अध्याय- 36
सूरज अब पश्चिम दिशा की तरफ डूबने लगा है । आदित्य अकेला ही अब अपनी मंजिल की ओर बढ़ने लगता है । उसकी आंखों में आंसू व घोर निराशा थी । आखिर उसके प्यार का यह अंजाम होगा उसने सोचा नहीं था । आते वक्त जो फुर्ती उसके कदमो में थी । वह अब नहीं रही थी। वह शीघ्र ही हरिपुरा गांव में पहुंच जाता है। उसकी आँखे जमीन को देख रही थी ।
"आदि..."
अचानक उसे जानी पहचानी आवाज सुनाई पड़ती है । वह पीछे मुड़ता है तो पाता है कि वह कोई और नहीं बल्कि राघव था।
" राघव ... मेरे भाई मेरे पास अब तुम्हारे साथ लड़ाई करने का वक्त नहीं है। उस दिन के लिए दिल से माफी चाहता हूँ। प्लीज मुझे जाने दो।"
" अरे! रुक.... रुक.. कमीने गले नहीं लगाएगा क्या? उस दिन जो भी हुआ उसे भूल जा। आखिर गलती तो हम सब की ही तो थी ना ।"
राघव आदित्य को गले से लगाता है । राघव के बदले हुए व्यवहार को देखकर आदित्य आश्चर्यचकित हो जाता है। उसे पता नहीं था कि राघव इतना कैसे बदल गया।
"पर राघव.."
"भाई! मैं जानता हूँ विजय अंकल को फार्म से निकाल दिया गया है । पायल तेरे बिना बहुत निराश रहती है । वह किसी से बात भी नहीं करती है । मैं उससे माफी मांगना चाहता था पर हिम्मत नहीं हुई यार । मैंने तुम्हे और पायल को बहुत तंग किया है भाई। माफ़ कर दे। "
"अरे! यार.. कोई बात नहीं राघव। "
आदित्य की आंखों में आंसू आ जाते हैं।
राघव उसे सांत्वना देते हुए कहता है- सब ठीक हो जाएगा मेरे भाई । क्या तू पायल से मिला था आज?
- नहीं हिम्मत नहीं हुई ।
- अगर वह तुम्हे मिले तो उसे कुछ भी मत कहना प्लीज। तुम्हें मेरी कसम ।
- ठीक है नहीं कहूंगा। वादा रहा । लेकिन अगर तुम बुरा ना माने तो क्या मैं हेल्प करूं तेरी?
- नहीं, राघव बस तुम उसे यह कह देना कि एक दिन उसका आदि आएगा । सिर्फ उसके लिए...
इतना कहते हुए उसने अपने कदम बढ़ा लिया। राघव को उसके दशा पर तरस आ जाता है । वह भी रोने लग जाता है। वह नहीं जानता था कि आदि अपनी आर्थिक स्थिति कैसे ठीक करेगा। किंतु वह इतना जरूर जानता था कि आदि एक दिन वापस जरूर आएगा।
इधर पायल निराशावस्था में अपने घर पहुंच जाती है । उसका स्वभाव आजकल दिन-ब-दिन बदलता ही जा रहा था। वह घर में बहुत कम बात करती थी। उसकी मां व उसके बड़े भाई भूपेश से तो उसका नाता सा ही टूट गया था । या यूं कह लो कि वे दोनों पायल के दिल की बात जानना ही नहीं चाहते थे। अक्सर रोती हुई पायल को पुचकारने का काम उसके पिताजी ही करते थे। वह अपने पिताजी के सीने से लग कर अपने गमों के आंसूओं को कभी कभार बहा लेती थी । लेकिन जो आग दिल में लगी हो उसका उपाय आसानी से कहां मिलता है।
इधर आदित्य अपनी बस पकड़ने के लिए गांव की चौपाल में स्थित बरगद के पेड़ की छांव तले बैठा है । हालांकि अभी इतनी गर्मी नहीं है । क्योंकि वक्त लगभग शाम के 4:00 बजे का है ।
- अरे! आदि तुम?
- रामु काका आप ..
- हां, बेटा मैं। क्या हुआ बेटा उस दिन के बाद कभी दुकान पर नहीं आए? मैंने सुना था कि तेरे पापा की छुट्टी कर दी सेठ जी ने?
- हां, काका।
- बहुत बुरा किया बेटा। वैसे तेरे जाने के बाद तो पायल बिटिया भी नहीं आती है यहाँ।
पायल का नाम सुनते ही आदित्य की आंखों में आंसू आ जाते हैं । बूढा रामु काका उसके अंतर्मन में चल रहे बवंडर को समझ जाता है।
- अच्छा सुन.. तुझे याद है तुम और पायल एक दिन पार्टी करने यहां आए थे?
- हां, काका याद है...
- तो फिर यह कैसे भूल गया कि तू मुझमें साठ रूपये भी मांगता है । चल आजा दुकान पर । तुझे कचौड़ी खिलाता हूं और तेरे पैसे भी ले जा।
- पर काका बस...
- कोई बहाना नहीं चलेगा। बस के आने में अभी 30 मिनट पड़ी है । चल आजा मेरे साथ।
- राम काका के मधुर शब्दों के आगे आदित्य की एक न चली। वह चुपचाप रामू काका के पीछे-पीछे उसकी दुकान तक जाता है । वे उसे दो कचौड़ी खिलाते हैं व बाकी का पैसा दे देते हैं । आदित्य का मन उस जगह को छोड़कर जाने का नहीं करता है। उसे पायल की याद आ रही थी । वह सोच रहा था कि वक्त ने कैसी पलटी मारी है। अभी इसी बेंच पर पायल उसकी बगल में बैठ करके अक्सर कचौड़ी खाती थी तो वही आज वह अकेला था । उसकी आंखों के सामने उसे अंधेरा ही नजर आ रहा था । भावनाओं के मकड़जाल से चाहकर भी वह निकल नहीं पा रहा था । दिल में अपार वेदनाएं थी। दुखों का कोई अंत नहीं था। वह अपनी आंखों में हर एक दृश्य को कैद करना चाहता था । हरिपुरा गांव की चौपाल से लेकर रामू काका की दुकान की बैंच तक । आज वह हर चीज को अपने हाथों से स्पर्श करके महसूस करना चाहता था । वह अपने अतीत में खोया हुआ था कि अचानक ही बस के हॉर्न ने उसे यथार्थ के धरातल पर ला पटका । उसने अपना बैग और बस की तरफ चल पड़ा। उसने अपने दिल को तसल्ली देने के लिए एक बार फिर से पीछे की तरफ देखा और बस के अंदर चढ़ गया । रात के करीब ग्यारह बजे तक वह गांव मैं पहुंच गया था।
सुबह हो चुकी है । पायल जंगल के रास्ते से होकर स्कूल की तरफ जा रही है । अचानक उस शीशम के पेड़ के पास आते ही उसके पांव किसी चीज को देख कर रुक जाते हैं ।
- आदि...आदि....
वह आदि के पद चिन्हों को देखकर चिल्लाने लगती है। वह घुटनों के बल नीचे बैठकर जूतों के निशानों को ध्यान से देखती है।
- आदि... हां, हां... मैं जानती हूं । लंगूर यह तेरे ही कदमों के निशान है। तू ऐसे ही चलता है। देखो आदि.. अब मजाक मत करो मेरे साथ।
पायल रोते हुए इधर-उधर दौड़ती है । अचानक उसे पता चलता है कि आदित्य के कदम उस शीशम के पेड़ की तरफ जा रहे हैं।
-कमीने! जानती हूं मैं। तू मजाक कर रहा है ना । तू उस पेड़ के पीछे छिपा हुआ है ना। रुक तू..
वह दौड़ कर उस पेड़ की तरफ जाती है। वह उसके कदमों के चिन्हों को ध्यान से देखती है।
- मजाक मत कर मैं जानती हूं। तू आया था । तू यही है.. तू यही है ना... कल मेरा दिल बेचैन था। कमीने जंगल से बाहर आ जा । मुझे मत सता। वरना मैं मर जाऊंगी..
वह रोते हुए घुटनो के बल जमीन पर गिरती है।
-आदि....तू कहां है। आदि...
वह जोर से चिल्लाती है । उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं। अचानक उसकी नजर पेड़ के तने में बनी जगह में दबाए हुए कागज के टुकड़े पर पड़ती है । वह जल्दी से उसे बाहर निकालती है और उसे खोलती है ।
-आदि.. आदि यह तो तेरी ही राइटिंग है । वह आंसू पोंछकर पत्र पढ़ना शुरू करती है।
कल आया था मैं बंदरिया। चाहता था तुमसे मिलूं। लेकिन.. लेकिन मजबूरी की बेड़ियों ने मेरे पावों को जकड लिया था। चाहता था बाबा तेरे गले से लिपट कर जी भर कर रो लूँ। चाहता था तेरी माथे को चूम लूं । लेकिन.... लेकिन बाबा क्या करूं? तेरे आदि की अब औकात बहुत नीची हो गई है रे ...
तेरा आदि हार गया है। मैं टूट चुका हूँ। मैं जानता हूं कि तेरे लिए तेरा आदि हमेशा ही विजेता है। लेकिन बाबा मैं नहीं चाहता था कि तुम मुझे देखकर टूट जाओ । मैं जानता हूँ कि जिस हालत में मैं हूं उस हालत में अगर तू मुझे देख लेती तो तू बिखर जाती। अगर तुम रोने लग जाती तो तेरा आदि अपने आपको कभी माफ नहीं करता । मैं तेरी आंखों में आंसू नहीं देख सकता। पायल । क्योंकि बहुत प्यार करता हूं तुमसे.. बहुत.. बहुत प्यार करता हूं । बस इतना समझ ले की हम अभी मिल नहीं सकते। यह हमारे प्यार का इम्तिहान है। जिसे हमें देना होगा। लेकिन एक दिन तेरा आदि आएगा। एक दिन आएगा..
लेकिन कब?
इसका जवाब मैं नहीं दे सकता। लेकिन आऊंगा जरूर।
क्या इंतजार करोगी मेरा? बोलो?
अगर बुड्ढा हो गया तब भी इंतजार करोगी?
अगर हां तो तुझे जरूरत नहीं है रोने की। क्योंकि तब तक मैं आ जाऊंगा।
सिर्फ तेरा और सिर्फ तेरा..
लंगूर बोले तो आदि
और हां एक बार तो मुस्कुरा दे यार...
मैं इंतजार करूंगी आदि। मैं इंतजार करूंगी तेरा। मरते दम तक इंतजार करूंगी। चाहे बूढी ही क्यों ना हो जाऊं। आदि का पत्र पढ़कर पायल मुस्कुराते हुए रोने लग जाती है। उसकी आंखों में उमड़े आंसुओं के सैलाब का साक्षी सिर्फ वह पेड़ ही था । वह आदित्य के कदमों की मिट्टी को चूमती है और अपने सीने से लगा कर रोने लग जाती है। उसकी चीख सुबकियों में बदल जाती है।
क्रमशः.....
अगला भाग आपको बड़ा मिल जाएगा..😊👍
अध्याय- 37
किसी महान इंसान ने कहा था कि पहला प्यार कम लोगों को ही नसीब होता है। लेकिन पायल आदित्य के व आदित्य जब पायल के बारे में सोचता था तो यह रिश्ता इस समाज, इस दुनियाँ, महान व छोटे इंसानों से अलग था। उन दोनों के लिए एक दूसरे से जुदा हो पाना मतलब जीने के बारे में सोच पाना ही मुश्किल था। आदित्य अपनी टी. सी. अपने दिल पर पत्थर रखकर ले आता है । किंतु उसकी आत्मा उसका दिल पायल के ही पास था। उसे नहीं पता था कि उसका पत्र पढ़ने के बाद पायल की पहली प्रतिक्रिया क्या होगी!
इधर पायल ना चाहते हुए भी आदित्य का इंतजार कर रही थी । वह रोज शिव मंदिर जाती। सोमवार के व्रत करती व शिव से अपने प्यार से मिलवाने की गुहार लगाती। लेकिन यह सब इतना आसान कहां था। उसका साथी सिर्फ वह पेड़ ही था । जिसके तने से लिपटकर रोती रहती थी। आदित्य के प्यार की बातें करती। आदित्य के नाम से प्रेम पत्र लिखकर उसके तने में रखती। यूं समझ लो कि उसका एकमात्र जो साथी था। वह कोई और नहीं बल्कि वह शीशम का पेड़ था।
इधर आदित्य के घर की आर्थिक स्थिति लगातार खराब होती जा रही थी। उसकी मां ने कुछ पैसे उधार लेकर घर में राशन का सामान गिराया था । वे आदित्य को विज्ञान की पढ़ाई नहीं करवा सकते थे। क्योंकि विज्ञान वर्ग की स्कूलों की फीस आदित्य के परिवार की सीमाओं से बाहर थी। इसलिए ना चाहते हुए भी आदित्य की मां को उसका दाखिला उनके गांव के पास के ही दूसरे गांव रामपुर में कला वर्ग के सरकारी विद्यालय में करवाना पड़ा।
केमिस्ट्री, फिजिक्स व मैथ पढ़ने वाले विद्यार्थी को जब राजनीति विज्ञान, संस्कृत पढ़ने को बोल दिया जाए तो उसकी क्या हालत होगी। वही हालत आदित्य की हो रही थी। हालांकि उसकी पसंद का एक विषय उसे स्कूल में मिल गया था और वह था अंग्रेजी साहित्य। इस कारण उसने मन लगाकर पढ़ाई करनी शुरू कर दी । हालांकि राजनीति व संस्कृत उसके कुछ कम ही पल्ले पड़ रही थी। किंतु उसकी लगन व मेहनत से धीरे-धीरे सब ठीक होता जा रहा था। उस विद्यालय के अध्यापक उसके प्रति अच्छा व्यवहार करते थे।
हालांकि कक्षा में कुछ बदमाश लड़के भी थे। किंतु आदित्य किसी से भी बात नहीं करता । अगर कोई जानबूझकर उससे लड़ने का प्रयास करता तो वह पहले ही माफी मांग कर निकल लेता। इस कारण सभी उससे चाह कर भी लड़ नहीं पाते थे । हालांकि कुछ दिनों के बाद ही उसके घर में बारिश ने खुशियों की बौछार कर दी । आदित्य के पिताजी ने कड़ी मेहनत से खेत में बाजरे की फसल की बुवाई कर दी। वक्त वक्त पर बारिश भी हो रही थी । गांव में पिछले 2 सालों की अपेक्षा इस वर्ष अच्छी बारिश हो रही थी । जो कि उनके परिवार के लिए एक राहत की बात थी। उनके खेत में बाजरे की फसल लहलहाने लगी। आदित्य रोज विद्यालय से आने के बाद खेत में निराई-गुड़ाई करवाने में अपने माता पिता की मदद करता था । हालांकि उसके पिताजी मूडी हो गए थे। किंतु वह और उसकी मां दोनों खेत में कड़ी मेहनत कर रहे थे।
आदित्य अब पूर्णत्या बदल चुका था । वह बहुत कम बात करता था। उसके पास पढ़ने के लिए नोट्स वह पासबुक्स नहीं थी । लेकिन उसका भी उसके पास एक हल था । अंकिता अक्सर अपनी पासबुक्स और नोट्स उसे पढ़ने के लिए दे देती थी। इसलिए उसे किसी तरह की दिक्कतका सामना नहीं करना पड़ रहा था। लेकिन वह आदित्य के रूखे व्यवहार से खफा थी। वह उससे दो चार बातें करना चाहती थी । किंतु आदित्य को उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी। वह बस हमेशा उसकी पास बुक्स लेता। जैसे ही पढ़ाई पूर्ण कर लेता । वह अंकिता के घर जाकर उसे उसकी पासबुक्स लौटा देता। इस दौरान उनके मध्य बस औपचारिक वार्तालाप ही होती। वह कभी कभार कोई घरेलू सामान लाने के लिए भी उसके घर जाता था। किंतु उन दोनों के मध्य सामान्य बातचीत ही हो पाती थी।
इधर पायल रोज विद्यालय जाती थी। वह खूब मन लगाकर पढ़ाई कर रही थी । उसके विज्ञान वर्ग था। इस कारण उसे और भी ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही थी। किंतु वह अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ रही थी । एक दिन जब वह अकेली अपने घर की तरफ से आ रही थी तो उसके बीच रास्ते में राघव व उसका दोस्त खड़े थे। पायल की नजर जैसे ही उन दोनों पर पड़ी। वह गुस्से में तमतमा गई। उसने एक छड़ी उठाई व उनकी तरफ लपकते हुए बोली- कमीनो, मुझे अकेली समझकर घेरना चाहते हो?
-अरे, नहीं.. नहीं, पायल नहीं। प्लीज माफ कर दो
राघव हाथ जोड़कर कहता है।
- तो क्यों आया है कमीने?
-दरअसल पायल उस दिन के लिए माफ़ी चाहता हूं मैं। मैं उस दिन आदित्य से मिला था?
-क्या सच बोल रहा है तू?
- हां, पायल मैं सच बोल रहा हूं।
-राघव, प्लीज मेरी आदि से बात करवा दो ना। प्लीज राघव।
-सॉरी, पायल मेरे पास उसके कोई कांटेक्ट नंबर नहीं है। लेकिन मैं वादा करता हूं । मैं जरूर कुछ ना कुछ करूंगा। पायल मैं जानता हूं । तुम दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हो ।
राघव के बदले हुए व्यवहार को देखकर पायल रो पड़ती है।
- आई एम सॉरी राघव । मैंने तुझे बुरा समझ रही थी।
-अरे! तो क्या हुआ। उस दिन हमारी गलती थी । लेकिन मैं वादा करता हूँ। मैं तुम दोनों को जरूर एक दिन मिलाऊँगा।
-मैं तेरा ये एहसान कभी नहीं भूलूंगी राघव
प्लीज मेरी आदि से बात करवा देना।
- अरे! एहसान किस बात का? अच्छा तू अब देर मत कर। तू जल्दी से अब घर जा।
-हां जा जा रही हूं।
पायल जैसे ही आगे बढ़ने लगती है। राघव पीछे से आवाज देता है ।
-क्या पायल तुमने मुझे माफ कर दिया?
-अरे, हां बुद्धू अब कितने दिन हो गए । अब तो माफ कर दिया। अच्छा ज्यादा चिंता मत कर तू। जा मैने तुम्हे माफ़ कर दिया है । लेकिन अगर आइंदा से कुछ तुमने ऐसा किया तो...
- हां जानता हूं । मेरा पिछवाड़ा बंदर के जैसे लाल कर देगी तू। हा, हा, हा।
राघव हंसने लगता है। राघव के हंसने पर पायल सिर्फ मुस्कुरा देती है और वह अपने घर की तरफ चल पड़ती है।
राघव का दोस्त बुदबुदाता है ।
-यार राघव बेचारी हंसी तक नहीं।
-हम्म...
वैसे तू कैसे मिलवाएगा?
- कुछ भी करूंगा पर इन दोनों को मिलवाऊंगा जरूर।
राघव ने अपने दोस्त के कंधे पर हाथ रखा और पुनः गांव की तरफ चल पड़ा । पायल को राघव की बातों से आदित्य से मिलने की उम्मीद बंधी।
इधर आदित्य को स्कूल से पैदल आते वक्त हमेशा पायल की याद आती। वह दुखी हो जाता । जब बारिश होती तो उसे पायल की चिंता सताती । सच तो यह था कि वे दोनों एक दूसरे से दूर जरूर थे। किंतु जब भी उन दोनों में से किसी को छींक भी आती तो उन दोनों को एक दूसरे की याद आ जाती। इधर अंकिता दिन-ब-दिन आदित्य के रूखे व्यवहार से परेशान रहती। उसने आदित्य की उदासी के विषय में आरती से बात करी लेकिन आरती इस विषय में कुछ भी बता पाने में असमर्थ थी । एक रोज जब सूरज काले घने बादलों के पीछे छिपने की तैयारी में था तो बीरबल आदित्य के घर में आता है।
-विजय ओ.. विजय...
-हां, भाई बीरबल बोल।
- यार, आज तेरी भाभी की तबीयत खराब है मुझे उसे शहर लेकर जाना है। आदि बेटा को बोलना कि वह आज हमारे घर सो जाए। अंकिता अकेली नहीं रह पाएगी।
-: पर क्या अंकिता यहां नहीं सो सकती?
- अरे, भाई घर में बकरी प्रसवावस्था में है। ऐसे में उसका भी ध्यान रखना होगा। आदि इस विषय में जानता भी है । अगर वह घर होगा तो खुद भी प्रसव करवा देगा।
- हां, यह तो है । कोई बात नहीं सो जाएगा। तू आदित्य को भी जाते वक्त बोल जा। वरना मेरा कहना नहीं मानेगा वो।
-: ठीक है ।
-आदित्य अपने कमरे में बैठा पढ़ाई कर रहा था ।
-अरे, आदि बेटा। आज तू हमारे घर सो जाना।
- क्यों?
-अरे, तेरी चाची जी की तबीयत खराब है । मुझे उसे लेकर शहर जाना है । ऐसे में अंकिता घर में अकेली होगी। तू होगा तो दिक्कत नहीं आएगी ।
आदित्य अधूरे मन से अपनी गर्दन हिला देता। वह इस दुविधा में था कि भला वह कैसे दूसरे के घर में जाकर सो जाएगा। बीरबल वापस चला जाता है । आदित्य खड़ा होकर अपनी मां के पास जाता है।
- मां, यह क्या है? मैं बीरबल चाचा के घर जाकर नहीं सो पाऊंगा ।
पर बेटा क्यों? वह बहुत भले इंसान है। हमारी कितनी मदद करते हैं। अगर तू नहीं जाएगा तो वो बुरा मान जाएंगे।
; पर मां मैं अकेला?
- देखो, आदि पर वर कुछ नहीं। अगर तुम्हें अकेले नींद नहीं आएगी तो आरती को साथ ले जाना। वैसे भी आरती होगी तो तुझे नींद आ जाएगी ।
-पर माँ
-देख आदि। अब कोई बहाना नहीं । तू आरती को साथ ले जाना। ठीक है?
-ठीक है ।
आदित्य ने बेमन से कहा और अपने कमरे में पढाई करने चला गया। क्योंकि उसकी एक भी नहीं सुनी गई। वह चुपचाप जाकर अपने कमरे में पढ़ने लग जाता है वह पढ़ रहा था कि अचानक ही उसे अंकिता की आवाज सुनाई देती है
- आदि..
आदित्य पीछे मुंह करके जब देखता है तो उसके सामने अंकिता थी।
- हां, बोल.... आदित्य रूखे स्वर में पूछता है।
- अरे, मैं तो यह कहने आई थी कि मैं तुम्हारा वह आरती का खाना बना रही हूँ। तू मेरे घर ही खाने आ जा आज । हम खूब बात भी करेंगे।
-अरे, मेरे पास बात करने का वक्त नहीं है । समझी? आदित्य पुनः रूखे स्वर में कहता है।
- अरे, शांत हो जा गदाधारी भीम। ओके मत करना बात। लेकिन खाना तो तुझे मेरे घर ही खाना होगा।
- मैं नहीं खाऊंगा तेरे घर।
आंटी..
-हाँ, अंकिता बेटा...
आंटी मैं तो यह कहने आई थी कि आप आदि और आरती का खाना मत बनाना। मैं दोनों का खाना बना रही हूँ।
-ठीक है बेटा। जो तुम्हारी मर्जी ।
-अच्छा अब सुन लिया ना । चुपचाप टाइम से मेरे घर आ जाना समझे।
अंकिता मुस्कुराते हुए आदित्य के घर से चली जाती है। आदित्य मन मसोस कर रह जाता है । किंतु वह कुछ भी कर पाने में असमर्थ था।
शाम हो चुकी है । अंकिता, आदित्य व आरती तीनों खाना खा चुके हैं। अंकिता ने आदित्य व आरती के लिए बिस्तर लगा दिया है। उसने खुद का भी उनकी बगल में ही चारपाई पर बिस्तर लगा लिया । आदित्य कमरे में अंदर जाकर देखता है तो पाता है कि उसकी चारपाई अंकित की चारपाई के पास में ही थी।
- तू इतने करीब सोएगी?
-क्यों कोई दिक्कत है तुझे।
-दिक्कत की बात नहीं है ।
-तो फिर क्या बात है? दरअसल मुझे रात को डर लगता है इसलिए चारपाई नजदीक लगाई है ।
-अच्छा ठीक है। आदित्य इतना कहते हुए चारपाई पर पुस्तक लेकर बैठ जाता है और पढ़ने लग जाता।। आरती उसके बगल में जाकर सो जाती है । अंकिता आदित्य को एकटक देख रही थी । वह आदित्य से बात करना चाहती थी किंतु बात की शुरुआत कहां से करें उसे पता नहीं था।
वह कुछ देर तक लगातार उसे देख रही थी। आरती सो चुकी थी ।
-आदि तुम इतने खडूस कैसे हो?
-किसने कहा कि मैं खडूस हूँ?
-कहने की क्या जरूरत है? तुम कभी भी ढंग से बात नहीं करते हो।
-: अच्छा, कुछ भी। तुम्हे ऐसे ही लगता है। वैसे सॉरी.. लेकिन ऐसी कोई बात नहीं है।
- अच्छा..
-हम्म....
अंकित आदित्य की तरफ देखती है।
- तुम यूं टुकुर-टुकुर क्या देख रही हो?
- कुछ नहीं बस ऐसे ही .. अच्छा, तेरी कोई गर्लफ्रेंड है क्या?
अंकिता ने जैसे ही यह सवाल दागा आदित्य के चेहरे पर उदासी छा जाती है । वह दुखी हो जाता है।। अंकिता उसकी तरफ देख रही थी।।
-अच्छा, अगर तुम कंफर्टेबल नहीं हो तो मत बताओ.
- : वैसे तुम्हें क्यों जानना था कि मेरी कोई गर्लफ्रेंड है या नहीं?
- ऐसे ही जनरल नॉलेज के लिए जानना था ।
-जनरल नॉलेज के लिए...
- तू भी ना पागल है।
- हा, हा, हा... वैसे तू मुझे कुछ भी बोल सकता है । पागल, बुद्धू । पर अपनी बातों को तू मुझसे शेयर कर सकता है ।चल बता ना क्या है कोई?
- हां ...
-क्या! सच्ची...
- हां वह मेरे लिए केवल गर्लफ्रेंड ही नहीं। बल्कि सब कुछ है। पायल नाम है उसका । मुझे नहीं पता कि हम दोनों कभी मिलेंगे भी या नहीं । लेकिन मैं उससे बहुत प्यार करता हूं।
इतना बोलते-बोलते आदित्य की आंखों में आंसू आ जाते हैं। वह दुखी हो जाता है। आदित्य अपनी व पायल की कहानी बताता है तो अंकिता भी रो पड़ती है।
- वह उसका हाथ पकड़ कर कहती है- सब ठीक हो जाएगा आदि । मैं तुम्हारे लिए व्रत करूंगी । ताकि तुम दोनों मिल जाओ।
- पर तुम क्यों करोगी?
-अबे गधे अगर एक बहन व्रत नहीं करेगी तो कौन करेगा?
- अच्छा!
- और नहीं तो क्या?
अंकिता मुस्कुराते हुए जवाब देती है।
- चल बढ़िया है। वैसे पांडे के जैसी तो तू मोटी हो रखी है खा खाकर और मेरे लिए व्रत और करेगी । क्या एक दिन भूखा रह जाएगी तू ?
देख, कुछ भी हो। लेकिन मेरे खाने-पीने पर अगर तुमने कोई कमेंट मत किया तो वरना अच्छा नहीं होगा...
-अच्छा! बड़ी आई कान के नीचे ऐसी मारूंगा कि रात को तारे दिखाई देंगे।
- हा, हा, हा। वो तो ऐसे ही दिखाई देते हैं। लेकिन अगर मैंने तेरे मुंह पर मुक्का मारा तो दांत टूट जाएंगे। समझे.. और फिर पायल भी तुझे एक्सेप्ट नहीं करेगी..
- अरे...रुको। रुको ... मुझे सोना है । तुम दोनों को अगर लड़ना है । तो कृपया करके दूसरे कमरे में प्रस्थान करें ।
आरती ने कंबल को हटाकर मुंह बार निकालते हुए कहा।
-हा, हा, हा... छोटी बिल्ली तू जागती ही थी क्या?
अंकिता हंसते हुए कहती है । आरती को इतना कहते ही वह भी उनके साथ लड़ने लग जाती है । काफी दिनों बाद आदित्य के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आई थी। वे सब घण्टों बातें करते हैं।
क्रमशः....
नोट- आजकल अगले भाग देने में वक्त लग रहा है इसके लिए तहदिल से माफ़ी चाहता हूँ। वैसे यह भाग बड़ा है।🙂
खैर, आरती का लास्ट वाला डायलोग मैंने कॉपी किया है।😎🤣🤣😆 सॉरी नहीं बोलूंगा तुमसे समझी...😆😆😆
अध्याय- 38
आदित्य को विद्यालय जाते हुए चार माह हो गए हैं। इन चार महीनों में उसने अपने विद्यालय व खेत के काम के मध्य सामंजस्य स्थापित कर लिया था। खेत में बाजरे की फसल अच्छी दिखाई देने लगी थी। किंतु उसके पिताजी का बाहर कहीं भी काम न करने के कारण घर की आर्थिक स्थिति लगातार खराब होती जा रही थी । आदित्य के पिताजी का दोस्त बीरबल भी उनकी मदद नहीं कर पा रहा था क्योंकि उसकी पत्नी की हालत कैंसर के चलते और भी नाजुक होती जा रही थी और उसके घर भी पैसों की तंगी आ गई थी।
लगातार होते कर्जे के चलते आदित्य की मां उसके पिताजी को अक्सर खरी-खोटी भी सुना देती थी कि वे कहीं भी कमाने नहीं जाते हैं । जिस कारण उन्होंने बोलना बिल्कुल कम कर दिया। वह दिन भर कमरे में ही बैठे रहते। उनकी बिरबल से भी कम बातें हो पाती थी । क्योंकि बीरबल अपनी पत्नी की बीमारी के चलते भागदौड़ में ही रहता । अंकिता आदित्य के साथ थोड़ी बहुत मस्ती मजाक कर लेती थी। उनकी अच्छी खासी बनने लगी थी । हालांकि यह आदित्य पहले वाला आदित्य नहीं रहा था। वह पहले की अपेक्षा ज्यादा समझदार दिखाई देता था । यही कारण था कि वह अपने घर की गिरती अर्थव्यवस्था को लेकर चिंतित भी रहने लगा ।
एक रोज जब दीपावली की छुट्टियां हुई तो आदित्य अपने घर की तरफ जा रहा था । वह जैसे ही गांव में प्रवेश करता है गांव के बाहर जा रहा एक जमींदार उसे मिल जाता है । यह वही जमींदार था जिसके घर आदित्य ने मकान निर्माण का कार्य करवाया था।
" अरे, आदि बेटा ।"
"हां, काका..."
" दीपावली की छुट्टियां हो गई क्या, तुम्हारी?"
"हाँ, काका हो गई ।"
"अच्छा मेरे खेत में बाजरे और मूंग की फसल एक साथ पक गई है। क्या उसे कटवाने में मदद कर दोगे?"
"काका..."
आदित्य सोचने लगता है।
" सोच क्या रहे हो बेटा एक दिन के तीन सौ रूपये मिलेंगे। बताओ करवा दोगे क्या? "
वह जानता था कि खेत में फसल कटाई का काम कितना मुश्किल होता है। किंतु वह यह भी जानता था कि उसके घर की आर्थिक स्थिति लगातार कमजोर हो रही थी । गांव का कोई भी व्यक्ति सौ रुपये भी उधार देने के लिए तैयार नहीं था। ऊपर से सर्दियां भी आने लगी थी इस कारण उसे अपने भाई-बहन, माता-पिता के लिए गर्म कपड़े भी खरीदने थे दीपावली का भी त्योहार आने वाला था। इस कारण उसके लिए भी पैसों की दरकार थी।
"क्या सोच रहे हो आदि बेटा? बोलो करोगे क्या काम?" ज़मीदार पुनः उससे पूछता है।
"हाँ! काका करूंगा ।"
"अच्छा, ठीक है फिर कल सुबह आठ बजे आ जाना खेत में।"
" ठीक है, काका ।"
आदित्य इतना कह कर अपने घर की तरफ चल देता है। उसने लगातार सात-आठ दिन खेत में काम किया। दीपावली आने में सिर्फ 2 दिन ही बचे थे। इस कारण वह जमीदार से दो हजार रूपये लेकर अपने घर आता है।
" अरे, ओ विजय कुमार मेरे पैसे कब देगा?" एक कर्जदार ठेठ देहाती भाषा में कहता है।
आदित्य की मां कमरे से बाहर आकर धीमे से कहती है- अभी तो पैसे बने नहीं है।
" क्या कहा? मैंने ठेका नहीं ले रखा है। पैसे बने नहीं है। बड़े आए ! पहले मेरे घर से अनाज उधार लेकर आ गए और अब देने के लिए आपके पास पैसे नहीं है ।"
"भाई, शांत हो जाओ। जैसे ही पैसे आएंगे। हम तुम्हें दे देंगे।" आदित्य के पिताजी कर्जदार को समझाते हैं।
" तू तो बोल ही मत बिज्जू। कमाता -धमाका तो है नहीं । जब पैसे मांगने कोई आता है तो अपनी औरत को आगे कर देता है।"
"देख, भाई जबान संभालकर बात कर । पैसों की बात है। कुछ ही देर मैं तो आ नहीं जाते।"
" यह ज्ञान मुझे मत दो। चुपचाप पैसे निकाल। वरना में व मैं पांच आदमियों के सामने तुम्हारी बेज्जती कर दूंगा।"
"क्या बात है अंकल जी? किसकी बेईज्जती कर रहे हैं आप?"
" तुम्हारे बाप की और तुम्हारी मां की। चप्पल घिस गई है मेरी यहां तुम्हारे घर चक्कर काटते-काटते हैं।"
"देखो, अंकल जबान संभाल कर बात करो ।"
"अच्छा, अब तू मुझे बताएगा कि कैसे बात करनी चाहिए?"
" हाँ, बता सकता हूँ। यह घर हमारा है और आप यहाँ ऐसी बात नहीं कर सकते ।"
"अच्छा, अगर इतनी ही इज़्ज़त प्यारी है तो पैसे निकाल मेरे।"
" कितने पैसे हैं आपके?'
" क्या!"
" मैं पूछ रहा हूं कितने पैसे हैं आपके?"
" एक हजार रूपये मूल और सौ रूपये के करीब ब्याज बनता है। "
" अच्छा कितने महीने हुए हैं?"
" 6 महीने के करीब हो गए हैं।"
" माँ, तुझे याद है क्या इनसे तुमने बाजरे की बोरी किस तारीख को ली थी?"
"हाँ, बेटा 11 तारीख को।"
" अंकल जी, आज 25 अक्टूबर है । आप के 5 महीनों के सौ रूपये ब्याज बनता है और ऊपर के 14 दिनों के नौ रूपये और बनता है। "
" यह क्या बोल रहे हो?"
" हाँ, अंकल तो आपके एक हजार एक सौ नौ रूपये ब्याज सहित बनते हैं।" आदित्य अपनी जेब में से सौ-सौ रूपये के नोट निकालते हुए कहता है ।
"मुझे सिर्फ ग्यारह सौ रूपये ही दे दो । "
"नहीं, अंकल जी । यह लो 1100 रूपये। क्या माँ तुम्हारे पास पचास रुपये हैं?"
" हाँ, है ना। " वे अंदर जाकर पचास रुपये का एक नोट लेकर बाहर आती हैं और वे उसे आदित्य को देती है ।
"यह लो अंकल जी पचास रुपये। नौ रूपये ब्याज के हैं और बाकी के चप्पल घिसाई के। कोई नई रिलैक्सो की चप्पल खरीद लीजिएगा ।"
"यह क्या कह रहे हो तुम?"
" सही ही तो कह रहा हूँ अंकल। आगे से आप जब भी मेरे घर आए तो कायदे से बात कीजिएगा । फिर हम चाय भी पिलाएंगे। वरना दो रूपये की के धागे और सुई से मुंह भी सिलना बखूबी आता है मुझे ।"
"यह ठीक नहीं बोल रहे हो?"
" मैं ठीक ही बोल रहा हूँ । आइंदा से मेरे पापा ही नहीं मेरे पूरे परिवार से कायदे से बात कीजिएगा । आज मेरा वक्त बुरा चल रहा है, अंकल लेकिन कभी अपना टाइम आएगा, चलिए गुड नाईट ।" आदित्य के बोलते ही वह कर्जदार पैसे लेकर अपने घर की तरफ चला जाता है । आदित्य के माता-पिता के चेहरे पर गर्वीली मुस्कान थी।
उस दिन आदित्य ने अपने माता-पिता के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत कर दिया था कि वह घर को बखूबी चला सकता है। उसके जवाब देने के तरीके से उसके पिताजी भी बहुत प्रभावित होते हैं।
दीपावली से 1 दिन पहले की ही बात है । आदित्य उस जमीदार के खेत से काम करके वापस घर की तरफ आ रहा था । उसके पास मात्र नौ सौ रूपये ही बचे हुए थे । क्योंकि बाकी के पैसे तो उसने उस कर्जदार को दे दिए थे । वह सोच रहा था कि इतने कम पैसों से वह क्या करेगा। क्या वह दीपावली के लिए मिठाईयां लेकर आएगा या फिर अपने परिवार के सदस्यों के लिए गर्म कपड़े। वह इसी उहापोह में अपने घर की तरफ बढ़ता है । वह जैसे ही अपने घर के मुख्य दरवाजे के पास पहुंचता तो वह देखता है कि उसके घर के बाहर भीड़ जमा थी । वह यह सब देख कर चौंक जाता है।
क्रमशः....
आज का पार्ट छोटा है। कल का बड़ा मिल जाएगा। कहानी वेलेंटाइन्स डे के आसपास पूर्ण हो जाएगी😊
अध्याय- 39
आदित्य जल्दबाजी में घर पहुंचता है । उसे नहीं पता था कि अंदर क्या हुआ है! घर के आंगन में भीड़ थी । लोगों के जोर जोर से बोलने की आवाजें आ रही थी।
- क्या हुआ अंकल?
वह हकलाते हुए एक आदमी से पूछता है । वह व्यक्ति नहीं बोलता है । आदित्य भीड़ को चीरता हुआ आगे बढ़ता है। सभी उसकी तरफ देख रहे थे । अचानक ही उसे एक ऐसा दृश्य दिखाई देता है जिसे कोई भी बेटा नहीं देखना चाहेगा।
- पापा....
आंगन में सफेद कफन में लिपटी अपने पिताजी की लाश को देखकर वह चीख पड़ता है।
पापा.... पापा.... वह दौड़कर अपने पिताजी की लाश को छूने लगता है।
- अपने आप को संभालो बेटा।
- बीरबल आदित्य को गले लगाता है । वह छुड़ाकर अपने घर के अंदर भाग जाता है। आरती और उसकी मां उससे गले लगकर रोने लग जाती हैं। पार्थिव और अदिति दोनों उनसे दूर खड़े थे । उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उनके घर क्या हुआ है और वे रो क्यों रहे हैं ।
- भैया! पापा....
आरती बिलख पड़ती है। आदित्य की मां भी उसके गले लग कर रोना शुरु कर देती है । वे कुछ देर तक यूं ही फूट-फूट कर रोने लगते हैं।
-आदि बेटा शाम होने वाली है। अंत्येष्टि का वक्त बीत रहा है। चलो हमारे साथ ।
बीरबल रूधे हुए गले से कहता है। आदित्य रोते हुए साथ हो जाता है । गांव के कुछ मुख्य लोग -"राम नाम सत्य है, सत्य बोलो गत्य है।" बोलते हुए श्मशान घाट की तरफ बढ़ते हैं। आदित्य के कंधों पर घर का सारा भार आ गया था। उसके आंसू रोके नहीं रुक रहे थे । आखिर कैसे रुकते! जिस लड़के की उम्र खेलने-कूदने व पढ़ने की हो उसी उम्र में उसने अपने पिता को खो दिया था।
गांव के पंडित जी वह खत्रीपुत्र अंतिम संस्कार की प्रक्रिया आरंभ करते हैं। वे शमशान घाट पहुंच चुके थे । आदित्य के पिताजी की अर्थी के साथ लगाई गई बांस की लकड़ियों को काटा जाता है । फिर उसमें से एक लकड़ी पर कफन का कुछ छोटा टुकड़ा लपेटा जाता है और उस पर देशी घी डाला जाता है । घर के चूल्हे से लाई गई अग्नि से उस लकड़ी को आग लगाई जाती है और फिर उसे पंडित जी ने आदित्य के हाथ में थमा दिया। आदित्य को अपने पिताजी के साथ बिताए गए लम्हे याद आने लगते हैं। समंदर से गहरी आंखों से उसके आंसू लहरों की भांति उमड़ पड़ते हैं । वह अपने पिताजी की पार्थिव देह को मुखाग्नि देखकर बड़े बेटे का फर्ज निभाता है । करीब 1 घंटे में ही उसके पिताजी का पार्थिव शरीर राख में तब्दील हो जाता है। इसी के साथ आदित्य के सारे सपने चकनाचूर हो गए। किसी ने सोचा नहीं था । अपनी छोटी सी उम्र में ही वह अपने दोस्त जैसे पिता को खो देगा। पहले से ही वे पिछले कुछ महीनों से मानसिक रूप से कमजोर थे। लेकिन आदि उनसे बहुत प्यार करता था । जैसे ही आग बुझ जाती है सभी वापस गांव की ओर बढ़ते हैं । घर जाने पर आदित्य को पता चलता है कि उसके पिताजी ने उनके खेत के कुंड (पानी का टांका) में कूदकर आत्महत्या की थी। लेकिन क्यों यह एक बड़ा सवाल था जिसे वे अपने साथ ही ले गए!
रात हो चुकी है । रात के करीब 10:00 बजने को है। आदित्य अपने कमरे में अकेला गुमसुम सा बैठा है। अंकिता और बीरबल उनके ही घर में हैं । वे उन्हें भावनात्मक रूप से सहारा दे रहे थे । आदित्य की मां और आरती रो रही थी। अंकिता उन्हें ठान्ठस बंधा रही थी। आदित्य अपने कमरे से बाहर निकलता है । वह रोते हुए गांव के श्मशान घाट की तरह बढ़ता है । उसकी मां व अन्य लोगों को पता नहीं है कि वह श्मशान घाट की तरफ गया है । आदित्य गांव के श्मशान घाट में पहुंच चुका है। यह वही स्थान था जहां उसके पिताजी की अंत्येष्टि की गई थी। रात में बोलने वाले पक्षियों की डरावनी आवाजें आ रही थी । आदित्य दुख से विमुक्त है। वह लड़खड़ाते कदमों से अपने पिताजी की अंत्येष्टि के पास पहुंचता है। उसे बार-बार अपने पिताजी के साथ बिताए गए लम्हे याद आ रहे थे । वह उन लम्हों को भूल नहीं पाता है। आखिर भूले भी तो कैसे? उसके पिताजी और उसके मध्य में दोस्ती वाला जो रिश्ता था । वह रोते हुए घुटनों के बल अपने पिताजी की की गई अंत्येष्टि के पास गिरता है और भसम को हाथ में लेकर चीख़ता है- पापा....पापा....
-पापा मैं बड़ा नहीं हुआ हूं । मैं इस लायक नहीं हूं कि इस घर को आपके बिना संभाल सकूं। पापा आप कहां गए । पापा... प्लीज आप आ जाओ ना। मैं आपके बिना जिंदा नहीं रह पाऊंगा । पापा....
उसकी चीखें आसमान चीर जाती हैं। इतनी भयानक डरावनी चीखे की निराकार शिव भी कांप जाए। उसका रोते-रोते गला रूध जाता है । आंसू आंखों में ही दबकर रह जाते हैं।
-पापा आपने यह ठीक नहीं किया । मैं आपको कभी भी माफ नहीं करूंगा । पापा... कभी भी नहीं.... जा रहा हूं मैं। अकेला। काश! आप मेरा साथ देते पापा। हम जी लेते यार। हम सह लेते दुख साथ में। लेकिन वादा करता हूं आज के बाद कभी भी कायरों की तरह मरूंगा नहीं। मैं गिरूँगा, रोऊंगा लेकिन आपकी तरह मरूंगा नहीं। वह अपने आंसू पोंछता है और अपने घर की तरफ बढ़ता है।
इधर दूसरी तरफ उसकी मां आदित्य को घर में ढूंढती है। वे चिंतित होती हैं कि आखिर आदित्य कहां गया। कुछ ही देर में आदित्य लड़खड़ाते कदमों से घर की तरफ आता है। उसकी मां उसके कदमों की आवाज सुनकर कोने में से खड़ी होकर घर के बरामदे में आती है । आदित्य को देखकर उन्हें गुस्सा आ जाता है । वह उसे जोर से थप्पड़ मार कर कहती हैं - कहां गया था तू?
-आपको इस से मतलब?
- अच्छा , तो अब मुझे कोई मतलब नहीं है। तुझे पता है श्मशान घाट से लकड़ियां वापस नहीं आती तो तेरा बाप कहां से आएगा?
-मुझे कुछ नहीं मतलब। मुझे कोई मतलब नहीं । मैं अब बात नहीं करना चाहता मुझे जाना है।
-लेकिन कहां?
- बहुत दूर । जहां तुममे से कोई ना हो।
- अच्छा, तू पागल हो गया क्या? एक तेरा बाप कायरों की तरह है मर गया और अब तुम। ऐसे कैसे चलेगा यह सब? तुझे पता है? तुम्हारे तीनो भाई-बहन कितने छोटे हैं । आरती अभी 12 साल की ही हुई है और पार्थिव और अदिति ये.. ये दोनों तो ... इन्हें तो यह भी नहीं मालूम कि तुम्हारा बाप मर गया है । इन्हें तो लग रहा है कि वे कही चले गए हैं। आदि...
वे बिलख पड़ती हैं और आदित्य के गले लगकर फूट-फूटकर रोने लग जाती है । आरती दौड़कर आदित्य के पाँव पकड़ कर लेती है।
-भैया, प्लीज आप कहीं मत जाना। भैया, जब आप भी चले जाओगे तो हम कहां जाएंगे? हम तो भूखे मर जाएंगे। भैया... भैया... प्लीज मत जाना।
आदित्य रोते हुए आरती को गले लगाता है ।
- मैं कहीं नहीं जाऊंगा आरती।
आदित्य की माँ रोते हुए आदित्य से गले मिलती है।
- अब तू ही हमारा सहारा है बेटा। अगर तू ही हमें छोड़ कर चला जाएगा तो हमारा क्या होगा रे?
- म... मां.. मुझे माफ कर दे। मुझे गुस्सा आ गया था । मैं कहीं नहीं जा रहा आप सब को छोड़कर।
आदित्य आरती वह अपनी मां को गले से लगाता है। उसके दोनों कंधों पर अब दो स्त्रियों की रक्षा और सभी के पालन पोषण का भार था। अब उसे ही घर को संभालना था । लेकिन कैसे? इसका जवाब वह भी नहीं जानता था।
लेखक-राजेन्द्र कुमार शास्त्री "गुरु"
मेरी मोहब्बत का सफर... को लेकर पाठकों का सवाल🙂
प्रिय पाठकों
आप सभी मेरी मोहब्बत का सफर.. को काफी पसंद कर रहे हैं इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। जैसा की आप सबको पता है कि इस कहानी के अधिकांश किस्से मेरी ही लाइफ से इंस्पायर्ड हैं तो सभी पाठकों के दिमाग में एक प्रश्न भी आ रहा था। बहुत से पाठकों ने मुझे पर्सनली मेसेज भी किए थे। उनका यह प्रश्न था कि सर अगर यह रीयल स्टोरी हैं तो क्या आपके पिताजी हैं? 😭😭😭
प्रश्न एक ऐसा है जिसका जवाब देना कोई भी बेटा नहीं चाहेगा। क्योंकि यह एक अजीब सवाल था। लेकिन जिज्ञासा होना लाजमी ही है। अतः इसका जवाब देता हूँ।
आप सभी तो जानते ही होगे कि कहानियां या उपन्यास भले ही किसी लेखक की जिन्दगी का हिस्सा क्यों ना हो लेकिन वह जब अपनी जिंदगी के किस्सों को उपन्यास या कहानी का रूप देता है तो फिर उसे कुछ बाते हटानी पड़ती हैं तो कुछ को काल्पनिक रूप देकर जोड़ना पड़ता है। इस कहानी में भी ऐसा ही किया जा रहा है। लेकिन जैसा कि कहानी एक गंभीर मोड़ पर है और आप मेरे दिल के करीब हैं इस लिए इसका जवाब भी दे देता हूँ। इसका जवाब के रूप में मैं अपनी लाइफ के एक रीयल किस्से को शेयर कर रहा हूँ। आपको उससे जवाब मिल जाएगा। अच्छा लगे तो कमेंट जरूर कीजिएगा।
👉 यह कहानी मेरे लिए लिखना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि जो मैंने सहा है वही लिख रहा हूँ। जब हमारे घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी तब पापा कहीं कमाने नहीं जाते थे। एक दिन मैंने गुस्से में सुबह कह दिया था कि पापा आप अपने पिता होने का फर्ज क्यों नहीं निभाते हो?
पापा बोले जिस दिन मैं मर गया उस दिन तुम्हे मेरी जगह का अंदाजा होगा। उस दिन लड़ने के बाद में स्कूल चला गया था और फिर जब दोपहर को आया तो माँ से पूछा की माँ पापा कहां है?
माँ ने कहा- वो तो खेत में गए हैं।
मैंने पूछा- क्यों?
माँ का जवाब आया पता नहीं लेकिन वो रस्सी लेकर साथ गए हैं।
मेरे पांवो तले जमीन खिस्क गई। दौड़ता हुआ खेत में गया । मन में न जाने कितने बुरे ख़याल आ रहे थे । महसूस कर रहा था कि कही पापा ने रस्सी से कुछ कर ना लिया हो😭😭😭
जब खेत में पहुँचा तो देखा पापा नीम पर चढ़े हुए थे। मैंने रोते हुए कहा- पापा...
उन्होंने पूछा - रो क्यों रहे हो?
मुझसे बोला नहीं जा रहा था। उन्होंने नीचे उतरकर पूछा - क्या हुआ?
मैं रोते हुए पापा से गले लग गया और फूट-फूटकर रोने लगा।
पापा को जब मैंने सारी बात बताई तो उन्होंने मुझे गले लगाते हुए कहा- तेरा बाप इतना भी कायर नहीं की तुझे छोड़कर फांसी खा ले। आखिर तुझे डाँटेगा कौन ? 😭😭😭😭
मैं तो तेरी बहन के लिए झूला डाल रहा था।
बस उसी दिन मुझे अहसास हुआ की मेरे पापा ने भले ही नौकरी छोड़ दी और फिर कहीं काम करने नहीं गए।
भले ही कम उम्र में ही मुझे काम पर जाना पड़ा।
भले ही मुझे पढ़ाई करते वक्त मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन मेरे पापा मेरे पापा है। वो मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। ऐसे ही एक दिन उन्हें खून की उल्टी हुई। मैं डर गया था। जब चैकअप हुआ तो पता चला बस फ़ूड पॉइजनिंग है ना की केंसर😭😭😭😭 मैंने उस झूले वाले किस्से को ही काल्पनिक रूप देकर कहानी को आगे बढ़ाया है।
I love my papa... ❤️
मानता हूँ मैं एक अच्छा बेटा नहीं हूँ। मैं रोज तानाशाह बनकर उन पर गुस्सा करता हूँ । लेकिन जब उन्हें कोई दूसरा कुछ कहे तो मैं बर्दास्त नहीं कर सकता । मैं उनसे कुछ भी शेयर कर देता हूँ। चाहे वो मेरी लव लाइफ हो या फिर चाहे कोई और मेटर। अब जब वे ऐसी कहानी पढ़ते हैं तो कहते हैं लाइफ में इत्तनी लड़कियां कब आई तेरे राजू😂😂 मुझे नहीं बताया😆😆😆
पापा प्यार से राजू कहते थे 🙈🙈🙈 😘😘। लेकिन अब लेखक महोदय कहते हैं। शायद अब उनका मेरे प्रति प्यार कम हो गया है।😭😭😭🙄🙄 पर फिर भी चाहता हूँ वो मेरे दोस्त और आलोचक बनकर मेरी टांग खिंचाई करें😒
भगवान से बस यही दुआ है चाहे मुझे कुछ भी हो जाए मेरे पापा लंबी उम्र पाएं😍
गॉड bless यू पापा। अब तो राजू बोल दो यार🙄😏
आशा है, आपको सत्य पता चल गया है लेकिन आप इसे मेरी कहानी से कहीं ज्यादा आदि और पायल की ही कहानी समझें😍😍 ❤️
आप सबका दिल से शुक्रिया।
धन्यवाद!
सादर
गुरु
।भाग- 40
आदित्य के पिताजी की मृत्यु हुए 3 दिन हो चुके हैं। उनके घर का बुरा हाल है । जो कुछ सगे संबंधी थे वे घड़ियाली आंसू बहाने उनके घर आते हैं। गांव में कुछ प्रतिष्ठित लोग उसके पिताजी की अस्थियों का विसर्जन करवाने के लिए उसे चंद पैसे उधार देते हैं । वह अपने पिताजी की अस्थियों का विसर्जन करने हरिद्वार जाता है । उसके घर में दीपावली के त्यौहार पर यह सब होगा। यह उन्होंने कभी नहीं सोचा था। अगले कुछ दिन उनका घर गमगीन माहौल में रहता है उन सब के मध्य में मुश्किल से ही बातचीत होती है । अंकिता और बीरबल उन सब को संभाल रहे थे। इस दरमियान बीरबल की पत्नी की तबीयत बहुत खराब हो जाती है। वह नहीं आ पा रहा था किंतु अंकिता निरंतर उनके घर जाती थी।
दीपावली की छुट्टियां पूर्ण हो चुकी थी। आदित्य के पिताजी का स्वर्गवास हुए अभी 15 दिन हो चुके हैं । वह अपनी पढ़ाई के बारे में सोच भी नहीं पा रहा था । एक रोज वह अपना मन बहलाने के लिए जैसे ही बैग खोलता है उसे उसके पिताजी के मध्य बातचीत करने वाले बक्से की चाभी मिलती है। वह अचानक चौंक जाता है।
- बक्से की चाभी और वह भी यहां मेरे बैग में।
वह जल्दी से दौड़कर अपने पिताजी वाले कमरे में जाता है। जहाँ वह बक्सा पड़ा था । वह उसे खोल कर देखता है तो उसके अंदर एक लेटर पड़ा था।
-कैसे हो आदि?
मैं जानता हूं तुम मुझसे गुस्सा हो । नफरत कर रहे हो। यह सोच रहे हो कि तेरा पापा कायर है। इसी कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली। लेकिन यह सच नहीं है बेटा। तुझे पता है क्या बेटा? जब किसी पेड़ की एक शाखा में कीड़े लग जाते हैं या दीमक लग जाती है तो क्या किया जाता है? माली उस पेड़ की शाखा को कट कर देता है। क्यों?
ताकि उसकी जगह है उस पेड़ पर नई शाखा बन सके । मैं भी इस घर की वह शाखा बन गया था जो खराब हो चुकी थी। इसलिए इसका कटना बहुत जरूरी था।
सेठ जी के यहां से नौकरी छूट जाने के बाद में तिल-तिल मर रहा था । मैं जहां भी गया वहां मुझे प्रताड़ित किया जाता। यहां तक कि होटल वाले के द्वारा भी। इसके पीछे तेरे मामा का ही हाथ था। वह उस मालिक को पैसे भी देता था मुझे तंग करने के लिए । मैंने यह बात तुम सब से जानबूझकर के छुपाई थी । इसके अलावा जब- जब मैं खाना खाता तो हमारे अनाज की बोरी की तरफ देखकर यह सोचता था कि मैं किसी काम का नहीं हूं । उल्टा बिना काम किए ही रोटिया तोड़ता हूं। तुम्हारी मां ने एक दो बार जब कहा कि आप बिना काम किए ही रोटियां तोड़ते हो तो मुझे आभास हुआ कि मैं किसी काम का नहीं हूँ। लेकिन मुझे फिर भी चिंता थी कि मेरे बगैर भला तुम घर को कैसे संभाल पाओगे? लेकिन तुझे याद है जब वह कर्जदार हमारे घर आया था तब तुमने उसे डांटा था। मुझे उस वक्त लग गया था कि तुम हमारे परिवार की पूरी सुरक्षा करने के काबिल हो। इसलिए ही मैंने आत्महत्या कर ली। अब मैं हमारे घर की जिम्मेदारी तुझ पर छोड़कर जा रहा हूं बेटा । आरती, अदिति, पार्थिव और तेरी मां को संभालना अब तेरी जिम्मेदारी है। ठीक है बेटा । गुड बाय मेरे रॉकस्टार । लव यू ।
तुम्हारे पापा
- पापा....
लेटर पढ़ते ही आदित्य के मुंह से चीख निकल गई है। उसकी मां दौड़ती हुई कमरे की तरफ आई।
- क्या हुआ आदि?
-माँ मैं मामा और महेश चाचा को नहीं छोडूंगा। मां मैं उन्हें जान से मार दूंगा । देख माँ इस लेटर को देख । पापा को मामा ने बहुत तंग किया था।
आदित्य की माँ उस लेटर को पढ़ती है । उसको पता चल जाता है । वह फूट-फूट कर रोने लगती है ।
-उन्होंने यह ठीक नहीं किया बेटा ।
-हां, मुझे पता है । लेकिन इसके पीछे की मुख्य वजह मामा है । मैं उन्हें जान से मार दूंगा । अब मैं उन्हें नहीं छोडूंगा ।
-यह क्या बोल रहे हो?
- मैं सही बोल रहा हूं। मुझे जाने दे।
आदित्य दौड़ करके जैसे ही लाठी उठा कर बाहर निकलने लगता है। उसकी मां उसका हाथ पकड़ कर कहती है।
- क्या कहा? तू उन्हें मारेगा ? कैसे मारेगा । तू देख अपने आप को ।
वह उसकी बांह पकड़कर के अलमारी के दर्पण में उसे दिखाती हैं ।
-देखो क्या दिखाई दिया। तुम्हे पता है तुम अभी 18 वर्ष के भी नहीं हुए हो। बेटा बदला लेने के लिए पेट में खाने की जरूरत होती है । हमारे घर की आर्थिक स्थिति को देख पहले। एक वक्त के खाने के लिए भी हमें 20 बार सोचना पड़ता है।
- पर माँ.. पापा ने सुसाइड नहीं किया था। उन्होंने परेशान करके सुसाइड करने पर पापा को मजबूर किया था। अब तो महाभारत होगी मां...
- चुप हो जा तू । बड़ा आया महाभारत करने वाला । महाभारत में तुझे पता है पांडव पांच ही नहीं थे । उनके पास पूरी सेना थी और सारी कौरव सेना का संघार करने वाले श्री कृष्ण उनके साथ थे । पर तेरे पास कौन है बेटा। तेरी तरफ से युद्ध कौन लड़ेगा? तेरा एक छोटा भाई पार्थिव है जिसे तो बोलना भी ढंग से नहीं आता है। दो बहने हैं, और एक विधवा मां जिसका कोई वजूद नहीं है इस समाज में।
- पर माँ..
फिर वह रोने लग जाता है
- बेटा महाभारत की बात मत करो । पहले इस काबिल बनो कि सामने वाले की तुम्हे नजर उठाकर देखने की हिम्मत ना हो । मैं तुम्हें अपने गहने बेचकर सिर्फ 5 महीने पढ़ा सकती हूं। आगे नहीं। बस जो कुछ करना है तुम्हें इन्हीं 5 महीनों में करना है। अब तुझे इन पैसों से जाकर एक बंदूक खरीदनी है या इन 5 महीनों में मन लगाकर पढ़ाई करनी है। निर्णय तुम पर है। जो तुम निर्णय लोगे वही तुम्हारा और इस घर का भविष्य निर्धारित करेगा।
वह रोकर अपनी माँ के गले लग जाता है। उसे एक नई उम्मीद मिल चुकी थी। वह जानता था कि अभी उसका वक्त नहीं है । अभी उसे बहुत कुछ सहना है । अगर उसे असलियत में अपने पापा की मौत का बदला लेना है तो उसे धैर्य और संयम रखना होगा । उसे अपने वक्त का इंतजार करना होगा। इसलिए अगले ही दिन वह विद्यालय की तरफ प्रस्थान करता है। उसे नहीं पता था कि आगे आने वाली समस्याएं तो इससे भी ज्यादा भयानक होंगी।
क्रमशः....
नमस्ते,
आप सभी के लिए मैं कुछ नया लेकर आया हूँ। आप फेसबुक पर मेरे पेज को फॉलो करें। नाम है( Rajendra Kumar Shastri Guru)
इसके अतिरिक्त मैं जल्द ही आपके लिए एक फेसबुक ग्रुप बना रहा हूँ जहाँ आप सभी बड़े लेखको से सवाल जवाब कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त आप नई कहानियों के बारे में जानकारी जान सकते हैं। आप बहुत सी बातें बता सकते हैं।
इसके अतिरिक्त आपके लिए एक खुशखबरी और है। यह उपन्यास और मेरा पहला उपन्यास नाग कन्या- एक रहस्य कुछ-कुछ समय के अंतराल के बाद पाठको की मांग पर पेपर बैक यानी (पुस्तक) के रूप में आ रहा है। जिस किसी को भी खरीदना हो आप मुझे मैसेज कर दीजिएगा। पुस्तक का मूल्य करीब 200 रूपये (डिलीवरी) चार्जेज सहित होगा। इसके अतिरिक्त मेरा सबसे बेस्ट नॉवेल (The Colour of my love - In english edition) और हिंदी में (मेरे इश्क का रंग) भी 3 महीने के अंदर अंदर आ जाएगा। कहानी बहुत ही यूनिक है और बड़ा पब्लिशिंग हाउस प्रकाक्षित कर रहा है । अतः उसके बारे में भी आपको अपडेट मिलती रहेगी।
नोट- यह कहानी राजेन्द्र कुमार शास्त्री "गुरु" के नाम से कॉपी राइट अधिकार में है। अगर कोई भी संस्था, फर्म, व्यक्ति विशेष इस कहानी का पूर्ण, आंशिक या संवादों की कॉपी करता है तो वह कानूनन अपराध माना जाएगा और उसके खिलाफ लीगल कार्यवाई की जाएगी।
0 Comments