कहानी- बड़े घराने की बहू
भाग - 27
लेखिका - आस्था जैन "अन्तस्"
श्रेणी- हॉरर, सस्पेंस-थ्रिलर, आध्यात्मिक, स्त्री-विमर्श
....
" ये लीजिये बाबा, आपका हार, और ये बाकी के गहने "
स्नेहा ने एक पोटली तान्त्रिक मानिक को देते हुए कहा, वो तय समय के मुताबिक सुबह उस जंगल मे मानिक को बाकी के गहने देने आई थी ।
" मुझे पता था तुम जरूर मेरा साथ दोगी, हहहह....... उस राहुल के आने का कितना इंतजार किया मैंने, लेकिन उसके अंदर का तांत्रिक तमस तो मर ही गया है , पर कोई बात नहीं अब मानिक बनेगा महातांत्रिक......... मैं करूँगा ये तंत्र पूरा" मानिक ने वो पोटली लेकर हँसते हुए कहा।
"पर बाबा, उसके लिए तो 2 बलि और चाहिए, पर मेरी या मेरी दीदी की शादी तो उस घर में हुई ही नही है " स्नेहा ने तांत्रिक से कहा।
"हाँ , अब होगी भी नहीं, क्योंकि राहुल से तुम्हारी शादी , रानी साहिबा कि आत्मा को नाराज करना है, और इससे पूरा तंत्र नष्ट हो सकता है, और कल्पना की भी शादी नही हो सकती क्योंकि उसे और बाकी सब को उस दयान ने भरम जाल की मदद से बाहर भेज दिया है, है ना" मानिक ने कुटिल मुस्कुराहट के साथ कहा।
स्नेहा दो पलों के लिए स्तब्ध रह गई फिर दुनिया भर का आश्चर्य अपने चेहरे पर बिखेर कर बोली, " आपको कैसे पता, वाह बाबा, आप तो अंतर्यामी हैं, आप ही उस राहुल से मेरा बदला लेने में मेरी मदद कर सकते हैं ,मुझे आपके चरणों की धूल लेने दीजिये बाबा" कहकर वो बाबा के पैर छूने के लिए झुकी ।
मानिक,- " हहहहहहह...... , अरे तुम देखती जाओ , ये बूढ़ा तांत्रिक इस तंत्र के पूरा होते ही अनन्त शक्तियों का स्वामी हो जाएगा, और वो भ्रमजाल की अवधि तो तीन पहर पहले ही समाप्त हो चुकी है "
स्नेहा - "ओह , तब तो आपको ये भी पता होगा कि उन सब लोगों ने दददू..... "
" उन सब लोगो ने नहीं, तुम सब लोगों ने ... तुम सब लोगों ने देखा था उस विनायक का जीवन, है न " मानिक ने उसी कुटिलता के साथ पूछा।
" हाँ, हाँ वो मैं भी थी साथ , मैं नही साथ आती तो उन लोगों को मुझपे शक हो जाता न इसलिए" स्नेहा ने सहज दिखते हुए कहा।
मानिक- " ओह्ह, कोई बात नहीं ,वे लोग न पहले कुछ कर पाए न अब कुछ कर सकते हैं, सारे गहने मेरे पास हैं और मेरी दोनो आहुति भी , रामायणी और नीति दोनों ही उस घर की बहू हैं , बस इंतजार आज रात का है"
स्नेहा - "पर वो सब लोग वहीं हैं , नायक अंकल, दयान, नव्यम, राहुल इन सबके रहते विधि कैसे होगी"
मानिक - " हहहहहहह....., तुझे अभी कुछ नही पता है लड़की, अरे आहुति की रात वो महल खुद पिशाच बन जाता है , और ये तो आखिरी आहुति है, सारी आत्माए अपने क्रोध और प्रतिशोध की आग में पूरी तरह जल रही होंगीं, संसार की सारी काली शक्तियाँ इस महा तंत्र की साक्षी बनने आएंगी, इतने भयावह वातावरण में उनमे से कोई जीवित ही नही बचेगा, मौत के तांडव में कोई न कोई शक्ति उन्हें अपने क्रोध का ग्रास बना ही लेगी, हम आराम से उस कुंड में दोनों आहुतियाँ देंगें , और तुम्हारा भी बलिदान किया जाएगा और तुम्हे अपना बदला लेने के लिए क्या करना है ये तुम अच्छी तरह जानती हो "
स्नेहा - " जी बाबा, जैसा आपने बताया था , मैं वैसा ही करूँगी , आप फिक्र मत करिए, बस ऐसा कुछ कर दीजिए कि वो लोग दिन में कहीं भाग न जाएँ"
मानिक -" अब तो उनका महल से निकलना ही असम्भव है, उनका भ्रमजाल खत्म हो चुका है, और ऊर्जाचक्र दुबारा बना सकने की सकारात्मक शक्ति अब उनके अंदर बचेगी ही नहीं क्योंकि अब इन गहनों के मिलने के बाद मैं अब उन सबको बेहोश कर दूँगा , उन्हें होश अब सिर्फ आहुति के वक्त आएगा"
स्नेहा - " माफ करना बाबा, रात को मेरी भी आहुति चढ़ जाएगी, पर उससे पहले मैं जानना चाहती हूँ कि ये तंत्र इन आत्माओं को न्याय कैसे दिला पायेगा"
मानिक -" उस काले रक्त के कुंड में आखिरी आहुति का काला रक्त मिलते ही सभी आत्माएं राठौड़ घराने की बहुओं की आत्माओं के साथ अनन्त शक्तियों को प्राप्त करके उन सबका नाश करेंगी जिन्होंने उनके साथ अन्याय किये हैं, और कुछ जानना है?"
स्नेहा - " जी बाबा, आपको शक्तियाँ कैसे मिलेंगी"
मानिक - " जो पुरूष इतनी स्त्रियों की आत्माओं का उद्धार
करेगा , उसे तो सहज ही शक्ति प्राप्त होगी, अब जाओ और जाकर उन दोनों को आहुति के लिए मनाओ , अगर उनके अंदर भी तुम्हारी तरह एक औरत जिंदा होगी तो वो भी इस महान तंत्र का हिस्सा बनने तैयार हो जाएंगी वरना हमे फिर मजबूरन बल का ही प्रयोग करना होगा"
स्नेहा ( हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए ) - जी बाबा जी।
......
स्नेहा को आज पैलेस का बगीचा बिल्कुल उसी तरह मनहूस , खौफ़नाक और निर्दयी पिशाच सा मालूम हो रहा था जैसा उसने पदमा देवी की स्मृति में जाकर देखा था , और वो पैलेस खुद जीती जागती मृत्यु के जैसा।
वो अपने पैलेस की दूसरी मंजिल पे अपने कमरे की खिडकी से खड़ी बाहर देख रही थी, नीति अंदर बैठी आँसू बहा रही थीं और रामायणी उन्हें संभाल रहीं थीं, उन सबको लगा था कि उस तान्त्रिक की योजना स्नेहा से पता करवाके वो सब उसका तोड़ निकाल लेंगें लेकिन गहने मिलते ही सब उल्टा हो गया था , नायक, नव्यम , दयान और राहुल चारों ही बगल के कमरे में बेहोश पड़े थे।
" जब तक इन सबको होश नही आता, तब तक हम कुछ नहीं कर सकते, और जब तक इन्हें होश आएगा तब तक हम सब भी भूत बन चुके होंगें" नीति ने रोते हुए कहा।
" कुछ न कुछ रास्ता जरूर निकलेगा नीति, शांत हो जाओ, सबको होश आया जाएगा जल्द ही, मेरा मन कहता है राहुल के दददू जरूर आएंगे सब कुछ ठीक करने" नीति को समझाते हुए रामायणी ने कहा।
" आखिर कब आएंगे दददू, शाम तो हो चुकी है , रात होने ही वाली है , अब कब आएंगे दद्दू जब सब खत्म हो चुका होगा" नीति क्रोध में बोलीं।
" अब हम किसी का इंतजार नही कर सकते, लड़ाई हमारी है, हमें ही लड़नी है, किसी और का इंतजार क्यों करना अब, अगर अब देर की तो बहुत देर हो जाएगी " स्नेहा ने मुड़ते हुए कहा।
नीति- " पर हम अकेले कैसे लड़ पाएंगे बेटा , उस तांत्रिक से वो तो बहुत शक्तिशाली है"
रामायणी- " उसके पास अगर काली विद्या की शक्ति है तो हमारे पास सत्य स्वरूपी ॐ कार की शक्ति है, हम हार नहीं सकते, चलो स्नेहा, अब इंतजार बहुत हुआ, हमे खुद ही नीचे की मंजिलों में जाकर उन आत्माओ का आव्हान करके उनसे बात करनी होगी "
स्नेहा ने आगे बढ़कर कमरे का दरवाजा खोल दिया और जो उसने बाहर देखा वो देख कर उसका शरीर ठंडा पड़ गया , दरवाजा बंद करने तक की भी शक्ति नहीं रह गई उसमें ।
स्नेहा को तुरन्त पीछे खींचकर रामायणी ने दरवाजा बंद कर दिया।
"क्या हुआ रमा, क्या है बाहर, क्या हुआ स्नेहा को?" हड़बड़ाई सी नीति ने दरवाजे के पास आते हुए कहा।
" ये सब क्या है माँ, इतने ...... इतने सारे , क्या हैं वो , वो ..." स्नेहा ने डरते हुए कहा
" पता नहीं , शायद आहुति की रात यहाँ और भी बुरी शक्तियां आती हों , इसीलिए ये सब आये हों , और पूरे पैलेस में भटक रहे हों" रामायणी ने उसके हाथ मलते हुए कहा।
नीति को कुछ समझ नहीं आया, उसने हल्के से दरवाजा खोलकर उसमे से बाहर झाँका तो कई सारे काले साये उस गलियारे में घूम रहे थे और तभी इस साये ने मुड़कर नीति की तरफ़ देखा और उसकी उसके धुंए जैसे चेहरे की बिल्कुल सफ़ेद आंखों ने नीति को घूरा तो नीति ने झट से दरवाजा बंद करके मुँह फेर लिया।
" रमा, अगर इन काली आत्माओ ने हमे मार डाला तो, या फिर वो बगल के कमरे में चली गईं तो, वो सब तो बेहोश पड़े हैं " नीति ने रामायणी के पास आकर कहा।
"टक, टक....." दरवाजे पे किसी चीज के टकराने की हल्की सी आवाज़ हुई और तीनों सहम कर एक दूसरे के नजदीक आ गईं।
" आआहो..... उच्छ खड़ नादि" एक फुसफुसाती सी आवाज दरवाजे के उस पार से आई जिसके शब्द एकदम मनहूस थे जैसे किसी कब्र में कोई बड़बड़ा रहा हो ।
दरवाजे के दोनों हैंडल टूट कर जमीन पर गिर पड़े ।
एक गोलाकर चीज़ काले कपड़े से ढकी हुई उस दरवाजे के आर पार निकल आई, वे तीनों कई कदम पीछे हो गईं । वो गोल चीज़ पूरी तरह तीन बार घूम गई, फ़र्श पर कुछ पानी सा टपका और वो काला कपड़ा उसपर से हटकर हवा हो गया और जो सामने आया उसे देखकर उन तीनों की दिल दहला देने वाली चीख़ निकल गई।
सामने एक बेहद डरावना चेहरा था जैसे किसी मुर्दे का हो, उसके कटे फ़टे चेहरे से हरा रंग का कुछ बह रहा था, उसकी आँखें खाली थीं, उसका माथा कटा हुआ था जिसमे से काला लाल रक्त बूँद बूँद करके कमरे के फ़र्श पर टपक रहा था , उन तीनों को देखकर उस चेहरे ने अपने मुँह से एक लंबी काली ज़ुबान बाहर निकाल कर अपने होंठों पर फ़ेरी और उस जुबान को उन तीनों पर फेंक कर उन्हें उसमें जकड़ लिया,
उस काली बदबूदार जीभ की जकड़ से उन तीनों की साँस घुटने लगी और जगह जगह शरीर पर घाव भी हो गये, वो उस जीभ से उस मुँह में जातीं तभी भड़ाक से कमरे का दरवाजा खुला और एक मन्त्र पढ़ते हुए मानिक ने कुछ एक ख़ंजर उस जीभ पर चला दिया।
वो काला चेहरा अब फिर से काले कपड़े में था , उसकी जीभ से वो तीनों आज़ाद होकर एक तरफ खड़ी हो गईं, उनके शरीर पे हुए घावों से खून के साथ साथ खौफ़ भी बह रहा था।
" तुम सबकी दावत ऊपर की मंजिलों पे है, वहाँ जाओ, बहुत कुछ लज़ीज़ है वहाँ , ये तीनों आज की आहुति है और अंतिम आहुति है, इनके रक्त का स्वाद तुम नहीं ले सकते , जाओ" मानिक ने गरजते हुए कहा।
वो चेहरा भी काला साया बनकर बाकी सब सायों के साथ शामिल हो गया ।
" डरने की जरूरत नहीं है , ये शैतानी ताकते हैं, हर आहूति पर आती हैं, आज तो अंतिम आहुति है इसलिए बहुत सारी ऐसी शक्तियाँ देखने को मिलेंगीं, पर तुम लोगों का ये कुछ नहीं कर सकतीं , अब आओ मेरे साथ, आहूति की विधि आरम्भ करनी है, तुम दोनों तैयार तो हो न" मानिक ने अपने ख़ंजर पर लगे काले लाल रक्त को अपनी सफ़ेद हुई दाढ़ी से पोंछते हुए कहा।
रामायणी और नीति दोनों ने हाँ में सिर हिला दिया और तांत्रिक का इशारा पाकर तीनों उसके पीछे चल दीं ।
गलियारे से लेकर हॉल और नीचे केबिन तक के कमरे में वो साये उन्हें ऊपर जाते हुए दिख रहे थे ।
सीढ़ियाँ उतरते हुए नीति ने बड़ी हिम्मत करके तांत्रिक से पूछा - " ये भूत हमारे बच्चों , दयान और हमारे पति को तो कुछ नहीं करेंगे न बाबा"
मानिक ने एक शैतानी हँसी हँसते हुए कहा- " प्रेत, आत्माएं, पिशाच, भूत, चुड़ैल, डाकिनी, पिशाचिनी, माया, विद्या, डायन, अर्द्ध मुर्दे , असुर, तंत्र, श्राप, कोई भी काली शक्ति हो , एक सोते हुए मानव पे अपना असर नहीं कर सकती, फिक्र मत करो , वो सब तभी मरेंगे जब होश में आयेंगे , हहहह....."
नीचे के कमरे में उतर कर उन तीनों ने देखा कि रानी साहिबा वहीं खड़ीं थीं, नीति और रामायणी को देखकर वे मुस्करा दीं उनका चेहरा आँसुओ से भीगा हुआ था , कमरे में से उन तीनों के बाहर निकलते ही वो भी उनके पीछे ही चलने लगीं , हर कमरे से एक एक करके सभी आत्माएं उनके पीछे चलीं आ रहीं थीं ।
वे तीनों गौर से एक एक को उस कमरे से निकलती हुए देखती जा रहीं थी, किसी कमरे से बिल्कुल जली हुई कोई स्त्री निकल रही थी तो कोई तेजाब से गली हुई थी, किसी के शरीर पर अनगिनत घाव थे , किसी का शरीर बिजली के करंट से काला पड़ चुका था , किसी का गला कटा हुआ था , तो किसी के सीने में ख़ंजर घोंपा हुआ था, किसी के लंबे घूँघट में कुछ दिखता ही न था बस रक्त से उस घूँघट का रंग लाल हुआ जाता था।
चौथी मंजिल तक आते आते, स्नेहा, रामायणी और नीति के अंदर खौफ़ की जगह दर्द और सहानुभूति ने ले ली थी । उनकी आँखों से क्रोध और पीड़ा के आँसू बहे जा रहे थे और उनके पीछे राठौड़ घराने की 6 पीढ़ियों की 7 बहुओं के साथ साथ और भी अनगिनत आत्मायें इकठ्ठा हो चुकी थीं ।
और उन सबके आगे चल रहा था तांत्रिक मानिक जो अब उन सभी की पीड़ा को अपने छल से अनन्त पीड़ा में बदलने वाला था।
.........
" कबसे सोया पड़ा हूँ मैं , मैं सोया कैसे, ये क्या ....... ये रात कैसे हो गई, भाई...... ,पापा ......, दयान...... , अरे कोई तो उठो, रात हो गई और हम सब सोए पड़े हैं यहाँ ,उठो भाई... "
एक दम होश में आया नव्यम हड़बड़ाते हुए बाकी सबको को होश में लाने की कोशिश कर रहा था।
धीरे धीरे सभी होश में आ गए थे ।
" माँ कहाँ हैं नव्यम , स्नेहा कहाँ हैं , हम सब बेहोश कैसे हो गए , चलो जल्दी यहाँ से " राहुल ने सबसे कहा और दरवाजा खोल दिया ।
दरवाजा खुलते ही उसके प्राण उसके गले मे आकर सूख गए। बाकी तीनों ने भी वो भयानक नजारा देखा।
दयान ने झट से दरवाजे को बंद कर लिया।
"ये सब क्या है.... " राहुल ने सदमे से कहा।
" ये सब वो हैं जिनका हम भोजन बनने वाले हैं ...." दयान ने मरी हुई आवाज में कहा।
" क्या ..... इन सबने माँ और स्नेहा के साथ तो कुछ..." राहुल ने डरते हुए कहा, इस आशंका से नायक और नव्यम भी बुरी तरह हिल गए।
दयान - " नहीं , वो आहुति हैं उन्हें ये छू भी नहीं सकते लेकिन हम तो इस कमरे में भी सुरक्षित नहीं है , हम होश में आ गए हैं , कभी भी हमारी इंसानी गन्ध इन तक पहुँच जायेगी और हम बच नहीं पायेंगे "
" फिर हम माँ और स्नेहा को कैसे बचाएंगे , हम तो उन आत्माओ का उद्धार करने निकले थे,अब अपनी आत्मा ही संकट में आ गई " कहकर नव्यम अपने दोनों हाथ अपने सिर पर रख कर जमीन पर बैठ गया।
नायक जी ने राहुल के पास आकर कहा - " इतना बड़ा महल है ये राहुल बेटा, तुम तो कबसे यहाँ हो , क्या यहाँ कोई मन्दिर नहीं देखा तुमने, अगर यहाँ राजघराना रहता था तो कोई मन्दिर भी होना चाहिए , अगर यहाँ मन्दिर हो तो वहाँ हम सब सुरक्षित रह सकते हैं और तुम्हारी माँ और स्नेहा को भी ढूंढ कर वहाँ सुरक्षित कर सकते हैं"
दयान - " नहीं काका जी, अगर यहाँ कोई मन्दिर होता तो इतना बड़ा काला तंत्र स्थापित ही नहीं होता "
राहुल - " हाँ पापा, मेरी स्मृति के हिसाब से उस राजघराने के लोग अपने इष्ट देवता की मूर्ति भी साथ ही ले गए थे"
नायक - " वो मूर्ति रखी कहाँ थी, वो जगह याद करो, जहाँ देवता की प्राण प्रतिष्ठा होती है वो स्थान भी पवित्र और सकारात्मक हो जाता है ऐसा तुम्हारे दददू कहते थे बेटा, याद करो कुछ"
राहुल - " ऐसी तो कोई जगह मुझे याद नहीं पापा और अगर होगी भी तो अब तक इतने तंत्र मंत्र और बुरी आत्माओं के प्रभाव से नकारात्मक हो चुकी होगी "
नव्यम अचानक से उठ खड़ा हुआ और बोला - " आपकी बीवी, राहुल भैया , आपकी बीवी वो रानी साहिबा, वो तो बहुत अच्छी थीं न तो वो भी कुछ पूजा पाठ कुछ ध्यान कुछ तो करती होंगीं न , क्यों न उनके कमरे में ही चलें "
" रानी साहिबा का कमरा ...... " राहुल को कुछ याद आया और उसके दिमाग मे उम्मीदों के कई दिए जगमगा उठे ।
क्रमशः......
2 Comments
Jis ghadi ka Intjar tha vo aa gya h Raj se parda uth chuka hai dekhna ye h ki ye sb kaise khatm hoga
ReplyDeleteHmmm, mai khud bahut excited thi end likhte time
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