अमर जवान (कहानी) ,

 लेखिका - आस्था जैन "अन्तस्"


" और बताओ भैरोसिंह , कैसी लगी हमारे राजस्थान की रेत, पहली पोस्टिंग है न तुम्हारी, बड़े किस्मत वाले हो भाईजान पहली ही बार मे सबसे अच्छी और खास जगह पोस्टिंग मिली है तुम्हे " रहमत ने मुस्कुराते हुए कहा।

भैरोसिंह मुस्कुरा दिया , बोला - " अच्छा, मुझे तो लगता था कि जवान के लिए पोस्टिंग की हर जगह सबसे अच्छी होती है "

रहमत ने उसकी गोद मे रखे लड्डुओं के डिब्बे में से एक लडडू उठाकर खाते हुए कहा- "अरे भाई जान, हर जगह रहमत जैसा दिलदार दोस्त नही मिलता इसलिए ये जगह खास है "

रहमत और भैरोसिंह देवसराय गाँव से सटी राजस्थान- पाक सीमा की उस पोस्ट के कैम्प में बैठे नई नई दोस्ती की शुरुआत कर रहे थे , अपने अपने घर से दूर , अपनो से दूर , एक दूसरे की दोस्ती बहुत बड़ा संबल बन जाती है जवानों के लिए , रहमत ने अपनी नाईट शिफ़्ट के टाइम में ही भैरो की शिफ्ट भी करवा दी, अब दोनों काफी वक्त साथ बिताते , दुनिया जहान की बातें करते, अपने अपने जीवन साझा करते, ज्यादातर समय रहमत बोलता रहता था और भैरो सुनता रहता ।

" भाई जान, एक बात बताओ, पूरे 1037 किमी के राजस्थान -पाक बॉर्डर में एक अकेली यही पोस्ट इतनी शांत क्यों है " भैरो ने रहमत से पूछा जब वे दोनों रात की शिफ्ट के बाद अपने कैम्प में आराम कर रहे थे ।

" या खुदा , तुम तो बड़े अनजान आदमी निकले, सच बताओ  भैरो सिंह क्या तुम्हें सच मे कुछ नही पता " रहमत ने बड़े भारी अचम्भे से कहा।

" नहीं , अभी तक तो नहीं पता, अगर तुम कुछ बताओ तो शायद कुछ पता चले " भैरो ने उससे कहा।

रहमत उठकर उसके पास आया और बोला -" ठीक है बरखुरदार , देवसराय की ये इंडियन आर्मी पोस्ट बहुत ही सेफ मानी जाने वाली पोस्ट है , यहाँ तकरीबन 55 साल पहले अचानक ही रात में पाकिस्तान की तरफ़ से घुसपैठ की कोशिश की गई थी , कहते हैं कि भयंकर जंग हुई, पोस्ट पे हमारे लगभग 30 सैनिक थे और दुश्मन के 2000 से भी ज्यादा , ये भी कहते हैं कि उस रात बड़ा गजब जलजला आया था रेगिस्तान में, रेत जैसे कयामत की शक्ल अख्तियार कर चुकी थी, अगले दिन जब रेगिस्तान शांत हुआ तो सभी दुश्मनों के गोलियों से भुने हुए जिस्म मिले , जाहिर था कि कोई जिंदा न बच पाया था , हमारे केवल तीस सैनिकों ने उन दो हज़ार से भी ज्यादा दुश्मनों का सामना भी किया और उनको खत्म भी कर दिया  , लेकिन ......"

" लेकिन क्या ...."

" लेकिन हमारे सैनिकों में से न कोई जिंदा मिला न ही किसी की लाश मिली, बहुत ढूंढा गया, ख़ुफ़िया एजेंसियों से भी पता लगाया गया लेकिन उनके पाकिस्तान में बंदी होने के भी कोई सबूत नही मिले , सभी ने मान लिया है कि हमारे सैनिक शहीद हो गये लेकिन आज भी उनकी तलाश जारी है, लेकिन उस दिन से कभी इस पोस्ट पर कोई हमला नही हुआ , कोई घुसपैठ या गोलाबारी भी नही हुई "

"तुम्हें ये सब किसने बताया रहमत "

" मेरे दादू उन तीस सैनिको में से एक थे , सच कहूँ भैरो मुझे यहाँ की रेत में अपने दादू का अहसास होता है, सिर्फ उनकी जवानी की उम्र में खिंचवाईं एक तस्वीर देखी है मैंने और हमेशा उस तस्वीर को ही अपना दादू माना है, जब घर मे कोई नही सुनता था मेरी तो उसी तस्वीर से घण्टों बाते करता रहता थ, आज भी दादू की तस्वीर मैं अपने पास रखता हूँ , दादू की मोहब्बत से हमेशा महरूम रहा हूँ लेकिन उनके होने का अहसास हमेशा हिम्मत देता है , पता है उन्हें शायरी लिखने का भी बड़ा शौक था , अब्बू के पास उनकी एक डायरी है जिसमें बेहतरीन शायरियां लिखा करते थे दादू, अब्बू को भी उनके अब्बू का साथ नही मिला इसलिए मुझसे बेहद मोहब्बत करते हैं। मेरे अब्बू कहते हैं कि उन्हें तो अपने अब्बू की मोहब्बत न मिल सकी लेकिन वो मुझे अब्बू और दादू दोनों की मोहब्बत देना चाहते है , ये देखो ये हैं मेरे दादू "

रहमत ने अपने दादू की तस्वीर भैरो को दिखाई , भैरो ने उस तस्वीर को अपने हाथ मे लिया। उस तस्वीर में आर्मी की वर्दी पहने एक नौजवान अपनी गोद में एक छोटे से बच्चे को थामे हुए था, भैरो तस्वीर को ज्यादा अच्छे से न देख सका क्योंकि एक तो तस्वीर बहुत पुरानी थी और खुद भैरो की आँखों में भी नमी थी ।

रहमत ने वो तस्वीर वापस ले ली और सम्भाल के रख ली , भैरो अपने आँसू पोंछते हुए बोला - " एक बात तो तय है भाई कि तुम्हारे दादू दुनिया के सबसे यंग दादू हैं "

रहमत मुस्कुरा दिया " ये तो सच ही कहा तुमने , मैंने कभी  बूढे हो चुके दादू के बारे में सोचा ही नही, दादू के लिए तो फौजी वर्दी में देश के लिए लड़ते नौजवान का अक्स ही मेरे जेहन में आता है, तुम बताओ , तुम्हारे दादू कैसे दिखते हैं"

भैरो की आँखे और भी भीग गईं " पता नही रहमत, जब 2 साल का था तभी सब दूर हो गए, आतंकी हमला हुआ था हमारे कस्बे में, एक भारतीय सैनिक ने न जाने कैसे मुझे उस गोलाबारी में से सुरक्षित बचा लाया, मुझे नहीं पता कि मेरे परिवार में कौन कौन था , कौन कैसा दिखता था , कुछ भी याद नहीं, मुझे सिर्फ इतना पता है कि सब मारे गए थे, घर भी बर्बाद कर दिए गए , हमारे आर्मी के जवानों ने जान पर खेल कर कुछ लोगों को बचा लिया था और आतंकवादियों को भी खत्म कर दिया था, कई जवान भी शहीद हुए थे उस हादसे में, मुझे बचाने वाले सैनिक को गम्भीर चोटें आई और उनका एक पैर भी उन्होंने खो दिया, उन्ही ने मुझे गोद ले लिया और मेरे पापा बन गए, ये जो बेसन के लड्डू तुम्हें बहुत पसंद हैं न, ये पापा ही बनाकर भेजते हैं " 

" फिर तो ये हमारी ख़ुश किस्मती है दोस्त, लाओ इसी बात पर एक और डिब्बा खाली करते हैं लड्डुओं का , खुदा का नूर बसा है इन लड्डुओं के स्वाद में "

भैरो ने एक और डिब्बा खोल दिया, तभी उनके साथ का एक सैनिक आया और अपने साथ चलने को कहा , दोनों उसके साथ गए, पता चला कि दूसरी पोस्ट पे खतरे का अलार्म है, यहाँ से मदद भेजनी होगी, रहमत और भैरो दोनों ही युध्द के लिए बहुत उत्साहित थे लेकिन कैप्टन ने उन्हें वहीं रुकने को कहा, देवसराय की उस पोस्ट पर अब कैप्टन सहित सिर्फ 11 सैनिक रह गए थे , बाकी के सभी सैनिकों को 80 किलोमीटर दूर दूसरी पोस्ट के लिए रवाना कर दिया गया ।

दिन शांत रहा , सैनिक कम होने की वजह से भैरो और रहमत को भी बाकी सबके साथ दिन में पेट्रोलिंग पे रहना पड़ा, भले ही यहाँ कोई खतरा नहीं था लेकिन सीमा की निगरानी बहुत सजगता से की जा रही थी, दूसरी पोस्ट से भी गोलाबारी या किसी तरह के हमले की कोई ख़बर अबतक नहीं आई थी, इधर रात ढलने लगी, बॉर्डर लाइन के सबसे पास ड्यूटी कर रहे भैरो के पास रहमत पानी लेकर आया, उसने पूछा - "क्या बात है भैरो, तुम्हारी तबियत नासाज़ लगती है, चाहो तो आराम कर लो थोड़ी देर , दिन की रेत ने बहुत तपा दिया तुम्हें "

भैरो ने पानी पीकर कहा - " नहीं रहमत, मैं ठीक हूँ लेकिन रेत कुछ अजीब लग रही है आज रात, कुछ अजीब महसूस हो रहा है "

" ये कोई नई बात नही है जनाब, रेगिस्तान की रेत का कोई भरोसा नहीं , कब अपना रुख बदल लें, कब शान्त रहे  ,कब तूफान में बदल जाए "

" भरोसा तो दुश्मन का भी नही रहमत,
  खड़ा हो तेरे सामने और निशाना मुझ पर लगा दे"

" वल्लाह तुम तो शायरी करने लगे भैरो, चलो मुझे दूसरों के हाल चाल भी लेने हैं , अपना खयाल रखना दोस्त"

रहमत चला गया और भैरो ने अपने हाथ में रेत लिए उसे देखकर कुछ सोचने लगा ।

वापस जाते रहमत के कदम कुछ दूर जाकर ही रुक गए , उसे  साफ़ सुनाई दे रही थीं गोलियों की आवाजें , दुश्मन ने धोखेबाजी से काम लिया था , किसी दूसरी पोस्ट पर हमले के आसार दिखा कर देवसराय की सबसे शांत पोस्ट पर हमला कर दिया था ।

वो भाग कर भैरो के पास आया , भैरो रेत पर गिरा हुआ था, रहमत ने उसे उठने में मदद की और अपने साथ वापस ले जाने लगा ।

" अरे मैं ठीक हूँ रहमत,  न जाने किसने एकदम से धक्का दे दिया था, तू जाकर सबको खबर कर, कैप्टन सर को बता , मैं हूँ यहाँ "

" पागल मत बन भैरो, हमें नहीं पता सामने कितने दुश्मन हैं, मैं  तुझे अकेला छोड़ के नहीं जाऊँगा "

" तू भी नहीं जाएगा तो सबको ख़बर कौन देगा , देख अब गोलियां नहीं चल रहीं, तू जा , और जल्दी वापस आना, कहीं ऐसा न हो कि तुझे एक भी दुश्मन जिंदा न मिले और तू मुझसे शिकायत करे कि मैंने तेरे लिए एक भी नहीं छोड़ा जैसे तू मेरे लिए लड्डू नहीं छोड़ता , अब जा भी , जल्दी कर " 

रहमत दौड़ता हुआ गया , गोलियों की आवाज़ से भैरो से थोड़ी दूर तैनात जवान सज़ग हो गए, थोड़ी ही देर में दोनों तरफ़ से भयंकर गोलाबारी शुरू हो गई, रेत में दुश्मनों की लाशें बिछी जा रही थीं और ये सब सही सलामत लड़े जा रहे थे किसी को खरोंच भी नहीं आ रही थी।

" नामुरादों को गोलियाँ चलानी भी नहीं सिखाईं इनके आकाओं ने , ये लो गया ये भी " रहमत ने एक दुश्मन को ढेर करते हुए कहा।

" मुझे लगता है कोई बड़ा धोखा होने वाला है, हममें से किसी को गोली  लग ही नही रही , हो सकता है ये सब नकली हों और हमारा गोला बारूद इन पर खत्म करवा के फ़िर ये असली गोलियों और बारूद से हम पर हमला करें " कैप्टन ने कहा और रेत के एक टीले से फिसलकर आगे निकल गया ।

कैप्टन ने आगे वाले एक टीले के पीछे छिप गया जहाँ से भैरो दुश्मनो पर गोलियाँ बरसा रहा था ।

" थोड़ी देर रुको भैरो, उन्हें पास आने दो" कैप्टन ने कहा।

थोड़ी देर तक उन दोनों ने कोई गोली नही चलाई, दो दुश्मन उस टीले को महफ़ूज समझ आगे बढे कैप्टन ने उन्हें अपनी गोलियों से भून दिया, उनके पीछे आ रहे एक तीसरे दुश्मन ने कैप्टन पर गोलियाँ चलाईं पर कैप्टन को कुछ नही हुआ , भैरो ने तुंरत ही उस तीसरे दुश्मन को अपनी गोलियों से ढेर कर दिया और अचानक उसकी आँखों ने कुछ देखा जिसे देखने के बाद भैरो की आवाज़ रेगिस्तान में गोलियों से भी ज्यादा जोर से  गूँज उठी " भारत माता की जय ......., वन्दे मातरम ......"

सभी भारतीय सैनिकों ने भारत माँ का जयनाद किया लेकिन रेगिस्तान में ग्यारह नहीं बल्कि हज़ारों जयनाद गूँज रहे थे , दुश्मन सैनिकों को आभास हो गया कि उनके साथ धोखा हो गया है, उन्हें लगा था कि इस पोस्ट पर गिनती के ही सैनिक होंगें पर उस जयनाद ने उनकी रूह तक को कँपा दिया वो उस लम्हे को कोस रहे थे जब उन्होंने भारतीय सैनिकों को चकमा देकर भारत की ज़मीन पर कदम रखने का सोचा था, सबके हौसले पस्त हो गए  , एक दूसरे को कुचलते हुए अपनी अपनी जान की ख़ैर मनाते हुए सारे दुश्मन सैनिक भाग खड़े हुए ।

इधर कैप्टन ने उन दोनों दुश्मनों के हथियारो की जाँच की , वे असली थे और उनमें भरी गोलियाँ भी।

" ये सब कैसे ...." कैप्टन सकते में था।

" सर ..." भैरो ने कैप्टन को हाथ से यह जगह की तरह इशारा किया जहाँ थोड़ी देर पहले कैप्टन खड़ा था, कैप्टन ने भी उस तरफ़ देखा , अँधेरे में जैसे रेत चमक उठी थी और उसकी रोशनी में उन सबको वो दिख रहे थे, वो तीस भारतीय जवान , जो 55 साल पहले शहादत को गले लगा चुके थे, जो अमर हो चुके थे, उनके जिस्म देखकर ये जाहिर था कि आज रात उन्हीं सबने दुश्मनों की गोलियों को अपने सीने पर लिया था , उनके जिस्मों से ताजा लहू बह रहा था सबके हाथों में उनकी बन्दूकें थीं, सब बुरी तरह जख्मी थे लेकिन सबके खून से लथपथ चेहरों पर रूहानी मुस्कुराहट थी।

रहमत ने अपने नौजवान दादू को साफ़ पहचाना, वो दौड़कर उनके पास आ गया और दादू बोलकर उनके गले लग गया ।

उस फौजी ने उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा - " मेरे बच्चे , तुम सबने हमारा सिर फ़ख्र से ऊँचा कर दिया "

रहमत के दादू ने उसके पास खड़े पगड़ी पहने एक फौजी का हाथ रहमत के गालों पर रख दिया उस फौजी की दोंनो आँखे लहूलुहान थीं , वो रहमत का चेहरा टटोलते हुए बोला , " ओय अहमद, ओए तेरा नाती तो बहुत बड़ा हो गया , फ़ौज में भी आ गया , वाह पुत्तर जी तुम सबने दिल जीत लिया , आओ सारे , ओये झप्पी पाओ"

सभी सैनिक उनके गले लग गए सबने जोर जोर से एक साथ भारत माँ का जयनाद किया वंदे मातरम के नारे लगाए ।

" अब हमें इनसे रुख़सत लेनी चाहिए जसविंदर "

" आप कहाँ जाने की बात कर रहे हो दादू " रहमत की आँखों मे नमी उतर आई।

" ओय कोई गल नहीं पुत्तर , तुम भी इसी रेत में, हम भी इसी रेत में , ओय कोई दूर थोड़े ही न जाना है "

" इसी रेत में मतलब "

" मतलब हमने अपने जिस्मों को यहाँ रेत में छुपा रखा है, हमारी रूहें देश की इस सरहद की निगेहबानी में तैनात हैं, जब जब हमारे  देश की सरहद पर हमला होगा , हमारी रूहें हमारे जिस्मों को रेत से बाहर निकाल लाएंगी और दुश्मनो को इसी तरह जहन्नुम पहुंचाती रहेंगी "

" इसकी जरूरत नहीं है सर, आप अपने हिस्से की शहादत 55 साल पहले ही दे चुके हैं, अब ये जिम्मेदारी हम लोगों के कन्धों पर है, आप अपने शरीर हमें सुपुर्द कर दीजिए ताकि राष्ट्रीय सम्मान के साथ हम आप सभी को अंतिम विदाई दे सकें , आपके परिवार वाले आपके अंतिम दर्शन के लिए सालो से इंतजार कर रहे हैं " कैप्टन ने कहा।

" तुम सबकी जंगी तालीम पर हमें कोई शक नहीं और तुम्हारी हिम्मत से जंग ए मैदान में दुश्मनों के हौसले पस्त होते भी हमने देखे हैं, हम तो बस अपनी खुशी से इस रेगिस्तान में बसकर सदियों तक अपने देश की हिफाज़त करना चाहते हैं " 

" अपने वतन से आपकी सबकी मोहब्बत बेपनाह है , ये हम जानते है  दादू लेकिन ये वतन भी आप सबसे उतनी ही मोहब्बत करता है, भारत माँ के बेटों की रूहें शहादत के बाद भी भटकती रहें, उनके जिस्मों को अंतिम विदाई भी न मिले,  इससे तो उन्हें तकलीफ़ ही होगी, हम सब भी यही चाहते हैं कि अब आपके जिस्मों को हम राष्ट्रीय सम्मान से विदा करें और आपकी रूहों को अब भारत माँ की गोद मे सुकून मिले , यकीन मानिए तब भी आपकी देशभक्ति और वफ़ादारी आपको अमर रखेगी , आप कभी मर ही नहीं सकते, जब जब एक जवान सीमा पर देश के की रक्षा करता है, देश के लिए लड़ता है, बुरे वक्त में देश की सेवा करता है, उसके देशवासियों की मदद करता है, अपनी जान पर खेलकर भी दंगों और आतंकी -नक्सली हमलों से लोगों को बचाता है, हर आपदा में देशवासियों की मदद करता है , तब वो अकेला एक जवान नही होता, उसके लहू में आप जैसे अनगिनत शहीद जवानों की देशभक्ति दौड़ रही होती है, आपकी अमरता उसे मौत से लड़ कर भी देश की रक्षा करने की हिम्मत देती है, एक जवान कभी नहीं मर सकता सर, वो हमेशा जिंदा रहता है, अपने साथी जवानों में, अपने देश की मिट्टी में, अपने देश की तरक़्क़ी में, अपने देश के सम्मान में, अपने देश के हर वफ़ादार नागरिक में जिंदा रहता है जवान क्योंकि उसकी देशभक्ति अमर बना देती है उसे जो सदियों तक उस देश की हवाओं में बहकर देशवासियों को ये सन्देश देती है कि भारत देश सुरक्षित है उसकी सरहदें सुरक्षित हैं क्योंकि इस देश के जवान वहाँ डटे हुए हैं । "

" तुम ठीक कहते हो कैप्टन ,  हम विदाई के लिये तैयार हैं , क्योंकि ये विदाई भी हमें हमारे वतन की मिट्टी से अलग नहीं कर सकती , हमें यक़ीन है कि हमारे वतन की हिफाज़त की जिम्मेदारी काबिल कन्धों पर है , हम तैयार हैं "

" ओय बोलो सारे , वन्दे मातरम ........, भारत माता की जय ......."

रेगिस्तान भारत माँ के जयनाद से गूँज उठा, रेत का एक गुबार उठा और अगले ही पल उन तीसों शहीद जवानों की रूहें उनके जिस्मों से विदा हो गईं , उस समय सभी ग्यारह सैनिक उनकी रूहों को सलामी दी रहे थे, बाद में उनके जिस्मों को भी उनके घर ले जाकर राष्ट्रीय सम्मान और सलामी से विदा किया गया।

एक सुबह भैरो और रहमत अपने कैम्प से  बाहर आये , एक टीले के आस पास रेगिस्तान की रेत उमड़ घुमड़ रही थी, उन दोनों ने पास आकर देखा कि देश की सरहद अपने शहीद जवानों को सलामी दे रही थी, उस टीले पर रेत से लिखा हुआ था " अमर जवान "..

- समाप्त