कहानी - जल पिशाच 

भाग 23

लेखिका - आस्था जैन " अन्तस्" 


हिम शक्ति की बात सुनकर वे दोनों ही दंग रह गए थे लेकिन विभु फिर भी शांत नही हुआ और हिम शक्ति को झूठा साबित करते हुए बोला - " तुम्हारी बच्ची या तुम्हारे पास्ट के बारे में तो मैं कुछ नही जानता लेकिन इतना जानता हूँ कि अगर तुम्हारे पास शक्तियाँ नही होती तो तुम उस रात अम्बर की आत्मा की मदद नही करते। तुमने उसकी मदद की थी और रवि ,अकुल वो दो लड़कियां उन बाकी सबको मार डाला था। अगर शक्तियाँ नही थिं तो कैसे मारा। है कोई जवाब तुम्हारे पास ? 

" हाँ , है मेरे पास जवाब, मैंने नही मारा था उन लोगो को। वो उस लड़के की आत्मा की ही शक्तियाँ थीं। लेकिन मैं भी खुद को रोक नही सका था उसके साथ आने से। मैं .... विवश था बाहर आने को क्योंकि यही मेरा श्राप था। " हिमशक्ति ने क्रोध में जवाब दिया। 

" किसने दिया तुम्हे श्राप और क्यो। आखिर तुम्हारी कहानी क्या है हिमशक्ति" नेहा ने दुखी होते हुए पूछा। 


"  त्रेता युग मे इसी स्थान पर राजा कुमरावत का राज्य था। वो मेरे पिताजी थे। उन्होंने ही उस समय कुछ असुर शक्तियों की साधना की और जल पिशाच का निर्माण किया। वो जलपिशाच लोगो के शरीर का पानी निकाल कर उनमें अपना गन्दा पानी भर कर उन्हें अपने जैसा बनाने लगा था। राजपुरोहित को जब ये सब पता चला तो उन्होंने अपनी साधना के दम पर पिताजी के बनाये उस जल पिशाच को बंदी बनाकर नरक भेज दिया। उस कार्य मे उन्होंने मेरे भी सहायता ली। जलेश्वर का आह्वान कर मुझे हिमशक्ति की शक्तियां दी गईं। मेने प्रजा के हित में काम किया। लेकिन राज पुरोहित की साधना के चक्र में जल पिशाच जैसे ही बंदी बना मेरे पिताजी की मृत्यु हो गई। उसी संघर्ष में जल पिशाच ने मेरी बेटी को भी मार डाला। मैं जिन शक्तियों की दम पर जल पिशाच से लड़ रहा था। वे शक्तियाँ मेरी बेटी के प्राण न बचा सकीं। और जल पिशाच भी नरक जा चुका था अब मैं उससे अपनी बेटी की हत्या का बदला भी नही ले सकता था। इसलिए जल पिशाच के नरक जाते ही मैंने अपनी समस्त शक्तियो का त्याग कर दिया और राज्य से दूर इस दलदल में आकर समा गया। और फिर मैंने ही दिया था खुद को श्राप, कि मैं कभी वापस न आऊँगा इस दुनिया में। इसी दलदल में हमेशा के लिए धँस जाऊँगा । कभी नही उठूँगा अपनी समाधि से । लेकिन जल पिशाच ने जाने से पहले कहा था कि वो वापस आयेगा और तब मुझे अपनी समाधि से उठना होगा। और फिर उस रात अम्बर की शोषित आत्मा को देखकर मेरी समाधि टूट गई। और मुझे बाहर आना पड़ा क्योंकि उस रात जल पिशाच भी धरती पर आ चुका था।  लेकिन अब मैं उससे लड़ नही सकता था क्योंकि मैं तो पहले ही सभी शक्तियो का त्याग कर चुका था। इसलिए जलेश्वर ने तुम दोनों को इस कार्य के लिए चुना है। मैं सिर्फ जानकारी दे सकता हूँ जो मैं जानता हूँ । इसके अलावा मैं किसी की मदद नही कर सकता हूँ और न ही पहले कर सकता था वरना तुम्हारे दोस्तो को बचाने की जगह मैं पूरे इलाके को बचाता और उस जल पिशाच को उसी रात खत्म कर देता।" हिमशक्ति ने पूरी बात उन दोनों को समझाई। 


" कोई बात नही , तुमने जलेश्वर लोक में मेरी बहुत मदद की थी। तुम अब भी बहुत कुछ कर सकते हो। " पिया ने कहा। 


" मुझे माफ़ कर दो। मैं परेशान हूँ। इसीलिए तुम्हे इतना सुना दिया। पर  मैं क्या करूँ कहाँ ढूढ़ने जाउँ अपने दोस्तों को , पता नही वो कैसे होंगे, होंगे भी या ..... नही " विभु रो पड़ा। 


हिमशक्ति ने आगे बढ़कर विभु को सम्भाला और बोला -" तुम ढूढ सकते हो।तुम्हारे पास बहुत शक्तियाँ हैं। बस तुम्हे उनका उपयोग करना है। हर उस जगह के बारे में सोचो जहां तुम्हें लगता है कि तुम्हारे दोस्त जा सकते हैं। सोचो " 

" अगर वासु और राधे इस जगह से आज़ाद होकर भागे होंगे तो वो जरूर पुलिस स्टेशन या फिर हॉस्पिटल या फिर अपने घर ही जायेंगे , ऐसा मुझे लगता है। " पिया ने सोचते हुए कहा। 


"पुलिस स्टेशन का हाल तो तुम देख ही चुकी हो पिया , वहाँ कुछ था क्या , वासु राधे खन्ना सर संयोगी संवर नेहा कोई भी था क्या वहाँ ?" विभु ने पूछा। 


" वहाँ कुछ कटे हुए इंसानों के अंग थे बस और कुछ नही था वहाँ "पिया ने बताया।

" ठीक है तो फिर अब तुम हॉस्पिटल के बारे में कुछ जानने की कोशिश करो।मैं अपने घर के बारे में जानने की कोशिश करता हूँ। " विभु ने कहा और अपनी आँखें बंद करके उन पर हाथ रख लिए। पिया ने भी ऐसा ही किया। 


थोड़ी देर बाद दोनों ने हाथ हटाकर आँखे खोलीं। विभु का चेहरा खुशी और आंसुओ से भीग गया था। जबकि नेहा बुरी तरह डरी हुई और हैरान थी। 


" क्या हुआ स्वामिनी, आपने क्या देखा। आप इतनी डरी हुई क्यो हो " हिमशक्ति ने पूछा। 


" वो मैं , मैने देखा कि हॉस्पिटल के मुर्दाघर में सब लाशें सिकुड़ी हुई फ़र्श पर पड़ी हैं। कुछ गन्दे से कीचड़ से सने लोग जो उन लाशों में अपनी गंदगी डाल रहे हैं। " पिया ने घबराते हुए बताया।


" वही लोग जल पिशाच हैं पिया। जिन्हें पहले इस लैब में मैने देखा था। वही बाकी की लाशों को जल पिशाच बना रहे है , और कुछ देखा क्या तुमने " विभु ने पूछा।


" हाँ हॉस्पिटल के सारे वार्ड खाली पड़े थे लेकिन एक कमरे के दरवाजे पर कुछ जल रहा था। क्या जल  रहा था वो साफ नही दिखा।"  पिया ने बताया। 

" कोई बात नही, वैसे भी हम वहाँ बाद में जाएंगे। अभी हमे सती माई के मोहल्ले जाना होगा । वहाँ लोग जिंदा हैं। वासु है , राधे है। रामशरण भैया हैं। कंचा है। संयोगी नेहा परी संवर मुझे वहाँ नही दिख रहे लेकिन वो भी वहीं कहीं होंगें। पहले हमें उन लोगो के पास चलना चाहिए। हो सकता है खन्ना सर भी वहीं हो" विभु ने कहा। 

" हाँ हो सकता है। हम सती माई मोहले ही चलते हैं। तुम भी साथ चलोगे न हिमशक्ति " पिया ने पूछा।

" हाँ हाँ, हमारी चम्पो भी साथ जाएगी , क्यों है न " विभु ने हिमशक्ति के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।


" हाँ जरूर और अगर आप फिर से मेरी सवारी करना चाहे तो मैं कुछ ही पलों में आपको वहां तक पहुँचा दूँगा जहां आप जाना चाहते है क्योंकि जलेश्वर लोक में मेरी स्वामिनी की मदद करने के बाद ये शक्ति तो मुझे अपने आप मिल ही चुकी है और मैं इसे त्याग भी नही सकता और मैं त्यागना भी नही चाहता " हिमशक्ति ने कहा और अपने दोनों बर्फ़ के हाथ उन दोनों के सामने फैला दिये। पिया और विभु ने उसके एक एक हाथ को थाम लिया और उन दोनों को साथ लेकर हिमशक्ति वहां से गायब हो गया। 

 क्रमशः ..... 


राइटर्स नोट - पहले तो छोटू से पार्ट के लिए सॉरी। टाइम की बड़ी कमी है। क्या करें । आगे के पार्ट भी शायद छोटे हों लेकिन सब जबरजस्त होंगें😃😃. और हाँ इतने टाइम से सब पूछ रहे थे कि " गुप्तचर"कब आएगी अब आ गई तो कोई सुन ही नही रहा। ये तो गलत बात है भाई, सुनकर आप समीक्षा नही देंगे तो फिर हम आने वाली कहानियों में सुधार कैसे करेंगे। इसलिये जाइये और " गुप्तचर " सुनकर आइये और बताइये भई कैसा लगा हमारा गुप्तचर आपको 😍😍😍😄😄. जल्द ही मिलेंगे नए पार्ट के साथ। ॐ नमः 😍🙏


गुप्तचर - कहानी की लिंक 

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