कहानी - जल पिशाच 

भाग 17

लेखिका - आस्था जैन " अन्तस्"


जल पिशाच - भाग 17


संयोगी थॉमस की बात सुनकर  जड़ हो गई । थॉमस के अजीब से चेहरे के लिए उसका सारा डर खत्म हो गया। नेहा के मरने की बात सुनकर उसका दिमाग हर तरह के विचार से शून्य हो गया। वो बस फ़टी आँखों की नेहा के शव को एकटक घूर रही थी। 

 " सदमे में जाने का वक्त नहीं है। वो हमारी तरफ बढ़ रहे हैं। हमें यहाँ से जाना होगा " वही अजीब सी आवाज थॉमस की मोटी तोंद से निकली। 

लेकिन संयोगी को तो जैसे कुछ सुनाई ही नही दे रहा था। उसकी बचपन की दोस्त अब उसे छोड़कर जा चुकी थी। 

अचानक उसने नेहा से अपनी नजरें हटाई और थॉमस की तरफ देखकर बेहद ठंडे स्वर में बोली - " किसने मारा इसे" 

" मैंने, ये पूरी तरह से जल पिशाचों के वश में थी। मुझे मारना चाहती थी। ये मुझे मार तो नही सकती थी लेकिन मेरी प्रक्रिया रोक देती। मैं ऐसा नही होने देना चाहता था क्योंकि तंत्र प्रक्रिया बीच मे रुकने से तुम्हारा दिमाग हमेशा के लिए उस लैब में रह जाता और शरीर यहाँ। तुम्हे बचाने के लिये मुझे नेहा को मारना पड़ा" 

" नेहा तुम्हे क्यों नही मार सकती थी" 
  
" क्योंकि मैं पहले से ही मरा हुआ हूँ। दरअसल थॉमस पहले ही मर चुका है। ये तो बस उसकी बॉडी है"

" तो तुम कौन हो " 

" मैं ............ मैं वो हूँ जिसका थॉमस ने आविष्कार किया है। मैं नरक पिशाच का पहली महत्वपूर्ण शक्ति हूँ - जल पिशाच , मेरे धरती पर आने के बाद पहली बलि मैंने थॉमस की ही ली थी। जिस तरह पानी को रहने के लिए एक बर्तन की जरूरत होती है उसी तरह मुझे रहने के लिए एक शरीर की जरूरत थी। मैंने थॉमस की आत्मा को मुक्त किया और उसके शरीर को अपना ठिकाना बनाया। मैंने ही लाशों को कब्रिस्तान से निकाल कर अपने जैसे जल पिशाच बनाये। पहले मैं लाशों को बाहर निकालता था और फिर उन्हें गंदगी का स्वाद चखाने के लिए किसी न किसी नाले या गटर में फेंक देता था। इससे मेरा उन्हें जल पिशाच बनाने का तंत्र पूरा होता था। उस तंत्र से वो सड़ी हुई लाशें सिकुड़ जाती थीं। फिर इलाके में सुबह सबको वो सिकुड़ी हुई लाशें मिलती। तुम्हारी पुलिस उन्हें मुर्दाघर ले जाती। शाम होते तक मेरे तंत्र का प्रभाव पूरा हो जाता और उनकी सिकुड़ी हुई लाशें फूल जाती और मेरे पास फार्महाउस की उस लैब में आ जाती। ये बहुत जटिल प्रक्रिया थी। मुझे सौ जल पिशाच बनाने थे। इसलिए मुझे काफी दिनों का समय लगा। "

" तुमने वासु और राधे को भी ...." 

" अरे नहीं, उन दोनों को मैंने जल पिशाच नही बनाया है। वो तो एक रात उन्होंने कुछ लाशों को फार्महाउस में आते हुए देख लिया था। इसलिए उन्होंने उनका पीछा किया और मेरी लैब तक आ गए। अब उन्हें कैद करके रखना मेरी मजबूरी थी। मैं उन्हें मार सकता था लेकिन चूँकि मैं थॉमस के वैज्ञानिक दिमाग मे था इसलिए मुझे भी कुछ नया आविष्कार करने की खुजली हुई। और मैंने एक बहुत दर्दनाक तंत्र प्रक्रिया के जरिये उन दोनों को जल प्रदूषक बना दिया। उन दोनों को तो खुश होना चाहिए। कि मैंने उन साधारण मानवों को इतनी शक्तियाँ दीं। लेकिन वो यहाँ आकर मुझे ही खत्म करना चाहते हैं " 

" वो यहाँ आये तो तुम्हारे जल पिशाच उन्हें मार डालेंगे " 

" नहीं , बिल्कुल नहीं। वो कोशिश करेंगे लेकिन असफल रहेंगें। कोई भी जल पिशाच उन्हें खत्म नही कर सकता। मैंने भी जब उन्हें जल प्रदूषक बनाया और उनके जरिये सभी कब्रिस्तानो की लाशों को प्रदूषित करके अपने तंत्र में शामिल करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने किसी भी तरह से मेरा साथ नही दिया। तो मैंने खत्म करने की कोशिश की लेकिन वो भी नही हो सका। मैं नही जानता कि ऐसा क्यों है लेकिन मैं उन्हें नही मार पाया। जाहिर है कि मेरे बनाये जल पिशाच या उनके गुलाम भी उन दोनों को नही मार पाएंगे " 

" तुम इतने दिनों से हमारा साथ देने का नाटक क्यों कर रहे थे "

" क्योंकि मैं नाटक नही कर रहा था। मैं ये सब मुसीबत खत्म करना चाहता हूँ। मैं यहाँ से जाना चाहता हूँ। मैं सच मे तुम लोगो की मदद कर रहा था या यूँ कहो कि मदद ले रहा था। अगर मेरा मकसद तबाही होता तो तुम अभी तक जिंदा नही होती और मेरे साथ बातें नही कर रही होतीं "

" तुमने नेहा को मार डाला "

" हाँ लेकिन तुम्हे बचाने के लिए, और उसे मारने के बाद मै थॉमस के दिमाग से हट चुका हूँ। क्योंकि अब मुझे पश्चाताप है। मैं इस समय थॉमस की तोंद में हूँ। उसके दिमाग से अब मेरा कोई वास्ता नही है। यही मेरी सजा है." 

" ये सारी मुसीबत तुमने पैदा की है"

" ये सारी मुसीबत थॉमस ने पैदा की थी। मैं नरक पिशाच का आदेश मानकर यहाँ आया। तबाही भी मचाई लेकिन फिर कुछ हुआ और मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ अब मैं ये सब सुलझाना चाहता हूँ। धरती को अपने बनाये जल पिशाचो और उनके गुलामो से मुक्त करना चाहता हूँ और इसी काम के लिए मैंने तुम लोगो को चुना था। तुम लोग ये सब खत्म करने में मेरी मदद कर सकते हो" 

" तुम फिर से नाटक कर रहे हो"

" अगर मैं नाटक कर रहा हूँ तो यहाँ तुम्हे सफाई क्यों दे रहा हूँ। वहाँ अपने जल पिशाचो के साथ तबाही क्यों नही मचा रहा। उन्हें खत्म करने के तरीके क्यों ढूढ रहा हूँ । इस बात को मेरे जल पिशाच भी समझते हैं इसलिए मुझ पर हमला भी कर चुके हैं। लेकिन इंसान होकर भी तुम्हे ये बात समझ नही आ रही" 

" मैं कुछ नही समझना चाहती तुम्हे जो करना है करो। मैं तुम्हारी कोई बात नहीं मानूँगी" 

" तुम्हे मेरी बात भी माननी होगी और यहाँ से बाहर भी निकलना होगा। क्योंकि खन्ना का किया हुआ जादू अब कमजोर हो रहा है। किसी भी वक्त वो जल पिशाच अंदर आ आ जायेंगे फिर तुम्हे और मुझे भी खत्म कर देंगे। इसके साथ ही उन्हें खत्म करने की सारी संभावनायें खत्म हो जाएंगी" 

" मैं नेहा को छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी" संयोगी ने दृढ़ता से कहा।

" नेहा मर चुकी है। थोड़ी ही देर में इसका ये शरीर जल पिशाचो का गुलाम बन जायेगा क्योंकि इसे एक जल पिशाच यानी कि मैंने मारा है। लेकिन मैं नही चाहता कि ये कि ये लड़की मरने के बाद भी जल पिशाचो की गुलाम बनकर अपना सिर फोड़ती फ़िरे। हमें इसे जलाना होगा । मैं आग से दूर ही रहता हूँ ।मैं इसे नही जला सकता इसलिए तुम्हे ही ये काम करना होगा।" 

" मैं तुम्हारी किसी बात का भरोसा नही करूँगी...... सुना तुमने, दफा हो जाओ यहाँ से..... मैं अपनी दोस्त को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाली , अब न मुझे तुम पर भरोसा है न तुम्हारी कहानियों पर " 

" ठीक है फिर, मैं यहाँ से जा रहा हूँ। क्योंकि अब खन्ना का जादू खत्म होने वाला है इस हॉस्पिटल से। अब मैं भी बाहर जा सकता हूँ और वो जल पिशाच अपने गुलामो के साथ अंदर भी आ सकते हैं। पर उनके आने से पहले इस लड़की की लाश ही तुम्हारी जान ले लेगी, अपना ध्यान रखना और आराम से मरना " 

थॉमस के शरीर के साथ वो जल पिशाच उस कमरे से बाहर चला गया। 

सब कुछ इतना जल्दी हो रहा था कि संयोगी एकदम सदमे में ही थी उससे रोया भी नही जा रहा था कुछ किया भी नही जा रहा था। वो नेहा के पास गई उसे झकझोरा, उसकी नब्ज देखी। धड़कन जाँच की । लेकिन नेहा सच मे मर चुकी थी। 

संयोगी के जेहन में नेहा के साथ बिताए पलों की यादें एक एक कर उतरने लगीं । दर्द ने उसके दिल को दबोच लिया था। आँखों में मजबूरी और तक़लीफ़ उतर आई थी लेकिन इससे पहले कि उसकी तकलीफ रुदन में बदल पाती नेहा ने अपनी आँखें खोल दी थीं। संयोगी नेहा के ऊपर ही झुकी हुई थी। नेहा की काली आँखे खुलती देख वो एकदम पीछे की तरफ़ हो गई। 
उसे समझ नही आया वो खुश हो या दुःखी। थॉमस का कहा सच हो चुका था। नेहा जल पिशाचो की गुलाम बन चुकी थी। 

संयोगी रेंगते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ने लगी। नेहा अभी भी लेटी हुई थी। थॉमस जाते वक्त दरवाजा खुला ही छोड़ गया था। संयोगी दरवाजे के बीचोबीच पहुँच ही चुकी थी कि तभी उसे थॉमस की दूसरी बात भी सच होते हुए दिख गई। सामने के गलियारे में कई लाशें रेंगती हुई उसी की ओर बढ़ रही थीं। 

क्रमशः ....