कहानी - बड़े घराने की बहू

लेखिका - आस्था जैन " अन्तस्"

श्रेणी - हॉरर, आध्यात्मिक, सस्पेंस-थ्रिलर, स्त्री-विमर्श


पार्ट 3

राहुल आँखे फाड़कर दद्दू को देख रहा था , उसने तुरंत लॉकर खोल कर देखा उसमें रखे पेपर जल रहे थे , और बेंदा काला पड़ चुका था । उसने टेबल पे रखे पानी के जग से आग बुझाई । 

" ये कागज़ बहुत जरुरी थे क्या , बेटा " दद्दू ने पूछा ।

" जी , पर इनका डिजिटल कॉपी है मेरे पास ।" परेशान राहुल ने जवाब दिया ।

तभी राहुल का मोबाइल बजा , " हाँ , नव्यम " राहुल बोला

"ये क्या बोल रहा है यार ड्राइवर , ये तो कोई और होटल लेके जा रहा है , बात तो सुर्या होटल में कर रखी थी न तुमने "

" हाँ , वो अभी मैने चेंज किया, सुर्या में थोड़ी प्रॉब्लम होती तुम लोगों को इसलिए , बस और कुछ नहीं " 

"ठीक है " कहकर नव्यम ने फ़ोन काट दिया।

" आपने अभी मुझे सम्मोहित किया , और मुझसे ये कहा कि....." 


" सम्मोहित किया होता तो तुम्हें याद नही रहता कि तुमने क्या किया " दद्दू मुस्कुराते हुए बोले ।

" तो क्या किया आपने " 

"कुछ नहीं , वक़्त आने पर जान जाओगे , वो लोग निकल गए हैं मुझे इस पैलेस की पूरी 7 मंजिल घुमवा दो " दद्दू ने कहा ।

" जी , पैलेस सिर्फ तीन मंजिल है" 

"वो तो ऊपर है , नीचे भी 4 मंजिल हैं " दददू ने कहा।

"क्या कह रहे हैं आप , यहाँ कोई तलघर तक नहीं है ,  और आपको पता कैसे कि यहाँ नीचे 4 मंजिल और हैं, आखिर हैं कौन आप, अभी आग भी आपकी ही वजह से लगी थी , बोलिये " 

जवाब में दद्दू मुस्कुरा दिए , "तुम सवाल बहुत करते हो बेटा, वैसे टेंशन वाली कोई बात नहीं है , तुम्हारे सब सवालों के जवाब हैं मेरे पास , बस सही वक़्त आने दो" 

" देखिये , आप जो कोई भी हैं मैं आपको इस पैलेस का नाम खराब नही करने दूँगा , बताइए अभी आग कैसे लगी ।" 

" तुम्हे लग रहा है ना कि मैने ये पेपर्स और बेंदा जलाए तो हाँ मैंने ही जलाए हैं, जादू से, जादू जिसपे तुम विश्वास नही करते" 

" अभी तक मैं आपकी उम्र का लिहाज कर रहा था पर  अब नही जाइये यहाँ से " राहुल जो हर चीज से परेशान हुए जा था अपना सारा गुस्सा सारी घबराहट उसने सामने बैठे व्यक्ति पर उतार दी 

" ठीक है ,जाता हूँ , एक बात याद रखना , होता वही है जो होना होता है और तभी होता है जब द्रव्य,क्षेत्र, काल , भाव, भव इन पांचों का संयोग हो। किसी भी चीज को नकारने से पहले उसके कारण पर विचार जरुरी है , कई चीजें हो चुकी हैं कई चीजें होना बाकी है, तुम्ही तुम्हारे मार्गदर्शक हो, खुश रहो। " दद्दू ने मुस्कुरा कर कहा और केबिन से बाहर चले गए।

" जिसे देखो प्रवचन सुनाने में महारथ हासिल है आज़कल " राहुल ने खुद से बड़बड़ाते हुए कहा और करण को कॉल किया। 

5 मिनट बाद करण उसके केबिन में आया । 

"जी सर"

"हाँ , बैठो , कुछ बात करनी है " राहुल ने कहा

" जी बताइए " 

" क्या मिलाया था तुमने दूध में "

" कुछ भी तो नहीं " 

" हम्म, तुम्हें पता है यहाँ इस पैलेस में एक तलघर भी है"

" नहीं , शायद रावत अंकल को पता हो, पर आपने कहाँ देखा" 

"मैंने किसी से सुना है" 

"आप कबसे सुनी हुई बातों पर यक़ीन करने लगे सर " 

" यक़ीन नही करता लेकिन तफ़्तीश करना जरूरी समझता हूँ , मैं खुद रावत जी से पूछ लूँगा , वैसे भी वो कल यहीं आने वाले हैं , तुम जाओ " 

" क्या ,अंकल आने वाले हैं वो भी कल "

" हाँ लेकिन टेंशन वाली कोई बात नहीं है , मैं तुम्हारी कोई शिकायत नहीं करूँगा "राहुल ने मुस्कुराते हुए कहा। 

करन कुछ कहता उससे पहले ही उसका मोबाइल बज उठा , वो "एक्सक्यूज़ मी सर" कहकर बाहर निकल गया।

2 मिनट बाद राहुल के पास एक फ़ोन आया जिससे उसके होश उड़ गए। 
सुर्या होटेल मे बड़ी भारी आग लगी थी । 

राहुल पागलों सा भागता हुआ बाहर आया उसने पैलेस के रिसेप्शन से लेकर बगीचे , सामने की रोड से , आस पास हर जगह ढूंढा , बाद में थक कर अपने केबिन में आकर बैठ गया और अपना माथा पकड़ लिया। " आखिर मैने उन्हें जाने ही क्यों दिया, उनके पास ही मेरे हर सवाल का जवाब था।" 


........

सुबह सुबह रामायणी पैलेस पूरा महक रहा था हर तरफ सजावट का काम चल रहा था । लड़के लड़की वाले कल रात के अच्छे खासे वेलकम डिनर के बाद सुकून की नींद ले रहे थे ।

नव्यम और कल्पना के सगाई की तैयारी पैलेस के सबसे बड़े हॉल में की जा रही थी । 

सब कुछ अच्छे से हो इसलिए राहुल भी 5 दिन पैलेस में ही रहने वाला था उसने करन को भी रोक रखा था ।

" हाँ माँ , मैं ठीक हूँ , अच्छे से सोया था , आप अपना ध्यान रखो और जितना जल्दी हो सके यहाँ आ जाओ , मैं चाहता हूँ हमारे पैलेस की पहली शादी की भव्यता आपके आने से और बढ़ जाये " 

" मैं जल्दी ही आऊँगी , तुम अपना ध्यान रखना "

"जी माँ " 

राहुल सुबह सुबह बगीचे में टहल रहा था और अपनी माँ से बात कर रहा था। 


"अपनी माँ से तो बड़े अच्छे से बात करते हैं आप" 

राहुल ने पीछे मुड़कर देखा , स्नेहा थी। 

" जी, मतलब" राहुल ने पूछा।

" मतलब बाकी सब से तो अकड़ के बात करते हैं आप, खैर मुझे बुआ ने भेजा था" 

" क्यों , क्या हुआ, किसी चीज की जरूरत थी तो स्टाफ में से किसी को ..."

"जी नहीं , उन्होंने मुझे पूछने के लिए भेजा है कि कल जो दादाजी आये थे अरे पंडित जी , उन्हें पूरा महल घुमवा दिया आपने या नहीं "

"ओह , वो......वो मैं कुछ काम से चला गया था बाहर तो मुझे पता नहीं " राहुल साफ झूठ बोल गया।

2 मिनट तक तो स्नेहा उसे घूरती रही । 

" क्या हुआ घूर क्यों रही हो , डरा रही हो क्या "

"झूठ खूब बोलते हैं आप , आपने ही भगा दिया होगा उन्हें "

" नहीं , मतलब वो मैं बाद में बताउँगा, तुम ये बताओ कि वो तुम्हे मिले कहाँ थे।"

" मन्दिर में , मैं और बुआ मन्दिर गए थे, कल जो हुआ उससे मम्मी बहुत डर गई थी तो हम मन्दिर में छोटी सी पूजा रखवाने के लिए पंडित जी से बात करने गए थे " 

"तो ये उस मंदिर के पंडित जी हैं , किस मन्दिर में गई थी आप लोग"

"यहीं पैलेस से थोड़ी दूर ही है, लेकिन वो वहाँ के पुजारी वाले पंडित जी नहीं है वो तो कोई और थे दादाजी तो वहाँ ध्यान कर रहे थे  , बुआ वहाँ भगवान के सामने रोने लगीं तो दादाजी का ध्यान भंग हुआ उन्होंने बुआ से सब पूछा और हमारे साथ आ गए।"

"अच्छा , ठीक है, अब आप जा सकती हैं "

" क्या जा सकती हैं , अरे मैने आपको सब सच बोला न , तो आप को भी सच बताना पड़ेगा , दादा जी को आपने भगाया न " 

" मैं नही बताता सच , जाओ क्या कर लोगी" 

" अरे पर मैंने आपको सच बोला न " 

" ऐसा कोई रूल है ?" 

" हाँ है" 

" अच्छा फिर मैं आपसे कहूँ मुझे आप पसन्द है तो आप भी मुझे पसंद करिए , करेंगी आप?" 

" क्या......." स्नेहा मुँह फाडे राहुल को देख रही थी। 

राहुल उसका ऐसा मुँह बना देख अपनी हँसी नहीं रोक पाया।

" क्यों रूल है ना तो फिर" राहुल ने हँसते हुए कहा।

स्नेहा से कुछ बोलते न बना वो तेज तेज कदमो से वापस पैलेस के अंदर चली गई । 

राहुल को समझ आया वो गुस्सा हो गई। 

ख़ैर , राहुल ने सोचा अब सबसे पहले मन्दिर जाकर दद्दू का पता लगाना चाहिए। 

तभी उसे दूसरी मंजिल से चीख़ने चिल्लाने की आवाजें सुनाई देने लगीं वो तुरन्त ऊपर की तरफ़ भागा आवाजें पैलेस के दायीं तरफ़ से आ रही थीं जहाँ लड़की वालों के कमरे थे वहाँ जाकर राहुल ने देखा तो कल्पना की मम्मी जमीन पर बेहोश पड़ी थीं और बुआ जोर जोर से चिल्ला रहीं थीं ।

" क्या हुआ , इन्हे"  राहुल ने कल्पना से पूछा जो अपनी बुआ को शांत करा रही थी और रोये जा रही थी। 

सबने मिलकर बुआ को शान्त कराया और कविता जी को बेड पे लिटाया तुरन्त डॉक्टर को बुलाया गया, पता चला उनका बीपी एकदम कम हो गया था इस वजह से  ऐसा हुआ। 

सबने बुआ से पूछा कि आखिर हुआ क्या है तो वो रोते रोते बोलीं , " मैं कविता के कमरे में गहने पसन्द कराने आई थी शाम की सगाई के लिए , यहाँ आकर देखा तो कविता किसी से बातें करे जा रही थी मैंने उससे पूछा किससे बातें कर रही हो तो उसने मेरा गला दबा दिया जाने क्या क्या बक रही थी , फिर खुद ही बेहोश हो गई " 

" पर कविता तो ऐसा कभी नही करती चाहे जितना भी डरी हुईं हो " जगदीश जी चिंतित होते हुए बोले ।

" मुझे तो लगता है , कविता को उसने अपने बस में कर लिया है " बुआ अभी भी रोये जा रहीं थी ।

" किसने बस में कर लिया है क्या कह रही हैं आप "  नीति पूरे गुस्से में बोली जो अभी अभी नव्यम और नायक जी के साथ उस कमरे में आई थी। 

स्नेहा और कल्पना एक दूसरे की शक्लें देख रही थीं जिन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था।

"आख़िर बात क्या है , आंटी" राहुल ने नीति जी से पूछा।

"कुछ भी नहीं है, बेमलतब की बातों का ड्रामा बना रखा है , ये सब बातों से अच्छा है रेखा दीदी कि हम कविता का ध्यान रखें " नीति जी उसे गुस्से में बोले जा रहीं थीं।

" ध्यान इंसानों का रखा जाता है , भूतों का नही , बोलो नायक भाई साहब मैंने क्या गलत कहा।" 

" रेखा दीदी सही कह रहीं है नीति , जिसने जीते जी हमे धोखा और  दुख ही दिया हो , शायद मरके भी उससे हमारे बच्चों की खुशियां बर्दाश्त नहीं हो रहीं " कहते कहते नायक जी की आंखों से क्रोध और दर्द की बूंदे गिरने लगीं ।

"अफ़्सोस है जिंदगी , अफ़्सोस है बहुत" दरवाजे से आवाज़ आई सबने पीछे मुड़के देखा ,

" रावत सर आप.." राहुल के मुँह से निकल गया

" आप तब भी गलत थे नायक साहब और अब भी ग़लत हैं पर अफ़सोस है कि आज तक आपको अपनी गलती का अहसास नहीं है " रावत जी अपनी बातो में अंगारे से बरसाते हुए नायक जी के सामने खड़े हो गए।

क्रमशः ...

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