कहानी - बड़े घराने की बहू 

लेखिका - आस्था जैन " अन्तस्" 

श्रेणी - स्त्री-विमर्श, हॉरर, सस्पेंस-थ्रिलर, आध्यात्मिक


पार्ट 1

"एक तो समय बचा नहीं, 2 घण्टे में पहुंचना है हमें। लड़की वाले कब के पैलेस पहुँच चुके होंगे तुम्हें जल्दी करनी चाहिये  और तुम हो कि गहनों का रोना रोये जा रही हो।"

 भयंकर खीझ भरे शब्दों में नायक राठौर अपनी धर्मपत्नी नीति को फटकारे जा रहे थे जो कि अपने बेफ़िजूल से गहने पुराण को गलत समय खोल देने से पछता रहीं थीं। नव्यम ने बात बिगड़ती देखी तो खुद ही बीच मे कूद पड़ा।

"अरे माँ, जहाँ जा रही हो वो कोई वीरान बीहड़ नही है , वहाँ भी अच्छे अच्छे गहने मिल जाएँगे एक से एक एंटिक पीस । " 

नीति ने अपने बेटे की बात को नीतियुक्त समझा और हाँ मे सर हिला दिया। "पापा आप बस में ......" नव्यम ने पीछे मुड़ते हुए कहा लेकिन नायक जी तब तक जा चुके थे ।

" मैं कौन अपने लिए कह रही थी , तू ही सोच , वो लोग हमारा जब दूध के कलश के साथ स्वागत करेंगे तो मैं शगुन का कौन सा कोरा गहना डालूँगी उसमें , मैंने तो पहले ही कहा था , घर से शादी कर लो पर नही आज कल के बच्चे उस खंडहर में जाके डेस्टिनेशन वेडिंग करेंगे । घर मे संभाल के रखा था सब, भूल गई अब । बताओ भला अब क्या कहेंगे हम  लड़की वालों से , तू क्यों नही....."

" बस माँ बस, साँस तो ले लो । अब बीच रास्ते हम कहीं नहीं जा सकते । आप जाते ही वहाँ कुछ खरीद लेना फिर हम पैलेस पहुँच के ही रस्म करेंगे। ठीक है ...।" 

नव्यम ने अपनी माँ को समझाया और उनका हाथ पकड़ के बस की ओर चल दिया।

बस में बैठे बैठे भी नीति को चैन नही आया , बस तो सीधी पैलेस पे ही जाके रुकेगी फिर , क्या करूँ ... उन्होंने अपनी होने वाली बहू कल्पना को कॉल लगाया और एक नया गहना लेने को बोल दिया। 

नव्यम पीछे की सीट पे बैठा मुस्कुरा रहा था कि चलो किसी बहाने से सही उसकी माँ ने कल्पना से बात तो की। 

अरेंज मैरिज होने के बाद भी नीति को कल्पना से चिढ़ थी कैसे उसने सबके सामने कह दिया था मेरे पापा दहेज में कुछ नही देंगे , अगर मैं आपको स्वीकार हूँ तो आपको दहेज के बिना शादी करनी होगी। शादी का खर्चा भी सिर्फ मैं और नव्यम की ही सैलरी से जाएगा । जितना हमारा बजट होगा हम उतना ही खर्च करेंगे । उसके ऐसे विचारों को देख सुन के नीति को मानो कल्पना पे स्नेह हो आया । उन्होंने रिश्ते के लिए हाँ कर दी । लेकिन इतने बड़े घर की होने वाली बहू ऐसे सबके सामने दो टूक बातें करें इससे नीति को चिढ़ बैठ गई। 

खैर इधर कल्पना पहली बार अपनी होने वाली सास से कोई आदेश पा कर बेहद खुश थी। अपनी बहन और एक दो सहेलियों को साथ लेकर वो रामायणी पैलेस(काल्पनिक) से बाहर निकली और पूरे बाजार में अपनी सास की पसन्द जैसा कुछ अलग और सुंदर गहने की तलाश करने लगी । इतनी दुकानों पे देख कर भी उसे कुछ समझ नही आया , आखिर में एक सामान्य सी दुकान पर एक बेहद खूबसूरत और राजसी सा बेंदा लेकर वो वापस लौटने लगीं।

" मुझे तो कोई चोर बाजार जैसी दुकान लग रही थी जैसे चोरी का माल रखा हो ।" कल्पना की बहन स्नेहा ने उससे कहा।

" थोड़ा गाँव कस्बे जैसी जगह है न इसलिए इतने सीधे लोग हैं ज्यादा बातें नही बनाते इसलिए तुझे ऐसा लग रहा है। खैर अब जल्दी चलो वरना मम्मी डांट लगायेंगी , उन लोगों के आने का टाइम हो गया है ।"

"उन लोगों के आने का या उनके आने का दीदू ..." 
कह कर सब हँसने लगी। 
कल्पना शरमा के रह गई। 

"देखो सही अपनी  लड़की को कविता, अपना सामान सही से रखा नही, सास का हुक्म बजाने बाजार दौड़ पड़ी " कल्पना की रेखा बुआ ने उसे देखते ही उसकी मम्मी से कहा।

" क्या ले आई, सोने का ही है ना.."
कल्पना की मम्मी कविता ने पूछा ।

" हाँ मम्मी , सोने का और बहुत सुंदर भी ।"

" ठीक है तुम लोग जल्दी से तैयार होके आओ हम सब बाहर जाके स्वागत का इंतजाम देखते हैं , देर मत करना। " बुआ निर्देश देती हुई कविता के साथ चली गईं।

जोर शोर से लड़के वालों का स्वागत हुआ , समधी ने समधी को, समधिन ने समधिन को गले लगाया। स्नेहा चुपके से एक डिब्बा नीति के हाथ मे दे आई । नीति ने खोल कर देखा और अपनी बहू की पसन्द पे गर्व से भर उठीं। 

रामायणी पैलेस के मैनेजर राहुल ने भी सबके स्वागत में लड़की वालों का साथ दे रहा था। " सर आप क्या कर रहे हैं, ये पैलेस सिर्फ लोगों के , सैलानियों के ठहरने के लिये है, शादी जैसे फंक्शन की मनाही है , फिर आप क्यों इन लोगो को परमिट कर रहे हैं , अगर रावत जी को पता चलेगा तो...." 

" कौन बतायेगा करण ,तुम , तुम भले रावत जी के दोस्त के बेटे लगते हो पर मेरे असिस्टेंट हो, समझे । और मैं किसी से नही डरता । मेरा काम इस पैलेस का फायदा कराना है , और एक बार यहाँ शादी हुई तो आगे भी और लोग यहाँ आएंगे। सिर्फ 5 दिन का फंक्शन है, फिर सब विदा । तब तक मैं हूँ यहाँ , कुछ गलत नही होगा , और उन लोगो के सामने तुम चुप रहो तो बेहतर है। " कहकर राहुल अपने केबिन से बाहर आकर तैयारियां देखने लगा। आखिर ये रामायणी पैलेस में पहली शादी थी । वो पैलेस की इमेज को और बढ़ाना चाहता था । इसलिए कोई कमी नही रखना चाहता था और न ही किसी फिजूल के 'श्राप' पे ध्यान देना चाहता था।

सबके मिलने मिलाने के बाद अगवानी की रस्म के लिए कविता ने एक दूध भरे कलश से अपनी होने वाली समधिन का स्वागत किया और नीति ने अपनी समधिन के स्वागत से अभिभूत होकर रिवाज के अनुसार वो सोने का बेंदा उस कलश में डाल दिया लेकिन दो पल बाद ही कविता ने चिल्लाकर वो कलश हाथ से छोड़ दिया । सब आँखे फाड फाड़ कर बेहोश कविता और जमीन पे फैले काले दूध और उसमें से निकलते हुए कीड़ो को देख रहे थे........

क्रमशः ...