंडित पुजारी या तान्त्रिक की मदद लेनी पड़ेगी ... सब कुछ बहुत अजीब है " संवर ने कमरे में पड़ी एक कुर्सी पर बैठ कर अपनी आँखें मलते हुए कहा।
"क्या अजीब है .... तुम और विभु ठीक तो हो न " नेहा ने पूछा।
"हाँ हम दोनों ठीक हैं, हम दोनों रात भर के जागे थे सुबह आते ही सो गए थे .... मैं शाम को खुद तुम लोगों से मिलने वाला था , विभु और पिया ने कल रात कुछ अजीब देखा था  " संवर ने कहा और कल रात की सारी घटना उन तीनो को बता दी।
" ये भूत प्रेत का चक्कर लगता है यार " परी ने डरते हुए पास बैठी नेहा का हाथ कसकर पकड़ रखा था।
" क्या यार कुछ भी ... , हो सकता है क्रिमिनल सबको बेवकूफ बनाने के लिए ये सब कर रहा हो , और विभु झूठ तो नही बोलेगा लेकिन फ़र्श पर फैले पानी मे कोई कैसे गायब हो सकता है .... ये तो बहुत अजीब है " संयोगी ने कहा तो परी को कुछ दिलासा मिली और उसकी घबराहट कम हुई।
" हम न विभु भाई को आज सती माई के मन्दिर में पूजा करवाने ले चलते है , ये ठीक रहेगा "नेहा ने सुझाव दिया।
" हाँ और शायद इससे वासु और राधे भी मिल जाएं" परी ने संवर के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा , सब जानते थे कि वासु और राधे के गायब होने से संवर कितना परेशान था और ऊपर से इलाके का माहौल इतने दिनों से खौफ़नाक बना हुआ था ।
" मैं उसे जगा देता हूँ, फिर हम सब साथ चलेंगे, हर बार की तरह .... " संवर ने कहा और आँसू उसकी आँखों में उतरने लगे, वो सिर झुका कर विभु के कमरे की तरफ चला गया।
" हम जबसे यहाँ आये हैं , हम सातों लोगो ने साथ मे ही पूजा की है, ये पहली बार होगा जब वासु और विभु साथ नही होंगे " परी ने कहा।
तीनों लड़कियां एक दूसरे का उतरा हुआ चेहरा देख रही थीं की तभी हड़बड़ाते हुए संवर वापस आया .... " विभु अंदर नही है, उसका फ़ोन भी नही उठा रहा वो ...." काँपती आवाज़ और काँपते हाथो से संवर लगातार कॉल किये जा रहा था, तीनों ने घबरा कर पूरे घर मे छान मारा पर विभु नही मिला।
" हलो, जी मैं संवर , जी सर,.... वो विभु मेरे साथ आया था सर , लेकिन अचानक गायब हो गया सर, वो तो सो रहा था .... पता नहीं कहाँ गया ....... क्या .... नही सर  , ऐसा कुछ भी नही है , .............. ठीक है मैं आ रहा हूँ सर " संवर ने कॉल कट की और फटाफट जूते पहन के घर से बाहर निकलने लगा ।
" क्या हुआ किससे बात कर रहे थे , कहाँ है विभु " संयोगी ने उसे रोकते हुए पूछा ।
" पता नहीं, खन्ना सर की बेटी एस आई पिया भी गायब है, उसके फ़ोन में लास्ट कॉल विभु की थी, पर अभी वो गायब है .... , पता नहीं क्या हो रहा है .... उन्होंने मुझे बुलाया है मैं जा रहा हूँ " संवर ने हाँफते हुए कहा।
" रुको, हम तीनों भी साथ जाएंगी , तुम अकेले नही जाओगे " संयोगी ने नेहा और परी की तरफ देखते हुए कहा और उन दोनों ने भी हाँ में सिर हिला दिया।
.....
दुनिया की कई सुंदर से सुंदर जगह और पहाड़ियों को घूम चुकी थी पिया लेकिन इतना सुंदर और नजारा उसने कभी नही देखा था , कहीं भी नहीं देखा था ....... एक पल को तो उसे ऐसा लगा कि वो किसी के सुंदर से सपने में बिना इजाजत आ गई है .... क्योंकि इतना सुंदर सपना तो उसने भी कभी नहीं देखा था ।
उसके आस पास जो वो देख रही थी उसे भरोसा नही हो रहा था , विशाल हिम खण्डों के बीच खड़ी पिया मानो स्वर्ग का अनुभव कर रही थी..., उसके आगे की तरफ़ एक विशाल हिम पर्वत था जिसकी ऊँचाई पिया की दृष्टि की परिधि से भी अधिक थी, मानो उस पर्वत की चोटी अनन्त अंतरिक्ष मे जाकर ही खत्म होती हो, उसकी दोनो ओर असंख्य छोटे बड़े हिमपर्वतों की श्रेणियां उसकी दो भुजाओं के समान प्रतीत हो रही थीं जो विपरीत दिशाओं में फैलकर वापस मिल जाती थीं , पिया के पीछे की ओर उन दोनों पर्वत श्रेणियों का मिलाप हो रहा था और उस जगह एक विशाल हिमनदी प्रवाहित हो रही थी ..... जो सबसे विशाल हिमपर्वत की दिशा में आगे बढ़ी चली आ रही थी और उसी पर्वत में विलीन हो रही थी ।
पिया खुद उस हिमनदी में तैरते एक हिमखंड पर बैठी हुई और चारों तरफ़ देख रही थी .... सिवाय बर्फ़ के विशाल पर्वतों , नदी और छोटे बड़े हिमखण्डों के अलावा कुछ और दिखता ही नहीं था , पिया ने अपने ऊपर देखा तो आसमान में भी उसे बर्फ़ के बादल तैरते हुए दिख रहे थे जिन्हें वो अपना हाथ जरा सा ऊपर उठाकर स्पर्श कर सकती थी ।
"यहाँ इतनी बर्फ़ है फिर भी मुझे ठंड क्यों नहीं लग रही ..., कौन सी जगह है ये .., मैं यहाँ कैसे आई " कई सवाल पिया के मन मे एक एक करके आ रहे थे पर उन सवालों के जवाब ढूँढने की उसे फुर्सत ही नही थी ,  वो अपने आस पास की हर चीज को देख कर मंत्रमुग्ध हो रही थी, चीजों को स्कैन करना उसकी काबिलियत थी लेकिन यहाँ तो जैसे हर चीज़ पिया को ही स्कैन कर रही थी .... मानो सम्पूर्ण वातावरण अपलक पिया को ही निहार रहा हो ...
जिस हिमखंड पर पिया बैठी थी वो बहुत विशाल था , उस पर 10 और लोग आराम से बैठ सकते थे , असमतल सतह के उस बर्फ़ के बड़े से पत्थर पर पिया का ध्यान गया तो उसने देखा कि उस पत्थर की सतह एक जगह समतल थी और उस जगह कुछ लिखा हुआ था , पिया ने उस जगह पर बने निशानों को समझने की कोशिश की लेकिन वो लिपि उसकी समझ नहीं आई ......, वो हिमखंड हिमनदी के साथ साथ धीरे धीरे विशाल हिमपर्वत की ओर बढ़ रहा था , पिया ने देखा वो उस विशाल हिम पर्वत के नजदीक आती जा रही थी और जी पर्वत पर हिमनदी ऊपर की ओर चढ़ रही थी ..... पिया ने पलट कर देखा तो दूसरी ओर की हिमनदी किसी झरने की तरह नीचे आ रही थी और इस तरफ की हिमनदी उस विशाल हिमपर्वत पर ऊपर की ओर जा रही थी..
" तो क्या मैं भी इस हिमखंड के साथ इस पर्वत पर ऊपर चढ़ती चली जाऊँगी ..." इस विचार से ही उसका मस्तिष्क थोड़ी देर के लिए सुन्न हो गया क्योंकि उस पर्वत की ऊँचाई शायद अनन्त थी ....., बर्फ़ के कई छोटे बड़े हिम खण्डों को साथ लेकर हिमनदी अब उस विशाल पर्वत पर चढ़ने लगी थी, पिया आँखे फाड़े अपने आगे तैर रहे वर्फ़ के टुकड़ों को देख रही थी जो अब उसके ऊपर तैर रहे थे लेकिन गिर नही रहे थे....... , अचानक वो सुंदर जगह उसे डरा और कँपा रही थी .... , " मैं तो बस विभु से बात कर रही थी, उसके बाद मुझे बस एक ही ख़्याल आया कि ये जलेश्वर कौन है कहाँ मिलेगा इसे कैसे ढूँढू ..... और मैं यहाँ आ गई ..... इसका मतलब क्या है आख़िर " अब पिया की मंत्रमुग्धता समाप्त हो गई और मस्तिष्क का हर हिस्सा पूरी तरह क्रियाशील हो गया .... उसे अब ये जगह अपनी मौत नजर आ रही थी ..... " क्या इस विशाल हिम पर्वत का सफ़र कभी खत्म भी होगा या नहीं इसका कोई छोर तो दिखता ही नहीं , हे भगवान कहाँ फँस गई मैं ...." पिया ने पीछे मुड़कर देखा तो वो उस हिमखंड के साथ बहुत ऊपर आ चुकी थी और पीछे कई हिमखंड नदी के साथ तैरते हुए उसके पीछे आ रहे थे, बर्फ़ के बादलों से टकराते हुए वे हिमखंड आगे बढ़ रहे थे तभी एक बर्फ़ के बादल में पिया ने कुछ देखा ..... कुछ अजीब लेकिन तब तक वो पीछे छूट चुका था , नदी की ऊपर चढ़ने की रफ़्तार अब बढ़ने लगी थी और पिया की धड़कन की रफ़्तार तेजी से कम होती जा रही थी ।
.....
" सर ....." संवर हाँफते हुए थाने में आया जहां खन्ना उसका इंतजार कर रहा था।
" आज कोई लाश नहीं मिली , और कब्रिस्तान से गायब हुई लाशों की पहचान हो चुकी है , जिनकी वो लाशें थीं उनमे बहुत सी समानताएं हैं .... ,अगले दो दिन तक.." खन्ना बोल रहे थे कि संवर ने उन्हें टोक दिया।
" सर, पिया और विभु गायब हैं ...."
" जानता हूँ , पिया खुद अपना ख़्याल रख सकती है, और तुम्हारे दोस्त के फ़ोन की लोकेशन मिल गई है, मेरी टीम गई है उसे लेने ,ये तीनो यहाँ?"
" सर, हम विभु को लेकर बहुत परेशान थे इसलिए साथ आये थे .." संयोगी ने आगे बढ़कर कहा।
" हम्म, अच्छा किया , तुम चारों मेरे साथ आओ अंदर केबिन में ..." खन्ना ने कहा और एक केबिन की तरफ चल दिये और बाकी चारों ने भी उनका अनुसरण किया।
खन्ना ने उन चारों को देखा और कहना शुरू किया " देखो ये केस लगता तो बहुत भूतिया है लेकिन मैं किसी पुजारी या पंडित या तान्त्रिक को नही बुलवा सकता ये कानूनी कार्यवाही में नही आता, और न ही तुम लोगो को ऐसी कोई सलाह दूँगा , लेकिन ऐसे अचानक लाशों का मिलना बन्द हो जाना अजीब है, शायद किसी बड़े खतरे की शुरुआत .... , इतने दिनों से लाशें मिल रही थीं तो इलाके में हर रात अजीब भूतिया घटनाएं हो रही थीं , आज कोई लाश नही मिली, आज रात क्या होगा कुछ पता नही, इतने दिनों से तुम्हारे सती माई मोहल्ले में कुछ भी भूतिया नहीं हुआ , ये भी अजीब है, मुझे किसी ऐसे आदमी से मिलवाओ जो मुझे तुम्हारे मोहल्ले की पूरी हिस्ट्री बताए , और ..."
" सर हमारे मोहल्ले में मन्दिर में है इसलिये ..." परी ने कहा
"मन्दिर और भी जगह है, पर वहाँ भी कुछ न कुछ हुआ है, भूत प्रेत में मैं नही मानता लेकिन कुछ अजीब चीजे होती है जिनसे हम मुँह नहीं फ़ेर सकते .., अगर मन्दिर कुछ विशेष है तो उस मंदिर का सारा इतिहास मुझे चाहिए "खन्ना ने कहा।
" सर ....." एक हवलदार अंदर आया और उसे देखकर खन्ना ने पूछा " क्या अपडेट है "
" सर ...., सर, उस लड़के विभु की लोकेशन ग़जरीगांव हाइवे पर बने फार्महाउस से कुछ दूरी पर बने खेतों की आ रही है, हमारी टीम वहाँ गई है पर उन्हें कुछ नही मिल रहा ... आगे क्या आर्डर है सर "
उस हवलदार ने कहा।
" अगर लोकेशन वही है तो लड़के क्या हवा में गायब हो गया , अच्छे से ढूँढो वो वहीं होगा " खन्ना ने कहा।
"जी सर , सर ... , वो ..., सर मेरे घर से फ़ोन आया है कि घर की दीवारों में से पानी रिस रहा है सर, सर लगता है ...." उस हवलदार ने हकलाते हुए कहा।
"बकवास मत करो, जाकर अपना काम करो " खन्ना ने उसे फटकार कर भगा दिया लेकिन अगले ही पल एक चीख़ सुनकर उनका चेहरा पीला पड़ गया ।
केबिन की एक दीवार के पास परी खड़ी थी उस से पानी रिस रहा था और उस पानी को ही देखकर परी चीख़ पड़ी थी ।
" परी, डरो मत , पानी ही तो है ..." संयोगी ने उसे संभालते हुए कहा ।
" हं ..... पा.....नी ........ है...... या .....ज..ल .... पि.....शा....च ....."
दीवार से रिसते हुए पानी के कण एक आकार ले रहे थे और उस आकार से आती हुई आवाज़ की तीव्रता से सब सुन्न हो गए।
......क्रमशः