कहानी - जल पिशाच 

भाग -16

लेखिका - आस्था जैन "अन्तस्"


जल पिशाच - भाग 16

नेहा ने थॉमस की गर्दन पर मजबूत पकड़ बनाये हुए थी। थॉमस दर्द से छटपटा रहा था। नेहा की आँखे सुर्ख काली होती जा रही थीं। संयोगी इन सबसे अनजान अपने दिमाग में दिख रहे अनगिनत दृश्यों को साफ देखने की कोशिश कर रही थी। कुछ लाल काले से धुँए में से झाँकते लोगों को वो देख पा रही थीं। बहुत से पिजरों में कैद लाशें, कुछ गन्दे लिबासों में लिपटे हुए कंकाल, कुछ काँच के ज़ारो में उबलता तरल, ... ये सब देख  वो बुरी तरह काँप रही थी और उसका सिर में असहनीय दर्द हो रहा था। तभी उसे कुछ ऐसा दिखा जिससे उसका ध्यान अपने सभी दर्द से हट गया। जिस लैब के कई सारे दृश्य उसे दिख रहे थे। उनमें से एक जगह एक लंबे  पिंजरे में कैद उसे वासु और राधे दिखाई दिये। संयोगी को अहसास हुआ कि वे दोनों उसे देख सकते हैं। और शायद उसे पहचान भी पा रहे थे। 

" वासु, राधे, कैसे हो तुम दोनों " संयोगी ने अपनी आवाज़ को उस लैब में गूँजते हुए सुना। संयोगी की आवाज़ भी थॉमस की उन तरंगो के साथ ही उस लैब में जा पा रही थीं। 

" हम .... हमारी छोड़ो, तुम्हे क्या हुआ है संयोगी , किसी धुँधले साये सी क्यों दिख रही हो तुम, मरकर भूत तो नही बन गई तुम " राधे ने कहा और वासु ने उसे एक चपत लगाई।

" हमेशा गलत ही बोलेगा मनहूस ,  तुम बताओ संयोगी तुम जिंदा हो क्या , तुम हमे सुन पा रही हो न " वासु ने पूछा।

संयोगी - " हाँ, मैं सुन पा रही हूँ, मैं जिंदा हूँ। मैं थॉमस के तंत्र के सहारे और अपने दिमाग के जरिये यहाँ आई हूँ। "

राधे - " उस कमीने के तंत्र में मत फँस संयोगी , वापस चली जा, उसने हम दोनों को न जिंदा रखा है न मुर्दा, न इंसान न पिशाच, बर्बाद हो चुके हैं, अंदर ही अंदर जमे पानी की तरह सड़ रहे हैं हम दोनों, उसने लाखों लोगों की जान ली है । तू उससे दूर रह और जा यहाँ से वरना वो तुझे भी कैद कर लेगा" 

वासु- " राधे सही कह रहा है। तू उस शैतान से दूर चली जा और इस जगह से भी। यहाँ कुछ नॉर्मल नही रहने वाला है अब, बर्बादी शुरू होने वाली है"

संयोगी- " जितनी बर्बादी होनी थी, हो चुकी है वासु। मैं सब जानती हूँ उस थॉमस के बारे में। तुम चिंता मत करो। मैं उसके कब्जे में नही हूँ। वो तो खुद सब ठीक करने चाहता है। तुम दोनों को बस उस किताब को मेरे सामने लेकर आना है। जो कि इसी लैब की किसी अलमारी में रखी है। " 

वासु -" किस किताब की बात कर रही है तू संयोगी और वो थॉमस सब ठीक क्यों करेगा जबकि उसी ने सब बिगाड़ा हुआ है" 

संयोगी- " क्योंकि जिन जल पिशाचों को उसने बनाया था , उन्होंने उसके ही परिवार को खत्म कर डाला। थॉमस के पास इस लैब में एक किताब है रसायन विज्ञान की, उसके अंदर कुछ पन्ने हैं। जिन पर नरक पिशाच को धरती पर लाने की विधि लिखी है। उन्ही पन्नो को तुम्हे मुझे दिखाना है। "

वासु- " लेकिन हम इस पिंजरे से बाहर नही आ सकते संयोगी , वो शैतान हमे कैद करके भाग चुका है। उसे बोलो कि यहाँ आकर हमे आजाद करे " 

संयोगी को कुछ समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे , क्या कहे। उसे वापस आकर थॉमस से बात करनी चाहिए या फ़िर खुद से कोई कोशिश करनी चाहिए। अभी वो इन्ही सब मे उलझी थी कि उसे थॉमस की ही आवाज सुनाई दी। 

" उन दोनो से कहो कि थोड़ी देर पहले से ही वे मेरे तंत्र से आज़ाद हैं अब वो पिंजरा सिर्फ लोहे का है जो कि उन दोनों शक्तिशाली जल प्रदूषकों को कैद नही रख सकता। उन्हें बस उसे छूने की जरूरत है।" 

थॉमस की आवाज़ सिर्फ संयोगी को ही सुनाई दी थी। वासु और राधे को नहीं । संयोगी भी ये बात समझ गई थी इसलिए उसने उन दोनों से कहा - "इस पिंजरे को छुओ, तुम दोनों आज़ाद हो जाओगे" 

वासु , राधे - " क्या......"

वासु - " छूने से कैसे, हम कई बार कोशिश कर चुके हैं संयोगी। ये साधारण लोहे का पिंजरा नही है। इसमें उस शैतान थॉमस का तंत्र भी शामिल है। और अगर ये कोई साधारण पिंजरा होता तो भी हम इसे छूकर तोड़ नही सकते न"

संयोगी - "तुम दोनों भी अब साधारण नही हो। एक बार और कोशिश करो प्लीज़" 

वासु और राधे ने एक दूसरे की तरफ देखा और मन ही मन एक और कोशिश करने का फैसला किया। दोनो ने आगे बढ़कर उस पिंजरे की सलाखों को पकड़ा। उन दोनों के शरीर मे असहनीय तकलीफ होने लगी। उनके पूरे शरीर पर गंदगी के फफोले उभर आये थे। जो बढ़ते हुए उनकी हथेलियों तक आ रहे थे जैसे ही उन गंदगी के फफोलों ने उनकी हथेलियों के जरिये उस पिंजरे की सलाखों को छुआ पूरे पिंजरे में जंग लगने लगी और लोहे का वो पूरा पिंजरा जंग की तरह झर गया। थोड़ी देर बाद वासु और राधे के शरीर भी नॉर्मल हो गये। और वे फफोले उनकी ही त्वचा के अंदर गायब हो गए । थॉमस उन दोनों को किसी दूसरे ही प्राणी में तब्दील करना चाहता था इसका आभास तो उन दोनों को बहुत समय पहले से ही था। लेकिन सही तरीके से पता नही था कि वे क्या बन चुके थे। 

अपने अस्तित्व की उलझन में डूबे हुए थे वे दोनों। संयोगी भी उनकी ये दशा देख रोने लगी थी। उसके दोस्त अब आम इंसान नहीं रह गए थे। थॉमस ने उनकी जिंदगी भी बर्बाद कर दी थी। 

वासु ने दर्द भरे लहजे में संयोगी से कहा - " गंदगी बन चुके हैं हम , अपने आप से भी घिन्न आ रही है हमें। अब भी तुझे लगता है कि उस हरामी शैतान पर तुझे भरोसा करना चाहिए। "

संयोगी - " ये सब हो चुका है वासु, उसने बहुत गलत किया है लेकिन उसे पछतावा है। वो जल पिशाचों से इस जंग में हमारे साथ है। हमे जल पिशाचो की बढ़ती हुई मुसीबत का हल खोजना ही होगा वासु और इस समय हमारी मदद सिर्फ थॉमस ही कर सकता है। वही जानता है इन शैतानो के बारे में "

राधे ने चिढ़ते हुये कहा - " हमें क्यों लड़ना है उन लाशों से। मचती है तबाही तो मचने दे। हमने शुरू नही किया है ये सब। उस थॉमस के शैतानी दिमाग ने शूरू किया है ये सब। और उसे भी इसका खामियाजा भुगतना ही होगा। वो खुद बचना चाहता है इसलिए तुम्हारी मदद का ढोंग कर रहा है। इन सबसे दूर रहो संयोगी। तुम सब दोस्तो को लेकर चली जाओ ग़जरीगांव से दूर । और उस थॉमस को यहीं छोड़ जाना ताकि हम दोनों उससे अपनी जिंदगी के बर्बाद होने का बदला ले सकें " 

संयोगी के सब्र का बाँध टूट गया वो रोते हुए बोली - " कुछ भी पहले जैसा नही है वासु, सब कुछ तबाह हो रहा है। विभु कई दिनों से गायब है। नेहा उन जल पिशाचों के कब्जे में है। परी बुरी तरह घायल है। मैं यहाँ हॉस्पिटल में फंसी हुई हूं। संवर परी को इलाज के लिए बाहर लेकर गया है। चारों तरफ तबाही है। जो लाशें मिल रही थी वो अब जल पिशाच बन चुकी हैं। जिंदा लोगों को मारकर उनके शरीर को अपना गुलाम बना रहे हैं जल पिशाच, पूरा ग़जरीगांव तबाह हो चुका है। शायद हमारा सती माई मोहल्ला भी बर्बाद हो चुका होगा। और ये सब थम नही रहा, ये हर रात और दिन आगे ही बढ़ेगा। पूरा मुंबई पूरा देश पूरी दुनिया बर्बाद हो जायेगी। किसी को तो रोकना ही होगा इन शैतानों को। शायद इसीलिए हम अब तक जिंदा बचे हुए हैं। " 

राधे ने वो किताब ढूढ ली थी। जिसमे वे तंत्र के पन्ने रखे हुए थे।
राधे - " जिंदा तुम बची हो संयोगी, हम नहीं । हम तो बदल चुके हैं। सड़ चुके हैं । ये किताब और इसमें रखे पन्ने चाहिए न उस थॉमस को। मैं लेकर आता हूँ। वहीं लेकर आऊँगा जहां तुम अभी हो। सिटी हॉस्पिटल में फँसी हुई हो न तुम। वहीं आ रहा हूँ मैं। तुम्हे वहां से निकालने और उस थॉमस को सबक सिखाने" 

संयोगी घबराते हुए बोली - "नहीं राधे, यहाँ मत आना, यहाँ चारो तरफ जल पिशाच और उनके गुलाम जिंदा लोगो की जान ले रहे हैं। तुम वहीं रहो "

वासु- " इतना तो अब हम भी जानते हैं संयोगी कि अब उस थॉमस को मारे बिना हम दोनों नही मरेंगे" 

संयोगी कुछ कह पाती उससे पहले ही वासु और राधे उस लैब के दरवाजे से बाहर आ चुके थे। जाहिर था कि अब लैब से थॉमस का तंत्र खत्म हो चुका था। वासु और राधे के वहाँ से जाने के बाद संयोगी भी अब खुद को पीछे खिंचता हुआ महसूस कर रही थी। 
उन तरंगो के खिंचाव के साथ वापस आते समय उसका सिर बेहद दर्द करने लगा था। दर्द की अधिकता के कारण हॉस्पिटल के उस कमरे में संयोगी बेहोश हो गई थी। 

थोड़ी देर बाद जब उसके मस्तिष्क की पीड़ा थोड़ी कम हुई । तो उसे धीरे धीरे होश आया। उसने खुद को वहीं ज़मीन पर गिरा हुआ पाया। उसका सिर अब भी हल्का दर्द कर रहा था। उसके चारों तरफ थॉमस के खून से बना घेरा अब काला पड़ चुका था क्योंकि खून सूख चुका था। अच्छी तरह होश में आने के बाद संयोगी ने थॉमस को खुली खिड़की से बाहर झाँकते हुए पाया। पलंग पर नेहा बेहोश पड़ी हुई थी और उसके हाथ पैर भी पहले की तरह ही बंधे हुये थे।

" नेहा बेहोश कैसे हो गई " संयोगी ने नेहा के पास आते हुए पूछा। 

थॉमस ने कोई जवाब नही दिया। संयोगी इस बार थोड़ा गुस्से में बोली - " मैंने पूछा कि नेहा बेहोश कैसे हुई " 

संयोगी की गुस्से भरी आवाज़ सुनकर थॉमस उसकी तरफ पलटा। उसका चेहरा काँच की समतल परत जैसा था। संयोगी एकदम से डर गई। उसका दिल बैठ गया। थॉमस उसकी तरफ आगे बढ़ा और नेहा की तरफ हाथ से इशारा किया। संयोगी को वो आवाज भी साफ सुनाई दी जो थॉमस की मोटी तोंद से निकल रही थी - " नेहा मर चुकी है" ।।

क्रमशः...