कहानी- बड़े घराने की बहू
भाग - 26
लेखिका - आस्था जैन "अन्तस्"
श्रेणी- हॉरर, सस्पेंस-थ्रिलर, आध्यात्मिक, स्त्री-विमर्श
....


......और अगले ही क्षण वो खंज़र नरेंद्र के सीने के आर पार हो चुका था , ख़ंजर विनायक के हाथों में था और विनायक का हाथ मानिक के हाथ में था, दरअसल विनायक के हाथ मे ख़ंजर लेते ही मानिक ने उसका हाथ पकड़ कर वो ख़ंजर नरेन्र्द के सीने में घोंप दिया था ,विनायक सदमे से जड़वत हो गया। 

पलक झपकते ही नरेंद्र का शरीर हवा में विलीन हो गया ।

" माया है माया, मानिक की माया " 

शैतानी हँसी हँसते हुए मानिक ने मौके का फ़ायदा उठाया और विनायक के पेट मे दाईं तरफ पूरा ख़ंजर उतार दिया,  , और विनायक तड़पते हुए जमीन पर गिर पड़े ।

उनकी आँखों मे रक्त उतर आया था ,धिक्कारते हुए उन्होंने मानिक से कहा , " अपने गुरु की .......हत्या कैसे.... कैसे कर सकते हो तुम.........तुम  विश्वास ....घाती हो "

उस तांत्रिक का शैतानी अट्टहास उस बड़े से हॉल में गूँज रहा था ,  " ये मेरे गुरु है, लेकिन इनकी तो मृत्यु 7 महीने पहले ही हो चुकी है ,ये तो भरम था , ये पूरा कमरा मेरे भ्रमजाल से कैद है यहाँ क्या होता है , कोई मनुष्य तो क्या कोई आत्मा भी नही जान सकती " 

" मेरी बहू कहाँ है .....छोड़ दो उसे" 

" हहहहहहह ..... वो तो खुद अपनी मौत को अपने पेट मे पाल रही है विनायक , नही बचा सकते तुम उसे "

" ये ..... ये क्या कह रहे हो  तुम" 

"उसकी कोख में तुम्हारा पिता है,  मेरा गुरु है , वो शैतान है, जिसने ये परम्परा श्राप रूप में दी है तुम्हारे खानदान को, जिसे भुगत रही है तुम्हारी हर पीढ़ी "

" कौ....कौन है .......तुम्हा...रा गुरु" 

" महा तांत्रिक तमस ,  जानते हो तुम्हारी पुत्रवधु किसे जन्म देने वाली है....... महा तांत्रिक तमस को, हहहहहहह....क्या हुआ और जानना चाहते हो , तो सुनो, मेरे गुरु ने जब पहली आहुति दी थी तभी संकल्प लिया था जब भी तुम्हारे घराने में कोई सद्पुरुष जन्म लेगा और इस तंत्र को रोकना चाहेगा तो आहुति देने वो खुद आयेंगे तुम्हारे खानदान में , अब इस तंत्र को पूरा होने से कोई नहीं  रोक सकता, अपनी माँ और पत्नी की आहुति इस बार भी वो खुद देंगें और इस तंत्र को पूरा करके विश्व के सबसे शक्तिशाली तांत्रिक बन जायेंगे , और अनन्त काल के लिए पीड़ा के अनन्त सागर में डूब जायेंगी ये सभी आत्माएं और साथ ही इस घराने की हर वधु की आत्मा, जलती रहेंगी इनकी आत्माएं पीड़ा और प्रतिशोध की अग्नि में,यही नियति है इनकी ,यही  औकात है इन सबकी, क्या हुआ तुम मरे नहीं अभी तक ?" 

विनायक के शरीर  का रक्त वेग से बह रहा था, उनमे न उठने की शक्ति नहीं रह गई थी और न बोलने की , वो सब सुन रहे थे , उनके अंतिम शब्द उनके गले से नहीं उनकी आत्मा से प्रस्फुटित हुए " मैं संकल्प करता हूँ , प्रतिशोध का ये तंत्र कभी पूरा नहीं होगा ..... आध्यात्म और धर्म से इस प्रतिशोध को जरूर समाप्ति मिलेगी........ ॐ......ॐ.......ॐ..... " 

..........

" वो जड़ हो गया है, उसे समझाइये, कुछ करिए नायक, मेरा बच्चा कुछ बोल ही नही रहा, कबसे कोशिश कर रहे हैं , वो तो हिल भी नहीं रहा" रामायणी रोते हुए नायक से कह रहीं थीं ।

ऊर्जा चक्र विलीन होते ही सभी नम आँखों के साथ दद्दू के जीवन से वापस आ गए थे, सबसे अधिक विचलित राहुल था , तत्काल ही घेरे से उठकर एक कोने में आकर बैठ गया वो , दोनों घुटनों में अपना सिर छिपा के बहुत देर तक बैठा रहा , सबने बहुत कोशिश की लेकिन कोई भी उसे हिला तक न सका , बची हुई रात भी निकल गई। सवेरे के सूर्य ने जीवन का जयघोष किया और अंधकार मृत्यु को अपने साथ लेकर चला गया । सब उस केबिन में बैठे राहुल में बस किसी एक हलचल का इंतजार कर रहे थे ।
नायक जी तभी डॉक्टर को बुलाना चाहते थे पर दयान ने कहा कि उसे समय देना चाहिए अपना सत्य स्वीकार करने के लिए , उसकी पीड़ा से उसे ही पार निकलना होगा ।
सुबह होने के थोड़ी ही देर बाद राहुल ने अपना सिर उठाया और पास बैठी रामायणी की गोद मे सिर रख कर सुबकने लगा , उसकी सिसकियों से पूरा पैलेस करुणा में डूबा जा रहा था।
रामायणी जी उसे समझाती जा रहीं थीं कि व्यक्ति के अतीत के कर्मो को बदला नहीं जा सकता , बस वर्तमान के भावों को संभाल कर भविष्य में होने वाले कर्मों को सही दिशा दी जा सकती है। 

" कमजोर मत पड़िये राहुल, आपने ये सब शुरू किया है , आप ही खत्म भी कर सकते हैं" स्नेहा ने कहा।

"मैं कुछ नहीं कर सकता , हाँ  , मैं कुछ नही कर सकता" राहुल ने कहा।

सब स्तब्ध हो गए।

" जब इस सबकी शुरुआत हुई तब भी मैं बस एक निमित्त था ,एक जरिया था, आज भी मैं बस एक जरिया हूँ " राहुल ने सबकी ओर देखते हुए कहा।

" पहेलियाँ मत बुझाओ राहुल, साफ साफ कहो, वक्त बहुत कम है" दयान ने उसके पास आकर उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।

" वो तांत्रिक सच कह रहा था , मैं ही वो पापी हूँ , जिसने ये सब शुरू किया, हाँ, जानती हो स्नेहा तुम दयान की माई से बातें कर पाई थी क्योंकि तुम उनकी स्मृति में गई थी, तुमने रानी साहिबा से बात की क्योंकि उस कमरे में तुम तस्वीर के जरिये उनसे जुड़ गईं थी, तुम मेरी दादी पदमा देवी से भी बात कर सकती थीं क्योंकि तुम उस काले नग के जरिये उनकी स्मृति में गईं थीं, हम सिर्फ उसी से बात कर सकते हैं जिसकी स्मृति में जाते हैं उसकी मृत्यु और जीवन देखते हैं, मैं किसी से बात नहीं कर सका क्योंकि वो मेरी ही स्मृति थी " राहुल ने कहा तो सब आश्चर्य से उसे देखने लगे।

राहुल - " हाँ , उस रात मुझे किसी ने डराया नहीं था, बल्कि मैं  खुद अपने पिछले जन्म की स्मृति में था , जिन्हें मेरे प्रतिशोध और झूठे अंहकार की वजह से कष्ट मिले , वही सब मुझे दिख रहे थे और मैं उस दर्द को खुद महसूस करके रो रहा था, मैं ही हूँ वो पापी तमस जिसने ये सब शुरू किया"

नव्यम ने डरते हुए पूछा - " तो क्या अब आपको सब याद आ गया है , अब आप फिर से ..."

सबने घूरकर नव्यम को देखा तो वो चुप हो गया ।

राहुल मुस्कुराते हुए अपने आँसू पोंछकर खड़ा हुआ और नव्यम के पास आकर उसे गले लगाते हुए बोला "नही भाई, अब मैं अपने दददू का राहुल हूँ , अब जो मेरी वजह से शुरू हुआ था वो मेरी ही वजह से खत्म भी होगा, लेकिन इसे खत्म वही कर सकता है जिसने शुरू किया है, उन सभी आत्माओं की सोच को उन्हें खुद बदलना होगा , तभी वो खुद की मुक्त कर पाएंगी" 

" तो तुम्हे उन सबको बुलाकर सच बताना चाहिए न राहुल तभी वो आज़ाद होंगीं" नीति ने कहा।

राहुल- "नहीं नीति माँ, मैं नहीं बता सकता, मैं बताऊँगा भी तो उन्हें मेरी ये महानता लगेगी, उनका सच उन्हें उनके  जैसे को ही बताना होगा , स्नेहा , रामायणी माँ और आपको , आप तीनों को सच का आईना दिखाना होगा उन्हें , तभी मेरा प्रायश्चित हो सकेगा" 

दयान - " पर तुम्हारा जन्म तो आखिरी आहुति देने के लिए हुआ है, मैं अब तुमपे भरोसा कैसे करूँ, हो सकता है ये भी कोई छल हो तुम्हारा"

राहुल- " नहीं , मेरी आत्मा में सत्य के संस्कारों के बीज तभी पड़ चुके थे जब मेरे विनायक दददू ने मुझे समझाया था जब मैं नरेंद्र सिंह राठौड़ था, और उस सत्य को सम्पूर्ण ॐ का आकार इस जन्म में मिला है , वो भी दददू की वजह से , उन्होंने आध्यात्म और धर्म के जरिये मेरी आत्मा का सच मुझे दिखाकर मेरी आत्मा का उद्धार किया है, मैं अब हर उस प्रतिशोध और अंहकार से आज़ाद हूँ , इसी धर्म और आध्यात्म के जरिये स्नेहा और मेरी दोनो माँए उन आत्माओं को सच दिखा सकती हैं उन का उद्धार कर सकती हैं जिनके प्रेम और समर्पण की आहुति चढ़ती आई है मेरे प्रतिशोध और गलत मानसिकता के कारण " 

दयान - "कैसा प्रतिशोध, किस चीज़ का प्रतिशोध, क्या हुआ था जिसकी वजह से तुमने इतने बड़े तंत्र को जन्म देकर इतनी आत्माओ को कष्ट दिया" 

राहुल - "मुझे भी इस ऊर्जा चक्र से बाहर निकलने के बाद सब याद आया है, मैं इसी राधौगढ़ का एक तांत्रिक था जिसका नाम तमस था, नागेंद्र सिंह राठौड़ एक साधारण गृहस्थ था जिसका जीवन खेती से चलता था , उसी की पत्नी थी जगदम्बा देवी , उनकी दो पुत्रियाँ हुईं, पुत्र एक भी नही था, नागेंद्र मेरे पास आया कि मैं उसे आशीर्वाद दूँ पुत्र का , मैंने उससे कहा कि आशीर्वाद उसकी पत्नी को मिलेगा , वो अपनी पत्नी को लेकर आया, मैंने नागेंद्र को नशीली वस्तु प्रसाद में देकर सुला दिया और बन्द कमरे में विधि का ढोंग करके जगदम्बा देवी के साथ जबरजस्ती करने की कोशिश की, प्रलोभन दिए, हर तरह से प्रयास किया लेकिन वो नहीं मानीं, अपने चरित्र पे अडिग उस स्त्री को जब मैंने जबरन छूने की कोशिश की तो उसने मुझे एक जोरदार थप्पड़ मारा और मेरी जटाओं को घसीटते हुए पूरी बस्ती में घुमाया , सबको मेरे बारे में बताकर मेरी बेइज्जती कर दी, पर वाह रे समाज , इसका दोष भी उसी के मत्थे आया, लोग उसे ही गलत समझने लगे उसका खुद का पति भी, मैंने चुप चाप अपने अपमान का बदला लेने के लिए लोगों को और भड़काना शुरू किया , सब उसे कुल्टा और अपशकुनी समझने लगे और एक दिन उसे चुड़ैल और डायन का तमगा पहनाकर सबने उसकी झोपड़ी के पीछे एक पेड़ से बाँध कर जिंदा जला दिया , उसकी दोनों बेटियाँ भी उसी आग में उससे लिपटकर जल गईं, नागेंद्र अपनी पत्नी और बच्चियों को बचाने घर से बाहर भी नहीं आया, इसका फल ये हुआ कि उसके घराने में उस दिन से कभी किसी बेटी का जन्म ही नही हुआ "

दयान - " तो किस्सा यहीं क्यों खत्म नहीं हुआ, ये तंत्र क्यों जन्मा ?"

राहुल - " मेरे अंदर का पुरुष जो समाज ने मेरे अंदर कूट कूट कर भर रखा था, उसे ये सहन नहीं हो रहा था कि एक स्त्री ने मुझे मना कर दिया  और मेरा अपमान भी किया , मैं उसकी आत्मा को मरने के बाद भी उसी आग में जलाना चाहता था, जब नागेंद्र ने दूसरी शादी की तब मैंने उसे कहा कि उसकी पत्नी पे जगदम्बा की आत्मा का बुरा साया है और उससे जगदम्बा का हार ले लिया जिसे वो पहना करती थी, और उसे शापित करके मैंने इस पैलेस में उसकी आत्मा का आव्हान किया , उसे छल से अपने वश में किया, उसे समझाया कि उसके पति ने उसे जलवाया है, मैं उसे न्याय दिलवाऊंगा, उसकी पीड़ा को कई गुना बढ़ा दिया था मैंने, ये महल उस समय खाली नहीं था, राजपरिवार यहीं रहा करता था, लेकिन अंग्रेजों का भी पूरा प्रकोप था राज्य पर उस पर शैतानी गतिविधियों के भी शुरू हो जाने से उनका परिवार राधौगढ़ छोड़ कर ही चला गया, 

नागेंद्र को मैंने इस पैलेस पे कब्जा दिला दिया, किसी ने मेरा विरोध नहीं किया क्योंकि सब अंधविश्वासी थे , अंग्रेज अधिकारी से भी साँठ गाँठ हो गई, अब मेरे अंदर बदले की ये  भूख बढ़ने लगी, जब भी जगदम्बा की रूह को तड़पता देखता तो मुझे बहुत सुकून मिलता कि मैंने इसे इसकी औकात दिखा दी , अब मैं चाहता था कि इस घराने की हर ब्याहता का यही हाल हो, पूरे विश्व की हर स्त्री का यही हाल हो इन्हें इनकी औकात में रहने को मजबूर कर दूँ मैं, और जो भी सिर उठाये उसकी आत्मा को अनन्त काल के लिए इस पीड़ा के गर्त में झोंक दूँ, 

मैंने इस पैलेस में जमीन में चार मंजिल और बनवाईं, आख़िरी मंजिल में एक विशाल कुंड का निर्माण करवाया।

मैंने उसी हार  जैसे 8 गहने और बनवाये नागेंद्र से , और धन और सत्ता के लालच में उसने भी मुझसे तंत्र विद्या सीखी , और एक बेटा होने के बाद अपनी पत्नी की हत्या कर दी , उसकी दूसरी पत्नी ने मुझे मरते वक्त श्राप दिया कि इसी घराने की किसी बहु की संतान मुझे मेरे किये का दंड देगी , मैंने उसी वक्त एक तंत्र चक्र का निर्माण किया और संकल्प लिया कि इस घराने की नौ वधुओं की आहुति देकर अनन्त काल के लिए इनकी आत्माओं को पीड़ा के चक्र में बांध दूँगा और जब भी इस खानदान में कोई दिव्य आत्मा जन्म लेगी तो किसी न किसी पीढ़ी में जन्म लेकर सारी आहुतियाँ मैं खुद दूँगा।

मैंने आगे की दो  पीढ़ियों की वधुओं की आहुति उसी तांत्रिक रूप में दी, फिर मेरी मृत्यु हुई और चौथी पीढ़ी में नरेंद्र बनकर मेरा जन्म हुआ , अपनी दादी के गहने देखकर मुझे मेरी पिछले जन्म की स्मृति आई और मैंने अपनी माँ की भी आहुति दी, तंत्र अब भी कमजोर था, आहुति देने के बाद महल के नीचे की चौथी मंजिल के कुंड में बलि के शरीर का काला रक्त पत्थर के रूप में जमा हो रहा था, लेकिन समय के साथ वो  मिट्टी होता जा रहा था, उस काले रक्त को स्थायी रूप देने के लिए मैने अपनी पत्नी मणिप्रभा को बहुत कष्ट दिए, वो सहती रही, अपनी नियति समझकर, रोती रही, उसकी ममता को भी मैंने बन्धनों में बांध रखा था , उसी कमरे में उसे रखा जहां से सीढ़ियाँ ऊपर जाती थी , लेकिन उसे ऊपर जाने की इजाजत नही थी, सिर्फ एक बार वो ऊपर जाती थी ताकि अपनी नियति को अपने बेटे को भी समझा सके, वो भी यही समझती रही कि उसका ये बलिदान सम्पूर्ण स्त्री समाज के उध्दार के लिए है।
उसका पूरा जीवन ही पीड़ा का एक आँसू बन गया था, उसकी आहुति देकर उसके शरीर के काले रक्त ने सभी पत्थरो को स्थायी रूप दिया, एक काला जलाशय बन गया, और भी कई स्त्रियों जिनके साथ अन्याय होते थे , अत्याचार होते थे , उनकी आत्माओं को भी मैंने इस चक्र में शामिल कर लिया ताकि ये और बलवान हो सके, बस विनाश की ही धुन , विनाश का ही नशा मेरे सिर पर सवार था, मैंने  मानिक नाम का एक शिष्य भी बनाया, उसने मेरी बहुत मदद की....

मगर मैं अपने बेटे विनायक के ही विचारों से अंदर ही अंदर घुलता जा रहा था , पर अवचेतन मन के परिवर्तन इतनी जल्दी नही दिखते, मैं सब नजरअंदाज करके अपने तंत्र को मजबूत बनाता रहा, अपने बेटे की पत्नी को भी मैंने बलि चढ़ा दिया , और अपने संकल्प के अनुसार दुबारा जन्म लिया ताकि इस तंत्र को पूरा कर सकूँ,

पर अब तस्वीर अलग है, जिस झूठ के दम पर इस तंत्र का निर्माण हुआ उसे अब सामने आना होगा, इस तंत्र को खत्म करना होगा और ये उन आत्माओं के ही द्वारा हो सकता है , वे खुद इस पीड़ा के गर्त में आईं हैं मैंने तो सिर्फ उन्हें भटकाया था, उन्हें बन्धन में रखना कभी मेरे वश में था ही नही , वे स्वयं के सच को नही जानती इसलिए बंधी हैं, उन्हें सच दिखाना होगा अब, 

बस आज ही की रात , सब करना होगा हमें"

रामायणी -" क्या तुम्हारा सच जानकर उन आत्माओं की पीड़ा और नही बढ़ जाएगी वो तुम्हे क्षमा नहीं कर पाएंगी बेटा"

राहुल - " जानता हूँ, लेकिन अपने प्रायश्चित के लिए मुझे उनका कोप स्वीकार है, मृत्यु भी मिलेगी तो भी मंजूर है लेकिन सच को अब सामने लाना ही होगा, आज ही" 

स्नेहा- " आज ही कैसे? हम हर एक आत्मा की स्मृति में जाकर उसे समझाए , इतना वक्त नही है हमारे पास और सारी आत्माओं को एक साथ हम कैसे बुला सकते हैं , पूरे गहने भी नहीं हैं हमारे पास" 

राहुल - " दददू से या मुझसे ये कार्य होना होता तो कबका हो चुका होता, एक स्त्री ही स्त्री को समझा सकती है और समझ सकती है, वैसे भी मेरा सच जानने के बाद मेरी बात तो शायद ही कोई आत्मा सुने , इसलिए आप तीनों को ही सब करना होगा , उनका आव्हान करना होगा एक साथ, उस कुंड के जरिये......."


स्नेहा - " उस काले पानी के कुंड के जरिये........?"

राहुल - " हाँ.."

.... क्रमशः....