भाग- 21

मीणा पुत्र दरबार से बाहर निकलने ही वाला था की पीछे से किसी ने उसे आवाज दी..
-ठहरो!!
जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो सुलतान की भुआ अपनी गद्दी से खड़ी हुई थी और उसने ही मीणा पुत्र को रुकने के लिए आवाज दी थी. मीणा पुत्र दरबार में ही एक जगह रुक गया. सुल्तान को जब अपनी भुआ की बात समझ नहीं आई तो उसने कहा- क्या हुआ भुआ? इसे क्यों रोक लिया?
भुआ- इसे मैंने इस लिए रोक लिया क्योंकि यह हमारे बहुत काम का है..
सुल्तान- मतलब!
भुआ- वो तुम्हे मैं सब समझा दूँगी... चलो तुम मेरे निजी कक्ष में मेरे साथ आओ..
सुल्तान- जैसी आपकी मर्जी भुआ जी..
दरबार में सभी मंत्रीगण, सेनापति याकूब, दरबारी, सेविकाएँ और मनिकृतिका सब सुल्तान की भुआ के निर्णय पर आश्चर्यचकित थे. यहाँ तक की मीणा पुत्र के भी कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह तो दरबार के बीच खड़ा था.
इधर सुल्तान और उसकी भुआ के बीच कुछ देर तक कक्ष में गहन मंत्रणा हुई. फिर अचानक दरबार में एक सेविका आई और उसने मीणा पुत्र से कहा- जनाब आपको जहाँ पनाह अपने कक्ष में बुला रहे हैं.
मीणा पुत्र- ठीक है.. फिर वह उस सेविका के पीछे-पीछे चलता है. मणिकृतिका को भी सुलतान की भुआ के फैसले से आश्चर्य हुआ लेकिन उसे मन ही मन ख़ुशी भी हुई की शायद मीणा पुत्र को भी महल में काम मिल जाएगा.
इधर मीणा पुत्र सुलतान के कक्ष में प्रवेश कर लेता हैं. जहाँ सुल्तान और उसकी भुआ अलग-अलग गद्दी पर बैठे हैं.. वे आपस में बात कर रहे थे.. जैसे ही सुल्तान की नजर मीणा पुत्र पर पड़ती है तो वह खड़ा होकर मीणा पुत्र को एक अन्य गद्दी पर बैठने को कहता है..
सुल्तान- तसरीफ रखिए सूत कुमार..
मीणा पुत्र- जी..
फिर वह गद्दी पर बैठ जाता है और सुल्तान की तरफ एक झूठी मुस्कराहट मुस्कुराकर कहता है- फरमाईये जहाँपनाह..
सुल्तान- हाँ! सूत कुमार.. हमारी भुआ जी के कहे अनुसार हमने आपको एक काम देने का निश्चय किया है..
मीणा पुत्र- जी शुक्रिया..
भुआ- अरे! पहले काम तो सुन लो.. बहुत मुश्किल है लेकिन हमें विश्वास है की तुम वो काम कर लोगे..
मीणा पुत्र- जी फरमाईये..
सुल्तान- सूत कुमार.. अब तुमसे क्या छुपाना.. मैंने आज से छ: माह पहले मेरी भुआ की सहायता से एक नागकन्या का अपहरण किया था..
मीणा पुत्र जानबूझकर आश्चर्य वाले भाव अपने चेहरे पर लाकर कहता है..क्या!
सुल्तान- हाँ! लेकिन इसमें इतने आश्चर्य चकित होने की कौनसी बात है? हम उसे बहुत प्यार करते हैं सूत कुमार..
मीणा पुत्र- जी बोलिए मुझे क्या करना होगा..
भुआ- जैसा की आज तुमने हमारे शाही दरबार में प्रस्तुति दी उसे देखते हुए मैंने जाना की तुझमे अपनी बातो से किसी भी इन्सान को मोहित करने की काबिलियत है..
मीणा पुत्र- जी..
सुल्तान- तो हमने निश्चय किया है की तुम हमारे लिए उस नाग कन्या को मेरे साथ निकाह करने के लिए मनाओ.. क्योंकि वह मुझे शोहर के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर रही है..
मीणा पुत्र- तो इसमें ज्यादा सोचने की क्या बात है.. आप उससे जबरदस्ती भी तो निकाह कर सकते हैं..
सुल्तान- नहीं कर सकता..
मीणा पुत्र- क्यों नहीं कर सकते..
सुल्तान- क्योंकि मैं जब भी उसके कक्ष में उसे निकाह के लिए मनाने जाता हूँ वह मुझे खुद को जलाकर राख करें की धमकी दे देती है और मुझे वापस आना पड़ता है..
मीणा पुत्र- अच्छा..
भुआ- हाँ! तो अब हम चाहते हैं की तुम उसको अपनी बातो में ऐसा उलझाओ की वह एक दिन मेरे भतीजे से निकाह करने के लिए राजी हो जाए..
मीणा पुत्र मन ही मन खुश होता है क्योंकि इसी काम को करने के लिए तो वह महल में आया था.. उसने मुस्कुराते हुए कहा- जी जरुर जहाँपनाह मैं आपके लिए कुछ भी करूँगा. ये तो मेरे लिए एक छोटा सा काम है... मैं एक महीने के अन्दर-अन्दर ही नागकन्या को आपके साथ निकाह करने के लिए मना लूँगा..
भुआ खुश होकर- शाबाश! ये हुई ना बात.. फिर वह सुल्तान के तरफ देखकर कहती है.. क्या कहा था बेटा मैंने तुम्हे की यह लड़का कुछ भी कर सकता है..
सुल्तान- जी सही कहा भुआ आपने..
फिर वह सूत कुमार की तरफ मुस्कुराते हुए कहता है- तो चलो आप तैयार हो जाओ...आपको अभी कुछ ही देर मैं शाही लिबास मिल जाएगा.. और आपको आज से ही नाग कन्या को मनाने की कवायद शुरू करनी है..
मीणा पुत्र.. शुक्रिया...जहाँपनाह, जो आपने मुझे इस कार्य के काबिल समझा.. फिर वह मुस्कुराते हुए कक्ष से बाहर चला जाता है..पीछे से सुल्तान की भुआ और सुल्तान दोनों एक दूसरे की तरफ ऐसे मुस्कुराते हैं मानो वो अपने षड्यंत्र में सफल हो गए लेकिन सफल कौन हुआ इसका जवाब तो समय के पास ही था..
शाम होने को थी.. मीणा पुत्र के सभी दोस्त बहुत चिंतित थे क्योंकि उन्हें मीणा पुत्र का कहीं कोई सुराग नहीं मिला था. मानिकेय और अन्य सभी दोस्त महल और नाग कन्या के विषय में जानने की कोई योजना नहीं बना सकते थे क्योंकि पूरी योजना का प्रारूप केवल मीणा पुत्र के ही पास था..
इधर मीणा पुत्र स्नान करके नाग कन्या के कक्ष की तरफ एक सेविका के साथ बढ़ता है तो दूसरी तरफ तैयार होकर मणिकृतिका भी सुल्तान के कक्ष की तरफ जाती है.. आज फिर उसे अपने नारित्व की रक्षा करनी थी जो की इतना आसान काम नहीं था..खैर जैसे ही रस्ते में मणि कृतिका और मीणा पुत्र मिले उन दोनों की आँखे एक दुसरे की तरफ देख रही थी.. मीणा पुत्र की आँखों में मणिकृतिका के प्रति गर्व साफ झलक रहा था..उसे मणिकृतिका पर पूर्ण विश्वास था तो दूसरी तरफ मणिकृतिका को भी मीणा पुत्र पर पूर्ण विश्वास था..
मीणा पुत्र उस दासी के साथ नाग कन्या के कक्ष में प्रवेश करता है.. सेविका के हाथ में खाने की थाल थी.. मीणा पुत्र ने उस खाने की थाल को अपने हाथ में ले ली और कक्ष में प्रवेश किया.. वो सेविका वापस बाहर चली गई.. नाग कन्या दीवार के सहारे अपने सर को घुटनों में देकर दुखी होकर बैठी थी. दुःख का मकडजाल उसे जकडे हुए था. मीणा पुत्र ने पहली बार अपनी भाभी नाग कन्या को देखा था.. उसने नाग कन्या को धीमे से कहा- लो खाना खा लीजिए..
नाग कन्या ने अपनी गर्दन ऊपर की तो देखा की उसके कक्ष में आज सुल्तान के अलावा कोई अन्य पुरुष था.. उसने मीणा पुत्र की तरफ क्रोधित होकर देखते हुए कहा- ओह! तो अब तुम्हे भेजा है उस दुष्ट सुलतान ने.. मुझे नहीं खाना कोई खाना वाना..
मीणा पुत्र- लेकिन आपकी दुश्मनी तो सुलतान से है.. ना की खाने से..
नाग कन्या ने क्रोधित होकर कहा- अच्छा! तो अब आप बताएंगे मुझे की कौन मेरा दुश्मन है या कौन मेरा सखा.. मुझे पता है की ये उस कपटी सुल्तान और उसकी भुआ की चाल है... तुम भी उसके चमचे हो..
मीणा पुत्र- आप मुझे जो समझे समझ लो लेकिन खाना तो खा लो..
फिर वह खाने की थाल लेकर जैसे ही नाग कन्या की तरफ बढ़ने लगता है... नाग कन्या क्रोधित होकर कहती है- वही रुक जाओ.. अगर जरा सा भी आगे बढे तो अपना पूरा जहर तेरे सीने में उतार दूँगी.. और वो कमिनी सुलतान की भुआ जब तक आएगी तब तक तुम स्वर्ग लोग सीधार जाओगे..
मीणा पुत्र ने मुस्कुराते हुए कहा- कोई दिक्कत नहीं..आप चाहे तो मेरे अन्दर पूरा जहर उतार दीजिए लेकिन मैंने तो सुना है की कोई माँ अपने बैटे को जान से नहीं मार सकती..
नाग कन्या थोड़ी शांत होकर कहती है- कहना क्या चाहते हो तुम.?
मीणा पुत्र – बस यही की आप मेरी माँ हो .. भाभी माँ.. क्या भाभी, माँ के समान नहीं होती? अगर अब भी आप मुझे जान से मारना चाहती हो तो मार दीजिए..
नाग कन्या- तुम कौन हो? कहीं तुम मीणा पुत्र सोमभद्र तो नहीं..
मीणा पुत्र- हाँ! भाभी माँ.. आपने सही पहचाना लेकिन आपको कैसे पता की मैं सोम हूँ?
नाग कन्या- आपके भैया ने मुझे सब बता दिया था की सोम बहुत बातूनी है और वह अपनी बातो से किसी का भी दिल जीत सकता है..
मीणा पुत्र- अच्छा! भाभी माँ.. अगर ये बात है तो आप अब तो अपने बेटे के हाथो खाना खा लीजिए लेकिन हाँ अपना जहर मुझे मारने के लिए तो प्रयोग नहीं करोगी ना..
मीणा पुत्र के इतना कहते ही नाग कन्या की आँखों से आंसू आ गए.. वह रोने लगी तो मीणा पुत्र ने नाग कन्या के आंसू पोंछते हुए कहा- भाभी माँ आपके आंसुओ की कसम हम सब दोस्त मिलकर इस सुल्तान को खून के आंसू न रुला दिए तो मेरा नाम सोम भद्र नहीं...

क्रमश.......

                         भाग- 22

मीणा पुत्र ने नाग कन्या को खाना खिलाया. उसी दौरान उसने नाग कन्या से सारी बातें पूछ ली की कैसे उसका अपहरण किया गया? कैसे सुल्तान की भुआ ने उसकी नाग मणि छीन ली.. कैसे राजकुमार महल के अन्दर ही रह गया था? वगेरह-वगेरह. जब सारी बात हो गई तो मीणा पुत्र ने नाग कन्या से कहा-
मीणा पुत्र- भाभी माँ...
नाग कन्या- हाँ! बोलो
मीणा पुत्र- हम आपको जल्दी ही यहाँ से छुड़ा लेंगे लेकिन आपको हमारा साथ देना होगा..
नाग कन्या- कैसा साथ?
मीणा पुत्र- मैं जब भी आपके कक्ष में आऊ तो आप सबके सामने ऐसे व्यवहार करना जैसे आप मेरी बातों से खुश हो और इसके अलावा एक और बात.. आप अब धीरे-धीरे जब भी सुल्तान कक्ष में आए तो उसे इस तरह से महसूस करवाना की आप उसे पसंद करने लगे हो..
नाग कन्या-( क्रोधित होकर) अच्छा लेकिन ऐसा मैं नहीं कर पाउंगी.. मैं उस कपटी सुल्तान को कभी पसंद नहीं कर सकती..
मीणा पुत्र- अरे! भाभी माँ ये करना बहुत जरुरी है.. ताकि मैं सुल्तांन और उसकी भुआ का दिल जीत सकूं...क्या आप मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती..
नाग कन्या- मुश्किल तो है लेकिन मैं तुम्हारे लिए जरुर करुँगी..
मीणा पुत्र- वादा रहा..
नाग कन्या-( मुस्कुराते हुए) हाँ! वादा रहा..
मीणा पुत्र- वाह! ये हुई ना बात.. अब देखना आपका देवर कैसे इन सब को उल्लू बनाता है.. फिर वह नाग कन्या को कहता है..
मीणा पुत्र- ठीक है.. अब मैं चलता हूँ.. आप अब ज्यादा दुखी मत होना..
नाग कन्या- नहीं! अब नहीं होउंगी.. मुझे तुम विश्वास है..
नाग कन्या के इतना कहते ही मीणा पुत्र वहां से थाल लेकर उसके कक्ष से बाहर चला गया.. फिर वह सुल्तान की भुआ के कक्ष में गया तो वो अपनी गद्दी पर बैठी थी.. जब मीणा पुत्र ने सुल्तान की भुआ को सब बाते बताई तो वह बहुत खुश हुई..
इधर मणिकृतिका ने सुल्तान को अपनी अदाओं से मदहोश कर दिया और बाकी की रही कही कसर उसने उसे मदिरा पिलाकर पूरी कर दी.. जैसे ही सुल्तान बेहोस हो गया तो उसने सुल्तान की कमीज भी उतार दी ताकि उसे सक न हो की उनके बीच रात को कुछ नहीं हुआ था. उसने फिर से अपनी बुद्धिमानी से अपनी स्त्रीत्व की रक्षा कर ली थी.. वो सुल्तान से कुछ दूर सो गई. हालाँकि मदिरा की बदबू ने उसे सारी रात परेशान किए रखा. उसके लिएकितनी मुश्किल भरे दिन थे की वह सपने तो मीणा पुत्र की बाहों में लिपटकर सोने के ले रही थी लेकिन हकिकत मैं वह एक ऐसे इंसान के पास सो रही थी जो लड़कियों को सिर्फ काम वासन पूरी करने का खिलौना समझता था.. मीणा पुत्र के प्रति उसका निश्छल प्रेम उसकी आँखों में झलकता था लेकिन मीणा पुत्र उससे प्यार करता है या नहीं ये वो नहीं जानती थी.. उसके पास उस प्रेम को जानने का भी वक्त नहीं था.. उसने तो मन ही मन मीणा पुत्र को अपना पति मान लिया था..और यही कारण था की वह जो मीणा पुत्र बोलता उसका अनुसरण एक काबिल पत्नी के रूप में कर रही थी..लेकिन क्या मीणा पुत्र उसे अपनी पत्नी मानता था इसका जवाब उसे जानना था लेकिन वक्त कहा था उसके पास.. उसे तो बहुत सारे कार्य करने थे. नाग कन्या को सुल्तान के महल से सकुशल बाहर निकलना भी तो था.. और इस कार्य को करने के लिए वह मीणा पुत्र की एक अहम् मोहरा थी..
इधर अगले दिन की भी सुबह हो गई लेकिन मीणा पुत्र अब तक अपने दोस्तों से नहीं मिल पाया था. क्योंकि अगर वह मिलने की कोशिश करता तो शायद पकड़ा जा सकता था और उसकी पूरी योजना पर पानी फिर सकता था..
धीरे-धीरे दिन बीतते गए. मीणा पुत्र ने सुल्तान और उसकी भुआ के दिल में जगह बना ली थी.. मीणा पुत्र अपने उतम श्रेणी के अभिनय से उस दोनों को उल्लू बना रह था. तो इधर नाग कन्या भी उसका भरपूर साथ दे रही थी. जिससे सुल्तान और उसकी भुआ का विश्वास मीणा पुत्र पर लगातार बढ़ रहा था.. सुल्तान की भुआ मीणा पुत्र को अपना बेटा मानने लगी थी. क्योंकि वह अपनी प्यारी बातो से उस कपटी को भी मक्खन लगाने में कोई कमी नहीं छोड़ता था..
इधर मणिकृतिका भी सुल्तान को भोंदू बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा थी. जब मीणा पुत्र को लगा की अब अगली चाल चलने का वक्त आ गया है तो उसने अपने खुरापाती दिमाग से एक ऐसी तरकीब सोची जिसे सोच पाना हर किसी के बस की बात नहीं थी.. एक रोज वह सुल्तान की भुआ के कक्ष में शाम को नाग कन्या के विषय में बात कर रहा था.. सुल्तान की भुआ उसके काम से बहुत खुश थी क्योंकि उसे विश्वास हो रहा था की नाग कन्या को सुल्तान के साथ निकाह के लिए अगर कोई मना सकता है तो वो कोई और नहीं बल्कि मीणा पुत्र ही है.. इस कारण वह उससे बहुत खुश थी.. खुश क्या उस दिन तो बहुत ही ज्यादा खुश थी क्योंकि पहली बार नाग कन्या सुल्तान पर गुस्सा नहीं हुई थी बल्कि उसकी पसंद का खाना खा लिया था..
सुल्तान की भुआ मीणा पुत्र के बालों को सहला रही थी मानो वह उसका ही बेटा है..आखिर मीणा पुत्र भी तो बातो और अभिनय करने में किसी से कम नहीं था.. मीणा पुत्र ने मुस्कुराते हुए सुल्तान की भुआ से पूछा..
मीणा पुत्र- भुआ आप मुझसे कितना प्यार करती हैं?
भुआ- अरे! बुद्धू भला ये भी बात पूछने की है.. मैं तुझसे मेरे भतीजे से भी ज्यादा प्यार करती हूँ क्योंकि तुम मुझे अपने हाथ से खाना खिलाते हो.. मेरे पैर भी दबाते हो और हर रोज शाम को सोने से पहले मेरे पाँव छूकर जाते हो.. तुझ जैसे बेटे को पाकर मैं तो धन्य हो गई.. सूत कुमार..
मीणा पुत्र- ऐसा क्या भुआजी तो क्या अब से मैं आपको माँ बुला सकता हूँ. क्योंकि आप बिलकुल मेरी माँ की तरह ही हो..
भुआ- अरे! क्यों नहीं.. भला ये भी कोई पूछने की बात है..
मीणा पुत्र ज्यादा ख़ुशी व्यक्त करते हुए.. - धन्यवाद माँ .. ओह मेरी प्यारी माँ.. फिर वह खड़ा होकर जैसे ही ख़ुशी के मारे उछलता है तो वह सीधे ही जमींन पर गिर जाता है....
भुआ( आश्चर्य से) ओह! मेरे प्यारे लाल क्या हुआ तुझे... फिर वह उसे उठाती है और उसे संभालती है.. अरे कुछ तो बोल.. बोल.. बोल ना..
मीणा पुत्र अभिनय करते हुए--- माँ दर्द.. दर्द हो रहा है.. बहुत दर्द हो रहा है.. माँ मैं मर जाऊंगा...
भुआ ( रोते हुए) अरे! कोई है.. कोई है बाहर.. जल्दी से आओ देखो मेरे बेटे को क्या हो गया.. या अल्लाह रहम कर... बेटा सूत उठ.. उठ मैं तुझे कुछ नहीं होने दूँगी...
मीणा पुत्र- ( दिल पर हाथ लगाते हुए) माँ अब कुछ नहीं हो सकता.. माँ आप किसी को मत बुलईये माँ...
भुआ-( गुस्से में) कैसे ना बुलाऊं.. कोई है.. अन्दर आओ जरा..
भुआ जी की आवाज सुनकर मणिकृतिका डरती हुई अन्दर आती है.. उसे भी कुछ पता नहीं है की वह अभिनय कर रहा है.. वह उसे बुरी हालात मैं देखकर डर जाती है.. वह कुछ बोले उससे पहले ही सुल्तान की भुआ मणिकृतिका से कहती है...
भुआ—तुम जाओ जल्दी से हमारे शाही वेद्य जी को बुलाकर लाओ..
मीणा पुत्र- ( दर्द होने का अभिनय करते हुए) ठहरो! अब कोई फायदा नहीं माँ...
भुआ- अरे! कैसे नहीं बुलाओ?
मीणा पुत्र- नहीं अब कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि अब मैं नहीं बच सकता क्योंकि यह मेरी पुरानी बीमारी है.... आ.. आ.. आ.. उई..माँ.. मैं मर जाऊँगा.. माँ..
भुआ- अरे! मैं कुछ नहीं होने दूँगी तुम्हे.. तुम बताओ मुझे कैसे इलाज होता है इस बीमारी का..
मीणा पुत्र( सीने पर हाथ लगते हुए दर्द होने का अभिनय करते हुए) आ.. आ.. बचपन में जब मुझे ये दर्द होता था तो माँ कोई सफ़ेद सी चमकीली सी चीज मेरे मुहं में देती थी... जब मैं उसे अपने मुहं मैं रात भर रखता तो दर्द ठीक हो जाता था..
भुआ( आश्चर्य से) मतलब! कैसी थी वो... दिखने में बहुत चलकीली थी क्या वो..
मीणा पुत्र—हाँ! माँ..हाँ! .. फिर वह दर्द होने का पुन: अभिनय करते हुए..
माँ..ओ माँ... मैं मर जाऊंगा अभी.. माँ.. आ... उई...
इधर मणि कृतिका भी बेचारी बहुत दुखी हो जाती है.. वह अपनी भावनाएं भी दबाने में असक्षम है..
भुआ ने जल्दबाजी में कहा- अरे! मैं तुझे कुछ नहीं होने दूँगी..वैसी चमकीली सफ़ेद चीज मेरे पास भी है.. फिर वह जल्दी से अपनी पुरानी संदूक खोलती है जिसमे वो नाग मणि थी.. उसने अपने हाथ में नाग मणि ली और मीणा पुत्र के मुहं में देते हुए कहा- कुछ नहीं होगा तुझे तूँ ठीक हो जाएगा.. इसे अपने मुहं में ले लो तुम...
फिर मीणा पुत्र ने उस मणि को अपने मुहं में कुछ देर दबाए रखा और सुकून से भुआ की गोद में सोने का प्रयास करने लगा...
भुआ- अरे! अब कम हुआ क्या दर्द..
मीणा पुत्र- हाँ! माँ अब कम हुआ है.. शायद यह वैसी ही चीज है जो माँ की पास थी.. अब रात भर इसे मुहं में रखूंगा तो ठीक हो जाऊंगा..
भुआ- अरे! कोई बात नहीं रखो. तुम्हारे लिए तो कुछ भी करुँगी बेटा.. फिर वह मणि कृतिका को कहती है- मणिकृतिका तुम इसे इसके कक्ष में ले जाकर सुला आओ..इसे आराम मिलेगा..
मणिकृतिका- ठीक हैं.. बुआ जी..
फिर वह मीणा पुत्र को सहारा देते हुए उसके कक्ष में ले जाकर उसे बिस्तर पर सुला देती है.. और प्यार से पूछती है- अब कैसा है आपका दर्द..
मीणा पुत्र नागमणि को मुहं से बाहर निकालकर मुस्कुराते हुए कहता है- कैसा दर्द मणि कृतिका... दर्द तो अब मैं दूंगा इन्हें...
मणिकृतिका- तो मतलब आप अभी अभिनय कर रहे थे..
मीणा पुत्र- हाँ! बिलकुल.. लेकिन अभी हमारे पास इस सब के लिए वक्त नहीं है.. तुम्हे मेरा एक काम करना होगा..
मणिकृतिका- क्या? मैं आपके लिए कुछ भी करुँगी..
मीणा पुत्र- काम बहुत मुश्किल है मणिकृतिका..
मणिकृतिका- मैं आपके लिए कुछ भी करुँगी.. एक बार काम तो बोलिए....
मीणा पुत्र—ठीक है बताता हूँ.... तो सुनो..

क्रमश......

                         भाग- 23

मीणा पुत्र ने मणिकृतिका को नाग मणि देते हुए कहा- ये लो नाग मणि मणिकृतिका.. अब तुम्हे कैसे भी करके इस नाग मणि को सूर्यप्रकाश (जोहरी) को देना है..
मणि कृतिका- मतलब! मैं कुछ समझी नहीं..अगर मैं नागमणि कैसे भी करके उन तक पहुंचा दूँगी तो फिर आप और भाभी जी यहाँ फस जाएंगे..
मीणा पुत्र- तुम पहले योजना तो सुनो..
मणिकृतिका- हाँ! सुनाओ आप..
मीणा पुत्र- तुम यह नाग मणि जब सूर्य प्रकाश को दो तो उसे बोलना की वो इसको ध्यान से देख ले और इसका उपयुक्त नाप ले ले. ... समझी..
मणिकृतिका- फिर...
मीणा पुत्र- फिर जैसे ही वो नाप ले लेगा तो वो इसके जैसी अन्य किसी पत्थर या धातु से कोई नकली चमकदार मणि बना देगा..
मणिकृतिका- हाँ! फिर..
मीणा पुत्र- उसे ऐसी नकली मणि बनाने के लिए कम से कम दो दिन तो लग ही जाएंगे.. अब तब तक तुम वहां नहीं ठहर सकती इस लिए तुम्हे कैसे भी करके रात को अकेले वहां मानिकेय और मेरे अन्य दोस्तों को पूरी योजना बतानी होगी. इधर इतनी देर में सूर्यप्रकाश इस मणि का सही से नाप ले लेगा.. फिर तुम्हे रात को ही वापस महल में आना होगा और समय रहते तुम्हे वापस सुलतान के कक्ष में भी आकर सोना होगा ताकि किसी को सक ना हो..
मणि कृतिका (संकोच करके) लेकिन..
मीणा पुत्र – मुझे पता है मणिकृतिका ये काम बहुत मुश्किल है.. तुम्हे सबसे पहले सुल्तान को नशे में धूत करके उसे सुलाना होगा..फिर समय रहते तुम्हे सुल्तान के कक्ष की पीछे की खिड़की से महल के अहाते में उतरना होगा.. फिर महल की आठ फूट की चारदीवारी को भी फांदना होगा.. इसी दौरान तुम्हे सभी पहरेदारो की नजरो से बचना भी होगा.. अगर तुम उनके हत्थे चढ़ गई तो फिर सब गड़बड़ हो जाएगी और फिर हम भाभी माँ को कभी नहीं छुड़ा पाएंगे..
मणिकृतिका- लेकिन आप तो जानते हो की नाग मणि में कितनी शक्ति होती है. अगर हम ये नाग मणि भाभी माँ को दे दें तो हम सुल्तान और उसकी सेना को आराम से हरा सकते हैं..
मीणा पुत्र- अच्छा सवाल है लेकिन ये सब इतना आसान नहीं है... सुलतान के पास लाखो की तादात में सैनिक है.. और ऊपर से सुल्तान की भुआ तांत्रिक विधा में पारंगत है.. यह कहना गलत नहीं होगा की भुआ अकेली ही भाभी माँ और नाग मणि की शक्तियों का सामना कर सकती है.. तब फिर सुल्तान की सेना तो हम पर भारी पड़ जाएगी.. हमें सभी काम योजना बंध तरीके से करने होंगे.. वरना इन सब को हरा पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
मणिकृतिका- लेकिन आप बोल रहे हो की सूर्य प्रकाश भैया इस नाग मणि की जगह नकली नाग मणि बना देगा.. लेकिन क्या सुल्तान की भुआ नाग मणि की पहचान नहीं कर सकेगी..
मीणापुत्र- वो नहीं होगा.. सूर्य प्रकाश की विधा का इस दुनिया में किसी के पास भी कोई जवाब नहीं है.. फिलहाल तो तुम्हे मेरा बस यह काम करना होगा..
मणिकृतिका- ठीक है मैं जरुर करुँगी..
मणिकृतिका के चेहरे पर उदासी और हताशा छाई हुई है क्योंकि एक अकेली स्त्री के लिए ये सब कर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा था. वह जैसे ही नाग मणि को अपनी चुनरी के पल्लू में बांधने के बाद बाहर जाने लगती है.. मीणा पुत्र उसे पीछे से आवाज देता है..
मीणा पुत्र- ठहरो.. मणिकृतिका..
मीणा पुत्र के इतना कहते ही वह रुक जाती है.. फिर वह मणिकृतिका के पास जाता है.. वह उसका हाथ पकड़ता है और अपने गले लगाते हुए कहता है.
मीणा पुत्र- मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ मन्नू.. बस थोडा सा इन्तजार कर लो.. हम जल्दी ही भाभी माँ को छुड़ा लेंगे.. और हाँ! ये मणि देने के लिए मैं भी तुम्हारे साथ जा सकता था लेकिन रात को भुआ मेरी तबियत के बारे में पूछने के लिए आ सकती है इस लिए आज यह काम तुम्हे अकेले ही करना होगा..
मणिकृतिका मीणा पुत्र के गले मिले हुए है. उसकी आँखों में आंसू है. आज पहली बार उसे मीणा पुत्र का स्पर्श महसूस करने का मौका मिला था..कितना प्यार भरा स्पर्श था.. वो तो उससे युही लिपटकर रहना चाहती थी.. सोच रही थी की काश ये पल यही ठहर जाए.. लेकिन समय? समय तो वो घोडा होता है जो कभी नहीं रुकता न किसी प्रेमी प्रेमिका के लिए तो ना किसी दुष्ट इंसानों के लिए... मीणा पुत्र ने मणिकृतिका के आंसू पौंछे और उससे कहा.
मीणा पुत्र- मुझे तुम पर विश्वास है मन्नू..करोगी न मेरे लिए ये काम..
मणि कृतिका- हाँ! आपके लिए अगर जान भी देनी होगी तो ख़ुशी-ख़ुशी दे दूँगी..
मीणा पुत्र- ऐसी बात मत बोलो तुम मन्नू..बस आज अगर तुमने ये काम कर दिया तो समझो हमारी आधी परेशानी का हल मिल जाएगा..और हाँ मानिकेय को बोलना तेरा दोस्त तुम्हारे साथ( मणि कृतिका) शादी करने के लिए तैयार है.. तुम मेरे लिए आफत की पुडिया नहीं हो..
मणिकृतिका ( मुस्कुराते हुए) अच्छा!
मीणा पुत्र- बिलकुल.. अब जाओ तुम... उस कपटी सुलतान को भी तो अपनी अदाओं से मारना है तुम्हे.. या फिर मुझे ही मारोगी केवल..
मणिकृतिका की आँखे आज ख़ुशी के मारे चमक उठी फिर उसने मुस्कुराते हुए कहा- जाती हूँ.. मैं भी आपसे बहुत प्यार करती हूँ..
मीणा पुत्र-(मुस्कुराते हुए) मुझे पता है.. अब जाओ..
मणिकृतिका- हाँ. जाती हूँ.
मणिकृतिका समय रहते सुल्तान के कक्ष में प्रवेश कर जाती है. मीणा पुत्र को मणि कृतिका पर पूर्ण विश्वास था लेकिन उसका अकेले जंगल से होकर जाना और आठ फीट की दीवार फांदकर मीणा पुत्र के दोस्तों के पास पहुंचना और फिर समय रहते वापस भी आना. एक बहुत मुश्किल काम था. लेकिन आज वह बहुत खुश थी.. आज उसकी शक्तिया दोगुनी हो चुकी थी.. आखिर वह जिसे दिल से चाहती थी उसने उसे अपना लिया था. मणिकृतिका ने समय रहते सुल्तान को मदिरा पिलाकर बेहोश कर दिया. फिर वह सुल्तान के कक्ष की पीछे की खिड़की से साडी को रस्सी बनाकर कूद गई.. उसके बाद उसने साहस भरकर दीवार भी फांद ली.. वह शीघ्र ही जगंल में मीणा पुत्र के दोस्तों के पास पहुँच गई..वहां जाकर उसने मीणा पुत्र की सारी योजना उन सब दोस्तों को बता दी. सूर्य प्रकाश ने भी मणि का नाप ले लिया और मणि को वापस मणिकृतिका को दे दिया.. वह पुन: महल की तरफ आ गई.. उसने जैसे ही महल की दीवार फांदी तो अचानक एक रक्षक की नजर उस पर पड़ गई.. महल के पीछे एक बगीचा था.. मणिकृतिका एक पेड़ के पीछे छुप गई.. लेकिन वह रक्षक उसकी ही ओर बढ रहा था. उस रक्षक ने आवाज दी..
रक्षक- कौन है वहां?
लेकिन जब सामने से कोई आवाज नहीं आती है तो वह फिर से जोर से बोलता है..
रक्षक- कौन है वहां? मैं पूछ रहा हूँ कौन है वहां..
मणि कृतिका के लिए अब यह मुश्किल घडी थी ..
क्रमश..........

                              भाग- 24

पहरेदार मणिकृतिका की ओर बढ़ रहा था.. उसका एक-एक कदम मणिकृतिका के हृदय की धमनी को बढ़ा रहा था.. मणिकृतिका ने अपनी साँस को रोके रखा. वह जिस पेड़ के पास छुपी हुई थी उस पेड़ के पास एक बड़ी सी घनी बेल थी. उसने अपने आपको उस बेल के पीछे छुपा लिया.. उस पहरेदार ने पुन: जोर से आवाज दी..
पहरेदार- कौन है वहां? मैंने कहा कौन है?
जब सामने से कोई प्रतिउतर नहीं आता है तो फिर वह उस बेल की तरफ आगे बढ़ता है.. वह धीमे से फुद्बुदाता है... अजीब है.. इस बगीचे का भी.. इतनी रात को भला मुझे लड़की कैसे दिख गई..
फिर वह पुन: जोर से बोलता है- मैंने कहा कौन है? बोलता क्यों नहीं है?
इधर मणिकृतिका काफी डर चुकी थी. वह बिना किसी आवाज के उस बेल के पीछे छुपी हुई थी.. उस पहरेदार ने आगे बढ़कर उस बेल को पकड़कर जैसे ही झाँका उसके पीछे से किसी ने आवाज दी..
`` अरे! अयूब भाई आप यहाँ हो.. वहां क्या ढूढ़ रहे हो?``
अयूब- कुछ नहीं भाई जान यहाँ मुझे कोई लड़की आती हुई दिखाई दी..
दूसरा पहरेदार- हा! हा! हा! आप भी न अयूब भाई कमाल के हैं.. रात को पहरेदारी करते हुए इतने थक जाते हैं की आपको लताएं भी लड़कियाँ दिखाई देने लगी हैं.. चलो आओ अब..
अयूब-(आश्चर्य से) लेकिन भाई जान मैंने कहा ना मैंने कोई लड़की को बगीचे के अन्दर आते हुए देखा है..
दूसरा पहरेदार- भाई जान ऐसा कुछ नहीं है. भला इतनी रात गए इस बगीचे में लड़की क्या लहसून छिलने आएगी.. चलो आप मेरे साथ चलो...
अयूब- ठीक है चलो.. चलते हैं..
फिर वे दोनों वहां से चले जाते हैं.. मणिकृतिका ने ईश्वर का धन्यवाद किया और फिर स्थिति का जायजा लेकर महल के पीछे की तरफ आ गई.. उसने फिर उस साडी को पकड़ा और बड़ी कोशिशे करने के बाद ऊपर चढने में कामयाब हो गई. जब उसने कक्ष के अन्दर प्रवेश किया तो देखा की सुलतान अब भी नशे में धूत होकर सोया हुआ था. उसने पानी पिया फिर स्थिति का जायजा लेकर सीधे मीणा पुत्र के कक्ष में चली गई. वहां जाकर जब उसने देखा तो मीणा पुत्र अब तक नहीं सोया था. मणिकृतिका को अपने कक्ष में देखकर वह बहुत खुश हुआ. वह दौड़ता हुआ उसकी तरफ गया और उसे अपनी बाहों में भर लिया.. फिर धीमे से कहा.
मीणा पुत्र- क्या सूर्यप्रकाश ने मणि का सही तरह से अवलोकन कर लिया..
मणिकृतिका- हाँ! कर लिया.
मीणा पुत्र- और क्या मानिकेय को तुमने सारी योजन बता दी..
मणिकृतिका- हाँ बता दी..
मीणा पुत्र की आँखों में ख़ुशी के आंसू झलक रहे थे क्योंकि आज मणिकृतिका ने उसके लिए वो काम कर दिया था जो कोई पुरुष भी शायद नहीं कर पाता... अचानक जब मीणा पुत्र का हाथ मणि कृतिका की पीठ पर स्पर्श करता है तो उसके मुहं से धीमे से आह निकल जाती है..
मीणा पुत्र- क्या हुआ..
मणिकृतिका- कुछ भी तो नहीं.
मीणा पुत्र- कुछ भी कैसे नहीं? लाओ मुझे देखने दो..
फिर जब वह उसकी पीठ को ध्यान से देखता है तो उसे पता चलता है की कुछ लता के काँटों की वजह से उसकी पीठ पर खरोंच आ गई है और जिस वजह से उसकी पीठ पर थोडा सा रक्त स्त्राव भी हो गया है. मीणा पुत्र उससे पूछता है.
मीणा पुत्र- ये खरोंच कैसे आई?
मीणा पुत्र के इतना पूछते ही मणिकृतिका उसे सारी बार बता देती है की किस तरह से पहरे दार उसके पीछे पड जाता है लेकिन वह अपने आपको बचा पाने में सक्षम हो जाती है.. फिर मीणा पुत्र उसके घावों को एक रुमाल से पौंछता है. इस दौरान मणिकृतिका उसे प्यार से देख रही होती.. आखरी उसे तो दर्द का आभास ही नहीं हो रहा था.. आखरी हो भी क्यों? सबसे ज्यादा दर्द तो प्यार में ही तो होता है और उस दर्द से तो उसने पार पा लिया था.. अब तो मीणा पुत्र भी उसका हो चुका था.. और भला उसे क्या चाहिए था.. मीणा पुत्र ने समय रहते उसे सुल्तान के कक्ष में भेज दिया.. उसने उस नागमणि को अपने पास रख लिया और अगली सुबह सुल्तान की भुआ को उस मणि को वापस दे दिया. इसके पीछे भी उसकी एक योजन निहित थी.. अगले दो दिन बाद मीणा पुत्र ने ठीक वैसा ही अभिनय किया जो उसने पहले किया था.. एक बार फिर सुल्तान की भुआ उसके अभिनय को समझ नहीं पाई और उसने उस मणि को मीणा पुत्र को दे दिया और पहले की ही भांति मणिकृतिका को नाग मणि देकर भेज दिया.. मणिकृतिका के लिए ये दूसरा मौका था इस कारण इस बार वह और भी सावधान होकर गई और अबकी बार वह पहरेदारो की नजर में भी नहीं आई..
सूर्यप्रकाश ने मणिकृतिका को असली मणि की जगह वो नकली मणि दे दी और महल में वापस भेज दिया.. अब मणिकृतिका की जीत हो चुकी थी.. वह दूसरी बार सकुशल महल में वापस आ गई थी और एक बार पुन: उसने मीणा पुत्र का दिल जीत लिया था.. इधर नाग कन्या ने भी वही सब किया जो-जो मीणा पुत्र ने उसे बताया था. इस कारण सुल्तान और उसकी भुआ को उन दोनों पर बिलकुल भी सक नहीं हुआ था.. मीणा पुत्र ने मणिकृतिका के माध्यम से जरुरी जानकारियां मानिकेय तक पंहुचा दी थी.. अब असली मणि मानिकेय के पास थी और नकली.. नकली मणि मीणा पुत्र ने भुआ को दे दी थी जो उसके उपयोग की बिलकुल नहीं थी.
इधर महल में सब कार्य योजना अनुरूप चल रहे थे तो उधर बाकी के काम मानिकेय और उसके दोस्तों को करने थे. असली मणि के हाथ में आते ही अगले दिन सभी दोस्त जल्दी ही खड़े हो गए. मानिकेय ने ईश्वर का ध्यान किया और मणि को लेकर अपने दोस्तों के साथ झील में प्रवेश करने के लिए आगे बढे. क्योंकि उन्हें राजकुमार की तलाश करनी थी. उन्हें नहीं पता था की राजकुमार मर गया था. वे शीघ्र ही सवर्ण महल के अन्दर प्रवेश कर जाते हैं.. फिर मानिकेय जोर से आवाज देता है
मानिकेय- वीर...वीर...
लेकिन उसके प्रतिउतर में महल के गूंजने के सिवाय और कोई जवाब नहीं आता है. सभी दोस्त वीर प्रताप को जोर-जोर से आवाज देनी शुरू कर देते हैं लेकिन उनकी आवाज का कोई जवाब नहीं आता है.. वे शीघ्र ही राजकुमार वीर प्रताप के कक्ष में प्रवेश करते हैं..उसके कक्ष का मंजर देखकर तो वे सभी चकित हो जाते हैं.. चारो और सामान बिखरा हुआ था.. सब कुछ इधर-उधर सामान कमरे के आँगन पर बिखरा हुआ था.. अचानक मानिकेय की नजर एक कंकाल पर पड़ती है.. ‘उसके मुहं से चीख निकल पड़ती है- वीर... देख मेरे दोस्त क्या हो गया? फिर वह जाकर उस कंकाल को छूता है.. उसके कंकाल के चारो और का सामान बिखरा पड़ा था.. शायद राजकुमार प्राण त्यागने से पूर्व बहुत तडपा होगा क्योंकि उसके आसपास न पानी था और ना ही भोजन.. सारा सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा था.. सभी दोस्त पहले तो जी भरकर रोते हैं. लेकिन बाद में सूर्यप्रकाश मानिकेय को उसका कमंडल देता है तो उसे याद आ जाता है की उसके पास किस तरह की विद्या थी... उसने जल को हाथ में लिया और मन्त्र बोलने शुरू किए. कुछ ही क्षण में उसने जल का छींटा वीर प्रताप के कंकाल पर मारा की वीर प्रताप एक ही झटके में पुन: जिन्दा हो गया. सभी दोस्तों को देखकर वीर प्रताप आश्चर्य चकित होकर कहता है..
वीरप्रताप- तुम सब..
मानिकेय-( मुस्कुराते हुए) हाँ! दोस्त हम सब.. लेकिन तुम कहाँ थे इतने दिन.. इतना कहते ही सभी दोस्तों की आँखों में आंसू आ जाते हैं.. वे सभी वीर प्रताप के गले मिल जाते हैं.. उन सब को एक साथ गले मिलकर देखना ऐसा लग रहा था मानो  राम का भरत के साथ मिलाप हो रहा है। हालांकि वहां सिर्फ दो ही भाई थे और यहाँ 6 दोस्त थे।..

क्रमश..........

                               भाग- 25

वीर प्रताप सभी से गले मिलने के बाद दुखी होकर कहता है.
वीरप्रताप – मानिकेय अनामिका(नाग कन्या) कहाँ है? और सोम नहीं दिखाई दे रहा है वो नहीं आया?
मानिकेय वीर प्रताप को अपने कमंडल से पानी पिलाता है और फिर कहता है- सब बताता हूँ दोस्त..
फिर वह सारी बात बताता की किस तरह से सुल्तान और उसकी भुआ ने छल से नाग कन्या का अपहरण कर लिया और फिर उसे बंदी बना लिया. फिर उसे छुड़ाने के लिए किस तरह से मणिकृतिका और सोमभद्र (मीणा पुत्र) महल में योजना अनुरूप रह रहे हैं..
जब वो सारी बाते बता रहा होता है उसी दौरान वीर प्रताप को सभी बाते याद आ जाती हैं की किस तरह से वो कितने दिनों तक भूखा रहा था और आख़िरकार पता नहीं उसके साथ क्या हुआ था? वो मौत भी तो कितनी तकलीफ देह थी. जब सूर्यप्रकाश ने वीर प्रताप को बताया की मानिकेय ने ही उसे जिन्दा किया है तो वो मानिकेय से गले मिलकर अपने आंसू ना छुपा सका. सभी दोस्त एक दुसरे से गले मिल चुके थे. अब वे सभी एक साथ थे. मानिकेय ने एक-एक कर सभी दोस्तों की विद्या के बारे में भी राजकुमार को बताया. उसें दर्जी पुत्र भागीरथ और जोहरी पूर्त्र सूर्यप्रकाश के बारे में भी राजकुमार को बताया. राजकुमार को बहुत ख़ुशी हुई की अब वे पांच की जगह अब सात दोस्त हो गए थे.. उन सभी दोस्तों ने एक साथ खाना खाया. सवर्ण महल को साफ़ किया और फिर एक साथ आगे की योजना के बारे में वीर प्रताप से बात कर नाग कन्या को छुड़ाने की योजना बनाने के बारे में विचार करने लगे..
इस दौरान मानिकेय ने वीर प्रताप से कहा- दोस्त हमें अब कैसे भी करके भाभी माँ को छुड़ाना है.. लेकिन कैसे? इसकी योजन सिर्फ हमें सोम ही बता सकता है.
सूर्यप्रकाश- सही कहा दोस्त.. हमे उससे मिलना बहुत जरुरी है लेकिन कैसे मिले? सुलतान के महल के चारो और तो पहरेदार होंगे..
लौहार पुत्र- लेकिन अगर आप मुझे इजाजत दो तो मैं महल के अन्दर जाकर सन्देश पहुंचा सकता हूँ..
वीर प्रताप- सन्देश.. लेकिन तुम सन्देश कैसे पंहुचा पाओगे.. तुम्हे क्या पता है की महल में सोम किस कक्ष में रहता है? और अगर नहीं पता है तो तुम पकडे जा सकते हो..फिर तो सोम और मणिकृतिका पर भी उन्हें सक होगा..
मानिकेय- अरे! वीर उसकी तुम चिंता मत करो मैं आराम से बता दूंगा की सोम का कक्ष किस दिशा में है और कौनसा है?
वीर प्रताप- मतलब दोस्त?
मानिकेय- मतलब यह की मुझे ध्यान विद्या आती है तो मैं ये आसानी से बता दूंगा की उसका कक्ष कौनसा है? अब बस हमें यह निर्णय लेना होगा की हम किसे सोम को सन्देश भेजने के लिए महल में भेजें..
राजकुमार- अरे! दोस्त उसके लिए हमें किसी को भी महल में भेजने की जरुरत नहीं है..
मानिकेय- मतलब?
राजकुमार- मतलब यह की मैं यहाँ से पांच मील दूर तक किसी भी दिशा में तीर से सटीक निशाना मार सकता हूँ. अब जो भी सन्देश हमें सोम को देना होगा वो तीर पर एक कपडे पर लिखकर तीर से लपेट देंगे और फिर मैं उस दिशा में तीर मार दूंगा.. वो तीर इतनी रफ़्तार से जाएगा की किसी को मालूम भी नहीं होगा की किसी ने महल के कक्ष में कोई तीर मारा है.. लेकिन मुझे बस दिशा के बारे में सही से बताना होगा अगर वो तीर कहीं सोम के कक्ष की बजाय सुल्तान के कक्ष में गिर गया तो सोम मारा जाएगा फिर..
मानिकेय- दोस्त उसकी तुम चिंता मत करो मैं तुम्हे दिशा सही से बताऊंगा चलो बाहर चलते है..
फिर वे सभी दोस्त सवर्ण महल से बाहर की तरफ आ जाते हैं.. मानिकेय ने ईश्वर का ध्यान लगाया. इधर शाम होने को थी.. सूरज डूब रहा था.. राजकुमार ने अपना तीर-कमान लिया. फिर उसने सारा सन्देश उस कपडे पर लिख दिया जो उसे सोम को देंना था और बाद में उसने उस कपडे को तीर पर लपेटकर बांध दिया.. मानिकेय ध्यान मुद्रा में ही बोला.
मानिकेय- वीर.. ध्यान से सुनो यहाँ से चार मील दूर..उतरी-पूर्वी दिशा में ठीक बाई ओर का जो कक्ष है वो सोम का है लेकिन उसके कक्ष से थोड़ी ही दूर सुल्तान का कक्ष है लेकिन ध्यान रहे तीर उतरी-पूर्वी दिशा में ही जाना चाहिएं अगर थोडा सा ही उतरी-पूर्वी की जगह केवल उतरी दिशा हो गई तो तीर सुल्तान के कक्ष में चला जाएगा..
राजकुमार- तुम चिंता मत करो दोस्त मैं सब सही से कर दूंगा..
फिर राजकुमार ने धनुष की प्रत्यंचा खेंची और तीर को उतरी-पूर्वी दिशा की और छोड़ दिया. तीर बहुत तेजी से सीधा मीणा पुत्र के कक्ष में जाकर दीवार पर लगी सुल्तान की एक तस्वीर पर लगा.. मीणा पुत्र अचानक चौंककर खड़ा हुआ..
उसने तीर को उठाया और फिर उस कपड़े को खोला. कपडे पर लिखे सन्देश को देखकर वह बहुत खुश हुआ क्योंकि उसमे लिखा हुआ था की वीर प्रताप जिन्दा हो गया है और वो आगे की योजना हेतु उससे मिलना चाहता है.. सोम ने ये बात नाग कन्या को और मणिकृतिका दोनों को भी बता दी.. वे दोनों भी बहुत खुश हुई. उसी रात मीणा पुत्र और मणिकृतिका दोनों एक साथ महल की दीवार फांदकर अपने दोस्तों से मिलने झील की तरफ चल पड़े. वे शीघ्र ही अपने सभी दोस्तों से मिल गए.. वीर प्रताप मीणा पुत्र से मिलकर बहुत खुश हुआ.. जो मीणा पुत्र उसके लिए कर रहा था वह कोई नहीं कर सकता था.. उसने सभी दोस्तों को पहले तो धन्यवाद किया और फिर आगे की योजना के लिए जैसे ही मीणा पुत्र की तरफ मुहं किया मीणा पुत्र अगली योजना लेकर उसके सामने तैयार था..........
क्रमश.........

नोट :- कृपया निराश ना हो आज आपको एक भाग ओर मिल जाएगा।
      धन्यवाद!!
   आपका अपना
       गुरु


                             भाग- 26

राजकुमार ने मीणा पुत्र की तरफ देखकर कहा- बताओ मन क्या योजना है?
मीणा पुत्र- बताता हूँ दोस्त, लेकिन योजना बहुत मुश्किल भी है और अजीब भी..
राजकुमार- अजीब मतलब.. पहले तुम योजना तो बताओ..
मीणा पुत्र- भाभी माँ को सुल्तान के कब्जे से छुड़ाने का एक ही उपाय.. और वो है युद्ध..
राजकुमार आश्चर्य से बोला- क्या युद्ध.. भला सुल्तान की सेना से युद्ध कैसे संभव है.. अगर हम वापस राज्य जाकर अपने राज्य की सेना लेकर आए और सुल्तान के राज्य पर चढ़ाई करंगे तब भी हम सुल्तान से युद्ध करने के काबिल नहीं होने क्योंकि सुल्तान की सेना हमारे राज्य से बीस गुणा बड़ी है ऐसे मैं युद्ध कैसे संभव है..
मीणा पुत्र- युद्ध संभव होगा.. वीरप्रताप..
राजकुमार- लेकिन कैसे...
मीणा पुत्र- चलो बताता हूँ..
फिर वह सब दोस्तों की तरफ देखता है तो मणि कृतिका और मीणा पुत्र के सभी दोस्त उसकी तरफ उत्सुक होकर देख रहे थे.. उसने आगे की योजना बतानी शुरू की..
मीणा पुत्र- तो चलो सुनो योजना यह है की सोमदत (सुथार ) और आयुष्मान (लौहार) ठीक वैसे ही लकड़ी की कलाकृतियां बनाएंगे जैसे उन्होंने मणिकृतिका को बनाया था..
राजकुमार- फिर..
मीणा पुत्र- फिर मानिकेय उनमे जीवन डाल देगा.. फिर भागीरथ उन सब के लिए पौशाक शील देगा.. हमें कपड़ा, हथियार बनाने के लिए इस्पात और खाना खरिदने की जरुरत होगी इस लिए हमारे सवर्ण महल का सोना काम आ जाएगा.. इसके अलावा आयुष्मान (लौहार) हथियार भी बना देगा.. हथियार किस तरफ के और कौनसे-कौनसे होने चाहिए ये तुम बता दोगे..
सूर्यप्रकाश- वाह! दोस्त तुम्हारी योजना तो बढ़िया है..
मीणा पुत्र- योजना तो अच्छी है या बुरी पता नहीं लेकिन इसमें जो सबसे बड़ी अड़चन है वो यह है की..
वीर प्रताप- अड़चन मतलब कैसी अड़चन?
मीणा पुत्र- अड़चन यह है की हम जब इतनी भारी मात्र में किसी से इस्पात और राशन खरीदेंगे तो उसके बदले में हम सोना देकर व्यापारियों को तो खरीद लेंगे लेकिन जब इतनी भारी मात्र में सामान लेकर आएँगे और सेना का निर्माण करेगे तो राज्य के सेनिको की पकड़ में आ जाएगे. अगर ऐसा हुआ तो हमारी सारी योजना पर पानी फिर जाएगा. अब इसका मेरे पास कोई उपाय नहीं है और यही हमारी सबसे बड़ी परेशानी है..
मानिकेय ने मुस्कराते हुए कहा- और अगर सोम मैं यह कह दूं की ये परेशानी दूर हो जाएगी तो क्या कहोंगे?
वीरप्रताप- मतलब दोस्त.. यह कोई छोटी परेशानी नहीं है.. सोम बिलकुल सही बोल रहा है.. जब हम सेना के लिए इतनी भारी मात्र में राशन और इस्पात खरीदकर लाएंगे तो पकडे जाएंगे..
मानिकेय- अरे! दोस्त मैं बोल रहा हूँ न की कोई परेशानी नहीं आएगी.
मीणा पुत्र- साफ़-साफ़ बोलो दोस्त..क्या कहना चाहते हो..
मानिकेय- बस यही की मैं एक ऐसी विद्या जानता हूँ जिसके प्रयोग से मैं पूरे जंगल को ही मायावी बना दूंगा.. फिर जब हम जंगल में सेना बनाएगे या कुछ भी करेंगे दूसरे लोग हमें देख नहीं पाएगे.. इसके अलावा जो भी व्यक्ति, हमारा बाजार जाकर ये सामान लेकर आएगा वो किसी को दिखाई भी नहीं देगा.. बस दूकानदार को हमें घूस देंनी होगी ताकि वो किसी को भी ना बताए.. यहाँ तक की बाजार में जाते वक्त अगर हम हमारे घोड़े चेतन्य का भी प्रयोग करेंगे तब भी व अदृश्य हो जाएगा..
सभी दोस्त आश्चर्य से- वाह! दोस्त तुम तो छुपे रुस्तम निकले यार...
मीणा पुत्र- और कुछ भी जानता है क्या तूँ? पता नहीं तेरा गुरु था या विद्या की कोई खान..
मानिकेय- देख मेरे गुरु को कुछ मत बोल वरना..
मीणा पुत्र मन में सोचता है- पंडित बस एक बार तुझसे काम निकल जाने दे फिर देखना तेरी छोटी पकड़कर कैसे घूमाता हूँ.. तुमने बड़ा तंग किया है मुझे..
फिर जब मीणा पुत्र कुछ देर नहीं बोलता है तो राजकुमार कहता है..
राजकुमार- कहाँ खो गए सोम? आगे की योजना भी तो बताओ..
मीणा पुत्र- आगे की योजना.. फिर वह मणिकृतिका की तरफ देखकर कहता है..
मीणा पुत्र- अब मुझे और मणिकृतिका को वापस महल में जाना होगा.. और आप पीछे से जितना जल्दी हो सके सेना को तैयार करो.. जैसे-जैसे सैनिक बनाते जाएंगे वैसे-वैसे वे भी आपकी मदद कर देंगे.. फिर घोड़े, रथ, हाथी भी बनाने होंगे क्योंकि सुल्तान की एक बीस हजार सेना की टुकड़ी तो केवल हाथी घोड़ो की ही है..
आप लोग इधर अपना काम कर रहे होंगे तो उधर मैं और मणिकृतिका और भाभी माँ सुलतान और सुल्तान की भुआ को उलझाए रखेंगे.. और फिर अचानक ऐसा हमला करेंगे की सुल्तान के होश उड़ जाएंगे.. बोलो जय भोले नाथ..
सभी एक साथ बोलते हैं जय भोले नाथ फिर मीणा पुत्र मणि कृतिका की तरफ देखते हुए कहता है.
मीणा पुत्र- एक जय और बोलो..
वीर प्रताप- किसकी?
मीणा पुत्र- जय मनिकृतिका..
मीणा पुत्र के इतना कहते ही सभी जोर-जोर से हंसने लग जाते हैं.. फिर मीणा पुत्र मणिकृतिका का हाथ पकड़ता है और कहता है- अब दोस्तों मुझे और मणि कृतिका को जाना होगा.. और आप योजना अनुरूप काम करो..
मीणा पुत्र के इतना कहते ही सभी दोस्त एक साथ खड़े हो जाते हैं.. वे मीणा पुत्र और मणिकृतिका को एक साथ अलविदा कहते हैं.. वीर प्रताप मणि कृतिका को गले लगाता है और अपनी बहन बना लेता है.. वह उससे कहता हैं..
वीर प्रताप- मुझे तुम पर गर्व है मन्नू और अफ़सोस भी?
मणिकृतिका- अफसोस क्यों भैया?
वीर प्रताप – अफ़सोस.. अफसोस इस लिए क्योंकि तुम्हे इसके जैसा पति मिलेगा..
वीर प्रताप के इतना कहते ही सभी दोस्त पुन: मुस्कुरा देते हैं.. मणि कृतिका मुस्कुराते हुए कहती है – हाँ! भैया सही कहा लेकिन अब चलेंगे.. कुछ तो गुण है वैसे...
फिर वह मीणा पुत्र की तरफ मुस्कुराते हुए उसका हाथ पकड़ लेती है और उसके साथ महल की तरफ चल पड़ती है... वे दोनों कुछ दूर तक बिना बोले जाते हैं... फिर जैसे ही महल की दीवार को फांदने की बारी आती है तो मणिकृतिका दीवार पर चढ़ नहीं पाती क्योंकि उसके पाँव में कुछ चुभ गया था.. मीणा पुत्र उसे गोद में उठाता है और उसकी दीवार पर चढ़ने में सहायता करता है.. वे सकुशल महल में पहुच जाते हैं... आज मनिकृतिका को सुलतान के कक्ष में नहीं सुलाया गया था क्योंकि सुल्तान को कोई अन्य युवती पसंद आ गई थी. वह अपने एक अलग कक्ष में जाकर सो गई. इधर मीणा पुत्र अपने कक्ष में सो जाता है..

क्रमश............

       भाग- 27

अगले ही दिन सभी दोस्तों ने अपना-अपना काम करना शुरू कर दिया. सबसे पहले तो मानिकेय ने झील में स्नान किया और फिर ध्यानमग्न होकर झील किनारे बैठ गया. फिर उसने हवन किया और मंत्रोचार से जंगल के एक भाग को मायावी बना दिया जिससे किसी भी दूसरे व्यक्ति को जंगल में हो रहे काम को देख पाना संभव नहीं था. उसने जंगल के उस भाग को मायावी बना दिया जहाँ सुल्तान के राज्य का कोई भी व्यक्ति नहीं आता था. फिर सोमदत (सुथार) ने लकड़ी से सेनिको की आकृति बनानी शुरू कर दी. इधर लौहार पुत्र और राजकुमार दोनों बाजार से राशन का सामान, कपड़ा, कपडे सिलने वाली मशीने, और हथियार बनाने के लिए धातुएं लेकर आ गए. मानिकेय ने उन दोनों को अभिमंत्रित ताबीज दे दिया जिसको गले में पहनते ही वो किसी को भी दिखाई नहीं दे पाए.. लेकिन अगर वे उस ताबीज को अपने गले से बाहर निकाल लेते तो वो दिखाई देने लग जाते. उन ताबीज की शक्तिया भी इतनी अद्भुत थी की अगर वो ताबीज पहनकर कोई व्यक्ति किसी वस्तु या व्यक्ति या जानवर को अपने हाथ से छूता भी है तो वो भी अदृश्य हो जाए. इस कारण उन दोनों को राज्य के सेनिक पकड़ लेंगे ये संभव ही नहीं था.. वे शीघ्र ही सारा सामान ले आए.. शाम तक सोमदत ने ऐसे १०० पुतले बना दिए.. अब मानिकेय ने एक-एक कर सब पुतलो में प्राण डाल दिए. अब वे एक हष्ठ-पुष्ठ सैनिक बन गए थे. मानिकेय ने उन सेनिको में युद्ध कौशल की विद्या के अतिरिक्त सुथार, दर्जी और लौहार की विद्या का भी समावेश कर दिया. ठीक उसी तरह जिस तरह उसने मणिकृतिका को बनाते वक्त उसमें एक सभ्य और बुद्धिमति स्त्री के गुणों का समावेश कर दिया था..
अगले दिन उन सौ सनिको में से कुछ के पास सुथार विद्या का ज्ञान था तो कुछ के पास दर्जी का तो कुछ के पास लौहार विद्या का. अब वे भी सोमदत, भागीरथ और आयुष्मान की तरफ क्रमश सुथार, दर्जी और लौहार विद्या में पारंगत हो गए थे.. अगले दिन लकड़ी से बनने वाली आकृतियों की संख्या हजार पहुँच गई.. इस तरह से एक साथ सभी में मानिकेय ने प्राणों का संचार कर दिया.. वे सब भी युद्ध कौशलों के साथ-साथ अन्य विद्याओं में पारंगत थे. इधर राजकुमार और सूर्यप्रकाश बाजार जाकर लकड़ी, इस्पात और राशन सामान खरीदकर ले आए.. अगले दिन सोम दत और कुछ सेनिको ने मिलकर बेल गाड़ियों को बनाया ताकि सामान आसनी से लाया जा सके.. उसने अब बैलो के भी पुतले बना दिए. मानिकेय ने उनमे भी प्राण भूंक दिए जिससे वे बेल बंन गए. सबकुछ मीणा पुत्र की योजना अनुरूप ही हो रहा था. दर्जी पुत्र कुछ सेनिको की सहायता से पौशाके सील रहा था.. वहां ढेरों मशीने लगी हुई थी..
एक के बाद एक कार्य पूर्ण होते जा रहे थे. अगले दस दिनों में ही सभी ने मिलकर एक लाख सेनिक, पांच सौ हाथी, दस हजार घोड़े और दो हजार रथों का निर्माण कर लिया.. अब राजकुमार के पास प्रयाप्त सेना बन चुकी थी. बस अब युद्ध का ही बिगुल बजाना था.. सभी बस मीणा पुत्र और मणिकृतिका से मिलना चाहते थे.. मीणा पुत्र को सन्देश पहुँचाया गया. वह शीघ्र ही मणिकृतिका के साथ जंगल में आ गया.. जब उसने सेना देखी तो वह आश्चर्य चकित हो गया.. हो भी क्यों न मात्र दस दिनों के अन्दर ही तो सब दोस्तों ने मिलकर एक विशाल सेना का निर्माण कर लिया था. लौहार पुत्र ने सेनिको की सहायता से हथियार भी बना दिए. अब बस कमी थी तो सिर्फ योजना की.. जो की सिर्फ मीणा पुत्र ही बना सकता था क्योंकि उसे सुलतान के राज्य की सेना से लेकर हर तरह के गुप्त रास्तो के बारे में भी पता था.. वह सभी सेनिको और दोस्तों के सम्मुख खड़ा था.. राजकुमार और उसके बाकी के दोस्त अलग-अलग शिलाओं( पत्थर के बड़े तुकडे) पर बैठे हुए थे. मीणा पुत्र ने सभी को संबोधित करके कहा-
मीणा पुत्र- आप सभी दोस्तों को मीणा पुत्र सोमभद्र का प्रणाम.. आप सभी जानते हैं की आज हम यहाँ क्यों खड़े हैं? हमें आज से ठीक तीन दिन बाद खिद्रा बाद राज्य पर आक्रमण करना है.. अब आप सोच रहें होंगे की क्यों?
तो इस क्यों का जवाब मेरे पास यह है की खिद्राबाद राज्य का सुल्तान हमारी भाभी माँ को छल कपट से अपहरण करके ले गया.. लेकिन यह बात हमारी भाभी माँ के अपहरण करने तक ही सिमित नहीं है. इस राज्य में बहुत से कार्य गलत होते हैं.. इस राज्य का सुल्तान महिलाओं को सिर्फ कामवासना की पूर्ती करने वाली वस्तुएं समझता है.. सुल्तान से केवल हम लोग ही खफा नहीं हैं बल्कि पूरा खिद्राबाद राज्य ही खफा है.. इस लिए हमें अनैतिकता और अधर्म को हराकर धर्म की स्थापना करनी है.. तो क्या आप हमारे साथ हैं?
सभी सैनिक एक साथ- जी हम आपके साथ हैं... हमें इस युद्ध में अगर जान भी गवानी पड़ेगी तो कोई गम नहीं..
मीणा पुत्र मुस्कुराकर- अरे! आप सभी को जान गवाने की चिंता नहीं करनी हैं क्योंकि मेरे दोस्त मानिकेय मरे हुए इंसान को भी जिन्दा कर सकता है तो आप चिंता ना करें..
मीणा पुत्र की इस बात से सभी दोस्त और सेनिक एक साथ जोर जोर से हंस पड़ते हैं... फिर मीणा पुत्र मुस्कुराकर राजकुमार के तरफ देखकर कहता है- तो अब मैं अपने मित्र को बुलाना चाहूँगा जो आप सब में से सेना के सेना पति का चुनाव करेंगे... फिर वह राजकुमार से कहता है- आओ मित्र हमारी सेना के सेनापति का चुनाव करो..
मीणा पुत्र के इतना कहते ही राजकुमार वीर प्रताप खड़ा होकर आगे बढ़ता है.. वह सबके सामने आकर खड़ा होता है फिर सभी से कहता है-
राजकुमार- मैं सबसे पहले मेरे सभी दोस्तों को धन्यवाद कहना चाहूँगा जिन्होंने मुझे आज इस काबिल समझा.. अब रही बात आप सब में से एक व्यक्ति को सेनापती के चुनाव करने की तो ये मेरे लिए बहुत मुश्किल काम है लेकिन फिर भी मुझे आप मैं से किसी एक का चुनाव करना होगा.. तो चलो हमारी सेना का सेनापति होगा...
फिर वह पूरी सेना के सैनिको की तरफ देखता है फिर अपने दोस्तों की तरफ.. आखिरकार वह अपने निर्णय पर पहुँचता है. फिर वह गंभीर होकर कहता है- तो अब हमारी सेना का सेनापति होगा इस सेना का प्रत्येक सैनिक. ये लड़ाई अब केवल हमारी ही नहीं है.. इस लिए इस सेना का सेनापति भी भला कोई एक कैसे हो सकता है? यह लड़ाई है स्त्री को उसका सम्मान वापस दिलाने की.. तो क्या आप संतुष्ट हैं मेरे निर्णय से... आप सभी हमारी सेना के सेनापति हो...
राजकुमार के इतना कहते ही सभी सेनिक जोश से भर जाते हैं.. वे सभी सेनापति बनकर बहुत खुश होते हैं... सभी को राजकुमार के निर्णय पर गर्व होता है..सभी दोस्त और सेनिक जोर से कहते हैं- जी राजकुमार, वीर प्रताप.. हमें आपके निर्णय से संतुष्ट हैं..
इतना कहते ही वीर प्रताप और सभी दोस्तों का चेहरा खिल उठता हैं. मीणा पुत्र और मनिकृतिका वापस महल की तरफ चले जाते हैं...
अगले तीन दिन बाद अचानक खिद्राबाद राज्य के दरबार में एक गुप्तचर दौड़ता हुआ आता है- वह बिना रुके ही सीधा दरबार में आकर जोर से सुल्तान को कहता हैं..
गुप्तचर ( डरा हुआ) जहाँपनाह..
याकूब क्रोधित होकर- क्या हुआ तुम यूं डरे हुए क्यों हो?
गुप्तचर- जनाब याकूब बात ही ऐसी हैं..
सुल्तान- चुप चाप सीधे शब्दों में बोलो की बात क्या है?
गुप्तचर( डरता हुआ) जहाँ पनाह.. हमारे राज्य के बाहर एक ...
क्रमश.............

                            भाग- 28

सुल्तान क्रोधित होकर कहता है- क्या हुआ हमारे राज्य के बाहर?
गुप्तचर- जहांपनाह हमारे राज्य को चारों से एक सेना ने घेर लिया है..
सुल्तान- क्या? लेकिन इतनी हिम्मत हमारे पडौसी राज्यों की राजाओ में तो नहीं हो सकती.. ये कौन है मूर्ख राजा है?
गुप्तचर- जहाँ पनाह वो कोई मुर्ख राजा नहीं लग रहा है...
याकूब- मतलब! वो मुर्ख है तभी तो हमारे राज्य से लौहा लेना चाहता है. उसे पता नहीं हमारे राज्य की सेना कितनी विशाल है..
गुप्तचर- जनाब याकूब आप जो सोच रहें है वैसा बिलकुल भी नहीं है.. जिस राजा ने हमें चारो और से घेर रखा है उसके पास एक लाख से भी ज्यादा सेनिक, सैकड़ो हाथी और हजारो घोड़े हैं..
सुल्तान डरते हुए बोलता है- क्या? लेकिन वो हमसे युद्ध क्यों चाहता है?
गुप्तचर- जहाँ पनाह उन्होंने आपके नाम एक चिठ्ठी भेजी है.. आप कहो तो सुनाऊं..
सुल्तान- हाँ! सुनाओ..
गुप्तचर- जी जहाँपनाह.. फिर गुप्ताचर चिठ्ठी पढ़कर सुनाना शुरू करता है..
खिद्राबाद के सुल्तान को अधोमती राज्य के राजकुमार का औपचारिक नमस्कार.. आज से छ: माह पूर्व आप और आपकी भुआ ने छल से मेरी पत्नी अनामिका का अपहरण कर लिया था. आपने केवल मेरी पत्नी का अपहरण ही नहीं किया बल्कि उसके साथ बदसलूकी भी की. इस लिए मैं आपको अभी और इसी वक्त युद्ध के लिए चुनौती देता हूँ.. या तो आप हमारी सेना के आगे हार स्वीकार कर लीजिए या फिर आप मेरी पत्नी को मेरे हवाले कर दीजिए.. अगर आप हार स्वीकार करते हैं तो यहाँ का राजपाट भी मेरे अनुसार चलेगा क्योंकि खिद्राबाद की जनता आपसे बहुत परेशान है.. इस लिए आत्मसमर्पण कर दीजिए ताकि आपको अभयदान मिल सके वरना जहानुम में जाने के लिए तैयार हो जाईये..
आपका शुभेच्छु
अधोमती राज्य का राजकुमार
वीर प्रताप सिंह
गुप्तचर के चिठ्ठी पढने के साथ ही सुल्तान पूरे आवेश में आ जाता है.. वह क्रोधित होकर कहता है.
सुल्तान- सेनापति याकूब..
याकूब- जी जहाँ पनाह फरमाईये..
सुल्तान- अभी और इसी वक्त हमारी सेना को युद्ध के लिए आज्ञा दीजिए.. इस दूधमुहे लडके की इतनी हिम्मत की वो हमारे साथ बदसलूकी से पेश आए.. हम इस अपमान को कतई नहीं बख्सेंगे..
याकूब- जी जहाँ पनाह..
फिर याकूब पूरी सेना को युद्ध के लिए तैयार करता है. इधर राजकुमार और उसके दोस्त खिद्राबाद राज्य के चारो और घेराबंदी किए हुए हैं.. सुल्तान की सेना शीघ्र ही तैयार हो जाती हैं. सुल्तान दरबार में बहुत चिंतित दिखाई दे रहा है.. याकूब सेना को लेकर राजकुमार की सेना से मुकाबला करने के लिए तैयार है.
वह शीघ्र ही रणक्षेत्र में सेना लेकर पहुँच जाता है. सुल्तान युद्ध के विषय में जानकारी राज दरबार से ही लेता है.. वह अब तक युद्ध मैदान में नहीं उतरता है. क्योंकि उसे याकूब की बहादुरी पर बहुत गर्व है.. राजकुमार याकूब को देखकर चकित हो जाता है.. क्योंकि वह सोचता है की सुल्तान क्यों नहीं आया? राजकुमार याकूब का उपहास करने के लिए मानिकेय से कहता है-
राजकुमार हँसते हुए- देखो मानिकेय तुम तो कह रहे थे की खिद्राबाद राज्य का सुल्तान बहुत बहादुर है. वह अगर इतना ही बहादुर है तो युद्ध करने के लिए युद्ध मैदान में क्यों नहीं आया.. हा हा हा कितनी शर्म की बात है..
याकूब क्रोधित होकर- तुम्हारी इतनी हिम्मत.. की तुम हमारे जहाँ पनाह का मजाक उडाओ.. अब मरने के लिए तैयार हो जाओ..
राजकुमार- अच्छा.. अब देखो मानिकेय ये मारेगा मुझे.. इसे देखो तो सही. इसकी एक आँख नहीं है ना इस कारण इसे इसके सामने खड़ी मौत दिखाई नहीं दे रही है.. हा हा हा हा.
याकूब- चुप करो.. अभी बताता हूँ मैं तुम्हे की मैं क्या हूँ... सचेत हो जाओ राजकुमार..
फिर वह अपना धनुष और बाण उठाता है और पहला ही बाण राजकुमार की तरफ जोर से चलाता है तो राजकुमार के छाती पर लग जाता हैं..
राजकुमार दर्द से.. आह!
राजकुमार के तीर लगते ही मानिकेय दुखी हो जाता हैं.. फिर याकूब जोर से हँसते हुए कहता हैं- हा हा हा हा.... बड़ा आया मुझे मारने वाला.. अब सामना कर मेरा..
फिर वह दूसरा तीर निकालता है और राजकुमार की तरफ छोड़ता हैं लेकिन अबकी बार राजकुमार उस तीर को बीच में ही काट देता है..
अब युद्ध पूरी सेना के मध्य छिड़ जाता है... राजकुमार की सेना के सिपाही बहुत ही बहादूरी से युद्ध लड़ रहे हैं.. राजकुमार के दोस्त लौहार पुत्र और जोहरी पुत्र सूर्यप्रकाश भी रणक्षेत्र में एक तरफ लड़ रहे हैं.. इधर मानिकेय जो भी सेनिक राजकुमार की सेना से मर रहा था उसे वह तीर निकालकर वापस जिन्दा कर रह था..
सूर्य प्रकाश जब एक सैनिक को जान से मार देता है तो वह बहुत खुश होता है क्योंकि वह युद्ध कौशल में इतना पारंगत नहीं है.. वह जश्न मना रहा होता हैं..
सूर्यप्रकाश- यहा! हा हा हां.. मैंने भी एक को मार दिया.. अहा..
वह जश्न मना रहा होता है की इतने में ही उसके पीछे से एक दूसरा सैनिक लात मारता है. उसका मुहं रेत में धंस जाता हैं..
सूर्यप्रकाश दर्द से-.. उई... उफ़...
फिर वह खड़ा होकर अपनी तलवार उठाता हैं..
सूर्य प्रकाश- कमीने मैं तुझे नहीं छोडूंगा... या.... अब तूँ तो गया..
फिर वह उस सैनिक से कई देर तक लड़ता रहता है. इधर लौहार पुत्र एक दूसरे सैनिक के गदा की मारकर उसे जान से मार देता हैं.. लौहार पुत्र आयुष्मान के बाजूओं में बहुत ताकत है इस कारण वह हर योधा को पटखनी दे रहा है लेकिन जोहरी पुत्र में इतनी ताकत नहीं है इस कारण वह उस एक सैनिक को हरा नहीं पाता है. लौहार पुत्र दूसरे सैनिक को भी जान से मार देता हैं..फिर वह जश्न मनाता है..
लौहार पुत्र- हा हा हा हा.. एक और गया..
फिर वह दूसरे सैनिक को देखकर कहता है...
हाँ बेटा अब तूँ और आ जा.. या ये ले.. फिर वह एक गदा की मारता है और वो सैनिक भी मर जाता हैं लेकिन जोहरी पुत्र अब भी उससे लड़ रहा है..
सूर्यप्रकाश- या... ये ले...
लेकिन वह उस सैनिक से लड़ाई करते हुए थक जाता है.. एक के बाद एक तलवार से वार करता हैं लेकिन वह उसे हरा नहीं पाता.. जब लौहार पुत्र की नजर उन दोनों की लड़ाई पर पड़ती हैं तो वह दौड़कर आता है और जोर से उस सैनिक के सर पर गदा की मारता हैं और वह वहीँ ढेर हो जाता हैं..
लौहार पुत्र सूर्यप्रकाश की तरफ मुस्कुराते हुए कहता है-- सौ सुनार की एक लौहार की.. हा हा हा हा...
सूर्यप्रकाश को उसकी बात पर हंसी आती है.. इधर राजकुमार और याकूब के मध्य घमासान युद्ध चल रहा है. कोई भी योधा हार मानने को तैयार नहीं है. और दूसरी तरफ मानिकेय राजकुमार की सेना के मृत जवानो को पुन: जिन्दा कर रहा है.. ये देखकर सुल्तान की सेना के उप- सेनापति को गुस्सा आ जाता है. वह मन में बुदबुदाता हैं- इस पंडित ने तो आज नाक में दम कर रखा है.. इनकी सेना का जो भी सैनिक मर रहा है यह कमीना तो इसे वापस जिन्दा कर रहा है.. क्यों न इसे ही मार दिया जाए.. फिर इसे कौन जिन्दा करेगा.. फिर वह क्रोधित होकर मानिकेय से कहता हैं..
उप-सेनापति- पंडित सचेत हो जाओ.. तुम अब मरने वाले हो..
वह इतना कहते ही अपने धनुष पर तीर चढ़ा लेता हैं. वह प्रत्यंचा खींचने के लिए तैयार है.. इधर राजकुमार याकूब के साथ युद्ध कर रहा है तो उसे वो बचा नहीं सकता. मानिकेय को युद्ध कौशल का ज्ञान नहीं है..उसके बाकी के दोस्त उसके पास नहीं है.. उपसेनापति ने निशाना साधने के लिए अपनी एक आँख बंध कर ली हैं....
क्रमश...

                               भाग-29

इधर लौहार पुत्र ने मानिकेय को खतरे में देखकर उसकी तरफ दौड़ लगा दी लेकिन वह उससे काफी दूर था. मानिकेय ने खतरे को भापकर कुछ मन्त्र बोलने शुरू किए और शीघ्र ही उसने अपने कई रूप ले लिए.. विपक्ष की सेना उसका ये मायावी रूप देखकर चौंक गई. चारो ओर कम से कम बीस मानिकेय हो गए. अब उपसेनापति के कुछ समझ नहीं आ रहा था की इनमें से असली मानिकेय कौन है? वह अपना धनुष बाण निचे रख देता है.. मानिकेय उसका उपहास उड़ाते हुए कहता है
मानिकेय- हा हा हा हा ... तुम तो मारने वाले थे ना मुझे.. अरे तीर चलाओ ना..
उप सेनापति- तुम अपनी माया का प्रयोग करते हो. अगर हिम्मत है तो सीधे युद्ध में चुनौती दो मुझे...
`अच्छा, तो तुम्हे सीधे युद्ध में चुनौती चाहिए तो आ जाओ मैदान में.. मैं तुम्हे गदा युद्ध के लिए ललकारता हूँ.. जलाल खान.., ` लौहार पुत्र ने उपसेनापति जलाल खान को गदा युद्ध के लिए ललकार दिया. जलाल खान आवेश में आ गया. उसने क्रोधित होकर कहा.- अच्छा! तो अब तेरे जैसे दूधमुहें बच्चे मुझे चुनौती देंगे.. चल आ. मैं भी देखता हूँ तुझमे कितनी ताकत है.
लौहार पुत्र ने अपने कंधे पर गदा उठाते हुए कहा- हाँ! आ जाओ.. फिर...
इधर राजकुमार और याकूब के मध्य युद्ध विकराल रूप ले चुका है. दोनों ही योधाओ में से कोई भी हार मानने को तैयार नहीं है.. दोनों ही पक्षों की सेना पूरे जोश से युद्ध लड़ रही है लेकिन राजकुमार की सेना सुल्तान की सेना पर भारी पड़ती हुई दिखाई दे रही है.. एक-एक कर सुल्तान की सेना के जवान वीरगति को प्राप्त हो रहें हैं.. कुछ ही देर में जलाल खान और लौहार पुत्र के मध्य युद्ध छिड़ जाता है. मानिकेय अन्य योधाओ को जिन्दा करने के अपने पुराने कार्य में पुन: लग जाता है. इधर सुल्तान की चिंता बढती ही जा रही है क्योंकि गुप्तचर उसे पल-पल की खबर बता रहें हैं.. जलाल खान ने लगातार दो गदाओ की लौहार पुत्र पर जब जोर से वार किया तो उसकी गदा हाथ से छुट गई और वह दर्द से कराह उठा..
लौहार पुत्र गिरते हुए- आह...
जलाल खान- क्या हुआ? दर्द हो रहा है.. तुम तो मुझे हराने वाले थे.. हा हा हा हा हा... अब क्या हुआ..
लौहार पुत्र ने आवेश में आकर गदा उठाई.- तेरी तो मैं मैं तुझे नहीं छोडूंगा.. या.... ये ले..
फिर वह एक-के बाद एक लगातार जोरदार प्रहार करता जाता है.. दोनों में घमासान युद्ध छिड़ जाता है. ऐसा लग रहा है की अब लौहार पुत्र उसे जिन्दा नहीं छोड़ेगा.. फिर वह जोर से उसकी सर पर एक गदा का प्रहार करता हैं..
गदा के प्रहार से जलाल खान की गदा निचे जमीन पर गिर जाती है. वह दर्द से कराह उठता है..
जलाल खान- उई...आह..
लौहार पुत्र- हा हा हा हा क्या हुआ.. दूधमुहे बच्चे से हार जाओगे.. गदा उठाओ जलाल खान..
फिर जलाल खान गदा उठता है और जैसे ही प्रहार करने लगता है. लौहार पुत्र बचाव करके उसके जोर से गदा मारता है..
लौहार पुत्र- ये ले.. ले कमीने ले..
फिर वह एक के बाद एक जोरदार प्रहार करता है और आखिरकार एक जोरदार प्रहार छाती पर करता है और जलाल खान मर जाता है.. लौहार पुत्र जोर से हँसते हुए कहता है..
लौहार पुत्र- हा हा हा हा.. मैंने जलाल खान को मार दिया है.. हाँ! मैंने जलाल खान को मार दिया है..
लौहार पुत्र की अठ्ठास पूर्ण हंसी देखकर विपक्षी सेना के पसीने छुट जाते हैं. वे डर के मारे भागने लगते हैं.
सभी सैनिक जोर से- अरे! भागो.. भागो..
उनका हौसला पस्त हो जाता है.. एक सैनिक भागते हुए महल की तरफ जाता है.. शाम होने को है.. इधर याकूब का भी हौसला पस्त हो जाता है इसकारण राजकुमार एक साथ तीन तीरो का धनुष पर संधान करता है और याकूब की तरफ चला देता है जिससे एक तीर से याकूब का सारथी मर जाता है.. एक तीर उसके मुकूट को ले उड़ता है तो एक तीर उसके कान को भेद देता है.. याकूब दर्द के मारे करहाता है..
याकूब- उई.. उई... आह....
राजकुमार- हा हा हा.. क्या हुआ जनाब याकूब.. ये दर्द तो अब सहना होगा तुम सब को... मेरी पत्नी पर जुल्म ढहाने से पहले तुम सबको ये सोचना था.. अब भुगतो..
फिर वह तीन अन्य तीरो का संधान करता है तो एक उसके हाथ को भेद देता है तो एक उसकी आँख फोड़ देता है. इससे वो अँधा हो जाता है...और एक उसके पैर में घुस जाता है..
राजकुमार क्रोधित होकर- याकूब सावधान हो जाओ.. अब तुम्हारी मौत आने वाली है.. राजकुमार ने कुछ मन्त्र बोले और एक तीर का संधान किया और सीधा याकूब की गर्दन की तरफ छोड़ दिया. वो तीर याकूब की गर्दन ले उड़ता है..
याकूब- आह.. आह....
वह तड़फकर निचे गिर जाता है.. उसकी गर्दन सीधे सुल्तान की गोद में जाकर गिरती है.. दरबार में बैठे सभी लोग आश्चर्य चकित हो जाते हैं की भला उनका बहादुर सेनापति याकूब मर कैसे गया.. सुल्तान की भुआ भी क्रोधित हो जाती है.. सुलतान गर्दन को देखकर जोर से चीखकर कहता है..
सुल्तान- याकूब... मैं उस राजकुमार को जिन्दा नहीं छोडूंगा..
फिर वह क्रोधित होकर अपने सारथि को कहता है..
सुल्तान- चलो सारथि.. मेरा रथ रणक्षेत्र की तरफ ले चलो..
सारथि- जी जहाँपनाह...
वह जैसे ही सुल्तान के साथ खड़ा होकर जाने लगता है.. शाम होने की वजह से युद्ध विराम का शंख नाद हो जाता है..
सुल्तान क्रोधित होकर- ये शाम भी अभी होनी थी.. चलो वो सपोला कितनी देर बचेगा.. कल तो वो मेरे हाथो से मरेगा ही..
भुआ क्रोधित होकर- तुम चिंता मत करो बेटा..कल मैं भी युद्ध क्षेत्र में तबाही मचा दूँगी..
सुल्तान- क्या कहा भुआ आप?
भुआ- हाँ मैं.. तुम देखो कल मैं क्या करती हूँ..
इधर मीणा पुत्र दरबार में बैठ हुआ है.. उसे भी कैसे भी करके भुआ की योजना को जानकर उस योजना को राजकुमार और उनकी सेना तक पहुंचानी थी.. आज का दिन राजकुमार और राजकुमार की सेना के नाम रहा. बहुत से सैनिको ने बहादुरी से युद्ध लड़ा.. खास कर लौहार पुत्र ने तो बहादुरी के झंडे ही गाड़ दिए थे.
क्रमश......

                           भाग- 30

अगले दिन राजकुमार की सेना ओर जोश से उतरी. इधर सुल्तान की सेना भी निर्णायक युद्ध करने के लिए तैयार थी. सुल्तान अपने सारथि के साथ रणक्षेत्र की ओर निकल पड़ा. उसके सामने राजकुमार था. राजकुमार को अपनी जीत सुनिश्चित लग रही थी. लेकिन अब जो होने वाला था उसका किसे पता था. मीणा पुत्र कल रात से ही नहीं सोया था क्योंकि वह भुआ के दिमाग और उसकी ताकत को बखूबी जानता था. मनिकृतिका भी मीणा पुत्र के साथ महल में ही थी. इधर बाहर रणक्षेत्र में बिना किसी औपचारिक चुनौती के सुल्तान और राजकुमार के मध्य युद्ध छिड़ गया.
सुल्तान की भुआ ने अपने कक्ष के निचे बने एक तहखाने में तांत्रिक यज्ञ करने लगी. उसने सभी चुडैलों और भूतों को बुलाना शुरू कर दिया. सब एक-एक कर उसके समक्ष आने लगे. इधर मीणा पुत्र को उसके राज का पता चल गया. इस लिए वह शीघ्र ही मणि कृतिका के साथ नाग कन्या के कक्ष में चला गया. उसने अपनी पतलून से मणि निकाली और नाग कन्या को देते हुए कहा.
मीणा पुत्र- भाभी माँ आज रणक्षेत्र में हमारी ही जीत होगी लेकिन उस जीत को हार में बदलने के लिए भुआ ने तांत्रिक विद्या को प्रयोग करने की ठानी है. अब आप ही उसका इस नाग मणि के सहायता से सामना कर सकती हो..
नाग कन्या- पर मैं..
मणि कृतिका- भाभी माँ आपको आज ऐसा करना ही होगा.. हम सब को मिलकर इस युद्ध को करना होगा. अगर आज आप ऐसा नहीं करेंगी तो हम कभी नहीं जीत पाएँगे...
नाग कन्या- लेकिन आप समझ क्यों नहीं रहे हो? मैंने आज तक कभी भी नाग मणि की शक्तियों का प्रयोग नहीं किया है और न ही मैं इन शक्तियों के सही से प्रयोग करने के तरीके को ढंग से जानती हूँ.
मीणा पुत्र- पर भाभी माँ आज आपको करना ही होगा वरना हम सब मारे जाएँगे.. हमारी सारी योजना पर पानी फिर जाएगा..
नाग कन्या- मैंने कहा ना मैं नहीं कर सकती..
मणिकृतिका- पर भाभी माँ आज आपको करना ही होगा...
नाग कन्या- तुम चुप करो मनिकृतिका अगर ये सब इतना ही आसन होता तो क्या मैं मना करती.. मैं नाग मणि की सामान्य शक्तिओं के बारे में ही जानती हूँ..मीणा पुत्र- लेकिन भाभी माँ आप तो नाग कन्या है तो ऐसे कैसे हो सकता है?
नाग कन्या- तो क्या हुआ? मेरे पिताजी ने कभी मुझे नाग मणि का प्रयोग करना नहीं बताया.. तो इसमें मेरी क्या गलती है..
मीणा पुत्र- उफ़! भाभी माँ तो हम हार जाएंगे..
फिर वह मणिकृतिका की और ध्यान से देखता है और उसे कहता है.
मीणा पुत्र- मन्नू..
मनिकृतिका- हाँ! जी बोलिए...
मीणा पुत्र- तुम अभी इसी वक्त मानिकेय को जाकर बता दो की भुआ तांत्रिक विद्या का प्रयोग हमें हराने के लिए करने वाले है. तब तक मैं भुआ को उलझाने की कोशिश करता हूँ..
मणिकृतिका- ठीक है अभी जाती हूँ..
इधर मणि कृतिका सीधे ही दौड़ते हुए जैसे ही रणक्षेत्र की तरफ जाती है. उसके रास्ते में चार-पांच रक्षक आ जाते हैं.. वे तलवार लेकर उसके सामने खड़े हो जाते हैं.. इधर नाग कन्या अन्दर ही दुखी होकर बैठी है. मीणा पुत्र अपने कक्ष से बाहर आ जाता है.. बाहर एक भी सैनिक दिखाई नहीं देता है.. भुआ के कक्ष से अब हँसने और चिल्लाने की आवाजे आ रही हैं.. भुआ अब अपने कक्ष से बाहर आ जाती है. उसने विकराल रूप धारण कर रखा है.. उसके चारो ओर लम्बे दांतों वाली चुड़ैलें हैं. तो बहुत से भूत और राक्षश भी हैं.. मीणा पुत्र कुछ समय के लिए डर जाता है लेकिन उसे कैसे भी करके अपनी छल विद्या के प्रयोग से उसे रोकना है..
इधर रक्षक मणि कृतिका के पास दौड़कर आते हैं.. जिनमे से एक वही था जिसने उस रात को उसे बगीचे में देखा..
वह उसे क्रोधित होकर कहता है- कौन हो तुम? तुम वही हो ना जिसने उस दिन दीवार फांदी थी. अब तेरी खैर नहीं. सैनिको पकड़ लो इसे..
सभी सैनिक- जी जनाब-
वे मणि कृतिका के चारो और घेरा बना लेतें हैं.. एक सैनिक उसे जैसे ही तलवार की मारने लगता है वह अपने आप को बचा लेती है और उससे तलवार छिनकर लड़ने लग जाती है. एक के बाद एक सभी को वो मार डालती है. फिर उसके सामने वही मुख्य रक्षक आ जाता है वह क्रोधित होकर कहता है..
रक्षक- अब तो तूँ गई.. तुझे अब कोई नहीं बचा सकता.. अब मैं तुझे पकडूँगा.. फिर तेरी इन गौरी-गौरी कलाईयों को मरोड़कर तेरे योवन का रसास्वाद पिऊंगा. मैं...
मणिकृतिका- आजा.. अगर इतनी ही हिम्मत है तो.. मैं दिखाती हूँ तुझे की इन गौरी कलाईयों में कितनी ताकत है..
वह उस रक्षक के साथ युद्ध शुरू कर देती है. वो रक्षक उसे जोर से एक थप्पड़ मारता है तो वो जमीन पर गिर जाती है.
मणिकृतिका- आह....
रक्षक- क्या हुआ मोहतरमा.. हा हा हा .. मैंने कहा ना जनानियों का काम ही सिर्फ बिस्तर पर मर्द को खुश करने का और बच्चे पैदा करने का होता है.
रक्षक के इतना कहते ही मणिकृतिका को गुस्सा आ जाता है.. वह क्रोधित होकर खड़ी होती है..
मणिकृतिका- या.. तूँ तो गया.. हर-हर महादेव ......
फिर वह क्रोधित होकर उसके लगातार तलवार से प्रहार करती है.. वो रक्षक निचे गिर जाता है.. फिर मणिकृतिका गुस्से में आकर कहती है.. अब तूँ कभी बच्चे पैदा करने और किसी भी स्त्री के साथ बिस्तर पर सोने के लायक नहीं रहेगा कमीने...
फिर वह उसकी जंघाओं पर जोर से लात मारती है और वह वहीँ मर जाता है वह दौड़ती हुई रणक्षेत्र की तरफ जाती है.. उसके रास्ते में जो भी सैनिक आते हैं वो एक-एक कर सबको ढेर करते हुए जाती है. सुल्तान और राजकुमार के बीच घमासान युद्ध छिड़ा हुआ है.. इधर हुआ जैसे ही रणक्षेत्र की तरफ जाने लगती है मीणा पुत्र उसे पीछे से आवाज देता है..
मीणा पुत्र- अरे! भुआ....भुआ कहाँ जा रही हो...
भुआ- युद्ध में उस राजकुमार और उसके बाकी दोस्तों को जहनुम में पहुंचाने जा रही हूँ.. क्यों तुझे भी जाना है?
मीणा पुत्र- नहीं भुआ मैं ठहरा एक हास्य कलाकार.. मैं भला कितनी युद्ध में कितनी देर टिक पाउँगा..
भुआ- तो फिर मुझे क्यों रोक रहे हो? तुझे पता नहीं मैं जब गुस्से में होऊ तो किसी के रोके नहीं रुकती..
मीणा पुत्र- अरे.. अरे.. भुआ आप ज्यादा गुस्सा ना हो.. मेरे कहने का मतलब तो यह है की हमारे जहाँ पनाह बहुत बहादुर हैं तो उन्हें रोकना राजकुमार के बस की बात नहीं होगी..
भुआ- लेकिन मैंने कहा ना मुझे जाना होगा.. रणक्षेत्र में...
मीणा पुत्र- अरे! भुआ इतनी भी क्या जल्दी है..
मीणा पुत्र जितना भुआ को रोकने का प्रयास कर रहा है वह उतना ही ज्यादा क्रोधित हो रही है. इधर नाग कन्या गुमसुम सी अपने कक्ष में बैठी है.. मणि कृतिका के सामने भी बहुत सारे सैनिक उसे मानिकेय तक पहुँचने से रोक रहे हैं.. वह एक-एक कर सबको मारती हुई जा रही है.. इधर जैसे ही मीणा पुत्र भुआ को रोकने के लिए आगे बढ़ता है उसे गुस्सा आ जाता है.. उसने क्रोधित होकर मीणा पुत्र से कहा- दूर हो जाओ सूतकुमार वरना मैं तुझे भी मार दूंगी.. भुआ के तेष में आते ही सभी चुड़ैल और भूत भी उसके चारो और घेरा बना लेते हैं..
क्रमश..........

                         भाग- 31

मीणा पुत्र को अब भूतो, राक्षसों और चुडैलों ने घेर लिया है. इधर मणिकृतिका मानिकेय तक नहीं पहुँच पाई है.. राजकुमार सुल्तान के साथ युद्ध कर रहा है.. मीणा पुत्र अब चारो ओर से घिर चुका है. वह भुआ के रास्ते के बीच आकर जोर से बोलता है..
मीणा पुत्र- आप भुआ ऐसा नहीं कर सकती.. आप मुझे नहीं मार सकती..
भुआ- नहीं मारूंगी.. लेकिन मेरे रास्ते से दूर हो जाओ.. मैंने तुम्हे बहुत प्यार किया है सूत कुमार लेकिन आज नहीं..
मीणा पुत्र- भुआ आप नहीं जा सकती..
भुआ- तुम चाहते क्या हो सूतकुमार? दूर हो जाओ मुझसे..
फिर वह जैसे ही धक्का देती है मीणा पुत्र निचे गिर जाता है.. भुआ अब जैसे ही आगे बढ़ने लगती है मीणा पुत्र को आभाष हो जाता है की अब उसे सिर्फ एक ही तरीके से रोका जा सकता है.. वह भुआ के पीछे से जोर से आवाज मारता है..
मीणा पुत्र- भुआ.... आप रणक्षेत्र में मुझे मारे बगेर नहीं जा सकती..
भुआ क्रोधित होकर पीछे मुड़कर कहती है..- सूतकुमार क्यों अपनी मौत को मुहं लगा रहे हो?
मीणा पुत्र- क्योंकि भुआ आप जिस राजकुमार को मारने जा रही हैं वो कोई और नहीं मेरा दोस्त वीर प्रताप है..
भुआ- क्रोधित होकर- क्या? तो तेरी वजह से ही हमारी सेना और गुप्त रास्तो का पता राजकुमार की सेना को चला.. कपटी, दुष्ट.. अब तो मैं तुम्हे नहीं छोडूंगी..
मीणा पुत्र- हा हा हा हा वाह! भुआ क्या बात बोली हैं आपने. मुझे क्या कहा आपने? कपटी, दुष्ट.. लेकिन सच तो यह है की आपने मेरी भाभी माँ का अपहरण भी छल-कपट से किया था. अब वही रास्ता मैंने आप सब पर अपनाया तो मैं कपटी हो गया..

भुआ- बातो में मत उलझाओ मुझे अब तो तूँ गया.. सभी पिशाचो मैं तुम सब को अभी आदेश देती हूँ की तुम इस सूतकुमार को जान से मार दो..
भुआ के आदेश देते ही चार-पांच भूत पिशाच मीणा पुत्र की तरफ बढ़ते हैं. मीणा पुत्र डर के मारे निचे जमींन जाता है. वे उसके करीब पहुँच जाते हैं..
सभी पिशाच- हा हा हा हा.. ये तो आज हमारा भोजन बनेगा... वे जैसे ही उसे जान से मारने लगते हैं.. तो नाग कन्या क्रोधित होकर कहती है..
नाग कन्या- ठहरो... सोम को मारने से पहले मेरे साथ युद्ध करो.. पिशाचो...
नाग कन्या के इतना कहते ही भुआ जब पीछे की तरफ देखती है तो नाग कन्या अपने रोद्र रूप में थी. भुआ उसको देखकर चकित हो जाती है. सभी पिशाच उसकी गर्जना से एक बारंगी डर से जाते है. मीणा पुत्र दौड़कर उन सब से अलग हो जाता है.. भुआ को अब और ज्यादा क्रोध आ जाता है.. वह क्रोधित होकर कहती है..
भुआ- अरे! वाह नाग कन्या.. बिना मणि के तुम मुझसे युद्ध करोगी..तुझे तो मैं तेरी मणि से ही ख़त्म कर दूँगी.. फिर वह उस नकली मणि को निकालती है और जैसे ही उस पर प्रयोग करने के लिए आगे बढती है.. वो मणि काम नहीं करती है तो मीणा पुत्र अठ्ठास पूर्ण हँसता है..
मीणा पुत्र- हा हा हा हा.. कमाल है ना भुआ.. जब कोई अपना बनकर किसी के साथ धोखा करता है तो बहुत दुःख हो होता है.. हैं ना? कैसा लगा ये जानकार की आपके हाथ की जो नाग मणि है वो असली नहीं.. नकली है?
भुआ क्रोधित होकर- अब तुम जिन्दा नहीं रहोगे सूत कुमार..
फिर वह सभी राक्षसों और चुडैलों को आदेश देते हुए कहती है..
भुआ- ख़त्म कर दो इन दोनों को...
जब सभी भूत, पिशाच, चुड़ैल और राक्षस उन दोनों को मारने के लिए उनकी तरफ जाते हैं तो नाग कन्या अपनी नाग मणि से उन सब को खत्म करना शुरू कर देती है.. सूत कुमार दौड़कर अलग हट जाता है. भुआ भी अब नाग कन्या से सीधे ही भीड़ जाती है अब भुआ और नाग कन्या के मध्य युद्ध छिड़ जाता है. इधर बाहर रणक्षेत्र में मणिकृतिका मानिकेय को जाकर सारी बात बता देती है.. मानिकेय दौड़कर रणक्षेत्र से बाहर की तरफ जाता है लेकिन कुछ सैनिक मणिकृतिका को घेर लेते हैं. लौहार पुत्र और मणिकृतिका दोनों मिलकर एक के बाद एक सैनिको को मारना शुरू कर देते हैं.. इधर राजकुमार और सुल्तान के मध्य भंयकर युद्ध छिड़ा हुआ है. सुल्तान बेचेंन है क्योंकि उसकी भुआ अब तक उसकी मदद के लिए नहीं आ पाई है. उसकी सेना के जवान एक-एक करके सभी मारे जा रहे हैं..
इधर भुआ नाग कन्या और मीणा पुत्र को मारने का प्रयास करती है लेकिन वह मार नहीं पाती है क्योंकि नाग कन्या उसके सामने अभी भी अपनी नाग मणि की शक्तियों के बल पर डटी हुई है..
रणक्षेत्र में जब सुल्तान अचानक अपने आप को थका हुआ महसूस करता है तो राजकुमार लागातार एक के बाद एक तीर उसकी तरफ चलाता है जिससे एक तीर उसके कंधे में चुभ जाता है.. सुल्तान दर्द के मारे कराह उठता है..
सुल्तान- आह...
राजकुमार उसकी इस दशा को देखकर उसपर हँसता है.
राजकुमार- हा हा हा हा... क्या हुआ सुल्तान? थक गए हो तो थोड़ी देर आराम कर लो.. क्या है ना तुमने अपनी सारी शक्ति को तो कामवासना पूरी करने में खत्म कर दी. अब भला मेरे तीरों का सामना कैसे कर पाओगे तुम?
सुल्तान- हेय.. तेरी ये हिम्मत अभी बताता हूँ मैं तुम्हे...
फिर सुल्तान क्रोधित होकर एक तीर छोड़ता है जो राजकुमार की भुजा पर लगता है.. राजकुमार के हाथ से तीर गिर जाता है..
राजकुमार दर्द से- आह..
सुल्तान- हा हा हा हा... सामना करो राजकुमार.. मैं भी तो देखूं की तुम कैसे अपनी पत्नी को मेरी रखैल बनने से रोक पाते हो..
राजकुमार- सुल्तान...
सुल्तान- गुस्सा ना करो राजकुमार.. युद्ध करो.. युद्ध..
राजकुमार- सुल्तान सावधान हो जाओ.. अब तेरी मौत आने वाली है..
फिर वह लगातार चार से पांच तीर छोड़ता है तो उनमे से एक तीर उसकी दूसरी भुजा पर जाकर लगता है तो दूसरा उसके सारथि को मार देता है. एक तीर उसके रथ के पहिए को तोड़ देता है तो एक उसका मुकुट ले उडता है..
सुल्तान दर्द से कराह उठता है.. अब उसे हार दिखाई देने लगी है.. वह जब चारोओर देखता है तो पाता है उसके सभी सैनिक एक-एक करके मारे जा रहे हैं..वह डर के मारे कांपने लगता है.. राजकुमार हँसते हुए अपने दोस्तों से कहता है..
राजकुमार- देखो.. इस सुल्तान को.. गौर से देखो अब.. देखो कैसे इसकी आँखों में डर दिखाई दे रहा है..
फिर वह पास में खड़े अन्य सुथार मित्र और लौहार मित्र से कहता है..
राजकुमार- क्या आप सब को पता है... इसने अभी क्या बोला मुझे की ये मेरी पत्नी को अपनी रखैल बनाएगा.. लेकिन कैसे बनाएगा.. इसका सर तो मैं अभी धड से अलग कर देता हूँ.. मरने के लिए तैयार हो जाओ सुल्तान...
सुल्तान डर के मारे कांपते हुए कहता है- नहीं.....
राजकुमार- क्यों क्या हुआ... सुल्तान. मरने से डर लगता है.. लो अभी तेरा डर दूर कर देता हूँ.. मेरे तीर की रफ़्तार बहुत ज्यादा है.. तुझे बहुत ज्यादा दर्द नहीं होगा...
फिर वह एक तीर का अपने धनुष पर संधान करता है.. वह जैसे ही तीर को सुल्तान की तरफ छोड़ने लगता सुल्तान कांपते हुए बोलता है...
सुल्तान- नहीं... बचाओ भुआ.. बचाओ मुझे...
राजकुमार को उसके इस तरह की कायराना हरकत पर हंसी आती है..
राजकुमार- हा हा हा हा ... वाह! सुल्तान.. तुम कायर हो इसका मुझे संदेह था लेकिन आज यकीन भी हो गया.. लेकिन मैं तुम्हे नहीं मारूंगा अब...
लौहार पुत्र- ये क्या कर रहे हो दोस्त? इसे जल्दी से मारो.. अब इस पर रहम मत दिखाओ.. इसने न जाने कितनी ही अबला नारियों को अपनी हवस का शिकार बनाया है...
राजकुमार- ठीक कहा दोस्त. इसने अपने जीवन में ना जाने कितनी ही नारियों का अपमान किया है.. यह नारियों को अपने पेरों की जूती समझता आया है..
फिर राजकुमार मणिकृतिका की तरफ देखता है जो कुछ दूर एक सैनिक से युद्ध लड़ रही है. सुल्तान की सेना के सैनिक अब गिने चुने ही रह जाते हैं सुल्तान अब निचे गर्दन किए खड़ा है. वह खून से लथपथ है. राजकुमार मुस्कुराते हुए कहता है.
राजकुमार- हाँ! दोस्त तुमने सही कहा. इसने अपने पूरे जीवन में औरतो को बस अपनी हवस की आग बुझाने वाली वस्तु ही माना है तो क्यों ना आज इसे एक औरत ही ये बताए की औरत ऐसे कमीनो के बिस्तर पर सोने के लिए नहीं बनी हैं.. बल्कि इन्हें युद्ध मैदान पर धुल चटाने के लिए बनी हैं..
लौहार मित्र- दोस्त तुम कहना क्या चाहते हो. इसे अब ख़त्म करो..
राजकुमार- नहीं दोस्तों अब तो इसे ख़त्म हमारी मन्नू ही करेगी..
फिर वह मणिकृतिका को जोर से आवाज देता है..
राजकुमार- मन्नू.. इधर आओ.
राजकुमार के इतना कहते ही मणिकृतिका ने उस सैनिक को मार दिया है. वह सुल्तान को देखकर क्रोधित हो जाती है. सुल्तान लहू-लूहान होकर निचे गर्दन किए हुए खड़ा है. राजकुमार भी अपने रथ से निचे उतर जाता है.. मणि कृतिका राजकुमार के पास आते ही उससे पूछती है..
मणिकृतिका- आदेश दो भैया...
मणिकृतिका की आवाज सुनकर सुल्तान ऊपर की तरफ देखकर कहता है..
सुल्तान- तुम?
मणिकृतिका- हाँ! मैं.. वही लड़की जिसके साथ तुम रोज सोते थे लेकिन मेरे साथ कुछ नहीं कर पाए..
सुल्तान- तो क्या हुआ.. अभी तेरे भाइयों के सामने तेरी इज्जत उतार देता हूँ..
मणिकृतिका- सुल्तान.. ईश्वर की सौगंध खाकर कहती हूँ आज तुझे राख में नहीं मिला दिया तो मेरा नाम मणिकृतिका नहीं..
राजकुमार- शाबाश मन्नू.. आज इस खिद्राबाद के सुल्तान की गर्दन अपनी तलवार से काटकर माँ काली को अर्पित करके इस दुनिया को बता दो की महिलाएं ऐसे कमीने और गिरी हुई मानसिकता के लोगो की पैरों की जूतियाँ नहीं होती है..
सुल्तान- ये और मुझे मारेगी.. हा.. हा हा हा ...
राजकुमार- क्यों क्या हुआ सुल्तान.. तुम्हे मणिकृतिका की बहादुरी पर संदेह है क्या? अगर है तो आज मैं एक वादा करता हूँ तुमसे.. अगर तुमने मन्नू को हरा दिया तो मैं तुम्हे तुम्हारा सारा राज्य, मेरी पत्नी, मेरी ये सारी सेना तुम्हे दूंगा..
सुल्तान- सोच लो राजकुमार....
राजकुमार- मैंने तो सोच लिया सुल्तान अब तुम अपनी गर्दन बचाओ मेरी बहन की तलवार से..
फिर वह एक तलवार उठाता है और सुल्तान की तरफ फैंकते हुए कहता है- ये लो तलवार और बचा लो अपना राज्य.. अगर मणिकृतिका को हरा दिया तो मेरी पत्नी भी तेरी और मेरी सेना भी तेरी...
लौहार पुत्र- ये क्या बोल रहे हो दोस्त?
राजकुमार- मैं वही बोल रहा हूँ जो मुझे बोलना चाहिए. मुझे पता है हमारी मन्नू नहीं हारेगी.. चल मन्नू.. इसे आज बता दो की तुम क्या हो.
राजकुमार के इतना कहते ही मणिकृतिका ने तलवार उठाई और सुलतान की तरफ चल पड़ी.. उसके और सुल्तान के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया. सुल्तान ने जोर से मणिकृतिका को धक्का दिया की वह जमीन पर जाकर गिर गई.. वह बुरी तरह से जख्मी हो गई.. उसका मुहं रेत में धंस गया. सुल्तान का पलड़ा भारी नजर आ रहा था. लौहार पुत्र को राजकुमार के निर्णय पर संदेह हो रहा था..
इधर महल के अन्दर भी भुआ नाग कन्या पर भारी पड़ रही थी. वह अकेली शायद उससे मुकाबला करने के लिए सक्षम नहीं थी...
क्रमश............

     भाग- 32

मणिकृतिका सुल्तान के आगे बहुत कमजोर दिखाई पड़ रही है. सुल्तान ने तलवार से उसके ऊपर जोर से वार किया जिससे मणिकृतिका के तलवार की जोर से उसके बाजू पर लगी.. वह निचे गिर गई.. उसके मुहं से दर्द से आह निकल गई..
मणिकृतिका- आह..
वह मिटटी से पूरी सन गई. उसका बाजू खून से लथपथ है.. उसके गिरते ही सुल्तान शैतानी हंसी हँसते हुए बोलता है..
सुल्तान- हा हा हा हा.. देख लिया राजकुमार तेरी बहन की हालत को.. अब तेरी पत्नी से पहले तो मैं इसके साथ सुहाग रात मनाऊंगा.. हा हा हा हा.....
राजकुमार- चुप कर कमीने....
फिर राजकुमार तलवार उठाता है तो मणिकृतिका राजकुमार को क्रोधित होकर कहती है.
मणिकृतिका- ठहरो भैया.. इसकी गर्दन अब मैं माँ काली को अर्पित करके ही रहूगी..
फिर वह साहस जुटाती है और सुल्तान से फिर से लड़ने लग जाती है. लेकिन उसकी बाजू से बहता खूब और दर्द उसे बहुत तकलीफ दे रहा है. मणिकृतिका का सुल्तान से जीतना मुश्किल हो चुका है.. वह जैसे ही सुल्तान के तलवार के मारने लगती है. सुल्तान बचाव कर लेता है और उसके दूसरे बाजू पर भी उसी तरह तलवार की मार देता है. वह निचे गिर जाती है..
मणिकृतिका- आह... आह....
सुल्तान- उठ! अगर हार मान ली हो तो बोल दो.. मैं तुझे तुम्हारी जान बक्श दूंगा और बदले में तुम्हे मेरी बेगम बनने का गौरव हासिल होगा..
मणिकृतिका- कमीने.. तेरी ये हिम्मत..
फिर वह पुन: क्रोधित होकर सुल्तान की तरफ जाती है लेकिन सुल्तान बचाव कर लेता है और तलवार से उसके बाएँ पाँव पर वार करता है.. वह फिर से निचे गिर जाती है..चारो ओर मणिकृतिका का खून ही खून फ़ैल जाता है..वह निचे गिर जाती है. उसके मुहं में मिटटी घूस जाती है. बाल बिखर जाते हैं. उसकी हालत बहुत ही नाजुक हो जाती है.
इधर महल के अन्दर भुआ का पलड़ा युद्ध में नाग कन्या से भारी नजर आ रहा है. मीणा पुत्र असहाय है. उसके कुछ भी समझ नहीं आ रहा है की वह भुआ को हराने में नाग कन्या की कैसे मदद करे? भुआ के कक्ष से लगातार भूत और राक्षस भुआ की मदद के लिए आ रहे हैं.. उनकी तादाद लगातार बढती ही जा रही है.. नाग कन्या इतने सारे दुश्मनों का सामना अकेले करने में असमर्थ थी. अचानक ही मीणा पुत्र का चेहरा खिल उठता है क्योंकि वह मानिकेय को देख लेता है.. मीणा पुत्र दौड़कर उसके पास जाता है.. भुआ और नाग कन्या का युद्ध वैसे ही चल रहा है.. मानिकेय ने अपने कई रूप बना लिए हैं जिससे भुआ को उसकी माया समझ नहीं आती है. मीणा पुत्र उससे कहता है- दोस्त, भुआ ने शायद अपने कक्ष में तांत्रिक यज्ञ कर रखा है. शायद यही कारण है की इतनी बड़ी मात्र भी भुआ की मदद के लिए ये भूत, पिशाच, चुड़ैल और राक्षस आ रहे हैं. अब जल्दी से कुछ करो मानिकेय वरना हम हार जाएंगे..
मानिकेय- अरे! तुम चिंता मत करो. हम कुछ न कुछ जरुर करेंगे.. चलो तुम मुझे भुआ के कक्ष की ओर ले चलो...
मीणा पुत्र- हाँ.. हाँ.. चलो.. चलो...
फिर वे दौड़ते हुए भुआ के कक्ष की तरफ जाते हैं.. भूत या राक्षसो की वो पकड़ में ना आएं इस लिए मानिकेय ने अपनी विद्या से मीणा पुत्र और स्वयम को अनेक रूपों में बदल लिया जिससे वे सभी भ्रमित हो जाते हैं..
इधर बाहर नाग कन्या पर भुआ अचानक काली शक्तियों से वार करती है जिससे नाग कन्या निचे गिर जाती है.. नाग कन्या भी भुआ की शक्तियों के आगे अब असहाय है. उसकी इस हालत को देखकर भुआ अठ्ठास पूर्ण हंसी हंसती है. वह हँसते हुए कहती है.
भुआ- हा हा हा हा.... क्या हुआ नाग कन्या.. तुम तो मुझे हराने वाली थी.. लेकिन तुम्हे क्या पता था की मैं क्या चीज हूँ. मुझे इस दुनिया में हराना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.. हा हा हा... मुझे हराने चली थी तुम... अब भुआ की शक्ति का कोई अंदाजा नहीं है.. नाग कन्या निचे गिरी हुई है..
इधर भुआ के कक्ष में मानिकेय और मीणा पुत्र को यज्ञ दिखाई नहीं देता है.. फिर अचानक मीणा पुत्र की नजर एक गुप्त द्वार से आ रहे धुंए पर पड़ती है.. वह जोर से चीख कर कहता है..
मीणा पुत्र- उधर देखो मानिकेय वो देखो शायद कोई गुप्ता द्वार है.
मानिकेय- अरे! हाँ दोस्त चलो चलते हैं.. वे दोनों दौड़ते हुए उधर उस द्वार की तरफ जाते हैं फिर वे जोर से उस दरवाजे पर लात मारते हैं तो वो दरवाजा टूट जाता है. जब वो उस तहखाने में देखते हैं तो पाते हैं की चारो और घूप अँधेरा था.. अचानक पीछे से मानिकेय के कोई जोर से सर पर मारता है. मानिकेय निचे गिर जाता है..
मानिकेय- आह...
वहां कोई और नहीं बल्कि चार से पांच सैनिक थे जो उस तांत्रिक यज्ञ की रक्षा के लिए भुआ ने छोड़ रखे थे. वे जैसे ही मीणा पुत्र को मारने के लिए उसकी तरफ दौड़ते हैं.. मीणा पुत्र किसी कंकाल की खोपड़ी को उठाता है और फिर उससे एक सैनिक के सर पर मारता है और वह वही ढेर हो जाता है. मीणा पुत्र को युद्ध कौशल के बारे में इतनी जानकारी नहीं थी लेकिन फिर भी वह लड़ने लग जाता है..
इधर बाहर मणिकृतिका पुन: हिम्मत जुटाकर खड़ी हो जाती है.. वह जोश से सुल्तान से पुन: लड़ने लग जाती है..
मणिकृतिका- या... हर हर महादेव..
फिर वह पूरे जोश से खड़ी हो जाती है. जब सुल्तान उसके तलवार की उसके पाँव पर मारने लगता है. मणिकृतिका उछल कर बचाव कर लेती है और सुल्तान के एक बाजू पर जोर से तलवार से वार करती है. सुल्तान निचे जमीन पर गिर जाता है.. वह क्रोधित होकर कहती है.
मणिकृतिका- उठ! कमिंने.. मैं दिखाती हूँ अब की मेरी इन गौरी कलाईयों में कितनी ताकत है... चल उठ..
इधर मणि कृतिका को हौसला बढाने के लिए राजकुमार जोर से चिल्लाकर कहता है..
राजकुमार- शाबाश मन्नू... मार दो कमीने को जान से. शाबाश..
महल के अन्दर नाग कन्या पुन: भुआ से युद्ध करने के लिए खड़ी हो जाती है. इधर मीणा पुत्र अकेला ही तीन सैनिको को मार देता है लेकिन दो सैनिक उसे चारो और से घेर लेते हैं. उनमे से एक उसे कसकर पकड़ लेता है. और दूसरा जैसे ही तलवार की मारने लगता है मानिकेय उसके पीछे से तलवार घुसा देता है. जैसे ही दूसरा सैनिक मानिकेय को मारने लगता है. मीणा पुत्र उसकी गर्दन मरोड़ देता है... वे सभी सैनिको को मारे देते हैं.. फिर अचानक मानिकेय की नजर एक पानी के घड़े पर पड़ती है.. वह उस घड़े को उठता है और हर हर माहदेव का जयकारा लगाते हुए उस यज्ञ को भंग कर देता है. यज्ञ के भंग होते ही भुआ की सारी शक्तिया कम हो जाती हैं.. नाग कन्या ने फिर अपनी सारी शक्ति एकत्रित की और भुआ पर छोड़ दी.. भुआ वही ढेर हो गई..
भुआ- आ आ आ.... अचानक भुआ का पूरा शरीर जलना शुरू हो गया. फिर वह राख हो गई और गायब हो गई.. नाग कन्या के चेहरे पर युद्ध जीतने की ख़ुशी के भाव थे.. मानिकेय और मीणा पुत्र दोनों जैसे ही बाहर आते हैं तो नाग कन्या को जिन्दा और भुआ को मरा हुआ देखकर खुश हो जाते हैं..
इधर बाहर रणक्षेत्र में राजकुमार की सारी सेना और उसके बाकी के दोस्त मणिकृतिका और सुलतान के युद्ध को देख रहें हैं.. सुल्तान अभी भी जमींन पर गिरा हुआ है. मणिकृतिका जोर से क्रोधित होकर सुल्तान से कहती है..
मणिकृतिका- खड़े हो जाओ सुल्तान.. युद्ध करो युद्ध...
सुल्तान मणिकृतिका के हौसले को देखकर एक बारंगी डर सा जाता है. उसने तलवार उठाई और जैसे ही मणिकृतिका की तरफ बढ़ने लगा मणि कृतिका ने अपना बचाव किया और उसके दुसरे बाजू पर तलवार की मार दी.. सुल्तान दर्द के मारे चीख पड़ा..
सुल्तान- आह..
मणिकृतिका- क्या हुआ सुल्तान? दर्द हो रहा है. अभी तो बहुत कम दर्द हुआ है...
फिर मणि कृतिका निचे पड़े हुए सुल्तान के एक हाथ पर तलवार को रखकर कहती है..
मणिकृतिका- तुमने इन्ही हाथो से स्त्रियों की इज्जत नोची थी न. तो क्यों ना अब मैं तेरे ये हाथ ही काट देती हूँ. हर- हर महादेव..
फिर वह जोर से माँ काली की तरह गर्जना करते हुए सुल्तान का एक हाथ काट कर अलग कर देती है.. सुल्तान दर्द के मारे चीखे मारने लगता है..
सुल्तान- आ...आई... आह... उई..ईई ...
मणिकृतिका गुस्से में- और तुम्ने इसी हाथ से हर स्त्री के पल्लू को खिंचा था ना.. तुम्ने इस दाहिने हाथ से ही मेरी भाभी माँ को पकड़ा था ना.. हैं ना कमीने.. चल तो ये भी गया अब... या... हर-हर महादेव....
फिर वह गुस्से में तलवार से उसका दूसरा हाथ भी काट देती है..
सुल्तान चीखे मार रहा है.. उसके हाथ का खूब मणि कृतिका के मुहं पर गिर जाता है...
फिर वह पुन: तलवार उठाती है और कहती है..
मणिकृतिका- हा हा हा हा.. दर्द हो रहा है क्या.... चल अब तैयार हो जा तेरी मौत आने वाली है..
फिर वह तलवार को ऊपर उठाती है और अपने पूरे जोश से सुल्तान की गर्दन को अलग कर देती है...
मणिकृतिका- हा.. हा .. हा हा.. मर गया कमीना.. हा हा हा.. मर गया भैया.. मैंने इस दुष्ट को मार दिया भैया... मैं जीत गई भैया.. हैं ना भैया.. हा हा हा...
मणिकृतिका अब पागलो की तरह हंसने लगती है.. उसकी आँखों में जीत की ख़ुशी से कहीं ज्यादा सुल्तान के प्रति रोष है.. वह तलवार से अब भी उस पर वार कर रही है.. और जोर से चीख चीख कर कह रही है..
मणिकृतिका- उठ! कमीने..उठ.. युद्ध कर मेरे साथ.. कर ना... हा हा हा.. मर गया क्या..
राजकुमार को उसकी मानसिक दशा पर दुःख होता है वह उसकी तरफ जाता है लेकिन उसे भी मणिकृतिका से डर लग रहा है.. वह दूर से ही कहता है...
राजकुमार- शांत हो जाओ मन्नू.. अब वो मर गया...
राजकुमार के इतना कहते ही मणिकृतिका राजकुमार की तरफ आ जाती है.. उसका चेहरा और पूरा शरीर खून से सना हुआ है.. वह राजकुमार से गले मिलकर रोने लग जाती है..पूरे रणक्षेत्र में श्मशान घाट की सी शांति छा जाती है.. अचानक लौहार पुत्र पूरी सेना को आदेश देता है...
लौहार पुत्र- सेना.. अभी जाओ और पूरे खिद्राबाद के दुर्ग को तबाह कर दो..
राजकुमार को जैसे ही उसकी बात सुनाई देती है.. राजकुमार जोर से कहता है- ठहरो! कोई भी दुर्ग की एक ईंट को भी नहीं छुएगा..
क्रमश.......

                                 भाग- 33

राजकुमार के क्रोधित होकर ऐसा बोले से लौहार पुत्र ने कहा- लेकिन ऐसा क्यों दोस्त? सुल्तान ने हमारी भाभी माँ का अपहरण कर लिया था. अब इस राज्य के दुर्ग को भी तो नष्ट करना है हमें. ताकि कोई आगे से ऐसा कदम ना उठाए..
राजकुमार- नहीं आयुष्मान... हमारी सोच सुल्तान की तरह संकुचित कतई नहीं हो सकती है. तुम्हारी भाभी को उठाने वाला सुल्तान और जो भी राज्य के बुरे लोग थे वो मारे जा चुके हैं. अब युद्ध की वजह से खिद्राबाद की राजव्यवस्था चौपट हो जाएगी.. इसको संभालना भी अब जरुरी है..

सुथार पुत्र- तुम कहना क्या चाहते हो दोस्त?
राजकुमार- बस यही की, इस राज्य के कार्य भार को अब हमें सुल्तान की बेगम सबनम को देना होगा. यही हमारे लिए उचित होगा.. चलो हमें अब उनसे संधि करनी होगी.
लौहार पुत्र- लेकिन ये तो गलत है ना. इस राज्य को हमने जीता है..
राजकुमार- तो क्या हुआ? क्या हम इस राज्य की जनता के कल्याण के लिए इतना भी नहीं कर सकते.. चलो अब हमें महल के अंदर जाना होगा..
इतना कहते ही राजकुमार की सेना राजकुमार के साथ दुर्ग के अन्दर प्रवेश करती है.. चारो और रक्षको की लाशें पड़ी हैं.. महल में वे जैसे ही अन्दर पहुँचते हैं तो नाग कन्या राजकुमार को देखकर बहुत प्रसन्न होती है. वे दोनों एक दूसरे से गले मिलते हैं. इधर मणिकृतिका और मीणा पुत्र भी एक दूसरे का आलिंगन करते हैं. पूरी सेना और राजकुमार के दोस्तों के चेहरे पर जीत की ख़ुशी साफ़ झलक रही है. इधर कुछ ही देर में सुल्तान की बेगम बंधक बनाई गई लड़कियों के साथ अपने महल से डरते हुए बाहर आती है. वह राजकुमार से हाथ जोड़कर माफ़ी मांगते हुए कहती है..
बेगम- माफ़ कीजिएगा राजकुमार.. मैं आपकी पत्नी को छुडाने में सफल नहीं हो पाई थी..
राजकुमार मुस्कुराते हुए कहता है- कोई बात नहीं बेगम.. आप हमारी शुभचिंतक हैं. हमारे लिए बस यही काफी है..
बेगम दुखी होकर हाथ जोड़कर कहती है- ये आपका बडपन है राजकुमार. हम अब आपकी गुलाम हैं. कोई आदेश हो तो बताएं हम आपके लिए क्या करें?
राजकुमार हाथ जोड़कर कहता है- ये सब बोलकर आप मुझे शर्मिन्दा क्यों कर रही हैं बेगम? आपके लिए अब कोई आदेश नहीं है. बस प्रार्थना है की आप अब इन सब लड़कियों को घर जाने दीजिए. इन्हें आजाद कर दीजिए आप..
राजकुमार के इतना कहते ही कुछ लड़कियां रोना शुरू कर देती हैं.. ये सब देखकर राजकुमार दुखी होकर कहता है..- आप सब रो क्यों रही हो देवियों? अब तो आप सब घर जा सकती हो?
एक लड़की- तो क्या करें राजकुमार? सुल्तान ने हमें किसी दुसरे पुरुष के काबिल ही नहीं छोड़ा. अब हम सब जिन्दा जरुर हैं लेकिन किसी काम की नहीं..
लौहार पुत्र- ये आप क्या बोल रही हैं? क्या किसी स्त्री के वजूद की कीमत उसके शरीर से लगाईं जाती है..लेकिन मैं तो ऐसा बिलकुल नहीं सोचता.. अगर आपको एतराज न हो तो मैं आपसे शादी करना चाहूँगा..
लड़की- लेकिन...
बेगम- लेकिन क्या पुष्पलता? इनकी बातो से लग रहा है की ये एक अच्छे इन्सान हैं तुम चाहो तो शादी कर सकती हो..
पुष्प लता- पर..
लौहार पुत्र- पर क्या? मैं आप पर कोई एहसान नहीं कर रहा पुष्पलता जी.. बस आपको देखते ही पता चल गया की आप बहुत अच्छी हैं.. आप चाहो तो हम शादी कर सकते हैं..
लौहार पुत्र के इतना कहते ही सुथार पुत्र भी मुस्कुराते हुए कहता हैं.. केवल आयुष्मान ही नहीं है जो शादी करना चाहता है. हम भी आपकी दोस्त से शादी करना चाहते हैं..
सुथार पुत्र के इतना कहते ही पुष्पलता के पास खड़ी उसकी दोस्त लज्जावंश निचे देखने लगती है. फिर क्या था कुछ ही देर में सेना के अन्य जवान भी उन सब युवतियों के साथ शादी करने के लिए उत्सुक थे. लेकिन लडको की ज्यादा संख्या होने के कारण राजकुमार ने महल में स्वयंवर करवाने का विचार किया. इस तरह से सभी लड़कियों की शादी हो गई. इधर बेगम को राजकुमार ने खिद्राबाद राज्य का कार्य भार दे दिया. इसके अलावा खिद्राबाद के सभी मृत सेनिको का ससम्मान अंतिम संस्कार करवा दिया गया. खिद्राबाद राज्य की सारी सेना नष्ट हो चुकी थी इस लिए राजकुमार ने अपने सारे एक लाख सैनिक बेगम को दे दिए. उसने बेगम को अपनी मुहं बोली बहन बना लिया. राजकुमार अपने दोस्तों और उनकी पत्नियों सहित अपने राज्य अधोमती आ गया. अपने राज्य में पहुँचते ही राजकुमार का धूम धाम से स्वागत हुआ. राजा और उसकी मुहं बोली बहन रुपाली बाईऔर राजकुमार की माँ बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें नाग कन्या के रूप में एक बुद्धिमती और सुन्दर बहु मिल गई थी. नाग कन्या को राजा और रानी ने माता-पिता की तरह प्यार दिया. शीघ्र ही राजकुमार को राजा ने अधोमती राज्य का राजा घोषित कर दिया. मणिकृतिका को राजकुमार ने अधोमती राज्य की सेनापति बना दिया. मीणा पुत्र को राजकुमार ने अपना प्रधानमंत्री घोषित कर दिया क्योंकि उसके जैसा योजना बनाने में कोई माहिर नहीं था.. लौहार पुत्र को हथियार बनाने का काम सौंपा गया. दर्जी पुत्र को भी राजकुमार अपने राज्य ले आया क्योंकि उसे सेना की व शाही राजघराने की पोशाकें जो बनानी थी. जोहरी को राजमहल की महिलाओं के आभूषण बनाने का काम दिया गया. सुथार मित्र को रथ आदि बनाने का काम सौंपा गया. अब कौन रह गया भाई? और हाँ! मानिकेय का क्या काम था वो तो आपको पता ही होगा? कृपया करके अब मुझे ये ना पूछे की जो सेना के जवान कंवारे रह गए थे उनका क्या हुआ तो उसका जवाब आप जान लो खुद ही. इतनी कल्पना तो कर ही सकते हो यार. अजीब हूँ मैं.. खैर जाने दो.. मानिकेय के नंबर मेरे पास नहीं हैं.. तो कृपया करके कंवारे लड़के मुझे मेसेज ना करें.. अगर शादी करनी हो तो मेरे पीछे ना भागे किसी लड़की के पीछे भागे और हाँ मैं किसी का लव गुरु नहीं बन सकता. इसका क्या कारण है ये मैं आप सबको नहीं बता सकता...
आज मैं आप सब से किसी भी तरफ का कोई निवेदन नहीं करने वाला.. आप सब ने मेरी नाग कन्या एक रहस्य कहानी को बहुत प्यार दिया इस लिए आप सबका बहुत- बहुत धन्यवाद. बड़ा वाला धन्यवाद. आप सब ने मुझे बहुत सपोर्ट किया और इसके लिए मैं आप सबको ढंग से शुक्रिया भी नहीं बोल पाता हूँ. मुझे पता है जब मैं समयाभाव के चलते किसी के मेसेज का या किसी की समीक्षा का जवाब नहीं देता तो आपको बुरा लगता है. लेकिन सच कहूँ तो मैं ऐसा जानबूझकर नहीं करता. खैर जाने देते हैं. आप सभी को पता है की मैं आप सब की बहुत इज्जत करता हूँ. इस लिए क्या आप मेरा छोटा सा काम करेंगे.. काम? अरे आपको मानिकेय के नंबर नहीं लाने हैं.. आपको मेरी कहानी में किस भाग में सबसे ज्यादा कमी दिखी और कौनसा सबसे बेस्ट लगा वो आपको बताना है. ताकि मैं अपनी अगली कहानी को इससे भी ज्यादा बढ़िया लिख सकूं. इस लिए आप समीक्षा में मेरी इस कहानी की कमियाँ जरुर बताएं चाहे आप एक ही स्टार क्यों न दे दें.. चलो आशा है आप ऐसा जरुर करेंगे.. मुझे उम्मीद है आपको नाग कन्या-एक रहस्य {असली नाम ( दी जर्नी ऑफ़ फाइव फ्रेंड्स)} पसंद आई होगी और हाँ मानिकेय की तरफ से आप सब को आशीर्वाद है की आप खुश रहें. युहीं सब मुस्कुराते रहें.