कहानी - " आत्मीयता "

लेखिका -  आस्था जैन "अन्तस्" 



आत्मीयता (पार्ट 1)

"रम्या , बेटा इस बार छुट्टियों में तुम घर आ रही हो ना, देखो इस बार तुम्हारा कोई बहाना नही चलेगा । अपने पापा का गुस्सा जानती हो ना तुम । एक बार आ जाओ और मिल लो लड़के वालों से। सुन रही हो न ।"
"जी मम्मा"
"और जल्दी आने की कोशिश करना ताकि ज्यादा दिन रुक सको , 2 -3 जगह पापा ने बात कर रखी है तो सबसे मिल भी लोगी।"
"ओह, मुझे लगा आपको मेरी याद आ रही होगी इसलिए ज्यादा दिन रुकने को कह रही हो , खैर आ जाऊँगी जल्दी ।" कहते हुए रम्या ने कॉल काट दी ।
अपने मोबाइल को देख के एक फीकी सी मुस्कुराहट उसके चेहरे पे आई|
" दीदी , टिफ़िन रेडी है।" देवी  की आवाज रम्या के कानों में पड़ी तो वो अपना मोबाइल रख के बाहर आई और रसोई के दरवाजे पे खड़े होके बोली , "देवी , मेरा नाम रम्या है और मैं तुमसे उम्र में 1 साल छोटी हूँ तो बेहतर है कि तुम मुझे मेरे नाम से पुकारा करो यार ।"

देवी उसके हाथ मे टिफिन देते हुए बोली, " क्या करूँ, आदत नही है , इतने घरो में खाना  बनाती हूँ सबको दीदी , भाभी या मैडम ही बोलना पड़ता है, तो आपका नाम कैसे लूँ।"

रम्या टिफीन लेते हुए बोली ," प्लीज ना यार"

देवी मुस्कराते हुए बोली ,"ठीक है, अब मैं जा रही हूँ शाम को देर हो जाएगी थोड़ी"

रम्या उसके साथ बाहर आते हुए बोली, "कोई बात नही आ जाना देर से मगर  अगले 5 दिन तक मत आना ।"

देवी ने पूछा,"क्यों, आप तो छुट्टियों में यहीं  रहती हैं ,इस बार अपने घर जा रही हैं क्या?"

" हाँ , मम्मी का फरमान आया है , जाना तो पड़ेगा ही।" रम्या ने मजबूरी की मिसाल देते हुए कहा।

" फिर तो इस बार कोई दूल्हा भी ढूढ लाना दीदी अपने लिए" कहके देवी हँस दी और चली गई।

रम्या फीकी सी हँसी के साथ रूम में आई और अपने आफिस जाने की तैयारी करने लगी ।

सारे दिन ऑफिस में अपने कैबिन में बैठी रम्या का मन अपने  घर  के दरवाजों, बालकनी , रसोई , छत, अपने कमरे में ही भटकता रहा । रिश्ते एक मकान में जान भर देते हैं, जैसे एक इमारत में जब देवता की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा नही हो जाती तब तक वह इमारत मन्दिर कहलाने  योग्य नही होती ,वैसे ही जब तक एक इमारत में रहने वाले लोगों के बीच रिश्ते न हों  तब तक वो इमारत घर नही कहला सकती और जब तक रिश्तों में आत्मीयता न हो तब तक रिश्ते रिश्ते नही कहला सकते।
क्या स्वार्थ , कुछ जरूरतों या जबरन किसी की खुशी के लिए या फिर तथाकथित चार लोंगो का मुंह बंद करने के लिए बनाये गए रिश्तों में आत्मीयता के प्राण फूंके जा सकते  है ?
अपने ही सवालों में उलझी रम्या का ध्यान भंग हुआ
अपने केबिन के दरवाजे से आते हुए एक वाक्य से , "मे आई कम इन मेम"।
" कम इन मिस्टर सुभाष" रम्या ने बिना उस आवाज की ओर देखे अनुमति रूपी जवाब दिया ।
एक सभ्य सा दिखने वाला व्यक्ति केबिन के अंदर आया और रम्या के सामने वाली कुर्सी पे बैठते हुए उसने कहा, " हम सब एम्प्लोइस ने  जयपुर जाने की पूरी तैयारी कर ली है , बॉस के बेटे की डेस्टिनेशन वेडिंग है तो तुम्हें भी चलना चाहिए एक बार फिर से सोच लो ।"
सुभाष उम्मीद से रम्या की तरफ देख रहा था ।
" मैं घर जा रही हूँ " रम्या ने कहा
"क्या?" सुभाष हतप्रभ स्वर में कहा फिर बात संभालते हुए बोला, "मेरा मतलब है कि अच्छी बात है मुझे पता है तुम इतने टाइम बाद घर जा रही हो लेकिन बॉस ने सबको बुलाया है शादी में और इसीलिए वेकेशन दी है आफिस से सबको। तुम आओगी नही तो उन्हें बुरा भी लग सकता है ।"
" किसी को बुरा नही लगेगा ,हमारी गुलाम मानसिकता के अलावा किसी को बुरा नही लगेगा।" रम्या ने साफ जवाब दिया।
"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्जी" खिन्न स्वर में कुछ शब्द बड़बड़ा के सुभाष केबिन से बाहर निकल गया।
रम्या अपने बाकी के काम को निबटाने में लग गई ताकि वापस आने पर ज्यादा वर्कलोड न रहे।

आफिस से रम्या सीधा बाजार निकल गई कुछ जरूरी सामान लेने के लिए । समान लेने के बाद रम्या अपने फ्लैट  पहुँची, रम्या अभी दरवाजा खोल के अंदर आई ही थी कि उसके मोबाइल पे कॉल रिंग हुई , स्क्रीन पे आया नंबर देख के रम्या के साँवले से चेहरे पे परेशानी के भाव उभर आए...

आत्मीयता (पार्ट 2)

रम्या ने कॉल अटेंड नही की । जल्दी से सामान अपने बैडरूम में लाकर स्टडी टेबल पे पटक दिया और फ्रेश होने चली गई । मोबाइल लगातार अपनी धुन में बजे जा रहा था , बाथरूम से आकर रम्या ने मोबाइल लिया और  कॉल अटेंड की , " कहो, क्यों जान खा रही हो ।" रम्या गुस्सा दिखाते हुए बोली । उसे लगा कि शायद उसकी गुस्से भरी आवाज सुनके रचना अपना गुस्सा भूल जाये।
" ओहो , मैडम 20 मिनट से लगातार कॉल कर रही हूँ मैं तुझे ,खुद तो इतनी देर बाद कॉल अटेंड कर रही है और उल्टा मुझपे बरस रही है। सुभाष ने मुझे बताया तू आ नही रही है जयपुर, तूने मुझसे फिर झूठ क्यों बोला की तू आ रही है ...."
"अरे , रुक जा , साँस तो ले ले मेरी प्यारी सखी। मुझे पता था तू बहुत गुस्सा करने वाली है इसलिए देर से कॉल अटेंड की ।" रम्या उसे शांत करते हुए बोली।

"तो तूने झूठ क्यों बोला मुझसे।" रचना ने बिल्कुल बच्चों की तरह रूठते हुए शिकायत की।

"क्योंकि तुझे पनीर टिक्का से ज्यादा मेरी जान खाना पसंद है मैं तुझसे पहले मना करती तो तू मेरी मम्मा की तरह मुझे अपनी कसम वगैरह देके इमोशनली ब्लैकमेल करती , अभी तो मुझे पैकिंग करनी है तो तुझसे घर पहुँचने के बाद बात करूँगी ,ठीक है ।"

"ठीक है, अगर तुझे घर नही जाना होता तो मैं तुझे जबरन साथ लेके चलती ।"

"  हाँ, फिर खुद इधर उधर मस्ती करती रहती और मैं बोर होती रहती ।"

" हाँ तू तो शादी जैसे फंक्शन में भी बोर हो सकती है, अरे यार वहाँ कौन सा काम कराना है शादी में , बस एन्जॉय ही करना है तुझे सच में चलना चाहिए था"

" वही तो समस्या है रचना जी , शादी जैसे उत्सव अब फंक्शन बन गए है, सब वेडिंग प्लानर और स्टाफ ही हैंडल करता है और हमें दो टाइम खाना खाना होता है , सबसे स्माइल करते रहना होता है भले ही कभी न मिले हो , और शो पीस बनके सारी फॉर्मेलिटी होते देखते रहो । मैं सच में ऊब जाती हूँ इन औपचारिकताओ से , जिसे इन सबमे आनंद आता है वो खूब भाग ले मुझे दिक्कत नही है ना मैं अपनी सोच किसी पे थोप सकती हूँ लेकिन कोई अपनी सोच मुझपे भी न थोपे ।"
रम्या ने कहते हुए दीवाल पे लगीं अपने परिवार की तस्वीरें देखने लगी जैसे उनसे ही कह रही हो।

"ठीक है जैसी तेरी मर्जी, अपना ध्यान रखना ओके"  कहके रचना ने कॉल डिसकनेक्ट कर दी ।

रम्या ने अपना बैग पैक किया और रसोई में आके खाना बनाने लगी थोड़ी देर में देवी भी आ गई आते ही बोली " सॉरी दीदी , ज्यादा देर हो गई ,मैं बस अभी खाना बना देती हूँ।"

रम्या हँसते हुए बोली " तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे मैं तुम्हारी सास हूँ , अरे खाना बना दिया है मैने चलो साथ बैठ के खा  लो और आई के लिए भी टिफीन पैक कर दिया है साथ ले जाना।"

" मैं घर जाके बना लेती दीदी , आप क्यों परेशान हुई।" देवी ने कहा।
"क्योंकि तुम मुझे दीदी कहती हो तो परेशान तो होना पड़ेगा न देवी जी, अब बैठो जल्दी मुझे घर के लिए भी निकलना है फिर।"

देवी चुपचाप रम्या के साथ खाना खाने लगी रम्या ने पूछा ," सब्जी कैसी बनाई है मैंने, देवी ?"
"नमक कम है दीदी मगर अपनापन बहुत है।" कहते हुए देवी की आँखों से ख़ुशी की दो बूँदे छलक आई।

आत्मीयता (पार्ट 3)

" कह दो अपनी शहजादी से , सुबह 10 बजे लड़के वालों के घर जाना है ,रात का 1 बज रहा है यहाँ सोफे पे बैठ के बातें करने से अच्छा है अपने रूम में जाके सो जाए ताकि सुबह समय से उठ सके ।"
रम्या के पापा का आदेश सुनते ही मम्मी रम्या के पास से खड़ी हो गई और
धीमे स्वर में बोली, " इतने दिन बाद आई है इसलिए बातें करने लग गई मुझे भी समय का ध्यान नही रहा , सो जाएगी अभी।"
पापा बिना पूरी बात सुने ही अपने रूम में चले गए ।

" तुम सो जाओ जाके, और कल अच्छे से तैयार हो जाना ।" कहकर मम्मी ने रम्या के सिर पर हाथ फेरा और सोने चली गईं।
"मेरे आने की खुशी से ज्यादा मेरे जाने की चिंता है ।" कहकर रम्या मुस्कुराई और उठ गई और अपने रूम में जाकर बेड पे लेट गई ।

" वाह मेरी मोटी बहना , इतने दिन बाद आई और आते ही सोने लगी , छोटे भाई से मिलने का वक्त नही है ना "

दरवाजे पे खडे छोटे भाई जुगल का ताना सुनकर रम्या बेड पे से उछल पड़ी और एक तकिया उठाकर उसे मारा, " वाह मुझे लगा तू सो गया है और शैतान का बच्चा अभी तक जाग रहा है तू "
" बहुत किस्मत वाली है तू जो तुझे मेरे जैसा भाई मिला है और तू तकिया मार रही है मुझे ,  पता है  कल से तेरा ये भाई तेरा इतंजार कर रहा है , और इतना देर क्यों हो गई तुझे , मुझे बोल देती मैं लेने आ जाता"

"पता है मुझे तू मेरा नही अपने गिफ्ट्स का इंतजार कर रहा था बन्दर "

कहते हुए रम्या ने अपने बैग में से निकाल कर एक छोटी सी डिब्बी अपने भाई को दे दी, " ले रख अपना गिफ्ट , पिछला बर्थडे , आने वाला बर्थडे और मेरे घर आने का सबका गिफ्ट यही है"

जुगल डिब्बी को घूरते हुए बोला, " वाह मैं तो समझ रहा था 3-4 गिफ्ट्स मिलेंगे मुझे ,ये क्या है एक डिब्बी तू ही रख ले तेरा दिमाग रखने के काम आएगी" कहकर जुगल ने डिब्बी रम्या के ही बेड पे ही रख दी और मुँह फेर के बेड पे ही बैठ गया।

"अरे बन्दर भी कोई चीज खोल कर देखता है तब फेकता है और तू तो देखे बिना ही फेक दी , पहले खोल कर तो देख की क्या है "

डिब्बी खोलते ही जुगल उछल पड़ा
" तुझे कैसे पता चला मुझे बाइक चाहिए , मैंने तो घर में भी किसी से बात नही की इस बारे में"

"हाँ लेकिन अपने फेसबुक फ्रेंड रवि को तो बताया था तूने की तू कैसे अपने ऑफिस में ओवरटाइम कर रहा है बाइक लेने के लिए क्योंकि पूरी सैलरी तो तुझे मम्मा को देनी होती है"
रम्या मुस्कुराते हुए बोली।

" तो वो रवि तेरा भी फ्रेंड है?"

" नही गधे , वो रवि मैं ही हूँ"

"क्या? पागल है क्या तू लड़की होके लड़के की फेसबुक आई डी बनाने की क्या जरूरत पड़ गई तुझे" जुगल अब गुस्से में  था।

"क्योंकि मैं नोटिस कर रही थी कि तू परेशान है ज्यादा बिजी रहने लगा है , पर मेरे पूछने पर भी तूने कुछ  नही बताया तो मुझे यही तरीका अपनाना पडा , अनजान लोगों के साथ हम अपने तकलीफ , दुःख सब आराम से साझा कर लेते है क्योंकि हमें पता रहता है कि इससे सामने वाले को कुछ फर्क नही पड़ेगा लेकिन जो हमारे आत्मीय है वो हमारी परेशानी सुन के खुद परेशान हो जाएंगे , पर हम अपनी परेशानियों के हल ऐसे लोगो के साथ मिल कर ही निकाल सकते है क्योंकि उनसे हमारा सम्बन्ध आत्मीयता का होता है वो हमारी समस्या को अपना समझेंगे तभी तो उसका हल निकालेंगे , अनजान इंसान तो उस बात का गलत फायदा भी उठा सकता है ना जुगल" रम्या ने समझाते हुए कहा।

"सॉरी, आगे से तुझे सब बताऊंगा पक्का,  पर एक बात बता तू भी तो पूरी सैलरी मां को दे देती है फिर बाइक के पैसे कहा से आए, तूने भी ओवरटाइम किया क्या"

"नहीं भाई, मैंने डांस क्लासेज स्टार्ट कर  दिए थे , और सुबह जो मैं योगा क्लासेज लेती हूँ उसकी भी डबल शिफ़्ट कर दी थी।"

" सिर्फ मेरी बाइक के लिए  तू इतना  परेशान हुई"

" नहीँ,  तेरी बाइक के लिए नहीं , हर रोज मम्मा को मंदिर के लिए लाने ले जाने में ऑफिस के लिए देर न हो इस लिए, पापा को चेक अप के लिए आराम से ले जाने के लिए, बड़ी दीदी की गुड़िया को उसके मामा के साथ बाइक पे घुमाने के लिए और  कभी भी अपनी बहन से मिलने के लिये "

" ये सब तो  मैने रवि को भी नही बताया फिर तू कैसे जान गई।"

"मैं तेरी बहन हूँ तेरा मन पढ़ना जानती हूँ।"

जुगल अपनी  नम आँखों को छुपाते हुए बोला,
" आने में देर इसलिए हुई क्योंकि  सीधा शो रूम गई होगी, है ना"

"हां, गई तो शो रूम थी लेकिन देर ज्यादा इसलिए हो गई क्योंकि एक  बन्दे से मेरा वहीँ पे झगड़ा हो गया था इसलिए,  मैं मम्मा से इसी बारे में बात कर रही थी तभी पापा आ गए और मुझे सोने बोल दिया।"

"अच्छा  तो अभी सो जा,  सुबह बताना मुझे कौन था  वो और  क्यों  क्लास  ली  तूने  उसकी"

" ठीक है , पहले पानी पी आऊँ" कहकर रम्या रसोई में चली गईं और जुगल अपने कमरे में चला गया.

आत्मीयता ( पार्ट 4)

"पूछिये अपनी लाड़ली से कि क्या कहा इसने उस लड़के से ऐसा की वो 2 मिनट में इससे शादी करने के लिए मना कर गया" गुस्से में तमतमाते हुए पापा घर मे आते ही रम्या की मां पे बरस पड़े ।
"जी वो , बच्ची है गलती हो .."
"एक मिनट मम्मा" रम्या अपने माँ को रोकते हुए बोली।
"पापा, पहली बात ये है कि उस लड़के ने मुझसे शादी करने के लिए मना नही किया बल्कि उसने शादी करने से मना किया है, और दूसरी बात ये की मैने उससे कुछ नही कहा सिर्फ उसके 10 सवालो के बदले 1 ही सवाल पूछा था, और हाँ मैं सिर्फ माँ की लडली नही हूँ , आपकी भी लाड़ली हूँ , बस आप भूल गए हैं।"कहते हुए रम्या की आँखे नम हो गई

" क्या पूछा तुमने उस लड़के से" इस बार पापा थोड़े नरम लहजे में बोले।

"यही कि उसे शादी क्यों करनी है और मुझसे क्यों करनी है "

"ये कैसा सवाल है बेटा" इस बार माँ ने हैरानी जताते हुए पूछा 
"मेरे लिए यही जरूरी सवाल था माँ " रम्या ने शांत स्वर में जवाब दिया।

"उसकी जॉब , इनकम, आदते , पसन्द , नापसन्द  इन सबको छोड़कर तुम उससे ये पूछ रही हो कि वो शादी क्यों कर रहा है , ये क्या बेवकूफी है रम्या , दुनिया शादी क्यों करती है , सबको शादी करनी ही है तो वो भी कर रहा है। तुम भी तो कर रही हो न शादी फिर ये फालतू सवाल क्यों " पापा अब पूरे गुस्से में थे।

"मैं नही कर रही शादी , मैं सिर्फ यहाँ आप लोगो से मिलने आपके साथ वक्त बिताने आई हूँ, आपके कहने से इन लड़को से भी मिल रही हूँ , लेकिन शादी नही करूँगी।"

" तो क्या करोगी तुम, इसी तरह बेईज्जत करवाओगी सब जगह हमे, उम्र निकल गई फिर लड़के ढूढ़ने पे भी नही मिलेंगे रम्या, हमने तुम्हे पढ़ाया लिखाया सब काबिल बनाया , इस लिए नही कि तुम अपनी मनमर्जी करो और अपनी जिंदगी बर्बाद कर लो, तुम्हारी शादी मेरी जिम्मेदारी है वो मैं करके रहूँगा , तुम्हारी मर्जी हो या न हो।" कहके पापा अपने कमरे में चले गए

" तू भी कमरे में जाके आराम कर ले मैं खाना बना देती हूँ तब तक ।" मम्मा ने कहा।

" नहीं मम्मा , आज मुझे पापा से बात करनी ही है , जब वो पहली बार मिला इंसान मेरी बात समझ गया और शादी के लिए मना कर गया तो मेरे खुद के पापा क्यूँ नही समझेंगे"कहते हुए रम्या अपने पापा के कमरे में चली गई।

"पापा, आप दादा जी के पैर छुए बिना कभी घर से बाहर क्यों नही जाते थे ?" रम्या ने कमरे में आते ही पापा से सवाल किया

"क्यों मतलब, मेरे पिता थे वो , उनका सम्मान करना कर्तव्य था मेरा"

" तो उनके जाने के बाद भी आप उनकी तस्वीर को प्रणाम करके ही कहीं जाते हैं, ऐसा क्यों"

"क्योंकि मैं उनसे प्रेम भी करता था , वही थे जो हमेशा मेरी प्रेरणा बने रहे , बिना मां के भी मुझे पाला , और आज भी वो मेरे साथ हैं मेरे अहसास से जुड़े हैं।"

रम्या मुस्कुरा दी, " यही तो मैं कह रही हूँ पापा, अहसास बहूत जरूरी है एक सच्चे रिश्ते के लिए , आप सिर्फ कोई रिवाज या परम्परा या समाज के लिए अपने पापा का सम्मान नही करते थे , बल्कि वो सम्मान और प्रेम सच्चा था आपके अहसास से जुड़ा था इसलिए आज भी जिंदा है वो अहसास। फिर मेरी शादी सिर्फ इसलिए क्यों हो कि शादी तो होनी ही है , मैं अपने जीवन से खुश हूँ , बहुत कुछ करना चाहती हूँ अपने कार्यक्षेत्र में , एक जीवन साथी के लिए जब तक मैं मानसिक रूप से तैयार नही हो जाती तब तक मैं उसका महत्व भी नही समझ पाऊंगी और उसे वो सच्चा प्रेम और सम्मान भी नही दे पाऊंगी।"

"और अगर तुम कभी भी एक जीवन साथी के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार नही कर पाई तो"

" तो मैं शादी कभी भी नही करुँगी, मैं आर्थिक रूप से सक्षम हूँ , आत्मनिर्भर हूँ , अपनी सुरक्षा भी खुद कर सकती हूँ , मुझे कोई एटीएम कार्ड या बॉडीगार्ड की जरूरत नही है पापा,   अपनेपन से जुड़े निस्वार्थ रिश्ते मेरे लिए मायने रखते है पापा"

"तुम चाहती क्या हो फिर , दुनिया वालो को क्या जवाब दे क्यों हमारी बेटी शादी नही करना चाहती।"

" क्योंकि उसे अभी शादी नही करनी जब करनी होगी तो कर लेगी, दुनिया वालो का दुखी रहने का श्राप मेरे शादी करने से खत्म नही हो जाएगा पापा"

"सुनिए , एक बार रम्या की बात भी मान लीजिए, हम अपने बच्चों को नही समझेंगे तो कौन समझेगा" कमरे में आते हुए मां ने कहा जो अभी तक बाहर से सिर्फ उनकी बातें सुन रही थी।

" हाँ, लेकिन उसकी ये बात मेरे समझ मे अभी भी नही आई , हमारी शादी भी तो बिना हमारी मर्जी के बिना हमसे पूछे कर दी गई थी लेकिन हम दोनों में भी अपना पन है ना " पापा ने कहा।

" ये भी सही है, लेकिन हमें तो हमेशा से ही शादी के ही सपने दिखाए गए , राजकुमार आएगा , एक सास मिलेगी और भी पता नही क्या क्या , हम तो शादी के लिए एक तरह से तैयार ही थे, हमारी बच्ची ससुराल की जगह अपने काम के सपने देखती है क्योंकि हम शुरू से उसे आत्मनिर्भर बनाने पे ध्यान देते है जो सही भी है, अभी तो उसके लिए ऐसे किसी भी रिश्ते को अपनाना मुश्किल होगा जो जीवन भर उसे निभाना है"

" तुम शायद सही कह रही हो , फिर अभी हमारी बच्ची 24 साल की ही तो है अभी काफी समय है, मैं तो बस जल्द से जल्द उसे विदा कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहता था लेकिन अगर उसे और समय चाहिए तो ठीक है। ठीक है फिर , जब तू कहेगी तभी लड़का देखने जायेंगे । अब खुश है मेरी लाडली गुड़िया" पापा ने रम्या के सिर पे हाथ रखते हुए कहा।

"हाँ, बहुत खुश" कहते हुए रम्या अपने पापा के गले लग गई।

" अच्छा एक बात बता उस लड़के ने क्या कहा तेरे सवाल के जवाब में "

" यही कि सबको करनी पडती है शादी , माँ पापा सब चाहते थे मैं शादी कर लूँ तो कर रहा हूँ और आज नही तो कल शादी करनी ही है, फिर घर वालो को आप पसन्द है तो मुझे कोई दिक्कत नही है।"

"फिर तुमने क्या कहा रम्या "

" मेने उसे समझाया कि बेटा शास्त्रों में लिखा है कि खाना तभी खाना चाहिए जब भूख लगे , किसी के कहने से या सिर्फ़ खाना तो खाना ही पड़ेगा इसलिए नही खाना चाहिए वरना अनिच्छा से किया हुआ भोजन विष का काम करेगा, मेडिकल की स्टडी की हुई है ना उसने इसलिए जल्दी समझ गया " रम्या ने मुस्कुराते हुए कहा।

"इतने अच्छे से समझ गया कि हमसे रिश्ते के लिए मना करने की जगह अपने ही घरवालो से शादी की ही मना कर गया"

"हाँ पापा, अब वो जब भी कोई रिश्ता जोड़ेगा तो उसे बोझ नही समझेगा और दिल से निभाएगा भी ।"

"ठीक है , तुम जाके आराम करो , हम सब शाम को पार्क चलेंगे फिर मन्दिर चलेंगे साथ में तब तक जुगल भी आ जायेगा।"

"जी पापा" कहते हुए रम्या अपने कमरे में चली गई।

कमरे में आकर रम्या ने थोड़ी देर आराम किया फिर नीचे आ गई वो आज शाम का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी इस बात से बेखबर की आने वाली शाम उसके लिए कितना बड़ा सरप्राइज लेके आने वाली है।

आत्मीयता (पार्ट 5)

रम्या ने आज अपनी पसंद की सफ़ेद सलवार कुर्ती निकाली शाम के लिए और राजस्थानी प्रिंट का दुप्पटा अपनी अलमारी से निकाल रही थी तभी कमरे में मम्मी आईं और बोली-" बेटा, एक दिक्कत हो गई हम सब शाम को मंदिर नही जा पाएँगे"।

रम्या ने पूछा -" क्यों पापा ने मना कर दिया क्या"
रम्या मायूस सी हो गई।
"नहीं बेटा, एक गड़बड़ हो गई।" पापा ने कमरे में आकर कहा
फिर मम्मी की तरफ देख के बोले,- "मैंने सबको सुबह ही मना कर दिया था कि बच्ची अभी शादी नही करना चाहती , फिर देखेंगे, लेकिन एक रिश्ता तुम्हारी मम्मी ने भी देखा था और उन्हें मना करना भूल गईं अभी उनका फ़ोन आया कि शाम तक वो हमारे घर आ जाएंगे तब इन्हें याद आया है।"

मम्मी कोई बचाव नही सूझा , रम्या उन्हें देखे जा रही थी उसे समझ नही आ रहा था क्या करे। फिर पापा ही बोले ,- "बेटा एकदम से कैसे मना करते वो लोग निकल आये होंगे वहाँ से ।"
रम्या अभी उन दोनों को देख ही रही थी कि उसका मोबाइल बज उठा , रम्या ने देखा देवी की कॉल थी , रम्या ने कॉल अटेंड किया उधर से लगभग रोती सी आवाज आई ,- "दीदी......."
"क्या हुआ देवी, आई ठीक हैं ना"
कुछ घटनाओँ के होने का डर हमारे मन मे काफी पहले से रहता है वैसी ही परिस्थिति होने पे हमारा अंदाजा सबसे पहले वहीँ जाता है । रम्या जानती थी देवी मजबूत लड़की है अगर आई बीमार हुईं है तो वो इस तरह रोती नहीं , रम्या के मन मे कुछ अनिष्ट की आशंका थी जो प्रतिपल बढ़ती जा रही थी।
"दीदी, आई....नहीं है" इतना कहके देवी फूट फूट के रोने लगी ।
"तुम रो मत मैं आ रही हूँ कहाँ हो तुम , घर पे या हॉस्पिटल"
रम्या के मम्मी पापा भी अब घबरा गए , किसे क्या हुआ है।
देवी ने कोई जवाब नही दिया बस उसके रोने की ही आवाज आ रही थी।
रम्या ने बहुत पूछा पर उधर से बस रोने की ही आवाज आती रही ।
" क्या बात है बेटा , क्या हुआ है सब ठीक है।" पापा ने रम्या से पूछा।
" नही पापा , देवी की आईं नही रहीं , वो बहुत रो रही है उसके घर मे कोई और है भी नही भाई बाहर रहता है पता नही आया भी होगा या नहीं, मुझे अभी निकलना पड़ेगा ।"
रम्या की आवाज कांप रही थी।

"बेटा घबराओ मत , हम साथ चलते हैं।" पापा ने रम्या के सिर पे हाथ फेरते हुए कहा , जो अपनापन रम्या को आज इस स्नेह में महसूस हुआ वो कभी नही हुआ था , देवी को भी इस समय इसी अपनेपन की जरूरत थी । रम्या ने कहा ,- " ठीक है , जल्दी कीजिये ".

रम्या के पापा ने एक गाड़ी किराये पे ली , ड्राइव पापा ही कर रहे थे   , रम्या को कई सारी कॉल्स करनी थी , उसे पता था आई का इलाज किस डॉक्टर पे चल रहा था उन्हें कॉल करने पे पता चला कि देवी अपनी आई के साथ अभी उसी हॉस्पिटल में है और अकेली है । रम्या को कोई आश्चर्य नही हुआ कि उसके आस पास के लोग उसके साथ क्यों नही गए , बस गुस्सा आ रहा था इन्ही 4 लोगो के लिए आदमी जिंदगी भर समझौते करता रहता है जो जरूरत पे साथ भी नही दे सकते और तो और उसका भाई भी नही आया जब देवी ने मुझे बताया तो उसे क्यों नही बताया होगा , आई के जाने के सदमे के साथ भाई के इस व्यवहार ने ही उसे अंदर तक तोड़ दिया है तभी उससे कुछ बोला भी नही गया।

रम्या सोच रही थी अभी किसे उसके पास भेजे उसके सब दोस्त तो जयपुर गए है, उसने सुभाष को कॉल किया कि इसके बहूत दोस्त है और किसी भरोसे लायक इंसान को सुभाष देवी के पास भेज सकता है ।

जब रम्या ने सुभाष को कॉल करके सब बताया तो उसने कहा -" मैं कहीं नही गया यही हूँ , हाँ अभी निकलने वाला था अपनी फैमिली के साथ कही । अच्छा हुआ तुमने बता दिया मुझे हॉस्पिटल का नाम बता  दो, मैं खुद चला जाता हूँ । तुम्हे आने में शाम या रात भी हो सकती है।"

रम्या ने सुभाष को हॉस्पिटल  के बारे में सब डीटेल्स दे दी।

रम्या पूरे रास्ते देवी के बारे में ही सोचती रही , इस रास्ते का एक एक मिनिट उसे कई सालों के बराबर लग रहा था। उसे खुद पे गुस्सा आ रहा था , क्यों घर आई वही बनी रहती तो आज देवी अकेली न पड़ती ।

रम्या को वहाँ पहुँचने में रात के 10 बज गए ट्रैफिक की वजह से और ज्यादा देर हो गई इसलिए वो सीधा देवी के घर ही गई पर वहाँ ताला था।

उसने सुभाष को कॉल किया तो उसने बताया कि देवी उसके घर में है ।

रम्या अपने मम्मी पापा के साथ सुभाष के घर पहुंची । सुभाष दरवाजे पे ही खड़ा था। बोला -" चलो, तुम्हारा बहुत देर से इंतजार कर रहा था , देवी अभी ऊपर है सो गई है , बहुत रो रही थी , डॉक्टर के दवा देने पे अब सोई है ।"

रम्या बिना कुछ बोले सुभाष के पीछे पीछे देवी के कमरे तक गई वहाँ सुभाष की मम्मी देवी के बगल में बैठी उसके सिर पे हाथ रखे हुए थी।

देवी अंदर नही गई , उसके अंदर का अपराधबोध उससे कह रहा था कैसे सामना करोगी देवी का क्या कहोगी उससे कि तुम मुझे दीदी कहती थी और जब तुम अकेली हुई मैं तुम्हारे साथ नही थी। रम्या की मम्मी अंदर चली गई और सुभाष की मम्मी के पास जाकर बैठ गईं दोनों को देख के लग रहा था एक दूसरे को अच्छे से जानती हैं।

रम्या के पापा ने सुभाष से पूछा , " बेटा, इनकी आई?"

" वो तो सुबह ही चलीं गई थी , रम्या अकेली ही उन्हें हॉस्पिटल ले गई थी , उसने अपने भाई को फ़ोन किया था पर वो नही आया कुछ देर बाद उसका फ़ोन आया था कि वो कल अपने वकील के साथ आयेगा , आई ने घर उसी के नाम कर रखा था । उसके बाद देवी ने तुम्हे कॉल किया था। मैंने देवी से ही आई का अंतिम संस्कार करवा दिया है ।"

रम्या ने एक नजर देवी की तरफ देखा फिर सुभाष की तरफ हाथ जोड़ के बोली -" मैं जिंदगी भर तुम्हारा अहसान मानूँगी , तुमने देवी का इतना साथ दिया वो मुझे अपना समझती थी लेकिन अपना होने का फर्ज तुमने निभाया और उसे अपने घर में भी लाकर उसका इतना ध्यान रखा।"

"तुम दुखी मत हो यार, तुम्हे उसकी परवाह नही होती तो मुझे क्यों भेजती ।सच कहूँ तो देवी बहुत अकेली हो गई है कहीं कुछ हो न जाये उसे इसलिए उसके साथ रहना चाहता था। देवी के घर मे अकेले रुक नही सकता था जो 4 लोग आज उसके साथ नही गए कल वही उसपे दाग लगाते इसलिए यहाँ ले आया माँ है तो उसका अच्छे से ध्यान रख पाया।"

"पापा ,देवी का भाई उसे उस घर मे रहने नही देगा अब मैं चाहती हूँ मैं देवी को अपने पास रखूँ ।" रम्या ने अपने पापा की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख के कहा।

" तुम चिंता मत करो बेटा, वो तुम्हारे भी साथ रहेगी हमारे भी साथ रहेगी , हम उसकी पढ़ाई पूरी कराएंगे , उसे आत्मनिर्भर बनाएंगे और अच्छे घर मे उसकी शादी भी करवाएंगे।"

" आपकी हर बात शादी पे खत्म क्यों होती है पापा"

"अच्छा ठीक है , जब तुम्हारी बहन कहेगी तभी उसकी शादी कराएंगे , अब खुश मेरा बच्चा।"

"आप बहुत अच्छे हो पापा"  कहते हुए रम्या अपने पापा के गले लग गई जिस अपनेपन के लिए रम्या बेचैन थी वो उसे अपने ही लोगो से मिल गया था।

"अंकल आंटी को अब आराम करने दो रम्या , तुम भी आराम कर लो सुबह जब देवी जाग जाएगी तो उससे बात करना"  सुभाष ने कहा।

" हाँ पापा आप और मम्मी आराम कर लीजिए मुझे सुभाष से कुछ बात करनी है फिर मैं देवी के ही पास सो जाऊँगी।"

"चलिए अंकल मैं आपको दूसरे कमरे में ले चलता हूँ आंटी मम्मी के साथ आ जाएंगी।" कहकर सुभाष रम्या के पापा को अपने साथ ले गया ।

रम्या अंदर आकर देवी के पास बैठ गई , उसने सुभाष की मम्मी से नमस्ते की । उन्होने भी रम्या के सिर पे हाथ रख दिया और मुस्कुरा के बोलीं -" तुम अभी देवी के साथ रुको तुम्हारी मम्मी और मैं मेरे रूम में आराम कर लेंगे , हमे कई सारी बातें भी करनी हैं , तुम्हे कुछ जरूरत हो तो मुझे बुला लेना ।"
रम्या ने अपनी मम्मी की तरफ देखा तो रम्या की मम्मी ने कहा -" बेटा , ये सविता जी हैं ये आज ही हमारे घर आने वाली थी तुम्हे देखने के लिए , मेरी बहुत अच्छी सहेली हैं ये ।"
अब रम्या को सब समझ आ रहा था कि ये सुभाष जयपुर क्यों नही गया । उन दोनों के जाने के बाद रम्या देवी के सिरहाने बैठ गई और उसके सिर पे हाथ फेरने लगी देवी का चेहरा देख कर ही लगता था कि दवा के असर से बेहोश सी है , नींद में जो सुकून होता है वो उसके चेहरे पे कहीं नही था।

" रम्या , तुम्हे मुझ से कुछ बात करनी थी।" सुभाष ने कमरे में आकर बैठते हुए कहा।

"हाँ , बालकनी में चलो , यहाँ बात करेंगे तो देवी जाग जाएगी।"

सुभाष रम्या के साथ बालकनी में आ गया।

"तुम जयपुर क्यों नही गए" रम्या ने उसे गुस्से में घूरते हुए पूछा ।

" क्योंकि भाई ने मना कर दिया था ।"

"कौन भाई"

"मेरे बड़े भाई सुमेर, सब-इंस्पेक्टर हैं उन्ही के लिए लड़की देखने जाना था आज तो वो चाहते थे मैं उनके साथ रहूँ।"

" किस लड़की को देखने जा रहे थे क्या नाम है उसका"

"रम्या"

"तो तुम मुझे बता नही सकते थे " अब रम्या गुस्से से डांटना चाहती थी मगर देवी जाग न जाये इसलिए धीरे ही बोली ।

" बता देता पर भाई ने मना किया था "

" तो फिर तुम   मुझे जयपुर जाने के लिए मनाने क्यों आये थे ऑफिस में ।"

" क्योंकि भाई ने कहा था"

" मतलब"

" मतलब ये कि भाई तुम्हे जानना चाहते थे इसलिए वो भी मेरे साथ जयपुर जाते अगर तुम भी चलती "

" वो मुझे कैसे जानते हैं , मैं तो कभी नही मिली" अब रम्या का पूरा गुस्सा हैरानी में बदल गया था।

" भाई की पोस्टिंग तुम्हारे ही इलाके में है, मेरी मम्मी ज्यादातर उन्ही के पास रहती हैं इसलिए तुम्हारी मम्मी से भी उनकी दोस्ती हो गई और मेरी मम्मी ने ही तुम्हारी फ़ोटो मेरे भाई को दिखाई थी और भाई ने मुझे ।"

"ओह , ये बात है, लेकिन तुम्हारे भाई ने ये सब मुझे बताने को मना क्यों किया तुमसे ।"

" क्योंकि तुम शादी की बात सुनते ही बिना उनसे मिले ही उन्हें मना कर देती ।"

" तो अब क्यों बता रहे हो "

"भाई तो आज तुम्हे देखने ही आ रहे थे हम भी यहाँ से निकलने ही वाले थे , उन्हें लगता है कि अब तुम उन्हें मना नही करोगी क्योंकि अब तुम उनसे मिल चुकी हो।"

"कब , मैं तो नही मिली"

"कल सुबह वो यहीं आ जाएंगे तब देख लेना मिली हो या नहीं , अब मैं आराम करने जा रहा हूँ ।"

" रुको , तुमने इतनी मदद की मेरी बहन की , कैसे तुम्हारा शुक्रिया करूँ"

" मत करो शुक्रिया , क्योंकि अब वो सिर्फ तुम्हारी बहन नही रही"

"मतलब"

" मतलब मैं आज तक तन का आकर्षण और मन का बंधन ही समझा था मगर देवी की भावनाओं ने मेरी आत्मा को छू लिया है , इसे सहानभूति मत समझना रम्या । मैं सच कहता हूँ मैंने उसके लिए जो अपनापन महसूस किया है मैं चाहता हूँ वो भी मेरे लिए महसूस करे और कभी खुद को अकेले न समझे।"

" मैं उसे अपने साथ ले जाऊंगी और जब उसे जिससे शादी करनी होगी उसी से करवाउंगी।"

"  मैं भी चाहता हूँ वो तुम्हारे साथ जाए , उसके जख़्म भरें , वो आत्मनिर्भर बने , तभी उसे मेरी भावनाएं समझ आएंगी वरना वो भी तुम्हारी तरह यही समझेगी कि मैं उससे सहानभूति या दया दिखा रहा हूँ ।"

" जानकर खुशी हुई कि तुम इतने समझदार हो गए हो"

" नहीं नहीं, सीनियर से ज्यादा समझदार कौन हो सकता है ,एक बात बता सकती हो?"

"पूछो, जानती होउंगी तो जरूर बताऊंगी"

" देवी के भाई का व्यवहार मुझे समझ नही आया "

"सब देवी की आई का ही बोया हुआ है "

" मैं समझा नही रम्या "

" देवी को उसके बाबा  कहीं से उठाकर लाये थे उसकी आई को वो पसन्द नही थी , उनका एक लड़का था जिसे उन्होंने हमेशा देवी से दूर रखा, देवी के बाबा के जाने के बाद उन्होंने अपने लड़के को बाहर पढ़ने भेज दिया वहीं उसकी शादी भी करा दी , जो द्वेष के बीज उन्होंने देवी के लिए अपने लड़के के मन मे बोये उसका फल उन्होंने भी भुगता , उनके अपने लड़के ने उनसे मुँह फ़ेर लिया , अंतिम समय अग्नि देने भी नही आया।"

" ये सब तुम्हे देवी ने बताया"

"नही , उसकी आई ने बताया समय के साथ उन्हें शायद अपने पराये की पहचान हो गई थी लेकिन अपने लड़के का मोह तब भी न छोड़ पाईं , घर भी उसके नाम कर गईं ये भी नही सोचा कि देवी कहाँ जाएगी क्या करेगी।"

" देवी को ये सब नही पता?"

"  नहीं , उसके लिए तो उसकी आई ही उसका सर्वस्व थीं"

" तुम्हें बहुत याद कर रही थी , मेरी
मदद लेने के लिए तो तैयार भी नही थी जब मैने इसे हमारी कॉल डिटेल्स दिखाई तब राज़ी हुई , बड़ी खुद्दार लड़की है ऐसी परिस्थिति में भी खुद को संभाले हुई थी ।"

" तुम सो जाओ जाके "

" लगता है तुम्हे बुरा लगा , देखो मैं तुम्हारी बहन को तुमसे दूर नही ले जाऊँगा बल्कि मैं तो चाहता हूँ कि तुम दोनों बहनें देवरानी जेठानी बनके जीवन भर साथ रहो।"

" अगर देवी सो नही रही होती तो ऐसी डांट लगाती कि याद रखते ,जाओ अब ।"

एक नजर देवी को देख के सुभाष मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर निकल गया ।

रम्या ने जुगल को फ़ोन लगाया ,-" पापा को सुबह भेज दूँगी जुगल , मम्मी यहीँ रुकेंगी कुछ दिन।"

" ठीक है , मैं अभी बड़ी दीदी के घर हूँ , सुबह पापा के आने से पहले घर पहुँच जाऊँगा ।"

" ठीक है , दीदी को भी घर ले आना , उनके और गुडिया के साथ पापा का मन लगा रहेगा "

" पापा से बात हुई मेरी , कह रहे थे एक और दीदी आने वाली है मेरी , वो गोद लेने वाले हैँ ।"

" अभी पता नहीं , देवी से बात करके तभी बताऊंगी कि वो क्या चाहती है अगर मन कर देगी तो दोस्त की तरह तो मेरे साथ रह ही सकती है"

"सही है , एक भाई भी लेती आना , मेरी इतनी बहने है भाई भी कोई होना चाहिए न वरना तुम सब बहने मिलके मुझ अकेले भाई को मरोगी।"

रम्या मुस्कुरा दी
"चुप चाप सो जा , बाय" कहकर रम्या ने कॉल कट कर दी और देवी के पास ही सो गई।




आत्मीयता (पार्ट 6)

" दीदी , मुझे आई की अस्थियाँ लेने जाना है .." लगभग एक घन्टे तक रम्या के गले कर रोने के बाद देवी ने उससे कहा।

"जागते ही तो रोने लगी अब चुप कराया है तो जाना है, हालत देखो जरा अपनी, आई की अस्थियाँ सुभाष सुबह ही ले आया है । तुम फिक्र मत करो , फ्रेश हो जाओ , नाश्ता कर लो फिर हम सब मेरे फ्लैट पे जायेंगे।"

" दीदी, उन्होंने कल से कुछ नही खाया होगा , सारे दिन व्यस्त रहे , फिर देर शाम तक आंटी के साथ  मेरे पास  बैठे मुझे समझाते रहे , मेरी वजह से वो बेवजह परेशान हुए।"

" कौन वो"

"आपके दोस्त "

" तो उसका नाम सुभाष है , उन्होंने वो क्यों बोल रही हो नाम लो।"

" जी दीदी , मैं चाहती हूँ आई की आत्मा की शांति के लिए मैं उसी घर मे पूजा करूँ , आज भाई आएंगे तो मैं उनसे बात करूँगी"

" जरूरत नही है , मैने अभी बात की थी वो नही आएगा उसका वकील आएगा घर खाली करवाने , मैने तुम्हारा सारा सामान अपने फ्लैट में रखवा लिया है , वहीँ आई के लिए पूजा भी कर लेंगे, तुम्हारी जैसी बेटी के हाथ से मुखाग्नि पाकर आई को आत्मा को वैसे भी शांति मिल गई होगी और मुक्ति भी।"

देवी की आँखों मे फिर से आँसू भर आये।

"देवी, मम्मी पापा तुम्हे गोद लेना चाहते हैं अगर तुम चाहो तो वरना तुम मेरे साथ मेरी दोस्त की तरह भी रह सकती हो "

"दीदी,....... मैं आपके साथ ही रहूँगी जैसे आप रखना चाहें मैं सारी जिंदगी आपके और उनके अहसान  चुकाने की कोशिश करूँगी"

"उनके?'

" वो आपके दोस्त"

" तो वो तुम्हारा भी दोस्त जैसा है नाम ले सकती हो , और कोई अहसान नही है किसी का तुम मेरी बहन हो समझी, आई चाहती थीं कि तुम्हारी अच्छे से शादी हो जाये मैं चाहती हूँ तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो, तुम क्या चाहती हो"

" मैं अपनी पढ़ाई पूरी करके आत्मनिर्भर बनना चाहती हूँ दीदी और हमेशा आपके पास रहके आपकी सेवा करना चाहती हूँ।"

"क्यों , मैं क्या बीमार हूँ।"

" नहीं , मैं तो बस.."

"अच्छा ठीक है , अब क्या करना चाहोगी तुम ,उसी की पढ़ाई करना है तुम्हे।"

" हमने सुना है  आप खाना लाजवाब बनातीं हैं तो आपको शेफ बनना चाहिए ।" कमरे में सुभाष के साथ आते हुए सुमेर ने देवी से कहा।

" जिसे किसी बुज़ुर्ग आदमी से बात करने की तमीज नही वो बताएगा कि किसे क्या बनना चाहिए।" रम्या लगभग गुस्से से  तिलमिलाते हुए बोली।

" रम्या ये मेरे भाई हैं , सुमेर , पुलिस सब-इंस्पेक्टर"
सुभाष बीच मे आते हुए बोला।

" तो इंस्पेक्टर है तो क्या बूढे बुजुर्गों का आदर करना नही आएगा इनसे "

" बेटा हमारा बच्चा ऐसा नही है तुम्हे कोई गलतफहमी हुई है रम्या" कमरे में आते ही सविता जी ने रम्या को समझाया।
साथ मे रम्या के मम्मी पापा भी कमरे में आ गए ।

" मेरी आँखों के सामने बाइक शो रूम में इन्होंने एक बुज़ुर्ग आदमी को थप्पड़ मारा है वो भी उसे देखते ही मार दिया कोई बात भी नही हुई थी आंटी।"

"सुमेर , रम्या क्या कह रही है" सविता जी ने सुमेर पूछा।

" कुछ नही माँ , वो मेरे थाने में रह चुका एक जेबकतरा था । मैं उसे पहचानता था वहाँ शो रूम में भेष बदले बूढ़ा बने फिर रहा था मुझे शक हुआ तो पकड़ लिया इन्होंने आकर मुझपे बरसना शुरू कर दिया ये तो उसे भी अपने साथ ले जातीं , मेरे डर से वो जेबकतरा खुद ही इनके साथ नही गया, इनके जाने के बाद उसको थाने लेके गया था मैं । वहाँ शो रूम का मुआयना करने गया था किसी बड़ी गैंग में शामिल हो गया है उसी के लिए काम कर रहा था इनका बुज़ुर्ग आदमी"
कहकर सुमेर मुस्कुरा दिया , सुभाष की तो हँसी छूट पड़ी , देवी भी मुस्कुरा दी बाकी सब रम्या की की शक्ल देख रहे थे।

" मुझे क्या पता वो जेबकतरा है , आप 1 घण्टे तक मुझसे उल्टा सीधा सुनते रहे , सच भी बता सकते थे न" रम्या बुरी तरह खिसिया गई थी।

" मैडम बता देता तो आपके गुण कैसे देखता कि आप कितनी निडर कितनी न्यायप्रिय और कितनी जागरूक है और सहज विश्वासी भी जो कि सरासर अवगुण हैं।"

" अच्छा तो क्या करना चाहिए मुझे इस अवगुण को दूर करने के लिए , आप कोई मार्ग दिखाएंगे " कहकर रम्या ने सुमेर के आगे गुस्से से हाथ जोड़ लिए ।

सब बड़े कौतूहल से इन दोनों की बहस देख सुन रहे थे ।

सुमेर ने रम्या के पास जाकर उसके जुड़े हुए हाथों को अपने हाथों में थामकर कर कहा -" बिल्कुल मार्ग दिखाएंगे और साथ में चलकर भी जाएंगे।"

रम्या ने अपने हाथ हटा लिए और गुस्से में बोली  "कहना क्या चाहते हैं आप"

" आपके इस अवगुण को दूर करने का एक ही मार्ग है आप एक पुलिस वाले को अपना स्वीकार कर लीजिए , फिर सहज में आप किसी पे विश्वास की जगह शक करने लगेगी , पुलिस वाले तो हर किसी पे शक करते हैं यहाँ तक कि फरियादी भी हमारे शक के घेरे में  रहता है।"

" ये सही कह रहे हैं दीदी" इतनी देर बाद देवी ने कुछ कहा।

रम्या ने देवी के पास आकर उससे कहा ," फ्लैट पे जाना है देर हो रही है , चलो , आप भी चलिए मम्मी और पापा हम सबको फ्लैट पे छोड़ के आप घर के लिए निकल जाना।"

" मैं जानता हूँ तुम्हे शादी नही करनी , मैं तुम्हे बहूत कुछ समझ चुका हूँ , जिस अपने पन के रिश्ते को तुम चाहती हो उसका महत्व मैं भी समझता हूँ , मैं वो भरोसा और स्नेह दे सकता हूँ तुम्हें और तुमसे पा भी सकता हूँ जिससे हमारा रिश्ता तन और मन के बंधनों से आगे हमारी आत्मा को एक दूसरे से अपना सके बिना किसी स्वार्थ या समझौते के ,बताओ तुम साथ दोगी मेरा इस रिश्ते को बनाने के लिए , हो सकता इसमें पूरी उम्र लग जाये या कुछ साल या कुछ दिन लेकिन हम पूरी वफादारी से इसकी कोशिश करेंगे" कहकर सुमेर ने अपना हाथ रम्या के आगे बढ़ा दिया।

रम्या ने सभी के मुस्कुराते चेहरों की तरफ देखा और अपने होने वाले आत्मीय का हाथ थाम लिया। 😊

उस बन्धन में बांध लेना
जिसमे कोई स्वारथ न हो
बस अपनापन हो नेह का
जबरन का कोई हठ न हो ।

समाप्त ....