कहानी -बड़े घराने की बहू

लेखिका - आस्था जैन " अन्तस्"

श्रेणी - स्त्री-विमर्श, हॉरर, सस्पेंस-थ्रिलर, आध्यात्मिक

पार्ट 2

"अब ये ठीक हैं , बस थोडी देर इन्हें आराम करने दें ..."
डॉक्टर अमित ने सबसे कहा और सबने जैसे एक सदी के बाद चैन की साँस ली। 

" आप सब अपने अपने रूम में जाकर आराम कर लीजिए, अब सब ठीक है " कहकर नायक जी ने उस कमरे से सबको विदा किया। 

" आप मेरे साथ चलिए डॉक्टर .. " बोलकर राहुल (पैलेस का मैनेजर ) डॉक्टर  को लेकर बाहर आ जाता है । 
.........


कल्पना अपनी माँ के सिरहाने बैठी थी , उसके और नव्यम के पापा बाहर बातें करने चले गए, सिर्फ नव्यम अपनी माँ के साथ उस कमरे में मौजूद था। 
नीति ने बड़े स्नेह से कहा - " कल्पना चिंता मत करो , कविता तो जरा जरा से चूहों से भी डर जाती है, अभी ठीक हो जाएगी , तुम भी अपने रूम में जाकर आराम कर लो फिर कल से रस्मों में उलझ जाओगी , वक्त नही मिलेगा जरा भी, बेटा नव्यम , तुम भी जाके रेस्ट कर लो, कविता के पास मैं हूँ, जाओ तुम दोंनो।"
"जी आंटी" कहकर कल्पना बाहर जाने लगी । नव्यम भी उसके पीछे ही चल दिया, उसका मन हुआ कि कल्पना से कुछ बात करे , कुछ कहे लेकिन क्या कहे कि चिंता न करे वो तो वैसे भी चिंता नही कर रही , इतना सब हो गया फिर भी शांत है , तो ये कहूँ कि आराम कर ले वो तो अभी अभी मम्मी ने कहा ही था, ये कहूँ कि कल्पना अपना ध्यान रखना , हाँ यही कह देता हूँ "कल्प...." उसने कहा और देखा कि कल्पना तो जा चुकी थी । क्या नव्यम सोचने में ही वक़्त निकाल दिया। 
" किस सोच में हो नव्यम , टेंशन वाली कोई बात नही है,कविता आंटी बिल्कुल ठीक  हैं  "
राहुल ने उसके कंधे पे हाथ रखते हुए कहा।
" हाँ , वो बस ऐसे ही , तो कुछ पता चला वो दूध काला कैसे हुआ और वो कीड़े " नव्यम ने पूछा।
" कुछ नही शायद कलश साफ नही होगा बस उसी की वजह से हुआ होगा , मैंने स्टाफ को समझा दिया है अब आगे से सब ठीक ही होगा टेंशन वाली कोई बात नही है यार"
" लेकिन दूध गन्दा नही था , काला था , कल्पना की बहन स्नेहा कह रही थी कि उसने यहाँ स्टाफ को बातें करते हुए सुना है किसी श्राप के बारे में "
" ये सब कहने की बातें है , तू इन सब चीजों में नही मानता और मैं भी नहीं, तू मेरा दोस्त है यहाँ मेरे भरोसे पे आया है तो सब परफेक्ट होगा , भरोसा रख यार"
" देख राहुल मैं बेशक़ ये श्राप वगैरह नही मानता, लेकिन अपने परिवार और रिश्तेदारों को बेवज़ह मुसीबत में नही डाल सकता, बाकी तुझपे मुझे सबसे ज्यादा भरोसा है "
" हम्म , लेकिन उस स्नेहा से कहना कि बाकी सबसे कुछ न कहे वरना सब बेमतलब डरेंगे और यहाँ चूहे भी उन्हें भूत लगेंगे".
" हाँ मैंने उसे मना कर दिया है वो किसी से नही कहेगी, मैं चलता हूँ , शाम को मिलते हैं डिनर के बाद ।"
"जरुर..."
नव्यम अपने कमरे की तरफ चला गया ।
राहुल जाने के लिये पीछे मुड़ा ही था कि उसकी अंदर की साँसे उसके फेफड़ों से वापस आना ही भूल गईं ।
आँखे छोटी छोटी करके बोलने वाली ये लड़की कितनी प्यारी लग रही है , लेकिन ये बोल क्या रही है
"आ.. जी वो आप..."
"क्या आप ?मेरे सवाल का जवाब दीजिये"
" जी वो मैंने सुन नहीं पाया" 
"मैंने पूछा कि आप अभी हमारे दामाद साहब को क्या पट्टी पढ़ा रहे थे"
" जी वो मैं मेरा दोस्त है , मैं सिर्फ उससे बात कर रहा था , पर आप क्यों पूछ रहीं हैं , आपकी ताऱीफ ?"
" स्नेहा अपनी तारीफ़ खुद नही करती" 
" अच्छा, तो यहाँ वहाँ लोगों की बातें सुना करती हैं आप "
" नहीं , मुझे बुआ जी ने भेजा था आपसे वो बेंदा लेने उसी की वजह से माँ बेहोश हुईं है ।"
" हम्म , वो मैं स्टाफ से कहकर भिजवा दूँगा , आप जाइये ।"
"ठीक है.." कहकर स्नेहा अपनी माँ के कमरे में चली गई ।
राहुल वहीं खड़ा रह गया, जैसे कोई बच्चा मेले में अपनी पसंद का खिलौना देख कर खड़ा रह जाता है।
"पर मैं बच्चा नहीं हूँ न वो कोई खिलौना है । " कहकर राहुल ने अपने ख़यालो को परे किया और अपने केबिन में आकर करन से कहा कि वो सारे स्टाफ को मीटिंग रूम में बुलाए ।


.........



" मैं 2 बार स्पेशल मीटिंग ले चुका हूँ ताकि आप लोग इस शादी को अच्छे से निबटा सकें ,लेकिन आप सब तो ...."

" सर , दूध सही था , कलश और स्वागत का सब समान मैने खुद तैयार किया था, हमारी तरफ़ से कुछ गलत नही हुआ बस वो बेंदा.."

" मैं उन सब चीजों की बात नहीं कर रहा हूँ , नव्यम के रिश्तेदार आप लोगों को आपस मे कानाफूसी करते देख और सुन रहे हैं , आपको समझ क्यों नही आता कि ये रामायणी पैलेस की इज्जत का सवाल है , आगे से ध्यान रहे कोई भी इस तरह की बातें नहीं करेगा न उन लोगों से न आपस में ।"

" जी सर.." सबने एक स्वर में कहा।

"जाइए अब..."

सबके जाने के बाद करन राहुल के पास आया , " सर वो बेंदा ..."
"मेरे पास है , मैं दे दूँगा , तुम अपना काम करो "
कहकर राहुल मीटिंग रूम से बाहर निकल गया।

" जानता हूँ कि आपके पास है , पर आप देंगे नहीं , समझ नही आता कि करना क्या चाहता है ये, पता नही रावत अंकल (पैलेस के मालिक) कब इसे फोन करके फटकारेंगे , ख़बर तो पहुँचा ही चुका हूँ।" अपने में बड़बड़ाता करण पीछे मुड़ा तो देखा कि राहुल पीछे ही खड़ा था।

" सर, वो..."

" मेरा मोबाइल "

"जी"

" टेबल पे रह गया है, दे दो ."

" जी " 

करन ने राहुल को उसका मोबाइल उठाकर दे दिया ।

" वैसे टेंशन वाली कोई बात नहीं" राहुल ने मुस्कुरा कर कहा और अपना मोबाइल लेकर चला गया।

करन समझ नहीं आया कि राहुल ने कुछ सुना या नहीं।


...........
" नीति मुझे कुछ ठीक नही लग रहा "
अपने कमरे में कविता जी अपनी सखी नीति से बात कर रही थीं 

" क्या ठीक नहीं लग रहा कविता, सब ठीक है तुम दवा लो और आराम करो"

नीति ने इस लहजे में कहा कि जैसे उसे कुछ सुनना ही न हो।

" नहीं नीति, मैंने कलश में उसकी छाया देखी है , वो मेरे सामने..."

"बस करो कविता, किसी से कहना भी मत , ये सब भरम है तुम्हारा , मैं वहाँ थी , रेखा दीदी थीं ,सिर्फ दूध गन्दा था बस।"

" नीति तुम सुनती क्यों नहीं "

" देखो कविता, थोड़ी देर बाद वेलकम डिनर है , सब रिश्तेदारों के सामने सहज रहना , कुछ गलत नही है यहाँ ठीक है। मैं जा रही हूँ तुम आराम करो।"

कहकर नीति अपने कमरे में चली गई , कविता धीरे धीरे चलकर कमरे की खिड़की तक आई और उसकी आँखों से कुछ आँसू बह निकले।

" माफ कर दो रामायणी , माफ कर दो, कल्पना जितनी मेरी बच्ची है उतनी तुम्हारी भी है .."
कविता जैसे हवाओ से बातें कर रही थीं । 
तभी उनके पति जगदीश राठौर ने पीछे से आकर उनके कंधे पे हाथ रखते हुए पूछा " क्या हुआ कविता ,अरे ये क्या तुम रो रही हो " 
कविता उनके गले लग कर फफक पड़ी ।
" वो हमें माफ नही कर सकती , क्यों जगदीश क्यों उसे मेरी माफ़ी समझ नही आती "

" कुछ नही होगा कविता, इतनी दूर क्यों लाये है हम अपने बच्चों को , कुछ नहीं होगा उन्हे यहाँ " कहकर जगदीश जी ने अपनी पत्नी को सांत्वना दी पर उनकी आँखों में एक पल के लिए एक दुल्हन सी सजी लड़की, उसकी फलों , मेवों और उपहारों से भरी गोद और सूखी आँखों में से रिसता लावा ।

" नहीं कुछ गलत नही होने दूँगा मैं " जगदीश जी ने ख़ुद से कहा । 


............



" पंडित जी को इस पैलेस का पूरा एक चक्कर लगाना है, हर रूम, हर जगह , हर कैबिन का , इसके लिये आपकी इजाजत चाहिए ।" स्नेहा ने राहुल से कहा।

" और मैं ऐसी वाहियात इजाजत क्यों दूँ " स्नेहा और उसकी बुआ के साथ आये एक पुरूष को घूरते हुए राहुल बोला।

"देखो तो सही ये तमीज़ है आजकल के लड़कों की , अरे हमारे भी लड़के हैं , जॉब करते हैं पर ये संस्कार नही की बड़ो से इस तरह बात कर जाएं " बुआ लगभग बरसते हुए बोलीं।

पर राहुल अब भी उसी तेजस्वी मूर्ति से नजरें मिलाये हुए था ।

" इजाजत दो या अपनी टेबल के लॉकर में रखा हुआ बेंदा दे दो " राहुल के पास आकर उसके सिर पे हाथ रखने के बहाने उस व्यक्ति ने धीरे से उसके कान में कहा जिसे स्नेहा और बुआ न सुन पाई ।

राहुल ने पूरा ऊपर से नीचे उस व्यक्ति को घूरते हुए देखा, सादा कुर्ता, सादा धोती, न कोई माला न थैला न आडम्बर न तिलक , बस मुस्कुराता सा चेहरा , सफेदी से सनी दाढ़ी और बाल भी थोड़े बड़े , जटा धारी तो हैं नहीं , न कोई सिद्ध पुरुष मालूम पड़ते हैं आखिर इन्हें बेंदा का कैसे पता चला।

" पता तो मुझे तुम्हारे बारे में भी बहुत कुछ है अक्कू" कहकर वो व्यक्ति फिर मुस्कुरा दिया।

अबकी बार राहुल की आँखे बस नेत्रदान हेतु बाहर ही निकल  आईं ।

" चलिए , मैनेजर साहब ने इजाजत दे दी है।" उस व्यक्ति ने बुआ से कहा।

" जी आपका नाम"

"सब मुझे दद्दू कहते हैं , तुम भी कह सकते हो।" उसी मुस्कुराहट में भीगा हुआ जवाब आया।

" अभी सब 1 घण्टे बाद वेलकम डिनर के लिये सुर्या होटल जाएँगे तभी आप सब देख लीजियेगा, एक स्टाफ मेंबर भी भेज दूँगा मैं आपके साथ। अभी मैं नही चाहता सबके सामने तमाशा सा हो" 

" ठीक है, फिर तब तक हैं यहीं रुकते हैं " दद्दू ने बुआ की तरफ़ मुड़कर कहा ," आप लोग जाइए , मैं अपना काम कर लूँगा"

" जी दादाजी, प्रणाम, चल स्नेहा, हमे भी तैयार होना है"

" जी , आप दद्दू का ध्यान रखियेगा " राहुल से कहकर स्नेहा बुआ जी के साथ चली गई।

" मैनेजर साहब , बैठने को कहेंगे या खड़ा रहूँ"  दद्दू ने उसी मुस्कुराहट से पूछा ।

"जी, क्या..." राहुल जो अभी अभी स्नेहा की घटते क्रम में छोटी होती और फिर सहज ही जाती आँखों की दुनिया मे खोया था, अपनी वास्तिवक दुनिया मे वापस आ गया।

"कुछ नही" दददू ने कुर्सी पे बैठते हुए कहा।

"हलो, हाँ वो लोग 1 घण्टे में पहुँच जायेंगे , .... हाँ जरूर, .... थैंक्स " सुर्या होटल के मैनेजर से बात करके राहुल अपने लैपटॉप में व्यस्त हो गया, सामने बैठे व्यक्ति ने उसके बचपन का नाम लेकर  उसकी सबसे दुखती रग पे हाथ रख दिया था अब राहुल उनके सामने सहज नही रह पा रहा था न बात कर पा रहा था मगर दिल में कई ख़याल आ रहे थे। 

वो महसूस कर पा रहा था , सामने बैठा इंसान उसे ही घूरे जा रहा है उसने नजरें उठाकर उन्हें देखा उसे लगा जैसे असीम स्नेह का दरिया उसे अपनी गोद में लेने को बढे चला आ रहा है वो मन्त्र मुग्ध सा हो गया ।

" कोई दूसरा होटल बुक कर लो बेटा, वरना कोई जीवित नही बचेगा "

राहुल ने उसी सम्मोहन में तुरन्त दूसरा होटल बुक कर दिया।

अचानक उसकी तन्द्रा भंग हुई  , उसकी टेबल के लॉकर में आग धधक रही थी जैसे किसी की क्रोध भरी चीखें उसे और भड़का रहीं  हों । 

राहुल तपाक से अपनी कुर्सी से उठकर अलग खड़ा हो गया उसने देखा सामने कुर्सी पे बैठे दद्दू अब भी मुस्कुरा रहे थे।

क्रमशः...