जल पिशाच( भाग 12)
लेखिका- आस्था जैन "अन्तस्"
भाग -12
विभु पानी मे बुरी तरह छटपटा रहा था और पानी के ऊपर तैर रही किताबों को पकड़ने की कोशिश कर रहा था, पिया पहले तो एकदम से डर गई फिर तुरन्त सम्भल भी गई और उसे बाहर निकलने में मदद करी, पिया की मदद से पानी से निकल कर विभु हिम खण्ड पर आ गया , वो बुरी तरह डर गया था।
पिया उसे घूर कर देख रही थी।
पिया- " तुम्हारे कपड़े गीले हो हुए और तुम भी, मेरा हाथ भी गीला हो गया , जबकि घर पर ऐसा नही हो रहा था। "
विभु - " हाँ यार , इस पानी मे डूबने से मेरा दम भी घुट रहा था जबकि मुझे तैरना आता है फ़िर भी मैं तैर नही पा रहा था, थैंक्यू तुमने बचा लिया, जय हो भगवान, वरना आज सिंगल ही मर जाता मैं तो ...."
पिया - " सॉरी, तुम्हे धक्का भी मैंने ही दिया था, लेकिन तुम बहुत बकवास करते हो इसलिए मुझे गुस्सा आ गया "
विभु- "कोई बात नही जो होता है अच्छे के लिए होता है"
पिया - "इसमें क्या अच्छा हुआ ..."
विभु- " मैंने कुछ देखा अंदर , अरे न न, तुम क्यों झाँक रही हो उसमें अभी टपक गई तो , हटो पीछे"
पिया ( पानी मे देखने की कोशिश करते हुए) -" अरे पर क्या देखा तुमने , मुझे तो इन किताबों के अलावा कुछ नही दिख रहा"
विभु ( पिया को पीछे खींचते हुए) - " अरे ऐसे दिखेगा भी नहीं, मैं जब डूब रहा था तब दिखा था, ये हमारी चम्पो ऐसे ही नही तैर रही, बल्कि एक पटरी सी बनी हुई है इसके नीचे किताबों की, उसके ऊपर ये हमारी चम्पो रखी हुई है और इसके ऊपर हम दोनों बैठे हैं, हम ऐसे ही कहीं भी नही तैर सकते, जहाँ वो पटरी जाएगी वहीं चम्पो के साथ हम जायेंगे , समझ रही हो न, इस पानी के अंदर पूरा तय रस्ता बना हुआ है, अगर एक बार ये चम्पो चलना शुरू हो जाये तो फिर अपने आप ही इधर से बाहर निकल सकते हैं "
पिया - " लेकिन ये चम्पो तो रुकी हुई है कबसे, ये चलेगी कैसे , कोई कार थोड़े ही न है कि चाबी लगा के स्टार्ट कर दुँ"
विभु- " किताब में क्या पहेली आई थी, दुबारा बताओ जरा "
पिया - " अथाह संसार समुद्र में जीव ही स्वयम का मार्गदर्शक है "
विभु- " देखो संसार समुद्र हो गया ये किताबों का समुद्र, और जीव माने प्राणी यानी कि हम दोनों और हम दोनों ही खुद के मार्गदर्शक हैं, मतलब हमे ही तय करना है कि हम इस चम्पो को किस दिशा में ले जाएं, रुको मैं इससे बात करता हूँ , ए चम्पो आगे चल और इस समुंदर से बाहर निकाल हमें"
विभु के बोलने के बाद भी कुछ नही हुआ और पिया हँस पड़ी ।
पिया- " वाह, वाह, क्या बात है, तुम तो ऐसे कह रहे हो कि तुम्हारी कहते ही ये चम्पो ऐसे दौड़ने लगेगी"
पिया ने अपनी उंगलियां चम्पो के ऊपर दौड़ाते हुए कहा, विभु ने बुरा सा मुँह बनाना चाहा लेकिन उसका और पिया का दोनों का मुंह अचंभे से खुला रह गया क्योंकि पिया के उँगली दौड़ाते ही चम्पो हिली और आगे बढ़ना शुरू हो गई जिस दिशा में पिया ने अपनी उंगली दौड़ाई थी उतनी ही लम्बी एक नीली लकीर चम्पो के ऊपर उभर आई थी।
विभु- " बिल्कुल ही अजीब दुनिया है, पता नही कब क्या हो जाये .... है ना"
पिया - " हाँ , लेकिन मुझे लगता है इसके आगे भी रास्ता हमें बनाना होगा "
पिया ने उसी लकीर से आगे अपनी उंगली फेरते हुए दाईं तरफ़ मोड़ दी, चम्पो दाईं तरफ मुड़ गई और उसके रास्ते मे आने वाली किताबे खुद ब खुद पानी मे डूबने लगीं।
विभु- " इसे लेफ्ट क्यों नहीं मोड़ा "
पिया - "उस तरफ़ हल्के से पहाड़ दिख रहे हैं और मुझे फिर से पहाड़ो में नही फँसना क्या पता फिर से कितनी सीढ़ियां चढ़नी पड़े, दाईं तरफ ऐसा लगता है जैसे हरियाली है तो हो सकता है कि कुछ खाने भी मिल जाये वैसे भी जब से आई हूँ बर्फ़ और पानी देखते देखते पागल हो रही हूँ।"
विभु - "ये किताब साथ ही रखोगी क्या"
पिया - " हाँ आगे भी काम आ सकती है ना"
विभु - " इससे पूछो जरा कि गजरीगाव के क्या हालात हैं , खन्ना सर कैसे हैं, मेरे दोस्त कैसे हैं और वासु राधे उस पिंजरे में कैद क्यों थे , मुझ पर हमला करने वाले शैतान कौन थे"
पिया - " हाँ, ये तो मुझे पहले ही पूछना चाहिए था"
पिया ने किताब खोली और पूछा- " क्या गजरीगांव में सब लोग ठीक है"
पन्नों पर कोई स्याही उभर कर नहीं आई। पिया ने मायूस होकर उस किताब को बंद कर दिया।
पिया- "ये शायद इसी दुनिया से जुड़ी चीजों के बारे में बताती है"
विभु- " ओह यार, इसका मतलब न तो हम वापस जा सकते हैं और न ही वहाँ की कोई खबर हमें मिल सकती है"
पिया -" शायद नहीं, तुम्हे पता है उस तिकोने कमरे से निकलने के बाद मैंने एक सवाल पूछा था ऐसे ही खुद से और उसका जवाब मिला था, उस पहाड़ से निकलने के बाद भी मैंने तुम्हें देखकर दो सवाल पूछे थे तब मुझे जवाब मिले थे लेकिन ऐसा सिर्फ एक एक बार ही हुआ था, मतलब हर मुसीबत पर करने के बाद मैं जो भी सवाल पूछती हूँ उसका जवाब मिलता है इस दुनिया में, अब जब इस समुद्र को पार करके हम उस मैदान में जाएंगे तो वहाँ कोई भी फालतू बात मत करना जिसमे कोई सवाल हो, सबसे पहले हम गजरीगांव के बारे में सवाल पूछेंगे , शायद जवाब मिल जाये "
विभु- " हाँ , ये बात तो सही है, और शायद इस बार तुम तीन सवाल पूछ सकती हो क्योंकि तुमने तीसरी मुसीबत पार कर ली है "
पिया -" हाँ , ऐसा भी हो सकता है , आई होप कि जवाब मिल जाये और वहाँ के हालात का कुछ पता चल सके पता नही डैडू क्या सोच रहे होंगे मेरे बारे में, शायद ये कि उनकी बहादुर बच्ची मैदान छोड़ के भाग गई "
विभु- " ऐसा कुछ नही होगा, वो तुम्हारे पापा हैं और बहुत समझदार भी हैं , उन्हें पता होगा कि जरूर तुम किसी दूसरी मुसीबत में फँस गई होगी"
पिया- " तब तो मेरी टेंशन की वजह से काम भी नही कर पाएंगे"
विभु- " भई मैं तो इतना जानता हूँ कि मेरे सामने जो लड़की बैठी है उसने अपने पापा के बारे में जानने से पहले गजरीगांव की जनता के बारे में किताब से सवाल पूछा तो जाहिर है कि उसके पापा भी अपनी बेटी की टेंशन करने से पहले गजरीगांव की जनता की सेफ़्टी की टेंशन करेंगे और काम भी करेंगे , पता है पिया तुम और तुम्हारे पापा जैसे डेडिकेटेड ऑफिसर्स और भी होने चाहिए , तुम यहाँ से जाकर अपने पापा को बोलना की अपनी कम्पनी का प्रोडक्शन और आगे ले जाएं ताकि देश को ज्यादा से ज्यादा ईमानदार ऑफिसर्स मिल सकें"
पिया (गुस्से में) - " तुम सच मे पागल हो , डैडू शादी नही करेंगें अब"
विभु - ( हँसते हुए) - " अरे मै खन्ना सर की शादी की नही बल्कि तुम्हारी शादी की बात कर रहा हूँ
पिया- " दुबारा ये फालतू बकवास की न तो फिर से धक्का दे दूँगी इसी समुंदर में और वापस से ऊपर लेके भी नहीं आऊंगी , समझे, पता नहीं क्यों यहाँ टपक आये तुम, मैं तो अकेले ही सब संभाल सकती थी, सबसे बड़ी मुसीबत न तुम्हारी बकवास है फिलहाल जिसका कोई इलाज नही है मेरे पास "
पिया गुस्से से दूसरी तरफ मुँह फ़ेर कर बैठ गई । विभु बेचारा मन ही मन खुद को कोसते हुए एक तरफ सिकुड़ कर बैठा रहा और चम्पो चलती रही।
......
" सर उठिए , उठिए सर , प्लीज़ ..... ,खन्ना सर उठिए " संवर बुरी तरह झकझोर कर खन्ना को उठाने की कोशिश कर रहा था लेकिन वे गहरी नींद में थे और जरा सा हिले भी नहीं। संवर के चिल्लाने से प्रोफेसर थॉमस जाधव की आँख खुल गई ।
थॉमस- " व्हाट हैप्पन, व्हाई आर यू शाउटिंग सो लाउडली( क्या हुआ, इतनी जोर से क्यों चिल्ला रहे हो) "
संवर ( बुरी तरह घबराते हुए) - " आप खुद ही देख लीजिये , चलिए ।"
संवर की घबराई और बौखलाई हालत देख कर थॉमस भी घबरा गया और उसके साथ तुरन्त उस कमरे से बाहर आया, सुबह का सूरज दस्तक दे चुका था लेकिन आसमान में अजीब सी मनहूसियत छाई हुई थी और जमीन कल रात के हौलनाक नजारों की याद से अभी तक डरी हुई लग रही थी।
संवर के पीछे पीछे आते हुए प्रोफेसर ने किसी तरह अपनी तोंद को संभाल कर पकड़ा हुआ था जो उनसे भी तेज दौड़ने की जुगाड़ में थी, फार्महाउस के गेट पर आकर संवर रुक गया और उसने गेट के दाईं तरफ इशारा किया, जब प्रोफेसर के वहाँ देखा तो उसके भी होश उड़ गए।
थॉमस- " ओह माय गॉड, मैं कभी ड्रीम में भी नही सोच सकता था कि ये चीज इतना हॉरिबल बन जायेगा, ये सब मेरा फॉल्ट है"
गेट के बाईं तरफ फॉर्महाउस के वॉचमैन की लाश बहुत ही वीभत्स हालत में पड़ी हुई थी, फार्महाउस के वॉचमैन और केयर टेकर को कुछ दिन पहले पिया ने खुद अरेस्ट किया था और इसकी जानकारी संवर को भी थी, इस तरह वाचमैन की लाश देखकर वो बहुत डर गया था और उस लाश की हालत भी बहुत खराब थी उसके चेहरे पर काले फफोले पड़े हुए थे लेकिन चेहरा पहचान में आ रहा था बाकी के पूरे शरीर को किसी ने बुरी तरह खोल कर रख दिया था जिससे सभी अंदर के अंग बाहर आ चुके थे, ताजा मांस और खून जमीन पर पड़ा हुआ था।
थॉमस वहीं सिर पकड़ कर बैठ गया , संवर ने उसे सम्भाला और वापस अंदर लेकर आया।
संवर- " आप प्लीज़ कुछ बताएंगे कि ये सब क्या चल रहा है, कब तक ऐसी ही लाशें देखनी पड़ेंगी हमें "
संवर की आवाज में गुस्से का भी भाव था, कल रात से इतना सब देखना उसकी बर्दाश्त के बाहर था।
थॉमस- " सब मेरा फॉल्ट है, अब कोई नही बच सकेगा, सब मरेंगे , ओह गॉड ..."
संवर- " ये बड़बड़ाना बन्द कीजिये , कुछ बताइये प्लीज़, क्या है ये सब , कौन हैं ये शैतान , क्यों मार रहे हैं सबको"
थॉमस- " गर्ल्स किधर हैं "
संवर- " वो सब सो रही हैं और ठीक हैं अब आप मुझे खुद से कुछ बतायेंगे या मैं अपने तरीके से उगलवाऊं, बताइये इन सबके चीजो के लिए आप बार बार खुद को ब्लेम क्यों कर रहे हैं, चल क्या रहा है आखिर"
थॉमस- " सब बताता हूँ, गर्ल्स को भी इधर बुला लाओ"
संवर - " नहीं , अगर तुम यहां से भाग गए तो मुझे किसी सवाल का जवाब नही मिलेगा "
थॉमस - " बिलीव मी, मैं यहीं हूँ , बेटा खो दिया, वाईफ भी मर गई, अब क्या बचा है जिसके लिए भागूँगा"
कुछ सोचकर संवर ने बाहर जाकर संयोगी को आवाज लगाई, थोड़ी देर में लड़कियाँ भी वहाँ आ गईं , बिना किसी की ओर देखे और बिना कोई भूमिका के थॉमस ने कहना शुरू किया ।
थॉमस- " मैं इस फार्महाउस का मालिक हूँ, तकरीबन पन्द्रह दिन पहले मेरे बेटे अकुल का मर्डर हुआ था इसी जगह, मैं उस रात इसी फार्महाउस में था लेकिन अपनी सीक्रेट लैब में एक सीक्रेट एक्सपेरिमेंट में बिजी था, शोर शराबा सुनकर मैं बाहर आया और मुझे फार्महाउस के दलदल के पास अकुल की कीचड़ से सनी लाश मिली, मैं वापस फार्महाउस की अपनी लैब में आ गया और अपने बेटे को वापस जिंदा करने के पागलपन में मैंने उस रात सबसे बड़ी गलती कर दी "
संयोगी - " आपको पता था न कि आपका बेटा अय्याश था और उस रात उसने एक मासूम की हत्या की थी"
थॉमस- " जानता था लेकिन अपने एक्सपेरिमेंट की सनक में कभी उस पर ध्यान ही न दे सका, लेकिन मैं उसे बहुत प्यार करता था, उसे वापस जिंदा देखना चाहता था और इसी लिए मैंने उसकी आत्मा को नरकपिशाच के हवाले कर दिया जिसने मेरे बेटे की आत्मा को जल पिशाच बना दिया "
संवर- " ये सब क्या बकवास कर रहा है ये आदमी, पगला गया है क्या, कौन नरक पिशाच , किसकी बात कर रहा है , साले तू सायंटिस्ट है या तांत्रिक"
थॉमस- " लगातार अपने सभी एक्सपेरिमेंटस में फेल होने के बाद मुझे मेरी जॉब से निकाल दिया गया था तब मैंने अपने एक्सपेरिमेंट को सक्सेसफुल बनाने के लिए तंत्र की हेल्प ली और पहली बार उस का प्रयोग अपने बेटे की आत्मा पर किया और ये सब हो गया"
संवर- " हममें से किसी को कुछ समझ नही आ रहा, शुरू से सब कुछ बता एक एक बात डिटेल में"
थॉमस ने अपनी गीली आँखे पोंछते हुए हाँ में सिर हिलाया वो कुछ बोलता उससे पहले ही परी की एक हौलनाक चीख कमरे में गूँज गई, सब ने अपने पीछे खड़े खन्ना जी को देखा जो होश में आ चुके और उनकी आँखे काली हो चुकी थीं और शरीर से बदबूदार काले रंग की कीचड़ बह रही थी।
क्रमश:......
2 Comments
Is part me bhut Maja aaya such me jb savar chilla k bolta h sale tantrik h ya scientist ar story bhi bhut interesting h ab Raj se parda uthega
ReplyDeleteHan is thomas ka bahut drama h story me
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