कहानी- बड़े घराने की बहू
भाग - 28
लेखिका - आस्था जैन "अन्तस्"
श्रेणी- हॉरर, सस्पेंस-थ्रिलर, आध्यात्मिक, स्त्री-विमर्श
....
Part 28 

" अगर रानी साहिबा के कमरे तक सही सलामत पहुँच जाएँ तो फिर उस कुंUUड तक पहुंचना आसान होगा, रानी साहिबा के कमरे में ये बुरी शक्तियाँ प्रवेश नही कर सकती "राहुल ने कहा

"वो भी तो आत्मा ही हैं , जैसी ये वैसी वो" नव्यम ने निराशा से कहा।

" नहीं नव्यम, अपनी स्वयं की पीड़ा में जल रही वो आत्माएं आज तक किसी निर्दोष  का अहित नहीं कर सकीं हैं ,वे आज भी पवित्र हैं, उन्हें छला जा रहा है, वे खुद बुरी नहीं हैं"नायक ने उसे उसे समझाते हुए कहा।

" मैं मन्त्र बोलता हुआ सबको साथ लेकर चलूँगा, मन्त्र के प्रभाव से उन्हें हम भी उनके जैसे प्रेत ही लगेंगे, वो हमें हानि नहीं करेंगे लेकिन छू सकते हैं इसलिए डरना नही है " अपने माथे पर से बाहर घूम रहे खौफ़ का पसीना पोंछते हुए दयान ने कहा तो नव्यम ने उसकी पीठ थपथपा दी।

आखिर में किसी तरह दयान के मन्त्रो के बल पर दूसरी मंजिल से उतर कर नीचे केबिन से होकर  रानी साहिबा के कमरे तक पहुँचने की योजना बनाई गई और बड़ी हिम्मत करके जान जोखिम में लेकर नायक जी कमरे से बाहर निकले  , पीछे उनका हाथ थामे मन्त्र बड़बड़ाता हुआ दयान   और दयान का हाथ पकड़े राहुल और राहुल का हाथ पकड़े नव्यम , चारों एक पंक्ति में चल रहे थे, चारों ओर काले सायों से बचकर चलते हुए चारों नीचे की मंजिल तक आ गए ।

अजीब सी कँपकँपी , डर, बदबू , ठंड और जलन सब कुछ एक साथ झेलते हुए चारों केबिन तक आ पहुँचे , बीच में एक बार नव्यम का हाथ राहुल से छूट गया था पर उसने तुरंत ही नव्यम का हाथ पकड़ लिया था।

रानी साहिबा के कमरे की सीढ़ियों का रास्ता खुला हुआ था ,सीढ़ियों से उतरते हुए नव्यम ने फिर से राहुल का हाथ छोड़ दिया तो राहुल ने झुंझलाते हुए पीछे मुड़ कर कहा 
"अब क्या हुआ...आ" और उसका मुँह खुला ही रह गया ।

उसके पीछे खड़े साये ने रोती हुई आवाज़ में जवाब दिया,
" इससे ... आगे .... नहीं ....जा... सकता " 
और पीछे मुड़कर वापस चला गया ।

" नव्यम कहीं रह गया , पापा ,मैं वापस ज रहा हूँ उस लेने " राहुल ने मरी हुई आवाज़ में कहा तो नायक जी अपने आपको संभाल नहीं पाए वापस सीढ़ियों पर चढ़ने लगे तो दयान ने उन्हें रोकते हुए कहा - " अब वो वहाँ नहीं मिलेगा, अब तक तो उन प्रेतों ने उसे .... " 

" पर वो अकेला है , डर रहा होगा , मैं लेकर आता हूँ उसे " राहुल ने वापस ऊपर आकर कहा।

" आप यहीं रुकिए काका, मैं राहुल के साथ जाता हूँ" कहकर दयान भी राहुल के साथ चला गया और नायक जी उसी कमरे में बैठे रह गये।

" क्या मैं अपने बेटे के मोह में उस पाप को नहीं रोकूँगा जिसकी वजह से मेरे परिवार और न जाने किन किन घरों की बेटी बहुओं की आत्माएं मर कर भी मरने की पीड़ा भुगत रही हैं... नहीं" मन मे निश्चय होते ही नायक जी उठ खड़े हुए और  नीचे चल दिये।

........
सभी आत्माएं उस कुंड के चारों ओर हवा में घेरा बनाये थीं और आखिरी आहुति की प्रतीक्षा कर रहीं थीं।

नीति और रामायणी के सामने स्नेहा एक  थाल लिए बैठी थी। थाल में नौ गहने रखे हुए थे -हार, नथ, झुमकी, पायलें, कमरबन्द, बेंदा, कंगन, बाजूबंद और अँगूठी। 

तांत्रिक मानिक ने  एक ख़ंजर को उठाकर अँगूठी से मिलाया और दूसरे ख़ंजर को बाजूबंद से मिलाया और कुछ मन्त्र बड़बड़ाता रहा ।

" सारी विधियाँ पूरी हुईं , अब बस अंतिम विधि रह गई है, आहुति की विधि, ये सारी पीड़ित आत्माएं तुम दोनों के अंतिम बलिदान की प्रतीक्षा कर रहीं हैं , इनके जीवन , मृत्यु और मृत्यु के पश्चात की सभी पीड़ाओं को सार्थक करो, आगे आओ..नीति " हाथ में एक ख़ंजर लिए हुए कुंड के पास खड़े तांत्रिक ने नीति की तरफ़ देखते हुए कहा। दूसरा ख़ंजर भी उसने कुंड के पास की वेदी पर रख दिया।

" मैं ये आहुति नहीं दूँगी , ये छल है, ये झूठ है, कपट है तुम्हारा ..... " नीति ने खड़े होते हुए कहा , रामायणी भी उसके साथ उठ खड़ी हुईं ।

" क्या बकवास कर रही हो,  तुमने तो कहा था कि तुम दोनों खुद बलिदान दोगी , फिर क्या है ये सब .... " क्रोध में काँपते हुए तान्त्रिक ने कहा।

" हम ये आहुति नहीं देंगें, क्योंकि इससे हमारे ही वंश का नाश होगा, और ये सब आत्माएं अनन्त काल के लिये पीड़ा सहन करती रहेंगी " रामायणी ने आगे बढ़कर कहा।

तान्त्रिक क्रोध में अपने दांत पीसते हुए बोला - "तुम्हें क्या लगता है , ये बकवास करके तुम मेरा तंत्र विफल कर दोगी , हहहहह .... ये आत्माएं खुद ही तुम्हे आहूत कर देंगीं अपने क्रोध से ..... देखना चाहती हो कैसे .... "

उसने दोनों हाथ फ़ैलाकर आँखों से आँसू बरसाते हुए उन आत्माओं से कहा- " हे देवियों, तुमने जाने कितने अत्याचार सहे, अपमान सहे, शोषण सहे, कितना दर्द , कितना बलिदान दिया है  तुम सबने, एक औरत से कही ज्यादा एक देवी बन गई हो तुम सब , अपनी मौत के बाद भी खुद ही इस वीराने में रहना स्वीकार किया , पीड़ा स्वीकार की ताकि जो तुम्हारे साथ हुआ वो किसी और औरत के साथ न हो, लेकिन आज जब ये महा अनुष्ठान पूरा होने जा रहा है तो ये दो औरतें अपने स्वार्थ में अंधी होकर तुम्हारे तप को नष्ट करना चाहती हैं, बकवास करके इस महा बलिदान को खंडित करना चाहती हैं, मैं तो तुम देवियों का भक्त हूँ , मैं इन औरतों से जबरन आहुति नहीं ले सकता, अब तुम ही कुछ करो , वरना इस घराने का ये वरदान व्यर्थ हो जाएगा  ..... " 

फूट फूट कर तान्त्रिक रोये जा रहा था।

" आहुति देनी ही होगी ..... " कुंड से एक स्वर उभरा , जगदम्बा देवी अपने जले हुए हाथों को आगे बढ़ाकर रामायणी की गर्दन दबाते हुए बोलीं।

" ये तान्त्रिक झूठा है, ये आप सबके साथ छल कर रहा है, आप समझती क्यों नहीं .. कुछ नहीं होगा इस तंत्र से , किसी का भला नहीं होगा ,ये सब झूठ है" नीति उनके आगे हाथ जोड़कर बोली।

" झूठा है? हमारी पीड़ा, हमारी तपस्या भी झूठी है ? मेरे स्वामी ने मुझसे स्त्री समाज के उद्धार का जो वचन किया था क्या वो झूठा है? कैसे मान लें हम कि ये सब झूठ है ?" रानी साहिबा के दर्द से कंम्पित स्वरों से पूरा पैलेस ही दहल उठा।

"क्योंकि मैं कह रहा हूँ रानी साहिबा, ये सब झूठ है.... " राहुल  ने कुंड के कमरे में उतरते हुए कहा , पीछे दयान और नायक जी भी आये, नायक जी की आँखे लाल हो चुकी थीं , राहुल और दयान को पूरे पैलेस में ढूढ़ने पर भी नव्यम नहीं मिला था ,जाहिर था कि वो किसी बुरी शक्ति का शिकार बन चुका था।

जगदम्बा ने रामायणी का गला छोड़ दिया और राहुल को घूरने लगीं।

रानी साहिबा - " ऐसा मत कहिये स्वामी, पिछले जन्म में आपने प्रण लिया था कि ... " 

" मैंने जो कहा था वो झूठ था, मैंने हर बार हर किसी से झूठ बोला, ये सारा छल ही मेरा रचा हुआ है , मैं औरत को दोयम दर्जे का समझता रहा , इसलिए जगदम्बा देवी से हुआ  अपना अपमान नहीं सह पाया , हाँ देवी, मैं आपका अपराधी हूँ , आप सबका अपराधी हूँ, मुझे सजा दीजिये, मैंने जिन औरतों की हत्या की वे मेरी ही माँ थी, मेरी ही पत्नी थी, मेरी ही बहु थी, अपने अज्ञान में मैंने खुद भी इनका वियोग झेला है, पर ये सजा काफी नहीं है,मुझे 100 बार मृत्यु दंड दीजिये  पर ये तंत्र पूरा मत होने दीजिए  " राहुल ने हाथ जोड़ कर रोते हुए कहा।

कुंड में हलचल होने लगी, सारी आत्माओं के गुर्राहट का स्वर पूरे वातावरण में मौत का कम्पन पैदा करने लगा।

" आप सबका गुस्सा जायज है , लेकिन मैं आप सबसे क्षमा माँगता हूँ, मेरे पिता और मेरे बेटे का बलिदान हो चुका है इस तंत्र को रोकने में , अब बस .... मैं हाथ जोड़ता हूँ , मुक्त हो जाइए दर्द की इन बेड़ियों से वरना पूरी दुनिया जल कर स्वाहा हो जाएगी आपकी आहुतियों से " फफक फफक कर रोते हुए नायक जी ने कहा।

नीति और रामायणी ने एक दूसरे की तरफ़ देखा , वो समझ गईं कि नव्यम अब ... 
स्नेहा ने दयान की तरफ़ देखा तो दयान ने हाँ में सिर हिला दिया।

" जलती है तो जल जाए , खत्म ही हो जाना चाहिए ऐसी दुनिया को  जहाँ पुरुष स्त्री को मरने के बाद भी पीड़ा दे , खत्म ही होकर रहेगी अब ये दुनिया, तांडव होगा उस पीड़ा का जो हमने भुगती है इतनी सदियों तक" कुंड की सभी आत्माएं क्रोध में चीखती हुईं कह रही थीं ..... बड़े घराने की सभी 7 वधुओं की आत्माएं नीति और रामायणी की ओर बढ़ रहीं थीं उनकी आहुति लेने के लिए।

उन सबका ये रौद्र रूप देख तान्त्रिक मानिक एक कोने में छुप गया । 

" लेना है तो मेरे प्राण ले लीजिये, मैं अपने पापों का प्रायश्चित चाहता हूँ , इन्हें छोड़ दीजिए, आप सबकी हत्या मैंने की है, बदले में मुझे मार डालिये , लेकिन ये अनर्थ मत कीजिये , आपका बदला मुझे मार कर पूरा हो सकता है , मार दीजिये मुझे " राहुल ने नीति और रामायणी जी के आगे आते हुए कहा।

जगदम्बा देवी ने गरजते हुए कहा - " तुमसे किसने कहा तान्त्रिक तमस कि तुम्हें हम जीवित छोड़ देंगे, तेरे ही कारण मेरी दो मासूम बेटियाँ भी मेरे साथ जल कर मर गईं, तेरा भी न्याय होगा आज, लेकिन देख जरा इस कुंड को कितनी  आत्माओं के साथ अन्याय हुआ है , ये वर्षों से न्याय के लिए तड़प रहीं हैं , इनका गुनहगार है ये इंसानी जात, इन दोनों की आहुति से अब इंसानों की इस दुनिया का ही नाश हो जाएगा जो एक औरत को इंसान नहीं मानती " 

"क्या आप भी खुद को इंसान नहीं मानती " स्नेहा ने बिना डरे उन सबको देखते हुए पूछा।

" नहीं......., हम या तो घर मे बंधे हुए जानवर होती हैं या फिर किसी चबूतरे से बँधी हुई देवी , इंसानी समाज मे हमें ये हक दिया ही नहीं गया कि हम भी इंसानों की तरह खुश रह सकें , हमारी पीड़ा ही हमारी नियति है, और अब यही पीड़ा अब सभी इंसानों के हिस्से में आएगी.... " सभी आत्माओं का समवेत स्वर गूँज रहा था।

नीति और रामायणी को लेकर वे सातों वधुएँ कुंड के पास आ गईं , कोई कुछ नहीं कर पा रहा था उनके आगे, वे पवित्र आत्माएं थीं , उन्हें अच्छे या बुरे किसी तंत्र मंत्र से वश नही किया जा सकता था, आज उनके दर्द और बदले की आग में सारी दुनिया ही जलकर भस्म होने वाली थी.... नीति और रामायणी जैसे वशीभूत  हो गईं थीं ,सभी आत्माएं उन्हें कुंड में धक्का देने ही वाली ही थीं कि तभी...

"सूने मोड़ पे किसी इंसान की आहट से डर जाती हूँ,

हाँ मैं लड़की हूँ मैं इंसानो में नहीं गिनी जाती हूँ।"

सभी आत्माओं के चेहरे स्नेहा की तरफ़ मुड़ गए , स्नेहा ने उनकी तरफ आगे बढ़ते हुए कहना जारी रखा - 

"
पराई , बेगानी, अमानत किसी और की कही जाती हूँ 

हाँ मैं लड़की हूँ , मैं इंसानो में नहीं गिनी जाती हूँ।

कहीं भी ज़माने में ख़ुद को मैं महफ़ूज नहीं पाती हूँ ,

हाँ मैं लड़की हूँ, मैं इंसानो में नही गिनी जाती हूँ।

मैं तानों, नजरों , एसिड , से हर रोज़ जलाई जाती हूँ,

हाँ मैं लड़की हूँ, मैं इंसानो में नही गिनी जाती हूँ।

हो कोई उम्र मेरी , मैं कुचल कर नालों में फेंकी जाती हूँ,

हाँ मैं लड़की हूँ, मैं इंसानों में नही गिनी जाती हूँ।

जिंदा बचूँ तो कटघरे में ,सबूत बनाकर नंगी कर दी जाती हूँ ,

हाँ मैं लड़की हूँ , मैं इंसानों में नहीं गिनी जाती हूँ ।

कभी गैरों से कभी अपनों से , मैं यूँ ही दबती जाती हूँ,

हाँ मैं लड़की हूँ , मैं इंसानों में नहीं गिनी जाती हूँ।

चुप रहूँ तो अबला हूँ मैं, बोलूँ तो बेशर्म कही जाती हूँ ,

हाँ मैं लड़की हूँ, मैं इंसानों में नही गिनी जाती हूँ।

आधुनिकता के नाम पर, मैं बाजारों में बेची जाती हूँ ,

हाँ मैं लड़की हूँ , मैं इंसानों में नहीं गिनी जाती हूँ ।

चाहे कितनी क़ाबिल हूँ , मापी जिस्म के नूर से जाती हूँ, 

हाँ मैं लड़की हूँ , मैं इंसानों में नहीं गिनी जाती हूँ।

इस समाज में कभी 'दासी' ,कभी 'बेब' बना दी जाती हूँ ,

हाँ मैं लड़की हूँ , मैं इंसानों में नहीं गिनी जाती हूँ।

रिश्ते समाज ,इज्जत, करियर  , हर तोहमत से डराई जाती हूँ

हाँ मैं लड़की हूँ , मैं इंसानों में नहीं गिनी जाती हूँ।

सब सुनती सहती चुप कैसे , मैं खुद पे हैरान हुई जाती हूँ ,

हाँ मैं लड़की हूँ तो क्यों, खुद को इंसान नहीं गिन पाती हूँ।

पहचान अपनी पाने को, क्यों दूसरों की मोहताज हुई जाती हूँ,

हाँ मैं लड़की हूँ तो क्यों , खुद को इंसान नहीं गिन पाती हूँ।

जब टटोलती हूँ अन्तस तो, अखंड ॐ कार अनुभव कर पाती हूँ,

हर भेद से परे मैं भी, सदा पवित्र उज्जवल एक आत्मा कहलाती हूँ।

क्यों फिर दूसरों के भेद से , खुद को हीन स्वीकार जाती हूँ,

हाँ मैं लड़की हूँ तो क्यों, खुद को इंसान नहीं गिन पाती हूँ।

क्यों..." 


किसी के पास जवाब नहीं था । 
सबका क्रोध और प्रतिशोध अब असहायता का भाव बनकर आँखों से बह रहा था। नायक, दयान, राहुल, खुद स्नेहा की भी आँखे बरस रहीं थीं, बस मानिक ही कोने में दुबका चुपचाप सब देख सुन रहा था ।

" क्योंकि पुरुष ही स्त्री को अपने जैसा इंसान नहीं समझता , यही सत्य है.... " रानी साहिबा ने कहा 

" सत्य .... सत्य ये है रानी साहिबा , कि एक पुरूष आज आपके सामने खड़ा है और ये स्वीकार कर रहा है कि बिना एक स्त्री के सहायता के वो उन अपराधों का भी प्रायश्चित नहीं कर सकता जो उसने स्त्री समाज के विरुद्ध किये हैं, ये औकात है एक पुरुष की, मैं जन्म एक औरत से लेता हूँ , वही मुझे स्नेह देती है, संस्कार देती है, प्रेम देती है, साथ और विश्वास देती है, मोक्ष का मार्ग देती है, संसार मे किसी पुरुष की क्या इतनी औकात है कि वो जिस औरत से पैदा हुआ है उसी औरत  के लिए निर्णय सुनाए कि वो इंसान है या नहीं ......" राहुल की बात सुनकर सब स्तब्ध रह गये।

" समाज जिस तरह औरत को औरत होने की बेड़ियों में बाँधता है, वही समाज पुरुष को पुरुष होने के अहंकार के गर्त में डालता है और वो समाज हम ही लोग मिलकर बनाते हैं, अगर आप खुद को पहचान ले तो किसी और के स्वीकार करने की जरूरत ही क्या है, क्या सूर्य को किसी से प्रमाण की आवश्यकता है कि वो सूर्य है या नहीं.... ,हाँ आप सबके साथ गलत हुआ है , तो क्या सारा जगत आपका अपराधी हो गया, आज मैंने अपना बेटा खोया है तो क्या मैं सारी स्त्री समाज को इसका दोषी बना दूँ?" नायक जी ने कहा।

" तो हमारे साथ जिन्होंने ग़लत किया उनका क्या, हम असहाय होकर छोड़ दे उन्हें बाकी सबके साथ गलत करने के लिए,क्योंकि ये समाज तो उन्हें उनके किये का दंड देगा नहीं" एक अन्य लड़की की आत्मा ने आगे आकर कहा।

" नहीं, समाज दे या ना दे, कानून दे या ना दे , प्रकृति में हर अपराध का दंड है, निश्चित द्रव्य, काल , क्षेत्र, भाव और भव के संयोग होने पर ही कोई कार्य  होता है,  कोई अपने पाप को भुगते बिना मुक्त नहीं हो सकता, आज हमारे साथ गलत हुआ है, क्योंकि हमने किसी के साथ कभी गलत किया होगा, ये उसी बन्ध का परिणाम है, आज जो हमारे साथ गलत कर रहा है , कल उसके साथ भी वही गलत होगा, यही नियम है, यही वजह है कि संसार चल रहा है, बन्ध का ये चक्र कभी रुकता ही नहीं जब तक हम अपने साथ गलत करना बंद नहीं करते, हम खुद की असली पहचान खोकर इस बन्ध के चक्र में पड़े रहेंगें तो कभी दुख से मुक्त नहीं होंगे, अन्याय सिर्फ औरत के साथ नहीं होता, कई  निर्दोष जीवो के साथ अन्याय होता है, कई पुरुषों के साथ अन्याय होता है, जो जैसे भाव बाँधता है वो वैसा ही कर्म करता है, वैसे ही कर्म दूसरे उसके साथ करते हैं, 
हम दुखी हैं, सब दुखी है क्योंकि हम सच से मुँह फेरे बैठे हैं , तुम ये सच समझो कि तुम्हारा शरीर इंसान का है, स्त्री का है या पुरुष का ये भेद तो प्रकृति का दिया है, दोनो ही इंसान हैं.....
तुम ये सच समझो कि तुम्हारी आत्मा ॐ कार स्वरूप है, शरीर तो बदलती रहती है, कौन सा शरीर है इस बात से आत्मा के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं होता ...
उसका धर्म अपने सच को जानकर उसी का ध्यान करना है ...सभी आत्माएं हैं , इंसान जानवर भूत पिशाच देवी देवता ये सब परिस्थितियों के भेद हैं , आत्मा वही है , पवित्र , सुखरूप , शांत , ॐ कार .........." 

" विनायक , मेरा बेटा ..... " कहते हुए रानी साहिबा आगे बढ़कर आईं , अपने बेटे का ये दिव्य स्वरूप देखकर उनके सारे जीवन अश्रु सार्थक हो गए, सुख की भावना ने दुख के आंसुओं को जला दिया , कुंड का समस्त जल भाप होकर उड़ गया और रह गए बस पत्थर ...

"हाँ माँ, मैं तुम्हारा ही बेटा हूँ, ये तुम्हारे ही संस्कारों का फल है माँ कि मुझे मेरी मुक्ति का उपाय मिला है, आनंद का खजाना मेरा आत्मा मिला है , और तुम अभी भी इन दुनिया के दुखों के प्रपंच में डूबी हो , मेरा उध्दार करने वाली स्त्री खुद के उद्धार के लिए एक कपटी तान्त्रिक के भरोसे पीड़ा और प्रतिशोध में जल रही है , ये तो आप अपनी खुद की ही आत्मा के साथ अन्याय कर रही हैं, आप सबकी आत्माओं में अपने उध्दार की शक्ति है, फिर किसी और का सहारा क्यों , क्यों किसी के छल को सत्य मान लिया आपने " विनायक ने सबको संबोधित करते हुए कहा।

उन आत्माओं में से एक ने आगे आकर कहा -" जिन्होंने हमारे साथ गलत किया उन्हें उनके किये का दंड मिलेगा जरूर, तय समय पर हमें न्याय मिलेगा,  हमे प्रतिशोध की अग्नि में नहीं जलना, क्या अब इस तंत्र से  हमारी मुक्ति का कोई उपाय है?" 

" स्वयं को पहचानो और स्वीकार करो, आत्मा का स्वभाव ही है मुक्त रहना , अपनी आत्मा के आश्रय से ही संसार चक्र और इस तंत्र से मुक्ति मिल सकती है" विनायक ने कहा और स्नेहा की तरफ देखा ।

स्नेहा ने थाल के  सारे गहनों को ॐ के आकार में सजाकर थाल में रख दिया ।

सारा पैलेस ॐ कार की ध्वनि से गूँज उठा , रात्रि के गहन अंधकार में आत्मा के ज्ञानसूर्य का प्रकाश फैल रहा था , 
पूरे पैलेस के हर कण में कंम्पन हो रहा था ....... 

उन आत्माओ के ॐ कार की ध्वनि की ऊष्मा से सारा काला पत्थर गल कर भूमि में समा गया .....

आत्मा के सत्य स्पर्श से ही होने वाले सुख ने जन्मों जन्मों की पीड़ा का नाश कर दिया , वे आत्माएं अब अपने अगले पड़ाव पर जाने को तैयार थीं , जैसे जिसने कर्म किये थे , भाव किये थे, उन्हें वैसी ही गति , वैसा ही शरीर मिलना था, लेकिन अंदर में संतुष्टि थी कि कोई भी शरीर की कोई भी परिस्थिति मिले, आत्मा तो यही रहेगी, हमेशा एक रूप, पवित्र, सुखी , ॐ कार मयी.......

उन सबके द्वारा ॐ कार के 1008 जाप सम्पूर्ण होते ही समस्त आत्माएं तीव्र गति से अनंत आकाश में गमन कर गईं .

" किसी भी समय इस महल में मौजूद बुरी काली शक्तियाँ तुम सबको खत्म कर देंगी, इस इमारत को भी पृथ्वी के गर्भ के हवाले कर दो, इस महल को तंत्र मुक्त नहीं किया जा सकता क्यों कि ये खुद ही इस तंत्र का आधार है.... पृथ्वी के केंद्र की अग्नि ही इसे पवित्र करेगी, 1008 बार और जाप करो, मेरी यहाँ रहने की अवधि अब समाप्त हुई " कहकर विनायक दददू अंतर्ध्यान हो गए।

उन सबने फिर से एक बार ॐ की ध्वनि का उच्चारण प्रारम्भ किया ।

इसी बीच एक भयानक शैतानी आवाज़ गूँजी - " बन्द करो ये जाप वरना इसे मार डालूँगा मैं "

सबने देखा, मानिक नीति को जबरन घसीटकर कुंड के पास की वेदी पर ले गया था  और उसके गले पर ख़ंजर रखा हुआ था।

" इतनी आसानी से अपनी वर्षों की तपस्या से इस तंत्र को बनाये रखा मैंने, इतनी हत्याएं की तो एक और सही, मैं कहता हूँ रोक दो ये जाप ...." तान्त्रिक ने चिल्लाते हुए कहा।

सब जाप करते हुए घबराए से एक दूसरे को देख रहे थे और जाप बन्द करने ही वाले थे कि ख़ंजर की आवाज़ ने सबके हृदय कंपा दिए ।

" जा....प ...... मत ... रोकिए... ॐ....ॐ.... " कंपकंपाते हुए शब्दों के साथ नीति का शरीर भी भरभरा कर जमीन पर गिर पड़ा ।

वेदी पर दूसरे ख़ंजर पर मानिक की नजर नही गई, और वही ख़ंजर उठाकर नीति ने उसके सीने में घोंप दिया और बदले में उस तान्त्रिक का ख़ंजर उसके गले को काट गया।

आँखों मे दर्द उतर आया था पर सब दिल पर पत्थर रखे ॐ कार का उच्चारण किये जा रहे थे, जाप पूरा होते होते पूरा महल भरभरा कर जमीन में धसकने लगा , सारी दीवारें, छतें और खम्बे गिरने लगे, उन सभी के चारो ओर एक नीला घेरा बन चुका था जिसमे वे सुरक्षित थे।

जाप करते करते ही राहुल घेरे में से उठकर नीति के मृत शरीर 
को नीले घेरे में ले आया, कुछ ही क्षणों के बाद वहाँ कुछ नहीं था , समतल सपाट भूमि पर निर्जीव और भावहीन से  दयान , नायक, राहुल, स्नेहा और रामायणी बैठे हुए थे। 

सुबह हो रही थी, नीति के पार्थिव शरीर पर सूर्य की किरणे पड़ रही थीं और उसके सच्चे बलिदान को प्रणाम कर रहीं थीं।

नव्यम और नीति दोनों को ही खोने के बाद सबके मन मे शोक के अलावा कोई भाव ही नहीं रह गया था।

" भैया ....... , भैया...... राहुल भैया......" एक आवाज आई , सबने देखा तो दूर जंगल से कोई लड़का बेतहाशा दौड़ा चला आ रहा था।

राहुल ने कुछ दूर दौड़कर उसे अपनी बाहों में संभाल लिया , वो नव्यम था , सही सलामत ।

अपने भाई के गले लगकर थोड़ी देर साँस लेने के बाद बोला - " भाई सब ठीक है ना .......और ये पैलेस कैसे जमीन में गढ़ गया, मैं सब देख रहा था उस जंगल से .... वहाँ " नव्यम ने हाथ से जंगल की तरफ  इशारा किया।

राहुल फफक फफक कर रो पड़ा और नव्यम को कस कर गले से लगा लिया ।

"अरे आप रो मत , मैं ठीक हूँ भाई"  नव्यम ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा।

" नव्यम , मुझे माफ़ कर दे .... नीति माँ..." इससे आगे राहुल के गले से आवाज़ न निकल सकी।

" माँ , .... माँ " चिल्लाता हुआ नव्यम सबके पास आया और सामने अपनी माँ के शव को जमीन पर पड़ा देखकर वो सदमे से घुटनो के बल गिर पड़ा , न उसके आँसू निकल रहे थे , न कोई शब्द, काश माँ मुझे भी अपनी गोद मे सुला के साथ ले जाती, बस दिल मे यही हूक उठ रही थी , अंदर ही अंदर कुछ जल रहा था जो शरीर को भस्म करने वाला था ।

रामायणी ने उठकर नव्यम को अपने अंक में भर लिया और वो छोटे बच्चे की तरह चित्कार उठा , हृदय का ताप आँखों से लावा बनकर बह निकला, रामायणी की ममता पाकर उसका दुख मुखर हो गया।

सारी प्रकृति फिर से ममता के उस अगाध सागर को प्रत्यक्ष देख रही थी।

.............


" क्या हुआ , सुबह सुबह मुँह लटकाए क्यों बैठे हो " नायक जी ने नव्यम के चेहरे पे बजे 12 देखकर पूछा।

" कभी कभी तो सोचता हूँ पापा , कल्पना से अच्छी तो वो पैलेस वाली भूतनी थी " नव्यम ने चिड़े हुए स्वर में कहा।

" किस भूतनी की बात हो रही है भाई , जरा हमे भी बताओ " नाश्ते की टेबल पर नायक जी और नव्यम को बात करते हुए देखकर राहुल ने पूछा।

"अरे भैया कुछ नहीं, ये मुझसे लड़ते रहते हैं, आज सुबह सुबह ही लड़ कर बैठे हैं " कल्पना ने रसोई से अपनी सफाई देते हुए  कहा।

" पर फिर भी ये पैलेस वाली भूतनी कौन है , हमे तो कुछ पता ही नहीं इसके बारे में " अपनी बेटी नीतिका के लिए दूध तैयार करती हुई स्नेहा ने पूछा।

" अरे भाभी , मैंने किसी को बताया ही नहीं तो पता कैसे होगा " नव्यम ने रसोई में मदद करते हुए कहा।

" तो अब बता दो , हमें भी तो पता चले, कल्पना से अच्छी कौन मिल गई तुझे " रामायणी जी ने नव्यम के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।

" हाँ भाई , ये भी बता दो कि उस रात तुम पैलेस से जंगले कैसे पहुँच गए थे उन प्रेतों से बचकर" दयान ने घर के अंदर आते हुए कहा।

" चलो अब अपने बिज़नेस पार्टनर को तो बता ही दो " नायक जी दयान को  अपने साथ बिठाते हुए बोले 

नव्यम - " ठीक है सब सुन लो , दरअसल जब हम चारों लोग दूसरी मंजिल से नीचे जा रहे थे , तब हॉल के बाहर से गुजरते हुए कोई साया मुझसे टकराया , मैं देखने को पीछे मुड़ा और उसने मुझे अपनी ओर खींच लिया और राहुल भाई किसी और प्रेत का हाथ पकड़ कर चलते बने ।" 


राहुल - " हाँ , मुझे वो हाथ कुछ अजीब तरह से नुकीला और सर्द लग रहा था लेकिन मैंने ज्यादा ध्यान नही दिया था पर तुम्हे किस प्रेत ने खींच लिया था"

नव्यम - " अरे भैया प्रेत नहीं, प्रेतनी कहो, बेहद सुंदर और सुशील प्रेतनी , जरा भी नही डराया मुझे , बल्कि उसने मुझसे कहा कि तुम बड़े प्यारे और भोले हो , मेरे साथ चलो वरना यहाँ तुम्हे सब खा जाएंगे, फिर वो सबसे छुपाकर मुझे  पैलेस से बाहर निकालकर जंगल की तरफ ले गई , फिर एकदम से पैलेस में रोशनी होने लगी , वो ज़मीन में धँसने लगा , तब बहुत से प्रेत उस पैलेस में से उड़ उड़ कर यहाँ वहाँ जाने लगे , वो भी उनके साथ चली गई , मैं तो उसे थैंक्यू भी नहीं बोल पाया " 


" देखिये पापा , 10 साल पुरानी वो भूतनी अब भी इतनी अच्छी तरह याद है इन्हें , और आज हमारी शादी को 8 साल और 2 महीने पूरे हो गए , ये याद नहीं है इन्हें " कल्पना ने शिकायत करते हुए कहा।

रामायणी जी ने अपना माथा पीट लिया , बोली -" इसी बात पे लड़ रहे हो दोनो सुबह से, हे भगवान"

" दद्दू , सब लोग क्यो इत्ती जोर से बातें कर रहे हैं ,  मैं अपना सपना रिपीट कर रही थी फिर बातों से मेरी नींद खुल गई " आँखे मलती हुई नन्हीं नीतिका अपने दद्दू की गोद मे आकर बैठ गई ।

उसे देखकर सबके चेहरे खिल उठे , आखिर सारे घर की जान जो बसती थी उसमें।

" अच्छा,  क्या सपना देख रहा था हमारा गुड्डा " नायक जी ने उसे लाड़ लड़ाते हुए पूछा ।

" मैंने न दद्दू  इत्ते बड़े बड़े झरने देखे, बहुत सारी नदियाँ देखीं, एकदम सफेद फूल देखे, एकदम बर्फ जैसी सफ़ेद जगह देखी वहाँ पे न बहुत सारे ॐ देखे और पता है उनमें से ॐ की आवाज भी  आ रही रही " नीतिका बड़ी मासूमियत से अपने चेहरे और हाथों के जरिये अपने दद्दू को समझाने की कोशिश कर रही थी, उसका बस चलता तो उन्हें हाथ पकड़ कर अपने सपने की खूबसूरत दुनिया मे ले चलती।

उसका सपना सुनकर दयान ने बड़ी उम्मीद से उससे पूछा - " अच्छा बिटिया रानी , ये बताओ , आपके सपने में बहुत सारी आंटी भी दिखती हैं क्या " 

" नहीं आंटी अंकल कोई नही दिखता, बस ॐ दिखता है , सब ॐ एक जैसे ....." नीतिका ने मुस्कुरा कर कहा और सबके चेहरे फिर से खिल उठे ....😊

..... समाप्त


नोट- ऊपर दी गई लिंक से आप पूरी कहानी को kukufm पर भी सुन सकते हैं।