नाग कन्या -एक रहस्य (पहला सत्र) 
लेखक- राजेन्द्र कुमार शास्त्री "गुरु"

भाग – 11

सुलतान बेहोश हुई  नाग कन्या को अपने राज्य की तरफ अपनी भुआ के साथ ले जाता है. उसके चेहरे पर एक शैतानी मुस्कुराहट  है. वह जैसे ही महल के द्वार पर पहुँचता है बहुत से सैनिक और मुख्य सेना नायक उसका स्वागत करने के लिए तैयार रहते हैं. लाखो की संख्या में सैनिक महल के चारो और गस्त लगा रहे होते हैं. सुलतान अपनी भुआ के कहे अनुसार एक खम्बे पर बने हुए नए महल में नाग कन्या को रखता हैं. मंत्रो के असर की वजह से नाग कन्या को शाम तक होश नहीं आता है. सुलतान और भुआ अपनी विजय पर मंद ही मंद मुस्कुराते हैं लेकिन सुलतान की पत्नी सुलतान के इस निर्णय से नाराज दिखाई देती है. वह जानती है  की किसी पर-स्त्री का हरण करने का खामियाजा सुलतान को अपने राज्य को खोकर चुकाना पड़ सकता हैं।  लेकिन ना ही सुलतान और न ही सुलतान की  भुआ  उसकी बातो से सहमत होती हैं..
इधर नाग कन्या को शाम को होश आता है तो वह आश्चर्य चकित होकर खड़ी होती है..
वह चिल्लाते हुए कहती है- कोई है? कोई है? मैं कहाँ हूँ कोई बताएगा मुझे?
नाग कन्या के चिल्लाने की वजह से एक परिचारिका उसके कक्ष में दौड़ती हुई जाती है..
वह हाथ जोड़कर कहती है- खिद्राबाद राज्य की होने वाली बेगम को परिचारिका जारा का नमस्कार... कहिए बेगम आपकी क्या फरमाईश है?
नाग कन्या- ये क्या बकवास है? मैं कोई बेगम-वेगम नहीं हूँ.. और हाँ मैं कहाँ हूँ?
जारा- जी बेगम आप खिद्राबाद राज्य के सबसे आलिशान महल में हैं..
नाग कन्या- कौन लाया हमें यहाँ?

हम लाए आपको मोहतरमा. क्या है न हम आपसे बहुत मुहोब्बत करते हैं..`, सुल्तान ने मुस्कुराकर कक्ष में प्रवेश करते हुए कहा.
नाग कन्या ने क्रोधित होकर कहा- ये क्या बकवास है? तुम तो वही हो जिसने उस दिन मुझे पकड़ने के लिए मेरी तरफ घोडा दौड़ाया था..
सुलतान- जी सही फ़रमाया.. हम वही हैं और आज देखो हमारी मुहोब्बत रंग लाई..अब हम कुछ ही दिनों में निकाह करके एक होने वाले हैं..
नाग कन्या – ऐसा सोचना भी मत सुलतान... मैं एक शादी शुदा महिला हूँ.. तुम मुझे वापस जाने दो. मेरा पति सवर्ण महल में मेरा इन्तजार कर रहा है..
सुलतान- तो करने दो उसे इन्तजार.. वैसे ही बेचारा कितने दिन इन्तजार करेगा.. एक दिन तो मर ही जाएगा..
नाग कन्या- तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे पति के बारे मैं ये सब बोलने की.. मुझसे शादी करने के बारे में सोचना भी मत..
सुलतान उसके करीब जाता है वह प्यार से उसकी आँखों की तरफ देखते हुए कहता है- ये क्या बात हुई भला? हम आपसे बहुत मुहोब्बत करते हैं नाग कन्या.. हम तो आपसे शादी करके ही रहेंगे..
नाग कन्या को सुलतान की बातो पर गुस्सा आने लगा. उसकी आँखे जहर उगल रही थी. उसने क्रोधित होकर कहा- तुम समझते क्या हो अपने आप को? मैं तुम्हे तबाह कर दूँगी?

    सुलतान शैतानी मुस्कुराहट मुस्कुराते हुए कहता है - ऐसा तुम नहीं कर सकती नाग कन्या.. क्योंकि तुम्हारी मणि मेरी भुआ के पास है. अगर तुमने मुझे डस भी लिया तो मुझे कुछ नहीं होगा क्योंकी वो मणि से मुझे वापस जिन्दा कर देगी..
नाग कन्या- ओह! कमीने तुमने और तुम्हारी भुआ ने मेरी मणि भी ले ली. मैं तुम्हे नहीं छोडूंगी..
सुलतान- तुम कुछ नहीं कर सकती नाग कन्या.. तुम्हारे पास बस एक ही रास्ता है और वो है मुझसे निकाह कर लो..
नाग कन्या- हरगिज नहीं..
सुलतान- तो मैं फिर तुम्हारे साथ जबरदस्ती निकाह कर लूँगा.
नाग कन्या- ऐसा तुम नहीं कर सकते सुलतान.. मुझसे शादी करने का ख्वाब मैं तुम्हारा कभी पूरा नहीं होने दूँगी.. मैं अपनी पतित्व धर्म की रक्षा हेतु अग्नि  देव का आव्हान  करके अपने आप को जलाकर राख कर लूंगी..
नाग कन्या के गुस्से की वजह से सुलतान को अपने इरादे से पीछे हटना पड़ा. उसने परिचारिका जारा को कहा- जारा! हमारे राज्य की होने वाली बेगम का अच्छे से ध्यान रखना.. एक न एक दिन तो वो मानेगी ही..अभी इनका दिमाग तोडा अशांत है तो तुम इन्हें कुछ ठंडा पिलाओ।
नाग कन्या ने क्रोधित होकर कहा- ऐसा कभी नहीं होगा सुलतान. मेरा पति जरुर मुझे बचाने आएगा.

सुलतान- हा! हा! हा! हा! वाह! अच्छा मजाक कर लेती हो।

नाग कन्या.. तुम्हारा पति सवर्ण महल में है वो भी झील के अन्दर. उसका आना संभव ही नहीं है और और आ भी गया तो हमारी इतनी विशाल सेना है की उसे कुचल देगी। . तुम्हारे पास मुझसे शादी करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है..

नाग कन्या- ऐसा कभी नहीं होगा सुलतान वो जरुर आएगा..

सुलतान- चलो हम भी देखते है वो कैसे आएगा और कैसे तुम्हे बचाएगा..
फिर वह जारा को कहता है. – और हाँ जारा हमारे राज्य की
होने वाली बेगम की मेहमानवाजी अच्छे से करो.

ज़ारा- जी बादशाह.. इतना कहकर उसने नाग कन्या को पानी पीने के लिए पकडाया की नाग कन्या ने उसे गुस्से में फैंक दिया.
क्रमशः ......

भाग- 12 

नाग कन्या अब क्रूर सुलतान के चंगुल में फंसी हुई थी. उसकी मणि अब सुलतान की मौसी के पास थी इस कारण वह अपने आप को छुड़ाने में असक्षम थी. उसने अपने आप को छुडाने के लिए भरपूर कोशिशे की लेकिन सफल नहीं हुई.

इधर राजकुमार जब कुछ दिनों से नाग कन्या नहीं आई तो उसे बहुत चिंता हो रही थी. उसे अपने फैसले पर शर्मिंदगी महसूस हो रही . वह मन ही मन सोच रहा था की काश वह उसे बाहर जाने से रोक लेता. सच तो यह था की उसे ये तक पता नहीं था की नाग कन्या के साथ हुआ क्या है? उसे नाग कन्या के चरित्र पर कोई शक नहीं था. वह जानता था की नाग कन्या उससे बेहद प्यार करती है। लेकिन वह अपने आपको उस सवर्ण महल से बाहर निकलने में असक्षम पाता है. बिना मणि के उस सवर्ण महल से बाहर निकलना राजकुमार के लिए नामुमकिन था. धीरे-धीरे सवर्ण महल का राशन-पानी भी ख़त्म हो रहा था। ऐसे में राजकुमार के लिए उस सवर्ण महल में जिन्दा रहना मुश्किल हो रहा था.
सुलतान की पत्नी ने सुलतान को नाग कन्या को वापस छोड़ने के लिए निवेदन किया लेकन क्रूर सुलतान पर इसका कोई असर नहीं हुआ. सुलतान की भुआ सुलतान के साथ थी. वे दोनों मिलकर नाग कन्या को किसी भी तरह से छल-कपट करके निकाह के लिए राजी करना चाहते थे. लेकिन नाग कन्या का राजकुमार से सच्चा प्यार करने के कारण सुलतान के सारे ईरादे बार-बार टूटते रहते हैं. वह चाहकर भी नाग कन्या को अपनी बेगम बनाने में असफल था. सुलतान को नाग कन्या की सुन्दरता हर रोज मोह रही थी लेकिन नाग कन्या की हर बार की धमकी के आगे सुलतान बस हाथ मलता रह जाता.
इस तरह से छ: माह बीत गए. नाग कन्या अब भी सुलतान की पकड़ में थी. राजकुमार सवर्ण महल में केद होकर रह गया. सारा राशन-पानी ख़त्म होने के कारण राजकुमार एक भयानक और असहनीय मृत्यु को प्राप्त हो गया.

नाग कन्या की भी हिम्मत जवाब दे रही थी. वह चाहकर भी सुलतान की चंगुल से छुट नहीं पा रही थी. राजकुमार ऐसी भयानक मृत्यु को प्राप्त होगा ये नाग कन्या ने नहीं सोचा था. उसकी एक गलती की वजह से ये सब हो गया था. वह अपने फैसले पर अपने आपको कोश रही थी. उसके लिए राजकुमार से विरह की वेदना सह पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था. उसे तो यह भी नहीं पता था की उसका पति मर गया. इस मुश्किल परिस्थिति में भी वह अपने पतित्व धर्म का पालन कर रही थी. उसने सुलतान की उसे प्राप्त करने की इच्छा  को पूर्ण नहीं होने दिया.

ऐसे ही दो माह और बीत गए. अब मीणा के लड़के ने अपनी विद्या पूर्ण ग्रहण कर ली थी. उसने पदचिन्ह विद्या के साथ-साथ गाँव के एक ठग से ठग विद्या ओर ग्रहण कर ली. पदचिन्ह विद्या के तहत वह पानी में भी किसी भी व्यक्ति के बारह वर्ष पुराने पद चिन्हो से उस व्यक्ति के विषय में पूर्ण जानकार ग्रहण कर कर लेता था. इसके अलावा उसकी मानिकपूर नगर में दो युवको से उसकी मित्रता और हो गई. उसके दोनों दोस्तों में से एक जोहरी था. जो किसी भी तरह के आभूषण बना सकता था. इसके अतिरिक्त उसका जो दूसरा मित्र था वो एक दर्जी था जो किसी भी तरह के कपडे सिलने में माहिर था.
जैसे ही मीणा के पुत्र को बारह महीने पूर्ण हो गए उसने अपने दोस्तों का इन्तजार करना शुरू कर दिया लेकिन एक महिना अतिरिक्त गुजर जाने के बाद भी उसके दोस्त नहीं आए तो वह चिंतित रहने लगा. एक रोज जब वह उदास बैठा था तो उसके दोनों मित्र( जोहरी और दर्जी) उसके पास बैठे हुए थे.
उसे उदास देखकर जोहरी बोला- क्या हुआ मित्र आज उदास दिखाई दे रहे हो?
मीणा पुत्र- हाँ! मित्र।  मेरे दोस्तों ने मुझे बारह महीने बाद वापस इसी नगर में मिलने को बोला था लेकिन एक महिना अतिरिक्त गुजर जाने के बाद भी वे लौटकर नहीं आए. इस लिए चिंता सता रही है..
दर्जी मित्र ( भागीरथ ) – अरे! तो इसमें चिंता करने की क्या बात है? तुम्हे पता है तुम्हारे दोस्त किस नगर की तरफ गए हैं?
मीणा पुत्र- हाँ! दोस्त वो तो पता है. मेरा एक दोस्त राजकुमार वीर प्रताप और ब्राह्मण पुत्र मानिकेय का अंतिम ठहराव अहिल्यापूरी नगरी है..
जोहरी ( सूर्य प्रकाश)- अरे! तो फिर कल ही चलते हैं उनकी तरफ इस बहाने हम भी उस नगर भी घूम आएँगे.. बोलो भागीरथ क्या कहते हो?
भागीरथ – ( ख़ुशी से) अरे! वाह दोस्त तुमने तो मेरे मुहं की बात छीन ली. मैं भी यही कहने वाले था.
फिर वह मीणा पुत्र को कहता है- बोलो दोस्त क्या विचार है कल ही चले अहिल्यापुरी की तरफ?
मीणा पुत्र- हाँ! दोस्त कल ही चलेंगे.वैसे भी मुझसे अब और इन्तजार नहीं हो रहा है।

भागीरथ और सूर्य प्रकाश के साथ बात करने से मीणा पुत्र का दिल हल्का हो जाता है. वे तीनो अगले ही दिन अहिल्यापुरी नगरी की तरफ प्रस्थान करते हैं.
मीणा पुत्र अपने चारो दोस्तों के पदचिन्हों को देखता हुआ मंजिल की तरफ बढ़ रहा था. वे दोपहर तक लौहारपुर नगर में पहुँच जाते हैं. लौहारपुर नगर के मुख्य मार्ग पर वह देखता है की उसके एक लौहार मित्र के पद चिन्ह आगे की तरफ नहीं गए थे इस कारण उसे पता चल जाता है की शायद उसकी तरह  उसका लौहार मित्र भी कहीं इस नगर में कोई विद्या ग्रहण करने तो नहीं रुक गया है. वे शीघ्र ही तीनो लौहार पुत्र के पदचिन्हों को देखकर  लौहार मित्र के गुरु के घर में पहुँच जाते हैं..लौहार पुत्र मीणा पुत्र को देखकर बहुत प्रसन्न  होता है..
क्रमश......
   
भाग- 13   


दोनों दोस्त एक दुसरे को एक साल बाद देखकर बहुत प्रसन्न होते हैं. वे दोनों एक दुसरे से गले मिलते हैं. लौहार पुत्र के गुरु ने उन चारो दोस्तों को खाना खिलाया और शाम तक चारो को यात्रा में सफल होने का आशीर्वाद देकर विदा किया. चारो दोस्त अब अपने बाकी के दोस्तों की तलाश में अहिल्यापुरी नगरी की तरफ प्रस्थान करते हैं. बीच रास्ते में मीणा पुत्र लौहार पुत्र से उसकी विद्या और शिक्षा के विषय में प्रश्न पूछता है-
मीणा पुत्र- हां! तो दोस्त तुमने इन बारह महीनों में अपने गुरु से किस सम्बन्ध में शिक्षा ग्रहण की?
लौहार पुत्र ने मुस्कुराते हुए कहा- मित्र! मैं अपने गुरु से इन बारह महीने में बहुत कुछ सीख लिया है. मैं किसी भी धातुओ के मिश्रण से कुछ भी बना सकता हूँ.
मीणा पुत्र- ( आश्चर्य से) मतलब मित्र..
लौहार पुत्र- मतलब यह की मैं केवल घरेलु औजार ही नहीं बल्कि हर तरह के हथियार बनाने में कुशल हो गया हूँ. इसका फायदा यह होगा की हम हमारे राज्य में जैसे ही वापस जाएँगे मुझे राजमहल में हथियार बनाने का काम मिल जाएगा.
मीणा पुत्र- ( ख़ुशी से ) अरे! वाह मित्र तुम तो छुपे रुस्तम निकले यार.. तेरा यह हुनर तो सच में हमारे राजकुमार को बहुत पसंद आएगा... वो और राजा वीरभद्र तो बहुत खुश होंगे.
लौहार पुत्र-(मुस्कुराते हुए) लगता तो मुझे भी यही है..
फिर वह जोहरी मित्र ( भागीरथ) और दर्जी के बारे में मीणा पुत्र से जानकारी लेता है तो उसे बहुत ख़ुशी होती है की उसे दो अन्य सच्चे दोस्त मिल गए हैं. इसी दरमियाँ उसे मीणा पुत्र अपनी विद्या के बारे में भी जानकारी देता हो तो लौहार पुत्र तो आश्चर्य से भर जाता है.
वे चारो बाते करते हुए आगे बढ़ते जाते हैं. मीणा पुत्र को पदचिन्ह विद्या का ज्ञान होने के कारण उन्हें किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं होती है. वे शीघ्र ही एक अन्य नगर में पहुँचते हैं तो पाते हैं की उस नगर के मुख्य मार्ग के बाद सिर्फ उसके दो ही दोस्तों के पदचिन्ह के निशान थे. मीणा पुत्र जब गौर से देखता है तो उसे पता चल जाता है की उसका एक सुथार मित्र इसी नगर में रुका हुआ है. वे शीघ्र ही उसके गुरु के घर पहुँच जाते हैं.
अपने दोनों दोस्तों को देखकर सुथार मित्र बहुत प्रसन्न होता है लेकिन वह इस बात के लिए चिंतित भी होता है की उसके दो अन्य मित्र मनिकेय और राजकुमार उनके साथ नहीं थे. मीणा पुत्र ने उसे अपने साथ ले लिया और अहिल्यापुरी नगरी की तरफ चल पड़े. बीच रास्ते में मीणा पुत्र ने मुस्कुराते हुए वह सुथार मित्र से उसकी विद्या के विषय में प्रश्न पूछता है
- मित्र! तुमने इन बारह महीनो में क्या-क्या सीखा अपने गुरु से?
सुथार मित्र- मित्र मैं लकड़ी से या अन्य किसी भी चीज से कुछ भी बना सकता हूँ..
भागीरथ( जोहरी मित्र) मतलब दोस्त?
सुथार मित्र- मतलब यह की मैं लकड़ी व अन्य वस्तुओ को इस तरह से जोड़ सकता हूँ की वो एक इंसान या जानवर की शक्ल का दिखने लग जाता है.

मीणा पुत्र- अरे सच... फिर तो सूर्य प्रकाश उसे ऐसे कपडे बनाकर पहना सकता है की वो हूबहू एक इंसान की तरह दिखने लग जाए..
भागीरथ- हाँ! सही कहा और मैं उसे ऐसे आभूषण पहना सकता हूँ की वो तो सच में कोई लड़की दिखने लग जाए.
मीणा पुत्र- अरे! वाह! दोस्तों तुम सब तो बहुत ज्यादा योग्य हो.
सुथार पुत्र- अरे! मित्र तुम भी हम से कुछ कम नहीं हो. अब सोचो जरा अगर तुम्हारे जैसा दोस्त न होता तो हमें क्या पता चलता की हमारा मानिकेय और राजकुमार किस रास्ते से गए हैं.
भागीरथ- हाँ! तुम्हारी विद्या तो अब सबसे ज्यादा काम की है हमारे..
वे इसी तरह बाते करते हुए आगे बढ़ रहे थे. शीघ्र ही वे ब्राह्मण पुत्र मानिकेय के गुरु के आश्रम में पहुँच गए. सभी दोस्तों को लगा की राजकुमार भी अहिल्यापुरी नगरी में ही कही ठहरा हुआ था क्योंकि उनकी यात्रा का अंतिम ठहराव यहीं था. लेकिन वे हताश तो तब हो जाते हैं जब ब्राह्मण पुत्र इंकार कर देता हैं की उसे राजकुमार बताकर ही नहीं गया की वह कहाँ गया है.
वे ब्राहमण पुत्र को अपने साथ लेकर मीणा पुत्र के पीछे-पीछे राजकुमार के पदचिन्हों का अनुसरण कर रहे थे. उन्हें घोड़े के पदचिन्ह भी साफ़ नजर आ रहे थे. मीणा पुत्र ने जैसे ही जंगल आया ब्राह्मण पुत्र से पूछा- मानिकेय तुम्हे राजकुमार ने कुछ नहीं बताया क्या की वह किस तरफ जा रहा है. उसके और उसके घोड़े के पदचिन्ह तो खिद्राबाद की तरफ जा रहें है. वह इतनी बड़ी बेवकूफी कैसे कर सकता हैं?
मनिकेय- हां! दोस्त तुमने सही कहा. मैंने इतने दिन यहाँ उसके इन्तजार में ही बिता दिए थे. तभी हमें आने में इतनी देर हो गई.. पता नहीं वीर प्रताप सकुशल तो है या नहीं..
भागीरथ- मित्र! चिंता मत करो वीर प्रताप बहादुर है वह हर परेशानी का हल निकालना अच्छे से जानता है जैसा की मुझे सोमभद्र (मीणा पुत्र) ने बताया था.. तो फिर भला उसको क्या हो सकता है?
मानिकेय- पता नहीं दोस्त.. मैं भी यही सोच रहः हूँ की वह सकुशल ही हो.
वे सभी बाते करते हुए जा रहे थे की अचानक मीणा पुत्र चिल्लाया..
मीणा पुत्र- अरे! मानिकेय देखो जरा हमारा राजकुमार इस जंगल की और गया है शायद उसने अपना डेरा जंगल के अन्दर ही रखा हो उसके घोड़े के और उसके पदचिन्ह इसी और गए हैं चलो आप मेरे पीछे-पीछे चलो..
सभी दोस्त- हाँ! चलो-चलो.

वे सभी मीणा पुत्र पीछे-पीछे चलते हैं. शीघ्र ही वे उस झील किनारे पहुँच जाते हैं जहाँ राजकुमार ठहरा हुआ था.. अचानक मानिकेय की नजर राजकुमार के मरे हुए घोड़े के कंकाल पर पड़ती है..
क्रमश.......


भाग -14

मानिकेय की नजर जैसे ही राजकुमार के मरे हुए घोड़े के कंकाल पर पड़ती है. वह आश्चर्यचकित होकर सभी दोस्तों से कहता है- ` अरे! मित्रो देखो वहाँ कोई मृत पशु का कंकाल पड़ा है..`
मीणा पुत्र जब राजकुमार के घोड़े के पदचिन्हों  को ध्यान से देखता है तो वह उस पेड़ की तरफ जाता है. उसे उसके पास जाते ही पता चल जाता है की वो कंकाल राजकुमार के घोड़े का ही था. वह आश्चर्यचकित होकर कहता है- अरे! ये तो हमारे वीरप्राताप के  घोड़े चेतन्य का कंकाल है.`
सभी दोस्त- ( आश्चर्य से कहता है) क्या!
मीणा पुत्र- हाँ! दोस्तों ये सत्य है. चलो इसे देखते हैं यह कैसे मरा?
फिर ब्राह्मण पुत्र उसका ध्यान से अवलोकन करता है तो वह पाता है की उसकी मृत्यु किसी तीर के मारने से हुई है. वह उसके कंकाल में से तीर को निकालकर कहता है..- दोस्त इसकी मृत्यु किसी के तीर की वजह से हुई है. जरुर हमारे वीरप्रताप और चेतन्य के साथ गलत हुआ है..
मीणा पुत्र- लेकिन तुम ये सब कैसे बता सकते हो?
मानिकेय- मैं यह बात इस लिए बता सकता हूँ क्योंकि इस तीर की गंध से पता चल रहा है की यह तीर खिद्राबाद राज्य के सुलतान की कमान से निकला हुआ है.
मीणा पुत्र- तो मित्र तुमने इतने दिन यही विद्या सीखी थी..
मानिकेय- मैंने दोस्त इतने दिन क्या सीखा या क्या नहीं अब यह सब बताने का वक्त नहीं है हमारे पास. लेकिन क्या आप इस घोड़े के कंकाल को वापस पुन: सही कर सकते हो.
सुथार मित्र- मतलब दोस्त..
मानिकेय- मतलब यह की इसकी जो भी हड्डियाँ इधर-उधर पड़ी हैं उन्हें सुव्यवस्थिति कर दो..
भागीरथ- मित्र हमारे तो कुछ समझ नहीं आ रहा की तुम कहना क्या चाहते हो?
मानिकेय ने अपने कुर्ते व पायजामे को खोलते हुए कहा- दोस्तों! अब मेरे पास ये सब बताने का वक्त नहीं है. आप अतिशीघ्र चेतन्य की हड्डियों को सही से जोड़ दो.
सुथार मित्र ने मुस्कुराते हुए कहा- दोस्त! ये तो मेरे लिए बहुत आसान है. मैं अभी यह काम करता हूँ.
मानिकेय- हाँ! ठीक है तुम ये काम करो.. और आप बाकी के दोस्त इधर-उधर वीर प्रताप के बार में कोई सुराग लगाओ तब तक मैं स्नान करके आता हूँ.
सभी दोस्त –( एक साथ) ठीक है मित्र..
सुथार पुत्र और लौहार पुत्र ने घोड़े की हड्डियों को पहले एकत्रित किया और फिर धीरे-धीरे सब हड्डियों को एक साथ करके ढंग से जोड़ दिया. अब वह एक घोड़े का सुव्यवस्थित कंकाल बन गया था. इधर मानिकेय ने स्नान किया और ईश्वर का ध्यान किया. मीणा पुत्र ने भागीरथ और सूर्यप्रकाश के साथ मिलकर  झील के किनारे वीर प्रताप के विषय में जानकारी जुटानी शुरू कर दी.
शीघ्र ही मानिकेय की पूजा समाप्त हो गई. उसने एक कमंडल ( लोटे जैसा पात्र जो साधू रखते हैं) में जल भरा और उस घोड़े के पास आ गया. सभी दोस्त भी मानिकेय के पास आ गए. सूरज अब धीरे-धीरे ढलने की कगार पर था. मानिकेय ने राजकुमार के घोड़े के चारो ओर पानी की एक धार खिंची और फिर मन्त्र बोलने शुरू किए.. उसने अपने दाहिने हाथ की अंजुली में पानी लिया और एक मन्त्र के साथ घोड़े पर पानी छिड़का. मृत घोडा शीघ्र ही जिन्दा हो गया. घोडा हिनहिनाकर खड़ा हुआ।
सभी दोस्त- ( आश्चर्य से) ओह! अरे! ये क्या चेतन्य तो जिन्दा हो गया..
मानिकेय- ( मुस्कुराते हुए) हाँ! दोस्तों यह अब जिन्दा हो गया... यकीन न हो तो आप इसे छूकर देख लो..

सभी दोस्तों की आँखों में ख़ुशी के आंसू थे आखिरकार उनका प्रिय चेतन्य वापस जिन्दा जो हो गया था. सभी दोस्त घोड़े से लिपटकर रोने लगे.. चेतन्य ने अपनी जीभ से सभी दोस्तों को चाटना प्रारंभ कर दिया.. वे बहुत खुश थे. मानिकेय ने भी घोड़े की पीठ थपथाई और उसे पुचकारा.. उसने घोड़े की रस्सी को काट दिया और चरने के लिए छोड़ दिया.. घोड़े ने पहले झील से पानी पिया और चरना प्रारम्भ कर दिया. सभी दोस्तों की आँखों में ख़ुशी के आंसू थे. मीणा पुत्र ने मुस्कुराते हुए मानिकेय से पूछा- क्या दोस्त तुमने इस विद्या को ही सीखा था..
मानिकेय- हाँ! दोस्त।  इसके अलावा भी बहुत सी विद्याएँ सीखी हैं मैंने..
सुथार पुत्र- बाताओ दोस्त फिर और कौनसी विद्याएँ तुमने सीखी हैं?
मानिकेय- ( मुस्कुराते  हुए) दोस्तों! अभी हमें  हमारे दोस्त वीरप्रताप का सुराग ढूढना है.. अभी मेरी विद्याओं के बारे में बातें करने का वक्त नहीं है मेरे पास..
फिर वह मीणा पुत्र की तरफ देखते हुए कहता है- दोस्त तुम्हारी पदचिन्ह विद्या के आधार पर कुछ पता चला तुम्हे राजकुमार के बारे में..
मीणा पुत्र- हाँ! दोस्त ! बस वही सब बताने वाला था मैं...
मानिकेय- ठीक है दोस्त फिर बताओ क्या पता चला तुम्हे?

क्रमश........

भाग- 15

मानिकेय के पूछते ही मीणा पुत्र ने सभी दोस्तों की तरफ देखकर गंभीर होकर कहा..
मीणा पुत्र- दोस्त, तुम सच कह रहे थे हमारे दोस्त के साथ कुछ गलत हुआ है. पहले दिन जब वीर प्रताप यहाँ आया तो उसने आने के बाद अगले दिन एक सांप का शिकार किया. फिर उसने उस सांप को उस पेड़ के निचे दफनाया. फिर वह इस झील के अन्दर गया. अब वो पानी के अन्दर कैसे गया ये सब समझ से बाहर है? फिर अगले दिन वो बाहर आया. इसके कुछ दिन बाद एक बूढा पंडित भी आया जिसके पदचिन्ह से लग रहा है की वो बहुत भोला था.. मुझे लगता है वीरप्रताप का जो रहस्य है वो इस झील के अन्दर ही है..

मानिकेय ने सोचते हुए कहा- सही कहा दोस्त. हमें जो कुछ भी मिलेगा वो यही इस झील के किनारे ही मिलेगा. कहीं वह नाग मणि की वजह से तो अन्दर नहीं गया है.. तुम कुछ और मुझे विस्तार से बताओ दोस्त..
मीणा पुत्र- ठीक है दोस्त, उस पंडित जी के बाद कई दिन तक यहाँ कोई नहीं आया. वीरप्रताप के साथ एक अन्य लड़की के पदचिन्ह हैं लेकिन उसके पदचिन्हों में इंसानों की खूसबू नहीं आ रही है..
मानिकेय- मतलब दोस्त, जिस लड़की के साथ हमारा वीरप्रताप था वो कोई इंसान नहीं थी..
मीणा पुत्र- हाँ! दोस्त... उसके पदचिन्हों में किसी सर्प की खुसबू आ रही है..
मानिकेय – ( आश्चर्य से) क्या! कहीं वो कोई नाग कन्या तो नहीं है..
मीणा पुत्र- हो सकता है दोस्त..
मानिकेय- एक काम करो अब तुम मुझे सब पूरा विस्तार से बताओ की आगे क्या हुआ?
मीणा पुत्र- दोस्त! उसके कुछ दिन बाद यहाँ एक अन्य व्यक्ति घोडा लेकर आया. उस दिन वीरप्रताप नहीं था शायद. उस व्यक्ति के घोड़े के दौड़ाने के पदचिन्ह हैं. शायद उसने नाग कन्या को पकड़ने की कोशिश की होगी. फिर वह घोड़े से नीचे उतरा था.. उसने कुछ उठाया और वापस चला गया.
भागीरथ- क्या नाग कन्या को  उसने  छुआ? मेरा मतलब उसे पकड़ा था?
मीणा पुत्र- नहीं! वह झील के अन्दर कूद गई. लेकिन शायद उसके एक पाँव की मौचड़ी बाहर ही रह गई.. और वह व्यक्ति शायद खिद्राबाद का सुलतान था क्योंकि जो जूतियाँ उसने पहन रखी थी वो कोई सामान्य नहीं थी. वो शाही जूतियाँ थी..
सूर्य प्रकाश- फिर आगे क्या हुआ दोस्त?
मीणा पुत्र- आगे कुछ दिन बाद.. एक महिला आई.. उसके पदचिन्हों से लग रहा है की वह बहुत बुरी थी. उस सुलतान की तरह.. फिर नाग कन्या को उठाकर साथ ले जाया गया है.. यहाँ सुलतान के शाही रथ के पहिए के निशान भी हैं..
मानिकेय- तो तेरे कहने का मतलब.. नाग कन्या को सुलतान ले गया..
मीणा पुत्र- हाँ! दोस्त, मुझे तो ऐसा ही लगता है क्योंकि यहाँ चार अन्य सेनिको के पदचिन्ह के निशान भी हैं. इसके बाद मुझे कुछ नहीं पता..फिर कुछ पशुओ के पानी पीने आने के पदचिन्ह हैं और कुछ नहीं..
लौहार पुत्र- तो दोस्त हमारे वीरप्रताप के साथ क्या हुआ ये कुछ बता सकते हो तुम?
मीणा पुत्र- मैं उसके बारे में कुछ नहीं बता सकता दोस्त...
मानिकेय- मतलब दोस्त! ये क्या बात हुई? तुम्हे तो पदचिन्ह विद्या का पूर्ण ज्ञान है तो भला तुम ये बात कैसे नहीं बता सकते की राजकुमार के साथ क्या हुआ है?
मीणा पुत्र- मैं ये नहीं बता सकता दोस्त क्योंकि जिस दिन वो सुलतान उस नाग कन्या को उठाकर ले गया था उसके बाद मुझे वीरप्रताप के पदचिन्ह नहीं मिल रहें हैं..
सूर्यप्रकाश- तो दोस्त तुम्हारे कहने के अनुसार, हमारा दोस्त वीरप्रताप इस झील के अन्दर ही है..
मीणा पुत्र- हो सकता है दोस्त..
फिर वह ब्राह्मण पुत्र मानिकेय से कहता है..
मीणा पुत्र- मानिकेय अब हमारे वीरप्रताप के बारे में सिर्फ एक ही इंसान बता सकता है की वह कहाँ है?
मानिकेय- कौन?
मीणा पुत्र- वो नाग कन्या। जो हमारे लिए एक रहस्य है..
मानिकेय- सही कहा दोस्त. लेकिन वो तो सुलतान के कब्जे में है. उस तक हम कैसे पहुंचेंगे?
सुथार पुत्र- एक विचार है दोस्त मेरे पास... लेकिन शायद आपको थोडा अटपटा लगे..
मीणा पुत्र- क्या विचार है दोस्त? जल्दी बोलो हमारे पास समय बहुत कम है..
सुथार पुत्र- मैंने सुना है, सुलतान की सेवा के लिए महल में हजारो सुन्दर कन्याएँ होती है..
मीणा पुत्र- तो तुम्हारे कहने का मतलब मैं कोई सुन्दर सी कन्या बनूँ और नाग कन्या के रहस्य का पता लगाऊं..
मीणा पुत्र के इतना कहते ही सभी दोस्त ठहाके मारकर हंसने लगे..
सुथार पुत्र- नहीं दोस्त ऐसी कोई बात नहीं है. मेरे कहने का मतलब यह है की सुलतान के महल में जासूसी करने के लिए हमें एक लड़की की जरुरत होगी तब जाकर कुछ होगा हमारा..
सूर्यप्रकाश- ये विचार तो अच्छा है दोस्त लेकिन हमें भला एक लड़की कहाँ से मिलेगी?
मानिकेय- मिल जाएगी लेकिन इसके लिए हमें सुबह का इन्तजार करना होगा..
मीणा पुत्र- मिल जाएगी मतलब.. ऐसे कहाँ से मिल जाएगी? अगर लड़की होती तो हम तुम्हारी शादी नहीं करवा देते पंडित जी..
मीणा पुत्र के इतना कहते ही सभी दोस्त ठहाके मारकर हंसने लगे..
 मानिकेय ने मुस्कुराते हुए कहा.. अरे! तुम चिंता मत करो.. वो सब हो जाएगा.

भाग.16 

सूरज ने उस बरगद के पेड़ के अन्दर से किरणों के साथ दस्तक दे दी. सभी दोस्त शीघ्र ही खड़े हो गए..उन्होंने सूर्य नमस्कार किया और नित्य क्रियाएँ पूर्ण की. मानिकेय ने सभी दोस्तों के पास जाकर कहा-
आज आपको मैं एक लड़की से मिला सकता हूँ लेकिन मुझे आप सभी के सहयोग की जरुरत है.
सुथार पुत्र- मतलब दोस्त?
मानिकेय- मतलब यही की तुम्हे जो मैं कहूं वो करना होगा..
सुथार पुत्र – ठीक है दोस्त..
फिर वह सुथार पुत्र को अपने पास बुलाता है. वह उसे कान में कुछ कहता है और उसके बाद सभी दोस्तों को सुथार पुत्र की सहायता करने के लिए बोलता है. सभी दोस्तों ने उसके निर्णय को सहर्ष स्वीकार किया.. सुथार पुत्र और लौहार पुत्र ने जंगल में से लकड़ियाँ काटनी शुरू कर दी.
फिर मानिकेय ने मीणा पुत्र और दर्जी पुत्र को बाजार से लड़की के कपडे लाने हेतु बोल दिया. दर्जी पुत्र और मीणा पुत्र दोनों बाजार चले गए. इधर सूर्यप्रकाश ने भी जंगल से लकड़ियों को एकत्रित करना शुरू कर दिया. मानिकेय और सुथार पुत्र के अलावा कोई कुछ भी नहीं जानता था की मानिकेय क्या करने वाला है?
भागीरथ मानिकेय की सहायता के लिए चला गया उसने मानिकेय के कमंडल में झील का शुद्ध जल भर दिया. इधर मीणा पुत्र और दर्जी पुत्र लड़की के कपडे बनवाकर ले आए. वे दोनों सुधार पुत्र और लौहार पुत्र को लकड़ियों से कुछ बनाते हुए दिखाए दे रहे थे.
शीघ्र ही मानिकेय ने स्नान करने के बाद पूजा प्रारम्भ कर दी. कुछ ही देर बाद उसकी पूजा समाप्त हो गई. जब मानिकेय वहां से खड़ा होकर आया तो वह सुथार पुत्र और लौहार पुत्र की कारीगरी देखकर चौंक गया.
उसने और भागीरथ ने देखा की उन दोनों ने एक लड़की के रूप की लकड़ी से सुन्दर आकृति बना दी थी. मानिकेय बहुत प्रसन्न हुआ. उसने मुस्कुराते हुए कहा- वाह! दोस्तों तुम दोनों ने मिलकर बहुत सुन्दर आकृति बना दी है..
मानिकेय के मुस्कुराने से मीणा पुत्र के कुछ समझ नहीं आ रहा था. उसने कहा- दोस्त! मेरे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है. तुम ये क्या बनवा रहे हो..
मानिकेय ने मुस्कुराकर कहा- सब समझ आ जाएगा दोस्त.. अभी थोड़ी देर में सब पता चल जाएगा.
. तुम बस उस पेड़ के बीचे बैठकर महल में प्रवेश करने की योजना बनाओ..
मीना पुत्र- ठीक है दोस्त...
फिर वह पेड़ के नीच बैठकर योजना बनाने लगा.

मानिकेय ने फिर दर्जी पुत्र से उस आकृति को कपडे पहनाने को कहा... उसने एक-एक कर उस लड़की की आकृति को कपडे पहना दिए.. फिर उसके सर पर चुनर भी ओढा दी.
इधर सूर्यप्रकाश, सुथार पुत्र और लौहार तीनो बहुत प्रसन्न थे क्योंकि वो लड़की की आकृति दिखने में बहुत सुन्दर बन गई थी. मानिकेय ने भागीरथ को पानी देने के लिए बोला. भागीरथ ने उसे पानी का एक कमंडल भरकर दे दिया.
मीणा पुत्र अपने काम में वयस्त था. वह उन्हें नहीं देख रहा था. इसी दौरान ब्राह्मण पुत्र ने पानी को हाथ में लिया और कुछ मन्त्र बोलने शुरू किए..
उसके बाकी के चारो  दोस्त उसे ध्यान से देख रहे थे. उसने अपनी अंजुलियों में पानी लिया और उस लड़की की आकृति पर पानी छिड़का. पानी के गिरते ही वो लकड़ी की बनी लड़की असल में लड़की बन गई.
सभी दोस्त (आश्चर्य से)- अरे! दोस्त ये क्या? ये तो असल में लड़की बन गई.
मानिकेय ने उस लड़की की तरफ मुस्कुराते हुए कहा- हाँ! दोस्त ये अब असल की लड़की है.
उस लड़की ने अपनी आँखे खोली तो देखा उसके सामने चार नवयुवक खड़े थे।
उसने उन सब दोस्तों से गंभीर होकर  पूछा - आप सब कौन हैं?
ब्राह्मण पुत्र ने कहा- मैं एक ब्राह्मण पुत्र मानिकेय हूँ देवी.. ये मेरा दोस्त भागीरथ हैं जो की एक जोहरी है. ये मेरा एक अन्य दोस्त सोमदत है जो की एक सुथार है जिसने आपकी  काष्ठ की आकृति बनाई है. ये मेरा एक अन्य दोस्त , आयुष्मान है जिसने आपकी  शक्ल को मूरत रूप दिया है. यह एक लौहार पुत्र है.. और ये एक अन्य जो दोस्त है वो है सूर्यप्रकाश जो की एक दर्जी है और उसने आपको कपडे बनाकर पहनाएं है... हे! देवी हम पाँचों  ने तुम्हे बनाया है.
लड़की- क्या! तुम सब पागल हो... तुम्हे जरा सी भी शर्म नहीं आई.. एक लड़की को बनाते वक्त. आप  जानते भी हो ब्राह्मण पुत्र की  आपने कितनी बड़ी भूल कर दी है..
.मानिकेय उस लड़की के क्रोध को भली भांति जानता था। उसने शांत होकर उस लड़की से कहा - हे! देवी हमारा इरादा आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कतई नहीं था। हमने तो आपका निर्माण सिर्फ हमारे दोस्त राजकुमार का पता लगाने में सहायता हेतु किया है।

लड़की- ओह! अच्छा, तो आप सभी अपने स्वार्थसिद्धि के लिए किसी भी स्त्री का निर्माण कर लेंगे और फिर जैसे ही आपका कार्य पूर्ण हो जाएगा आप उसे छोड़ देंगे।
मानिकेय- आप कहना क्या चाहती हैं देवी?
लड़की- बस यही की.. आप सब ने मिलकर मेरा निर्माण तो कर लिया लेकिन जैसे ही आप सब का काम पूर्ण हो जाएगा तो फिर मेरा कौन सहारा होगा? भला कौन मुझसे  शादी करने के लिए राजी होगा?
मानिकेय- हे! देवी शास्त्रों के नियमो के अनुसार हम आपके साथ शादी नहीं कर सकते.
लड़की- क्यों ब्राह्मण पुत्र?
मानिकेय- क्योंकि देवी मैंने आपकी काष्ठ मूर्तिका में प्राणों का संचार किया तो मैं आपका पिता हो गया. ठीक इसी तरह सूर्य प्रकाश ने आपकी काष्ठमूर्तिका के लिए लकड़ियाँ इकठ्ठी की तो यह भी आपके पिता तुल्य हो गया. इसी प्रकार मेरा सुथार मित्र और लौहार मित्र ने आपकी काष्ठ मूर्तिका का निर्माण किया इस लिए ये भी आपके पिता हुए. अत: ये भी आपसे शादी नहीं कर सकते. और मेरे दर्जी मित्र ने आपको चुनरी ओढा दी इस कारण यह आपका भाई हुआ.
फिर वह लड़की भागीरथ की तरफ देखकर कहती है- लेकिन आपके इस मित्र ने मेरे निर्माण में क्या सहयोग किया है? क्या ये भी मेरे साथ शादी नहीं कर सकता?
मानिकेय- नहीं देवी क्योंकि इसने भी आपके निर्माण में सहयोग किया है इस लिए यह भी आपसे शादी नहीं कर सकता है..
लड़की क्रोधित होकर कहती है- तो ठीक है ब्राह्मण पुत्र तुम सब ने अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए एक नारी का अपमान किया है.. मैं आपको शाप देती हूँ की....
`ठहरिए! देवी.. आप ऐसा नहीं कर सकती.. हम इसका उपाय करते हैं.. `, ब्राह्मण पुत्र ने गंभीर स्वर में कहा.
ब्राह्मण पुत्र की तेज आवाज सुनकर मीणा पुत्र दौड़कर आया. उसने एक सुन्दर लड़की को देखर आश्चर्य चकित होकर ब्राह्मण पुत्र से कहा- मित्र ये कौन है?
मानिकेय उसके पास जाकर उसके कान में सारी बात बता देता है...
मीणा पुत्र ने क्रोधित होकर कहा- नहीं! दोस्त तुम कहते तो मैं तुझे अपनी जान भी दे देता लेकिन इस लड़की से शादी नहीं कर सकता. ये नहीं होगा भाई मुझसे..
भागीरथ- क्यों नहीं होगा दोस्त..इस लड़की में भला कमी ही क्या है?
मीणा पुत्र- ओह! अच्छा.. बड़ा आया।  अड़यो धड्यों मीणा जी के सर पर ही पड्यो।  अर्थात ( बलि का बकरा मुझे ही हमेशा क्यों बनाया जाता है?  )
मानिकेय ने उदास होकर कहा- देखो दोस्त हमें राजकुमार का पता लगाना है और इसके लिए तुम्हे इससे शादी करनी ही होगी. वरना हम वीरप्रताप को नहीं ढूंढ पाएंगे।
मानिकेय के इतना कहते ही मीणा पुत्र का दिल पिघल गया.. उसने मुस्कुराते हुए मानिकेय से पूछा- अच्छा कर लूँगा लेकिन यह लड़की है तो असली ना?
मानिकेय ने मुस्कुराते हुए कहा- हाँ! बिलकुल असली है..
क्रमश.........

क्रमश....

भाग 17 


ब्राह्मण पुत्र मानिकेय के कहने पर वह हिचकिचाते हुए शादी के लिए मान गया.. वह उस लड़की को देख रहा था की अचानक ही दर्जीपुत्र सूर्यप्रकाश ने कहा- दोस्त! मैंने इसे बहन तो मान लिया लेकिन इसे किस नाम से पुकारेंगे..

मानिकेय- अरे! हाँ! हमने इसका नाम तो रखा ही  नहीं । इसका नाम हम  अवन्तिका रख ले?  बताओ कैसा रहेगा?

लड़की- नहीं! मुझे अवंतिका नाम बिलकुल पसंद नहीं है..

भागीरथ- तो एक काम करते हैं तुम्हारा नाम हिमाल्यिका रख लेते हैं.. कैसा रहेगा ये नाम?

लड़की- नहीं! मुझे ये नाम भी अच्छा नहीं लगा..

सूर्य प्रकाश- अरे! हाँ! मैं अपनी बहन का नाम रखूंगा.. यह लकड़ी से बनी हुई हैं ना इसलिए इसक नाम है.. काष्ठपुत्रिका रख लेते हैं.. अब बोलो ये कैसा है?

लड़की- नहीं! मुझे ये नाम भी पसंद नहीं है..

मीणा पुत्र- (थोडा खीजते हुए) एक काम क्यों नहीं करते तुम सब.. इसका नाम आफत की पुडिया क्यों नहीं रख लेते? क्या हैं ना मेरी जिंदगी में तो ये आफत बनक़र ही आई है.

मानिकेय- तुम तो चुप हो जाओ दोस्त.. जब देखो मजाक सूजती है तुझे तो..

मानिकेय के डांटने से मीणा पुत्र चुप हो जाता है. कुछ ही देर में भागीरथ जोर से बोलता है – अरे! मानिकेय इसमें प्राणों का संचार तुमने ही किया है तो क्यों न इसका नाम मणिकृतिका रख ले..
लौहार पुत्र - अरे! हाँ, ये नाम अच्छा है.. फिर वह लड़की से नाम पूछने के लिए कुछ बोलना ही चाहता है की वो लड़की बोल पड़ती है.
लड़की- हाँ! ये नाम अच्छा रहेगा.. सच में मुझे ये नाम बहुत पसंद आया...
मानिकेय – तो ठीक है दोस्तों आज से हम इसे मणिकृतिका के नाम से ही पुकारेंगे...

मीणा पुत्र धीमे से बुदबुदाता है- कमीनो आप चाहो तो इसे मेनका भी बुला लो लेकिन मैं तो इसे आफत की पुडिया ही बोलूँगा..

अब  मानिकेय उसके नाम से बहुत खुश था. उसे मीणा पुत्र की रजामंदी से कोई मतलब नहीं था.. कुछ ही देर मैं वह अपने सभी दोस्तों से कहता है..
मानिकेय- हाँ! तो दोस्तो अब देर किस बात की है. मैं अभी इन दोनों की शादी करवा देता हूँ...

भागीरथ- हाँ.. हाँ.. दोस्त क्यों नहीं..

मीणा पुत्र हिचकिचाते हुए- अरे! अभी! अभी इतनी क्या जल्दी है दोस्त. अभी हमें वीर प्रताप का पता लगाना है..

मानिकेय- अरे! पता लगा लेंगे.. अभी बस दो घंटे की ही तो बात है. तुम दोनों की शादी हो जाएगी तो मेरा पिता का भार उतर जाएगा..
मीणा पुत्र धीमे से बुदबुदाता है- कमीने पंडित तुम्हे बड़ी जल्दी है मुझे इस डायन के हाथो से मरवाने की..

भागीरथ- अरे! क्या बुदबुदा रहे हो दोस्त?

मीणा पुत्र- कुछ नहीं मेरे कहने का मतलब है की अभी हमें सुलतान के महल में प्रवेश करने की योजना बनानी है.. शादी तो बाद में भी हो सकती है..
मानिकेय- अरे! बाद में कैसे हो जाएगी दोस्त?

मणिकृतिका- हाँ! बाद में हो जाएगी. मुझे कोई एतराज नहीं है. वैसे भी अब आप बताओ मुझे क्या करना है.?

मीणा पुत्र धीम से बुदबुदाता है- जहर खा लो..

जब मीणा पुत्र धीमे से कहता है तो मानिकेय कहता है – क्या बोल रहे हो दोस्त.?

मीणा पुत्र- कुछ नहीं दोस्त बस यही की मणिकृतिका बिलकुल सही कह रही है..

मानिकेय- ठीक है दोस्त जैसी आप दोनों की इच्छा.. वैसे भी शादी ही तो करवानी है बाद में करवा दूंगा.. क्यों सही कहा ना दोस्त..

मीणा पुत्र धीमे से बुदबुदाता है- पंडित अगर तूँ मेरा दोस्त ना होता तो सबसे पहले में तेरा खून करता. खैर तू अब इस बकरे को इस कसाईन के हाथो हलाल करके ही छोड़ेगा तूँ?
जब मीणा पुत्र की आवाज किसी को नहीं सुनती है तो

मणिकृतिका उससे कहती है- तो आपने महल में घुसने की योजना बना ली क्या?

मीणा पुत्र उसे तीखी नजरो से देखते हुए बुदबुदाता है- महल में घुसने की योजना का तो पता नहीं तुझे  स्वर्ग लोक में भेजने की योजना जरुर बना ली है...
जब उसकी आवाज किसी भी दोस्त को नहीं सुनती है तो मानिकेय कहता है- बताओ दोस्त तुमने योजना बना ली क्या?
मीणा पुत्र- हाँ! दोस्त बना ली..
मानिकेय- तो सुनाओ क्या योजना है?
मीणा पुत्र- ठीक है दोस्त.. योजन थोड़ी मुश्किल है. इसके लिए मुझे मणिकृतिका को ठग विद्या भी बतानी होगी. अब आप सभी योजनां को ध्यान से सुनो.. हमें आज ही हमारे लिए एक झोपड़ी बनानी होगी.. यानी एक काम चलाऊ घर..फिर जैसे ही घर बन जाएगा तो हमें योजना अनुरूप मणिकृतिका को काम मांगने हेतु महल में भेजना होगा..
मानिकेय- लेकिन दोस्त ऐसे मणिकृतिका पर यकीन कोई कैसे करेगा?
मीणा पुत्र- करेगा दोस्त क्योंकि इस जंगल में हर रोज शिकार के लिए खिद्राबाद राज्य का सेनापति याकूब आता है.. योजना अनुरूप मणिकृतिका नाटक करेगी की वो गरीब है. याकूब चरित्र का भी कच्चा है इस कारण वह मणिकृतिका की सुन्दरता पर फ़िदा हो जाएगा..
मणिकृतिका प्यार से मीणा पुत्र की तरफ देखते हुए कहती है- जी मैं आपको सुन्दर दिखती हूँ?
मीणा पुत्र क्रोधित होकर कहता है.. नहीं बिलकुल नहीं. तुम सुन्दर तो हो ही नहीं सकती.. लेकिन क्या है ना याकूब काणा है तो उसे तेरी बदसूरती दिखाई नहीं देगी..
भागीरथ- देखो दोस्त तुम मेरी बहन का मजाक बना रहे हो अब..

मीणा पुत्र- मैं मजाक कहाँ बना रहा हूँ.. जब इसे पता है की ये खूबसूरत है तो फिर बार-बार ढींढोरा पीटने की क्या जरुरत है?
मणिकृतिका- अच्छा जी! मैंने मान लिया की मैं सुन्दर हूँ। अब आगे की योजना बताओ..
मीणा पुत्र- आगे की योजना यही है की तुम्हे कैसे भी करके.. दरबार में सबका दिल जीतना होगा.. इधर मैं भी किसी बहाने महल में काम प्राप्त कर लूँगा.. बाकी सब भगवान् के हाथ में है. हमारा अब पहला लक्ष्य यही है कि तुम्हे हम कैसे  भी करके महल में प्रवेश करवा दें।
मानिकेय- योजना अच्छी है दोस्त. लेकिन तब तक हमें क्या करना होगा?
मीणा पुत्र- वो भी बता दूंगा..
क्रमश.............

भाग - 18 

मानिकेय- चलो बताओ फिर..
मीणा पुत्र- जैसे ही याकूब मणिकृतिका को अपने साथ महल में ले जाने के लिए राजी हो जाएगा उसके बाद मुझे महल में घुसने की योजना बनानी होगी. फिर जब मैं भी वहां प्रवेश कर जाऊं तो आप सभी पीछे से गुप्त रूप से राज्य की अन्य जानकारियाँ निकालोगे..
भागीरथ- वाह! मित्र तुम सच में बहुत बुद्धिमान हो.. हमें तुम पर गर्व है..
मणिकृतिका- ( मुस्कुराते हुए) मुझे भी..

मीणा पुत्र उसकी तरफ तीखी नजरो से देखते हुए मणिकृतिका से कहता है- यूं दांत मत दिखाओ और अपनी इन अदाओं को बचाकर रखो ताकि कल वो याकूब तुम्हारे हुस्न पर लट्टू हो जाए..

मणिकृतिका- ठीक है वो मैं कर लूंगी..आप चिंता मत करे..
मीणा पुत्र और मणिकृतिका की बढती खिट-पिट को दूर करने के लिए मानिकेय बीच में बोल पड़ता है..

मानिकेय- ठीक है दोस्त फिर सारी योजना अब बन चुकी है तो कल फिर इसका हमें क्रियान्वयन भी करना है.. चलो जो जरुरी सामान हमें चाहिए वो भी अब बता दो..

मीणा पुत्र- ठीक है.. हमें मणिकृतिका को ओर भी खूबसूरत दिखाने के लिए इसके लिए कुछ नए कपडे खरीदने होंगे.. इसके अलावा अन्य जो स्त्री को सुन्दर दिखाती हैं उन वस्तुओ को भी खरीदना है..
मानिकेय- जैसे?
मीणा पुत्र- जैसे का मुझे पता है क्या पंडित.. अब इस आफत की पूडिया से पूछो..

सूर्यप्रकाश - देखो दोस्त मेरी बहन का नाम मणिकृतिका है.. इसका नाम सही से लो..

मीणा पुत्र- तुम चुप रहो दोस्त.. अब ये मेरी होने वाली पत्नी है.. इसे मैं आफत की पूडिया बोलूं या फिर डायन। तुझे इससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए।
भागीरथ - ये क्या बात हुई तुम इसे ऐसे नहीं बोल सकते..

मणिकृतिका- अरे! अरे आप लड़ो मत मेरे लिए..ये मुझे जिस नाम से पुकारेंगे वह नाम मैं रख लूंगी मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ेगा..वैसे भी जो डायन से शादी करेगा वो भूत या जिन तो जरुर होगा। क्यों सूर्यप्रकाश  भैया सही बोला ना?
सूर्यप्रकाश - अरे! वाह, छुटकी क्या जवाब दिया है. आयुष्मान भव..

मणिकृतिका के इस जवाब से सभी दोस्त ठहाके मारकर हंसने लगते हैं.. लेकिन मीणा पुत्र को उनकी हंसी पर क्रोध आता है. मानिकेय स्थिति को भांप जाता है. वह सभी दोस्तों से कहता है..

मानिकेय- ठीक है दोस्तों अब तुम शांत ही जाओ।

फिर वह मीणा पुत्र से कहता है.. चलो दोस्त अब  तुम और सूर्यप्रकाश अभी नगर के बाजार में जाओ और  मणिकृतिका आपको जो  सामान बताए वो  ले आओ.. तब तक मैं, सोमदत, आयुष्मान और भागीरथ एक झोपड़ी की निर्माण करते हैं.. ताकि हमें रहने में आसानी हो..

मीणा पुत्र फिर मणिकृतिका से कहता है- ठीक है.. अब बोलो आफत की पूडिया तुझे किस-किस सामान की जरुरत होगी.. जल्दी से बोलो..
मणिकृतिका- ठीक है,, तो मुझे चाहिएगा.. कजरा, गजरा, इत्र, सुर्खी( लिपस्टिक) और..
फिर वह एक-एक करके सभी वस्तुओ का नाम बोलती है और मीणा पुत्र उन सभी को दो बार रटा मार लेता है.. फिर वे दोनों वहां से बाजार की तरफ निकल पड़ते हैं. इधर ब्राह्मण पुत्र, मणिकृतिका और उसके अन्य तीन दोस्त झोपड़ी का निर्माण करना शुरू कर देते हैं. जब शाम तक मीणा पुत्र और सूर्यप्रकाश वापस आते हैं तब तक वे झोपड़ी का निर्माण पूर्ण कर चुके होते हैं.. मणिकृतिका उन सभी दोस्तों के लिए भोजन बनाती है.. फिर सभी को खाना परोसती है. उन सभी को घर के खाने का सा आभास होता है..शीघ्र ही वे सभी सो जाते है।
     अगले दिन वे सभी नियत समय पर उठ जाते हैं।  मणिकृतिका योजना के अनुरूप सुन्दर वस्त्र धारण करके झील से पानी भरने जाती है.. इसी दौरान हमेशा की तरह  खिद्राबाद का सेनापति याकूब आ जाता हैं..
उसकी नजर पानी भरती हुई  मणिकृतिका पर पड़ती है जो  दिखने में स्वर्ग की अप्सरा सी  लग रही थी.. वह उसे देखते ही मोहित हो जाता है. वह घोड़े को  दौडाते हुए उसकी तरफ ले आता है.. मणिकृतिका अपने हुस्न के जलवे बिखेरने के लिए तैयार थी. मीणा  पुत्र के कहे अनुसार मणिकृतिका ने याकूब को तिरछी नजरो से देखना शुरू कर दिया. याकूब कसाई की तरफ कटने के लिए आए बकरे की तरफ मणि कृतिका की तरफ बढ़ता है.. वह गंभीर स्वर में मणि कृतिका से कहता है..
याकूब- असलाम वालेकुम... मोहतरमा ..
मणिकृतिका प्यारी भरी नजरो से याकूब की तरफ देखते हुए कहती है- वालेकुम असलाम..
याकूब – मोहतरमा ! आप इस घने जंगल में अकेली क्या कर रही हैं?
मणिकृतिका आकूब का दिल जीतने के लिए झूठ का सहरा लेकर बोलती है- जी मैं पास ही की नगरी अहिल्यापुरी से अपने चार भाइयों और अपने भाइयों के एक दोस्त के साथ यहाँ काम की तलाश में आई हूँ।  हम कल ही आए थे.. लेकिन हमें अब तक काम नहीं मिल पाया..
याकूब मणिकृतिका के सुन्दर बदन को देखते हुए कहता है- ओह! अच्छा तो ये बात है.. काम की क्या दिक्कत है? काम तो आपको मिल जाएगा लेकिन क्या आप कर पाएंगी?
मणिकृतिका योजना के सफल होने की ख़ुशी को अपने मन में दबा नहीं पाती है- जी जरुर मैं कुछ भी कर लूंगी.. अगर आप अपने यहाँ मुझे काम पर रख लेते तो आपकी बहुत मेहरबानी होगी..
याकूब- जी ऐसी बात ना बोले.. काम आपको मिल जाएगा.. बस आपको बादशाह को मदिरापान करवाना है..
मणिकृतिका- जी मदिरा पान?
याकूब- हाँ! जी मदिरा पान.. क्या कर पाएंगी आप?
मणिकृतिका- जी क्यों नहीं? मुझे तो काम चाहिए.. आप जो बोलेंगे मैं वो करने के लिए तैयार हूँ..
मणि कृतिका के इतना कहते ही याकूब अपनी तीखी और घिनोनी नजरो से मणि कृतिका को देखता है लेकिन मणि कृतिका को  पता होता है की उसे क्या काम करना है?
वह आने वाली चुनौती की लिए तैयार रहती है..
  लेकिन उसके दिल मैं एक उलझन थी.. जिसे वह शीघ्र ही दूर करना चाहती थी...

भाग- 19

मणिकृतिका के मन में याकूब के प्रति डर था. वह जानती थी की वह चरित्र का कितना बुरा था. उसकी घिनोनी नजरें मणिकृतिका के बदन पर ही गड़ी हुई थी. लेकिन उसे कैसे भी करके अपने मकसद में कामयाब होना था. जब वह कुछ देर नहीं बोली तो याकूब ने उसकी तरफ देखते हुए कहा- मोहतरमा कहाँ खो गई आप?
मणिकृतिका- कहीं नहीं जनाब..
याकूब- तो चले फिर..
मणिकृतिका- जी.. लेकिन आपके साथ मैं कैसे चल सकती हूँ?
याकूब- मतलब?
मणिकृतिका- मतलब यह जनाब आपके पास एक ही घोडा है और हम दोनों कैसे?
याकूब- जी इसकी आप चिंता ना करें.. मैं भी आपके साथ पैदल ही  चल लूँगा.. चलिए आप मेरे साथ..
मणिकृतिका ने राहत की साँस ली. उसे पता था की उसे अब नई चुनौतियों का सामना करना होगा.. उसकी सहायता के लिए महल में कोई नहीं आ सकता था. मीणा पुत्र की भी महल में प्रवेश करने की योजना सफल होगी या नहीं ये वह नहीं जानती थी लेकिन कैसे भी करके उसे मीणा पुत्र की योजना को सफल बनाना था..
वैसे भी कहते हैं की एक स्त्री की इज्ज़त और उसका सम्मान बचाने के लिए एक स्त्री को ही आगे आना चाहिए. उसे कैसे भी करके नाग कन्या के रहस्य का पता लगाना था.. उसे ये जानना था की क्या नाग कन्या महल में ही है.? क्या नाग कन्या को सुलतान ही अपहरण करके लाया है? और अगर लाया है तो उसे महल में किस जगह रखा गया है? न जाने कितने ही सवाले के जवाब उसे खुद ही अपनी बहादुरी और बुद्धिमता के साथ ढूँढने थे.. उसने हिचकिचाते हुए याकूब के पीछे चलना प्रारंभ कर दिया. वह कुछ चिंतित थी लेकिन उसे अपने ऊपर विश्वास था. मीणा पुत्र ने उसे जरुरी ठग विद्या भी  सीखा  दी थी. इस कारण उसका आत्मबल थोडा बढ़ा हुआ था. शीघ्र ही वह याकूब के साथ महल में पहुँच गई. सभी दरबारी उन दोनों को देख रहे थे. लेकिन उन्हें किसी भी बात का आश्चर्य नहीं था क्योंकि वे इस बात को भली भांति जानते थे की न जाने कितनी ही कन्याओं को सुलतान अपने हवस  का शिकार बनाता था. उसकी क्रूरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था की खिद्राबाद की आम जनता उसके अत्याचारों से बहुत परेशान थी. खिद्राबाद में किसी भी लड़की का रूपवान होना उस लड़की के लिए वरदान नहीं अभिशाप होता. सुलतान उसे अपने हवस  का शिकार बना लेता. जब सुलतान का किसी लड़की से मन भर जाता तो रही कही कसर पूरी करने के लिए याकूब था. सीधे शब्दों में कहा जाए तो उन सब का पाप का घड़ा अब भर चुका था लेकिन उसे फोड़ने का काम करना इतना आसन नहीं था..
याकूब मणिकृतिका को दरबार में सुलतान के समक्ष पेश करता है तो सुलतान मणिकृतिका की खूबसूरती का दीवाना हो जाता है. दीवाना कहना गलत होगा क्योंकि मणिकृतिका को देखते ही उसका हवस  का पुजारी जग जाता है न की दीवाना.. खैर मणिकृतिका को सुलतान बिना ज्यादा सोचे अपने कक्ष में मदिरा पान करवाने के लिए रख लेता है..
मणिकृतिका को जितनी ज्यादा ख़ुशी काम मिलने की हुई उससे कही ज्यादा उसे सुलतान से डर लग रहा था. आखिर लगे भी क्यों ना वह बेचारी एक अबला नारी भला उस भेडिये का कैसे सामना करती?
शाम होने को थी. मणिकृतिका की बेचेनी बढती ही जा रही थी. सुलतान को मदिरापान करवाने वाली अन्य सेविकाओ के चेहरों से उसने अंदाजा लगा लिया था की सुलतान उन लड़कियों को सिर्फ अपनी हवस   की आग बुझाने का जरिया समझता था... सभी सेविकाओ को मणिकृतिका के बारे में चिंता थी. क्योंकि वह भी अब सुलतान के हवस  का शिकार होने वाली थी.. सभी सेविकाओ ने याकूब के कहने पर मणि कृतिका को अच्छे से तैयार किया. उसे दुल्हन की तरह तैयार किया गया. मनिकृतिका को हर बात अच्छे से समझ आ रही थी.. वह अच्छे से जानती थी की उसे क्या करना है. लेकिन फिर भी एक स्त्री के मन में हजार सवाल उमड़ते हैं. वह अकेली भी तो थी. उसका कोई भी साथी उसके पास नहीं था. इसके अलावा उसे तो भूखे शेर के सामने शिकार की तरफ भेजा जा रहा था. सभी सेविकाओ ने जब उसे पूर्णरूप से तैयार कर दिया तो उसे सुलतान के कक्ष में भेज दिया गया..
सुलतान अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था.. वह मणिकृतिका को देखते ही मोहित हो गया.. मणिकृतिका ने अपने हुस्न के जलवे ऐसे बिखेरे की सुलतान को मोह लिया. वह कामवासना में इतना पागल हो गया था की उसे किसी भी चीज से कोई मतलब नहीं था.. मणिकृतिका ने उसे पहले प्यार से शराब पिलानी शुरू की. पहले एक गिलास..फिर दूसरा.. और फिर तीसरा... सुलतान एक के बाद एक गिलास मणिकृतिका की खूबसूरती को देखकर गटकाए जा रहा था.. मणिकृतिका को जिस ठग विद्या का ज्ञान मीणा पुत्र ने दिया था उसका प्रयोग उसने अपनी इज्जत को बचाने के लिए किया.. कहते है की किसी कपटी को अगर मात देनी हो तो उसे भी छल-कपट से ही हराया जा सकता है.. और वही मनिकृतिका कर रही थी.. सुलतान का ज्यादा शराब पीने की वजह से शरीर स्थूल पड़ गया और वह वही बिस्तर पर ढेर हो गया..
मणिकृतिका को अपनी सफलता पर ख़ुशी हुई. उसने आज एक दुष्ट से अपनी लाज बचा ली थी. उसने सुल्तान को बिस्तर से नीचे जमीन पर पटक दिया और खुद मस्त होकर बिस्तर पर सो गई. बाहर सभी सेविकाए  उसकी चिंता कर रही थी लेकिन वो कोई बुधू थोड़े ही थी..
इधर रात का दूसरा पहर शुरू हो चुका था... मीणा पुत्र के सभी दोस्त सो रहे हैं लेकिन ना जाने ऐसा क्या है की मीणा पुत्र को नींद नहीं आ रही है.. जिस लड़की को वह मन ही मन जहर देने के बारे में सोच रहा था आज उसे उसी की चिंता सताए जा रही थी.. उसे मणिकृतिका पर पूर्ण विश्वास था लेकिन उसके बारे में उसका चिंतित होने लाजमी ही था.. आखिर वह जानता था की सुलतान और उसका सेनापति चरित्र से कितने गिरे हुए इंसान हैं.. उसें महल में प्रवेश करने की योजना बनानी शुरू कर दी थी.. क्योंकि उसके बिना नाग कन्या के रहस्य को जानना अकेली मणिकृतिका के लिए बहुत मुश्किल था.. इसके अतिरिक्त मणिकृतिका को भी मदद और सलाह की आवश्यकता थी जो उसके सिवाय और कोई नहीं दे सकता था.. उसने मन ही मन योजना बनानी शुरू कर दी..
अगली सुबह जब सभी दोस्त खड़े हुए तो उन्हें मीणा पुत्र दिखाई नहीं दिया..उन्होंने सोचा कही नित्य कर्म हेतु जंगल में गया होगा लेकिन जब वह कई देर तक भी नहीं आया तो उन सभी दोस्तों को उसकी चिंता सताने लगी.. आखिर मीणा पुत्र उन्हें बिना बताए कहीं नहीं जाता था.. लेकिन आज पहली बार ऐसा हुआ था..
क्रमश.........

भाग -20 

इधर मीणा पुत्र सुबह जल्दी ही सुलतान के महल के आगे द्वारपालो के पास पहुँच जाता है. उसके दिमाग में क्या था ये सिर्फ वही जानता था.. द्वार के आगे खड़े एक मुख्य द्वारपाल ने उसकी तरफ देखकर गंभीर होकर पूछा- जनाब! आप? और किससे मिलना चाहते हैं?
मीणा पुत्र के दिमाग में योजना बनाई हुई थी बस उसे तो योजना का क्रियान्वयन करना था. उसने आत्म विश्वास भरे लहजे में कहा- जी असलाम वालेकुम.. मैं सूतकुमार.. पास ही के राज्य सोमपुर से आया हूँ.. मैं एक हास्य कलाकार हूँ और उज्जैन नाट्य शाला में प्रथमस्थान से सफल हुआ हूँ.. मैं दरबार में खिद्राबाद के बादशाह के सामने प्रस्तुति देना चाहता हूँ.. अगर आप ये बात जहाँ पनाह को बोल देते तो अच्छा होता..
द्वारपाल- जी मैं ऐसा नहीं कर सकता.. जहाँपनाह को हास्य में कोई रूचि नहीं है. अत: आप वापस अपने राज्य जा सकते हैं..
मीणा पुत्र- जी आप एक बार बोल तो दीजिए..
द्वारपाल- जी नहीं जनाब..इस मामले में मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकता..
मीणा पुत्र को उसी पल पता चल गया था की खिद्राबाद राज्य का चलन यथा राजा तथा प्रजा वाला है इस लिए उसने अपनी जेब मैं से एक सोने की असरफी को थोडा सा द्वारपाल को दिखाते हुए धीमे से कहा- जी आप तो मेरी मदद नहीं करना चाहते लेकिन मैं आपकी मदद करना चाहता हूँ.. कहते हैं सुबह-सुबह आई लक्ष्मी को सिर्फ मूर्ख लोग ही ठुकराते हैं..
द्वारपाल को जैसे ही पता चलता है की वह उसे सोने की असरफी देगा तो वह लालच में आ जाता है और तुरंत आँख का इशारा करते हुए हामी भर देता है ताकि अन्य द्वारपालों को उसकी वफ़ादारी पर सक ना हो.. वह मीणा पुत्र से कहता है- ठीक है.. मैं हमारे राज्य के सेनापति जनाब याकूब से बात करता हूँ..
मीणा पुत्र मुस्कुराते हुए- जी जरुर..
वह द्वारपाल उसी पल सेनापति याकूब से मिलने चला जाता है जो की दरबार की और जा रहा था..वह मीणा पुत्र के बारे में सारी जानकारी याकूब को दे देता है.. याकूब पहले तो मना कर देता है लेकिन द्वारपाल के विशेष आग्रह पर मान जाता है.. वह सारी बात सुलतान को बता देता है.. सुलतान आग्रह को मान लेता हैं क्योंकि मणि कृतिका उसे अपनी प्यार भरी नज़रों से देख रही थी.. इसकी वजह से सुलतान का मन शांत था और प्रेम से भरा हुआ था.. प्रेम या कामवासना इसका पता नहीं खैर जो भी हो मीणा पुत्र को दरबार के अन्दर प्रस्तुति देने के लिए बुलाया गया.. मीणा पुत्र पूर्ण आत्मविश्वास के साथ दरबार मैं पहुँच जाता है.. मणिकृतिका उसे देखकर मन ही मन अति प्रसन्न होती है क्योंकि आखिर एक दिन बाद ही सही लेकिन मीणा पुत्र उसकी सहायता के लिए आ ही गया..लेकिन क्या वह हमेशा इस महल में रह पाएगा.. ये सवाल केवल मणि कृतिका के ही दिमाग में नहीं था बल्कि मीणा पुत्र के भी दिमाग में था.. लेकिन उसे कैसे भी करके अपनी योजना को सफल बनाना था..

इधर मीणा पुत्र के सभी दोस्त जंगल में उसे ढूंढते-ढूंढते थक चुके थे..लेकिन वह नहीं मिला. आखिर मानिकेय और सभी दोस्तों ने मान लिया की शायद मीणा पुत्र किसी कार्य हेतु बाहर गया होगा लेकिन चिंता होना तो लाजमी ही थी.

मीणा पुत्र दरबार में सबके सामने दरबार के मध्य खड़ा था. सैंकड़ो मंत्री, सुलतान, सुलतान का सेनापति याकूब, सुलतान की भुआ, मणिकृतिका व अन्य कुछ सेविकाएँ खड़ी थी.. उन सभी की नज़रे मीणा पुत्र पर गड़ी हुई थी. क्योंकि उन्हें नहीं पता था की वो कौन है?

कुछ ही देर में दरबार में शांति छा गई.. मीणा पुत्र दरबार के मध्य जाकर खड़ा हुआ. उसने सभी के सामने सुलतान के आगे झुककर कहा- जहाँपनाह की जय हो.. मैं सूतकुमार.. एक हास्य कलाकार हूँ.. मैं आप सभी का मनोरंज करना चाहता हूँ....

सुलतान की भुआ- अरे! हाँ, क्यों नहीं सुनाओ..करो हमारा मनोरंजन...

मीणा पुत्र- जी करूंगा लेकिन आप सभी मेरे हास्य को दिल पर मत लीजिएगा..

याकूब- अरे! अब कुछ मनोरंजन करोगे भी या युहीं ढोलक की तरह बजोगे..

मीणा पुत्र- जी जनाब.. फिर वह खिद्राबाद के सुलतान की और देखकर कहता है- तो जहाँ पनाह आज मैं आपकी बुद्धि का इम्तिहान लेना चाहता हूँ.. क्या आप तैयार हैं.....

याकूब थोडा क्रोधित होकर कहता है- तुम कहना क्या चाहते हो सूतकुमार की जहाँ प
नाह बुद्धि मान नहीं हैं?
मीणा पुत्र मन मैं सोचता है की बुद्धि मान होता तो ये नाग कन्या को उठाकर लाता क्या? विनाश काले विपरीत बुद्धि..
जब मीणा पुत्र कुछ नहीं बोलता है तो याकूब पुन: कहता है..- तुम कहना क्या चाहते हो..
मीणा पुत्र- बस यही की आप क्रोधित न हो और जहाँपनाह आप मेरे सवाल का जवाब देना..
सुलतान- ठीक है, सूत कुमार दूंगा.. पूछो..
मीणा पुत्र- जहाँपनाह आप के राज्य की सेना से आसपास के सारे राज्य के राजा डरते हैं और इसका सबसे बड़ा जो श्रेय जाता है वो आपके सेनापति जनाब याकूब को जाता है..
सुल्तान- हाँ! सही कहा तुमने..

मीणा पुत्र- मैंने सुना है की जनाब याकूब जी की तीर कमान से  निकले तीर का निशाना सीधा शत्रु के सीने पर लगता है लेकिन क्या आप इसका राज बता सकते हैं की इनका निशाना क्यों नहीं चूकता कभी..
सुलतान और सेंतापति और सभी दरबार में उपस्थित मंत्रीगण सोच में पड़ जाते हैं. की इसका राज क्या है? जब सुलतान को जवाब नहीं मिलता है तो वो मीणा पुत्र से पूछता है.. क्यों नहीं चूकता तुम ही बता दो?
मीणा पुत्र- क्योंकि जनाब याकूब काणे हैं..
मीणा पुत्र के इतना कहते ही दरबार में बैठे सभी लोग ठहाके मारकर हंसने लगते हैं.. सुलतान भी ठहाके मारकर हंसने लगता है.. लेकिन याकूब को बहुत गुस्सा आता है.. वह क्रोधित होकर कहता है- ये क्या गुस्ताखी है..
मीणा पुत्र- जी जनाब माफ़ कीजिए मैंने आपको पहले ही बोल दिया था की आप बुरा मत मानिएगा..
सुलतान हँसते हुए कहता है.. हा! हा! हा! अच्छा मजाक था.. सूत कुमार और भी सुनाओ..
मीणा पुत्र- ठीक है जनाब.. तो आप कल्पना कीजिए की ..
सुलतान- क्या कल्पना करूँ?
मीणा पुत्र- आप कल्पना कीजिए जहाँ पनाह की आपके और अधोमती राज्य के राजा के साथ गदा युद्ध हो रहा है..
सुलतान- फिर..
मीणा पुत्र- फिर आपने क्रोधित होकर उनके एक गदा मारी..
सुलतान खुश होकर – हाँ.. हाँ..आगे बोलो..
मीणा पुत्र- फिर उन्हें गुस्सा आया और उन्होंने आपके एक गदा वापस मारी लेकिन आपने बचाव किया और उनके दो गदा मार दी..
सुलतान (ख़ुशी से-) हाँ! हाँ! ..
मीणा पुत्र- फिर आपको और ज्यादा गुस्सा आ गया और आपने उस राजा के एक और जोर से गदा की मार दी.. राजा नीचे गिर गया.. और उनके हाथ से गदा गिर गई.
सुलतान- हाँ! आगे..
मीणा पुत्र- फिर उस राजा ने पुनः गदा  उठाई और क्रोधित होकर आपको बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया और आपको हरा दिया...😛😛😛
सुलतान- क्रोधित होकर- ये क्या गुस्ताखी है..
मीणा पुत्र- गुस्ताखी माफ़ करें जनाब ये आपकी कल्पना थी..आप कल्पना करना बंद कर दीजिए..
मीणा पुत्र के इतना कहते ही दरबार में उपस्थित सभी लोग ठहाके मारकर हंसने लगते हैं.. मणिकृतिका की भी हंसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी.. सुलतान भी हंसने लग जाता है..
भुआ- वाह! कितनी मजाक करते हो सूतकुमार तुम... तुमने तो दिल मोह लिया हमारा..
मीणा पुत्र- दिल तो आपने मोह लिया हमारा भुआ जी.. अब और सुनाए क्या?
भुआ जी मन ही मन मीणा पुत्र के प्रति प्रसन्न होती हैं... इधर सुलतान ने भी उससे कहा- हाँ सुनाओ सूत कुमार..
मीणा पुत्र- ठीक है जहाँपनाह... तो सुनाते हैं.. एक लड़का था..
सुलतान- हाँ!

मीणा पुत्र- वो एक लड़की को बहुत पसंद करता था..
सुलतान- हाँ! आगे..

मीणा पुत्र- वो लड़की भी उसे शायद बहुत प्यार करती थी.. यही कारण था की वह दिन-रात, कड़ी धूप हो या बारिश या फिर रात का अँधेरा वह हमेशा एक ही जगह खडी बिना पलके झपकाए उस लड़के की तरफ देखती रहती थी..
भुआ- फिर क्या हुआ..

मीणा पुत्र- लेकिन वे दोनों एक दूसरे से इतना प्यार करने के बावजूद भी शादी नहीं कर पाए..

याकूब आश्चर्य से- क्यों?

मीणा पुत्र- क्योंकि.. वो लड़की नहीं बल्कि शहर के मुख्य चौराहे पर बनाई गई एक लड़की की मूर्ती थी... जनाब याकूब आप भी न इतना सा भी दिमाग नहीं है...

मीणा पुत्र के इतना कहते ही सभी जोर-जोर से ठहाके मारकर हंसने लगे... लेकिन याकूब को मन ही मन मीणा पुत्र पर गुस्सा आ रहा था..

सुलतान ने खुश होकर कहा- वाह! अच्छा मजाक करते हो सूतकुमार... चलो हम आपको सौ सोने की मोहर देते हैं इस ख़ुशी में..

मीणा पुत्र- नहीं जहाँपनाह... मुझे सौ मोहर नहीं चाहिए..
सुलतान- तो क्या चाहिए आपको?

मीणा पुत्र- जी अगर आप बुरा न माने तो क्या आप हमें अपने दरबार में हास्य कलाकार की नौकरी दे सकते हैं.. हम हर रोज आपका मनोरंजन करेंगे..

सुलतान- पर ये कैसे संभव है?

मीणा पुत्र- जहाँ पनाह ये मेरा आपसे निवेदन है की आप मुझे हास्य कलाकार की नौकरी दे दें..

याकूब- क्रोधित होकर कहता है- तुम्हे सुनाई नहीं देता क्या की जहाँ पनाह आपको दरबार में हास्य कलाकार के रूप में नौकरी नहीं दे सकते..

सुलतान- शांत हो जाओ याकूब..कुछ सोचकर बाताओ आप.. क्या हम इन्हें हास्य कलाकार की नौकरी दे दें..
याकूब के ऊपर ज्यादा मजाक करने की वजह से वो मीणा पुत्र को पसंद नहीं करता है इस कारण वह कहता है- जहाँपनाह अगर आप मेरी माने तो इसे दरबार में हास्य कलाकार की नौकरी ना दें..ये मजाक तो करता है लेकिन इसकी मजाक में अभद्रता झलकती है..

सुलतान- जैसी आपकी राय सेनापति याकूब....

फिर वह मीणा पुत्र की तरफ देखते हुए कहता है- आप अच्छे हास्य कलाकार हैं लेकिन हम आपको दरबार में काम नहीं दे सकते.. अत: आप किसी अन्य राज्य में जाईये..

सुलतान के ये शब्द मीणा पुत्र की सारी योजना पर पानी फेर देते हैं.. मणिकृतिका भी उदास हो जाती है.. मीणा पुत्र वापस दरबार से बाहर जाने लगता है...
क्रमश......