नाग कन्या-एक रहस्य (पहला सत्र) 
लेखक - राजेन्द्र कुमार शास्त्री "गुरु" 

समर्पित- मैं यह उपन्यास मेरी प्यारी बहन आरती सिंह पाखी को समर्पित करता हूँ।  

नाग कन्या -एक रहस्य

पहला भाग-

भाग - 1

अधोमती नगरी दिखने में जितनी विशाल थी उतनी ही ख़ूबसूरत व साधन सम्पन्न थी। प्रजा राजा अभयसिंह से बहुत खुश थी । क्योंकि वे बहुत ही दयालु किस्म के राजा थे। राजा अभय सिंह के एक बेटा था जिसका नाम वीरप्रताप था। अपने नाम के अनुरूप वीर प्रताप बहुत ही बहादुर था । उसे चुनौतियों वाले कार्य करने में मजा आता था। अपने पिता की ही तरह वीर प्रताप बहादुर होने के साथ-साथ निष्ठावान और दयालु भी था । वह प्रजा की आँखों का तारा था । सभी लोग उसे बेहद पसंद करते थे । उसके बचपन के चार मित्र थे, जो हमेशा उसके साथ ही रहते थे। उसकी महानता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था की उसके सभी दोस्त सामान्य परिवार के होने के बावजूद वह उन्हें उतना ही मान व सम्मान देता था जितना की किसी शाही परिवार के सदस्य को। उसके चारों मित्रो में से एक ब्राह्मण , एक मीणा, एक लोहार का व एक खाती का बेटा था। लेकिन फिर भी वह हमेशा उन सब को अपने बराबर का दर्जा देता था। उसके लिए मित्रता में कोई भेदभाव नहीं था । वह मानता था की दोस्ती का रिश्ता जात-पात, धर्म और ऊंच-नीच से बढ़कर होता है।

एक रोज जब वे पांचों मित्र एक साथ बैठे बाते कर रहे थे तो उनमे से ब्राह्मण पुत्र कुछ चिंतित लग रहा था। राजकुमार वीरप्रताप को जैसे ही उसकी उदासी का पता चला उसने झट से उससे पूछ लिया-

- क्या हुआ दोस्त आज उदास क्यों हो?

ब्राह्मण पुत्र- नहीं तो तुम्हे ऐसे ही लग रहा है।

`कुछ कैसे नहीं हुआ? हमेशा तो तूं हमें कहानियां सुनाता है तो आज यूँ मायूस क्यों है?`, सभी दोस्तों ने एक सूर में कहा।

ब्राह्मण पुत्र- अब क्या बताऊँ आप सब को । मेरे पिताजी ने मुझे पांडित्य विद्या ग्रहण करने के लिए अहिल्यापुरी जाने को कहा है।

राजकुमार – क्या! ये अहिल्या पूरी कहा है?

ब्राह्मण पुत्र – यहाँ से 200 मील दूर। मैं कभी घर से बाहर अकेला नहीं गया । ऐसे में मुझे चिंता हो रही है। वैसे भी मैं आप सभी को छोड़कर अकेला नहीं जाना चाहता।

मीणा पुत्र- तो कोई बात नहीं दोस्त । हम तुम्हारे साथ चलते हैं। तुम वहां जितने दिन रहोगे उतने दिन हम भी वहीँ रह लेंगे।

ब्राह्मण पुत्र – ऐसा नहीं हो सकता।

लोहार पुत्र – क्यों?

ब्राह्मण पुत्र- क्योंकि जिस आश्रम में मैं शिक्षा ग्रहण करूँगा उसमे किसी अन्य को रहने की अनुमति नहीं है।

राजकुमार – ऐसा है क्या?

ब्राह्मण पुत्र – हाँ!

लोहार पुत्र – तो फिर एक ही उपाय है । क्यों न हम तुम्हे छोड़ आते हैं । अगर हमें भी रस्ते में कोई अच्छा सा काम मिल गया तो कर लेंगे। क्यों दोस्तों सही कहा न?

ब्राह्मण पुत्र- सही कहा । लेकिन वीर प्रताप क्या काम करेगा? हम तो सभी काम कर लेंगे । पर यह तो राजा का लड़का है ऐसे में......

मीणा पुत्र- हाँ! ये भी है पर तुम काहे को चिंता कर रहे हो। जितने दिन तुम वहां विद्या ग्रहण करोगे । उतने दिन में तो वीर प्रताप हमारे लिए भाभी ले आएगा।

उसके ऐसा कहते ही सभी दोस्त ठहाके मारकर हंसने लगे।

मीणा पुत्र ने कहा – बोलो वीर क्या विचार है? चलोगे हमारे साथ?

राजकुमार – क्यों नहीं दोस्त । वैसे भी मुझे तो यात्रा करना पसंद है। खैर तुम ये बताओ मानिकेय तुम वहां कितने समय तक विद्या ग्रहण करोगे?

ब्राह्मण पुत्र – लगभग एक वर्ष तो लगेगा ही।

राजकुमार- अरे! फिर क्या दिक्कत है। एक वर्ष तो ऐसे ही निकल जाएगा। मैं आज ही पिताजी से यात्रा पर जाने की अनुमति लेता हूँ और आप भी अपने पिताजी से जाने की अनुमति ले लो।

ब्राहमण पुत्र – वाह! दोस्तों आपने तो मेरी सारी चिंता ही दूर कर दी।

सभी दोस्तों ने ब्राह्मण पुत्र के कंधे पर हाथ रखकर कहा-

- अरे! ये क्या बात हुई? हम तुम्हारे ऊपर कोई अहसान नहीं कर रहे हैं। हम तुम्हारे साथ जा रहे हैं क्योंकि हमें भी जिंदगी में कुछ अनुभव हो जाएगा।

राज कुमार और उसके सभी दोस्त उसी पल वहां से अपने घरों की तरफ निकल पड़ते हैं। रात को सभी के पिताजी ने उन्हें ब्राह्मण पुत्र के साथ जाने के लिए अनुमति दे दी लेकिन राजकुमार वीरप्रताप के पिताजी नहीं माने क्योंकि अहिल्यापुरी नगरी से 30 मील दूर जो राजा राज करता था उसकी अभयसिंह से पुरानी दुश्मनी थी । वह वीरप्रताप को भेझने के लिए तैयार नहीं था ऐसे में अगले दिन राज कुमार ने एक योजना सोची।

क्रमश....................



भाग 2

सूरज ने अधोमती राज्य में दस्तक दे दी. राजकुमार को अपने पिताजी से अपने दोस्तों के साथ यात्रा पर जाने की अनुमति का इन्तजार था. लेकिन यह सब इतना आसान न था.

राजा की एक मुहंबोली बहिन थी. वे उसका कहा नहीं टालते थे. इसके पीछे का कारण यह था की उन्होंने ही राजा को पाल-पोषकर बड़ा किया था.

दरअसल बात लगभग चालीस बरस बुरानी है. राजा की उम्र तब दस साल थी. अधोमती राज्य पर अचानक ही एक सुलतान ने आक्रमण कर दिया. अधोमती राज्य की सैनिकों की संख्या सुलतान की सैनिको की संख्या से बहुत कम थी. जिस कारण राजा के पिता विक्रम सिंह को हार का सामना करना पड़ा. सुलतान ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया. राजा की माँ, उसकी पत्नी, व सेना के मुख्य सैनिकों सहित मंत्रियों को भी सुलतान ने मार दिया.

उस वक्त राजकुमार के देखभाल के लिए एक दासी पुत्री रुपाली बाई को छोड़ रखा था. रुपाली बाई उस वक्त महज 18 बरस की थी. लेकिन उन्होंने वीरता व साहस का परिचय देकर राजकुमार के साथ घोड़े पर बैठकर वो उन्हें उनके नहिहाल सकुशल ले आई. जब राजकुमार के नाना को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी सेना व अपने पडौसी राज्यों के राजा की सेनाओं को लेकर सुलतान की सेना पर टूट पड़े. उन्होंने सुलतान की सेना को दूर तक खदेड़ दिया.

उसके बाद दस वर्षीय राजकुमार को राजा बना दिया और उनके राजकाज में सहायता के लिए रुपाली बाई को छोड़ दिया. उन्होंने राजा को अपना बेटा समझ कर पाल पोषकर बड़ा किया और उनके साथ हर चुनातियों में डटकर खड़ी रही. रुपाली बाई ने राज्य के कल्याण के लिए शादी तक नहीं की. यही कारण था की वे राजा की सबसे विश्वसनीय पात्र थी और राजा भी रुपाली बाई का कहना नहीं टालते थे. लेकिन रुपाली बाई का राजपाट में सक्रिय भाग लेने के कारण वो थोड़ी खडूस हो गई. वे किसी भी इंसान को डांट देती थी. यहाँ तक की राजा को भी.

राजकुमार को विचार आया की क्यों न रुपाली भुआ को इस कार्य में पिताजी को मनाने की मदद ली जाए. पर यह काम इतना आसान न था. राजकुमार भी रुपाली बाई की आँखों का तारा था. राजकुमार ने योजना अनुरूप रुपाली बाई के कक्ष में वक्त बिताना शुरू कर दिया. वह अब उसका हर कहना मानता था. जब राजकुमार को लगने लगा की उसकी बुआ उसकी बात को मान सकती है तो एक दिन उसने रुपाली बाई को कहा-
बुआ माँ क्या आप मुझसे प्यार करती हैं?

रुपाली बाई- हाँ! बहुत. तुम्हारे पिता से भी ज्यादा. पर तूँ ये बात क्यों पूछ रहा है?

राजकुमार- बस युहीं पूछ रहा था. मुझे लगा की आप मुझसे प्यार नहीं करतीं आजकल. क्योंकि अब मैं बड़ा जो हो गया हूँ.

रुपाली बाई- अरे! ऐसी बात नहीं है बेटा. तुम्हे किसने कह दिया ऐसा? मैं तो तुमसे बहुत प्यार करती हूँ.

राजकुमार- तो क्या आप मेरा एक काम कर दोगी?

रुपाली बाई- कहो क्या काम है? तुम्हारे लिए तो जान भी हाजिर है.

राजकुमार- पक्का कर दोगी बुआ माँ?

रुपाली बाई- हाँ! कर दूँगी. तूँ बोल तो सही?

राजकुमार- पहले आप वादा करो की आप मेरा काम करोगी?

रुपाली बाई- वादा! हूँ......

राजकुमार- बोलो क्या हुआ माँ? बोलो तो?

रुपाली बाई – ठीक है वादा रहा काम बोलो.

राजकुमार – बुआ माँ मैं अपने दोस्तों के साथ एक वर्ष के लिए यात्रा पर जाना चाहता हूँ. क्या आप पिताजी से मुझे यात्रा पर जाने की अनुमति दिला सकती हैं?

रुपाली बाई- यात्रा पर?

राजकुमार – हाँ!

रुपाली बाई – कहाँ?

राजकुमार – अहिल्यापुरी राज्य.

रुपाली बाई- क्या! तुम पागल हो गए हो क्या वीर? ` रुपाली बाई आश्चर्यचकित होकर बोलती है.`

राजकुमार- देखो बुआ माँ. अब गुस्सा मत होओ आप. आपने मुझसे वादा किया था की आप मेरा काम करोगी और मैंने तो सुना है आप कभी वादा नहीं तोड़ती.

रुपाली बाई- तुमने सही सुना है बेटा. लेकिन अहिल्यापुरी जाना तुम्हारे लिए खतरे से खाली नहीं है.

राजकुमार- पर माँ मैं वहां कौनसा युद्ध करने जा रहा हूँ. वैसे भी वहां मुझे कौन पहचानेगा क्योंकि मैं तो अपने साधारण दोस्तों के साथ जा रहा हूँ.

रुपाली बाई- पर फिर भी हम ये खतरा मोल नहीं ले सकते.

राजकुमार – पर माँ आपने वादा किया है मुझे अनुमति दिलाने का और अब आप मुकर नहीं सकती.

रुपाली बाई- ठीक है. लेकिन मैं कोशिश कर सकती हूँ. निर्णय तुम्हारे पिताजी लेंगे.

राजकुमार – ठीक है. लेकिन आप तो मेरे साथ हो न?

रुपाली बाई – हाँ! लेकिन वीर. तुम्हे कुछ हो गया तो?

राजकुमार- बुआ माँ मुझे कुछ नहीं होगा. वैसे भी मैं साधारण वेशभूषा में जाऊंगा.

रुपाली बाई – ठीक है. मैं तुम्हारे पिताजी से बात करती हूँ.

इतना कहते ही राजकुमार रुपाली बाई को ख़ुशी के मारे गले मिलता है. वह फिर उन्हें गोद में उठा लेता है और घुमाने लगता है.

राजकुमार- माँ....माँ.. आप कितनी अच्छी हो. सच में आप बहुत अच्छी हो.

रुपाली बाई – अरे! ठीक है अब मुझे निचे उतारो. मुझे चक्कर आ रहा है.

राजकुमार ने रुपाली बाई को निचे उतार दिया और ख़ुशी से उछलता हुआ उनके कक्ष से बाहर चला गया.

क्रमश...........


भाग 3

अगले ही दिन रूपाली बाई ने राजा से राजकुमार को अनुमति दिलवा दी। आखिर राजा और रूपाली भाई का सम्बन्ध ही ऐसा गहरा था कि उन्हें रूपाली बाई की बात को मानना पड़ा।
      रूपाली बाई ने राजकुमार और उसके बाकी के चार दोस्तों को तिलक लगाया। कुछ जरुरी हिदायतें दी और उन्हें विदा किया।  हालाँकि राजा और रूपाली बाई के दिल में अनेक शंकाएं थी लेकिन उन्हें राजकुमार और उसके दोस्तों की बुद्धिमत्ता और बहादुरी पर पूर्णता यकीन था।।
        रूपाली बाई ने राजकुमार को साथ में कुछ सोने की  असर्फिया दी और इसके अलावा रास्ते में खाने हेतु खाना व एक अच्छा हस्ठपुष्ठ शरीर वाला घोडा भी भेझ दिया। ताकि राजकुमार को रास्ते में चलने में किसी भी तरह की दिक्कत न आए।
     वे पांचों दोस्त उसी शाम को एक ऐसी यात्रा पर चल पड़े जिसका ठौर किसी भी दोस्त को पता नहीं था। वे तो बस अपनी बातों में मगन होकर चल रहे थे। जब रात होने लगी तो उन्होंने जंगल में एक बड़े से पेड़ के पास अपना डेरा डाला । पास में एक तालाब था। उन सब ने स्नान किया और अपने साथ लाए खाने को खा लिया। राजकुमार ने घोड़े को भी दूब खाने के लिए खुला छोड़ दिया। उन सब ने बरगद के पेड़ पर अपने झूलेनूमा बिस्तर बना लिए और आराम करने लगे। ब्राह्मण पुत्र मानिकेय ने उन सबको एक कहानी सुनाई। कहानी सुनते सब दोस्तों को नींद आ गई। अगले दिन उन्होंने उसी तालाब पर स्नान किया और अपनी मंजिल की ओर चल पड़े।
         दोपहर तक एक अन्य नगर आया । नाम था मानिकपुर । मानिकपुर नगर एक समृद्धशाली नगर था। जब वे एक घर के पास से गुजर रहे थे तो एक भद्र पुरुष ने उन्हें अपने घर जलपान करने का निवेदन किया। राजकुमार व उसके मित्रो ने सहर्ष उसका निवेदन स्वीकार कर लिया। जब सामान्य बातचीत के बाद जान पहचान का सिलसिला शुरू हुआ तो पता चला की वो घर मीणाओ का था। उस घर में मुख्य मीणा को पदचिन्ह विद्या का पूर्ण ज्ञान था। पदचिन्ह  विद्या का अर्थ यह हुआ की वह मुखिया बारह वर्ष से पूर्व तक के किसी भी राहगीर के पदचिन्ह से उस व्यक्ति के बारे में सब कुछ बता देता था। यानी  उस व्यक्ति का लिंग क्या है? वह कैसा इंसान है? बूढा है या जवान है? यानी उसके पदचिन्ह को देखकर वह उसके बारे में सबकुछ बता देता था। इसके अतिरिक्त वह किसी के पदचिन्हों की पहचान पानी के अंदर भी कर लेता था। यानि अगर वह व्यक्ति पानी के अंदर से होकर  गया है तो भी वह उसके बारे में पहचान कर लेता था।
मीणा पुत्र को मुख्य मीणा की इस विद्या में रूचि दिखी उसने तुरंत उस मुख्य मीणा से विद्या ग्रहण करने की सोची।  उसने अपने दोस्तों को कह दिया की वह जब तक ब्राह्मण पुत्र अपनी विद्या ग्रहण करेगा तब तक यही वह भी विद्या ग्रहण करेगा। जैसे ही वे सब दोस्त वापस आएँगे उस वक्त वो उन्हें यही इस घर में ही मिल जाएगा। यह कहकर उसने अपने दोस्तों को अलविदा कह दिया। सभी दोस्त मीणा पुत्र के अलग होने से थोड़े निराश थे लेकिन उन्हें मीणा पुत्र का फैसला उपयुक्त लगा।
      बाकी के अन्य चार मित्र वापस अपनी मंजिल की तरफ चल पड़े। इसी क्रम में जब एक लौहारो की नगरी लौहारपुर आई  तो वहां लौहार पुत्र को भी एक लौहार की कारीगरी ने मोह लिया । मीणा पुत्र की तरह वह भी वहीँ ठहर गया और उससे कारीगरी सीखने का निश्चय किया।
   लौहारपुत्र के अलग हो जाने के बाद अब मात्र तीन ही दोस्त बचे थे। इसी क्रम में आगे सुथार  (खाती)पुत्र ने भी एक ऐसे खाती से सुधार विद्या ग्रहण करने की सोची जो सचमच बहुत ही प्रतिभाशाली था।
         अब मात्र दो ही दोस्त बचे थे। एक ब्राह्मण पुत्र व दूसरा राजकुमार। रात होने को थी। दोनों दोस्त एक नदी किनारे ठहरे और बाते करने लगे। अब वे अहिल्यापुरी नगरी से मात्र 50 मील दूर थे। उन दोनों ने खाना खाया। ब्राह्मण पुत्र ने राजकुमार को एक कहानी सुनाई और दोनों दोस्त मस्त होकर सो गए। अगले दिन यात्रा की थकान की वजह से उन दोनों को समय पर जाग नहीं आई। दोनों ने झटपट स्नान किया और मंजिल की ओर चल पड़े। घने जंगल से होते हुए वे दोनों जा रहे थे। शाम तक वे अहिल्यापुरी नगरी पहुँच चुके थे। ब्राह्मण पुत्र आश्रम में पहुँच गया। सामान्य परिचय के बाद वो वहीँ ठहर गया । राजकुमार ने उसके गुरु के यहाँ जलपान किया और एक ऐसी मंजिल की तरफ चल पड़ा जिसका ठौर न उसे पता था और न उसकी किस्मत को। वह अपने दोस्त के पास नहीं ठहर सकता था इस लिए उसने आगे अन्य जगह जाने का निश्चय किया और उसने ब्राह्मण पुत्र से कह दिया की आज से ठीक  एक वर्ष बाद वो वापस आ जाएगा।
               राजकुमार अहिल्यापुरी से खिद्राबाद राज्य की तरफ निकल पड़ा। यह वही राज्य था जिसकी पुरानी दुश्मनी राजकुमार के पिता के साथ थी।
  क्रमश.....


भाग 4 

राजकुमार घोड़े पर बैठकर खिद्राबाद की तरफ निकल पड़ा। वह जानता था की यह उसके लिए खतरे से खाली नहीं होगा लेकिन फिर भी उसे चुनौतियों वाले कार्य करने पसंद थे। रात हो चुकी थी। वह एक बड़ी सी झील किनारे रुका। उसने स्नान किया और खाना खा लिया। उसने अपने घोड़े को चरने के लिए खुला छोड़ दिया और स्वयं एक बरगद के पेड़ पर जाकर झूलेनूमा बिस्तर बनाकर सो गया क्योंकि वह जानता था कि नीचे सोना खतरे से खाली नहीं था। रात्त गहराती जा रही थी। राजकुमार को नींद नहीं आ रही थी। क्योंकि वह आज पहली बार अकेला अपने दोस्तों के बिना सो रहा था। उसे उनकी बहुत याद आ रही थी।
     आधी रात होने को थी। राजकुमार ने अचानक अँधेरे में भी दिन के उजाले की सी रौशनी दिखी। उसने चौंककर देखा तो वो कोई और नहीं बल्कि एक इच्छाधारी नाग था। जो झील से बाहर आया था।
       उस नाग ने अपनी मणि को उस बरगद के पेड़ के नीचे रख दिया जिसके ऊपर  राजकुमार सोया हुआ था। राजकुमार को डर था कि कहीं अगर उस नाग ने उसे देख लिया तो वो उसे जान से मार देगा। उसने कम्बल को ओढ़ लिया और अपनी आँखों से बाहर का नजारा देख रहा था। उसने अपनी सांसों को रोके रखा ताकि उस नाग को किसी भी तरह का शक  ना हो।
           जब उसने उस नाग की तरफ देखा तो उसने जीवो का शिकार करना शुरू कर दिया उसने मानव रूप को त्याग दिया और उसकी जगह नाग रूप धारण कर लिया। फिर चूहे और मेढकों का शिकार करना शुरू कर दिया। मणि की रौशनी में सबकुछ साफ दिखाई दे रहा था। करीब एक घंटे के बाद वह नाग पुनः उस पेड़ के पास आया । उसने कुछ चूहों को अपने पास रख लिया । शायद झील के अंदर उसकी कोई पत्नी या बच्चे थे। और फिर अपनी मणि को लेकर वापस झील की तरफ चला गया। वो ज्यों-ज्यों पानी में आगे बढ़ रहा था त्यों-त्यों पानी खुद-ब-खुद रास्ता छोड़ रहा था। राजकुमार ये सब देखकर आश्चर्यचकित था। उसे मणि की  शक्तियों का अंदाजा लग गया था। उसने मणि के रहस्य के बारे में बहुत सी कहानियां भी ब्राह्मण पुत्र मानिकेय से  सुनी हुई थीं।
               अगले दिन वह जल्दी ही खड़ा हो गया। उसने स्नान किया और खिद्राबाद राज्य के बाजार की तरफ चल पड़ा। उसने सादे कपडे पहन रखे थे इस कारण किसी भी सैनिक ने उसे नहीं पकड़ा।

   वह शीघ्र ही एक लौहार के पास पहुंचा । वहां उसने उसे एक सोने की अशर्फी दी और बदले में एक भारी-भरकम पिंजरेनुमा औजार बनाया । उसने उस पिंजरे के चारो और नुकीली किले लगवा लीं। इसके अतिरिक्त उसने उसपर लोहे की सांकल भी लगवा ली। अब वह पिंजरा काफी भारी हो चुका था। उसने उसे उठाया और वापस जंगल में उसी झील की तरफ चल पड़ा जहाँ वह इच्छाधारी नाग रहता था।
               बरगद के पेड़ के पास पहुंचकर उसने खाना खाया और आराम करने लगा। जब शाम हो गई तो उसने उस पिंजरे को उठाया  और उस झूले पर जाकर बैठ गया। अब उसके हाथ में लगभग बीस किलो का एक ऐसा पिंजरा था जिसके चारों और नुकीली कील लगी हुईं थीं।
              उसने अब उस नाग का इंतजार करना शुरू कर दिया। वह क्या करने वाला है यह उसे पता था लेकिन क्या वह उस काम में सफल हो जाएगा ये उसे पता नहीं था। वह मणिधारी सर्प की शक्तियों से भी बखूबी वाकिफ था। उसे इस बात का पूर्णतया पता था कि जिस काम को वह कर रहा है अगर उसमे थोड़ी सी भी चूक हो गई तो फिर उसका परिणाम उसकी मौत होगी
     लेकिन उसने डरने की बजाय उसका इन्तजार करना शुरू कर दिया। आधी रात हो चुकी थी। पहले की ही भांति वह सर्प झील से बाहर शिकार हेतु निकाला । उसने हमेशा की तरह उस बरगद के पेड़ के नीचे अपनी मणि को रखा और अचानक पेड़ के ऊपर की तरफ देखा।
       क्रमश...

      

भाग 5


 उस इच्छाधारी नाग की नजर अचानक पेड़ के ऊपर चढ़ती गिलहरी पर पड़ी. उसने झट से गिलहरी को दबोच लिया और अपना शिकार बना लिया. राजुकुमार को उसकी शक्ति और उसकी क्षमताओं का अंदाजा लग गया था. वह चौकन्ना होकर बैठ गया. सर्प उसके बाद मणि की रौशनी में शिकार करने के लिए चला जाता है. इधर मणि ठीक  राजकुमार से बीस फीट निचे थी. उसने चारो और स्थिति का जायजा लिया और जैसे ही उसे पता चल गया की वह सर्प की नज़रों से दूर है तो उसने ऊपर से उस पिंजरे को जोर से उस मणि के ऊपर पटक दिया. अब मणि पिंजर के घेरे में आ चुकी थी. अचानक रौशनी जब कम हुई तो सर्प भी संदेह की वजह से रेंगता हुआ वापस आया. राजकुमार उस झूले से पहले ही दूर हो चुका था और मौका पाकर पास में ही स्थित दुसरे पेड़ के ऊपर चला गया और उसके बाद उस पेड़ से उसने देखना प्रारंभ कर दिया.       

       अब सर्प की मणि उस पिंजरे के घेरे में थी. सर्प ने अचानक जैसे ही देखा की उसकी मणि तो उस पिंजरे में है तो उसे क्रोध आ गया. वह बिना मणि के प्रयोग के वापस मानव रूप में भी नहीं आ सकता था।  इस कारण वह तेष में आ गया. उसने गुस्से में इधर-उधर देखा।   लेकिन उसे कोई भी नजर नहीं आया.गुस्से में आकर उसने उस कीलेनुमा पिंजरे पर फन मारा. एक ही फन मारते ही उसके फन में वो एक कील चुभी. वहां से उसका रक्तस्त्राव होने लगा. सर्प को ओर भी क्रोध आया उसने तेष में आकार एक के बाद एक उस पिंजरे पर प्रहार करने शुरू कर दिए. जिससे वह जख्मी हो गया और मर गया.     

         राजकुमार ने स्थिति का जायजा लिया और चारों  ओर देखा. उसने उस सर्प को एक तरफ कर दिया और उस पिजरे को उठाकर अलग कर दिया. उसने मणि  को अपने हाथ में जैसे ही लिया अचानक उसमे शक्ति का संचार हो गया.         
           
                    जहाँ वह पहले अपने आप को धोड़ा असहाय व दुर्बल मान रहा था वहीँअब वह अब शक्तिशाली बन गया. उसका दिमाग तीव्र गति से काम करने लगा. उसने सुबह होने का इंतजार किया ।
             सुबह हो चुकी थी. सूरज ने बरगद के पेड़ से होते हुए दस्तक दे दी.राजकुमार ने मणि को अपनी पतलून की एक जेब में रख लिया. उसने स्नान किया और विधिवत उस सर्प का अंतिम संस्कार कर दिया.   अब वह दुनिया का सबसे ताकतवर इंसान बन गया था. उसने तुरंत खिद्राबाद पर आक्रमण करने की सोची. चूँकि अब उसके पास मणि थी तो वह उस सुलतान के राज्य को हथिया सकता था ।  वह अपने पिता व  अपनी भुआ की नजरों में एक महान योधा का तमगा पाना चाहता था. उसने अपने घोड़े को पकड़ा और उस पर चढ़कर जैसे ही जाने लगा एक ख्याल ने उसे रोक लिया. ख्याल... कैसा ख्याल?      
      
                      उसे अपने कुकृत्य पर लज्जा आने लगी. उसे  अपनी गलती का अहसास होने लगा. शीघ्र ही उसे अहसास हो गया की उसने जो किया है वह बहुत ही गलत है.वह मणि को प्राप्त करने के लालच में ये तक भूल गया की उस सर्प के परिवार का क्या होगा? उसके बच्चो या उसकी पत्नी का क्या होगा जो निचे नागलोक में बने उसके घर में रहते हैं. उसने ब्राह्मण पुत्र मनिकेय से सुना था की इच्छ्धारी नागो के परिवार पानी के निचे रहते हैं और उनमे से परिवार के एक ही मुखिया के पास ही मणि होती है. उसे अपने किए पर पछतावा  होने लगा.       

            उसने शीघ्र ही निर्णय लिया की वह उस झील के निचे स्थित उस सर्प के परिवार से मिलकर उन्हें वो मणि वापस कर देगा और इसके अतिरिक्त उनसे अपने कुकृत्य की माफ़ी भी मांगेगा. उसने ईश्वर का आह्वान किया और चारो और देखकर शीघ्र ही उस झील के अन्दर मणि लेकर प्रवेश करना प्रारम्भ कर दिया..

            मणि के प्रभाव की वजह से पानी ने उसे रास्ता देना शुरू कर दिया। आज उसे पहली बार मणि की शक्तियों का आभास होने लगा। वह शीघ्र ही एक सोने के महल के सामने था। लेकिन उसे आश्चर्य इस बात का हुआ की वहां और कोई नाग नहीं था। महल की सुरक्षा के लिए भी कोई नहीं था। वह सावधानी पूर्वक महल के अंदर प्रवेश करने लगा। उसे पता था कि वह सबसे ज्यादा ताकतवर है क्योंकि मणि उसके पास थी। कोई भी नाग या नागिन उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती थी। कुछ ही समय बाद वह मुख्य महल के अंदर प्रवेश कर चुका था लेकिन अब तक उसे कोई भी नाग या नागिन नहीं मिला था। उसे इस बात पर आश्चर्य था। उसने जोर-जोर से पुकारना शुरू कर दिया लेकिन प्रतिउत्तर में किसी ने भी जवाब नहीं दिया। उसके दिमाग में अनेक सवाल थे...
 
क्रमश:..............


भाग -6

राजकुमार सवर्ण महल में इधर-उधर देखकर आवाज देने लगा. लेकिन उसकी आवाज का जवाब देने वाला कोई नहीं था. उसने मन ही मन सोचा भला इतने भव्य महल में कोई भी नाग या नागिन नहीं रहते. उसके दिमाग में अनेक सवाल थे. उसे उस इच्छाधारी नाग के बारे में भी याद था जिसको उसने मारा था. लेकिन उसे इस बात का आश्चर्य था की भला उस सांप का कोई भी परिवार का सदस्य यहाँ नहीं है.. लेकिन उसने सावधानी से कदम बढाने शुरू कर दिए. क्योंकि उसे शंका थी की कहीं कोई नाग या नागिन उसके पीछे से वार न कर दे. हालाँकि उसके पास नाग मणि थी इस लिए उसे किसी भी तरह का डर नहीं था.. उसने इधर-उधर कक्षों में आवाज देते हुए उस नाग के परिवार के सदस्यों को ढूढना शुरू कर दिया..
राजकुमार(जोर से) कोई है? कोई है यहाँ?
लेकिन उसकी आवाज का प्रतिउतर नहीं आया..
उसने पुन: आवाज दी. लेकिन किसी ने भी उसकी आवाज का जवाब नहीं दिया. वह शीघ्र ही अन्य कक्षों की तरफ बढ़ रहा था.. कुछ ही देर में अचानक उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी. वह किसी स्त्री की सी आवाज लग रही थी.. उसने आवाज की दिशा में जाना शुरू कर दिया. वो आवाज सवर्ण महल के कोने एक कक्ष से आ रही थी..
उसने सावधानी से कदम आगे बढाए. वह उस कक्ष में प्रवेश कर जाता है. कक्ष को देखकर वह आश्चर्य चकित हो जाता है. पूरे कक्ष में चारो और दर्पण ही दर्पण लगे हुए थे. दिखने में कक्ष इतना भव्य लग रहा था की जितनी भी तारीफ की जाए कम ही है.. पूरा कमरा सुन्दर हीरे जवाहरातों से जड़ा हुआ था. सब कुछ भव्य था.. लेकिन जैसे ही वह आगे बढ़ा तो उसने देखा की कोई लड़की सर को निचे झुकाए रो रही थी.. राजकुमार के कदमो की आवाज से उस लड़की ने ऊपर की तरफ देखा तो वो उसे देखते ही चौंक गई.. वो लड़की दिखने मे स्वर्ग की अप्सरा सी लग रही थी. इतनी सुन्दर की राजकुमार की नजरे उस पर ही टिकी रह जाती हैं.. वह शायद उस नाग की बेटी थी.. लेकिन उस नाग कन्या ने क्रोधित होकर कहा- तुम... तुम कौन हो और यहाँ कैसे आए?
राजकुमार.. जी देवी जी मैं.. मैं..मैं..
नाग कन्या- क्या मैं मैं.. बोलते हो या अभी पूरा का पूरा जहर तेरे अन्दर छोड़कर स्वर्ग लोक पहुंचा दूं..
राजकुमार- जी मैं अधोमती राज्य का राजकुमार हूँ.. यहाँ मैं अपने दोस्तों के साथ आया था. मैं अपने ब्राह्मण मित्र मानिकेय को अहिल्या पूरी राज्य के एक आश्रम में पांडित्य विद्या सीखने के लिए छोड़कर आया था..लेकिन परसों रात को आपके पिता जी को मैंने देखा..
नाग कन्या- क्या हुआ मेरे पिताजी को?
फिर कल रात मैंने नाग मणि के चाह में आपके पिताजी को मार दिया..
नाग कन्या- क्या! तुमने मेरे पिताजी को मार दिया.. फिर वह फूट-फूट कर रोने लगी..नाग कन्या के एक-एक आंसू राजकुमार के दिल पर चोट कर रहे थे. वह आत्म ग्लानी की भावना से भर गया. वह अपने कुकृत्य पर शर्मिंदा था.. उसने नाग कन्या को चुप करवाने के लिए गंभीर स्वर में कहा- हे! देवी अब शांत हो जाईये..
नाग कन्या- क्या कहा शांत हो जाऊं? तुमने मेरे एक मात्र सहारे मेरे पिता को मार दिया.. उनके सिवाय मेरे जीवन में कोई नहीं था..और तुम कह रहे हो मैं शांत जो जाऊं..
राजकुमार- हे! देवी मुझे पता है की मैंने आपके साथ बहुत गलत किया है...मैं स्वार्थ रूपी अग्नि में इतना जल गया था की मुझे सही गलत का भेद नहीं रहा और छल करके आपके पिताजी को मार गिराया लेकिन अब मुझे आपको नुकसान पहुँचाने का कोई इरादा नहीं नहीं..मैं आपका गुनहगार हूँ.. आप जो भी सजा देंगी मुझे मंजूर होगी...
नाग कन्या ने रोकर कहा- सजा.. राजकुमार आप किस सजा की बात कर रहें है.. सजा तो आपने दी है मुझे. एक ऐसी सजा जिसका भुगतान मुझे उम्र भर करना होगा..
राजकुमार नाग कन्या के एक-एक शब्दों से शर्मिंदगी महसूस कर रहा था. उसे महसूस हो रहा था की उसने बहुत गलत किया है.. उसेने शांत होकर कहा- हे! देवी, आप चाहे तो मुझे कुछ भी सजा दे दीजिए लेकिन ऐसे शब्द बोलकर मेरे सीने को छलनी मत कीजिए.. मैं आपका गुनहगार हूँ..फिर वह नाग मणि को नाग कन्या की तरफ बढाते हुए कहता है- ये लो आपकी नाग मणि. अब आप चाहें तो मुझे जान से मारे या मुझे अपनी गलती सुधारने का मौका दें..
राजकुमार के शब्दों में गंभीरता थी...नाग कन्या अब शांत हो चुकी थी.. राजकुमार ने उसे सांत्वना दी और उसे पानी पिलाया..धीरे-धीरे सब सामान्य हो गया.. राजकुमार और नाग कन्या अब कुछ ही दिनों में एक दूसरे के करीब हो गए..वह हमेशा नाग कन्या के लिए बाहर से खाना लाता उसके लिए हर वो काम करता जिससे वो खुश हो सके..आखिर एक दिन राजकुमार ने स्थिति का जायजा लेकर नाग कन्या से अपने दिल की बात कह दी.. नाग कन्या ने भी उसके प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. राजकुमार जल्द से जल्द उस रूपवती नाग कन्या से शादी करना चाहता था. लेकिन नाग लोक की परम्परा के अनुसार उसे शादी नाग लोक मैं ही करनी थी. ऐसे मैं उसे एक पंडित जी की तलाश थी जो उन दोनों की शादी करवा सके लेकिन ये सब इतना आसाननहीं था..वह जल्द से जल्द नाग कन्या से शादी करना चाहता था..क्योंकि बिना शादी के वह नाग कन्या को छू भी नहीं सकता था क्योंकि ऐसा करना नाग लोक की परम्परा के विरुद्ध होता..
एक रोज जब राजकुमार सुबह-सुबह वह अपने घोड़े को चराने के लिए झील से बाहर निकला तो उसकी नजर दीर्घशका के लिए आए एक बूढ़े ब्राह्मण पर पड़ती है. पंडित जी कुछ ज्यादा ही जल्दी मैं थे. शायद रात को उन्होंने तेल के पकोड़े ज्यादा खा लिए थे..पंडित जी जैसे ही झील से पानी का लोटा भरकर जाने लगे राजकुमार ने उन्हें पीछे से आवाज दी...
क्रमश.........

भाग -7 


पंडित जी जल्दी में भागते हुए जा रहे थे. पीछे से राजकुमार ने आवाज देते हुए कहा- रुकिए पंडित जी..

पंडित जी ने भागते हुए कहा- अरे! अब मत रोक भाई मुझे..
राजुकुमार- नहीं! पंडित जी आप ऐसे नहीं जा सकते मेरी जिंदगी का सवाल है...

पंडितजी- वत्स! आपकी जिंदगी का सवाल है तो हमारी भी नई धोती का सवाल है.अगर कहीं उक-चूक हो गई तो मेरी नई धोती का सत्यानाश हो जाएगा.

राजकुमार- पंडित जी आप  यूं भागिए मत.
पंडित जी- अरे! नहीं वत्स जो काम है बाद में बोलना मुझे. पर अभी नहीं. वरना..
राजकुमार- पंडित जी मैं इन्तजार नहीं कर सकता...
पंडित जी- अरे! बेटा तो सीख लो.. पर मुझे हल्का होने जाने दो..

पंडित जी ने राजकुमार की बात को अनसुना कर दिया और झाड़ियों के पीछे जाने लगे. लेकिन राजकुमार भी कम जिद्दी नहीं था. वह उनके पीछे-पीछे चल पड़ा..

आखिर कार पंडित जी ने थोडा गुस्सा दिखाते हुए कहा- वत्स! थोडा इन्तजार करो नहीं तेरे काम के चक्कर में मेरी पत्नी के सामने मेरा मजाक मन जाएगा.

इतना कहते ही राजकुमार थोड़ी देर के लिए वही रुक जाता है. पंडित जी बहुत तेजी से एक झाडी की ओट में जाते हैं और जोरदार धमाको के साथ अपना काम निपटा रहें होते हैं. राजकुमार उदास होकर वापस झील किनारे उनका इंतजार करने लग जाता है.

पंडित जी कुछ देर बाद आतें हैं. वे धोती बांधते हुए राजकुमार को लौटा थमाते हैं और बोलते हैं- वत्स! इतनी भी क्या जल्दी थी तुझे? चल अब हाथ धुलाओ मेरे.

राजकुमार ने पंडित जी के हाथ धुलाए. उसके बाद मुस्कुराते हुए बोला- पंडितजी मेरी  शादी करवानी थी.

पंडित जी- ओह! तो शादी के लिए इतनी क्या जल्दी थी? तेरी शादी के चक्कर में मेरी नई धोती का कबाड़ा हो जाता..  

राजकुमार- तो कोई बात नहीं मैं नई दिलवा देता हैं.
पंडित जी- वत्स! शादी के लिए इतनी भी जल्दी ठीक नहीं होती. शादी तो वो लड्डू है जिसे खाओ तो भी पछताओ और न खाओ तो भी पछताओ... अब मुझे देख लो तुम.. शादी से पहले मैं मैं खूब गोल मटोल हुआ करता था और अब देखो जैसे चूसे हुए आम की गुठली हूँ..

पंडित जी के इतना कहते ही राजकुमार ठहाके मारकर हंसने लगा... उसने हँसते हुए कहा- पर पंडित जी क्या सभी इतनी बुरी होती हैं..

पंडित जी- नहीं वत्स! सभी बुरी नहीं होती.. बहुत बुरी होती हैं. जब तक शादी न हो तो वो किसी अप्सरा सी लगती हैं और सभी प्रेमी उसकी आह में शायरी लिखते हैं. लेकिन शादी हो जाने के बाद नागिन बन कर एक मर्द की सभी आजादियों पर कुंडली मारकर बैठ जाती हैं..

राजकुमार को पंडित जी की बातो पर हंसी आ रही थी. वह मुस्कुराते हुए कहता है.. – लगता हैं, पंडित जी आप अपनी पत्नी से बहुत खफा हैं लेकिन अगर किसी की होने वाली पत्नी खुद ही कोई नागिन हो तो उसका क्या जवाब होगा..

पंडित जी आश्चर्य चकित होकर पूछा- मतलब वत्स! तुम कहना क्या चाहते हो..

राजकुमार- बस यही की आप जल्दी से मेरी शादी करवा दो..
पंडित जी- तो अच्छा अब तुम शादी करके ही मानोगे..
राजकुमार- हाँ! पंडित जी. अब उसके बिना नहीं रह सकता..
पंडित जी- कोई बात नहीं वत्स.. करवा दूंगा लेकिन तुम ये तो बताओ वो कन्या कहाँ हैं.. और तुम्हारा घर कहाँ है?राजकुमार- सब समझ आ जाएगा आपको. आप मेरे साथ चलिए..
राजकुमार ने पंडित जी का हाथ पकड़ा और उन्हें झील के अन्दर ले जाने लगा.पंडित जी ने हिचकिचाते हुए कहा – अरे! वत्स तुम मुझे डूबोकर मारने वाले हो क्या जो इस झील के अन्दर ले जा रहे हो?
राजकुमार- जी नहीं.. आप आईये ना.. फिर उसने पंडित जी का हाथ पकड़ा और अपनी पतलून से मणि निकाली.. जैसे ही उसने मणि को निकला.. पानी ने रास्ता देना शुरू कर दिया. पंडित जी ये सब देखकर आश्चर्यचकित हो गए.. उन्होंने राजकुमार का हाथ कसकर पकड़ लिया..वे दोनों शीघ्र ही सवर्ण महल में पहुँच गए.. पंडित जी नाग कन्या को देखकर आश्चर्य से भर गए. उन्होंने इससे पहले इतनी सुन्दर युवती आज तक कभी नहीं देखी  थी. पंडित जी को राजकुमार की बेसब्री का राज पता चल गया.  उन्होंने नागकन्या को अपनी बेटी बना लिया और दोनों की शादी करवा दी. उन दोनों को आशीर्वाद भी दिया और शुभमंगल की कामना भी की. उन्होंने नागकन्या का अपने हाथ से कन्या दान भी कर दिया क्योंकि नाग कन्या का पिता तो अब जिन्दा नहीं था. सारी रस्म निभाकर पंडित जी बहुत खुश हुए.. राजकुमार पंडित जी को कोई मुद्रा या खाने पीने का सामान तो नहीं दे सकता था इस लिए उसने पंडितजी को चार सोने की ईंट दे दी. अब पंडित जी ठहरे भोले ब्राह्मण तो उनके कुछ समझ नहीं आ रहा था.. उनके लिए तो वो किसी काम की नहीं थी.. वो राजकुमार को अपने मन की बात बताना तो चाहते थे  की मुझे दक्षिणा में इन पत्थर को देने की क्या जरुरत थी.. लेकिन नागकन्या को अपनी बेटी मान लेने की वजह से कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा. राजकुमार पंडित जी को बाहर तक छोड़ने आया और वादा भी ले लिया की वे इस बात को किसी को नहीं बताएँगे.पंडित जी वादे के तो पक्के थे लेकिन उन्हें दक्षिणा में उन के मन माफिक न मिलने की वजह से वो थोड़े चिंतित थे. राजकुमार वापस सवर्ण महल में चला गया. पंडित जी को उन ईंटो में कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. इस लिए उन्होंने एक-एक कर उन ईंटो को उसी झील में वापस प्रवाहित करना शुरू कर दिया...

क्रमश....

भाग- 8 


पंडित जी भोले होने के साथ-साथ कमजोर भी थे. इस कारण उनसे सोने की चारो ईंटे उठा पाना मुश्किल था. उन्होंने सोने की ईंटो को ज्यादा कीमती नहीं समझा क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में कभी  सोने को देखा तक नहीं था. इसलिए उन्होंने एक-एक कर वापस सोने की ईंटों को उसी झील में प्रवाहित करना शुरू कर दिया. पहले थोड़ी अपनी भोहें को तानकर पहली ईंट को प्रवाहित कर दिया. फिर दूसरी और फिर तीसरी. अब जैसे ही चौथी ईंट को प्रवाहित करने की बारी आई तो पंडित जी को एक ख्याल ने रोक लिया.
ख्याल? कैसा ख्याल?

पंडित जी ने मन में सोचा इस एक ईंट को तो घर ले ही जाता हूँ ओर किसी काम नहीं आई तो क्या हुआ जब अपनी पत्नी साहिबा से झगडा होगा तो उसका सर फोड़ने के काम तो आ ही जाएगी.

फिर पंडित जी ने उस ईंट को अपने लाल गमछे (छोटा तोलिया) में बाँध लिया और अपने घर की और चल पड़े. उनकी पत्नी साहिबा उनके जैसी भोली नहीं थी. वे पैसे का लेन-देन से लेकर सब काम करती थीं. पंडित जी जो कुछ भी दान-दक्षिणा में लाते वो उसका सही से प्रयोग करती.जब पंडित जी घर पहुंचे तो उन्होंने पाया उनकी पत्नी साहिबा गुस्से में थी क्योंकि पंडित जी घर देरी से पहुंचे थे. उन्होने गुस्से में आकर कहा-कहाँ रह गए थे आप? पडौस का घनश्याम आया था, अपने बेटे के नामकरण के लिए लेकिन आप हो की आपसे अपनी दीर्घशंका का काम भी वक्त पर नहीं निपटता. खैर अब जल्दी से जाओ और इस गमछे में क्या है? दिखाओ जरा?

अब पंडित जी का मन ही मन उस ईंट को निकालकर अपनी पत्नी के सर में दे मारने का दिल कर रहा था लेकिन मरता क्या करता बेचारा पंडित जी.. कुछ नहीं बोलता है..

उनकी पत्नी गुस्से में आकर वो गमछा जैसे ही खींचती है..वो सोने की ईंट उसके सामने गिर पड़ती है. पंडित जी की पत्नी ये सब देखकर आश्चर्यचकित हो जाती है.. वो उसे उठाते हुए कहती है – ये क्या है?

पंडित जी को लगता है की उनकी अपनी पत्नी का सर फोड़ने की योजना का पता पंडिताइन को चल गया है तो वो हिचकिचाते हुए कहते हैं- वो... वो.. वो ...ये ईंट तो आज मुझे किसी ने दक्षिणा में दी है..

पंडिताइन- क्या! ये ईंट आपको दक्षिणा में मिली है..

पंडित जी- हाँ!

पंडिताइन आश्चर्य से पंडित जी का हाथ खींचकर अपने घर के कच्चे मकान में ले जाती है. और धीमे से बोलती है- आपको पता भी है की आप आज अपने साथ क्या लाएं हैं.?

पंडित जी मन ही मन सोचते हैं आज तो पंडित तूँ गया.. आज तो ये नागिन तुझे जिन्दा नहीं छोड़ेगी.. लेकिन इसे कैसे पता चला की मैं यह ईंट इसका सर फोड़ने के लिए लाया हूँ... शायद यह जादू-टोना भी करती है..

पंडित जी जब कुछ देर नहीं बोलते हैं तो पंडिताइन उनसे कहती है- आज पता है आप क्या लेकर आए हैं.. आज आप हमारे घर एक ऐसी चीज लेकर आए हैं जिससे हम सात पीढ़ी तक भी खाए तब भी हमारा घर का खाना ख़त्म नहीं होगा..

पंडित जी – मतलब!

पंडिताइन- मतलब यह की यह जो ईंट है वो सोने की है.. जो बहुत महँगी है..इस ईंट को हम टुकडो में बेचकर हमारा घर बनाएंगे.. और हमारे घर का राशन लाएंगे.. अब आपको जगह-जगह दुसरे गाँवों में भी नामकरण और शादी करवाने नहीं जाना होगा..

पंडित जी- मतलब यह ईंट बहुत महँगी थी..

पंडिताइन- हाँ! क्यों क्या हुआ?

पंडित जी- क्या हुआ? तुम्हे पता है? मैंने ऐसी बाकी की तीन ईंटों को झील में प्रवाहित कर दिया..

पंडिताइन ने क्रोधित होकर कहा- क्या! आप पागल हो जो आपने इतनी बड़ी गलती कर दी..

पंडित जी ने दुखी होकर सारी कहानी पंडिताइन को बता दी. पंडिताइन को उनके भोलेपन पर मन ही मन गुस्सा आ रहा था लेकिन उसके आँखों में आज पंडित जी के प्रति सम्मान व संतोष का भाव था।  पंडिताइन ने उनसे वादा किया की वो इस बात को किसी को भी नहीं बताएगी क्योंकि नाग कन्या और राजकुमार के बारे में सुलतान को पता चल जाता तो उन दोनों के लिए मुशीबत खड़ी हो जाती.

हालाँकि राजकुमार के पास मणि थी।  लेकिन अब उसकी सबसे बड़ी ताकत ही उसकी कमजोरी बन चुकी थी और वो कमजोरी कोई ओर नहीं बल्कि नाग कन्या थी.

इधर पंडिताइन ने बहुत ही सावधानी से अपने घर का निर्माण कार्य करवाना शुरू कर दिया. पंडित जी भी हमेशा की भांति लोगो के नामकरण और विवाह करवाने में वयस्त थे क्योंकि अगर वो अपना काम बंद कर देते तो नागकन्या के रहस्य का पता लोगो को चल जाता.    इस तरह से तीन माह बीत गए. राजकुमार के अन्य चार दोस्त अपनी विद्याओं को ग्रहण कर रहे थे तो वहीँ राजकुमार नाग कन्या के साथ अपने वैवाहिक जीवन का आनंद ले रहा था. इस दरमियाँ राजकुमार नाग कन्या को शाम को सवर्ण महल से बाहर झील किनारे ले आता. वे दोनों सुबह जल्दी व शाम को जंगल के पक्षिओ और जानवरों का अवलोकन करते. उन्हें स्वच्छन्द घूमते देखकर नाग कन्या बहुत खुश होती. लेकिन उनकी खुशियों भरी वैवाहिक जिंदगी में ग्रहण लगने वाला है यह बात न तो राजकुमार जनता था और न ही नाग कन्या । वे दोनों तो बस एज दुसरे के प्यार में इस कद्र खो चुके थे की उन्हें दुनियादारी से कोई मतलब नहीं था।

.क्रमश:.....


भाग- 9

राजकुमार के साथ नाग कन्या को बाहर की हवा खाने की इतनी आदत हो गई की वो अक्सर सुबह या शाम को राजकुमार के साथ बाहर जाने के लिए जिद करती रहती. एक रोज उसकी इसी आदत के कारण सुबह जब राजकुमार सो रहा था तो नाग कन्या ने चोरी से उसकी मणि ले ली. उसने राजकुमार का प्यार से माथा चूमा और बाहर की हवा खाने चली गई.
सुबह का वक्त था. नाग कन्या झील किनारे की एक चट्टान पर बैठी थी. वह हंसो के जोड़ो को प्यार से देख रही थी. सुबह-सुबह घने काले बादल छाए हुए थे और दिन बहुत ही सुहावना था. सूरज की किरण बादलो के अंदर से आने को उत्सुक थी. लेकिन बादलों ने उसे अपने अन्दर ही दबाए रखा. वह एक हंस-हंसनी के जोड़े को सहवास करते हुए देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रही थी.
इसी दौरान खिद्राबाद राज्य का सुलतान सुबह-सुबह अपने घोड़े पर सवार होकर उस जंगल में शिकार करने को आया था. उसकी नजर जैसे ही नाग कन्या पर पड़ी तो वो  मोहित हो गया. इससे पहले उसने इतनी सुन्दर लड़की को नहीं देखा था. उसने उसे प्राप्त करने के लिए उसकी तरफ अपने घोड़े को दौड़ा दिया. नाग कन्या की नजर जैसे ही सुलतान पर पड़ी जो उसे पकड़ने के इरादे से आ रहा था तो उसने तुरंत अपनी मणि निकाली और जल्दबाजी में झील में छलांग लगा दी. पानी ने मणि के प्रभाव की वजह से रास्ता देना शुरू कर दिया. सुलतान ने जैसे ही घोड़े से नीचे उतरकर उसे देखा वो तो आश्चर्य चकित हो गया. ऊपर पानी के सिवाय कुछ नहीं था. वो हाथ मलते ही रह गया. नाग कन्या वापस कांपती हुई सवर्ण महल के अन्दर दबे पाँव चली गई.
उधर सुलतान ने जब देखा तो उसे नाग कन्या की एक सोने की मौचड़ी (जूती) मिली. उसने उसे उठाया तो देखा वह बहुत सुन्दर व हीरो से जडित थी. ऐसी सुन्दर मौचड़ी उसने कभी नहीं देखी थी. उसने उसे अपने पास रख लिया और मायूस होकर अपने महल की तरफ प्रस्थान कर लिया.
इधर नाग कन्या उदास थी. उसकी एक मौचड़ी जल्दबाजी में कूदने की वजह से बाहर ही रह गई थी. राजकुमार को इस बात का पता न चल जाए इस लिए उसने दूसरी मौचड़ी की जोड़ी को पहल लिया और राजकुमार के बगल में आकर चुप चाप लेट गई. कुछ देर बाद राजकुमार जाग गया. लेकिन नाग कन्या ने उसे उस बात का आभाष नहीं होने दिया.

उधर सुलतान जब उदास होकर अपने कक्ष में गया तो उसकी बीवी उसका इन्तजार कर रही थी. चालीस वर्षीय सुलतान की पत्नी नाग कन्या सी सुन्दर नहीं थी इस कारण वह उसे इतनी तवज्जो नहीं देता था. उसने उससे बात तक नहीं की. जब सुलतान की उदासी के बारे में एक दासी ने सुलतान की भुआ को इस सम्बन्ध में बताया तो उसने सुलतान को अपने कक्ष में बुलाया. सुलतान की भुआ तंत्र विद्या में पारंगत थी. उसने जब सुलतान से उसकी उदासी का कारण पूछा तो सुलतान ने उस सोने की मौचड़ी को अपनी भुआ को दिखाते हुए सारा घटनाक्रम  बता दिया.

सुलतान ने उदास होकर कहा- भुआ चाहे कुछ भी हो जाए मुझे कैसे भी करके उस लड़की को प्राप्त करना है. अगर भुआ मैं उस लड़की से शादी नहीं कर पाया तो मैं मर जाऊंगा. तुम कुछ करो..

सुलतान की भुआ ने मुस्कुराते हुए कहा- अरे! कादिर मैं तेरी एक मुस्कुराहट पर हजारो लडकिया वार दूं.. तो वो लड़की क्या चीज है.. अभी मैं कुछ उपाय करती हूँ..

सुलतान की भुआ ने कुछ मन्त्र बोले और मन्त्र बोलते ही चार चील की शक्ल में चुड़ैल प्रकट हुई. भुआ ने उन सब को नाग कन्या पर निगरानी रखने हेतु आदेश दिया. उसने ये कह दिया की जैसे ही नाग कन्या अकेली उस झील से बाहर  निकले मुझे तुरंत सूचित कर दे. सभी चुडैलों ने चील  का  वेश धारण करके आसमान के नाग कन्या के इन्तजार में चक्कर लगाने शुरू कर दिए.
इधर नाग कन्या उस दिन की घटना के बाद सतर्क हो गई. वह जब भी झील से बाहर निकलती राजकुमार के साथ निकलती. क्योंकि उसे वो सुल्तान वाला पूरा घटनाक्रम याद था । किंतु अगले 15 से 20 दिनों में वह सामान्य  हो गई।  लेकिन कहते हैं न अगर किसी की किस्मत में अनहोनी लिखी होनी हो तो वो होकर ही रहती है..

एक रोज हमेशा की तरह सुबह-सुबह नाग कन्या अपनी पुरानी आदत के अनुसार राजकुमार के बिना अकेली झील से बाहर आ गई. वह उसी चट्टान पर बैठी थी की .....

भाग - 10  

भाग -10

नाग कन्या सुबह-सुबह बैठी हुई थी. अचानक उसे किसी महिला की आवाज सुनाई दी. नाग कन्या चौंक गई. उसने चौंककर देखा तो कोई बूढी औरत उसकी तरफ आ रही थी. नाग कन्या ने तुरंत अपनी मौचड़ी (जूतियाँ) पहनी और झील में जाने लगी की अचानक उस बूढी औरत ने उसे आवाज दी..
- अरे! रुको बेटा .. रुको.. जाना मत... मैं तुम्हारी भुआ हूँ..

            नाग कन्या आश्चर्यचकित हो गई. उसने ऐसा कभी नहीं सुना था.. उसने उस बूढी महिला की बात को अनसुना करना चाहा लेकिन तब तक वो बूढी महिला उसके करीब आ गई उसने उसे कहा- अरे! बेटा, डरो मत मुझसे। आज काफी सालो बाद देखा है तुझे.. जब तूँ छोटी थी तब तेरे पिताजी तुम्हे लेकर आते थे....
फिर वह खांसती हुई उसके पास आती है..

बूढी महिला- उहू.. उहू.. अब ये बुढ़ापा भी देखो कितना मुश्किल है बेटा... तेरे पिताजी और तुझसे कब से मिलना चाहती थी लेकिन मिल नहीं पाई..

फिर वह उसके पास आती है और अपने कांपते हाथो से उसके गालो और उसके बालो को सहलाते हुए कहती है.. देखो मेरी प्यारी बिटिया आज कितनी सुन्दर लग रही है. तुझे किसी की नजर न लग जाए..
फिर वह थूक को उसके चेहरे पर थोडा सा थूकते हुए कहते है- थू.. थू ..थू..थू.. बहुत प्यारी लग रही हो तुम..

नाग कन्या उसके वयवहार से अस्मजस की स्थिति में पड़ जाती है.. वह संदेहात्मक नजरो से देखते हुए कहती है..

  नाग कन्या- पर मैंने तो आपको कभी नहीं देखा भुआ जी इससे पहले और ना ही पिताजी ने कभी आपके बारे में बताया था मुझे..

बूढी महिला- अरे! बेटा तुम मुझे कैसे जानती? मैं पिछले काफी सालों से बीमार थी और इस कारण तेरे पिताजी से नहीं मिल पाई. तेरे पिताजी तेरी सुन्दरता की वजह से तुझे बाहर नहीं लाते थे. लेकिन आज देखो तुम कितनी बड़ी हो गई हो. तुम अब किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही हो.. खैर तेरे पिताजी नहीं दिखाई दे रहें हैं वो कहाँ है?

नाग कन्या- (उदास होकर) वो.. वो अब नहीं रहें भुआ जी..

बूढी महिला- क्यों क्या हुआ उनको?
नाग कन्या- बस कुछ नहीं भुआ जी.. ऐसी ही ईश्वर की मर्जी थी... खैर चलो मैं आज आपको मेरे पति से मिलवाती हूँ..
बूढी महिला- अरे! तुम्हारी शादी भी हो गई.. चलो बढ़िया है.. लेकिन पहले मुझे एक काम तो करने दो.. फिर चलूंगी तुम्हारे साथ..
नाग कन्या- क्या भुआ जी?
बूढी महिला- बस कुछ नहीं.. तुम इधर देखो मेरे इस झोले ( बैग) में मैं तुम्हारे लिए क्या लेकर आई हूँ?
नाग कन्या ने मुस्कुराते हुए उस झोले को लिया और उस बूढी महिला से पुछा
नाग कन्या- क्या है भुआ जी इस झोले में?
बूढी महिला- तुम खुद देख ले बेटा.. तुम्हारे लिए कितना खूबसूरत उपहार लाई हूँ..
नाग कन्या मुस्कुराते हुए उस झोले को खोलने के लिए अपने हाथ बढाए..
उसने झोले की जैसे ही ऊपर की एक गांठ खोली उसके अन्दर से भयानक शक्लों वाली चुड़ैल निकली.. वो अचानक  डर गई.. उसकी मणि उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गई.. वो डर के मारे स्तब्ध रह गई.. उस बूढी महिला ने फुर्ती से उस मणि को उठा लिया और तुरंत नाग कन्या को अपने वश में कर लिया. उस बूढी महिला ने तुरंत उस पर मन्त्र मारे और उस बेहोस कर दिया.
वह बूढी महिला कोई और नहीं बल्कि सुल्तान की भुआ थी. नाग कन्या अब अचेतनावस्था में जा चुकी थी. इधर सुलतान की भुआ ने अपने चेहरे पर लगे मुखोटे को उतार फैंका और उस मणि को अपने झोले में डाल लिया.. सुलतान एक रथ को लेकर आ चुका था. उसने खूबसूरत नाग कन्या को अपनी गोद में उठाया और रथ में बैठा लिया. वह मंत्रो की वजह से बेहोस थी.
जिन चुडैलों को सुल्तान की भुआ ने नाग कन्या की निगरानी के लिए छोड़ रखा था उन्हें उसने वापस जाने की आज्ञा दे दी थी..
इधर राजकुमार सवर्ण महल में अकेला सोया हुआ था. उसे कुछ भी नहीं पता था की नाग कन्या के साथ क्या हुआ है?

राजकुमार का घोडा वही पास में उस झील किनारे बंधा हुआ था. सुलतान ने एक तीर चलाया और उस घोड़े को मार दिया.. बेचारा घोडा एक ही तीर से ढेर हो गया था..
नाग कन्या को सुलतान अपने राज्य की तरफ ले जाने लगा..
क्रमश.............