कहानी - बड़े घराने की बहू

लेखिका - आस्था जैन " अन्तस्"

श्रेणी - हॉरर, आध्यात्मिक, सस्पेंस-थ्रिलर, स्त्री-विमर्श



पार्ट 4

" गलती किसकी थी मुकेश रावत , ये तुम भी जानते हो , सब जानते हैं , आज इतने साल बाद तुम सामने आए हो और आज भी तुम्हें मैं ग़लत लगता हूँ तो मैं समझता हूँ तुम अब भी उस मायाविनी के धोखे में हो" नायक जी जैसे सालों से दफ़न अपने अंदर का लावा बाहर निकालना चाहते थे।
" मेरी पत्नी यहाँ इस हालत में बेहोश पड़ी है और आप दोनों इस तरह बीती बातें खोदने में लगे हुए हैं " अब तक चुप जगदीश जी से रहा नही गया।

" नहीं जग्गू , नीति को क्या लगता है , मैं जानबूझकर उसका नाम ले रही थी , मैंने खुद आज कविता को इस हालत में देखा है , आज मैं मर जाती तो ? " बुआ अब भी रोते हुए खुद को सही साबित करना चाहती थीं ।

"मेरे कहने का वो मतलब नहीं था दीदी, लेकिन जिसकी वजह से कविता की ये हालात हो गई है , उसका नाम लेना भी अपशकुन है " नीति ने कहा

" अपशकुन ,.... दुबारा कहो नीति ,  कौन है अपशकुन " रावत जी दहाड़ते हुए बोले ।

" तुम नीति से ऊँची आवाज में बात नही कर सकते मुकेश , वो मेरी पत्नी है" नायक जी भी उबल पड़े।

" ये तुम्हारी पत्नी है, तो वो कौन थी जिसे तुमने पूरे समाज के सामने अपमानित किया था , जो आज तुम लोगों के लिए मर गई तब भी उसपे अपशकुन का इल्ज़ाम लगा रहे हो तुम सब "   मुकेश जी आँखों से क्रोध उबल रहे थे।

" बस भी करिए आप लोग  , जो बीत गया सो बीत गया, आज क्या किया जाए , अगर कविता की यही हालत रही तो शादी होना नामुमकिन है" जगदीश जी सिर पे हाथ रखते हुए बोले ।

"शादी जरूरी नही है पापा , मम्मी की सेहत ज्यादा जरुरी है" कल्पना बीच में बोल पड़ी हालांकि सबकी नजरें देखकर उसे समझ आगया कि उसका बोलना किसी को अच्छा नही लगा।

" दीदी सही कह रहीं हैं पापा, मम्मी अभी ठीक नही है तो शादी कैसे.... " स्नेहा बोलते बोलते रुक गई क्योंकि बुआ अब खा जाने वाली नजरों से उसे घूर रहीं थीं।

" तुम सबने तो शादी ब्याह खेल समझ रखा है, क्या जवाब देंगे इतने रिश्तेदारों को , कि एक भूतनी हमारे परिवार पर श्राप बनके मंडरा रही है , कभी न कभी तो तुम्हारी शादी करनी ही होगी इससे पहले कि वो बुरी आत्मा कोई और अपशकुन करे " बुआ बोलीं ।

" स्नेहा बेटा आप अपनी मां के पास ही रहो जब तक शादी पूरी नही हो जाती, ताकि अब कोई और दिक्कत न हो , हम नही चाहते इस शादी पे कोई भी बुरा साया पड़े, मैं अभी ही इस पैलेस में एक पूजा करवाये देती हूँ ताकि उसकी बुरी आत्मा कविता और हम सबसे दूर रहे।" 

" वाह , नीति वाह, " मुकेश जी तालियाँ बजाते हुए बोले ।

" मुकेश... " नायक जी दहाड़े 

" चुप रहो नायक , चुप रहो , इतनी देर से उस देवी के लिए बकवास सुन रहे हो तुम जो जिंदगी भर तुम्हारी पूजा करती रही ,और इस औरत के लिए एक शब्द सुनकर तुम बोल पड़े "  मुकेश जी नायक जी को सुनाते हुए बोले।

" आखिर हुआ क्या है , कोई बतायेगा भी , या सब एक दूसरे को सुनाते रहेंगे , पापा आप बताइए किसकी बात कर रहे है ये " नव्यम ने अपने पापा से पूछा।

"बेटा , तुम आजकल के बच्चे भूत प्रेतों में कहाँ मानते हो , लेकिन ये सब होता है , हमारी कविता यूँ ही बात बात पे डरा नही करती , इसकी भी एक वजह है एक श्राप है , उसी को हम सब भुगत रहे हैं , देखो तो सही इतनी दूर आकर भी उस आत्मा ने हमारा पीछा नही छोड़ा, अरे नायक भाई साहब के तो उसके नाम का तर्पण भी करा दिया फिर भी उस चुड़ैल ने हमारे परिवारों को बर्बाद कर रखा है " बुआ रोते हुए बोली

" बस करिए, रेखा दीदी, बस करिए एक औरत होकर एक औरत के बारे में ऐसा कैसे बोल सकती हैं आप " अब रावत जी फूट फूट कर रोने लगे।

" क्या हुआ सर, आप ठीक तो हैं , आखिर बात क्या है" राहुल परेशान होते हुए रावत जी के पास आया और उन्हें संभाला।

" ये हमारा निजी मामला है राहुल , बेहतर होगा तुम और तुम्हारे रावत सर इससे दूर रहें।"नायक जी ने कहा।

" ये इसका भी निजी मामला है , नायक " रावत जी गुस्से से उठ खड़े हुए और नायक जी से बोले , " ये जितना तुम्हारा निजी मामला है उतना ही राहुल का भी है , " वे राहुल की तरफ मुड़े और उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेते हुए बोले
" राहुल मेरे बच्चे , मैं समझता हूँ आज सच्चाई जानने के बाद तुम इन लोगो को इस पैलेस में एक मिनट भी रुकने न दोगे , शायद तुम्हारा इस पैलेस में शादी करवाने का सपना टूट जाए लेकिन इस सपने के टूटने का दर्द उस दर्द के सामने कुछ भी नही जो तुम ने 25 सालों से अपने अंदर छिपा रखा है, नायक, मैं आज उस देवी की दी हुई कसम तोड़कर तुम्हे सब सच बताऊँगा, क्योंकि जो इंसान तुम लोगों के लिए जीवित ही नही जिसका तर्पण तुम खुद अपने हाथों से कर चुके हो उसकी क़सम का तुम्हे कोई मान न होगा " रावत जी अपने एक एक बहते आँसू से एक एक शब्द निकाल रहे थे ।

"जो बातें दफ़न हो चुकीं है उन्हे ऐसे मौके पर दुबारा मत कुरेदिए मुकेश जी , हमारे बच्चे शादी के पवित्र बंधन में बंधने वाले हैं , ऐसे में हम ऐसी स्त्री का नाम भी नही सुनना चाहते जो खुद अपवित्र हो "नीति मुकेश के सामने आते हुए बोलीं।

"तुम अब भी मेरी बात का मतकब नही समझीं नीति , मुझे कसम दी थी उस देवी ने चुप रहने की और आज मैं वो कसम तोड़ रहा हूँ मतलब मैं हर सच जनता था नीति ,मैं हर सच जनता हूँ ....." रावत जी नीति को घूरते हुए बोले।

नीति सदमे से वहीं बेड पर सिर झुका कर बैठ गईं ।

" क्या सच कहोगे तुम, मुकेश कि वो ग़लत नही थी उसने हम सबको धोखा नही दिया , और अब जो बुरा साया हमारे परिवारों पे है वो उसका नहीं है,  तुम्हारे कह देने से सच झूठ नही हो जाएगा , जो सबूत थे वो उस वक्त सामने थे और आज भी यही सच है कि उसी की बुरी आत्मा का साया हमारे बच्चों के भविष्य पर है।" 


" क्या सबूत थे नायक , क्या सबूत थे , वो चंद कागज के टुकड़े जो तुम्हे रामायणी के कमरे से भी नहीं मिले थे "  रावत जी बोले।

" वो रामायणी के कमरे से ही मिले थे नीति को, जिसमें उसके प्रेमी ने खुद ये लिखा था कि आने वाला बच्चा रामायणी और उसका है इसलिए मैंने उसे अपनी जिंदगी और घर से निकाल दिया था ।" नायक जी क्रोध में बरसते हुए बोले जिनकी आँखे भी साथ में बरस रहीं थी।

"मामा , मेरी माँ ....." राहुल ने दहकती हुई आँखों से मुकेश जी की तरफ़ देखा ।
मुकेश जी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए हाँ मे सिर हिलाया और राहुल वहीं फ़र्श पर घुटनों के बल गिर पड़ा और फफक फफक कर रो पड़ा । 

स्नेहा ,कल्पना और नव्यम हतप्रभ से सब बड़ो के चेहरे देख रहे थे और कविता जी अभी भी बेहोशी की हालत में थीं।

मुकेश जी ने नीचे झुककर राहुल को संभाला और खुद भी रोते हुए कहा , " मैं जानता हूँ तुम्हारी माँ इतने सालों तक इतना बड़ा अपमान अपने दामन में छुपाए रही और तुमपे कभी उसकी आँच भी न आने दी"

"ये सब झूठ है मामा , ये सब झूठे हैं ,मेरी माँ पे लगे इल्जाम झूठे हैं , सब झूठ है सब झूठ " राहुल ने खड़े होकर नायक जी के सामने आकर कहा , राहुल की आँखे किसी ज्वालामुखी सी दहक रहीं थीं , उसका चेहरा तपते सूरज सा लाल हो चुका था जो अपने तेज़ से सब कुछ भस्म कर देना चाहता हो।

"सही कहा तुमने राहुल , ये सब झूठ था बना बनाया झूठ , क्यों नीति अब भी चुप रहोगी , अब तो तुम भी एक माँ हो, एक पत्नी को अपमानित होने दिया तुमने अब एक माँ को भी अपमानित होने दोगी, बोलो नीति या मेरे ही शब्द तुम्हारे झूठ को थप्पड़ मारें ये तुम्हारी इच्छा है " रावत जी नीति को घूरते हुए बोले ।

" ये क्या कह रहा है नीति जवाब दो, तुम ही तो लेकर आईं थीं वो खत , बताओ मुझे नीति जवाब दो" नायक जी गुस्से में नीति की बाहें पकड़ कर खड़ा करते हुए बोले।

" नायक जी, ... बच्चे ..." जगदीश जी अपनी जगह पर से उठते हुए बोले 
" नही जगदीश , नहीं , आज मैं जवाब चाहता हूँ मैंने अपनी पत्नी से अधिक तुमपे भरोसा किया नीति , क्या कह रहा है रावत कौन सा झूठ है तुम्हारा बोलो नीति बोलो " नायक जी गुस्से में रोते हुए नीति को झकझोरते हुए चिल्लाऐ।

" अपनी पत्नी पे?"  अपने आपको नायक जी से अलग करते हुए नीति चिल्ला पड़ी " आपने अपनी पत्नी से ज्यादा भरोसा मुझपे किया , तो मैं कौन हूँ नायक जी मैं कौन हूँ "नीति रोने लगीं 

"आज मैं समाज के लिए आपकी पत्नी हूँ लेकिन सच यही है न कि वो रामायणी कल भी आपकी पत्नी थी,आज भी है , और मैं आज भी सिर्फ आपके लिए दोस्त हूँ , मैंने आपसे प्यार किया तो आपकी पत्नी बनने का हक भी मेरा था उसी हक के लिए मैंने बोला आपसे झूठ , लेकिन क्या मतलब मैं आज भी अपने हक से कोसों दूर हूँ " नीति रोते रोते  सच कह गईं ।

नायक जी का सारा क्रोध सारे शब्द शांत हो गये किसी कटे पेड़ से वो भरभरा कर जमीन पर गिर पड़े । नव्यम ने उन्हें पकड़ कर संभाला और जगदीश जी की मदद से पास ही कुर्सी पर बिठाया।

राहुल अब सबसे मुँह फेरकर खिड़की पर जाकर सिसकने लगा था ।
" पश्चाताप अभी अधूरा है नीति " स्नेहसिक्त स्वर में मुकेश जी नीति से बोले। 

" मैं , कविता, रामायणी और मुकेश चारों ही बचपन के दोस्त थे " नीति जी ने सिर झुकाए ही कहना शुरू किया ।
सबकी निगाहें उनकी ओर उठ गईं। 
नीति ने कहना चालू रखा।
" हम एक ही स्कूल में साथ ही पढ़ते , एक दूसरे के पड़ोस में ही रहते साथ मे खेलते हुए बड़े हुए, कॉलेज में सिर्फ मैं, मुकेश और रामायणी पढ़ने गए , कविता को घर से इजाजत नहीं मिली , जल्दी ही कविता की शादी जगदीश जी से हो गई, उसी की शादी में हम सब पहली बार उनके दोस्त नायक जी से मिले , मैं उन्हें पसन्द कर बैठी , मैंने रेखा दीदी से कहा उन्होंने इनके घर वालों से बात भी कर ली मेरे घरवाले भी राज़ी थे, पर इन्होंने मना कर दिया क्योंकि इन्हें   रामायणी पसन्द थी " कहकर नीति की आँखों से क्रोध के कई अंगारे निकल कर बह गए । "मैं रामायणी को हर तरह से समझाती रही कि नायक उसके लिए नहीं बने हैं लेकिन उसने मेरी एक भी न सुनी , कहती थी ' मैं उन्हें पसन्द नही करती लेकिन उनसे मेरी शादी घर वालों ने पक्की की है , मेरे लिए अब वही सब कुछ हैं , तुम्हें पसन्द हो तो बोलो मैं खुद उनसे बात करके तुम्हारे लिए मना लूंगी उन्हें' , पर मैंने कभी उसके सामने अपना मन खोलकर नही रखा , कभी कह देती तो शायद मेरे सिर इतना बड़ा अपराध न बंधता " नीति बिलख पड़ीं , रेखा बुआ ने उठकर नीति को संभाला और चुप कराया, नीति ने फिर से कहना शुरू किया " बड़ी धूम धाम से रामायणी की शादी इनसे हुई और वो इनकी पत्नी बन गई लेकिन मेरे अंदर धधकते क्रोध और ईर्ष्या को कोई पहचान न पाया खुद मैं भी नहीं, मैं सबसे दूर चली गई अपनी पढ़ाई के बहाने , मुकेश भी दूसरे शहर चले गए पर उनके खत बराबर हम तीनों के पास आते रहते थे वो हम तीनों से राखी बंधवाते थे, जब 2 साल बाद मुझे मेरी दोनो सहेलियों ने निमंत्रित किया तो मैं वापस उन लोगो से मिलने गई ,कविता और रामायणी दोनों की गोद भराई साथ थी एक ही जगह , मैं 4 दिन पहले ही पहुँच गई थी, मेरे अंदर इतने दिनों का क्रोध बैर के रूप में बदल चुका था , मैं जानती थी कि नायक कभी रामायणी को नही छोड़ेंगे पर मैं चाहती थी उसकी इज्जत इनकी नजरों में कम हो जाये ,फिर एक दिन रामायणी अपने गहने मुझे दे गई उसकी अलमारी में रखने के लिए तब मुझे उसकी अलमारी में कुछ खत मिले जो मुकेश के थे , मुकेश हमेशा से रामायणी को अपनी प्रिय बहन मानते थे इसलिए बेहद व्यस्त होने पर भी उसे पत्र लिखा करते थे और इतने लम्बे खत में कभी कभी सिर्फ चंद बातें ही लिखते पर लिखते जरूर थे। वो खत देखकर मेरे मन मे एक प्रपंच आया और मैने वो सारे खत वहाँ से ले लिए । और दो दिन बाद जब गोदभराई की रस्म चल रही थी , कविता और रामायणी दोनों लाल और हरे रंग के लहंगे में सजी धजी जैसे सारी दुनिया का नूर अपनी गोद में छिपाए थीं जिसकी झलक से उनके चेहरे भी खिल उठे थे , सब रस्मों में व्यस्त थे , तब नायक जी अपने कमरे में तैयार हो रहे थे मैं वहाँ बहाने से गई कि रामायणी ने अपने कंगन मंगाये हैं वहाँ जाकर मैंने जानबूझकर उसकी अलमारी इस तरह झटके से खोली कि कुछ चीजों के साथ वो सारे ख़त भी जमीन पे गिर पड़े जिन्हें बाद मैं ही वहाँ रख आई थी, मैंने उन खतों से मुकेश जी का नाम हटा कर ' तुम्हारा प्रेमी' लिख दिया था क्योंकि हम सब साथ पढ़े थे और मुकेश की हैंड राईटिंग मुझे अच्छी तरह आती थी उनकी लिखी चंद बातों के नीचे मैंने कुछ इस तरह की बातें लिखी जिनसे नायक को भरोसा हो जाए कि आने वाला बच्चा उसका नही हैं । जब नायक ने अलमारी का  सारा सामान फैला देख मेरी मदद की तो वो ख़त मैंने उठाकर उनके हाथ में दे दिए कि शायद रामायणी के खत हैं ये उनमे रामायणी का नाम भी था और मुकेश का पता भी लेकिन नायक को नही पता था कि ये मुकेश के लिखे हुए हैं और बाकी की बातें पढ़कर उन्हें उसी बात का यक़ीन हो गया जो मैं चाहती थी , वो क्रोध और आँसुओ से भरे हुए  अपने कमरे से बाहर निकल कर गोद भराई की रस्म में पहुँचे और सारे ख़त रामायणी के मुँह पर फेंक दिए , सब लोग उस दिन तमाशा देखते रहे , पूरे समाज और घर परिवार के सामने नायक जी ने रामायणी को चरित्रहीन कहा धोखेबाज़ कहा, मुकेश वहाँ थे नहीं इसी बात का पूरा फ़ायदा मुझे मिला , सबको उन खतों पर भरोसा हो गया खुद कविता को भी, सब उससे सफाई माँगते रहे आखिर मैं वो चीख कर बोली , " मैं कोई सफाई नही दे सकती नायक जी, मैं कहती हूँ ये ख़त झूठे हैं , अब भी अगर आपको मेरा भरोसा नही तो मैं यहाँ नही रुकूँगी " दुल्हन जैसी सजी हुई रामायणी , उसकी फलों और उपहारों से भरी गोद और उसकी आँखों से बहते अपमान के लावे का नज़ारा देख एक बार सब सहम गए , लेकिन किसी ने उसका भरोसा न किया , अपनी कोख में अपने बच्चे को लेकर रामायणी उसी दिन उस घर से चली गई और कभी वापस नहीं आई " नीति के शब्दों के साथ साथ उसके अंदर का सारा क्रोध, सारी ईर्ष्या आँसुओ के साथ बह रही थी, कमरे में उपस्थित हर व्यक्ति की आँखे नम हो गईं थीं , नायक जी कुर्सी के हत्थे पे अपना सिर रखे एक साथ से अपना सीना दबाए सिसक रहे थे, खिड़की के पास खड़ा राहुल मुकेश जी के सीने में सिर गड़ाए सिसक रहा था।

थोड़ी देर बाद नीति उठ कर नायक जी के पास आईं और उनके पैरों के पास बैठकर हाथ जोड़कर बोली,  "मैंने बाद में आप को संभाला तो मुझे पता चला कि आप दोनों का प्रेम कितना गहरा था मुझे हर पल अपने अपराध का बोध होता रहा, मैंने कई बार रामायणी को ढूढने की कोशिश की पर वो नही मिली , कई बार आपसे सच कहने की हिम्मत की पर सच नही कह पाई, फिर नव्यम हमारी जिंदगी में आया तो मैंने सब भूल कर आगे बढ़ने में ही सबकी भलाई समझी "

"भलाई नहीं नीति, स्वार्थ , स्वार्थ समझा तुमने सिर्फ अपना स्वार्थ"नायक जी उसी तरह सिर झुकाए रोते हुए बोले

" ऐसा मत कहिये, मैं दुबारा आपको अकेले होते नही देखना चाहती थी, मुझे मेरा अपराध मंजूर है आप जो चाहें सजा दें , मैं सह लूँगी "नीति हाथ जोड़े रोती रहीं

" मैं तुम्हे क्या सजा दूँगा नीति, मैं तो खुद अपराधी हूँ , पति होकर अपनी निर्दोष गर्भवती पत्नी को मैंने त्याग दिया बिना ये जाने वो जीवित है भी या नहीं उसका तर्पण करा दिया, कभी उस बच्चे को ढूढ़ने की कोशिश नहीं की जो मेरा ही अंश था , .... रामायणी के मरने के बाद भी मैंने उसकी आत्मा को बुरा भला कहा , मैंने उसकी आत्मा को भी शांति नही मिलने दी मैं ही अपराधी हूँ " कहकर नायक जी ने नीति की तरफ़ से मुँह फेर लिया।

" अब हम सबने उसके साथ इतना अन्याय किया शायद तभी उसकी आत्मा हम सबसे बदला ले रही है , " बुआ जी डरते हुए बोलीं।

" जिसने जीते जी अपनों से बदला लिया उसकी आत्मा अपनों से बदला क्यों लेगी भला दीदी" दरवाजे से आई रुँधी हुई आवाज सुनकर सबने चेहरा उठाकर दरवाजे के तरफ देखा ।

दरवाजे पे रामायणी खड़ीं थी जिन्हें भूत समझकर बुआ बेहोश हो गईं , नायक जी कुर्सी छोड़कर रामायणी कहते हुए खड़े हो गए वो उनके पास जाने को दो कदम बड़े ही थे कि तब तक " माँ" कहकर रोता हुआ उनके सीने से लग गया । 

" बस बच्चे , बस, रोते क्यों हो , सच स्वीकार करना सहज नहीं होता लेकिन जो विचलित न हो वही तो इंसान होता है ना, फिर तुम ही तो कहते हो हमेशा कि टेंशन वाली कोई बात नहीं तो अब क्यों विचलित हो रहे हो बच्चे" रामायणी राहुल के सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए बोलीं। 

आँखों मे आँसू भरे नायक जी ने रावत जी आगे आकर हाथ जोड़ लिये
" तुम्हारे पिताजी जब तुमसे नाराज होकर तुम्हारा घर छोड़कर चले गए थे न नायक तभी मुझे उनसे पता चला कि तुमने मेरी देवी जैसी पवित्र बहन को घर से निकाल दिया है, मैंने उसे सब जगह ढूंढा और आखिर में एक स्वयं सेवी संस्था में पाया जो खुद रामायणी के नाम से तुमसे खुलवा रखी थी वहाँ से रामायणी मेरे साथ आ गईं मुझे पता चला वो ख़त मेरे ही लिखे थे जिनका किसी ने दुरूपयोग किया मेरी ही बहन के ख़िलाफ़ ,पर रामायणी ने मुझे अपनी क़सम से बांध रखा था , इतने सालों में उसने ख़ुद अपना व्यापार खड़ा किया , ये पैलेस भी उसी ने खरीदा है , जिसका नाम का मालिक मैं हूँ , मैने कई बार चाहा उसकी किसी अच्छे लड़के से शादी करा दूँ लेकिन उसने कभी तुम्हारे अलावा किसी को देखना तक जरूरी नही समझा और तुम इतने गिरे हुए निकले कि उसकी आत्मा तक को कोस रहे थे"  मुकेश जी नायक जी को धिक्कार से सुनाते जा रहे थे  , कई सालों के गुस्सा उनका एक साथ निकल रहा रहा था और नायक जी सिर झुकाए हाथ जोड़े सुने जा रहे थे।

" बस कीजिये भैया , बस कीजिये , जिसकी जितनी ग़लती थी वो सब स्वीकार कर चुके हैं , अब बस कीजिये और चलिए यहाँ से" कहकर रामायणी जाने के लिए मुड़ गईं कि नायक जी ने आगे बढ़कर उनका हाथ पकड़ लिया 

" नही , रमा , अब मैं तुम्हे नहीं जाने दूँगा , तुम जो सजा दो मेरे सिर आँखों पर , मैं तुम्हारा अपराधी हूँ , मुझे सजा दो, या तो अब मुझे छोड़ कर मत जाओ या फिर मुझे इस पश्चाताप की अग्नि में जल कर खत्म हो जाने दो रमा" नायक जी ने रामायणी के पैर पकड़ लिए और फ़ूट फ़ूट कर रोने लगे , रामायणी नीचे ही बैठ गईं
और उनका चेहरा अपने हाथों में लेकर बोली,  " मैं तो कभी आपको छोड़ कर नही गई , मैंने तो हमेशा आपको अपने आस पास ही पाया है, पर मैं वापस नहीं आ सकती , आप चाहें तो राहुल को ले जायें वो आपका बेटा है मैं मना नही करूँगी,और मेरे पास इस समय कुछ नही जो आपको दे सकूँ" 

" तुम इतनी महान हो रमा कि अपना सम्मान , जीवन , प्रेम सबकुछ मुझ पर बर्बाद करके अपना बेटा भी मुझे दे सकती हो पर मैं अभी इतना नीच नहीं हुआ हूँ कि तुम्हारा सब कुछ छीनने के बाद तुम्हारा बेटा भी तुमसे छीन लूँ, ये मेरा बेटा है पर इसपे हक सिर्फ़ तुम्हारा है, मैं समझता हूँ तुम अब मुझे अपने लायक नही समझतीं इसलिए वापस नहीं आना चाहतीं लेकिन मैं वादा करता हूँ मैं खुद को तुम्हारे लायक बनाऊँगा अपने सारे पापो का प्रायश्चित करूँगा और अपनी रमा को अपने साथ ही लेकर जाऊँगा" नायक जी की बातें सुनकर रामायणी जी ने अपने आँसू पोंछे और उठ खड़ी हुईं , वो जाने को मुड़ीं कि नव्यम उनके सामने आ गया , 

" मत जाइए बड़ी माँ , पापा आपके बिना नहीं रह पाएंगे, मैंने बचपन से ही उनके अलमारी में छुप छुपकर आपकी तस्वीरें देखी हैं, पापा आज भी आपसे बहुत प्यार करते हैं , वो सब एक ग़लतफ़हमी थी जो किसी ने जान बूझकर पैदा की थी , प्लीज सबको माफ़ कर दीजिए , प्लीज" 

रामायणी ने नव्यम के सिर पे हाथ फेरकर कहा " ख़ुश रहो" और नम आँखों से कमरे से बाहर चलीं गईं। रावत जी भी बिना किसी की तरफ़ देखे कमरे से बाहर चले गए

नव्यम ने सहारा देकर नायक जी को खड़ा किया और राहुल से पूछा " तुम भी मेरे पापा को माफ़ नही करोगे क्या, तुम साथ दोगे तो हम बड़ी माँ को भी मना लेंगें" 

"माफ़ कर दो बेटा , मैंने इतने सालों तक नायक जी को खुद से जूझते देखा है , वो भी तुम सबसे दूर होकर कभी खुश नही रहे" जगदीश जी राहुल को समझाते हुए बोले

" आ जा न यार , प्लीज, अब तो बड़ा भाई भी है तू , कर दे ना माफ " नव्यम ने राहुल के पास आकर कहा।

राहुल रोते हुए नव्यम के गले लग गया। 

नीति चुपचाप सब सुनती रहीं , रामायणी से माफ़ी माँगने की भी उनमें हिम्मत नही रह गई थी। 

राहुल और नव्यम को गले लगा देख स्नेहा और कल्पना मुस्करा दीं। 

" अब तक मैं अकेला आपका सिर दर्द था न पापा, अब हम दोनों भाई आपको परेशान करेंगे " नव्यम ने नम आँखों से हँसते हुए कहा और नायक जी ने अपने दोनों बेटों को गले से लगा लिया।

...........


" जिस बुरी आत्मा के खौफ में हम इतने सालों से थे वो जिंदा थी , फ़िर कबिता किसे देखा करती थी ,किससे बातें करती थी, इतने सारे अपशकुन होते रहते थे वो सब क्या थे"  जगदीश जी बोल रहे थे।

" सब मन का भरम है जग्गू , देखो तो सही रामायणी का उस दिन का रौद्र रूप देख सब सहम गए थे , मैं तो ख़ुद इतना डरती आई थी अब तक कि आज सुबह रामायणी को देखकर मैं बेहोश ही हो गई, बिना जाने कुछ भी मान लेते हैं हम लोग फिर वही डर बना के पाल लेते हैं और क्या " बुआ सबको समझाते हुए बोलीं । 

कमरे में बैठे स्नेहा , कविता , जगदीश और नीति उनकी बातों को सुन रहे थे।

"मैंने और रामायणी ने गोद भराई से पहले एक दूसरे को वादा किया था कि हम अपने बच्चों की शादी आपस मे करवाएंगे लेकिन वो चली गई और समय के साथ मेरे मन मे ये डर बैठ गया कि कल्पना उसकी अमानत है और वो उसे मुझसे दूर ले जाएगी , अपनी प्यारी सखी को खोने का ग़म भी मैं सह नही पा रही थी , शायद इन्हीं सब वजहों से हम सबने मिलकर इतना बड़ा भरम खड़ा कर लिया।" कविता जी उदासी भरे शब्दो मे बोलीं।

"मैंने उसके साथ ग़लत किया, उसका परिवार उजाड़ दिया, इसी का डर मेरे अंदर था कि बो भी मेरा परिवार उजाड़ देगी, मैंने इसी डर के चलते नायक जी से उसके  जिंदा होते हुए भी उसका तर्पण करवा दिया, मेरा डर मेरे ही अपराधों का परिणाम था जिसका दोष मैं हमेशा उसे ही देती रही।"
नीति ने सुबकते हुए कहा।

" कोई बात नही आंटी , अब आपने स्वीकार कर लिया है तो थोड़ा टाइम लगेगा लेकिन सब आपको माफ़ कर देंगे, और मम्मी अब आपको भी डरने की जरूरत नहीं , बस अब शाम को खुशी खुशी सगाई की तैयारी करनी है बस, आप सब ऐसे मुँह लटकाए बैठे रहेंगे तो कल्पना दीदी भी अपनी सगाई अच्छे से एन्जॉय नही कर पाएंगी " स्नेहा सबसे बोली।

" देखो तो सही जग्गू , तुम्हारी एक लड़की तो कम से कम मुझ पर गई है, अब यही सब संभालेगी मेरे बाद" बुआ स्नेहा के सिर पर हाथ फेरती हुई बोलीं ।

स्नेहा मुस्कुरा दी 

" अच्छा अब मेरे साथ मन्दिर चलेगी , सब अच्छा हो गया सब भरम दूर हो गए इसके लिए ठाकुर जी को धन्यवाद कहना तो बनता है ना " बुआ जी ने कहा

" हाँ जरुर बुआ जी , आपका हुकुम सिर आँखों पर" स्नेहा ने इस अदा से कहा कि सब मुस्कुरा दिए।

..........

" माँ दिखाई नहीं दे रहीं , कहाँ हैं , आपके कमरे में भी नहीं थीं"
स्नेहा की आवाज सुनकर राहुल पीछे मुड़ा जो उस वक्त पैलेस के सबसे बड़े हॉल में सगाई की सारी तैयारियों का आखिरी टच अप चेक कर रहा था।
लेकिन हॉल की सारी डेकोरेशन उसे स्नेहा की आँखों से कम ही सुंदर जान पड़ीं ।

" कविता आंटी अपने रूम में होंगी ,  वहाँ जाकर देखो , मेरे रूम में क्यों गईं आप" 

"मैं अपनी नही आपकी माँ की बात कर रही हूँ " 

"तो खुद क्यों बोल रही हो कि माँ दिखाई नही दे रहीं " 

" क्यों मैं आपकी माँ को माँ नही बोल सकती "

" नही बोल सकतीं आप"

" क्यों यहाँ आपका रूल काम नही करता क्या " 

"क्या.."

" कुछ नहीं " स्नेहा कहकर जाने को मुड़ गई कि राहुल ने उसे रोक लिया ।

" नहीं , दुबारा बोलो , तुमने क्या कहा अभी " 

"नहीं बोलूँगी जाओ "

" बड़ी जिद्दी हो , ख़ैर बताओ माँ को क्यों ढूढ़ रही हो "

"वो मैने और जीजू ने एक प्लान बनाया है उनको ये फील करवाने के लिए कि नायक अंकल अब भी उन्हें बहुत चाहते हैं लेकिन इसके लिए उनका सगाई में होना बहुत जरूरी है"

" अच्छा , ठीक हैं ,माँ यहाँ नहीं रुकीं वो मन्दिर के पास वाले हमारे घर में रुकीं हैं , अभी जाएगा नव्यम उन्हें सगाई में लाने के लिए , शायद आ ही जाएँ"

"मन्दिर तो मैं भी जाने वाली हूँ अभी बुआ जी के साथ, वैसे कितना अच्छा होगा कि वो दादा जी फिर से मिल जायें मन्दिर में, उन्होंने जो भी कहा था सच कहा था बिल्कुल" 

"तुम्हे कैसे पता उन्होंने क्या कहा" राहुल चौंका।

" अरे, मुझसे कहा था तो मुझे ही पता होगा न" स्नेहा उसे समझाते हुए बोली।

" ओह , अच्छा क्या कहा उन्होने वैसे" राहुल ने पूछा

"जब बुआ  रो रो कर उन्हें सब बता रही थीं न तब उन्होंने कहा कि बिना जाने किसी भी चीज़ को मान लेना अंधविश्वास है और बिना जाने नकार देना भी अंधविश्वास है पर जब आधा जानकर उसे ही सच मान लिया जाये तो वो जानलेवा होता है, अब देखो , हम सब बिना ये जाने कि रामायणी माँ जीवित हैं उनसे डर रहे थे इतने सालों से वो भी इतना कि मम्मी तो किस कदर बीमार हो गईं ये आप भी जानते हैं और  इतने साल पहले नायक अंकल ने भी बिना पूरी बात जाने उन एडिटेड खतों पर ही भरोसा कर लिया इसलिए पूरी बात जाने बिना कभी किसी चीज को मानना नही चहिए" स्नेहा ने पूरी बात उसे बड़ी तसल्ली से समझाई।

" हम अब भी ग़लती कर रहे हैं स्नेहा " राहुल चिंतित स्वर में बोला।

"मतलब ?, अब तो सब सही हो गया न" स्नेहा ने पूछा ।

" नहीं , हमने अपनी पहली ग़लती ठीक की है, दूसरी ग़लती अभी भी हम कर रहे हैं , हम बिना पूरी बात जाने उसे नकार रहे हैं " 

"मतलब, मैं कुछ नही समझ पा रही"

" मैं समझाता हूँ , चलो मेरे साथ" 

राहुल स्नेहा को लेकर अपने केबिन में आया , जल्दी जल्दी उसने अपनी टेबल का लॉकर खोला , फिर तुरन्त उसने करण को कॉल किया जो स्विच ऑफ बता रहा था।

" क्या हुआ" स्नेहा उसे इतना परेशान देख कर डर गई।

"वो बेंदा मैने यहीं रखा था वो गायब है, रावत सर के आने के बाद से करण भी गायब है, बहुत बड़ी ग़लती कर दी हमने, बहुत बड़ी " और अपना सिर पकड़ कर राहुल वहीं कुर्सी में बैठ गया।

क्रमशः ....


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