भाग-41

आदित्य के पिताजी का देहांत हुए  2 माह हो चुके हैं। वह खूब मन लगाकर पढ़ाई करता। उनके खेत में करीब 15 किवंटल बाजरा हुआ जिससे उनके घर में खाद्यान संबंधी दिक्कत नहीं हुई कोई। लेकिन पैसों की तंगी बहुत आ गई। आदित्य के पिताजी के अंतिम संस्कार के लिए जो पैसे उन्होंने उधार लिए थे उन्हें चुकता करने के लिए उसकी माँ ने अपने गहनों को बेचकर जो पैसे जुटाए थे वो दे दिए। जिस कारण आदित्य की पढ़ाई के लिए पैसा नहीं बचा। उनके घर में घरेलू समान के लिए भी पैसे नहीं थे। वह रोज विद्यालय कड़कड़ाती ठण्ड में जाता। धुंध  की सफ़ेद चादर उसके सिर पर पसरी रहती। उसके पास कोट नहीं था इस कारण वह अपनी माँ का शॉल ओढ़कर स्कूल जाता। इधर उसकी बहन आरती  के पास भी कोई स्वेटर नहीं था ।  वह भी शॉल ओढ़कर ही विद्यालय जाती। इसकी माँ घर में ठिठुरती रहती। पार्थिव और अदिति के पास भी किसी तरह के गर्म कपड़े नहीं थे।  आदित्य पैदल ही सात्त किलोमीटर दूर उस विद्यालय में पढ़ने जाता। उसके पैरों में जूते नहीं पहने होने के कारण पैरों की अंगुलियां नवजात शिशु की भांति लाल हो जाती। उत्तरी हवा के ठंडे थपेड़े उसका रास्ता रोकते लेकिन वह कभी नहीं रुका। जितनी ज्यादा परेशानियां उसके आगे आई हैं उतना ही ज्यादा मजबूती से वह आगे बढ़ा। शीतलहर उसे रोकने में सक्षम नहीं हुई।

स्कूल में वह खूब मन लगाकर पढ़ाई करता । अधिकांश अध्यापक उसकी क्षमता से वाकिफ नहीं थे क्योंकि अभी कोर्स बाकी था और प्री बोर्ड परीक्षाएं शुरू नहीं हुई थीं। अर्चना नाम की लड़की जो की सबसे ज्यादा होशियार थी वो आदित्य को घमंडी समझती थी। इसका कारण था आदित्य का किसी के साथ भी बात न करना। अर्चना को लगता था कि वह होशियार है लेकिन यह सिर्फ अनुमान था उसका। क्योंकि आदित्य कभी भी किसी प्रश्न का जवाब देना मुनासिब नहीं समझता था।

इधर बीरबल की पत्नी की भी मृत्यु हो गई जिस कारण बीरबल और उसकी बेटी अंकिता भी भावनात्मक रूप से टूट चुके थे लेकिन आदित्य और उसके परिवार ने उन्हें संभाला। यह बेहद दु:खद घडी थी। बीरबल कुछ समय के लिए अंकिता को उसके ननिहाल लेकर जाता है ताकि वो भावनात्मक रूप से अपने आपको कमजोर न महसूस करे।

सोमवार का दिन था।  बोर्ड परीक्षा के फॉर्म आ गए जिसकी फीस हेतु आदित्य के पास पैसे नहीं थे। बीरबल लौटकर नहीं आया था इस कारण इस कारण वह उससे 500 रूपये उधार नहीं ले सका। उसकी माँ गांव में हर जगह घूम आती है लेकिन उसे कोई पैसा नहीं देता है। आखिरकार थक हारकर वह वापस आ जाती है। उनके मन में अनेक सवाल थे।

अगले दिन कोहरा छाया हुआ था । आदित्य कोहरे को  चीरता हुआ विद्यालय की तरफ निकल गया।  लेकिन उसके मन में अनेक सवाल थे । उसे खुद भी पता नहीं था कि उसका फॉर्म कैसे भरा जाएगा।  हालांकि उसकी मां ने जिस गांव में वह पढ़ता था वहां एक रिश्तेदार से पैसे उधार लेने के बारे में आदित्य को हिदायत दी थी।  आदित्य मन में ही सोचता हुआ विद्यालय की तरफ बढ़ रहा था।  उसे नहीं पता था कि क्या वह शख्स उसे पैसा देगा या नहीं । दरअसल जिस व्यक्ति के बारे में उसकी मां ने कहा था वह उसकी मां के  चाचा की बेटी का पति था।  उन्होंने उसके घर के बारे में आदित्य को जानकारी दे दी थी और उन्हें विश्वास था कि वह व्यक्ति आदित्य को पांच सौर रूपये  उधार दे देगा।  उन्होंने सभी जरुरी हिदायतें आदित्य को दे दी थी । आदित्य बेमन से विद्यालय की तरफ बढ़ रहा था।  उसे दुख इस बात का नहीं था कि वह इतनी कड़कड़ाती ठंड में विद्यालय जाता है बल्कि उसे दुख इस बात का था कि उसके पढ़ने का मन होने के बावजूद भी उसकी फॉर्म फीस के पैसे उसके पास नहीं है । यह एक विडंबना ही थी कि जिस विद्यार्थी के पास कभी पैसे की कमी नहीं थी आज वही विद्यार्थी ₹500 के लिए तरस रहा था।  एक ऐसा भी वक्त था जब वह पैसों को कोई महत्व नहीं देता था।  लेकिन आज एक मात्र पांच सौ रूपये का नोट उसकी पढ़ाई के बीच में अड़चन पैदा कर रहा था ।  अगर आदित्य को यह बोल दिया जाता कि तुम रोज 10 घंटे पढ़ाई करो पैसों की चिंता ना करो तो वह पढ़ लेता।  लेकिन पढ़ाई के साथ साथ पैसो का बंदोबस्त करना बहुत मुश्किल था।   वह शीघ्र ही उस गांव में प्रवेश करता है । धुंध अभी नहीं छंटी  थी । उसे नहीं पता था कि आखिर वह व्यक्ति उसे पैसे देगा या नहीं । लेकिन फिर भी  उम्मीद का दीपक उसके दिल के कोने में जल रहा था।  वह दरवाजे के पास जाता है और दरवाजा खटखटा है।  कुछ ही देर बाद में दरवाजे पर एक महिला दिखाई देती है।

क्रमशः...

लेखक- राजेन्द्र कुमार शास्त्री "गुरु" 

अध्याय - 42

वह दरवाजा खटखटाता है। एक महिला दरवाजा खोलती है।
-अरे, आदि बेटा तुम?
-हाँ, मौसी।
-कैसे आना हुआ?
उसकी मौसी ने जैसे ही यह पूछा वह अपने दिल की बात बता नहीं पाया। आखिर कैसे बता पाता उसने कभी किसी से पैसे उधार मांगे भी तो नहीं थे। वह मौन था।
-क्या हुआ आदि? बोलो।
-कुछ नहीं मौसी। ऐसी ही आ गया। वैसे मौसा कहाँ है?

वो बात को टाल देता है। उसमें पैसे उधार मांगने की हिम्मत नहीं आती है।
-वो... वो तो अंदर हैं।
वे हिचकिचाते हुए कहती हैं।

-अरे! कौन है? किससे बात कर रही है कमीनी तू?
अंदर से आदित्य के मौसा की आवाज आती है।
-मैं...मैं तो आदि.. से
वे कांपती हुई आवाज में कहती हैं और कमरे की तरफ बढ़ती है।

-आSSSS
आदित्य का मौसा कमरे से शराब के नशे में बाहर आकर उसकी मौसी के थप्पड मारता है। वे चौंक जाती हैं।

-कुलछनी किससे बात कर रही थी तू?

-मैं... मैं तो आदि से...

-कौन है, रे तू?

-मैं... मैं तो आदित्य... विजय जी का बेटा।

-ओह, वो... विजय जी जो हनुमानगढ रहते थे?
वह नशे में धुत था।

-हाँ!

आदित्य कांपती हुई आवाज में बोलता है।

-क्यों आया?
-बस ऐसे ही? अच्छा मौसी मैं चलता हूँ।
वह कांपते हुए बोलता है। उसका मौसा उसकी मौसी की तरफ गुस्से में देखता है। आदित्य बिना पैसे मांगे ही ऊनके घर से निकल जाता है।
-आssss
-हरामजादी, कभी किसी को अपने घर बुला लेती है तो कभी किसी को।
-मैंने नहीं बुलाया है उसे।
आदित्य गली में था लेकिन उसके कानों में अब भी आवाज सुन रही थी। उसे मन ही मन गुस्सा आ रहा था लेकिन वह असमर्थ था।
उसके विद्यालय का समय हो चूका था । वह धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। उसके दिमाग में अनेक सवाल कौंध रहे थे कि कैसे वह परीक्षा फॉर्म भर सकेगा?
वह जल्द ही निराशावस्था में विद्यालय में प्रवेश करता है। वह अपने कक्षा कक्ष में जाता है। वह अपनी कक्षा कक्ष में जाता है । कुछ बच्चे कक्षा कक्ष में बैठे होते हैं । अभी प्रार्थना सभा का वक्त नहीं हुआ था।  अर्चना उसकी तरफ से तिरछी नजरों से देखती है । आदित्य उसे आंखों देखे भी नहीं सुहाता था।  इसका कारण था कि वह कक्षा कक्ष में सर्वाधिक अंक अर्जित करना चाहती थी।  लेकिन उसे ज्ञात था कि आदित्य ही उसकी टक्कर का विद्यार्थी है । लेकिन दूसरी तरफ आदित्य कभी भी उससे बात नहीं करता था । उसकी जैसी आर्थिक स्थिति थी उसमें किसी भी विद्यार्थी से टक्कर लेने में वह सक्षम न8हीं था । जल्दी ही प्रार्थना सभा की घंटी बजी और सभी विद्यार्थी प्रार्थना करने चले गए । वह अपने हाथों की लकीरों की तरफ देखता है।  वह जानना चाहता था कि क्या उसके हाथों की लकीरों में इतना दम है कि वह आगे की पढ़ाई कर सकें? उसे नहीं पता था कि आज उसका विद्यालय में आखिरी दिन है या नहीं।  उसे अपने पिताजी की याद आ रही थी।  वह सोच रहा था कि क्या आज उसका बोर्ड परीक्षा फॉर्म भरा जा सकेगा या नहीं।  कुछ ही देर में प्रार्थना सभा संपन्न हुई और प्रधानाचार्य जी ने सभी बच्चों से चार फोटो व ₹500 परीक्षा फॉर्म के लाने को कहा ताकि समय रहते सभी फॉर्म जमा करवाये जा सके । बाबू ने फॉर्म जमा करने के लिए काउंटर खोल दिया । सभी बच्चे एक-एक करके अपनी फोटो व ₹500 लेकर कार्यालय के सामने लाइन लगाकर खड़े हो गए।  पहला रोल नंबर आदित्य का ही था किंतु वह कक्षा कक्ष से बाहर ही नहीं निकला।  उसके पास अपनी फोटो तो थी।  किंतु उसके पास फॉर्म के लिए पैसे नहीं थे।  वह निराश होकर कक्षा में बैठा हुआ था।  इधर एक-एक करके सभी विद्यार्थी फॉर्म भर रहे थे।  कार्यालय का बाबू प्रधानाचार्य जी से कहता है-  सर, आदित्य अब तक नहीं आया ।
-अरे दिनेश। 
-हां, सर।
- आदि को बुलाकर लाओ जरा ।

-ओके सर ।
दिनेश दौड़ता हुआ कक्षा कक्ष की तरफ जाता है । सभी विद्यार्थी कार्यालय के पास में खड़े थे । लगभग सभी ने फॉर्म भर दिए थे । अंग्रेजी साहित्य पढ़ाने वाली मैडम शारदा जी सभी बच्चों से फॉर्म पर साइन करवा रही थी और भूगोल पढ़ाने वाले अध्यापक सुरेश जी सभी विद्यार्थियों की फोटो चिपका रहे थे।

- अरे, आदि सर बुला रहे हैं।

-उन्हें बोलो मैं अभी आ रहा हूं ।

-ठीक है लेकिन तू जल्दी आना।

- ठीक है ।
दिनेश वापस दौड़ता हुआ चला गया । आदित्य धीमे से खड़ा हुआ।  उसकी आंखों से आंसू झलक रहे थे । वह बेहद निराश था।  वह विद्यालय के कैंपस के पीछे एक मेहँदी की पौधे के पास जाकर बैठ गया।  इधर सभी विद्यार्थियों के फॉर्म पूर्ण हो चुके थे।

- अरे, दिनेश आदि क्यों नहीं आया अब तक?  उसे बुलाकर तो लाओ ।

" मैं लाता हूं सर। " रघुबीर ने कहा ।

रघुवीर दौड़ता हुआ है कक्षा कक्ष की तरफ गया। सभी  उसकी तरफ देख रहे थे।

- सर,  वह तो कक्षा में है ही नहीं ।

वह दूर से ही आवाज देता है।

- क्या!

प्रधानाचार्य जी आश्चर्य से कहते हैं ।

वह घुटनों में सिर देकर रो रहा था।  उसकी सारी उम्मीदें टूट चुकी थी । उसे अपने पिताजी की याद आ रही थी । वह सोच रहा था कि काश वह जिंदा होते तो आज उसे इस तरह की परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ता ।

- यह मेहंदी का पौधा ही है क्या जिसे तू अपनी परेशानी बताता है, आदि?

उसके कानों पर अपनी शारदा मैम  की प्यारी आवाज पड़ती है । वह आंसू पोंछकर पीछे की तरफ देखता है ।

-क्या हुआ फॉर्म भरने क्यों नहीं आ रहा है?

"-मुझे नहीं पढ़ना मैम । "वह उदास होकर कहता है ।

-अच्छा सिर्फ ₹500 फीस के ना होने के कारण तू पढ़ना नहीं चाहता।

- आप कैसे जानते हैं, मैम।

-  बेटा भले ही मैं मैम हूं तेरी । लेकिन दिल से माँ भी  हूं मैं।  और एक मां अपने बेटे की हर परेशानी जान सकती है । चल यह ले पांच सौ रूपये और भरा दे अपना फॉर्म।
शारदा मैम जैसे ही ₹500 का नोट निकालती है वह रो पड़ता है । वे आदित्य को अपने सीने से लगा लेती है।

- रो मत बच्चे । सब ठीक हो जाएगा।
पर मैम मैं आपके पैसे कैसे ले सकता हूं ।

-अरे,  तो मेरे ले  ले यार ।

अर्चना ने पीछे से मुस्कुराते हुए कहा।

- अरे, मैं दे रही  हूं ना।

-  नहीं, मैम। यह मेरी क्लास का विद्यार्थी है और इसलिए मेरा फर्ज बनता है कि मैं इसकी मदद करूँ। अगर यह अध्यापक होता तो आप एक अध्यापक होने के नाते उसकी मदद कर सकते थे।  लेकिन आज मेरा हक़ है।

- पर मैं तेरे पैसे नहीं ले सकता।

-  क्यों? अगर तुम्हें लगता है कि मैं तुम पर  एहसान  कर रही हूं तो एक काम करना।  जैसे ही नौकरी लग जाए तेरी तो मेरे पैसे तू ब्याज सहित  वापस लौटा देना।  ओके, समझे?

-यह लड़की पागल है, आदि । चल पैसे ले ले इससे।

-हां,   चुपचाप ले ले ।

आदित्य अपने आंसू पोंछता  है । वह उसे ₹500 का नोट देती है और मुस्कुराती है । आदित्य मुस्कुराता हुए कार्यालय की तरफ बढ़ता है । आज अर्चना ने एक ही झटके में उसकी परेशानियों को निगल लिया था।  किसे पता था कि जो लड़की आदित्य को बिल्कुल पसंद नहीं करती।  आज उसने उसकी सबसे बड़ी मदद कर दी।  उसने अपने हाथ की लकीरों की तरफ देखा तो उसे यकीन हो गया कि वह आगे पढ़ पाएगा। अर्चना ने एक कटे पंख के परिंदे को नई उड़ान दे दी।

क्रमशः....


यह भाग बिलकुल भी काल्पनिक नहीं है मुझे आज भी याद है जब मेरी mam ने मुझे गले गलाया था😭😭😭😢 बहुत रोना आ गया था। लेकिन यह सच था। मेरी मदद के लिए वे सबसे पहले आगे आई थी। आज मैं जो कुछ भी हूँ ऐसे ही अध्यापक/अध्यापिकाओं की वजह से हूँ😍😍😍

भाग- 43

विद्यालय की पूरी छुट्टी की घंटी बजी । सभी बच्चे एक-एक करके विद्यालय से बाहर निकलते हैं । आदित्य भी बाहर निकलता है।  अर्चना उसके पीछे पीछे चल रही थी । आदित्य के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी । आखिर हो भी क्यों ना आज अर्चना ने उसकी मदद जो कर दी थी।  वह स्वयं भी आदित्य की मदद करके खुश थी । अर्चना आदित्य के पीछे पीछे चलते हुए बोली- आदि,  थोड़ा धीरे चल ना।

- मुझे देर हो जाएगी यार ।

-तो कोई बात नहीं मेरे घर ठहर जाना।  हम दोनों साथ पढ़ाई कर लेंगे ।
- तू पागल है क्या?

- वह तो हूं यार।

-तू  भी ना।

- अरे, मेरे घर नहीं ठहर सकता तो कोई बात नहीं।  एटलिस्ट धीरे तो चल ही सकता है ।
वह  मुस्कुराते हुए कहती है।  उसके कहते ही आदित्य  अपने कदमों की रफ्तार को धीमा कर लेता है।  उसका घर गांव के आखिरी छोर पर था । जिस कारण वह आदित्य के साथ जाना चाह रही थी । इस चक्कर में उसने अपनी सहेलियों का भी साथ छोड़ दिया था। वे  मुख्य गांव  से जैसे ही बाहर निकल गए।  अर्चना ने अपने अधर खोलें -तू  इतना खडूस कैसे है आदि?

-नहीं तो । ऐसे  ही लगता है।

- अच्छा, एक बात कहूं?

- हां, बोल ।

-मानती  हूँ तुम्हारे साथ बहुत गलत हुआ है । लेकिन मुस्कुराना मत छोड़ो यार।

- ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ है ।

-अच्छा, कोई बात नहीं । वैसे क्या हम दोस्त हैं अब ?

-ऑफकोर्स इसमें कौनसी बड़ी बात है?

आदित्य के  ऐसा कहते ही अर्चना  की आंखें चमक उठी । वह हाथ आगे बढ़ाते हुए कहती है -थैंक्यू आदि । जो तुमने मुझे अपनी दोस्ती  के काबिल समझा ।

-अगर यही बात मैं कहूं तो?

  वह मुस्कुराती है । आदित्य भी उसकी तरफ  झूठी मुस्कुराहट मुस्कुराता है।  कुछ ही देर में उसका घर आ जाता है ।

-ओके बाय अर्चना ।

-बाय....

वह प्यार भरी नजरों से देखती है।

-बाय आदि ...

-बाय...

-बाय... वह आदित्य की आंखों में खो जाती है ।

-बाबा बाबा...

-डर नहीं लगता क्या आदि अकेले जाते हुए।

- न...नहीं तो... डर क्यों लगेगा?  चल बाय...

-बाय..

वह आगे बढ़ जाता है । वह कच्ची सड़क से होते हुए जैसे ही एक टीले पर चढ़ता है । वह पीछे की तरफ देखता है । अर्चना अब भी उसी आंगन से एकटक  देख रही थी । उसे उसकी कही गई बात याद आ जाती है ।

"डर नहीं लगता क्या आदि?"

उसे अचानक पायल की याद आ जाती है । उसे चिंता सात्त रही थी कि आखिर पायल कैसे स्कूल जाती होगी?

-आदि.. आई लव यू । कमीने ऐसे मत देख थप्पड़ मारूंगी तुम्हें मैं।  वह उस पेड़ के धीमे से मारती है।उसकी आंखों से आंसू आ जाते हैं । वह  उस पेड़ को गले से लगाती है । आई लव यू आदि । प्लीज आ जाओ ना यार । मन नहीं लग रहा तुम्हारे बगैर बाबा।

मैं एक  दिन आऊंगा पायल । मैं एक दिन जरूर आऊंगा । वह मुस्कुराता है और आगे बढ़ जाता है । इधर पायल भी अपने आंसू पोंछती  है।  धीरे-धीरे वक्त बीतता गया । आदित्य ने खूब मन लगाकर पढ़ाई करनी शुरू कर दी । वह रात-रात भर घंटों पढ़ाई करता रहता था।  इसके अतिरिक्त उसने अंकिता की भी खूब मदद की।  कक्षा कक्ष में उन सभी के मध्य एक सकारात्मक प्रतिस्पर्धा हो गई थी।  अर्चना व आदित्य के साथ बाकी के विद्यार्थी भी खूब पढ़ रहे थे । कक्षा कक्ष का एक अलग ही माहौल बन गया था । कौन सबसे ज्यादा नंबर प्राप्त करेगा इसका पहले अंदाजा लगा पाना मुश्किल था । शीघ्र ही परीक्षाएं संपन्न हुई और जल्द ही रिजल्ट की तारीख भी आ गई।

आदित्य ने घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए  मजदूरी करनी शुरू कर दी । इस दौरान उसने घरेलू सामान, गाय के लिए चारा व अपनी मां, बहन और भाई के लिए कपड़े भी खरीद कर लिए।  उसने एक नया मोबाइल और एक सिम कार्ड भी खरीद लिया ताकि वह जरूरी हो तो काम के सिलसिले में बात कर सके।  दूसरे शब्दों में कहा जाए तो आदित्य ने अपने परिवार को अच्छे से संभाल लिया था।

एक रोज जब वह शाम को काम से वापस आया तो अचानक उसके पास फोन आया ।

-हेलो, कौन?

- मैं तुम्हें कुछ कहने वाली हूं।  खुशी के मारे मर तो नहीं जाएगा ना?

-अरे,  तो बोलो तो सही अर्चना।

-तुझे पता है आज हमारा रिजल्ट आ गया है ।

-अच्छा,  क्या रहा तेरा?

- पहले अपना नहीं पूछेगा?

- तो बता ना यार । क्यों नौटंकी कर रही है?

-तूने आर्ट्स में पूरा जिला टॉप किया है पागल ।

-क्या मजाक कर रही हो यार!
-अरे, सच्ची । तूने 91 पॉइंट 72 परसेंट हासिल किए हैं और अंग्रेजी साहित्य में तेरे 97 नंबर आए हैं।  बोर्ड टॉपर रहा है अंग्रेजी साहित्य में तू। 

- क्या सच्ची?

-हां, मां कसम।

- तूने तो हिला कर रख दिया यार।  पहले तेरा कॉल नहीं लग रहा था । अभी सर तेरे गांव आने वाले हैं गाड़ी लेकर
  हम सब सेलिब्रेट करेंगे ।

-अरे, तेरे कितने आए हैं?

89 पर्सेंट और तहसील टॉपर । हा, हा, हा।

- वाह, यार क्या बात है।

- हमारे बेंच के 40 स्टूडेंट में से 32 स्टूडेंट फर्स्ट डिवीजन से पास हुए हैं और बाकी के 8 सेकंड डिविजन से। अर्चना जैसे जैसे बोल रही थी उसकी  आंखों से खुशी के आंसू बह  रहे थे।  आज उसके आंसू इस बात की गवाही दे रहे थे कि उसने कितनी मेहनत की थी।  कुछ ही देर में उसके घर के आगे उसके प्रिंसिपल सर की गाडी आकर रुकी।   उसे बैठाया गया और उसको स्कूल ले जाया गया । वह  वहां पहुंचा तो सुंदर सजावट किए हुए पूरे विद्यालय को देखकर वह  आश्चर्यचकित था।
क्रमशः....

लेखक-राजेन्द्र कुमार शास्त्री "गुरु" 

भाग-44

आदित्य रोशनी से जगमगाते विद्यालय में प्रवेश करता है।  शाम के 7:00 बजने वाले थे।  किंतु पूरा विद्यालय रौशनी में इतना सारोबार था कि विद्यालय में सूरज की रोशनी का आभास हो गया था।  वह खुश नजर आ रहा था । गांव वालों ने स्टेज की व्यवस्था पहले से ही कर दी थी।  प्रोग्राम शुरू होने वाला था ।

-अरे, वाह आदि।  मेरे बच्चे । कमाल कर दिया यार तूने तो।  मेरी भूगोल में 95 अंक लाकर। वाह, मेरे शेर।

सुरेश जी सर उसे गोद में उठाते हैं।  सभी बच्चे व अध्यापक-अध्यापिकाएं खुशी के मारे तालियां बजा रहे थे । सुरेश जी आदित्य को नीचे उतारते हैं । उसकी नजर अपनी सबसे प्रिय अध्यापिका शारदा मैम पर पड़ती है।  वह उनके  पास जाता है । अर्चना उनकी  बगल में खड़ी थी ।

-अरे,  आदि बाबा कैसा है तू ?

-ठीक हूं मैं ।

-गले नहीं लगेगा?

शारदा मैम ने  मुस्कुराते हुए आदित्य को अपने गले से लगाया।  एकबारगी उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं। 

-कांग्रेचुलेशन आदि।

- थैंक्यू यू एंड यू टू, अर्चना।

अर्चना मुस्कुरा कर उससे हाथ मिलाती है।  इधर स्टेज सजा हुआ  था । सभी विद्यार्थी व गांव वाले एक-एक करके कुर्सियों पर बैठते हैं।  अर्चना आदित्य की ही बगल में जाकर बैठ जाती है । प्रधानाचार्य जी माइक हाथ में लेते हैं ।

-मैं सबसे पहले हमारे आज के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बीकानेर जिले के जिला कलेक्टर श्रीमान पी.आर. राठौड़ जी  विशिष्ट अतिथि बीकानेर जिला शिक्षा अधिकारी श्रीमान रामेश्वर शर्मा जी हमारे ग्राम पंचायत के सरपंच श्रीमान सावरमल मेघवालजी  व अन्य  गणमान्य जनों का हमारे विद्यालय प्रांगण में स्वागत करता हूं । आज हमारे लिए बेहद खुशी की बात है कि हमारे ही विद्यालय के बच्चे आदित्य शर्मा ने हमारे विद्यालय का नाम जिला स्तर पर प्रथम रैंक व राज्य स्तर पर  37 वीं रैंक हासिल करके नाम रोशन किया है।  हमारे विद्यालय से अर्चना, निधि और आयुषी ने भी तहसील स्तर पर क्रमशः प्रथम,  पंचम व सप्तम व रैंक  हासिल की। मैं इन सभी बालिकाओं का  तहदिल से   धन्यवाद करना चाहूंगा।  इन्होंने  सरकारी विद्यालय में पढ़ने को चुना यह एक बहुत बड़ी बात थीं ।  अब मैं आज सभी को बताने जा रहा हूं कि सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी  पुरस्कार की भी आज ही के दिन घोषणा की  जा रही है।  इसकी घोषणा हमारे विद्यालय की वरिष्ठ अध्यापिका श्रीमती शारदा वर्मा जी करेंगी।  प्लीज शारदा जी ऊपर आइए।

प्रधानाध्यापक के कहते ही शारदा मैम  उपर जाती हैं । सभी विद्यार्थी तालियां बजाने लगते हैं।  सभी अध्यापकों ,  गणमान्यजनों को मेरा नमस्कार।  हमेशा की ही तरह इस वर्ष भी हमने सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी का चुनाव किया है।  अब जिस विद्यार्थी का में नाम लेने जा रही हूं।  उसने 1 महीने लेट एडमिशन होने के बावजूद भी अच्छे अंक ही हासिल नहीं किए बल्कि हमारे विद्यालय का मान सम्मान बढ़ाया।  पूरी साल इस बच्चे ने किसी से भी झगड़ा नहीं किया।  एस. यू. पी.डब्ल्यू.  कैंप में बढ़-चढ़कर भाग लिया और विद्यालय में रंगाई पुताई करवाने का नया आईडिया भी इसी बच्चे ने ही  दिया।  आज जो विद्यालय की बदली हुई तस्वीर आपके सामने है वह इस बच्चे के  दिए गए आईडिया का ही परिणाम है।  अगर मैं इस विद्यार्थी की गुणगान करना शुरू करूं तो रात से सुबह हो जाएगी।  लेकिन बिना समय गवाएं मैं इस विद्यार्थी का नाम लेना चाहती हूं।

- ओके नाउ आई वांट टू कॉल द स्टूडेंट ऑफ द ईयर आदित्य शर्मा । प्लीज कम ऑन दी स्टेज। यू हैव डन गुड जॉब फॉर अस।  वी लव यू आदि ।"

-वो स्टेज अब  तुम्हारा है आदि ।

अर्चना मुस्कुरा कर उसकी पीठ थपथपाती  है । सभी बच्चे जोर-जोर से तालियां बजा रहे थे।  आदित्य मुस्कुराता हुआ स्टेज पर चढ़ता है और सभी लोगों का अभिवादन स्वीकार करता है । वह सभी अध्यापकों व जिला कलेक्टर और अन्य गणमान्य लोगों के पाँव छूता  है।  कलेक्टर साहब उसे बेस्ट स्टूडेंट का अवॉर्ड  देते हैं । उसके बाद प्रिंसिपल सर आदित्य को सर्वाधिक अंक लाने के लिए इक्यावन सौ रूपये  व एक प्रशस्ति पत्र भेंट करते हैं । कलेक्टर साहब भी आदित्य को  ₹5100 भेंट करते हैं । इसके अतिरिक्त वे  अर्चना, आयुषी और निधि को भी 2100 - 2100 रुपए भेंट करते हैं।  शारदा मैम ने घोषणा की की वे आदित्य की बाकी की पढ़ाई का खर्चा उठाएंगी।  इस घोषणा से आदित्य की आंखों में आंसू आ जाते हैं।  उसे ज्ञात हो जाता है कि आज उसे जो कुछ भी मिल रहा है।  वह उसकी मेहनत का ही परिणाम है।  उसे पता चल गया था कि जिंदगी में आने वाली मुश्किलों का बहाना बनाकर मेहनत करनी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि मेहनत ही वह चीज है।  जिसकी सहायता से इंसान कोई भी मुकाम हासिल कर सकता है।  वह अपनी आंखें बंद करता है और उसे पायल की याद आ जाती है।

क्रमशः....

लेखक-राजेन्द्र कुमार शास्त्री "गुरु" 

भाग- 45

"अब मैं बुलाना चाहूंगा उस लड़की को जिसने हमारे जिले के बोर्ड रिजल्ट को हिला कर रख दिया है । यह कोई और नहीं हमारे ही विद्यालय की छात्रा पायल है।  इस बच्ची ने 93 परसेंट लाकर जिले में ही नहीं स्टेट रिजल्ट में पूरे राजस्थान में 15 स्थान हासिल किया है । मैं विद्यालय की तरफ से पायल को आगे की पढ़ाई लुधियाना कॉलेज से फ्री करवाने का वादा करता हूँ।  प्लीज पायल  कम ऑन द स्टेज।  ", विनोद जी सर के बोलते-बोलते आंखों में आंसू आ जाते हैं।  पायल गुमसुम सी आदित्य के ही बारे में सोच रही थी।  उसे पता था कि अगर आदित्य उसे गणित नहीं बताता तो शायद ही वह कभी गणित में होशियार हो पाती । आज खुशी के इस पल में आदित्य उसके साथ नहीं था । सभी विद्यार्थी, अध्यापक पायल की तरफ देख रहे थे । किंतु पायल निराशा रूपी अंधकार में डूबी हुई थी ।

-पायल बेटा ऊपर आओ।

विनोद जी सर उसे पुनः पुकारते हैं । लेकिन उसका ध्यान उनकी तरफ नहीं जाता है ।

-पायल बेटा ऊपर आओ ।

तीसरी बार कहते ही पायल को आभास हुआ कि उसे स्टेज पर बुलाया जा रहा है।  वह ऊपर जाती है।  उसे जिला शिक्षा अधिकारी व एम.एल.ए. पुरस्कार देते हैं।  वह खुश नहीं थी।  क्योंकि उसकी खुशी में शामिल होने वाला उसका प्यार उसके साथ नहीं था।  उसके पिताजी जरूर उसके लिए तालियां बजा रहे थे।  किंतु वह आदित्य को याद कर रही थी।  पुरूस्कार वितरण के बाद करीब 12:00 बजे विनोद जी सर अपनी गाड़ी से उसे और उसके पिताजी को  उनके घर छोड़ आते हैं।
इधर आदित्य ऊपरी तौर से खुश था । क्योंकि उसकी परिस्थितियां  पायल के मुकाबले गंभीर थी।  उसे उसका दोस्त रघुवीर अपनी मोटरसाइकिल से उसके घर छोड़ देता है।  उसे नंबर ज्यादा लाने  से कही ज्यादा  खुशी इस बात की थी  कि इधर-उधर से करके उसे पारितोषिक के रूप में इतने पैसे मिल गए थे कि अब उसे एक -2 महीने के लिए अपने घर की आर्थिक स्थिति के बारे में चिंता करने की जरुरत नहीं थी। घर आने पर अंकिता व उसकी मां ने तिलक लगाकर उसे मिठाई खिलाई । उसके मुंह बोले चाचा बीरबल ने उसे प्यार से गले लगाया । आरती भी अपने आंसू रोक नहीं पाई।  अक्षय खुश था क्योंकि उसे  खाने के लिए लड्डू मिल गए।  अगले कुछ दिनों तक पायल व आदित्य के घर में लोगों का आना जाना लगा रहा।  बधाईयाँ देने उनके  घर जाना एक आम बात हो गई थी । लेकिन आदित्य को पायल की व पायल को आदित्य की याद सता रही थी । दोनों ही एक दूसरे को याद कर रहे थे।  आदित्य का एडमिशन नियमित रूप से न होने की बजाय अनियमित रूप से था।  उसने महाराजा गंगा सिंह विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया था।  उसने अंग्रेजी साहित्य से आगे की पढ़ाई करने की सोची थी । इधर पायल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहती थी । इसलिए उसने लुधियाना कॉलेज से आगे की पढ़ाई करनी शुरू कर दी।
शुरुआती कुछ दिन तक वह बहुत उदास रहती थी । क्योंकि वहां वह पेड़ नहीं था जो उसके और  आदित्य के प्यार का एक परिचायक था । वह बहुत रोई किंतु उसके पिताजी के समझाने के बाद वह थोड़ी कठोर हो गई ।

इधर आदित्य के प्रति अर्चना कुछ ज्यादा ही सोचने लगी थी।  उसे रात दिन आदित्य का ही ख्याल रहता है।  वह उसके बारे में सोचती रहती।  उसके ही सपने देखती।  एक रोज जब आदित्य शाम को मजदूरी  करने के बाद घर आया तो अर्चना ने उसे फोन किया ।

-हेलो! आदि।  कैसे हो? मेरी याद नहीं आई तुम्हें?

-बहुत आई ।

-सच्ची!
-हां बाबा । लेकिन क्या करूं यार घर की सारी जिम्मेदारियां मुझ पर ही तो है।  इस कारण तुम्हें याद नहीं कर पाया।

- अच्छा, कोई बात नहीं।  मैं तुम्हें एक बात बोलने वाली थी बुरा तो नहीं मानोगे ना!

- बिल्कुल भी नहीं।  तुम बस बोलो।

- अच्छा क्या तुम हमारी गांव की स्कूल में पढाओगे?

-क्या!

- हां,  मेरे चाचा के बेटे का एक प्राइवेट स्कूल है । तू तो जानता ही है जो हमारे गांव से करीब 2 किलोमीटर दूर है ।

-हां, सुना है।

- पर छोटी सी स्कूल है।  दसवीं तक । करीब 200 बच्चे हैं।  क्या वहां अंग्रेजी पढाएगा तू?

-यार...यह  कैसे हो पाएगा? तू तो जानती ही है। मैं खुद ही बाहरवीं पास हूँ तो भला दसवीं तक कैसे पढ़ा पाऊंगा?

-अरे,  दसवीं तक नहीं पढ़ानी है।  उनके पास दो पीरियड के लिए एक मैडम आती है जो एक दूसरे स्कूल में पढ़ाती है।  लेकिन वह सिर्फ दो ही क्लास को पढ़ाती है।  अगर तू आठवीं तक पढ़ा पाएगा तो ठीक रहेगा।

- लेकिन यार यह गलत है । मैं बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकता । मुझे बिल्कुल भी नहीं आता ।

-अच्छा,  क्या आरती को पढ़ाते हो?

- हां, थोड़ा बहुत पढ़ा लेता हूं।

- तो यह समझ लो कि वे सब  तुम्हारे छोटे भाई बहन ही हैं और मैं मानती हूं तू कभी उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करेगा । तू  बहुत मेहनती आदि।

-  पर...

-पर वर अब कुछ नहीं । अभी थोड़ा दिमाग लगाओ।  अगर तू मजदूरी करेगा तो पढ़ाई कैसे कर पाएगा?

- पर यार मेरे घर को भी तो संभालना है।

- अच्छा, कितना खर्चा आता है?

-महीने का यही कुल ₹2000 और कपड़े अलग से।

-अच्छा,  अगर मैं यह कहूं कि तुम्हें भैया प्रति माह  ₹3500  दे देंगे तो?

-बहुत कम है यार।  यहां मैं दिन के ₹300 के करीब कमा लेता हूं ।

-लेकिन आदि सोचो ।  केवल 3500 ही नहीं कमा पाएगा।

- तो..

-  भैया हमारे गांव में तुम्हारी ट्यूशन भी लगवा देंगे।  एक बच्चे के ₹300 महीना देंगे।  तू स्कूल से आने के बाद मेरे घर में ट्यूशन करवा लेना।  अगर 10 से 15 बच्चे भी हो गए तो भी तू आराम से 3000  से 3500  तक कमा लेगा तो 6000 से ऊपर बन जाते हैं ।  फिर खेत का काम भी तू कर सकता है जिससे तुम्हारे खेत की इनकम भी तुम्हारे पास रह जाएगी।  क्योंकि रविवार, दीपावली व अन्य त्योहारों की छुट्टियां भी स्कूल में आती हैं और काम ज्यादा मेहनत का भी नहीं होगा।  क्योंकि तू अंग्रेजी पढाएगा तो तेरे सब्जेक्ट में भी तेरी पकड़ ज्यादा हो जाएगी।  तू शाम को तेरी पढ़ाई भी कर सकेगा।

अर्चना की बातें दर्शा रही थी कि वह उसके बारे में कितना अच्छा सोचती है।  आदित्य कुछ देर के लिए चुप हो जाता है।

- अरे, चुप क्यों हो गए? कहो तो  बात करूं क्या भैया से?

-लेकिन...

-अब कोई बहाना नहीं । मानती हूं तू  यह सोच रहा है कि यह गलत है।  गैरकानूनी भी है । क्योंकि अभी तूने B.Ed नहीं कर रखी है । लेकिन यार तू कोई गलत काम नहीं कर रहा है।  बच्चों को ज्ञान देना कोई गलत काम नहीं होता । जैसी तुम्हारी लाइफ है मुझे लगता है तुझसे ज्यादा अच्छा ज्ञान देने वाला कोई नहीं है।

- अच्छा,

- हां!  मेरे शेर । चल  अब हाँ  कह दे जल्दी से।  और हां जब तुम ट्यूशन करवाओगे तो  गांव में मैं तेरा प्रचार कर दूंगी।  हा हा, हा , और तुझे चाय भी पिला दूंगी । और... और याद आया तुम्हारे स्टूडेंट्स का मनोरंजन भी कर दूंगी।  और... हां और बच्चों को पढ़ाने में तेरी मदद भी कर दूंगी। और...

- अरे । बस बस । ठीक है कर ले बात।  मैं कल तक डेमो देने   स्कूल में आ जाऊंगा।

- वाह! यह हुई ना बात।  मेरे आदि वाली।

- थैंक यू फॉर योर सपोर्ट।  चुप कर बे । आगे से थैंक यू बोला तो फोन के अंदर घुसकर मुक्का मारूंगी।

- हा, हा,  हा ,

-अरे तू तो हंसता भी है ।

आदित्य को जैसे ही अर्चना बोलती है वह फिर अपने अतीत के मंजर में खो जाता है।

- क्या हुआ आदि?

- कुछ नहीं यार।  तू बात कर लेना  ओके । मैं रखता हूं।

अर्चना को आभास हो जाता है कि जरूर आदित्य अपनी  पिताजी की मौत के अलावा भी ऐसी बात है जिसे वह छुपा रहा है । लेकिन शुरुआती कुछ दिनों तक वह उससे नहीं पूछती है । आदित्य ने स्कूल जाना शुरू कर दिया था। अर्चना ने  उसके लिए एक कमरा अपनी मां को कहकर खाली करवा दिया।  जहां आदित्य दोपहर को स्कूल से आने के बाद ट्यूशन करवाता । अर्चना दोपहर को उसके आते ही खाना बनाकर उसके लिए तैयार रखती । इतनी देर में बच्चे आ जाते । उसने अपनी कड़ी मेहनत व लगन से सभी बच्चों के माता-पिता की   नजरों में एक अच्छी छवि बना ली थी।  जिस कारण वे सभी अपने बच्चों को पढ़ाई करवाने हेतु आदित्य के पास भेज देते थे।  अर्चना के घर का कमरा इतने बच्चों के लिए छोटा पड़ रहा था।  इस कारण अर्चना ने अपने घर के पास में ही पड़ोसियों का जो खाली पड़ा मकान था उसे उसने किराया देकर खुला करवा लिया ।  वह भी खुद आदित्य की मदद करने लगी।  इस दौरान वह  आदित्य से लगातार प्रभावित हो रही थी । उसकी मासूमियत से । उसके बोलने के तरीके से।  अर्चना की मां भी आदित्य को बहुत पसंद करने लगी थी । क्योंकि वह अर्चना से बहुत ज्यादा समझदार था । वह सभी के साथ आदर भाव से बात करता था।  इधर पायल भी अपनी नई कॉलेज में धीरे-धीरे घुलमिल गई । उसकी कुछ पंजाबी लड़कियों से दोस्ती हो गई।  हालांकि लड़के उसे घमंडी ही समझते थे । लेकिन पायल को उनसे कोई मतलब नहीं था।  वह रात रात भर जाग कर पढ़ाई करती और अपने तकिए को ही आदि का रूप दे दिया।  अब उस पेड़ की जगह उसका सहारा वह तकिया ही बन चुका था।  आदित्य ने अपने घर को अच्छे से संभाल लिया था । वह अपनी कड़ी मेहनत से 15 से ₹17000 तक कमाने लगा । क्योंकि उसके पास ट्यूशन करने वाले बच्चों की कोई कमी नहीं रही थी । वह रात को अपने कॉलेज की पढ़ाई करता तो दिन में बच्चों को पढ़ाता ।  इसके अतिरिक्त उसने कंपटीशन की भी पढ़ाई  करनी शुरू कर दी । ताकि B.Ed होते ही वह टीचर के एग्जाम दे सके।  धीरे-धीरे वक्त बीत रहा था लेकिन अर्चना आदित्य के चेहरे के पीछे छुपी उदासी का कारण जानना चाहती थी।  एक रोज उसने मौका देखकर उससे  पूछ ही लिया।

- आदि ,  तुम्हारी इस उदासी के पीछे छिपी वजह  को तो बता दो।

- कोई नहीं है बाबा.

- अच्छा,  झूठ मत बोलो मुझे । प्लीज यार बताओ।  ऐसा कौन सा दर्द है जो तुम्हें मुस्कुराने से रोकता है?

-कोई नहीं है बाबा।

-अच्छा झूठ मत बोलो । प्लीज यार बताओ ना  कौन है?

- कोई नहीं है ।

- तुम्हें मेरी कसम । सच-सच बताओ ।

-पायल....  मेरा प्यार।  बचपन की दोस्ती थी वो .
.

आदित्य ने रोते-रोते अर्चना को सभी बातें बता दी। उसने उसके आंसुओं को पौंछा।

- रो मत आदि।  सब ठीक हो जाएगा । मैं भगवान से दुआ करुंगी कि तुम दोनों एक दिन जरूर मिलोगे ।

-थैंक यू अर्चना।

- कितनी बार कहा है  तुझे कि थैंक्यू मत बोला कर मुझे । दोस्त हूं तेरी ।  समझे?

-समझा बाबा ।

पायल के बारे में बताते ही  अर्चना का उसके प्रति सम्मान और  बढ़ गया। वह हमेशा उसकी खुशी का ख्याल रखने लगी।

क्रमशः...... 

भाग-46

                          चार साल बाद

आदित्य मन लगाकर पढ़ाई करने लगा था। वह अब पूर्णता बदल चुका था ।स्टील की फ्रेम वाला चश्मा, अच्छा खासा शरीर, गुस्सैल प्रवृत्ति और खडूस स्वभाव उसकी पहचान हो गई थी। वह मन लगाकर पढ़ाई करता।  पुस्तकों व सामान खरीदने बाजार जाता। रात-रात भर लेपटॉप लेकर कुछ ना कुछ खोजता रहता है।  ऐसी चीज की तलाश करता रहता है जिसकी खोज आज तक किसी ने नहीं की । उसकी लगन व मेहनत के आगे उसकी सारी परेशानियां हार चुकी थी । अब कोई भी कर्जदार उसके घर आकर के गाली देने की बात तो दूर ऊंची आवाज में बात करने की हिम्मत नहीं करता । उसने एक-एक करके सब का कर्जा भी तो उतार दिया था । अब उसे उसके घर के खाद्यान्न सामग्री की चिंता नहीं रहती   अब उसे अपने भाई-बहनों व मां के कपड़ों की चिंता नहीं रहती । ना ही उनके चप्पल-जूतों की चिंता रहती। उसकी आस-पड़ोस से लेकर गांव में एक ऐसे लड़के की छवि बन गई थी जो बहुत कम बोलता है।   यहां तक कि कुछ तो उसे खडूस ही नहीं बल्कि घमंडी तक समझने लगे थे । उसने अपने आप को पूर्णत्या बदल दिया था।  उसके गुस्सेल स्वभाव के चलते उसकी मां भी उससे बात करने से घबराती थी।  वह अपने मन की बातें अर्चना,आरती या अंकिता को ही बताता था।  हालाँकि वह अपने  परिवार के खिलाफ या अपनों के खिलाफ कुछ भी सुनने की  सूरत में नहीं रहता। यहां तक कि उसके इस स्वभाव के डर के कारण आसपास में जो ज्यादा ऊंची आवाज में टेप रिकॉर्डर बजाते थे वह भी डर के मारे कम आवाज में बातें करते। आखिर एक रोज उसने एक पड़ौसी की पिटाई कर दी और जब उसने केस करने की बात की तो उसने पहले ही मेल की कॉपी दिखा दी की उसने कलेक्ट्रेट को ऊँची आवाज में लाउड स्पीकर बजाने के जुर्म में 2 साल के लिए अंदर जाओगे। उसकी इसी व्यवहार के चलते सब डरते। लेकिन जरूरत मंद की मदद भी करता। वह अध्यापक की सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा था।  लेकिन इस दौरान वह शहर की प्रतिष्टित स्कूल में बाहरवीं तक अंग्रेज साहित्य भी पढता था जिसकी एवज में उसे 25 हजार रूपये मिलते थे। वह कब प्यार से बात करता है और कब लड़ाई करने में उतारू हो जाता इसका पता किसी को भी नहीं चलता।  यही कारण था कि उसकी मां भी अब उसके साथ इतनी बातें नहीं कर पाती थी ।उसके स्वभाव के पीछे साफ कारण यही था कि कम उम्र में उसने जो अपना घर संभाला था। उसका जहर उसके अंदर भर चुका था ।आरती भी अब 17 साल की हो चुकी थी   । वह भी  खूब मन लगाकर पढ़ाई करती थी तो वहीँ पार्थिव  बदमाश होने के साथ-साथ पांचवी कक्षा में हो चुका था । तो वहीं अदिति भी दूसरी कक्षा में हो चुकी थी। हालांकि उसके तीनो भाई बहन उसे उतना ही प्यार करते थे और जब वह भैया  बोलकर उससे लिपट जाते  तो वह अपना सारा गम भूल जाता। 

इधर पायल भी पूर्णतया खडूस बन चुकी थी । उसकी बहुत ही कम लड़कों से बातें होती थी।  लेकिन जिनके साथ भी होती उनमें से एक था परमिंदर उर्फ़ पम्मी । जो उसका दोस्त था  ।  वह मन ही मन पायल को चाहने लगा था। हालांकि पायल ने उसे आदित्य के बारे में सब कुछ बता दिया था ।

शाम होने वाली थी । आरती घर के आंगन में बैठे पढ़ रही थी। अक्षय चारपाई पर बैठा हुआ था  ।आदित्य अपने कमरे में बैठकर पढ़ाई कर रहा था क्योंकि कुछ ही दिनों बाद उसकी अध्यापक पात्रता परीक्षा थी   । उसकी माँ  शाम का खाना बना रही थी । अचानक ही बीरबल  दौड़ता हुआ उनके घर आया। उसके पीछे अंकिता भी आई।

-आदि... ऐ! आदि बेटा...

आदि चौक कर खड़ा होता है । वह अपने कमरे से बाहर निकलता है।

- बोले चाचा  क्या बात है?

,-  बे... बेटा तेरी चाची तुझसे बात करना चाहती है।

- कौन सी चाची?

- तेरे महेश  चाचा की पत्नी।  ले बात कर।

वह अपना फोन आदि की तरफ बढ़ाते हैं ।

-उन्हें बोल दो कि मैं बात नहीं करना चाहता ।

-भैया बात तो सुन ले!

अंकिता कहती है।

- बोला ना मुझे कोई बात नहीं सुननी।  आप फोन कट कर दो।

-  बेटा तू समझता क्यों नहीं है?  सेठ जी ने तेरे मामा और चाचा पर चोरी का केस कर दिया है । उन्हें वहां से निकाल दिया है।

- हा , हा,  हा वाह क्या हुआ चाची? मजा आया आपको?

- बे... बेटे ऐसे क्यों बोल रहा है? मैं तो तेरी चाची हूँ।

-चुप करो... अपनी गंदी जबान से मुझे बेटा कहने की जरूरत नहीं है समझी आप। जब यह बेटा सौ-सौ रूपयों  के लिए तरस रहा था तब आप कहां थी? तब कहां थी जब आपका कमीना पति हमारे खिलाफ साजिशें रच रहा था? तब कहाँ थी जब आपके पति ने और मेरे बेईमान मामा ने श्याम सिंह वह बाकियों  के साथ मिलकर साजिश रचकर  हमें और हमारे पापा को वहां से निकलवा दिया था?  तब कहां थी जब मेरे मासूम नन्हे हाथों ने मेरे  ईमानदार बाप की चिता को अग्नि दी थी?  बड़ी आई बेटा बोलने वाली। चल हट।

- आदि बेटे बस एक बार मदद कर दे हमारी । रूपेश की पढ़ाई रुक जाएगी ।

- यही तो चाहता था मैं कि आप सब सड़क पर आ जाओ।  भीख मांगो।

-  पागल हो गया क्या तू।  इसमें तेरी चाची और रुपेश की क्या गलती थी?

आदित्य की मां क्रोधित होकर कहती है ।

- हां, हो गया हूं मैं पागल।  लेकिन आज नहीं हुआ हूँ मेरी मां।  उस दिन ही हो गया था जिस दिन रात को मैं श्मशान घाट में  पापा की चिता की राख को हाथ में लिया था । आज मेरे पापा की आत्मा को शांति मिलेगी।  क्योंकि वह सारे के सारे कुत्ते अब  सलाखों के पीछे होंगे । चाहे वह टॉमी हो , श्याम सिंह हो या फिर राम सिंह या हो फिर वह पुलिस वाला।  लेकिन सबसे ज्यादा ठंड तो मेरे कलेजे को तब मिली है जब आपके कमीने  भाई और इसके  पति को भी मैं जेल में डलवा दूंगा।

-आदि, चुप कर । कुछ भी बोल रहा है तू।

- तू  चुप कर माँ। बस चुप हो जा । एक भी शब्द बाहर नहीं आना चाहिए। क्योंकि अब यह तेरा आदित्य नहीं रहा।  आई एम दी ब्लडी आदित्य शर्मा।

- प्लीज भैया मान जाओ ना ।

- वाह, आरती अब तू भी इसकी मदद की बात कर रही हो।  तुझे पता है इन सब को जेल में डलवाने के लिए मैंने कितनी मशक्कत की थी।  मैंने उस ढाबे वाले को पीटकर उससे सच  उगलवाया था  जिसके यहां पापा काम करने गए थे । मैंने उससे सभी कॉल रिकॉर्डिंग निकलवाई। अपनी मैम की मदद से हमारी पुरानी वाली सिम की कॉल डिटेल निकलवाई और फिर केस हुआ।  सेठ जी को इन  सब की हकीकत का पता चला तो उन्होंने मुझसे माफ़ी मांगी और अपनी तरफ से इन पर केस किया और आज उन्हें सजा होने वाली है । है न चाची? सही कह रहा हूँ ना मैं?

-आदि यह क्या कह रहे हो बेटा? इतना जहर । तू भी अब उन्हीं के रास्ते पर चल गया । तेरे चाचा के गंदे कर्मों की सजा तेरी चाची व उसके बेटे को तो मत दे।

-काका, आप मुझे कुछ मत समझाओ प्लीज । अब कुछ नहीं हो सकता । कोर्ट कुछ ही देर में उन्हें सज़ा सुना देगी और फिर ये सब 7 साल के लिए कम से कम अंदर जाएंगे।

-इतना जहर बेटा अच्छा नहीं होता है।  जब बुरे वक्त में अपना साथ नहीं देगा तो भला कौन देगा?  तू इतना कठोर क्यों हो रहा है बेटा?

- तू चुप कर माँ।  आरती....

- हां भैया...
आरती कांपते हुए  पूछती है ।

-मां को कमरे के अंदर ले जाकर बंद कर दो और  बोल दो इन्हें कि मैं इनके पति की तरह नहीं हूं जो अपनों की साजिश का शिकार हो जाए । अब पता चलेगा कि आदि  उनका बाप  है। माँ याद है क्या तुझे? मैंने एक दिन तुझे कहा था कि ये  महाभारत होकर रहेगी।  याद आया कुछ या नहीं...

-तू क्या कह रहा है आदि।

उसकी मां रोते हुए कहती है।

- बस यही कि जिस दिन तूने कहा था ना कि तू महाभारत नहीं कर पाएगा।  क्योंकि तू अकेला है।  तो सुन ले । तेरे बेटे ने युद्ध किया ही नहीं बल्कि जीत भी लिया और आज वह सब के सब कमीनी जेल में जाने वाले हैं। लेकिन मेरा एक पैसा तक नहीं लगा।  कैसे? क्योंकि मैंने दिमाग से काम किया। श्री कृष्ण ने भी गीता में कहा है-  जो धर्म का आचरण नहीं करते उनका जवाब भी छल कपट से देना चाहिए। यह गलत नहीं है।"   मैंने भी इन्हें दिखाया है कि मैं भी  छल का जवाब छल से  दे सकता हूं । मैंने कुछ गलत नहीं किया। 

- आदि बाबा हमारी मदद करो।  मैं तुम्हारे पाँव पकड़ लूंगी।

उसकी चाची रोते हुए कहती है।

- मुझ जैसे कमीने इंसान के पांव पकड़ने की जरूरत नहीं है चाची।  कुछ नहीं मिलने वाला।  हा, हा, हा।

-प्लीज भैया इनकी मदद कर दो ना ।

आरती रोकर आदित्य के गले से लिपट जाती है। वह थोड़ा शांत हो जाता है । वह आरती के बालों को सहलाते हुए कहता है- अच्छा, चाची अपना एड्रेस दो। आप अभी कहां हो?

-हाँ, हाँ। देती हूँ । देती हूँ।

वह जल्दबाज़ी में कहती है- लिखो आदि। हम इनके एक दोस्त के घर है।  वार्ड नंबर 12,   गली नंबर 4, नियर रेलवे फाटक।  हनुमानगढ़ टाउन।  तू  बस कुछ पैसों की मदद कर दे।

-आरती बेटा...

- हां,  भैया?

-  हमारे घर में रसोई घर की खिड़की में रखे कटोरे को चाची के बताए गए एड्रेस पर पार्सल कर दे।  दोनों मां-बेटे शाम तक भीख मांगेंगे तो रोज के खाने लायक पैसे तो बन ही जाएंगे।  बड़ी आई मदद लेने वाली।  आई सेड लेट्स गो अवे फ्रॉम हियर  राइट नाउ ।

वह क्रोधित होकर फोन फेंक देता है । जिस कारण फोन टूट जाता है।  लेकिन अब भी उसके स्पीकर से आवाज आ रही थी। 

-आदि....आदि बेटा हमारी मदद करो । हमारी मदद करो।  उसकी चाची के रोने की आवाज आती है। बीरबल और बाकी के सभी सदस्य आश्चर्यचकित होकर देख रहे थे। फोन से आती हुई आवाज को सुनकर आदित्य को  गुस्सा आ जाता है।

-चुप कर.... बस चुप हो जा तू...

वह गुस्सा होकर फोन पर जोर से पाँव रगड़ता है जिससे फोन खराब हो जाता है और उसकी चाची की आवाज आनी बंद हो जाती है। 

- यह क्या किया बेटा तूने । मेरा फोन तोड़ दिया ।

बीरबल मायूस होकर कहता है।

-आरती बेटा अंदर से पांच हजार रूपये  बीरबल चाचा को दे दो । ताकि वह नया फोन ले सकें ।  मैं बाहर जा रहा हूं और हां अपनी मम्मी जी को बोल दो की ऐसे कमीने लोगों के लिए किसी भी तरह की भावना अपने मन में ना रखें। अगर किसी ने इनकी घर में बात भी की तो मैं  घर से निकाल दूंगा। अंडर स्टूड?

-जी भैया।

आरती कांपते हुए कहती है।  वह घर से बाहर चला जाता है। सभी निराश होकर उसकी तरफ देख रहे थे। वह शेर की भांति घर से बाहर निकलता है।   आखिर शेर ही तो था वह।  घायल शेर । तभी तो बदला भी भयानक तरीके से लिया।

क्रमश....

कहानी इस रविवार तक पूर्ण हो जाएगी।

विशेष- यह कहानी अब कुकु fm पर रिलीज होने वाली है।  अगर किसी को सुननी हो तो टॉप की RJ ( रूबी जी ) की आवाज में सुन सकते हैं। मुझे खुद उनकी आवाज में कहानी बहुत अच्छी लगी। जैसे ही रिलीज होगी आपको बता दिया जाएगा। इसके अतिरिक्त यह पेपर बैक (पुस्तक ) के रूप में भी आएगी। अगर आपको खरीदनी हो तो अमेज़न से मिल जाएगी। लेकिन इस उपन्यास से पहले मेरा उपन्यास नाग कन्या एक रहस्य आएगा । पेपर बैक में। अतः तैयार रहिए। 

भाग-47

करीब दो माह बाद की बात है । आदित्य का फर्स्ट ग्रेड टीचर भर्ती में अंग्रेजी साहित्य से सलेक्शन हो गया था।  लेकिन जॉइनिंग लेटर सीट अभी तक वितरित नहीं की गई थी।  इस कारण वह इंतजार कर रहा था।  इधर पायल व परमिंदर ( पम्मी )की दोस्ती काफी गहरी हो चुकी थी।  पम्मी मन ही मन पायल को बहुत चाहने लगा था । इस दौरान वह पायल के भाई भूपेंद्र की शादी में शरीक होने भी गया था । उन दोनों की  इंजीनियरिंग पूर्ण हो चुकी थी और वे दोनों ही नौकरी पाना चाहते थे । पायल एक दो जगह इंटरव्यू दे चुकी थी।  जहां उसका परिणाम आना बाकी था।  किंतु पम्मी ने कहीं भी इंटरव्यू नहीं दिया था । क्योंकि उसके पिताजी का पहले से ही काफी बड़ा बिजनेस था।  लेकिन उसकी व पायल की दोस्ती के मध्य पैसों की दीवार कभी भी नहीं आई । वह अपने मन की बात पम्मी को ही बताती थी। पम्मी को उसका दु:ख अच्छा नहीं लगता था।  इस कारण वह पायल को शादी के लिए मनाना चाहता था।  इधर एक रोज उसने पायल को एक रेस्टोरेंट में लंच के लिए बुलाया।  वह अपने मन की बात उसे बताना चाहता था।

- तुमने मुझे यह क्यों बुलाया है पम्मी?

-  सरप्राइज है बाबा ।

-अच्छा।

-हां, चलो अपनी आंखें बंद करो ।

-अरे,  ऐसे ही बता दो ना.।

- नहीं, बोला ना पहले आंखें बंद करो।

- अच्छा ठीक है।  यह ले कर ली।

पायल ने जैसे ही अपनी आंखें बंद करी । पम्मी घुटनों के बल नीचे बैठकर एक अंगूठी निकालता है।

- विल यू मैरी मी पायल?

-ये  क्या कर रहे हो तुम?

- वही जो मुझे पहले ही कर देना चाहिए था।

- पायल  हो गया है  क्या तू? तुझे अच्छे से पता है कि मैं किससे प्यार करती हूं।

पायल क्रोधित होकर कहती है।

- जानता हूं पायल।  लेकिन क्या करूं तुम्हें दुखी भी तो नहीं देख सकता ना । प्लीज एक्सेप्ट माय प्रपोजल।

- हरगिज़ नहीं।  मैं आदि से प्यार करती हूं और यह तुम भली-भांति जानता है ।

-हां, जानता हूं । लेकिन तुम यह भी मत भूलो कि उसे तुझे छोड़कर गए हुए 7 साल से भी ज्यादा हो गए हैं।  अब तो उसने शायद शादी भी कर ली होगी।

- नहीं! ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता ।

-अगर ऐसा नहीं है तो वह तुझसे मिलने क्यों नहीं आया? अब तू तो नहीं जानती कि वह कहां रहता है? लेकिन वह तो तेरे बारे में जानता ही है ना!

- हां, जानता है । लेकिन उसकी हालात खराब भी तो हो सकती है ना!

- हाँ,  जानता हूँ।  लेकिन 7 साल?  पायल 7 साल में तो बहुत कुछ बदल सकता है।  क्या उसके पास अभी इतने रुपए भी नहीं बने कि वह तुझसे  एक बार मिलने आ सके?

पम्मी  की बात पायल को झंकझोर  रही थी । उसके मन में आदित्य को लेकर अनेक शंकाएं जन्म ले रही थी ।

-पायल मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूं और हमेशा खुश रखूंगा।  जो अतीत गुजर गया उसके बारे में सोच कर के क्यों रोना?  वैसे भी पहला  प्यार सबको कहां मिलता है?

- तुम चुप करो यार ।

पायल की आंखों से आंसू आ जाते हैं।  वह रेस्टोरेंट से  बाहर आ जाती है।  उसने तुरंत ऑटो  लिया और अपनी हॉस्टल की तरफ चली गई । अगले दिन उसे अपने घर जाना था इस कारण वह आराम करने के लिए लेट गई । शाम के 5:00 बजने वाले थे । वह कभी आदित्य के बारे में सोच रही थी तो कभी पम्मी के तर्कों का निरीक्षण कर रही थी । उसके मन में सवालों का बवंडर उठ चुका था।  लेकिन उसके पास पम्मी के सवालों के जवाब नहीं थे ।

शाम होने वाली है । आदित्य एक नीम के पेड़ के नीचे बैठा खेत  में बाजरे की फसल को निहार रहा है।  वह बेहद निराश नजर आ रहा है । उसे अपने पिताजी की याद आ रही है।  उसकी आंखों से आंसू झलक रहे थे।  जिम्मेदारियों ने उसे इतना कठोर बना दिया था कि वह सबके सामने रोना तक भूल गया था । आखिर घरवाले सोचते कि आदि दिल का कमजोर है।  वह हार मान लेता है।  वह शेर की तरह बहादुर नहीं है । लेकिन हकीकत उसके उलट थी ।  ऐसा कोई नहीं था जिससे वह अपना दर्द बांट सके।  हालांकि  आरती, अर्चना या अंकिता उसके करीब जरूर थी । किंतु उसके रोने से आरती दुखी होगी यही समझ कर वह अपनी भावनाओं को दबा लेता था । वैसे भी आरती नटखट और मजाकिया थी।  इस कारण वह नहीं चाहता था कि वह अपना स्वभाव छोड़ कर रोने लगे।  वह निराशावस्था  में ही पश्चिम दिशा की तरफ देखता है।  सूरज धरती की गोद में सोने के लिए तैयार था । अचानक उसके फोन पर अर्चना की कॉल आती है।

- हेलो,  आदि । आज एलॉटमेंट लिस्ट आ गई है । तुम्हारा नाम किस स्कूल में दूं?

-कहीं भी दे दे यार।

- क्या हुआ तुझे? तू उदास है?

- ना तो।

- अच्छा मुझे लग रहा है । चल बता किसकी याद आ रही है।  अगर मेरी याद आ रही है तो कल ही आ जाऊंगी।

- अच्छा, हां आ जा।

-ओके मेरे पगलू।

- ओके फिर आ जाना कल मुझसे मिलने।  आई मिस यू बाबा।

- अरे, वाह इतना प्यार  कैसे फूट पड़ा?

- कुछ नहीं बस ऐसे ही।

- अच्छा,   कोई न तू बता कौन सी स्कूल में दूँ नाम?

- यार गांव में नहीं रहना चाहता । कहीं ऐसी जगह दे जिस जिले में बहुत हरियाली हो । जन्नत की सी शांति छाई हुई हो।  चारों ओर पानी ही पानी हो । फूलों से भरे बाग बगीचे हों।

- अच्छा फिर तो उदयपुर दे दूं?

-नहीं यार । किसी को नहीं जानता वहा।

-अच्छा,अजमेर ।

- ना...

-तो फिर चित्तौड़गढ़ दे देती हूं । हरा भरा तो है यार ।

-तुम भी ना ।

-अरे गुस्सा क्यों कर रहा है । अच्छा एक काम करती हूं।  हनुमानगढ़ दे दूँ

हनुमानगढ़ का नाम सुनते ही आदित्य का हाथ कांपने लगता है । उसके हाथ से फोन छूट जाता है ।

-आदि...आदि... बोलो हनुमानगढ़ दे दूँ? वह जल्दी से फोन उठाता  है ।

-दे दे..

-तू रो रहा है आदि?

- कितना बुरा हूं मैं बाबा।  पापा के गुनहगारों को सजा दिलवाने में इतना खुदगर्ज बन गया था कि मैं अपने प्यार को ही भूल गया था । उसे भूल गया था जिसे मैं बेइंतहा मोहब्बत करता था अर्चना।

- भुला  कहां है पागल । वह तो तेरी जान है।  तेरी धड़कन में है । 7 साल से  भले ही मैं तुम्हारे साथ रह रही हूं आदि।  लेकिन इन 7 सालों में ऐसा कोई दिन नहीं था जिस दिन तुम्हारी आंखों में उसके लिए आंसुओं में  उसके प्रति प्यार ना झलका हो।   आदि बाबा अब वक्त आ गया है अपने प्यार को पाने का । जाओ और मना लो उसे । कुछ दिन नाराज रहेगी।  लेकिन फिर मान जाएगी।

- लेकिन तुझे लगता है मैं उसके लायक हूं । और हाँ मैंने अपनों को ही सजा दिलवा दी है।

- तो क्या हुआ? उन्होंने तुम्हारे और तुम्हारे पापा के साथ भी तो गलत किया था ना।  तूने कुछ भी गलत नहीं किया आदि।  ज्यादा मत सोच।  जा और अपने प्यार को पा ले ।

- लेकिन...

- देखो अब लेकिन लेकिन कुछ नहीं जानती  मैं । मैं अभी हरिपुरा के सरकारी स्कूल का   नाम दे रही हूं । जैसे ही जॉइनिंग लेटर आ जाए तो चुपचाप वहां चले जाना और हां आज रात को रोना मत।  मैं कल आ रही हूं तुझसे मिलने।

- ओके बाबा आ जाना ।

अर्चना ने जैसे ही फोन रखा । आदित्य फूट-फूट कर रोने लगा।

क्रमशः...

भाग- 48

`` हा, हा, हा, बेटा पम्मी लड़की तो बहुत तो अच्छी ढूढी है तूने. देखो भई रामवतार थी. हमे आपकी लड़की पसंद है. हम दहेज़ में भी कुछ नहीं मांग रहे है. हमें तो बस आपकी लड़की ही चाहिए. पमिन्द्र के पिताजी खुश होकर कहते है.
``जी..``
``देखिए! जी.. जी मत कीजिए. दोनों बच्चे साथ पढ़े हुए है. आप पैसे की भी चिंता ना करे. हमारा बेटा जो चाहता है. हम वैसा ही करेंगे. यह एक सिम्पल शादी चाहता है. हम बस आठ दस लोग आएँगे. शादी होगी. फिर हम पार्टी वार्टी देते रहेंगे.``
पमिन्द्र के पिताजी लगातार बोल रहे थे. पायल के पिताजी उनकी बातें को ध्यान से सुन रहे थे. पायल का चेहरा उतरा हुआ था. वह बेहद दु:खी थी. उसे नहीं पता था कि पम्मी उसे विना कहे उसके घर रिश्ता लेकर आ जाएगा. वह मन ही मन गुस्सा थी. तो वही उसके मन में पम्मी के सवाल कोंध रहे थे.
``बोलो, बाबा हाँ कर देते है.``पायल का भाई भूपेश बोलता है. पायल की माँ बेहद खुश थी.
`` हाँ, देखीए आपके बेटे को देखते ही मुझे पता चल गया था कि यह मेरी पायलिया के लिए बिलकुल सही है.`` पायल की माँ मुस्कुराते हुए कहती है.
``तो समधन जी देर किस बात की? सगाई पक्की करें? आप तारीख बता दें.``
``लेकिन पापा मैं पहले पायल से बात करना चाहता हूँ.```
``अच्छा, पम्मी. तुम्हारी मर्जी बेटा.``
वह पायल को हाथ से इशारा करता है. पायल उसके पीछे जाती है. वे उनके घर के पीछे की तरफ बने मकान में जाते है.
``तुम ये सब क्यों कर रहे हो पम्मी?`` पायल उदास होकर पूछती है.
``ताकि तुम कभी भी दुखी न रहो. पायल मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ.``
``लेकिन मैं तुमसे प्यार नहीं करती पम्मी.``
``तो क्या हुआ पायल? करने लग जाओगी. मैं वादा करता हूँ, पायल. मैं तुम्हे हमेशा खुश रखूंगा. तुम्हारी इच्छा के बगैर तुझे छुऊंगा भी नहीं.
``लेकिन?``
``मैं मानता हूँ. पायल की तू आदि से बहुत प्यार करती है. लेकिन पायल जो लड़का तुझे एक कॉल तक नहीं कर सका भला वो क्या तुमसे प्यार करता होगा? बताओ, तुझे पता है?``
``क्या?``
``उसने सेठजी को सबूत भेजकर सबको सजा दिलवाई थी. तो क्या वो तुझे एक कॉल तक नहीं कर सकता था?``
``पर?``
- पर वर कुछ नहीं पायल. तुम फालतू में तकलीफ झेल रही हो उसकी खातिर. अगर उसे आना होता तो वो जरुर आता लेकिन उसे तुम्हारे पास नहीं आना है. क्यों? क्योंकि वो अपना घर बसा चुका होगा!``
- नहीं ऐसा नहीं हो सकता.
- ऐसा ही हुआ है. पायल अगर नहीं हुआ होता तो वो जरुर आता?
- मैं करता अर्चना उसे कॉल. मैं उसे फिर से प्यार का इजहार करता. लेकिन अर्चना मैं वो आदि नहीं रहा हूँ अब. पापा का बदला लेने में मैं इतना खुदगर्ज हो गया था कि अब मेरे अंदर प्रेम की भावनाएं मर चुकी है.
- तुम पागल हो गए हो क्या आदि? अब जब अपने प्यार को फिर पाने का वक्त आया है. तब तुम ऐसी बातें कर रहे हो. आदि... बाबा तुझे जाना होगा. अपने लिए नहीं तो कोई बात नहीं लेकिन तुझे पायल के लिए जाना होगा. सच्चे प्यार को साबित करने के लिए जाना होगा.
- पर?
- पर... वर कुछ नहीं. तुम अब भी उसके लायक हो. बस गुस्सा करेगी. थप्पड़ मारेगी. लेकिन खा लेना. पर प्यार करती है वो तुमसे. आदि मौका मत गंवाओ.
- लेकिन अर्चना अब मैं उसके प्यार के काबिल नहीं रहा. मैं मुस्कुराना तक भूल चुका हूँ. मेरे अपने ही मुझ जैसे राक्षस से डरते हैं. वो दुआ करते है की मैं मर जाऊं.
- तू पागल हो गया है क्या? कुछ भी बोल रहा है. तूने मुस्कुराना छोड़ दिया तो क्या हुआ? वापस सीख जाएगा और आंटी, आरती, अक्षय सब तुझसे प्यार करते है बाबा. पागल मत बनो.
- लेकिन..
- लेकिन वेकिन कुछ नहीं. चुप चाप मेरी बात जानो. एक महीने बाद तेरा जोइनिग लेटर आने वाला है. तुझे जाना ही होगा, समझे?
- ओके..
आदित्य बेमन से अर्चना को कहता है.
-अब गोरिल्ला की तरह मुँह मत बना. चल एक प्यारी सी झप्पी दे दे..
अर्चना मुस्कुराते हुए हाथ फैलाती है.
आदित्य अर्चना से गले लगता है. उसकी आँखों में आंसू आ जाते है.

करीब एक माह बाद

आसमान में बादल छाए हुए है. ऐसा लग रहा है जैसी किसी के स्वागत के लिए उतारू हो. हवा में भी खुशबु फैली हुई है. बागो में अमरुद, अनारसब लगे हुए है. उतरी हवाओं का दौर चल रहा है. सुबह का वक्त है इस कारण सरसों के फूलों पर ओंस की बूंदे जमी हुई है. खेतो में छाई हरयाली किसी जन्नत से कम न थी.
इधर आदित्य को अर्चना बस स्टैंड तक छोड़ने आती है.
-ओके, आदि बेस्ट ऑफ़ लक. बंदरिया को मनाने के बाद एक किस करते हुए फोटो भेजना.
- पागल है क्या?
- बस चाहती हूँ कि बस एक लिपलोक तो हो ही जाए. अच्छा सा फ़िल्मी अंदाज वाला.
- तुम सच्ची पागल हो.
- अच्छा, मुँह मत बुलाओ मेरे अनरोमांटिक दोस्त. बाय टेक केयर.
- ओके यू टू...
आदित्य इतना कहते हुए बस में चढ़ जाता है.
करीब एक घंटे बाद वह बीकानेर पहुँच जाता है. कुछ ही समय पश्चात वह पल्लू पहुँच जाता है. वही पुराना बस स्टैंड ``दाल ले लो दाल... चने की दाल.चले की दाल.`` वाली मधुर ध्वनी उसके कानो पर पड़ती है. जब वह कभी छुट्टियों में दादाजी से मिलने या शादियों में शरिख होने आता था. यही ध्वनी उसके कानो पर पड़ती थी जब वह पल्लू पहुँचता था. उसके दिमाग में अनगिनत सवाल उमड़ रहे थे. वह सोच रहा था कि क्या पायल सही सलामत होगी? क्या उसकी शादी नहीं हुई होगी? ऐसे ही सवालों के घेरे में उलझा उसका दिमाग ये सब सोच रहा था. अचानक उसके कानो पर किसी की ध्वनी सनाई देती है.
- चले की दाल.... दाले.
- भैया.. दस की देना.

आदित्य ने मुस्कुराते हुए दस रुपये का नोट निकाला और उस दाल वाले को थमा दिया।
माथे पर चंदन का तिलक लगाए, कंधे पर लाल रुमाल डाले वह दाल बेचने वाला व्यक्ति उसके सामने खड़ा था।

- यह लो बाबू ।
वह आदित्य को दाल पकड़ा देता है।  वह कुछ दाने खाता है किंतु उसका मन नहीं लग रहा था।  एक लड़की जो कि करीब 20 वर्ष की थी ।उसके पास बैठी हुई थी।

- घोर कलयुग रे बाबा घोर कलयुग ।

-क्या हुआ मैडम?

-क्या हुआ अब आपको यह भी बताना होगा कि क्या हुआ? मेरे पास बैठे अकेले चने की दाल खा रहे थे और पूछा तक नहीं.

- तो मैडम मैं क्यों पूछूं?

- अच्छा यही संस्कृति है क्या हमारी ? हम भारतीय हैं.  हम खुद खाना खाने से पहले खाना खाने का पूछते हैं पहले.  और आप पाश्चात्य सभ्यता का अनुसरण कर रहे हैं.

- मैडम,  आई एम सॉरी।  मुझे वैसे भी भूख नहीं है।  आप खा लीजिए।  यह लो ।

आदित्य उसे दाल पकड़ा देता है।

-अरे,  आप तो गुस्सा हो गए।  मैं तो मजाक कर रही थी।  पूरे 3 घंटे से आप की बगल में बैठी हुई हूं । ना आप हिले ना  डुले। ना आपने अपना चश्मा उतारा और ना साफ किया।  ना अपने बालों में हाथ घुमाया।  मतलब बंदा शिव का इतना बड़ा उपासक की एक बला की खूबसूरत लड़की को कुछ भी नहीं समझ रहा । हा ,हा , हा ।

-अच्छा मजाक है ।

-और नहीं तो क्या यार । मेरी ये ट्रिप तो सबसे बेकार चली गई ।

-अच्छा , सॉरी ।

-काहे का सॉरी।  अमृतसर से हूं । राजस्थान घूमने आई थी।  बीकानेर का किला देखा।  सब देखा।  अब जब जा रही थी तो आप मिले ।

-ओह,  सॉरी।

- अब सॉरी ही बोलोगे  या कुछ बताओगे भी अपने बारे में ।

वह लड़की उसके साथ बतियाने लगती है।  शुरुआत में आदित्य असमंजस की स्थिति में था।  किंतु बाद में वह सामान्य हो जाता है । एक के बाद एक बस स्टैंड आते गए और गाड़ी शीघ्र ही रावतसर जाकर खड़ी हुई ।

-अच्छा अब मुझे उतरना होगा।

- ओह, शीट, मतलब यहां तक ही?

- हां।

- अच्छा, कोई नहीं।  बेस्ट ऑफ लक बडी।

- यू टू।  एंड थैंक यू सो मच।

आदित्य अपना बैग उठाता है और शीघ्र ही उसके कदम रावतसर बस स्टैंड पर थे । शाम के 4:00 बजने को थे। आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे। उसकी नजर बस स्टैंड पर पड़ती है तो वही पुराने लम्हे याद आने शुरू हो जाते हैं। उसे ऐसा महसूस हो रहा  था मानो  वह काफी सालों बाद जिंदा हुआ है।  बचपन की सारी स्मृतियां एक-एक करके वापस आ रही थी।  उसके चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट थी।  उसने मटोरिया वाली ढाणी तक जाने के लिए एक लोकल बस पकड़ी।  कुछ ही देर में गाड़ी  चल पड़ी।  वहीं पुराना रास्ता । वही सरसों व गेहूं की लहलहाती  फसलें।  सड़क के किनारे वन विभाग द्वारा अधिकृत सफेद व लाल निशान किए हुए शीशम व सफेदा के पेड़।  उसकी यादें ताजा हो गई।  उसे रोना तो आया नहीं।  लेकिन बाकी कुछ रहा नहीं।  उसने अपनी धूप का चश्मा उतारा और नंगी आंखों से काले बादलों  संग लुका छिपी का खेल खेलते सूरज को देखना प्रारम्भ कर दिया। गाड़ी ने राजस्थान नहर को पार किया । हिलोरे खाते पानी का दृश्य उसे मंत्रमुग्ध कर रहा था।

- मटोरिया वाली ढाणी   दी सवारियां अपना सामान चक लो भई ।

कंडेक्टर  राजस्थानी भाषा को  पंजाबी भाषा के साथ मिलाकर सभी सवारियों को समान उठाकर खिड़की के पास आने को कहा । आदित्य ने अपना सामान उठाया और गाड़ी से नीचे उतर गया । सुनसान पड़ा बस स्टैंड भी उसे प्यारा लग रहा था।  एक पेड़ के पास में खुली गाय घास चर  रही थी।  वह मुस्कुराया और पैदल ही गांव की तरफ चल पड़ा । उसके कंधों पर भारी भरकम बैग  था।  अपने प्यार से मिलने की चाह में उसे वह भार भी ज्यादा नहीं लग रहा था।  कुछ ही देर में उसे एक बाइक मिल जाती है । वह जल्द ही हरिपुरा पहुंच जाता है।  वही पुरानी गलियां जहां कभी वह पायल  के साथ घूमा करता था।  हालांकि मकान जो कभी कच्चे  हुआ करते थे अब वे  पक्के  बन चुके थे।  गलियों  जहां गन्दी दिखाओ देती थी । अब वे साफ-सुथरी दिखाई दे रही थी।। सड़कें  जो टूटी फूटी थी।  वह अब पुनः बन चुकी थी।  गांव में काफी विकास हो चुका था।  वह थोड़ा आगे बढ़ता है तो गांव का बाजार आता है।  कभी जो बाजार छोटा  था अब वह काफी बड़ा हो चुका था । उसकी नजर अचानक एक चूड़ी वाली दुकान पर नजर पड़ती है। उसे  बखूबी याद था  कि एक बार उसने  इसी दुकान  से पायल के लिए चूड़ियां खरीदी थी।  अतीत के सारे दृश्य उसके सामने एक -एक करके आ रहे थे।  कुछ ही देर में उसके पांव गांव की चौपाल पर आकर रुके।  जो बरगद का पेड़ कभी बड़ा वह हरा भरा था आज उसकी एक-एक डाल सूख चुके थे । उसे बेहद बुरा  लगा।

अचानक उसकी नजर  रामु काका की दुकान पर पड़ती है।  दुकान पूर्णतया बदल चुकी थी।  वह पक्की बन चुकी थी।  दुकान पर छोटे से लकड़ी के दरवाजे की जगह अब लोहे का सेंटर लग चुका था । आदित्य की नजर दुकान में काम कर रहे राम काका पर पड़ती है । वे अब कुछ बदल चुके थे।  सिर के बाल जो कभी थोड़े बहुत काले थे । अब वे पूर्णतया सफेद हो चुके थे । वह दुकान की तरफ अपनी बचपन की यादों को पुनः ताजा करने के लिए अपने कदम बढ़ाता है।  दुकान के आगे जाकर जैसे ही वह खड़ा हुआ तो राम का की नजर उसके ऊपर पड़ी । कुछ ग्राहक चाय पी रहे थे।

- क्या चाहिए बाबू आपको ?

राम काका  पूछते हैं।

- मैं... मैं  मुझे नहीं पहचाना?

- नहीं,  बाबू जी आप कौन?

आदित्य को कोट-पेंट में देखकर वे उसे पहचान नहीं पाते हैं।  ऊपर से आदित्य अब काफी बदल चुका था।

- काका मैं....  आ..

-अरे, आदि तू। बाबा इतना सुंदर । हट्टा-कट्टा नौजवान हो गया रे तू तो।

रामू काका आदित्य को दौड़ कर गले लगाते हैं।

- अरे,  मेरा बेटा।  मेरा शेर लौट आया।  बहुत याद आई तेरी।

रामू काका उसकी पीठ थपथपाते हैं और उसका माथा चूमते हैं।  आदित्य रामु  काका के पाँव छूता  है ।

-और बता बेटा पापा मम्मी सब ठीक है?

-पापा तो...

आदित्य फ़फ़क पड़ता है । उसकी आंखों से बहते आंसू इस बात के परिचायक थे कि अब उसके पापा नहीं रहे ।

-रो मत मेरे बच्चे । तूने सब ठीक कर दिया है।  है ना?

आदित्य हां में अपनी गर्दन हिलाता है ।

वाह, मेरे शेर । मुझे पता था तू सब ठीक कर देगा।  जिस दिन तू यहां से गया था । उस दिन में और आज के दिन में बहुत अंतर है बेटा । तू तो शेर निकला रे।  शेर । जो घायल जरूर हो सकता है लेकिन युद्ध में हार नहीं सकता । शाबाश, चल आज तेरे आने की खुशी में मैं तुझे कचोरी खिलाता हूं ।

रामू काका उसे एक कचौड़ी देते हैं । वह एक निवाला लेता है।

- मुझे आपकी बहुत याद आई काका।  वही पुराना स्वाद ।

-मुझे भी बहुत याद आई तेरी बेटा । वैसे बाकी के सारे के सारे अच्छे हैं ना घर पर।  आरती, अक्षय और तेरी मम्मी।

- हां, काका।  अच्छा वैसे पायल से बात हुई आपकी?

आदि ने वह प्रश्न पूछा जिसका जवाब वह  जानना चाहता था।

- पायलिया?

- हां, काका ।

-बेटा,  वह तो 2 महीने से अभी आई नहीं है । पहले एक बार अपने पापा के साथ आई थी । लुधियाना पढ़ती है ।  रूखी सूखी सी नजर आ रही थी।  तू जाए तो उसे मिल कर जाना।

अच्छा, काका जरूर । मैं चलता हूँ।

- ओके बेटा

वह अपना बैग उठाता है। 
वह रामू काका के पांव पुनः छूता  है और आगे बढ़ जाता है । जैसे जैसे कदम उसके ढाणी की तरफ बढ़ रहे थे उसके हृदय की धड़कन तेज हो रही थी । शीघ्र ही उसके कदम उस शीशम के पेड़ के नीचे आकर रुकते हैं।  जिसके नीचे वह और पायल कभी बारिश से बचने के लिए खड़े हुए थे आसमान में बादल ऊपर आ चुके थे और ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो वो बरसों से प्रेम की आस में दिल रूपी सूखी जमीन को भिगो कर ही मानेंगे।

क्रमशः.....

भाग-49  (अंतिम भाग)

अब तक- आपने पढ़ा कि कैसे आदित्य ने सारी परेशानियों से पार पाकर वह अपने प्यार पायल को पाने के लिए हनुमानगढ़ आता है। वह फॉर्म की तरफ जा रहा होता है। अचानक ही उसकी नजर उस पेड़ पर पड़ती है जिसके नीचे आदित्य और पायल एक बार बारिश से बचने के लिए खड़े हुए थे। उसके दिमाग में बहुत से प्रश्न आते हैं। ठीक वैसे ही आप भी यही सोच रहे होंगे कि क्या पायल और आदि मिल जाएंगे, या नहीं?  तो इसका जवाब जानने के लिए ये अंक पढ़ें-

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भाग-49 (अंतिम)

वह उस पेड़ की तरफ एकटक देखता है । उसकी आंखों से बहते आंसू इस बात के परिचायक थे कि आज वह कठिन परिस्थितियों का सामना करके शेर की तरह वापस लौट जरूर आया था । किंतु जो तकलीफ उसने पायल के बिना सही थी वह बेहद दर्दनाक थी।  इस दौरान उसने अपने पिताजी को खोया, अपने लड़कपन की मुस्कुराहटों को खोया।  हंसना तो वह भूल ही चुका था । लेकिन जो प्यार कहीं चिंगारी रूप में उसके हृदय में धधक रहा था।  वे अब लपटें बन चुकी थी।  उसने पेड़ की झुकी हुई डाल की पत्तियों को अपने हाथ से महसूस किया । ताकि वह वही पुराना अहसास वापस जगा सके।  वह मुस्कुराया और आगे बढ़ गया । शीघ्र ही उसके कदम जंगल की सीमा पर पड़े। उसकी नजर उस झाड़ के पेड़ पर पड़ी । वह मंद-मंद मुस्कुराया।  उसकी लड़कपन की सभी यादें ताजा हो जाती है।  उसे याद आता है कि कैसे वह पायल को चुड़ैल का बहाना बनाकर सताता था । कितने प्यारे लम्हे थे वे । जब वह पायल के साथ विद्यालय जाता था । कितना सुकून था उसकी बातों को एकटकी लगाकर सुनने में।  वह मुस्कुराया और आगे बढ़ा।  आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे।  उत्तरी हवाएं तेज तेज चल रही थी । शाम के करीब 4:00 बजने को थी किंतु ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो  6:00 बज गई हैं। उसे अपनी प्रेमिका से मिलने की जल्दी इतनी थी कि उसके कदम अपने आप जल्दी-जल्दी उठ रहे थे।  किंतु अचानक ही उसकी नजर हरे-भरे पत्तों से आच्छादित एक पेड़ पर गिरती है । यह वही पेड़ था।  जिस पर कभी आदित्य ने पायल से प्यार होने का ऐलान किया था।  उसकी नजर उस दिल पर पड़ती है जिसे उसने उसके तने पर बनाया था । वृक्ष की छाल ने  उसके चारों ओर से बढ़ना प्रारंभ कर दिया था । इस कारण वह दिल अब और भी साफ नजर आ रहा था । उस पर लिखा नाम "लंगूर लफ्ज़ बंदरिया" भी  मौसम की मार को झेल कर डटा हुआ था । वह दौड़कर उस पेड़ की तरफ जाता है । उसके गले की टाई थोड़ी टाइट थी । वह उसे थोड़ा ढीला कर लेता है । वह जाकर उस दिल को अपने हाथों से महसूस करता है । उसने जमीन की तरफ देखा तो वहां अब किसी के भी कदमों  के निशान नहीं थे।   वह दुखी हो जाता है । उसे डर था कि कहीं पायल की शादी तो नहीं हो गई हो!  उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं । वह कुछ ही देर में वापस पायल के घर की तरफ बढ़ जाता है।  शीघ्र ही उसके कदम सेठ जी के फॉर्म में पडते हैं । अनार, अमरूदों से भरे पड़े बाग बगीचे उसे बेहद अच्छे लगते हैं।  वह जल्दी-जल्दी आगे बढ़ता है।  कुछ ही देर में उसके कदम पायल के घर के आगे आकर रुकते हैं।  वही पुराना घर जहां कभी वह पायल के साथ हंसता था । मुस्कुराता था । खेलता था।  उसकी नजर उस गाय पर पड़ती है जिसका पायल और उसने मिलकर कभी दूध निकाला था ।

-किससे मिलना है आपको?

- अचानक ही उसे किसी औरत की आवाज सुनाई दी । वह पीछे मुड़ता है।

- मैं पूछ रही थी किससे मिलना है आपको?

उसकी नजर एक महिला पर पड़ती है जो करीब 25 साल की थी।  उसका पेट थोड़ा सा उभरा हुआ था । शायद कुछ माह बाद ही खुशखबरी आने वाली थी।  वह झूठी मुस्कुराहट मुस्कुराता है ।

-कमला आंटी हैं?

-मांजी आपको कोई बुला रहा है?

- कौन है बेटा?

सिर पर आधा पल्लू लिए पायल की मां बाहर आती है।  आदित्य की नजर उनके ऊपर टिकी रह जाती है।

- बेटा, आप कौन?

-मैं...  मैं आदि।

-अरे,  आदि तू... सरोज बेटा तुम चिमटा लेकर आओ।

- क्यों मांजी।

- इस गधे का सिर फोड़ दूंगी मैं । कितना वक्त लगा दिया आने में।  एक बार भी तुझे हमारी याद नहीं आई।  इतना खुदगर्ज कैसे हो गया आदि तू?

-नहीं आंटी...  आंटी प्लीज ।

आदित्य रोते हुए पायल की  मां से गले लग जाता है और वह अपनी पूरी कहानी सुनाता है।  मुकेश की पत्नी सरोज और पायल  की मां भी दोनों रोने लग जाती हैं।

-अच्छा तू तो मेरा शेर है।  रोते नहीं बेटा।  चल बैठ । सरोज बेटा चाय लेकर आ।  मेरे आदि को मीठी चाय पसंद है ।

-आप सब अब तक नहीं भूले कि मुझे मीठी चाय पसंद है?

- कैसे भूलती  पागल? आखिर आंटी जो हूं तेरी।

वे आदित्य से कुछ देर बातचीत करती है।

- अच्छा कितने दिन रहेगा हमारे पास?

- कुछ दिन तक तो रहूँगा आंटी ।

आदित्य पायल के बारे में सोच रहा था।  वह अपने मन की बात पायल की मां को बताना नहीं चाहता था ।

-यह लो चाय।

सरोज आदित्य को चाय पकड़ाती है।

-अच्छा, आंटी रामवतार काका कहां है?

-वह तो खेत में है । काम करने गए हुए थे।  शाम तक लौट आएंगे ।

-और भूपेश भैया?

- वह आजकल लुधियाना रहता है रुई की फैक्ट्री में ।

-अच्छा ।

उसने गहरी सांस ली । वह पायल के बारे में पूछना चाहता था।  उसने इससे पहले अपने भगवान को याद किया।

- और मांजी  पायल?

- वह? वह तो ससुराल गई हुई है । अभी आने वाली ही  होगी।

-उहू.... उहू...

वह खांसता है और उसके हाथ-पांव कांपने लग जाते हैं।  जो सपना उसने देखा था । वह पल भर में टूट गया । वह कांपते हाथों से चाय के कप को नीचे रखता है और फोन को झूठा ही कान पर लगाते हुए बोलता है।

- क्या! अच्छा अभी आ रहा हूं।

- क्या हुआ बेटा?

-आंटी मुझे अभी हनुमानगढ़ जाना होगा।  मेरे दोस्त की तबीयत खराब हो गई है।  बाय।

- लेकिन बेटा चाय तो पी जाता।

- फिर कभी।  आप पायल को और सब को बोल देना । ओके
  मैं चलता हूं ।

-अरे,  बेटा...

वो पीछे से  आवाज देती है किंतु वह घर से निकल जाता है।

- अरे,  बेटा पायल से तो मिलकर चले जाते।  अभी आ रही होगी ।

-नहीं मैं लेट हो रहा हूं । मेरी बस निकल जाएगी।  फिर कभी मिल लूंगा।  बाय ।

आदित्य ने दौड़ना प्रारंभ कर दिया।  हालांकि उसके कदम लड़खड़ा रहे थे।  वह पूर्णतया टूट चुका था । उसके हाथ-पैर कांप रहे थे । जिस लड़कपन के प्यार को पाने के लिए वापस आया था । वह खत्म हो चुका था।  उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं । आकाशिय बिजली कड़क रही थी।  चारों ओर अंधेरा छा गया । आदि की जिंदगी भी अब अंधकारमय हो गई थी। वह  दौड़ता हुआ जैसे ही जंगल में प्रवेश करता है।  उसे वह पेड़ दिखाई देता है।  उतना ही गहरा,  छायादार।  जितना कि पहले हुआ करता था।  लेकिन अंतर इतना था कि आज पायल उसके साथ नहीं थी।

- आई लव यू पायल... आई लव यू ... आई लव यू सो मच।  आई एम सॉरी । मैं इतना लेट हो गया।  पायल मैं मर जाऊंगा।

उसकी चीख सुनसान जंगल को हिला देने वाली थी।  शीघ्र ही वह शांत हो जाता है और उस दरख़्त से लिपटकर रोना प्रारंभ कर देता है।  उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।

- ओए, लंगूर।

अचानक उसके कानों पर जानी पहचानी सी  आवाज पड़ती है। वह  पीछे की तरफ देखता है तो उसके सामने वही पायल थी  जिससे वह प्यार करता था।  इतना कि वह आज उसके लिए आया था।  किंतु आज पायल उसकी  नहीं थी । वह काफी बदल चुकी थी । जो कभी दो जुड़े बांधती  थी।  आज उसने एक जुड़ा कर रखा  था।  पहले वह गोलू-मोलू सी थी।  किंतु अब पतली हो चुकी थी । उसकी आंखों पर चश्मा लग चुका था । उसने गुलाबी सूट पहन रखा था।  दिखने में काफी सुंदर लग रही थी।  किंतु अब वह उसकी नहीं थी।

- क्या हुआ लंगूर?  तू रो रहा था?
वह थोड़ा आगे बढ़ते हुए पूछती है।

- मैं, मैं... नहीं।  मैं...  मैं...  भला क्यों रोऊंगा।

वह अपने आप को शर्मिंदा महसूस करता है।  इस कारण उसने अपनी आंखों से आंसू पोंछे।

- अच्छा,  पर मुझे तो लग रहा है कि तू रो रहा है ।

-नहीं...

उसका गला रुद्ध जाता है ।

-अच्छा?

- हां,

- शादी हो गई?

-नहीं ।

वह कांपती  हुई आवाज में बोलता है ।

-अच्छा और सब कैसे हैं?

- ठीक है।  तू  ससुराल जाकर आ गई।

- हां।

- अच्छा कितने दिनों के लिए आई है?

-मतलब?

-  मतलब यही कि तू कितने दिनों के लिए यहां आई है अपने ससुराल से?

- कुते,  गधे,  लंगूर , बंदर।  वह दौड़कर उसको पीटना प्रारंभ कर देती है।

-  अरे मार क्यों रही है?

-तेरी कसम । मैं तेरी जान ले लूंगी।

वह रोने लग जाती है । मैं तेरी राह तक रही थी और गधे मैं मेरी भाभी के गांव गई थी । यानी मेरे भैया के ससुराल।  उनकी गोदभराई की खुशखबरी देने । मैंने अब तक शादी ही  नहीं की  तो ससुराल कैसे जाऊंगी?  गधा कहीं का?

- अच्छा!

- मतलब तूने शादी नहीं की?

- हां, तूने भी नहीं की ना?

-नहीं की?  बोला ना कितनी बार बोलूं?

आदित्य की आंखों से आंसू आने लगने  हैं।

- और किसी और से प्यार करता है तू?

- नहीं।

वह रो पड़ता है ।

- तेरी इस प्यार की मां की आंख लंगूर ।

-आज तो तू गया लंगूर । तेरी पूँछ निकालकर मैंने अगर तेरे हाथ में ना  दे दी तो मेरा नाम पायल नहीं।  मैं तुझे नहीं छोडूंगी । पायल एक छड़ी उठाती है और उसके पीछे दौड़ना शुरू कर देती है।  वह चारों और उस पेड़ के चक्कर काटता है।  उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।  लेकिन उसे पता था कि अगर रुक गया तो उसको मार पड़ेगी । वह नहीं रुकता है।

- रुक...रुक...
आई लव यू । आई लव यू । आई लव यू । हूं....

वह आदित्य से लिपटकर रोने लगती है।  उसका माथा चूमती  है । फिर उसकी छाती को। उसके गालों को।  आदित्य भी उसके माथे को चूमता  है।

आदित्य रोने लगता है । वे दोनों फूट-फूट कर रोने लगते हैं। 

-लंगूर,  मैं बहुत प्यार करती हूँ तुमसे।  बहुत... बहुत... बहुत.
  ज्यादा।

- मैं भी बाबा।

- मुझे पता है बाबा।  लेकिन तूने बहुत देर कर दी।  मैं तो टूट गई थी रे । मर जाती।  बहुत याद आई तेरी । आई लव यू सो मच ।

-मुझे भी।  जब अकेला था और पापा छोड़कर चले गए...

उसका  गला रुद्ध जाता है।

- क्या अंकल नहीं रहे?

- हां,  बाबा नहीं रहे । आई लव यू सो  मच । आई लव यू । वह फूट-फूट कर पुनः  रोने लगता है।

- आई लव यू टू । आई लव यू लंगूर । लंगूर प्लीज़ रो मत। 

वह रोने के लिए मना करती है । पर खुद ही रोना बंद नहीं करती है।

- आई लव यू बाबा । पापा के जाने के बाद हमारी हालत बहुत खराब हो गई थी।  मैं.. मैं टूट गया था बाबा । नहीं आ सकता था।  पूरा घर मेरे ऊपर ही था।  उस दिन आने के बावजूद भी मैं हिम्मत नहीं कर सकता था तुमसे मिलने की।  क्योंकि मेरी हालत इतनी खराब थी कि सोच  रहा था कि अगर मैं तुमसे मिलूंगा तो तुम रो पड़ोगी । इसलिए मैं बिना मिले ही चला गया था।

-लेकिन ये गलत किया लंगूर तूने।

-लेकिन मेरी हालत... मैं गुनहगार हूँ पायल तेरा।

-तू चुप कर । लेकिन मुझ पर यकीन नहीं था क्या? यह क्यों सोच लिया था तुमने । जो तू वापस चला गया था।  एक बार तो मिल जाता। लेकिन कोई बात नहीं लंगूर । जाने दे।  तू...तू मेरा है । है ना?  तू मेरा है?

वह फूट-फूटकर के  रोना शुरू कर देती है।

आदित्य उसको गले लगाता है।

- हां बाबा । हां । मैं तेरा हूं।  सिर्फ तेरा ।
वह खुद भी रोना  बंद करने का प्रयास करता है । लेकिन अपने आपको रोक नहीं पाता है ।

-चुप कर लंगूर । बस चुप हो जा।  बस चुप हो जाओ।

-मुझसे नहीं हुआ जाता है बाबा।   वक्त ने तेरे  लंगूर  को शेर जरूर बना दिया था लेकिन जो सुकून तेरा लंगूर होकर रहने में था वह नहीं मिला यार।  मैं बहुत बुरा बन गया था।  पापा का बदला लिया । शेर बनने के चक्कर में तेरा लंगूर कहीं गुम हो गया था।

वह उसकी छाती से लगकर रोने लगता है।

-मेरा लंगूर कहीं नहीं गया है।  चुप करो । अब मत रोवो।  अब तो मैं हूं ना।  तुम्हारे पास । अब चुप हो जा।

पायल आदित्य को गले लगाकर  उसके माथे को चूमती है।  वह  घुटनों के बल नीचे गिर जाता है ।

-कितना रोएगा यार? मां बाबा क्या बोलेंगे कि तेरा लंगूर इतना रोता है?

-रोने दे ना।  बस रोने दे यार।  प्लीज मुझे ।

वह पायल की छाती से लगकर पुनः रोना प्रारंभ कर देता है। 

-लंगूर कितना रोएगा? तेरी विदाई हो रही है क्या?  जो इतना रो रहा है ।

-नहीं.. यार।  पर.. क्या.. क्या करूं?  रोने दे।

- तू पागल हो गया क्या?  कितना गंदा लगता है यार तू रोते हुए।  चल अब चुप हो जा ।

वह उसके आंसू पोंछती  है । फिर उसके गालों को चूमती है।  लेकिन आदित्य रोना बंद नहीं करता है ।

-क्या रे बाबा । चुप हो जा।  मेरा पूरा सूट गिला कर दिया तूने।  तेरे मुंह से देखो  बच्चे की तरह  लार टपक रही है।

- हा, हा,  हा ।

वह हँसता है। 

-पायल...

वह फिर से रोना शुरू कर देता है।

- अरे,  मेरी लंगुरिया।   चुप हो जा रे।  तूने तो लड़कियों का ही रिकॉर्ड तोड़ दिया।  रो मत । चुप हो जा ।

-ना। रोने दे।

- अजीब बंदा है । कैसे रोने दूँ? अब तो दुःख को तेरे आस पास भी नहीं फटकने दूँगी। अच्छा..  चल अब चुप हो जा।  वरना मैं फेसबुक पर लाइव हो जाऊंगी और फिर लड़कियों को शर्मिंदगी होगी कि उनसे ज्यादा भी होने वाला कोई प्राणी है इस दुनिया में।

- हा, हा । अच्छा चुप होता हूँ। होता हूँ...

वह चुप होने का प्रयास करता है।  लेकिन उसके आंसू रोके नहीं रुक रहे थे।  पायल उसकी पीठ थपथपा रही थी।  उसने उसके माथे को चूमा । आदित्य अपने सीने का  7 साल का जहर और दर्द एक ही बार में पायल के सीने को भिगोकर निकाल देना चाहता था । आखिर वही तो थी जो उसे सबसे ज्यादा प्यार करती थी और अच्छे से जानती थी। पायल भी समझ गई थी कि अब उसे चुप करवाने का कोई मतलब नहीं है । वह गहरी सांस लेती है और आदित्य को अपने सीने से लगा लेती है। आदित्य रोना बंद नहीं करता है।  उसकी सुबकियां कम नहीं हुई।  वह एक छोटे नन्हे बच्चे की तरह पायल की छाती से लगा हुआ था।  पायल को उसकी हालत देखकर यकीन हो जाता है कि जिस स्थिति से आदित्य निकल कर आया है । वैसी स्थति  से निकल कर आना हर किसी के बस की बात नहीं।  भले ही आदित्य अपने आप को शेर कहलवाना  पसंद नहीं कर रहा था।  किंतु था तो वह शेर ही।  लेकिन उसे पायल का लंगूर बनने में ही खुशी थी । उसे रोते हुए करीब आधा घंटा हो जाता है । आसमान में बदल ओर गहरे काले  हो गए थे।  पायल उसकी पीठ सहला रही थी ।

-अच्छा मतलब अब तू चुप नहीं होगा ।

-रोने दे ना यार...

-  यार यह कोई मंदिर का प्रसाद है जो मांग रहा है।  चल खड़ा हो और मैं कहीं नहीं जा रही हूं । और  हां ना ही खुद जा रही हूँ और  अब ना ही तुझे  जाने दूंगी। अपने सीने से लगकर रखूंगी।  तुमसे गुस्सा तो बहुत ही यार।  लेकिन कोई बात नहीं । माफ किया ।

-अच्छा अब कभी नहीं जाएगी ना मुझे छोड़कर?

-अरे, गधे मैं थोड़ी ही गई थी।  तू गया था  मुझे छोड़कर ।

-मैं... मैं भी नहीं जाऊंगा।  मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ पायल

और वह पुनः  रोना शुरू कर देता है।

- पता है आदि मैं तेरा कैसे इन्तजार कर पाई थी? 

-कैसे?

-पहले चुप हो बाद में बताउंगी तुझे।

- अच्छा होता हूं।

आदित्य अपना मुंह ऊपर  करता है।  कुछ देर में बारिश की बूंदे गिरना शुरु कर देती है । वह खड़ा होता है।  पायल भी खड़ी हो जाती है । वह उसके आंसू पोंछती है।  आकाशीय बिजली गिरने की आवाज होती है। पायल आदित्य से गले लग जाती है। वह उससे कसकर लिपट गई।  शीघ्र ही बारिश शुरू हो गई।  आदित्य कोट खोलता है और पायल और अपने ऊपर  ओढ़ लेता है।  पायल पहले उसके गले से लग जाती है । फिर वह उसके गाल को चूमती है। वह उसके दिल की धड़कन महसूस कर रही थी।  आज उसे आदित्य की छाती से लगकर बहुत सुकून मिल रहा था । करीब 7 साल बाद उसे आदित्य का सीना रोने के लिए मिला था।  उसके दिल की धड़कनों को वह आसानी से सुन सकती थी।  जो सिर्फ पायल के लिए धडक रही थी । वह उसका सीना चूमती  है और ऊपर की तरफ देखती है।

- क्या देख रही हो?

- बस यही कि तू मुझसे कितना प्यार करता है?

- बहुत.. बहुत ज्यादा।

- अच्छा?

- हां ।

-मुझे सबूत चाहिए।

- कैसा सबूत?
- मतलब तू आब भी बुद्धू है।  अच्छा वह होता है ना जो सब करते हैं ।

-बातों को घुमाओ मत । साफ-साफ बोलो।

- अच्छा...  वह बताया नहीं जाता । मुझे शर्म आ रही है।  तू  आंखें बंद कर ।

-अच्छा ओके ।

वह अपनी आंखों को बंद करता है।  इतने में पायल झपट्टा मारकर उसका कोट छीन लेती है और घर की तरफ भागने लग जाती है।

- हा, हा, हा । तुझे क्या लगा था कि मैं तेरे3 साथ  लिप लॉक करुँगी।

-ओए, बंदरिया। मैं भीग रहा हूँ।

- तो पकड़ लो।  मैं भी तो देखूं कि क्या मेरा लंगूर अभी भी  इतनी फुर्ती रखता है ।
-अच्छा तुझे शक है। तुझे तो मैं अभी बताता हूं।

वह पायल के पीछे दौड़ता है।  फिर वह दौड़कर उसे पीछे से  पकड़ लेता है ।

-औए, लंगूर भीग  रही हूं मैं ।

-मैं भी...

वह कोट को सही से ओढ़ाता  है और पायल भी उससे चिपक कर चलती है । लेकिन वे बारिश में भीगने से बच नहीं पा रहे थे।  प्रकृति भी उन दोनों के मिलन का उत्सव मनाना चाहती थी।  इसलिए धो  दिया।  उन दोनों को रास्ते में । पायल ने आदित्य को उसके जाने के बाद की सभी बातें बताई। दोनों भीग  रहे थे । लेकिन उन्हें अब मौसम से कोई परवाह नहीं थी।  भले ही उत्तरी हवाएं ठंडी चल रही थी।  किंतु उन दोनों की हाथों में इतनी गर्मी थी कि उन्हें ठंड नहीं लग रही थी
  वे दोनों रास्ते में हंसते-मुस्कुराते जा रहे थे।  जैसा कि पहले जाते थे । उसने आदित्य को पम्मी और उसके बीच की बात बताई।  उसने यह भी बताया कि कैसे पम्मी  उसके लिए रिश्ता लेकर आया था और वह गुस्सा होकर उसके पिताजी और उनके साथ आए सभी दोस्तों को यह कहकर भगा दिया था  कि वह सिर्फ आदि से प्यार करती है और अगर किसी ने मेरी शादी की बात कि तो मैं उसकी टाँगे तोड़ दूँगी।  उसने यह भी बता दिया कि कैसे उसने अपने घर वालों को कहा कि अगर वे  उसके फैसले के  खिलाफ कोई जाता है तो वह घर छोड़ देगी । लेकिन मैं पम्मी से शादी नहीं करूंगी । चाहे बिना शादी किए मैं बूढी भी क्यों ना हो जाऊं। 

आदित्य  उसकी बातों को सुन रहा था । ठीक वैसे ही जैसे पहले सुनता था।  उसने यह भी बताया की उसे उस पर यकीन था कि वह वापस आएगा।  इसलिए उसने अपने घर वालों को पहले ही हिदायत दे दी थी कि अगर आदित्य वापस आता है तो उसे इस तरह से भोंदू बनाना है कि वह रो पड़े।  ताकि उसे भी यह अहसास हो सके कि उसने  आने में कितना वक्त लगा दिया था।  बस यही कारण था कि पायल की मां ने भी  बातों को घुमाते हुए यह कहा कि वह ससुराल गई है।  लेकिन यह साफ नहीं किया कि वह गोदभराई की खुशखबरी देने उसके भाई  भूपेश के ससुराल गई थी।  वे जब दोनों घर पहुंचते हैं तो आदित्य का सभी घरवाले मजाक बनाते हैं।

वे सभी हंस-हंस कर लोटपोट हो जाते हैं । पायल की भाभी भी  आदित्य का बहुत मजाक बनाती है ।  आदित्य पहले तो उदास हो जाता है। लेकिन फिर वह माहौल में ढल जाता है।  पायल के पिताजी रामवतार और कमला सभी आदित्य के वापस आने से बहुत खुश होते हैं । पायल के पिताजी और उसकी मां उसके माथे को चूमते हैं । आरती का थाल लेकर वे  उसका स्वागत करते हैं और दुआ करते हैं ईश्वर से कि अब उसके साथ ऐसा कुछ भी ना हो जो बहुत बुरा हो । उसके बाद वे उसे घर में प्रवेश करवाते हैं । उसने कपड़े बदले ताकि उसे ठण्ड ना लग जाए।  हालांकि ठंड बहुत ज्यादा थी इस वजह से उसे और पायल दोनों को जुखाम लग गई । वे उसकी हर छींक  पर जोर-जोर से हंस रहे थे । वे सभी देर रात तक एक ही कमरे में बतियाते रहे । आदित्य पायल की पिताजी की चारपाई पर ही रजाई में दुबका हुआ था।  वे  उसके बालों को सहला रहे थे। उन्हें उस पर गर्व था क्योंकि उसने अपने जिम्मेदारी पूर्ण व्यवहार से सबका दिल जीता था।  वह किसी नन्हे  बच्चे की तरह उनसे गले लगकर सोया हुआ था।  पायल व  उसके सभी घरवाले उसके वापस लौटकर आने के कारण बेहद खुश थे।

सुबह हो जाती है।  आदित्य पायल के साथ फॉर्म के सभी नए पुराने लोगों से मिलता है । गुरमीत और बाकी के सभी सदस्य उसके वापस आने से बेहद खुश थे । सेठ जी आदित्य को फोन करके उसे उसका वही घर वापस लौटा देते हैं और उनके गलत फैसले के चलते माफी मांगते हैं। इसके अतिरिक्त वे उसे अपनी जमीन का आधा हिस्सा आदित्य के मना करने के बावजूद भी दे देते हैं । उन्होंने यह भी बताया कि जमीन के कागज कुछ ही दिनों में बनकर के तुम्हारे पास आ जाएंगे।  आदित्य और पायल ने साथ मिलकर अपने पुराने घर को साफ किया।  वहां मकड़ियों के जाले लगे हुए थे।  लेकिन अब भटका हुआ परिंदा वापस अपने घर आ गया था । पायल के पिताजी ने आदित्य की मां को आदित्य और पायल कि जल्द ही शादी करने के बारे में बताया । आदित्य का पूरा परिवार बीकानेर से वापस हनुमानगढ़ आ गया। दोनों की शादी का सारा खर्चा सेठ जी ने उठाया । अर्चना, बीरबल और अन्य सभी के सभी उनसे मिलने आए । शादी में उन दोनों को आशीर्वाद दिया । यह भी एक कमाल की बात थी की पायल का ससुराल 200 मीटर दूर था । इस कारण उसका जब जी करता वह कभी अपने घर आ जाती तो कभी आदित्य के घाट।  वही पुराने दिन वापस लौट आए थे । आदित्य की मां ने भी अपनी नई बहु का अच्छे से स्वागत किया । आखिर उसने वापस आदित्य को ठीक जो कर दिया था । आदित्य वापस वही का वही बन गया था।  वही मुस्कुराने वाला।  वही हंसने वाला।  हालांकि अपने पिताजी की याद उसे  बार-बार सताती थी।

    चार माह बाद

आदित्य हरिपुरा गांव की स्कूल में जाना प्रारंभ कर देता है।  पायल भी एक कंपनी में हनुमानगढ़ काम करने लग जाती है।  इधर पायल बस से उतरती उधर आदित्य की छुट्टी होती।  आदित्य और पायल दोनों अक्सर रामू काका की दुकान पर कचौड़ी खाने भी जाते ।  आदित्य ने एक-एक करके पुनः सबसे मिला। चाहे वह विनोद जी सर हो या राघव । सब कुछ पहले के जैसा ही था । ना ही आदित्य के मन में बदले की भावना थी और ना ही पायल के । वह अभी पहले की ही भांति  लंगूर ही बोलती थी। हाँ,  अब कभी-कभी उसे मजाक में "अजी,  लंगूर जी सुनते हो?" बोल देती थी। 

एक रोज जब वे दोनों कच्चे रास्ते से जा रहे थे तो अचानक उसके फोन की घंटी बजी ।

-हेलो,  आदि कैसा है तू?

अर्चना की आवाज आई।

- अच्छा हूँ।

-और तेरी बंदरिया?

- वह भी अच्छी है। मस्त है ।

-अच्छा एक सरप्राइज  दूँ?

- हाँ, बोल।

-मैं, अंकिता और बीरबल चाचा तीनों तुम सब से मिलने कल आ रहे हैं ।

-अरे, वाह डेट्स  ग्रेट।

- तेरी इंग्लिश की मां की आंख।

- हा, हा , हा,   तेरी बंदरिया तो बिल्कुल वही है रे ।

अर्चना को जैसे ही पायल की आवाज सुनती है वह जोर-जोर से हंसने लगती है। पायल  मुस्कुराती है । आदित्य भी हंसने लग जाता है ।

-अरे , अब तो इसे  इंग्लिश आती है।  लेकिन फिर भी।  एनी वे वी विल वेट ऑल ऑफ यू ।

-ओके, वी विल कम टूमारो।

वे दोनों मुस्कुराते हैं।  फोन कट हो जाता है और फिर वे दोनों चल पड़ते हैं हरिपुरा की तरफ।  उन दोनों के सामने एक ऐसा रास्ता था।  जहां अब दुःख,  दर्द का कोई स्थान नहीं था । अब  उनको कोई जुदा नहीं कर सकता था।  मैं भी नहीं।

इधर हनुमानगढ़ टाउन के एक मकान में आदित्य की चाची जिस घर में रहती थी । उसका दरवाजा बजता है।  वह दौड़कर बाहर जाती है।  वहां  एक लड़का खड़ा था।

- रुपेश की मां आप ही है ना?

-हां, मैं ही हूँ।

- आपके लिए सामान भेजा है किसी ने ।

वह  लड़का एक डिब्बा आदित्य की चाची जी को एक डिब्बा पकड़ता है । वह घर के अंदर जाती है । रुपेश गुमसुम सा बैठा हुआ था । आखिर उसकी पढ़ाई रुकी हुई थी।  वह डिब्बे  को खोलती है तो आश्चर्यचकित हो जाती है । उसमें एक पांच लाख रूपये का चेक और  कुछ नगद रुपए थे।  उसमें एक लेटर भी था ।

डियर रुपेश,

यह तुम्हारे लिए है । मैं कौन हूँ।  यह जानने का प्रयास मत करना । इन पैसों से एक घर किराए पर ले लेना  एक बार।  कुछ ही दिनों बाद में मैं कुछ पैसे और भेज दूंगा तुम्हें।  तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें । अगर और पैसों की जरूरत हो तो इस पत्ते पर एक पत्र भेज देना ।  तेरे पास पैसे आ जाएंगे।  लेकिन वादा करो कि तुम अपने बाप की तरह बेईमानी का रास्ता नहीं चुनोगे।

तुम्हारा

जो भी नाम दो

-मम्मी,  यह जो भी हो।  आज से मेरा भगवान है।  रुपेश ने रोते हुए उस कागज के टुकड़े को अपने सीने से लगा लिया।  वह अपनी मां से गले लगता है ।

-मम्मी, मैं भले ही अपने बाप के बुरे कर्मों के दाग को मिटा नहीं सकूंगा।  लेकिन इतना वादा जरूर कर सकता हूं कि मैं कभी भी अपने कमीने बाप के पद चिन्हों पर नहीं चलूंगा। 

उसकी पलकों से आंसू की एक बूंद उस सफ़ेद कागज़ के टुकड़े पयरः गिरती है।  लेकिन वह बूंद खुशी की थी।

इधर आदित्य और पायल दोनों हंसते-मुस्कुराते  जंगल में प्रवेश करते हैं। उन्हें वही पेड़ दिखाई देता है। वे दौड़कर उसके पास जाते हैं। उस दिल को चूमते हैं। पायल आदित्य की तरफ प्यार भरी नजरों से देखती है।
-क्या देख रही हो?
- कुछ नहीं बस ऐसे ही। आई लव यू लंगूर।

-आई लव यू  टू।

आदित्य पायल का हाथ पकड़कर उसे अपने करीब खींचता है और उसका माथा चूमता है।  मानो वो ये साबित कर रहा हो कि प्यार इसे कहते हैं। पायल उसके सीने से लग जाती है। वे दोनों एक दुसरे की धड़कनों को महसूस कर रहे थे। पायल आदित्य की बाहँ से अलग नहीं होना चाहती थी तो आदित्य ने भी अपनी बाहों को उसके गोरे बदन के चारो और फैला दिया था। वे दोनों एक दुसरे में ही खोए हुए थे। मानो वे ये दिखा रहे हों कि अब वो अलग नहीं हो सकते। मुझसे भी नहीं।  😘 

❤️ कहते हैं प्रेम कहानी कभी ख़त्म नहीं होती है। लेकिन फिर भी आपके आदि और पायल का उपन्यास पूर्ण हो चुका है। ❤️

इस उपन्यास को पूर्ण करने में आप सब पाठकों का बहुत बड़ा योगदान रहा। इस उपन्यास को लिखने के दौरान बहुत सारे पाठक कहानी से इतना जुड़ाव कर बैठे कि न जाने कितने सवाल मुझसे पूछते थे।  कभी मेरे पिताजी की हकीकत जानने के लिए तो कभी पायल के बारे में जानने के लिए । मैं इन सभी सवालों का जवाब इस रविवार तक सवाल-जवाब  एपिसोड में दे दूंगा। इस उपन्यास की कहानी को आपने बहुत प्यार दिया।  इसके लिए आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।  उपन्यास के पात्रों से कुछ पाठकों को इतना लगाव हो गया कि वह यह तक बोलने लगे कि कृपया करके पायल और आदि को एक बार यहां भेज देना । मैं श्री भट्ट जी का धन्यवाद करना चाहूंगा जिन्होंने मुझसे कहा कि अगर उदयपुर मैं आदित्य किसी को नहीं जानता तो क्या हुआ मैं तो जानती हूँ ना। हा, हा,  हा  । खैर,  मैं श्री जी से कहना चाहूंगा कि मैं उन दोनों को अब समर ट्रिप के लिए उदयपुर भेजने वाला हूँ। क्या आप उनका स्वागत करने के लिए तैयार हैं।  हा हा हा  😂😂😂😂

आप सबने कहानी को बहुत प्यार दिया इसके लिए आपका दिल से बहुत बड़ा धन्यवाद । चलो अब कहानी की कमजोर कड़ी के बारे में बात करते हैं । अगर आपको उपन्यास की कहानी  में कोई कमी नजर आई हो तो कृपया करके कमेंट जरूर करें ।

इसके अतिरिक्त अगर आपको कहीं पर भी कहानी को पढ़ने के बाद कोई प्रश्न जगा हो तो कृपया करके उसका जवाब जानने के लिए  कमेन्ट करें। ताकि उसका जवाब मैं आने वाले रविवार तक दे दूँ। रविवार को इस लिए  क्योंकि कुछ ऐसे पाठक हैं जो लेट भी पढ़ते हैं । आप सब ने इतना प्यार दिया इसके लिए मैं आप सबका फिर से धन्यवाद करना चाहूंगा।

समर्पित- मैं इस उपन्यास को आप सब पाठकों को,  मेरी बहन आरती सिंह "पाखी", आयुषी, स्वाति, पीकू, सुनीता  और  उसको समर्पित करता हूँ जिससे मैं बेहद प्यार करता हूँ।   वह भी मुझसे बेहद प्यार करती है ।  बहुत बार ऐसे हफ्ते भी आए जब कई बार रात को मैं उससे बात नहीं कर पाता था।   लेकिन मेरे एक बार कहते ही वह बिना नाराज हुए ही मान जाती थी और एक लेखक की होने वाली पत्नी के नाते  यह गुण उसमे  होना  मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।   कभी-कभी वह मुँह भी फूला  लेती थी।। किंतु इतना तो होने वाली  वाई-फाई का हक बनता है।   हा हा हा 😆😆😆🤣

अरे मैं उसे वाई-फाई  ही बोलता हूँ क्योंकि  उससे बात किए बगैर मैं नेटवर्क में नहीं रहता  और हाँ   उसका मैं धन्यवाद सबसे ज्यादा करना चाहूंगा उन सभी  दृश्यों के लिए जिसमें मैंने प्यार डाला है । क्योंकि हम तो ठहरे खडूस जी😂😂 तो मजाक या लड़ाई के सिवाय कुछ नहीं डाल पाते। ये प्यार भरे दृश्यों के पीछे उसका हाथ है।😂😂

खैर,  इसके अतिरिक्त बहुत सारे  रीडर्स  को इस बात का दुख है कि यह उपन्यास पूरा हो गया । लेकिन आप सबके लिए सबसे बड़ी खुशखबरी यही है कि अगले 3 से 4 महीने बाद मेरा उपन्यास ( द कलर ऑफ माय लव ) जो कि हिंदी में (मेरे इश्क का रंग) नाम से भी पब्लिश होने वाला है।  उस उपन्यास में मैं लेखक कैसे बना?   यह बताने वाला हूँ। कहानी बहुत ही यूनिक है । तो कृपया करके उस नावेल को  जरूर पढ़ना । जब पब्लिश होगा तो मैं सूचित कर दूंगा। इसके अतिरिक्त या उपन्यास और मेरा उपन्यास नाग कन्या एक रहस्य भी जल्द ही पेपर बैक में आने वाला है। अतः आप इन्हें पुस्तक के रूप में भी अपने पास रख सकते हैं  ।भाग-49  (अंतिम भाग) 

अब तक- आपने पढ़ा कि कैसे आदित्य ने सारी परेशानियों से पार पाकर वह अपने प्यार पायल को पाने के लिए हनुमानगढ़ आता है। वह फॉर्म की तरफ जा रहा होता है। अचानक ही उसकी नजर उस पेड़ पर पड़ती है जिसके नीचे आदित्य और पायल एक बार बारिश से बचने के लिए खड़े हुए थे। उसके दिमाग में बहुत से प्रश्न आते हैं। ठीक वैसे ही आप भी यही सोच रहे होंगे कि क्या पायल और आदि मिल जाएंगे, या नहीं?  तो इसका जवाब जानने के लिए ये अंक पढ़ें-

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भाग-49 (अंतिम)

वह उस पेड़ की तरफ एकटक देखता है । उसकी आंखों से बहते आंसू इस बात के परिचायक थे कि आज वह कठिन परिस्थितियों का सामना करके शेर की तरह वापस लौट जरूर आया था । किंतु जो तकलीफ उसने पायल के बिना सही थी वह बेहद दर्दनाक थी।  इस दौरान उसने अपने पिताजी को खोया, अपने लड़कपन की मुस्कुराहटों को खोया।  हंसना तो वह भूल ही चुका था । लेकिन जो प्यार कहीं चिंगारी रूप में उसके हृदय में धधक रहा था।  वे अब लपटें बन चुकी थी।  उसने पेड़ की झुकी हुई डाल की पत्तियों को अपने हाथ से महसूस किया । ताकि वह वही पुराना अहसास वापस जगा सके।  वह मुस्कुराया और आगे बढ़ गया । शीघ्र ही उसके कदम जंगल की सीमा पर पड़े। उसकी नजर उस झाड़ के पेड़ पर पड़ी । वह मंद-मंद मुस्कुराया।  उसकी लड़कपन की सभी यादें ताजा हो जाती है।  उसे याद आता है कि कैसे वह पायल को चुड़ैल का बहाना बनाकर सताता था । कितने प्यारे लम्हे थे वे । जब वह पायल के साथ विद्यालय जाता था । कितना सुकून था उसकी बातों को एकटकी लगाकर सुनने में।  वह मुस्कुराया और आगे बढ़ा।  आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे।  उत्तरी हवाएं तेज तेज चल रही थी । शाम के करीब 4:00 बजने को थी किंतु ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो  6:00 बज गई हैं। उसे अपनी प्रेमिका से मिलने की जल्दी इतनी थी कि उसके कदम अपने आप जल्दी-जल्दी उठ रहे थे।  किंतु अचानक ही उसकी नजर हरे-भरे पत्तों से आच्छादित एक पेड़ पर गिरती है । यह वही पेड़ था।  जिस पर कभी आदित्य ने पायल से प्यार होने का ऐलान किया था।  उसकी नजर उस दिल पर पड़ती है जिसे उसने उसके तने पर बनाया था । वृक्ष की छाल ने  उसके चारों ओर से बढ़ना प्रारंभ कर दिया था । इस कारण वह दिल अब और भी साफ नजर आ रहा था । उस पर लिखा नाम "लंगूर लफ्ज़ बंदरिया" भी  मौसम की मार को झेल कर डटा हुआ था । वह दौड़कर उस पेड़ की तरफ जाता है । उसके गले की टाई थोड़ी टाइट थी । वह उसे थोड़ा ढीला कर लेता है । वह जाकर उस दिल को अपने हाथों से महसूस करता है । उसने जमीन की तरफ देखा तो वहां अब किसी के भी कदमों  के निशान नहीं थे।   वह दुखी हो जाता है । उसे डर था कि कहीं पायल की शादी तो नहीं हो गई हो!  उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं । वह कुछ ही देर में वापस पायल के घर की तरफ बढ़ जाता है।  शीघ्र ही उसके कदम सेठ जी के फॉर्म में पडते हैं । अनार, अमरूदों से भरे पड़े बाग बगीचे उसे बेहद अच्छे लगते हैं।  वह जल्दी-जल्दी आगे बढ़ता है।  कुछ ही देर में उसके कदम पायल के घर के आगे आकर रुकते हैं।  वही पुराना घर जहां कभी वह पायल के साथ हंसता था । मुस्कुराता था । खेलता था।  उसकी नजर उस गाय पर पड़ती है जिसका पायल और उसने मिलकर कभी दूध निकाला था ।

-किससे मिलना है आपको?

- अचानक ही उसे किसी औरत की आवाज सुनाई दी । वह पीछे मुड़ता है।

- मैं पूछ रही थी किससे मिलना है आपको?

उसकी नजर एक महिला पर पड़ती है जो करीब 25 साल की थी।  उसका पेट थोड़ा सा उभरा हुआ था । शायद कुछ माह बाद ही खुशखबरी आने वाली थी।  वह झूठी मुस्कुराहट मुस्कुराता है ।

-कमला आंटी हैं?

-मांजी आपको कोई बुला रहा है?

- कौन है बेटा?

सिर पर आधा पल्लू लिए पायल की मां बाहर आती है।  आदित्य की नजर उनके ऊपर टिकी रह जाती है।

- बेटा, आप कौन?

-मैं...  मैं आदि।

-अरे,  आदि तू... सरोज बेटा तुम चिमटा लेकर आओ।

- क्यों मांजी।

- इस गधे का सिर फोड़ दूंगी मैं । कितना वक्त लगा दिया आने में।  एक बार भी तुझे हमारी याद नहीं आई।  इतना खुदगर्ज कैसे हो गया आदि तू?

-नहीं आंटी...  आंटी प्लीज ।

आदित्य रोते हुए पायल की  मां से गले लग जाता है और वह अपनी पूरी कहानी सुनाता है।  मुकेश की पत्नी सरोज और पायल  की मां भी दोनों रोने लग जाती हैं।

-अच्छा तू तो मेरा शेर है।  रोते नहीं बेटा।  चल बैठ । सरोज बेटा चाय लेकर आ।  मेरे आदि को मीठी चाय पसंद है ।

-आप सब अब तक नहीं भूले कि मुझे मीठी चाय पसंद है?

- कैसे भूलती  पागल? आखिर आंटी जो हूं तेरी।

वे आदित्य से कुछ देर बातचीत करती है।

- अच्छा कितने दिन रहेगा हमारे पास?

- कुछ दिन तक तो रहूँगा आंटी ।

आदित्य पायल के बारे में सोच रहा था।  वह अपने मन की बात पायल की मां को बताना नहीं चाहता था ।

-यह लो चाय।

सरोज आदित्य को चाय पकड़ाती है।

-अच्छा, आंटी रामवतार काका कहां है?

-वह तो खेत में है । काम करने गए हुए थे।  शाम तक लौट आएंगे ।

-और भूपेश भैया?

- वह आजकल लुधियाना रहता है रुई की फैक्ट्री में ।

-अच्छा ।

उसने गहरी सांस ली । वह पायल के बारे में पूछना चाहता था।  उसने इससे पहले अपने भगवान को याद किया।

- और मांजी  पायल?

- वह? वह तो ससुराल गई हुई है । अभी आने वाली ही  होगी।

-उहू.... उहू...

वह खांसता है और उसके हाथ-पांव कांपने लग जाते हैं।  जो सपना उसने देखा था । वह पल भर में टूट गया । वह कांपते हाथों से चाय के कप को नीचे रखता है और फोन को झूठा ही कान पर लगाते हुए बोलता है।

- क्या! अच्छा अभी आ रहा हूं।

- क्या हुआ बेटा?

-आंटी मुझे अभी हनुमानगढ़ जाना होगा।  मेरे दोस्त की तबीयत खराब हो गई है।  बाय।

- लेकिन बेटा चाय तो पी जाता।

- फिर कभी।  आप पायल को और सब को बोल देना । ओके
  मैं चलता हूं ।

-अरे,  बेटा...

वो पीछे से  आवाज देती है किंतु वह घर से निकल जाता है।

- अरे,  बेटा पायल से तो मिलकर चले जाते।  अभी आ रही होगी ।

-नहीं मैं लेट हो रहा हूं । मेरी बस निकल जाएगी।  फिर कभी मिल लूंगा।  बाय ।

आदित्य ने दौड़ना प्रारंभ कर दिया।  हालांकि उसके कदम लड़खड़ा रहे थे।  वह पूर्णतया टूट चुका था । उसके हाथ-पैर कांप रहे थे । जिस लड़कपन के प्यार को पाने के लिए वापस आया था । वह खत्म हो चुका था।  उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं । आकाशिय बिजली कड़क रही थी।  चारों ओर अंधेरा छा गया । आदि की जिंदगी भी अब अंधकारमय हो गई थी। वह  दौड़ता हुआ जैसे ही जंगल में प्रवेश करता है।  उसे वह पेड़ दिखाई देता है।  उतना ही गहरा,  छायादार।  जितना कि पहले हुआ करता था।  लेकिन अंतर इतना था कि आज पायल उसके साथ नहीं थी।

- आई लव यू पायल... आई लव यू ... आई लव यू सो मच।  आई एम सॉरी । मैं इतना लेट हो गया।  पायल मैं मर जाऊंगा।

उसकी चीख सुनसान जंगल को हिला देने वाली थी।  शीघ्र ही वह शांत हो जाता है और उस दरख़्त से लिपटकर रोना प्रारंभ कर देता है।  उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।

- ओए, लंगूर।

अचानक उसके कानों पर जानी पहचानी सी  आवाज पड़ती है। वह  पीछे की तरफ देखता है तो उसके सामने वही पायल थी  जिससे वह प्यार करता था।  इतना कि वह आज उसके लिए आया था।  किंतु आज पायल उसकी  नहीं थी । वह काफी बदल चुकी थी । जो कभी दो जुड़े बांधती  थी।  आज उसने एक जुड़ा कर रखा  था।  पहले वह गोलू-मोलू सी थी।  किंतु अब पतली हो चुकी थी । उसकी आंखों पर चश्मा लग चुका था । उसने गुलाबी सूट पहन रखा था।  दिखने में काफी सुंदर लग रही थी।  किंतु अब वह उसकी नहीं थी।

- क्या हुआ लंगूर?  तू रो रहा था?
वह थोड़ा आगे बढ़ते हुए पूछती है।

- मैं, मैं... नहीं।  मैं...  मैं...  भला क्यों रोऊंगा।

वह अपने आप को शर्मिंदा महसूस करता है।  इस कारण उसने अपनी आंखों से आंसू पोंछे।

- अच्छा,  पर मुझे तो लग रहा है कि तू रो रहा है ।

-नहीं...

उसका गला रुद्ध जाता है ।

-अच्छा?

- हां,

- शादी हो गई?

-नहीं ।

वह कांपती  हुई आवाज में बोलता है ।

-अच्छा और सब कैसे हैं?

- ठीक है।  तू  ससुराल जाकर आ गई।

- हां।

- अच्छा कितने दिनों के लिए आई है?

-मतलब?

-  मतलब यही कि तू कितने दिनों के लिए यहां आई है अपने ससुराल से?

- कुते,  गधे,  लंगूर , बंदर।  वह दौड़कर उसको पीटना प्रारंभ कर देती है।

-  अरे मार क्यों रही है?

-तेरी कसम । मैं तेरी जान ले लूंगी।

वह रोने लग जाती है । मैं तेरी राह तक रही थी और गधे मैं मेरी भाभी के गांव गई थी । यानी मेरे भैया के ससुराल।  उनकी गोदभराई की खुशखबरी देने । मैंने अब तक शादी ही  नहीं की  तो ससुराल कैसे जाऊंगी?  गधा कहीं का?

- अच्छा!

- मतलब तूने शादी नहीं की?

- हां, तूने भी नहीं की ना?

-नहीं की?  बोला ना कितनी बार बोलूं?

आदित्य की आंखों से आंसू आने लगने  हैं।

- और किसी और से प्यार करता है तू?

- नहीं।

वह रो पड़ता है ।

- तेरी इस प्यार की मां की आंख लंगूर ।

-आज तो तू गया लंगूर । तेरी पूँछ निकालकर मैंने अगर तेरे हाथ में ना  दे दी तो मेरा नाम पायल नहीं।  मैं तुझे नहीं छोडूंगी । पायल एक छड़ी उठाती है और उसके पीछे दौड़ना शुरू कर देती है।  वह चारों और उस पेड़ के चक्कर काटता है।  उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।  लेकिन उसे पता था कि अगर रुक गया तो उसको मार पड़ेगी । वह नहीं रुकता है।

- रुक...रुक...
आई लव यू । आई लव यू । आई लव यू । हूं....

वह आदित्य से लिपटकर रोने लगती है।  उसका माथा चूमती  है । फिर उसकी छाती को। उसके गालों को।  आदित्य भी उसके माथे को चूमता  है।

आदित्य रोने लगता है । वे दोनों फूट-फूट कर रोने लगते हैं। 

-लंगूर,  मैं बहुत प्यार करती हूँ तुमसे।  बहुत... बहुत... बहुत.
  ज्यादा।

- मैं भी बाबा।

- मुझे पता है बाबा।  लेकिन तूने बहुत देर कर दी।  मैं तो टूट गई थी रे । मर जाती।  बहुत याद आई तेरी । आई लव यू सो मच ।

-मुझे भी।  जब अकेला था और पापा छोड़कर चले गए...

उसका  गला रुद्ध जाता है।

- क्या अंकल नहीं रहे?

- हां,  बाबा नहीं रहे । आई लव यू सो  मच । आई लव यू । वह फूट-फूट कर पुनः  रोने लगता है।

- आई लव यू टू । आई लव यू लंगूर । लंगूर प्लीज़ रो मत। 

वह रोने के लिए मना करती है । पर खुद ही रोना बंद नहीं करती है।

- आई लव यू बाबा । पापा के जाने के बाद हमारी हालत बहुत खराब हो गई थी।  मैं.. मैं टूट गया था बाबा । नहीं आ सकता था।  पूरा घर मेरे ऊपर ही था।  उस दिन आने के बावजूद भी मैं हिम्मत नहीं कर सकता था तुमसे मिलने की।  क्योंकि मेरी हालत इतनी खराब थी कि सोच  रहा था कि अगर मैं तुमसे मिलूंगा तो तुम रो पड़ोगी । इसलिए मैं बिना मिले ही चला गया था।

-लेकिन ये गलत किया लंगूर तूने।

-लेकिन मेरी हालत... मैं गुनहगार हूँ पायल तेरा।

-तू चुप कर । लेकिन मुझ पर यकीन नहीं था क्या? यह क्यों सोच लिया था तुमने । जो तू वापस चला गया था।  एक बार तो मिल जाता। लेकिन कोई बात नहीं लंगूर । जाने दे।  तू...तू मेरा है । है ना?  तू मेरा है?

वह फूट-फूटकर के  रोना शुरू कर देती है।

आदित्य उसको गले लगाता है।

- हां बाबा । हां । मैं तेरा हूं।  सिर्फ तेरा ।
वह खुद भी रोना  बंद करने का प्रयास करता है । लेकिन अपने आपको रोक नहीं पाता है ।

-चुप कर लंगूर । बस चुप हो जा।  बस चुप हो जाओ।

-मुझसे नहीं हुआ जाता है बाबा।   वक्त ने तेरे  लंगूर  को शेर जरूर बना दिया था लेकिन जो सुकून तेरा लंगूर होकर रहने में था वह नहीं मिला यार।  मैं बहुत बुरा बन गया था।  पापा का बदला लिया । शेर बनने के चक्कर में तेरा लंगूर कहीं गुम हो गया था।

वह उसकी छाती से लगकर रोने लगता है।

-मेरा लंगूर कहीं नहीं गया है।  चुप करो । अब मत रोवो।  अब तो मैं हूं ना।  तुम्हारे पास । अब चुप हो जा।

पायल आदित्य को गले लगाकर  उसके माथे को चूमती है।  वह  घुटनों के बल नीचे गिर जाता है ।

-कितना रोएगा यार? मां बाबा क्या बोलेंगे कि तेरा लंगूर इतना रोता है?

-रोने दे ना।  बस रोने दे यार।  प्लीज मुझे ।

वह पायल की छाती से लगकर पुनः रोना प्रारंभ कर देता है। 

-लंगूर कितना रोएगा? तेरी विदाई हो रही है क्या?  जो इतना रो रहा है ।

-नहीं.. यार।  पर.. क्या.. क्या करूं?  रोने दे।

- तू पागल हो गया क्या?  कितना गंदा लगता है यार तू रोते हुए।  चल अब चुप हो जा ।

वह उसके आंसू पोंछती  है । फिर उसके गालों को चूमती है।  लेकिन आदित्य रोना बंद नहीं करता है ।

-क्या रे बाबा । चुप हो जा।  मेरा पूरा सूट गिला कर दिया तूने।  तेरे मुंह से देखो  बच्चे की तरह  लार टपक रही है।

- हा, हा,  हा ।

वह हँसता है। 

-पायल...

वह फिर से रोना शुरू कर देता है।

- अरे,  मेरी लंगुरिया।   चुप हो जा रे।  तूने तो लड़कियों का ही रिकॉर्ड तोड़ दिया।  रो मत । चुप हो जा ।

-ना। रोने दे।

- अजीब बंदा है । कैसे रोने दूँ? अब तो दुःख को तेरे आस पास भी नहीं फटकने दूँगी। अच्छा..  चल अब चुप हो जा।  वरना मैं फेसबुक पर लाइव हो जाऊंगी और फिर लड़कियों को शर्मिंदगी होगी कि उनसे ज्यादा भी होने वाला कोई प्राणी है इस दुनिया में।

- हा, हा । अच्छा चुप होता हूँ। होता हूँ...

वह चुप होने का प्रयास करता है।  लेकिन उसके आंसू रोके नहीं रुक रहे थे।  पायल उसकी पीठ थपथपा रही थी।  उसने उसके माथे को चूमा । आदित्य अपने सीने का  7 साल का जहर और दर्द एक ही बार में पायल के सीने को भिगोकर निकाल देना चाहता था । आखिर वही तो थी जो उसे सबसे ज्यादा प्यार करती थी और अच्छे से जानती थी। पायल भी समझ गई थी कि अब उसे चुप करवाने का कोई मतलब नहीं है । वह गहरी सांस लेती है और आदित्य को अपने सीने से लगा लेती है। आदित्य रोना बंद नहीं करता है।  उसकी सुबकियां कम नहीं हुई।  वह एक छोटे नन्हे बच्चे की तरह पायल की छाती से लगा हुआ था।  पायल को उसकी हालत देखकर यकीन हो जाता है कि जिस स्थिति से आदित्य निकल कर आया है । वैसी स्थति  से निकल कर आना हर किसी के बस की बात नहीं।  भले ही आदित्य अपने आप को शेर कहलवाना  पसंद नहीं कर रहा था।  किंतु था तो वह शेर ही।  लेकिन उसे पायल का लंगूर बनने में ही खुशी थी । उसे रोते हुए करीब आधा घंटा हो जाता है । आसमान में बदल ओर गहरे काले  हो गए थे।  पायल उसकी पीठ सहला रही थी ।

-अच्छा मतलब अब तू चुप नहीं होगा ।

-रोने दे ना यार...

-  यार यह कोई मंदिर का प्रसाद है जो मांग रहा है।  चल खड़ा हो और मैं कहीं नहीं जा रही हूं । और  हां ना ही खुद जा रही हूँ और  अब ना ही तुझे  जाने दूंगी। अपने सीने से लगकर रखूंगी।  तुमसे गुस्सा तो बहुत ही यार।  लेकिन कोई बात नहीं । माफ किया ।

-अच्छा अब कभी नहीं जाएगी ना मुझे छोड़कर?

-अरे, गधे मैं थोड़ी ही गई थी।  तू गया था  मुझे छोड़कर ।

-मैं... मैं भी नहीं जाऊंगा।  मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ पायल

और वह पुनः  रोना शुरू कर देता है।

- पता है आदि मैं तेरा कैसे इन्तजार कर पाई थी? 

-कैसे?

-पहले चुप हो बाद में बताउंगी तुझे।

- अच्छा होता हूं।

आदित्य अपना मुंह ऊपर  करता है।  कुछ देर में बारिश की बूंदे गिरना शुरु कर देती है । वह खड़ा होता है।  पायल भी खड़ी हो जाती है । वह उसके आंसू पोंछती है।  आकाशीय बिजली गिरने की आवाज होती है। पायल आदित्य से गले लग जाती है। वह उससे कसकर लिपट गई।  शीघ्र ही बारिश शुरू हो गई।  आदित्य कोट खोलता है और पायल और अपने ऊपर  ओढ़ लेता है।  पायल पहले उसके गले से लग जाती है । फिर वह उसके गाल को चूमती है। वह उसके दिल की धड़कन महसूस कर रही थी।  आज उसे आदित्य की छाती से लगकर बहुत सुकून मिल रहा था । करीब 7 साल बाद उसे आदित्य का सीना रोने के लिए मिला था।  उसके दिल की धड़कनों को वह आसानी से सुन सकती थी।  जो सिर्फ पायल के लिए धडक रही थी । वह उसका सीना चूमती  है और ऊपर की तरफ देखती है।

- क्या देख रही हो?

- बस यही कि तू मुझसे कितना प्यार करता है?

- बहुत.. बहुत ज्यादा।

- अच्छा?

- हां ।

-मुझे सबूत चाहिए।

- कैसा सबूत?
- मतलब तू आब भी बुद्धू है।  अच्छा वह होता है ना जो सब करते हैं ।

-बातों को घुमाओ मत । साफ-साफ बोलो।

- अच्छा...  वह बताया नहीं जाता । मुझे शर्म आ रही है।  तू  आंखें बंद कर ।

-अच्छा ओके ।

वह अपनी आंखों को बंद करता है।  इतने में पायल झपट्टा मारकर उसका कोट छीन लेती है और घर की तरफ भागने लग जाती है।

- हा, हा, हा । तुझे क्या लगा था कि मैं तेरे3 साथ  लिप लॉक करुँगी।

-ओए, बंदरिया। मैं भीग रहा हूँ।

- तो पकड़ लो।  मैं भी तो देखूं कि क्या मेरा लंगूर अभी भी  इतनी फुर्ती रखता है ।
-अच्छा तुझे शक है। तुझे तो मैं अभी बताता हूं।

वह पायल के पीछे दौड़ता है।  फिर वह दौड़कर उसे पीछे से  पकड़ लेता है ।

-औए, लंगूर भीग  रही हूं मैं ।

-मैं भी...

वह कोट को सही से ओढ़ाता  है और पायल भी उससे चिपक कर चलती है । लेकिन वे बारिश में भीगने से बच नहीं पा रहे थे।  प्रकृति भी उन दोनों के मिलन का उत्सव मनाना चाहती थी।  इसलिए धो  दिया।  उन दोनों को रास्ते में । पायल ने आदित्य को उसके जाने के बाद की सभी बातें बताई। दोनों भीग  रहे थे । लेकिन उन्हें अब मौसम से कोई परवाह नहीं थी।  भले ही उत्तरी हवाएं ठंडी चल रही थी।  किंतु उन दोनों की हाथों में इतनी गर्मी थी कि उन्हें ठंड नहीं लग रही थी
  वे दोनों रास्ते में हंसते-मुस्कुराते जा रहे थे।  जैसा कि पहले जाते थे । उसने आदित्य को पम्मी और उसके बीच की बात बताई।  उसने यह भी बताया कि कैसे पम्मी  उसके लिए रिश्ता लेकर आया था और वह गुस्सा होकर उसके पिताजी और उनके साथ आए सभी दोस्तों को यह कहकर भगा दिया था  कि वह सिर्फ आदि से प्यार करती है और अगर किसी ने मेरी शादी की बात कि तो मैं उसकी टाँगे तोड़ दूँगी।  उसने यह भी बता दिया कि कैसे उसने अपने घर वालों को कहा कि अगर वे  उसके फैसले के  खिलाफ कोई जाता है तो वह घर छोड़ देगी । लेकिन मैं पम्मी से शादी नहीं करूंगी । चाहे बिना शादी किए मैं बूढी भी क्यों ना हो जाऊं। 

आदित्य  उसकी बातों को सुन रहा था । ठीक वैसे ही जैसे पहले सुनता था।  उसने यह भी बताया की उसे उस पर यकीन था कि वह वापस आएगा।  इसलिए उसने अपने घर वालों को पहले ही हिदायत दे दी थी कि अगर आदित्य वापस आता है तो उसे इस तरह से भोंदू बनाना है कि वह रो पड़े।  ताकि उसे भी यह अहसास हो सके कि उसने  आने में कितना वक्त लगा दिया था।  बस यही कारण था कि पायल की मां ने भी  बातों को घुमाते हुए यह कहा कि वह ससुराल गई है।  लेकिन यह साफ नहीं किया कि वह गोदभराई की खुशखबरी देने उसके भाई  भूपेश के ससुराल गई थी।  वे जब दोनों घर पहुंचते हैं तो आदित्य का सभी घरवाले मजाक बनाते हैं।

वे सभी हंस-हंस कर लोटपोट हो जाते हैं । पायल की भाभी भी  आदित्य का बहुत मजाक बनाती है ।  आदित्य पहले तो उदास हो जाता है। लेकिन फिर वह माहौल में ढल जाता है।  पायल के पिताजी रामवतार और कमला सभी आदित्य के वापस आने से बहुत खुश होते हैं । पायल के पिताजी और उसकी मां उसके माथे को चूमते हैं । आरती का थाल लेकर वे  उसका स्वागत करते हैं और दुआ करते हैं ईश्वर से कि अब उसके साथ ऐसा कुछ भी ना हो जो बहुत बुरा हो । उसके बाद वे उसे घर में प्रवेश करवाते हैं । उसने कपड़े बदले ताकि उसे ठण्ड ना लग जाए।  हालांकि ठंड बहुत ज्यादा थी इस वजह से उसे और पायल दोनों को जुखाम लग गई । वे उसकी हर छींक  पर जोर-जोर से हंस रहे थे । वे सभी देर रात तक एक ही कमरे में बतियाते रहे । आदित्य पायल की पिताजी की चारपाई पर ही रजाई में दुबका हुआ था।  वे  उसके बालों को सहला रहे थे। उन्हें उस पर गर्व था क्योंकि उसने अपने जिम्मेदारी पूर्ण व्यवहार से सबका दिल जीता था।  वह किसी नन्हे  बच्चे की तरह उनसे गले लगकर सोया हुआ था।  पायल व  उसके सभी घरवाले उसके वापस लौटकर आने के कारण बेहद खुश थे।

सुबह हो जाती है।  आदित्य पायल के साथ फॉर्म के सभी नए पुराने लोगों से मिलता है । गुरमीत और बाकी के सभी सदस्य उसके वापस आने से बेहद खुश थे । सेठ जी आदित्य को फोन करके उसे उसका वही घर वापस लौटा देते हैं और उनके गलत फैसले के चलते माफी मांगते हैं। इसके अतिरिक्त वे उसे अपनी जमीन का आधा हिस्सा आदित्य के मना करने के बावजूद भी दे देते हैं । उन्होंने यह भी बताया कि जमीन के कागज कुछ ही दिनों में बनकर के तुम्हारे पास आ जाएंगे।  आदित्य और पायल ने साथ मिलकर अपने पुराने घर को साफ किया।  वहां मकड़ियों के जाले लगे हुए थे।  लेकिन अब भटका हुआ परिंदा वापस अपने घर आ गया था । पायल के पिताजी ने आदित्य की मां को आदित्य और पायल कि जल्द ही शादी करने के बारे में बताया । आदित्य का पूरा परिवार बीकानेर से वापस हनुमानगढ़ आ गया। दोनों की शादी का सारा खर्चा सेठ जी ने उठाया । अर्चना, बीरबल और अन्य सभी के सभी उनसे मिलने आए । शादी में उन दोनों को आशीर्वाद दिया । यह भी एक कमाल की बात थी की पायल का ससुराल 200 मीटर दूर था । इस कारण उसका जब जी करता वह कभी अपने घर आ जाती तो कभी आदित्य के घाट।  वही पुराने दिन वापस लौट आए थे । आदित्य की मां ने भी अपनी नई बहु का अच्छे से स्वागत किया । आखिर उसने वापस आदित्य को ठीक जो कर दिया था । आदित्य वापस वही का वही बन गया था।  वही मुस्कुराने वाला।  वही हंसने वाला।  हालांकि अपने पिताजी की याद उसे  बार-बार सताती थी।

    चार माह बाद

आदित्य हरिपुरा गांव की स्कूल में जाना प्रारंभ कर देता है।  पायल भी एक कंपनी में हनुमानगढ़ काम करने लग जाती है।  इधर पायल बस से उतरती उधर आदित्य की छुट्टी होती।  आदित्य और पायल दोनों अक्सर रामू काका की दुकान पर कचौड़ी खाने भी जाते ।  आदित्य ने एक-एक करके पुनः सबसे मिला। चाहे वह विनोद जी सर हो या राघव । सब कुछ पहले के जैसा ही था । ना ही आदित्य के मन में बदले की भावना थी और ना ही पायल के । वह अभी पहले की ही भांति  लंगूर ही बोलती थी। हाँ,  अब कभी-कभी उसे मजाक में "अजी,  लंगूर जी सुनते हो?" बोल देती थी। 

एक रोज जब वे दोनों कच्चे रास्ते से जा रहे थे तो अचानक उसके फोन की घंटी बजी ।

-हेलो,  आदि कैसा है तू?

अर्चना की आवाज आई।

- अच्छा हूँ।

-और तेरी बंदरिया?

- वह भी अच्छी है। मस्त है ।

-अच्छा एक सरप्राइज  दूँ?

- हाँ, बोल।

-मैं, अंकिता और बीरबल चाचा तीनों तुम सब से मिलने कल आ रहे हैं ।

-अरे, वाह डेट्स  ग्रेट।

- तेरी इंग्लिश की मां की आंख।

- हा, हा , हा,   तेरी बंदरिया तो बिल्कुल वही है रे ।

अर्चना को जैसे ही पायल की आवाज सुनती है वह जोर-जोर से हंसने लगती है। पायल  मुस्कुराती है । आदित्य भी हंसने लग जाता है ।

-अरे , अब तो इसे  इंग्लिश आती है।  लेकिन फिर भी।  एनी वे वी विल वेट ऑल ऑफ यू ।

-ओके, वी विल कम टूमारो।

वे दोनों मुस्कुराते हैं।  फोन कट हो जाता है और फिर वे दोनों चल पड़ते हैं हरिपुरा की तरफ।  उन दोनों के सामने एक ऐसा रास्ता था।  जहां अब दुःख,  दर्द का कोई स्थान नहीं था । अब  उनको कोई जुदा नहीं कर सकता था।  मैं भी नहीं।

इधर हनुमानगढ़ टाउन के एक मकान में आदित्य की चाची जिस घर में रहती थी । उसका दरवाजा बजता है।  वह दौड़कर बाहर जाती है।  वहां  एक लड़का खड़ा था।

- रुपेश की मां आप ही है ना?

-हां, मैं ही हूँ।

- आपके लिए सामान भेजा है किसी ने ।

वह  लड़का एक डिब्बा आदित्य की चाची जी को एक डिब्बा पकड़ता है । वह घर के अंदर जाती है । रुपेश गुमसुम सा बैठा हुआ था । आखिर उसकी पढ़ाई रुकी हुई थी।  वह डिब्बे  को खोलती है तो आश्चर्यचकित हो जाती है । उसमें एक पांच लाख रूपये का चेक और  कुछ नगद रुपए थे।  उसमें एक लेटर भी था ।

डियर रुपेश,

यह तुम्हारे लिए है । मैं कौन हूँ।  यह जानने का प्रयास मत करना । इन पैसों से एक घर किराए पर ले लेना  एक बार।  कुछ ही दिनों बाद में मैं कुछ पैसे और भेज दूंगा तुम्हें।  तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें । अगर और पैसों की जरूरत हो तो इस पत्ते पर एक पत्र भेज देना ।  तेरे पास पैसे आ जाएंगे।  लेकिन वादा करो कि तुम अपने बाप की तरह बेईमानी का रास्ता नहीं चुनोगे।

तुम्हारा

जो भी नाम दो

-मम्मी,  यह जो भी हो।  आज से मेरा भगवान है।  रुपेश ने रोते हुए उस कागज के टुकड़े को अपने सीने से लगा लिया।  वह अपनी मां से गले लगता है ।

-मम्मी, मैं भले ही अपने बाप के बुरे कर्मों के दाग को मिटा नहीं सकूंगा।  लेकिन इतना वादा जरूर कर सकता हूं कि मैं कभी भी अपने कमीने बाप के पद चिन्हों पर नहीं चलूंगा। 

उसकी पलकों से आंसू की एक बूंद उस सफ़ेद कागज़ के टुकड़े पयरः गिरती है।  लेकिन वह बूंद खुशी की थी।

इधर आदित्य और पायल दोनों हंसते-मुस्कुराते  जंगल में प्रवेश करते हैं। उन्हें वही पेड़ दिखाई देता है। वे दौड़कर उसके पास जाते हैं। उस दिल को चूमते हैं। पायल आदित्य की तरफ प्यार भरी नजरों से देखती है।
-क्या देख रही हो?
- कुछ नहीं बस ऐसे ही। आई लव यू लंगूर।

-आई लव यू  टू।

आदित्य पायल का हाथ पकड़कर उसे अपने करीब खींचता है और उसका माथा चूमता है।  मानो वो ये साबित कर रहा हो कि प्यार इसे कहते हैं। पायल उसके सीने से लग जाती है। वे दोनों एक दुसरे की धड़कनों को महसूस कर रहे थे। पायल आदित्य की बाहँ से अलग नहीं होना चाहती थी तो आदित्य ने भी अपनी बाहों को उसके गोरे बदन के चारो और फैला दिया था। वे दोनों एक दुसरे में ही खोए हुए थे। मानो वे ये दिखा रहे हों कि अब वो अलग नहीं हो सकते। मुझसे भी नहीं।  😘 

❤️ कहते हैं प्रेम कहानी कभी ख़त्म नहीं होती है। लेकिन फिर भी आपके आदि और पायल का उपन्यास पूर्ण हो चुका है। ❤️

इस उपन्यास को पूर्ण करने में आप सब पाठकों का बहुत बड़ा योगदान रहा। इस उपन्यास को लिखने के दौरान बहुत सारे पाठक कहानी से इतना जुड़ाव कर बैठे कि न जाने कितने सवाल मुझसे पूछते थे।  कभी मेरे पिताजी की हकीकत जानने के लिए तो कभी पायल के बारे में जानने के लिए । मैं इन सभी सवालों का जवाब इस रविवार तक सवाल-जवाब  एपिसोड में दे दूंगा। इस उपन्यास की कहानी को आपने बहुत प्यार दिया।  इसके लिए आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।  उपन्यास के पात्रों से कुछ पाठकों को इतना लगाव हो गया कि वह यह तक बोलने लगे कि कृपया करके पायल और आदि को एक बार यहां भेज देना । मैं श्री भट्ट जी का धन्यवाद करना चाहूंगा जिन्होंने मुझसे कहा कि अगर उदयपुर मैं आदित्य किसी को नहीं जानता तो क्या हुआ मैं तो जानती हूँ ना। हा, हा,  हा  । खैर,  मैं श्री जी से कहना चाहूंगा कि मैं उन दोनों को अब समर ट्रिप के लिए उदयपुर भेजने वाला हूँ। क्या आप उनका स्वागत करने के लिए तैयार हैं।  हा हा हा  😂😂😂😂

आप सबने कहानी को बहुत प्यार दिया इसके लिए आपका दिल से बहुत बड़ा धन्यवाद । चलो अब कहानी की कमजोर कड़ी के बारे में बात करते हैं । अगर आपको उपन्यास की कहानी  में कोई कमी नजर आई हो तो कृपया करके कमेंट जरूर करें ।

इसके अतिरिक्त अगर आपको कहीं पर भी कहानी को पढ़ने के बाद कोई प्रश्न जगा हो तो कृपया करके उसका जवाब जानने के लिए  कमेन्ट करें। ताकि उसका जवाब मैं आने वाले रविवार तक दे दूँ। रविवार को इस लिए  क्योंकि कुछ ऐसे पाठक हैं जो लेट भी पढ़ते हैं । आप सब ने इतना प्यार दिया इसके लिए मैं आप सबका फिर से धन्यवाद करना चाहूंगा।

समर्पित- मैं इस उपन्यास को आप सब पाठकों को,  मेरी बहन आरती सिंह "पाखी", आयुषी, स्वाति, पीकू, सुनीता  और  उसको समर्पित करता हूँ जिससे मैं बेहद प्यार करता हूँ।   वह भी मुझसे बेहद प्यार करती है ।  बहुत बार ऐसे हफ्ते भी आए जब कई बार रात को मैं उससे बात नहीं कर पाता था।   लेकिन मेरे एक बार कहते ही वह बिना नाराज हुए ही मान जाती थी और एक लेखक की होने वाली पत्नी के नाते  यह गुण उसमे  होना  मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।   कभी-कभी वह मुँह भी फूला  लेती थी।। किंतु इतना तो होने वाली  वाई-फाई का हक बनता है।   हा हा हा 😆😆😆🤣

अरे मैं उसे वाई-फाई  ही बोलता हूँ क्योंकि  उससे बात किए बगैर मैं नेटवर्क में नहीं रहता  और हाँ   उसका मैं धन्यवाद सबसे ज्यादा करना चाहूंगा उन सभी  दृश्यों के लिए जिसमें मैंने प्यार डाला है । क्योंकि हम तो ठहरे खडूस जी😂😂 तो मजाक या लड़ाई के सिवाय कुछ नहीं डाल पाते। ये प्यार भरे दृश्यों के पीछे उसका हाथ है।😂😂

खैर,  इसके अतिरिक्त बहुत सारे  रीडर्स  को इस बात का दुख है कि यह उपन्यास पूरा हो गया । लेकिन आप सबके लिए सबसे बड़ी खुशखबरी यही है कि अगले 3 से 4 महीने बाद मेरा उपन्यास ( द कलर ऑफ माय लव ) जो कि हिंदी में (मेरे इश्क का रंग) नाम से भी पब्लिश होने वाला है।  उस उपन्यास में मैं लेखक कैसे बना?   यह बताने वाला हूँ। कहानी बहुत ही यूनिक है । तो कृपया करके उस नावेल को  जरूर पढ़ना । जब पब्लिश होगा तो मैं सूचित कर दूंगा। इसके अतिरिक्त या उपन्यास और मेरा उपन्यास नाग कन्या एक रहस्य भी जल्द ही पेपर बैक में आने वाला है। अतः आप इन्हें पुस्तक के रूप में भी अपने पास रख सकते हैं  ।भाग-49  (अंतिम भाग) 

अब तक- आपने पढ़ा कि कैसे आदित्य ने सारी परेशानियों से पार पाकर वह अपने प्यार पायल को पाने के लिए हनुमानगढ़ आता है। वह फॉर्म की तरफ जा रहा होता है। अचानक ही उसकी नजर उस पेड़ पर पड़ती है जिसके नीचे आदित्य और पायल एक बार बारिश से बचने के लिए खड़े हुए थे। उसके दिमाग में बहुत से प्रश्न आते हैं। ठीक वैसे ही आप भी यही सोच रहे होंगे कि क्या पायल और आदि मिल जाएंगे, या नहीं?  तो इसका जवाब जानने के लिए ये अंक पढ़ें-

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भाग-49 (अंतिम)

वह उस पेड़ की तरफ एकटक देखता है । उसकी आंखों से बहते आंसू इस बात के परिचायक थे कि आज वह कठिन परिस्थितियों का सामना करके शेर की तरह वापस लौट जरूर आया था । किंतु जो तकलीफ उसने पायल के बिना सही थी वह बेहद दर्दनाक थी।  इस दौरान उसने अपने पिताजी को खोया, अपने लड़कपन की मुस्कुराहटों को खोया।  हंसना तो वह भूल ही चुका था । लेकिन जो प्यार कहीं चिंगारी रूप में उसके हृदय में धधक रहा था।  वे अब लपटें बन चुकी थी।  उसने पेड़ की झुकी हुई डाल की पत्तियों को अपने हाथ से महसूस किया । ताकि वह वही पुराना अहसास वापस जगा सके।  वह मुस्कुराया और आगे बढ़ गया । शीघ्र ही उसके कदम जंगल की सीमा पर पड़े। उसकी नजर उस झाड़ के पेड़ पर पड़ी । वह मंद-मंद मुस्कुराया।  उसकी लड़कपन की सभी यादें ताजा हो जाती है।  उसे याद आता है कि कैसे वह पायल को चुड़ैल का बहाना बनाकर सताता था । कितने प्यारे लम्हे थे वे । जब वह पायल के साथ विद्यालय जाता था । कितना सुकून था उसकी बातों को एकटकी लगाकर सुनने में।  वह मुस्कुराया और आगे बढ़ा।  आकाश में घने काले बादल छाए हुए थे।  उत्तरी हवाएं तेज तेज चल रही थी । शाम के करीब 4:00 बजने को थी किंतु ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो  6:00 बज गई हैं। उसे अपनी प्रेमिका से मिलने की जल्दी इतनी थी कि उसके कदम अपने आप जल्दी-जल्दी उठ रहे थे।  किंतु अचानक ही उसकी नजर हरे-भरे पत्तों से आच्छादित एक पेड़ पर गिरती है । यह वही पेड़ था।  जिस पर कभी आदित्य ने पायल से प्यार होने का ऐलान किया था।  उसकी नजर उस दिल पर पड़ती है जिसे उसने उसके तने पर बनाया था । वृक्ष की छाल ने  उसके चारों ओर से बढ़ना प्रारंभ कर दिया था । इस कारण वह दिल अब और भी साफ नजर आ रहा था । उस पर लिखा नाम "लंगूर लफ्ज़ बंदरिया" भी  मौसम की मार को झेल कर डटा हुआ था । वह दौड़कर उस पेड़ की तरफ जाता है । उसके गले की टाई थोड़ी टाइट थी । वह उसे थोड़ा ढीला कर लेता है । वह जाकर उस दिल को अपने हाथों से महसूस करता है । उसने जमीन की तरफ देखा तो वहां अब किसी के भी कदमों  के निशान नहीं थे।   वह दुखी हो जाता है । उसे डर था कि कहीं पायल की शादी तो नहीं हो गई हो!  उसकी आंखों में आंसू आ जाते हैं । वह कुछ ही देर में वापस पायल के घर की तरफ बढ़ जाता है।  शीघ्र ही उसके कदम सेठ जी के फॉर्म में पडते हैं । अनार, अमरूदों से भरे पड़े बाग बगीचे उसे बेहद अच्छे लगते हैं।  वह जल्दी-जल्दी आगे बढ़ता है।  कुछ ही देर में उसके कदम पायल के घर के आगे आकर रुकते हैं।  वही पुराना घर जहां कभी वह पायल के साथ हंसता था । मुस्कुराता था । खेलता था।  उसकी नजर उस गाय पर पड़ती है जिसका पायल और उसने मिलकर कभी दूध निकाला था ।

-किससे मिलना है आपको?

- अचानक ही उसे किसी औरत की आवाज सुनाई दी । वह पीछे मुड़ता है।

- मैं पूछ रही थी किससे मिलना है आपको?

उसकी नजर एक महिला पर पड़ती है जो करीब 25 साल की थी।  उसका पेट थोड़ा सा उभरा हुआ था । शायद कुछ माह बाद ही खुशखबरी आने वाली थी।  वह झूठी मुस्कुराहट मुस्कुराता है ।

-कमला आंटी हैं?

-मांजी आपको कोई बुला रहा है?

- कौन है बेटा?

सिर पर आधा पल्लू लिए पायल की मां बाहर आती है।  आदित्य की नजर उनके ऊपर टिकी रह जाती है।

- बेटा, आप कौन?

-मैं...  मैं आदि।

-अरे,  आदि तू... सरोज बेटा तुम चिमटा लेकर आओ।

- क्यों मांजी।

- इस गधे का सिर फोड़ दूंगी मैं । कितना वक्त लगा दिया आने में।  एक बार भी तुझे हमारी याद नहीं आई।  इतना खुदगर्ज कैसे हो गया आदि तू?

-नहीं आंटी...  आंटी प्लीज ।

आदित्य रोते हुए पायल की  मां से गले लग जाता है और वह अपनी पूरी कहानी सुनाता है।  मुकेश की पत्नी सरोज और पायल  की मां भी दोनों रोने लग जाती हैं।

-अच्छा तू तो मेरा शेर है।  रोते नहीं बेटा।  चल बैठ । सरोज बेटा चाय लेकर आ।  मेरे आदि को मीठी चाय पसंद है ।

-आप सब अब तक नहीं भूले कि मुझे मीठी चाय पसंद है?

- कैसे भूलती  पागल? आखिर आंटी जो हूं तेरी।

वे आदित्य से कुछ देर बातचीत करती है।

- अच्छा कितने दिन रहेगा हमारे पास?

- कुछ दिन तक तो रहूँगा आंटी ।

आदित्य पायल के बारे में सोच रहा था।  वह अपने मन की बात पायल की मां को बताना नहीं चाहता था ।

-यह लो चाय।

सरोज आदित्य को चाय पकड़ाती है।

-अच्छा, आंटी रामवतार काका कहां है?

-वह तो खेत में है । काम करने गए हुए थे।  शाम तक लौट आएंगे ।

-और भूपेश भैया?

- वह आजकल लुधियाना रहता है रुई की फैक्ट्री में ।

-अच्छा ।

उसने गहरी सांस ली । वह पायल के बारे में पूछना चाहता था।  उसने इससे पहले अपने भगवान को याद किया।

- और मांजी  पायल?

- वह? वह तो ससुराल गई हुई है । अभी आने वाली ही  होगी।

-उहू.... उहू...

वह खांसता है और उसके हाथ-पांव कांपने लग जाते हैं।  जो सपना उसने देखा था । वह पल भर में टूट गया । वह कांपते हाथों से चाय के कप को नीचे रखता है और फोन को झूठा ही कान पर लगाते हुए बोलता है।

- क्या! अच्छा अभी आ रहा हूं।

- क्या हुआ बेटा?

-आंटी मुझे अभी हनुमानगढ़ जाना होगा।  मेरे दोस्त की तबीयत खराब हो गई है।  बाय।

- लेकिन बेटा चाय तो पी जाता।

- फिर कभी।  आप पायल को और सब को बोल देना । ओके
  मैं चलता हूं ।

-अरे,  बेटा...

वो पीछे से  आवाज देती है किंतु वह घर से निकल जाता है।

- अरे,  बेटा पायल से तो मिलकर चले जाते।  अभी आ रही होगी ।

-नहीं मैं लेट हो रहा हूं । मेरी बस निकल जाएगी।  फिर कभी मिल लूंगा।  बाय ।

आदित्य ने दौड़ना प्रारंभ कर दिया।  हालांकि उसके कदम लड़खड़ा रहे थे।  वह पूर्णतया टूट चुका था । उसके हाथ-पैर कांप रहे थे । जिस लड़कपन के प्यार को पाने के लिए वापस आया था । वह खत्म हो चुका था।  उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं । आकाशिय बिजली कड़क रही थी।  चारों ओर अंधेरा छा गया । आदि की जिंदगी भी अब अंधकारमय हो गई थी। वह  दौड़ता हुआ जैसे ही जंगल में प्रवेश करता है।  उसे वह पेड़ दिखाई देता है।  उतना ही गहरा,  छायादार।  जितना कि पहले हुआ करता था।  लेकिन अंतर इतना था कि आज पायल उसके साथ नहीं थी।

- आई लव यू पायल... आई लव यू ... आई लव यू सो मच।  आई एम सॉरी । मैं इतना लेट हो गया।  पायल मैं मर जाऊंगा।

उसकी चीख सुनसान जंगल को हिला देने वाली थी।  शीघ्र ही वह शांत हो जाता है और उस दरख़्त से लिपटकर रोना प्रारंभ कर देता है।  उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।

- ओए, लंगूर।

अचानक उसके कानों पर जानी पहचानी सी  आवाज पड़ती है। वह  पीछे की तरफ देखता है तो उसके सामने वही पायल थी  जिससे वह प्यार करता था।  इतना कि वह आज उसके लिए आया था।  किंतु आज पायल उसकी  नहीं थी । वह काफी बदल चुकी थी । जो कभी दो जुड़े बांधती  थी।  आज उसने एक जुड़ा कर रखा  था।  पहले वह गोलू-मोलू सी थी।  किंतु अब पतली हो चुकी थी । उसकी आंखों पर चश्मा लग चुका था । उसने गुलाबी सूट पहन रखा था।  दिखने में काफी सुंदर लग रही थी।  किंतु अब वह उसकी नहीं थी।

- क्या हुआ लंगूर?  तू रो रहा था?
वह थोड़ा आगे बढ़ते हुए पूछती है।

- मैं, मैं... नहीं।  मैं...  मैं...  भला क्यों रोऊंगा।

वह अपने आप को शर्मिंदा महसूस करता है।  इस कारण उसने अपनी आंखों से आंसू पोंछे।

- अच्छा,  पर मुझे तो लग रहा है कि तू रो रहा है ।

-नहीं...

उसका गला रुद्ध जाता है ।

-अच्छा?

- हां,

- शादी हो गई?

-नहीं ।

वह कांपती  हुई आवाज में बोलता है ।

-अच्छा और सब कैसे हैं?

- ठीक है।  तू  ससुराल जाकर आ गई।

- हां।

- अच्छा कितने दिनों के लिए आई है?

-मतलब?

-  मतलब यही कि तू कितने दिनों के लिए यहां आई है अपने ससुराल से?

- कुते,  गधे,  लंगूर , बंदर।  वह दौड़कर उसको पीटना प्रारंभ कर देती है।

-  अरे मार क्यों रही है?

-तेरी कसम । मैं तेरी जान ले लूंगी।

वह रोने लग जाती है । मैं तेरी राह तक रही थी और गधे मैं मेरी भाभी के गांव गई थी । यानी मेरे भैया के ससुराल।  उनकी गोदभराई की खुशखबरी देने । मैंने अब तक शादी ही  नहीं की  तो ससुराल कैसे जाऊंगी?  गधा कहीं का?

- अच्छा!

- मतलब तूने शादी नहीं की?

- हां, तूने भी नहीं की ना?

-नहीं की?  बोला ना कितनी बार बोलूं?

आदित्य की आंखों से आंसू आने लगने  हैं।

- और किसी और से प्यार करता है तू?

- नहीं।

वह रो पड़ता है ।

- तेरी इस प्यार की मां की आंख लंगूर ।

-आज तो तू गया लंगूर । तेरी पूँछ निकालकर मैंने अगर तेरे हाथ में ना  दे दी तो मेरा नाम पायल नहीं।  मैं तुझे नहीं छोडूंगी । पायल एक छड़ी उठाती है और उसके पीछे दौड़ना शुरू कर देती है।  वह चारों और उस पेड़ के चक्कर काटता है।  उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।  लेकिन उसे पता था कि अगर रुक गया तो उसको मार पड़ेगी । वह नहीं रुकता है।

- रुक...रुक...
आई लव यू । आई लव यू । आई लव यू । हूं....

वह आदित्य से लिपटकर रोने लगती है।  उसका माथा चूमती  है । फिर उसकी छाती को। उसके गालों को।  आदित्य भी उसके माथे को चूमता  है।

आदित्य रोने लगता है । वे दोनों फूट-फूट कर रोने लगते हैं। 

-लंगूर,  मैं बहुत प्यार करती हूँ तुमसे।  बहुत... बहुत... बहुत.
  ज्यादा।

- मैं भी बाबा।

- मुझे पता है बाबा।  लेकिन तूने बहुत देर कर दी।  मैं तो टूट गई थी रे । मर जाती।  बहुत याद आई तेरी । आई लव यू सो मच ।

-मुझे भी।  जब अकेला था और पापा छोड़कर चले गए...

उसका  गला रुद्ध जाता है।

- क्या अंकल नहीं रहे?

- हां,  बाबा नहीं रहे । आई लव यू सो  मच । आई लव यू । वह फूट-फूट कर पुनः  रोने लगता है।

- आई लव यू टू । आई लव यू लंगूर । लंगूर प्लीज़ रो मत। 

वह रोने के लिए मना करती है । पर खुद ही रोना बंद नहीं करती है।

- आई लव यू बाबा । पापा के जाने के बाद हमारी हालत बहुत खराब हो गई थी।  मैं.. मैं टूट गया था बाबा । नहीं आ सकता था।  पूरा घर मेरे ऊपर ही था।  उस दिन आने के बावजूद भी मैं हिम्मत नहीं कर सकता था तुमसे मिलने की।  क्योंकि मेरी हालत इतनी खराब थी कि सोच  रहा था कि अगर मैं तुमसे मिलूंगा तो तुम रो पड़ोगी । इसलिए मैं बिना मिले ही चला गया था।

-लेकिन ये गलत किया लंगूर तूने।

-लेकिन मेरी हालत... मैं गुनहगार हूँ पायल तेरा।

-तू चुप कर । लेकिन मुझ पर यकीन नहीं था क्या? यह क्यों सोच लिया था तुमने । जो तू वापस चला गया था।  एक बार तो मिल जाता। लेकिन कोई बात नहीं लंगूर । जाने दे।  तू...तू मेरा है । है ना?  तू मेरा है?

वह फूट-फूटकर के  रोना शुरू कर देती है।

आदित्य उसको गले लगाता है।

- हां बाबा । हां । मैं तेरा हूं।  सिर्फ तेरा ।
वह खुद भी रोना  बंद करने का प्रयास करता है । लेकिन अपने आपको रोक नहीं पाता है ।

-चुप कर लंगूर । बस चुप हो जा।  बस चुप हो जाओ।

-मुझसे नहीं हुआ जाता है बाबा।   वक्त ने तेरे  लंगूर  को शेर जरूर बना दिया था लेकिन जो सुकून तेरा लंगूर होकर रहने में था वह नहीं मिला यार।  मैं बहुत बुरा बन गया था।  पापा का बदला लिया । शेर बनने के चक्कर में तेरा लंगूर कहीं गुम हो गया था।

वह उसकी छाती से लगकर रोने लगता है।

-मेरा लंगूर कहीं नहीं गया है।  चुप करो । अब मत रोवो।  अब तो मैं हूं ना।  तुम्हारे पास । अब चुप हो जा।

पायल आदित्य को गले लगाकर  उसके माथे को चूमती है।  वह  घुटनों के बल नीचे गिर जाता है ।

-कितना रोएगा यार? मां बाबा क्या बोलेंगे कि तेरा लंगूर इतना रोता है?

-रोने दे ना।  बस रोने दे यार।  प्लीज मुझे ।

वह पायल की छाती से लगकर पुनः रोना प्रारंभ कर देता है। 

-लंगूर कितना रोएगा? तेरी विदाई हो रही है क्या?  जो इतना रो रहा है ।

-नहीं.. यार।  पर.. क्या.. क्या करूं?  रोने दे।

- तू पागल हो गया क्या?  कितना गंदा लगता है यार तू रोते हुए।  चल अब चुप हो जा ।

वह उसके आंसू पोंछती  है । फिर उसके गालों को चूमती है।  लेकिन आदित्य रोना बंद नहीं करता है ।

-क्या रे बाबा । चुप हो जा।  मेरा पूरा सूट गिला कर दिया तूने।  तेरे मुंह से देखो  बच्चे की तरह  लार टपक रही है।

- हा, हा,  हा ।

वह हँसता है। 

-पायल...

वह फिर से रोना शुरू कर देता है।

- अरे,  मेरी लंगुरिया।   चुप हो जा रे।  तूने तो लड़कियों का ही रिकॉर्ड तोड़ दिया।  रो मत । चुप हो जा ।

-ना। रोने दे।

- अजीब बंदा है । कैसे रोने दूँ? अब तो दुःख को तेरे आस पास भी नहीं फटकने दूँगी। अच्छा..  चल अब चुप हो जा।  वरना मैं फेसबुक पर लाइव हो जाऊंगी और फिर लड़कियों को शर्मिंदगी होगी कि उनसे ज्यादा भी होने वाला कोई प्राणी है इस दुनिया में।

- हा, हा । अच्छा चुप होता हूँ। होता हूँ...

वह चुप होने का प्रयास करता है।  लेकिन उसके आंसू रोके नहीं रुक रहे थे।  पायल उसकी पीठ थपथपा रही थी।  उसने उसके माथे को चूमा । आदित्य अपने सीने का  7 साल का जहर और दर्द एक ही बार में पायल के सीने को भिगोकर निकाल देना चाहता था । आखिर वही तो थी जो उसे सबसे ज्यादा प्यार करती थी और अच्छे से जानती थी। पायल भी समझ गई थी कि अब उसे चुप करवाने का कोई मतलब नहीं है । वह गहरी सांस लेती है और आदित्य को अपने सीने से लगा लेती है। आदित्य रोना बंद नहीं करता है।  उसकी सुबकियां कम नहीं हुई।  वह एक छोटे नन्हे बच्चे की तरह पायल की छाती से लगा हुआ था।  पायल को उसकी हालत देखकर यकीन हो जाता है कि जिस स्थिति से आदित्य निकल कर आया है । वैसी स्थति  से निकल कर आना हर किसी के बस की बात नहीं।  भले ही आदित्य अपने आप को शेर कहलवाना  पसंद नहीं कर रहा था।  किंतु था तो वह शेर ही।  लेकिन उसे पायल का लंगूर बनने में ही खुशी थी । उसे रोते हुए करीब आधा घंटा हो जाता है । आसमान में बदल ओर गहरे काले  हो गए थे।  पायल उसकी पीठ सहला रही थी ।

-अच्छा मतलब अब तू चुप नहीं होगा ।

-रोने दे ना यार...

-  यार यह कोई मंदिर का प्रसाद है जो मांग रहा है।  चल खड़ा हो और मैं कहीं नहीं जा रही हूं । और  हां ना ही खुद जा रही हूँ और  अब ना ही तुझे  जाने दूंगी। अपने सीने से लगकर रखूंगी।  तुमसे गुस्सा तो बहुत ही यार।  लेकिन कोई बात नहीं । माफ किया ।

-अच्छा अब कभी नहीं जाएगी ना मुझे छोड़कर?

-अरे, गधे मैं थोड़ी ही गई थी।  तू गया था  मुझे छोड़कर ।

-मैं... मैं भी नहीं जाऊंगा।  मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ पायल

और वह पुनः  रोना शुरू कर देता है।

- पता है आदि मैं तेरा कैसे इन्तजार कर पाई थी? 

-कैसे?

-पहले चुप हो बाद में बताउंगी तुझे।

- अच्छा होता हूं।

आदित्य अपना मुंह ऊपर  करता है।  कुछ देर में बारिश की बूंदे गिरना शुरु कर देती है । वह खड़ा होता है।  पायल भी खड़ी हो जाती है । वह उसके आंसू पोंछती है।  आकाशीय बिजली गिरने की आवाज होती है। पायल आदित्य से गले लग जाती है। वह उससे कसकर लिपट गई।  शीघ्र ही बारिश शुरू हो गई।  आदित्य कोट खोलता है और पायल और अपने ऊपर  ओढ़ लेता है।  पायल पहले उसके गले से लग जाती है । फिर वह उसके गाल को चूमती है। वह उसके दिल की धड़कन महसूस कर रही थी।  आज उसे आदित्य की छाती से लगकर बहुत सुकून मिल रहा था । करीब 7 साल बाद उसे आदित्य का सीना रोने के लिए मिला था।  उसके दिल की धड़कनों को वह आसानी से सुन सकती थी।  जो सिर्फ पायल के लिए धडक रही थी । वह उसका सीना चूमती  है और ऊपर की तरफ देखती है।

- क्या देख रही हो?

- बस यही कि तू मुझसे कितना प्यार करता है?

- बहुत.. बहुत ज्यादा।

- अच्छा?

- हां ।

-मुझे सबूत चाहिए।

- कैसा सबूत?
- मतलब तू आब भी बुद्धू है।  अच्छा वह होता है ना जो सब करते हैं ।

-बातों को घुमाओ मत । साफ-साफ बोलो।

- अच्छा...  वह बताया नहीं जाता । मुझे शर्म आ रही है।  तू  आंखें बंद कर ।

-अच्छा ओके ।

वह अपनी आंखों को बंद करता है।  इतने में पायल झपट्टा मारकर उसका कोट छीन लेती है और घर की तरफ भागने लग जाती है।

- हा, हा, हा । तुझे क्या लगा था कि मैं तेरे3 साथ  लिप लॉक करुँगी।

-ओए, बंदरिया। मैं भीग रहा हूँ।

- तो पकड़ लो।  मैं भी तो देखूं कि क्या मेरा लंगूर अभी भी  इतनी फुर्ती रखता है ।
-अच्छा तुझे शक है। तुझे तो मैं अभी बताता हूं।

वह पायल के पीछे दौड़ता है।  फिर वह दौड़कर उसे पीछे से  पकड़ लेता है ।

-औए, लंगूर भीग  रही हूं मैं ।

-मैं भी...

वह कोट को सही से ओढ़ाता  है और पायल भी उससे चिपक कर चलती है । लेकिन वे बारिश में भीगने से बच नहीं पा रहे थे।  प्रकृति भी उन दोनों के मिलन का उत्सव मनाना चाहती थी।  इसलिए धो  दिया।  उन दोनों को रास्ते में । पायल ने आदित्य को उसके जाने के बाद की सभी बातें बताई। दोनों भीग  रहे थे । लेकिन उन्हें अब मौसम से कोई परवाह नहीं थी।  भले ही उत्तरी हवाएं ठंडी चल रही थी।  किंतु उन दोनों की हाथों में इतनी गर्मी थी कि उन्हें ठंड नहीं लग रही थी
  वे दोनों रास्ते में हंसते-मुस्कुराते जा रहे थे।  जैसा कि पहले जाते थे । उसने आदित्य को पम्मी और उसके बीच की बात बताई।  उसने यह भी बताया कि कैसे पम्मी  उसके लिए रिश्ता लेकर आया था और वह गुस्सा होकर उसके पिताजी और उनके साथ आए सभी दोस्तों को यह कहकर भगा दिया था  कि वह सिर्फ आदि से प्यार करती है और अगर किसी ने मेरी शादी की बात कि तो मैं उसकी टाँगे तोड़ दूँगी।  उसने यह भी बता दिया कि कैसे उसने अपने घर वालों को कहा कि अगर वे  उसके फैसले के  खिलाफ कोई जाता है तो वह घर छोड़ देगी । लेकिन मैं पम्मी से शादी नहीं करूंगी । चाहे बिना शादी किए मैं बूढी भी क्यों ना हो जाऊं। 

आदित्य  उसकी बातों को सुन रहा था । ठीक वैसे ही जैसे पहले सुनता था।  उसने यह भी बताया की उसे उस पर यकीन था कि वह वापस आएगा।  इसलिए उसने अपने घर वालों को पहले ही हिदायत दे दी थी कि अगर आदित्य वापस आता है तो उसे इस तरह से भोंदू बनाना है कि वह रो पड़े।  ताकि उसे भी यह अहसास हो सके कि उसने  आने में कितना वक्त लगा दिया था।  बस यही कारण था कि पायल की मां ने भी  बातों को घुमाते हुए यह कहा कि वह ससुराल गई है।  लेकिन यह साफ नहीं किया कि वह गोदभराई की खुशखबरी देने उसके भाई  भूपेश के ससुराल गई थी।  वे जब दोनों घर पहुंचते हैं तो आदित्य का सभी घरवाले मजाक बनाते हैं।

वे सभी हंस-हंस कर लोटपोट हो जाते हैं । पायल की भाभी भी  आदित्य का बहुत मजाक बनाती है ।  आदित्य पहले तो उदास हो जाता है। लेकिन फिर वह माहौल में ढल जाता है।  पायल के पिताजी रामवतार और कमला सभी आदित्य के वापस आने से बहुत खुश होते हैं । पायल के पिताजी और उसकी मां उसके माथे को चूमते हैं । आरती का थाल लेकर वे  उसका स्वागत करते हैं और दुआ करते हैं ईश्वर से कि अब उसके साथ ऐसा कुछ भी ना हो जो बहुत बुरा हो । उसके बाद वे उसे घर में प्रवेश करवाते हैं । उसने कपड़े बदले ताकि उसे ठण्ड ना लग जाए।  हालांकि ठंड बहुत ज्यादा थी इस वजह से उसे और पायल दोनों को जुखाम लग गई । वे उसकी हर छींक  पर जोर-जोर से हंस रहे थे । वे सभी देर रात तक एक ही कमरे में बतियाते रहे । आदित्य पायल की पिताजी की चारपाई पर ही रजाई में दुबका हुआ था।  वे  उसके बालों को सहला रहे थे। उन्हें उस पर गर्व था क्योंकि उसने अपने जिम्मेदारी पूर्ण व्यवहार से सबका दिल जीता था।  वह किसी नन्हे  बच्चे की तरह उनसे गले लगकर सोया हुआ था।  पायल व  उसके सभी घरवाले उसके वापस लौटकर आने के कारण बेहद खुश थे।

सुबह हो जाती है।  आदित्य पायल के साथ फॉर्म के सभी नए पुराने लोगों से मिलता है । गुरमीत और बाकी के सभी सदस्य उसके वापस आने से बेहद खुश थे । सेठ जी आदित्य को फोन करके उसे उसका वही घर वापस लौटा देते हैं और उनके गलत फैसले के चलते माफी मांगते हैं। इसके अतिरिक्त वे उसे अपनी जमीन का आधा हिस्सा आदित्य के मना करने के बावजूद भी दे देते हैं । उन्होंने यह भी बताया कि जमीन के कागज कुछ ही दिनों में बनकर के तुम्हारे पास आ जाएंगे।  आदित्य और पायल ने साथ मिलकर अपने पुराने घर को साफ किया।  वहां मकड़ियों के जाले लगे हुए थे।  लेकिन अब भटका हुआ परिंदा वापस अपने घर आ गया था । पायल के पिताजी ने आदित्य की मां को आदित्य और पायल कि जल्द ही शादी करने के बारे में बताया । आदित्य का पूरा परिवार बीकानेर से वापस हनुमानगढ़ आ गया। दोनों की शादी का सारा खर्चा सेठ जी ने उठाया । अर्चना, बीरबल और अन्य सभी के सभी उनसे मिलने आए । शादी में उन दोनों को आशीर्वाद दिया । यह भी एक कमाल की बात थी की पायल का ससुराल 200 मीटर दूर था । इस कारण उसका जब जी करता वह कभी अपने घर आ जाती तो कभी आदित्य के घाट।  वही पुराने दिन वापस लौट आए थे । आदित्य की मां ने भी अपनी नई बहु का अच्छे से स्वागत किया । आखिर उसने वापस आदित्य को ठीक जो कर दिया था । आदित्य वापस वही का वही बन गया था।  वही मुस्कुराने वाला।  वही हंसने वाला।  हालांकि अपने पिताजी की याद उसे  बार-बार सताती थी।

    चार माह बाद

आदित्य हरिपुरा गांव की स्कूल में जाना प्रारंभ कर देता है।  पायल भी एक कंपनी में हनुमानगढ़ काम करने लग जाती है।  इधर पायल बस से उतरती उधर आदित्य की छुट्टी होती।  आदित्य और पायल दोनों अक्सर रामू काका की दुकान पर कचौड़ी खाने भी जाते ।  आदित्य ने एक-एक करके पुनः सबसे मिला। चाहे वह विनोद जी सर हो या राघव । सब कुछ पहले के जैसा ही था । ना ही आदित्य के मन में बदले की भावना थी और ना ही पायल के । वह अभी पहले की ही भांति  लंगूर ही बोलती थी। हाँ,  अब कभी-कभी उसे मजाक में "अजी,  लंगूर जी सुनते हो?" बोल देती थी। 

एक रोज जब वे दोनों कच्चे रास्ते से जा रहे थे तो अचानक उसके फोन की घंटी बजी ।

-हेलो,  आदि कैसा है तू?

अर्चना की आवाज आई।

- अच्छा हूँ।

-और तेरी बंदरिया?

- वह भी अच्छी है। मस्त है ।

-अच्छा एक सरप्राइज  दूँ?

- हाँ, बोल।

-मैं, अंकिता और बीरबल चाचा तीनों तुम सब से मिलने कल आ रहे हैं ।

-अरे, वाह डेट्स  ग्रेट।

- तेरी इंग्लिश की मां की आंख।

- हा, हा , हा,   तेरी बंदरिया तो बिल्कुल वही है रे ।

अर्चना को जैसे ही पायल की आवाज सुनती है वह जोर-जोर से हंसने लगती है। पायल  मुस्कुराती है । आदित्य भी हंसने लग जाता है ।

-अरे , अब तो इसे  इंग्लिश आती है।  लेकिन फिर भी।  एनी वे वी विल वेट ऑल ऑफ यू ।

-ओके, वी विल कम टूमारो।

वे दोनों मुस्कुराते हैं।  फोन कट हो जाता है और फिर वे दोनों चल पड़ते हैं हरिपुरा की तरफ।  उन दोनों के सामने एक ऐसा रास्ता था।  जहां अब दुःख,  दर्द का कोई स्थान नहीं था । अब  उनको कोई जुदा नहीं कर सकता था।  मैं भी नहीं।

इधर हनुमानगढ़ टाउन के एक मकान में आदित्य की चाची जिस घर में रहती थी । उसका दरवाजा बजता है।  वह दौड़कर बाहर जाती है।  वहां  एक लड़का खड़ा था।

- रुपेश की मां आप ही है ना?

-हां, मैं ही हूँ।

- आपके लिए सामान भेजा है किसी ने ।

वह  लड़का एक डिब्बा आदित्य की चाची जी को एक डिब्बा पकड़ता है । वह घर के अंदर जाती है । रुपेश गुमसुम सा बैठा हुआ था । आखिर उसकी पढ़ाई रुकी हुई थी।  वह डिब्बे  को खोलती है तो आश्चर्यचकित हो जाती है । उसमें एक पांच लाख रूपये का चेक और  कुछ नगद रुपए थे।  उसमें एक लेटर भी था ।

डियर रुपेश,

यह तुम्हारे लिए है । मैं कौन हूँ।  यह जानने का प्रयास मत करना । इन पैसों से एक घर किराए पर ले लेना  एक बार।  कुछ ही दिनों बाद में मैं कुछ पैसे और भेज दूंगा तुम्हें।  तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें । अगर और पैसों की जरूरत हो तो इस पत्ते पर एक पत्र भेज देना ।  तेरे पास पैसे आ जाएंगे।  लेकिन वादा करो कि तुम अपने बाप की तरह बेईमानी का रास्ता नहीं चुनोगे।

तुम्हारा

जो भी नाम दो

-मम्मी,  यह जो भी हो।  आज से मेरा भगवान है।  रुपेश ने रोते हुए उस कागज के टुकड़े को अपने सीने से लगा लिया।  वह अपनी मां से गले लगता है ।

-मम्मी, मैं भले ही अपने बाप के बुरे कर्मों के दाग को मिटा नहीं सकूंगा।  लेकिन इतना वादा जरूर कर सकता हूं कि मैं कभी भी अपने कमीने बाप के पद चिन्हों पर नहीं चलूंगा। 

उसकी पलकों से आंसू की एक बूंद उस सफ़ेद कागज़ के टुकड़े पयरः गिरती है।  लेकिन वह बूंद खुशी की थी।

इधर आदित्य और पायल दोनों हंसते-मुस्कुराते  जंगल में प्रवेश करते हैं। उन्हें वही पेड़ दिखाई देता है। वे दौड़कर उसके पास जाते हैं। उस दिल को चूमते हैं। पायल आदित्य की तरफ प्यार भरी नजरों से देखती है।
-क्या देख रही हो?
- कुछ नहीं बस ऐसे ही। आई लव यू लंगूर।

-आई लव यू  टू।

आदित्य पायल का हाथ पकड़कर उसे अपने करीब खींचता है और उसका माथा चूमता है।  मानो वो ये साबित कर रहा हो कि प्यार इसे कहते हैं। पायल उसके सीने से लग जाती है। वे दोनों एक दुसरे की धड़कनों को महसूस कर रहे थे। पायल आदित्य की बाहँ से अलग नहीं होना चाहती थी तो आदित्य ने भी अपनी बाहों को उसके गोरे बदन के चारो और फैला दिया था। वे दोनों एक दुसरे में ही खोए हुए थे। मानो वे ये दिखा रहे हों कि अब वो अलग नहीं हो सकते। मुझसे भी नहीं।  😘 

❤️ कहते हैं प्रेम कहानी कभी ख़त्म नहीं होती है। लेकिन फिर भी आपके आदि और पायल का उपन्यास पूर्ण हो चुका है। ❤️



मेरी  मोहब्बत   का सफर   स्पेशल

इस उपन्यास को पूर्ण करने में आप सब पाठकों का बहुत बड़ा योगदान रहा। इस उपन्यास को लिखने के दौरान बहुत सारे पाठक कहानी से इतना जुड़ाव कर बैठे कि न जाने कितने सवाल मुझसे पूछते थे।  कभी मेरे पिताजी की हकीकत जानने के लिए तो कभी पायल के बारे में जानने के लिए । मैं इन सभी सवालों का जवाब इस रविवार तक सवाल-जवाब  एपिसोड में दे दूंगा। इस उपन्यास की कहानी को आपने बहुत प्यार दिया।  इसके लिए आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।  उपन्यास के पात्रों से कुछ पाठकों को इतना लगाव हो गया कि वह यह तक बोलने लगे कि कृपया करके पायल और आदि को एक बार यहां भेज देना । मैं श्री भट्ट जी का धन्यवाद करना चाहूंगा जिन्होंने मुझसे कहा कि अगर उदयपुर मैं आदित्य किसी को नहीं जानता तो क्या हुआ मैं तो जानती हूँ ना। हा, हा,  हा  । खैर,  मैं श्री जी से कहना चाहूंगा कि मैं उन दोनों को अब समर ट्रिप के लिए उदयपुर भेजने वाला हूँ। क्या आप उनका स्वागत करने के लिए तैयार हैं।  हा हा हा  😂😂😂😂

आप सबने कहानी को बहुत प्यार दिया इसके लिए आपका दिल से बहुत बड़ा धन्यवाद । चलो अब कहानी की कमजोर कड़ी के बारे में बात करते हैं । अगर आपको उपन्यास की कहानी  में कोई कमी नजर आई हो तो कृपया करके कमेंट जरूर करें ।

इसके अतिरिक्त अगर आपको कहीं पर भी कहानी को पढ़ने के बाद कोई प्रश्न जगा हो तो कृपया करके उसका जवाब जानने के लिए  कमेन्ट करें। ताकि उसका जवाब मैं आने वाले रविवार तक दे दूँ। रविवार को इस लिए  क्योंकि कुछ ऐसे पाठक हैं जो लेट भी पढ़ते हैं । आप सब ने इतना प्यार दिया इसके लिए मैं आप सबका फिर से धन्यवाद करना चाहूंगा।

समर्पित- मैं इस उपन्यास को आप सब पाठकों को,  मेरी बहन आरती सिंह "पाखी", आयुषी, स्वाति, पीकू, सुनीता  और  उसको समर्पित करता हूँ जिससे मैं बेहद प्यार करता हूँ।   वह भी मुझसे बेहद प्यार करती है ।  बहुत बार ऐसे हफ्ते भी आए जब कई बार रात को मैं उससे बात नहीं कर पाता था।   लेकिन मेरे एक बार कहते ही वह बिना नाराज हुए ही मान जाती थी और एक लेखक की होने वाली पत्नी के नाते  यह गुण उसमे  होना  मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।   कभी-कभी वह मुँह भी फूला  लेती थी।। किंतु इतना तो होने वाली  वाई-फाई का हक बनता है।   हा हा हा 😆😆😆🤣

अरे मैं उसे वाई-फाई  ही बोलता हूँ क्योंकि  उससे बात किए बगैर मैं नेटवर्क में नहीं रहता  और हाँ   उसका मैं धन्यवाद सबसे ज्यादा करना चाहूंगा उन सभी  दृश्यों के लिए जिसमें मैंने प्यार डाला है । क्योंकि हम तो ठहरे खडूस जी😂😂 तो मजाक या लड़ाई के सिवाय कुछ नहीं डाल पाते। ये प्यार भरे दृश्यों के पीछे उसका हाथ है।😂😂

खैर,  इसके अतिरिक्त बहुत सारे  रीडर्स  को इस बात का दुख है कि यह उपन्यास पूरा हो गया । लेकिन आप सबके लिए सबसे बड़ी खुशखबरी यही है कि अगले 3 से 4 महीने बाद मेरा उपन्यास ( द कलर ऑफ माय लव ) जो कि हिंदी में (मेरे इश्क का रंग) नाम से भी पब्लिश होने वाला है।  उस उपन्यास में मैं लेखक कैसे बना?   यह बताने वाला हूँ। कहानी बहुत ही यूनिक है । तो कृपया करके उस नावेल को  जरूर पढ़ना । जब पब्लिश होगा तो मैं सूचित कर दूंगा। इसके अतिरिक्त या उपन्यास और मेरा उपन्यास नाग कन्या एक रहस्य भी जल्द ही पेपर बैक में आने वाला है। अतः आप इन्हें पुस्तक के रूप में भी अपने पास रख सकते हैं  ।


नोट- उपन्यास (मेरी मोहब्बत का सफर...) राजेन्द्र कुमार शास्त्री "गुरु" के नाम से कॉपी राइट अधिकार में है। अगर कोई भी संस्था, फर्म, व्यक्ति विशेष इस कहानी का पूर्ण, आंशिक या संवादों की कॉपी करता है तो वह कानूनन अपराध माना जाएगा और उसके खिलाफ लीगल कार्यवाई की जाएगी।