कहानी में अब तक आपने पढ़ा था आदित्य के पिताजी को लगातार किसी अनजान व्यक्ति के द्वारा फ़ोन जाता है। जो उन्हें तंग करता है। इसके अतिरिक्त सेठजी भी उन्हें अपनी जगह जेल जाने का प्रस्ताव रखते हैं। जिससे उनकी मानसिक स्थिति ओर भी ख़राब ही जाती है। इधर आदित्य की माँ, आदित्य और उसका मामा रविंद्र भी आदित्य के पिताजी के बदले हुए रवैये से ख़फ़ा थे। पायल भी दुखी थी क्योंकि उसका दोस्त और उसका प्यार आदित्य काफी दिनों से दुखी था। अब आगे....

                 

 

आदित्य पायल दोनों स्कूल के लिए जा रहे थे. ठंड अपनी  चरम सीमा पर थी  चारों और कोहरा छाया हुआ था. सरसों गेहूं की फसल पर ओंस की बूंदे सफेद मोतियों की तरह चमक रही थी. सरसों के फूल मानो इस मौसम का भरपूर आनंद ले रहे थे. किंतु आदित्य का चेहरा रात की घटना की वजह से उतरा हुआ था. पायल कुछ दूर तक उसके पीछे-पीछे शांत चलती है. किंतु आखिरकार उससे रहा नहीं गया.

-अबे! ओये, लंगूर आज फिर से क्या हो गया? क्या बात है तू उदास क्यों है?

- कुछ नहीं यार बस ऐसे ही.

-अच्छा! बड़ा आया. झूठ मत बोल. चल बता उदास क्यों है?

- क्या बताऊं यार. पापा का व्यवहार दिन--दिन खराब ही होता जा रहा है. वे पहले कभी गुस्सा नहीं करते थे. किंतु आजकल बहुत गुस्सा करने लगे हैं.

- अच्छा! लेकिन यार वो परेशान भी तो हो सकते हैं!

-पर..

-पर-वर कुछ नहीं. अब देखो. हमारे माता-पिता के लाख परेशानियां होती हैं. शायद कुछ ऐसी बातें हो जो वह चाह कर भी तुम्हें या आंटी को बता नहीं पा रहे हैं!

-पर इतना गुस्सा?

- यार कभी-कभी हमारे चारो ओर ऐसा माहौल बन जाता है कि कई बार असुरक्षा का भाव पैदा होता है. शायद इसी वजह से अंकल भी चिंतित हों! और इसी कारण शायद वो तुम सब पर गुस्सा करते हैं. समझे! चल अब मुस्कुरा दे. वरना..

-वरना क्या? तू बात-बात पर धमकी मत दिया कर. वरना क्या कर लेगी ?

- देख बेटा. अभी सुबह-सुबह का वक्त है. अगर शाम होती तो बता देती.

-अच्छा! बड़ी आई.

- बड़ी आई नहीं. सच में शाम होती तो बता देती.

- अच्छा कोई बात नहीं शाम भी हो जाएगी. तब बता देना. मैं भी देख लूंगा कि तुम्हारी धमकी कितनी खतरनाक है?

- अच्छा! देख लियो.

- देख लूंगा.

पायल आदित्य के साथ जानबूझकर झगडा करती है. ताकि वह किसी भी तरह की चिंता ना करें. वह चाहती थी कि उसका आदि हमेशा खुश रहे. मुस्कुराता रहे. किंतु किस्मत को क्या मंजूर था? यह ना तो आदि जानता था. ना ही पायल जानती थी और ना ही आदित्य का परिवार.

 

दोपहर हो चुकी थी. उत्तरी हवाओं के दौर के साथ आकाश में काले बादल मंडराने लगे हैं. आकाश में काले बादलों की तरह आदित्य के पिताजी की किस्मत पर भी काले बादल मंडरा रहे थे. वे मजदूरों का काम देखने के लिए खेत की तरफ जा रहे थे. अचानक उनकी नजर खेत की मेड पर बैठे हुए एक मजदूर पर पड़ी.

``यह क्या है सुंदरलाल? तुम यहां काम करने आए हो या बेईमानी की दिहाड़ी पूरी करने?``, आदित्य के पिताजी कहते हैं.

- ऐसा मत कहो. बस अभी थोड़ी देर के लिए ही तो आराम किया था.

- थोड़ी देर के लिए? झूठ मत बोलो.

``नहीं! ऐसा नहीं है. यह रोज नहीं बैठता है.``, दूसरा मजदूर विनोद बोलता है.

-तुम चुप करो. फालतू में इसकी पैरवी मत करो.

-पर मैं सच कह रहा हूं. यह रोज नहीं बैठता है.

- अच्छा तुम सब के सब मिले हुए हो. काम धंधा तो तुम सबको करना नहीं है. फोकट के पैसे चाहिए.

-ऐसा मत बोलो मुनीम जी. भला हम कोई आज ही तो मजदूरी करने आए नहीं हैं. हमने अपनी ऊपर काट दी हैं यहाँ मजदूरी करते हुए.

-तभी तो कह रहा हूं कि तुम सब रोज ही बेईमानी करते हो.

- यह क्या कह रहे हो मुनीम जी? ऐसा लांछन ना लगाओ.

``चुप करो तुम सब. मुझे काम करना है अपना. मैं आपकी तरह बेईमान नहीं हूं.``, आदित्य की पिताजी गुस्सा करके वापस लौट आते हैं. सभी मजदूरों को अपनी आंखों पर यकीन नहीं हो रहा था कि भला आदित्य के पिताजी भी कभी ऐसा बोल सकते हैं.

-सुंदर यार मुनीम जी को आज हो क्या गया है?

-विनोद तुमने सुना नहीं क्या? आजकल यह अजीब सा व्यवहार करने लगे हैं. मुझे तो लगता हैं इनकी प्लेट खिसक गई है.

-नहीं यार हमारे मुनीम जी को ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है.

``ऐसा ही हुआ है विनोद. यह पागल हो गया है और अपने दिमाग की भड़ास हम पर निकाला है. इसे तो मैं अब मजा चखा कर ही रहूंगा.``,सुंदर अपनी चप्पल से बीडी को बुझाते हुए कहता है.

कल रात वाली घटना के कारण आदित्य दिनभर उदास रहा. हालाँकि पायल ने उसके मूड को सुबह कुछ ठीक किया था . किंतु जब मन में हलचल चल रही हो तो अपने आप को खुश रख पाना इतना आसान होता कहां है. पायल को आदित्य की उदासी खाए जा रही थी. उसे कुछ भी समझ नहीं रहा था कि वह आदित्य को खुश करने के लिए क्या करें?

 

शाम हो चुकी थी. आदित्य के पिताजी गोदाम की टीनशेड के नीचे खड़े  खेत में सरसों की फसल को निहार रहे थे. सूर्य धीरे-धीरे सतरंगी धरती की गोद में सिर रखकर सोने के लिए उतारू था. इधर उत्तरी दिशा की तरफ सभी बदल काले हो चुके थे. हवा बिल्कुल भी रुक चुकी थी. शीत ऋतु में भी बादलों को देखकर कहीं से भी यह नहीं लग रहा था कि यह फरवरी का शुरुआती सप्ताह है.

विद्यालय की पूरी छुट्टी की घंटी बज चुकी थी. लेकिन आदित्य अपनी बेंच पर ही बैठा हुआ था. हालांकि सभी बच्चे कक्षा से बाहर चले गए थे. पायल भी कक्षा में दिखाई नहीं दे रही थी. कमरे का दरवाजा बंद करने के लिए चपरासी छत के ऊपर आता है. आदित्य मौन बैठा हुआ है.

-आदि बेटा?

आदित्य चौक कर ऊपर की तरफ देखता है.

-क्या हुआ आज घर नहीं गए ? तबीयत तो ठीक हैं ना तेरी?`` . ..अंकल.``, आदित्य अटककर बोलता है.

-अरे क्या हुआ बेटा और पायल भी नहीं दिखाई दे रही है? कहीं चली तो नहीं गई है ना? बाहर मौसम भी खराब है. तू जल्दी से घर जा.

- ऐसा नहीं हो सकता. शायद वह दूकान पर होगी. मैं.. मैं.. चलता हूं.

-हाँ! हाँ.. तू जल्दी से जा.

 

आदित्य के कुछ भी समझ नहीं रहा था कि उसे क्या हो गया है. वह सीढियों से दौड़ता हुआ स्कूल के बाहर जाता है. वह मानसिक रूप से इतना टूट चुका था कि उससे तेज भी नहीं चला जा रहा था. बादल घूमड-घूमडकर आने शुरू हो चुके थे.

``सुमित अंकल क्या आपने पायल को देखा?``, आदित्य दूकान वाले से पूछता है.

- हां! बेटा. अभी गई है यहां से. तू जल्दी चल. हाथ जाएगी.

- ठीक है.

आदित्य अपने कदमो की रफ्तार बढ़ा देता है.

``आज यह बंदरिया अकेले ही क्यों चली गई?

``,आदित्य बुदबुदाता है. उसे कुछ भी समझ नहीं रहा था कि पायल उसे अकेले ही छोड़कर क्यों चली गई? उसे पायल पर संदेह नहीं था. किंतु इस परिस्थिति में जब पायल की उसको सबसे ज्यादा जरूरत थी. तब वह अकेला था .बिल्कुल अकेला.

 

आसमान में आकाशीय बिजलियों की तेज गड़गड़ाहट शुरू हो जाती है किंतु आदित्य के मन में उससे भी भयंकर आग लगी हुई थी. यही कारण था कि उसे आकाशीय बिजलियाँ भी डरा नहीं पा रही थी. उनके शोर से कहीं ज्यादा खतरनाक शोर तो उसके मन मस्तिष्क में हो रहा था. वह इसी उहापोह में आगे बढ़ रहा था कि अचानक उसका जूता किसी मखमली सी चीज पर पड़ा. उसका ध्यान जैसे ही अपने कदमों पर गया तो उसने नजरें फैला कर देखा.उसके कदमों के नीचे सरसों के जंगली लताओं के फूल बिछे हुए थे. बीच रास्ते में फूलों से बड़ा सा ``आई लव यू लंगूर`` लिखा हुआ था. वह उसे देख कर मुस्कुराया. चारो ओर जंगली पेड़ों के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था.

-आई लव यू लंगूर..

उसके पीछे से पायल की आवाज आती है. वह पीछे की तरफ मुड़ता है. पायल दौड़कर उसके लिपट जाती है.

-आई लव यू सो मच आदि. मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूं. बहुत-बहुत. तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो. तेरी चाल, तेरा मुस्कुराता हुआ चेहरा, मुझे तंग करनाहो ये सब मुझे बेहद पसंद हैं और सबसे ज्यादा पता है तू कब मुझे अच्छा लगता है?

-कब?

-जब मैं तुमसे गले लगती हूं. पता है क्या महसूस होता है? ऐसा लगता है जैसे दुनिया की सारी घड़ियों को रोक दूं. वक्त को थाम लूं. काश! आदि वक़्त यहीं रुक जाए.

-हाँ! बाबा मुझे भी यही महसूस होता है. पर मुझे तो लगा था..

- क्या लगा था? यही ना कि मैं तुम्हें अकेला छोड़कर चली गई हूं. है ना..

-हम्म..

- अरे बुद्धू. अब तू इस बंदरिया की बाहों से कभी छुटकारा नहीं पा सकता है.

-हा! हा! हा! अच्छा..

-बहुत प्यारा लगता है जब तू हँसता हैं. रोज ऐसे ही हंसा कर..

-अच्छा?

``हाँ! जब तू उदास होता है तो ऐसे लगता है. जैसे मेरी दुनियां ही खत्म हो गई है. मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं आदि और हां यह कभी मत सोचना कि मैं तुम्हें कभी अकेला छोड़ कर चली जाऊंगी. यह पायल मर जाएगी पर तुझे कभी अकेला नहीं छोड़ेगी.``,पायल आदित्य के गानों को सहलाते हुए कहती है.

-अच्छा!

-यकीन नहीं है क्या तुम्हें इस बंदरिया पर?

-यकीन तो है.

- तो फिर क्यों मुंह फुला रहा है.

- .. .. कुछ नहीं.

-क्या कुछ नहीं.. क्या हुआ आदि? मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम मुझसे दूर हो रहे हो? तुझे हो क्या गया है?

-तुम्हें यह लगता है कि मैं तुमसे दूर हो जाऊंगा. चल अभी तुम्हारा यह शक भी दूर कर देता हूं. मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं और हमेशा चाहता हूं कि तुम मेरे साथ जिंदगी भर रहो. तुम्हारे बिना जीने के बारे में मैं सोच भी नहीं सकता हूं. तुझे पता है मेरे लिए क्या सबसे महत्वपूर्ण है?

-क्या?

-यह शिव का ताबीज. बचपन से मेरे साथ है. लेकिन आज तुम्हें पहना रहा हूं. क्योंकि अब से तू सिर्फ मेरी है. भले ही मेरा वक्त कितना भी खराब हो पायल. मैं तुम्हारे बिना जिंदगी के बारे में सोच भी नहीं सकता हूं. इधर ..

वह पायल को अपने सीने से लगा लेता है फिर उसके सिर को चूमता है और अपने गले से शिव का ताबीज निकालकर उसके गले में पहना देता है. पायल की आंखों में आंसू थे. ये आंसू खुशी के थे. क्योंकि आज वह हमेशा-हमेशा के लिए आदित्य की हो चुकी थी. आज आदित्य ने उसे शिव के ताबीज को मंगलसूत्र के रूप में उसे पहना दिया था. आज उसने उसे अपनी अर्धांगिनी स्वीकार कर लिया था. वह आदित्य के गले लग जाती है. आदित्य की गले लग कर उसे अप्रितम प्रेम की अनुभूति हो रही थी. उस प्रेम को बयाँ कर पाना उसके लिए बस की बात नहीं थी. वह तो आदित्य की बाहों में ही समा जाना चाहती थी.

-आई लव यू आदि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं.

- मैं भी. चल अब बारिश शुरु हो जाएगी. तू जल्दी से घर चल..

- अच्छा ठीक है..

आदित्य पायल का हाथ पकड़कर उस जंगल के रास्ते से होकर गुजर रहा था. अचानक वह झाड़ का पेड़ आता है. पायल आदित्य के सट कर चलने लगती है. –

-क्या हुआ?

-मुझे डर लग रहा है.

-अच्छा दूर कर देता हूं.

- कुछ भी ऐसा मत करो..

- पर क्यों? सच में तुझे डर नहीं लगेगा आज के बाद.

-नहीं! देखो वैसे भी हमें देर हो रही है. बारिश भी आने वाली है. प्लीज ऐसा कुछ भी मत करो आदि..

-पर मैं तो करूंगा.. चल ना..

- मुझे डर लग रहा है.. आदि रूक जाओ ना.

- नहीं! मैं नहीं रुकने वाला..

आदित्य पायल का हाथ खींचकर उसे उस पेड़ की तरफ ले चलता है. वह डर के मारे उसके पीछे छुपते हुए चलती है. वह आँखे भी मूँद लेती हैं. आदित्यपेड़ की तरफ जाता है.

``अबे! ओये. चुड़ैल मौसी, चाची, मामी, बुआ, दादी या बहन जो कोई भी है तू. ध्यान से सुन ले. आगे से अगर तुमने मेरी बंदरिया को डराने की कोशिश की तो मैं तुम्हें इस झाड के पेड़ सहित जड़ से उखाड़कर फेंक दूंगा. समझी..`` आदित्य जोर से चिल्लाता है..

- पायल देखो आई क्या चुड़ैल? नहीं ..

पायल आंखों को खोल कर देखती है तो उसके सामने तूफान से टेढ़ा हुआ एक झाड का पेड़ दिखाई देता है. कुछ जंगली लताएँ उस पर डेरा जमाए हुए थीं. कुछ पक्षियों ने भी उस पर घोसले बना रखे थे. जंगली लताओं पर गुलाबी नील रंग के खूबसूरत फूल भी लगे हुए थे.

-यह तो सच में खूबसूरत है और पक्षियों ने भी इस पर घोंसले बना रखे हैं.

-क्यों कहा था ना कि ये चुड़ैल-वुडैल कुछ नहीं होती. बस यही कहना चाहता था. और एक बात जान ले. मैं ये सब तुझे डराने के लिए ही बोलता था.लेकिन आज से तुम डरना मत समझी..

-हां! अब से नहीं डारूंगी.

पायल आदित्य का हाथ थाम लेती है. वे दोनों जल्दी-जल्दी घर की तरफ प्रस्थान करते हैं.

[25/02, 7:25 pm] Rajendra Kumar Shastri Guru 2: भाग- 27

 

पूर्णिमा की रात होने के बावजूद भी आज चांद नहीं दिखाई दे रहा था. क्योंकि बादलों ने उसे अपने आगोश में ले लिया था. आदित्य के पिताजी अपने बिस्तर पर सोये हुए थे. वह बेहद निराश उदास नजर रहे थे. अचानक उनके फोन की घंटी बजती है. वे अपने मोबाइल की स्क्रीन की तरफ देखते हैं तो किसी अनजान व्यक्ति का नंबर दिखाई दे रहा था.वह कॉल पिक-अप नहीं करते हैं. अचानक फिर से उनके फोन की घंटी बजती है. इस बार भी वे फोन नहीं उठाते हैं. वे फोन को साइलेंट मोड पर करके छोड़ देते हैं. कुछ ही देर बाद उनके फोन पर किसी का मैसेज आता है. वे उसे देखते हैं.

``पाजी! मैं हरेंद्र, आपसे कोई जरुरी बात करनी थी. बहुत जरूरी है, पाजी. कृपया करके फोन उठाओ..``

 

आदित्य के पिताजी अपने कमरे से बाहर आते हैं और हरेंद्र के फोन पर कॉल करते हैं.

 

`हेल्लो! पाजी.``, सामने से घबराया हुआ हरेन्द्र बोलता है.

 

``हाँ! बोल हरु, क्या बात है?``

 

``पाजी! आपको फंसाया जा रहा है, पाजी..``

 

`` .. ये क्या बोल रहे हो?``

 

``..हाँ.. पाजी आपको फसाया जा रहा है. पाजी, मैंने सुना है कि सेठ जी खुद आपको फंसाना चाह रहे हैं. वे चाहते हैं कि आप पूरे केस की जिम्मेदारी खुद ले लो.``

 

``हाँ!, हाँ! हरु आज उन्होंने मुझे भी फोन करा था. पर मैंने मना कर दिया था.``

 

``पाजी, आप के मना करने से कुछ नहीं होगा. श्याम सिंह बाकी के लोगों ने आपके बारे में सेठ जी से शिकायत की है. इसलिए सेठ जी आप से गुस्सा है. पाजी आप बहुत अच्छे हैं.. पर आपके साथ यह सब क्यों हो रहा है?``

 

``.... हरु.. मैं..``

आदित्य के पिताजी जी कुछ बोलते उससे पहले ही फोन कट गया था.

 

``हा! हा! हा! महेश वाह! तू यहाँ क्या कर रहा है? तुझे तो फिल्म इंडस्ट्री में होना चाहिए. मेरे भाई.. वाह! पहले सेठ जी बनकर इस विजय को झूठ बोला कि ``क्या तू इस केस की जिम्मेदारी लेगा और अब हरेंद्र बनकर उसे ओर डरा दिया`` वाह! कमाल कर दिया यार.``, श्याम सिंह कहता है.

 

``हा! हा! हा! भाई, वाह मजा गया यार. तुम इतनी आसानी से आवाज कैसे बदल लेते हो? `` टौमी पूछता है.

 

``अरे! बस ये तो टैलेंट का कमाल है भाई.. है ना महेश?``

 

``हाँ! भाई हाँ! मैं तो आपकी भी आवाज निकाल सकता हूँ.``

 

``! तेरी सच्ची?``, श्याम सिंह महेश से आश्चर्यचकित होकर पूछता है.``

 

`` हाँ! भाई आराम से..``

 

`अच्छा! तो चलो निकालो फिर..``

 

```अच्छा कोई एक वाक्य बोलो. फिर निकाल दूंगा .``

 

``ठीक है बोलता हूँ..`` इधर कुआं उधर खाई बीच में लटके तेरा भाई..`` हा.. हा.. हा..``

 

``चलो बोलता हूँ. इधर कुआं उधर खाई बीच में लटके मेरा भाई.. हा! हा! हा!``, महेश श्याम सिंह की आवाज में बोलता है और सभी जोर-जोर से ठहाके ने मारने लगते हैं. उनकी शैतानी हंसी फार्म की शुद्ध हवा में विष घोलने का काम कर रही थी.

 

"चल टौमी मुझे मेरा फ़ोन दे, मैं भाईजी को भी फोन करके ये खुश खबरी दे दूं कि हम अपने प्लान में कामयाब हो रहे हैं।"

 

"अरे! पाजी। उन्हें तो यह बताना ही होगा। वे बहुत खुश होंगे कि महेश ने कितना बड़ा काम किया है। चलो मैं ही फ़ोन करता हूँ। " टौमी कहते हुए फ़ोन मिलाता है।

 

सामने से फ़ोन पर एक आदमी उन्हें जरुरी निर्देश देता है।वह महेश के द्वारा किये गए कार्य की बहुत तारीफ करता है।  आदित्य के पिताजी को पता नहीं था कि जो हर रोज आवाज बदल-बदल कर उन्हें धमका रहा था वह कोई ओर नहीं बल्कि उनका ही छोटा भाई महेश था. यहां तक कि उसने ही सेठ जी की आवाज में उसे यह प्रस्ताव दिया था कि तू उनकी जगह यह इल्जाम ले ले कि तेल की तस्करी करने के पीछे उसका ही हाथ था. यहां तक कि आज हरेंद्र की आवाज में भी उसने ही उन्हें फोन किया था.

इधर दूसरी तरफ आदित्य के पिताजी की रात्त की नींद हराम हो चुकी थी क्योंकि वह लगातार यही सोच रहे थे कि सेठ जी उनके साथ दुराचार कर रहे हैं. लेकिन सच तो कुछ ओर था. सेठ जी को तो यह तक पता नहीं था कि विजय कुमार के साथ ये सब शाजिशे हो रही है.

 

आसमान से कोहरा हट चुका था. आदित्य तैयार होकर अपने बेग को कंधे पर रख लेता है. उसकी बहन आरती घर के मुख्य दरवाजे के पास अपने छोटे भाई पार्थिव के साथ खेल रही थी. अदिति भी उनके पास बैठी हुई थी। आदित्य के पिताजी चारपाई पर बैठे चाय पी रहे थे. वे चिंतित नजर रहे हैं. आदित्य अपने स्कूल की तरफ जाता है. वह जैसे ही दहलीज़ पार करता है अचानक वह मजाक में आरती के सिर पर मारता है.

``हेल्लो! आरती.``

 

``क्या है भैया!``, आरती जोर से बोलती है.

 

``! आदि ये क्या है?``, आदित्य के पिताजी क्रोधित होकर खड़े होते हैं.

 

`` सॉरी पापा. मैं तो मजाक कर रहा था.``

 

``अच्छा मजाक कर रहे थे. मारना पीटना मजाक होती है. तू हर बार अपने से छोटे बच्चों को पीटता है. ``

 

``क्यों डांट रहे हो इसे मजाक ही तो कर रहा था.``, आदित्य की माँ आदित्य का पक्ष लेती है.

 

``तू इसका पक्ष मत ले. कल को अगर यह किसी का मर्डर करेगा या किसी का रेप करेगा. फिर बोलना कि इसने तो रेप ही तो किया था.``

 

``ये क्या कह रहे हो आप? आपको हो क्या गया है? इतनी बेहूदा बाते और वो भी आदि के लिए?``

 

``पापा.. आई एम सॉरी.`` आदित्य की आंखों में आंसू जाते हैं.

 

``पापा.. भैया तो ..`, आरती बुदबुदाती है.

 

`` तू चुप कर आरती.. बिल्कुल चुप हो जा..``

 

``अच्छा! सबको चुप कर लो आप. बच्चे हैं थोड़ी बहुत बदमाशियां तो करेंगे  ही. क्या आप की तरह ही बन जाएंगे?`

 

``क्या कहा? मेरी तरह ही. तू तो बोलेगी ही अब कि मैं बुरा हूँ तो सुन ले मैं बुरा हूँ. दम घुटता है मेरा इस घर में.``, आदित्य के पिताजी गुस्सा करके घर से बाहर निकल जाते हैं.

 

आदित्य अपने पिताजी का गुस्सा देखकर व्याकुल हो जाता है. वह अपनी मां की तरफ जाता है और उनसे गले लग कर रोने लग जाता है.

 

``क्या माँ मैं इतना बुरा हूँ.. मां मैं.. मैंने तो बस.. माँ आई प्रॉमिस में कभी किसी लड़की का रेप नहीं करूंगा। आई प्रॉमिस माँ.``, आदित्य रोते हुए बोलने लगता है.

 

``तू चुप कर.. मेरा खून इतना गंदा नहीं हो सकता जो किसी लड़की के साथ ऐसा कुकृत्य करेगा. तू स्कूल जा चुपचाप.``, आदित्य की माँ उसके आंसू पोंछती है.

 

``भैया! आई एम सॉरी..`` आरती आदित्य के गले लगकर फफक पड़ती है. आदित्य अपने हाथों से उसके बालों को सही करता है और स्कूल की तरफ निकल जाता है. उसकी आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. उसके पिताजी की बातें उसके सीने में छुरे की तरफ घुप रही थी. वह नीचे गर्दन किए हुए चल रहा था.

 

``ओये! लंगूर क्या बात है? आज फिर से तू उदास है.

``,पायल उसके पीछे दौड़ते हुए कहती है.

 

``.. कुछ नहीं.``, आदित्य रुधे हुए गले से बोलता है. वह जल्दी-जल्दी चलने लगता है. पायल उसके पीछे दौड़ने लगती है.

 

``अरे! हो क्या गया है तुझे? अब कुछ बोलेगा भी या नहीं?``

लेकिन आदित्य मौन था. उसने पायल के किसी भी सवाल का जवाब देना मुनासिब नहीं समझा. वह बिना बोले ही आगे चलता रहता है. पायल उसके पीछे से आवाज देती है.

 

``अरे! हो क्या गया है? तू आज ऐसे क्यों कर रहा है यार... एटलीस्ट धीरे तो चल जा..``, पायल पीछे से आवाज देती है। किंतु आदित्य अनसुना कर देता है. उसकी आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे. वह नीचे गर्दन किए हुए था ताकि पायल को उसके रोने के बारे में पता ना चल सके. वे शीघ्र ही जंगल में पहुंच जाते हैं. ``

 

``! आदि, बोल ना यार. अब रुलाएगा क्या कमीने? बोल ना क्या हुआ?`` , पायल फिर से आवाज देती है किंतु आदित्य जवाब नहीं देता है.

 

``अच्छा!  तो अब तू  मेरा जवाब नहीं देगा. मेरा.. पायल का जवाब नहीं देगा.. रुक तुझे तो मैं बताती हूँ.`` पायल दौड़कर आदित्य का हाथ पकड़ लेती है.

 

``थप्पड़ मारूं तेरे?``, पायल आगे आकर उसे रोकती  है.

 

``तू रो रहा है..``

 

`` मैं... मैं..`` आदित्य फफक पड़ता है. वह पायल के गले लग जाता है. उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे.

 

``तुझे क्या लगता है पायल मैं किसी का रेप कर सकता हूँ``

 

``कमीने! जबान संभालकर बोल. तू और रेप. गधा है क्या तू. कुछ भी बोलता है.``, पायल क्रोधित होकर उसकी आंखों में देखती है.

 

``.... पर पायल क्या मैं.``

 

``पर क्या? किसने कहा ये तुझे? नाम बोल कमीने का... उसकी जबान खींचकर उसके हाथ में नहीं दे दी तो मेरा नाम पायल नहीं..``

 

``.. पापा ने..`

 

"क्या! क्या बक रहा है तू? वो ऐसा कैसे बोल सकते हैं यार?``, पायल आश्चर्य से पूछती है. आदित्य रोते हुए पूरी बात बता देता है.

 

``यार! अब मैं क्या कहूं? अंकल की मानसिक स्थिति बहुत ख़राब है. तुम सबको उनका ध्यान रखना चाहिए.``

 

``पर.. पायल क्या मैं कर....``

 

``गधा है तू सच्ची आदि. सच में. कमीने तू क्या चीज है यह मैं क्या बताउंगी? तू मेरा प्यार है और मेरा प्यार एक औरत को मर्द के बराबर का मानता है. तू रेप तो दूर की बात किसी लड़की पर हाथ तक नहीं उठा सकता. यहाँ तक की गाली भी नहीं दे सकता. तू पागल है सच्ची. चल अब रो मत.`` पायल आदित्य के आंसू पोंछती है. वह उसे गले से लगा लेती है.

 

``आगे से ऐसा कभी मत सोचना आदि. मेरे प्यार की सोच इतनी गन्दी नहीं हो सकती कभी भी. तू ज्यादा मत सोच.. अंकल ने गुस्से  में बोल दिया होगा."

 

``पर यह गुस्सा मुझ पर ही क्यों? मेरा वक्त बहुत बुरा चल रहा है पायल.``

 

``अरे! ऐसी बात है तो तुम्हारा वक्त अभी ठीक कर देती हूं.``

 

``मतलब!``

 

``मतलब यही कि ये ले मेरी घडी. इसे अपने पास रखना.``

 

`` इससे क्या हो जाएगा?``

 

``अरे! तेरा वक्त सही हो जाएगा. चल अब ज्यादा सवाल मत कर. रख लें इसे.``, पायल अपने हाथ की घड़ी आदित्य को देती है उसके आंसू पोंछती है. फिर उसके माथे को चूमती है.

 

``अच्छा! एक बात पूछू आदि?``

 

``हाँ!``

 

``तू मुझसे कितना प्यार करता है?``

 

``बहुत..``

 

``अच्छा मैं नहीं मानती..``

 

``अरे! सच्ची में बहुत करता हूँ यार. ``

 

``बोला ना मैं नहीं मानती.``

 

``पर मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ. मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ.``

 

``अच्छा सबूत दो..`

 

`` सबूत...`` आदित्य इधर-उधर देखता है. अचानक उसे रास्ते के पास खड़ा शीशम का पेड़ दिखाई देता है. आदित्य मुस्कुराता है. वह एक छोटा सा पत्थर हाथ में लेता है और उसकी तरफ जाता है.

 

``क्या कर रहे हो?``

 

``तुम चुप करो ना एक बार``

 

आदित्य पत्थर से उस पेड़ के तने पर एक दिल बनाता है और उसमें लिखता है ``लंगूर लव्स बंदरिया वेरी मच.``

 

``यह लो सबूत.``

 

`हा! हा! हा! यह भी कोई सबूत है भला.`, पायल ठहाके मारकर हंसती है.

 

``अरे! पागल हंस क्यों रही है? यह सबूत ही तो है. जब भी हम इस पेड़ के पास से गुजरेंगे तुम्हें हर बार यह याद जाएगा कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ``

 

``हा! हा! हा! हा! हे! भगवान अजीब आशिक मिला मुझे. मुझको उठा ले रे बाबा और इस कमीने लंगूर के सिर पर पटक दे ताकि इसको अकल जाए.``

 

``ओए! तू मेरी इंसल्ट कर रही है. यह गलत है.``

 

``! मेरे जानी तेरी इन्सल्ट तो तब से हो रही है. जब से तूने इस धरती पर मेरे साथ एक ही दिन जन्म लिया था. हा! हा! हा!``

 

``बकवास कम कर.``

आदित्य और पायल के मध्य पुन: नोकझोंक शुरू हो जाती है. पायल मन ही मन मुस्कुरा रही थी. क्योंकि उसने मजाक-मजाक में ही आदित्य का उसके पिता वाली बात से ध्यान हटा दिया था. वह अपने प्यार के मुस्कुराते हुए चेहरे को देखकर खुश थी. किंतु वह थोड़ी चिंतित भी थी क्योंकि आदित्य के पिताजी की दिमागी हालत दिन--दिन खराब होती जा रही थी।

 

नोट-

 

👉 आज के अंक में आपने जाना कि महेश ही वो इंसान था जो आदित्य के पिताजी को सेठजी बनकर, हरेंद्र बनकर और वो अजनबी आदमी बनकर रात को कॉल करता था। सेठजी वाली बात का अगर लॉजिक की बात करो तो आप एक अंक में पढ़िएगा जिसमे आदित्य के पिताजी कहते हैं कि सेठजी आज आपने नए नंबर से कॉल किया है?

इसका महेश बहाना बना लेता है। वैसे भी उसकी आवाज सेठजी से मिलती जुलती थी। इस कारण उसने ये काम आसानी से कर दिया।

[25/02, 7:25 pm] Rajendra Kumar Shastri Guru 2: भाग 28

 

रात के करीब 1:00 बज चुके थे। आदित्य अपने बिस्तर पर सोया हुआ था।  पायल को अपने घर में नींद नहीं रही थी।  उसे आदित्य को लेकर चिंता सता रही थी।  इस कारण वह अकेली ही आदित्य के घर की तरफ चल देती है आज उसे किसी भी चीज का डर नहीं लग रहा था फार्म में कुत्ते भौंक रहे थे।  किंतु वे पायल की तरफ  लपकते नहीं हैं पायल गोदाम के टीनशेड पर लगे बल्ब की रोशनी से छुपकर आदित्य के घर की तरफ  जाती है ताकि बल्ब की रोशनी में उसे कोई देख ना सके।  वह बिना आवाज किये  आदित्य के घर में प्रवेश करती है।  उसके घर में सभी सो रहे थे वह पंजों के बल आदित्य के कमरे की तरफ जाती है ताकि उसके कदमों की आवाज आदित्य के माता-पिता ना सुन ले।  उसके हृदय की धड़कन तेज थी वह धीमे से आदित्य के कमरे का दरवाजा खोलती है आदित्य सुकून की नींद सो रहा था।  उसने अपने तकिए को सिर के नीचे देने की बजाय अपनी छाती से लगा रखा था पायल धीमे  से दरवाजा बंद करती है।  वह कान लगाकर सुनती है कि कहीं आदित्य के माता-पिता में से कोई उठ तो नहीं गया है वह धीरे-धीरे कदमों से आदित्य के बिस्तर की तरफ जाती है।  ताकि आदित्य चौंककर  खड़ा ना हो जाए उसने उसकी रजाई उठाई और तकिये को निकालना चाहा आदित्य ने अपनी बगल बदल ली।  उसका चेहरा मासूम लग रहा था। पायल उसकी चारपाई पर बैठ गई और उसकी रजाई को आपने पांवो पर डाल लिया। उसने  आदित्य के  बालों को सहलाते हुए उसका माथा चूमा। पायल के गीले होठों की वजह से आदित्य चौक कर खड़ा हुआ।

".. तुम।  इस वक्त।"

 

"अगर मैं नहीं होउंगी  तो कौन होगा?"

 

- तेरा दिमाग खराब है क्या? मेरी माँ जग गई तो हम दोनों की बैंड बजा देगी।

 

- तो चुप हो जाओ और जो मैं कहती हूं वह करो।

 

-"मतलब क्या है तुम्हारा?", आदित्य दूर खिसकते हुए कहता है।

- कितना गलत सोचता है तू कमीने।

 

- तो क्या सोचूँ? अगर कोई लड़की रात को किसी लड़के की रजाई में जबरदस्ती घूस  रही हो तो लड़का क्या सोचेगा?

 

-यही कि वह उससे बात करने आई है।

 

- अच्छा! तेरा दिमाग तो सही है ! तू यार घर चली जा चुपचाप वरना माँ मेरी बैंड बजा देगी।

 

- अच्छा!

 

-और नहीं तो क्या?

 

आदित्य के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ नजर रही थी।

 

-  अरे! मुझे तो नींद नहीं रही थी।  तेरी चिंता सता रही थी।

 

- अच्छा?

 

-  हाँ! और नहीं तो क्या। ज्यादा नहीं तो सिर्फ एक बार गले तो लगा ले यार।

 

वह अचानक ही दुखी हो गई

 

"तुझे हो क्या गया है पायल?", आदित्य ने पायल को गले लगाते हुए कहा।  उसकी आंखें भर जाती हैं।

 

-बोल ना क्या हुआ?  तू अचानक क्यों आई?

 

- कुछ नहीं यार पता नहीं अचानक ही मन हुआ कि तुझे गले लगा लूँ। इस कारण गई।

 

- तू भी ना पायल पूरी पागल है इसके लिए भी तुझे क्या मुझसे पूछना पड़ेगा?

आदित्य ने पायल के सिर को चूमा।

 

-  एक बात पूछूं?

 

-हाँ!बोल पायल?

 

-तू हमेशा मेरे साथ रहेगा ना यार?

 

-यह भी कोई पूछने की बात है। मैं वादा करता हूं कि मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा। चल अब घर चलते हैं।

 

- थोड़ी देर ओर गले मिलने दे ना यार।

 

- ओके बाबा।

 

आदित्य के कुछ भी समझ नहीं रहा था कि आखिर पायल को अचानक ही हो क्या गया है।  वह पायल को कुछ देर सांत्वना देता है। उसके बालों को सहलाता है।  फिर आदित्य उसका हाथ पकड़कर उसे उसके घर तक छोड़ने जाता है।  पायल को आदित्य से मिलकर अच्छा महसूस हो रहा था।

 

आकाश में बादल हमेशा की अपेक्षा घने काले थे। ऐसा लग रहा था मानो वह बरसते वक्त पूरी फसल को ही बर्बाद कर देंगे। आदित्य और पायल स्कूल की तरफ जा रहे थे।  कल रात से ही पायल को अच्छा महसूस नहीं हो रहा था।  शायद उन दोनों का प्यार अब चरम सीमा पर पहुंच रहा था। क्योंकि जब किसी का प्यार परवान पर चढ़ना शुरू हो जाता है तो डर, असुरक्षा, दुःख आदि भावों का आना स्वभाविक होता है।  वे धीरे-धीरे कदमों से विद्यालय की ओर बढ़ रहे थे। सरसों गेहूं की फसल हमेशा की तरह ही लहलहा रही थी।

 

क्रमश:.....

[25/02, 7:25 pm] Rajendra Kumar Shastri  2: भाग-29

 

आदित्य के पिताजी अनार के बाग में घूम रहे थे।  अचानक उनके फोन की घंटी बजी। वे  फोन उठाते हैं।

 

- हेल्लो! सेठ जी।

 

" ये क्या हो रहा है विजय?", सेठ जी गुस्से में आदित्य के पिताजी से पूछते हैं।

 

- क्या हुआ सेठ जी?

 

-क्या हुआ! अब तुम्हें यह भी बताना पड़ेगा? तेरा दिमाग तो सही है ना?  कल तुमने सुंदर को डाँट क्यों लगाई?  इस फॉर्म का कर्ता धर्ता तू ही है क्या?

 

- यह बात नहीं है सेठ जी।  वह आराम कर रहा था।

 

-अच्छा चलो मान लेता हूं कि वह आराम कर रहा था। पिछले 2 महीनों से तुम एक के बाद एक लगातार  गलतियां कर रहे हो। उनका क्या?  लगता है तुम काम नहीं करना चाहते हो?

 

सेठ जी पुनः  क्रोधित होकर बोलते हैं।

 

"ऐसी कोई बात नहीं है।  उल्टा  मुझे तो यह समझ नहीं रहा है कि आप चाहते क्या है? "आदित्य की पिताजी भी क्रोधित होकर कहते हैं।

 

- मतलब क्या है तुम्हारा विजय?

 

- सेठ जी दो दिन पहले ही आपने मुझे फोन करके प्रस्ताव दिया था कि मैं अपने ऊपर उस तेल तस्करी का जिम्मा ले लूँ और आज आप मुझे  जानबूझकर के डांट रहे हैं।

 

- तेरा दिमाग तो सही है ना विजय?  पगला गए हो क्या?  भला मैं क्यों कहूंगा तुम्हें? मुझे तो लगता है तुम पागल हो गए हो! कल ही श्याम सिंह  ने कहा था मुझसे कि तुम्हारी दिमागी हालत सही नहीं है।

 

- क्या कह रहे हो आप?

 

आदित्य के पिताजी सेठ जी के मध्य बहस शुरू हो जाती है आदित्य के पिताजी के कुछ ही समझ नहीं रहा था कि आखिर सेठ जी ने अगर कॉल नहीं किया था तो फिर किसने किया था।

 

दोपहर हो चुकी थी।  आदित्य अपनी बेंच पर बैठा था। एक महिला अध्यापिका अंग्रेजी पढ़ा रही थी।  अचानक विद्यालय का चपरासी कक्षा में प्रवेश करते वक्त कहता है- एक बार रुकिए मेम।  आदित्य शर्मा....

 

- जी! काका।

 

आदित्य अपनी जगह से खड़ा हो जाता है।

 

- तुम्हें तुम्हारे पापा ने घर बुलाया है अभी।

 

"पर... ", आदित्य आश्चर्यचकित होकर बोलता है।

 

" पर वर कुछ नहीं।  बहुत जरूरी काम है तुम्हें घर बुलाया है तुम अभी जाओ।

 

आदित्य उदास होकर अपनी  पुस्तक को बैग में डालता है। वह  खड़ा होकर पायल की तरफ इशारा करता है। पायल भी अपनी पुस्तक को बैग में डालकर खड़ी होती है।

 

-तुम कहां जा रही हो?

 

- मैं भी घर जा रही हूँ।

 

- दिमाग खराब है क्या तुम्हारा! इसे घर बुलाया है। तुम्हें नहीं। चुपचाप अपनी सीट पर बैठ जाओ।

 

अंग्रेजी अध्यापिका ने क्रोधित होकर कहा।

 

-  यह अकेली नहीं पाएगी।

 

"क्यों नहीं पाएगी। यह बच्ची है क्या जो अकेली नहीं पाएगी तुम चुपचाप अपने घर जाओ।  यह पूरी छुट्टी होते ही अपने आप जाएगी।",अध्यपिका ने आदित्य को भी  फटकार लगा दी।

 

आदित्य उदास हो जाता  हैं वह अपने बैग को उठाता है। पायल पुनः अपनी जगह बैठ जाती है। आदित्य मुस्कुराकर कक्षा से बाहर निकल जाता है।  इधर पायल को चिंता हो रही थी। वह सोच रही थी ऐसा क्या हो गया था जो आदित्य को अचानक घर  बुलाया गया है। 

रास्ते में आदित्य भी इसी उहापोह में सोचते हुए जा रहा था कि कही घर में कोई अनहोनी तो नहीं हो गई है। वह बहुत चिंतित था।  उसे पायल की भी चिंता सता रही थी कि क्या वह शाम को अकेली घर पाएगी! वह बेमन से घर की तरफ बढ़ रहा था। आकाश में घने बादल छाए हुए थे।  जिस कारण दोपहर को भी शाम का सा आभास हो रहा था। वह जल्दी-जल्दी कदम उठाता है और शीघ्र ही फार्म  के मुख्य गेट पर पहुंच जाता है। आज फार्म के मुख्य गेट पर हमेशा की अपेक्षा अधिक शांति थी। किंतु उसके घर  की तरफ से आवाज रही थी।  वह गोदाम के पास से दौड़ता हुआ पीछे की तरफ गया।  उसने जैसे ही नजरें उठाकर अपने घर की तरफ देखा तो वह घर का नजारा देखकर आश्चर्यचकित  हो गया।  एक सफेद पिकअप में  उसके घर का सामान डाला जा रहा था।  वह दौड़कर घर के अंदर गया।

 

"यह क्या हो रहा है माँ ", कमरे के एक कोने में उदास बैठी अपनी माँ से वह पूछता है। उसकी आंखों में आंसू जाते हैं।  उसकी माँ मौन थी। उन्होंने उसके सवाल का जवाब देना मुनासिब नहीं समझा।

उसके पिताजी उसे दिखाई नहीं दे रहे थे। वह दौड़कर बाहर आता है।

 

"! बल्लू काका ये क्या हो रहा है?", आदित्य रुधे हुए गले से पूछता है।

 

- तुम्हारे पापा को सेठजी ने  नौकरी से निकाल दिया।

 

- क्या!

आदित्य को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था। उसके पांवो तले जमीन खिसक गई।

 

-लेकिन क्यों निकाल दिया गया पापा को?

 

-इसका तो मुझे पता नहीं बेटा। हमें तो भाई जी ने कहा है कि पिकअप में समान डाल दो बस वही कर रहे हैं।

 

आदित्य की आंखों से आंसू बहने लगते हैं। उसके कुछ भी समझ नहीं रहा था कि वह क्या करें?  उसकी बहन आरती घर के कोने में खड़ी रो रही थी। वह उसके गले लग जाती है। आदित्य भी रोने लग जाता है। कुछ ही देर में सारा सामान पिकअप में डाल दिया जाता है। फॉर्म के कुछ सदस्य उन्हें जाते हुए देख रहे थे। पायल की माँ उसके पिताजी उसे दिखाई नहीं देते हैं।

 

आदित्य के पिताजी घर में आते हैं।  अक्षय ने उनकी अंगुली पकड़ रखी थी।

 

-!  सरोज  चलना  नहीं क्या?

 

-  पापा कहां जा रहे हैं?

 

-  बीकानेर।  अपने गांव। क्यों?

 

- पापा मेरी पढ़ाई का क्या होगा?

 

- होना क्या है? तेरी टी.सी. मिल जाएगी।  तू चिंता मत कर। 

 

-पापा बिना परीक्षा  कैसे मिलेगी?

 

- अरे! मिल जायेगी। ग्याहरवीं की नहीं तो दसवीं पास की दे देंगे। एक साल पीछे रह जायेगा तो क्या फर्क पड़ जाएगा? तू  चुपचाप जाकर गाड़ी के अंदर बैठ।

 

आदित्य  के समझ नहीं रहा था कि  उसके पिताजी बोल क्या रहे हैं।  फॉर्म के कुछ सदस्यों की आँखों में आंसू झलक रहे थे। श्याम सिंह, राम सिंह और टौमी  कही दिखाई नहीं दे रहे थे। ये सब अचानक ही हुआ इस कारण आदित्य के मामा को भी पता नहीं चल पाया था। महेश दौड़कर आदित्य के पिताजी के गले मिलता है और कुछ घड़ियाली आंसू बहाता है। कुछ ही देर में आदित्य के पिताजी सबसे विदा लेते हैं और पिक-अप के आगे की सीट पर अक्षय को गोद में लेकर बैठ जाते हैं। आदित्य की माँ अदिति को लेकर आगे बैठ जाती है। आदित्य अपने बैग को पिक-अप में डालता है।  आरती आदित्य दोनों रोते हुए पीछे बैठ जाते हैं।  कुछ ही देर में ड्राइवर ने पिक अप को स्टार्ट किया और चल पड़ा। आदित्य ने अपने घर की तरफ एक नजर भर देखा। उस घर को जिसे वह अपना समझ रहा था आज वो उसका अपना नहीं था।  वो घर जहाँ उसका जन्म हुआ था। जहाँ वह बड़ा हुआ था। यही तो वह खेला करता था। इसी घर के आगे खड़े विशालकाय जामुन के पेड़ के नीचे बैठकर वो और पायल घंटो बाते करते थे। इसी घर में तो खुशियों की किलकारियां गूंजती थी। उसी घर में तो वो पायल गाना गाते हुए आती थी।  उसे समझ नहीं रहा था कि आखिर किस वजह से उसके पिताजी को नौकरी से निकाल दिया गया था। गाडी जैसे ही पायल के घर के पास से गुजरी उसका दिल चकनाचूर हो गया। उसको ऐसा लग रहा था मानो उसके कलेजे में आग लग गई हो। उसे महसूस हो रहा था जैसे  उसकी मौत का जनाजा जा रहा हो।  आरती उसके सीने से चिपकी हुई सुबक रही थी।  कुछ देर में गाड़ी ने जंगल में प्रवेश किया। उसे वही शीशम का पेड़ दिखाई दिया जिस पर उसने दावे के साथ लिखा था कि "लंगूर लव्स बन्दरिया वैरी मच।"  उससे उस पेड़ की तरफ देखा नहीं जा रहा था।  एक पल तो उसका मन कर रहा था कि वो पिक अप को रुकवा ले  और उसके तने से लिपटकर जी  भर कर रो ले। किंतु यह संभव नहीं था।  क्योंकि वह अपने पिताजी के बदले हुए व्यवहार को जानता था।

 

शीघ्र ही गाड़ी ने हरिपुरा  गांव में प्रवेश किया। उसको पायल के साथ बिताए गए एक-एक पल  याद रहे थे। उसने  जुदाई के दर्द को कम करने के लिए  अपनी आंखें मूंद ली। किंतु जब आग दिल में लगी हो तो बाहर पानी डालने से कुछ  फर्क नहीं पड़ता है।  बस यही हाल था आदि का।  आकाशीय बिजलियों की  तेज गड़गड़ाहट शुरू हो चुकी थी।  पायल से बिछोह का दर्द उससे  बर्दाश्त नहीं हो रहा था। उसकी जिंदगी ने अब एक नया मोड़ ले लिया था।  शीघ्र ही बारिश शुरू हो

[25/02, 7:26 pm] Rajendra Kumar Shastri Guru 2: भाग-30

 

विद्यालय की छुट्टी हो चुकी थी।  हालांकि बादल अभी भी आकाश में छाए हुए थे और बारिश  कभी भी हो सकती थी।  इस कारण पायल जल्दी-जल्दी अपने घर की तरफ जा रही थी।  आदित्य को अचानक ही घर बुलाए जाने के कारण वह काफी चिंतित थी घने बादलों के छाए होने के कारण अंधेरा काफी हो चुका था।  वह जैसे ही जंगल में प्रवेश करती है उसे एक अजीब सी बेचैनी महसूस होती है।  जाने क्यों उसका दिल घबरा रहा था।

 

इधर आदित्य और उसका परिवार सकुशल अपने घर पहुंच जाता है उसने अपने पैतृक घर को अपनी छोटी सी जिंदगी में सिर्फ दो से  तीन बार ही देखा था   घर काफी बरसों पुराना था जिस कारण चूने का बना हुआ था।  मुख्य आंगन कच्चा था और जंगली घास उगी हुई थी।  घर में दो छोटे कमरे एक टिनशेड की बनी रसोईघर थी यह मकान है उनके दादाजी ने बनाया था उसके पिताजी ने जो भी कमाई की थी।  उसे तो उन्होंने अपने भाइयों के बच्चों की पढ़ाई गांव के मंदिर निर्माण में लगा दिया था।  यहां तक कि गांव में दो गरीब लड़कियों की शादी करवाने का जिम्मा भी उसके पिताजी ने ही उठाया था जिस कारण वे अपने घर के बारे में सोच ही नहीं पाए थे टेम्पो  से एक-एक कर सारा सामान उतारा गया।  उनके सामान में 4-5 रजाई।  तीन लोहे की चारपाई।  एक गैस स्टोव कुछ बर्तन थे।  इसके अतिरिक्त जो भी सामान वे वहां प्रयोग में लेते थे वह सारा सेठ जी का ही था।  यहां तक कि वह गाय भी सेठ जी की थी।  जिसके दूध का इस्तेमाल वे अपने घर में चाय बनाने वह दूध पीने के लिए करते थे आदित्य को सिर्फ पायल की चिंता सता रही थी वह उसी के बारे में सोच रहा था कि आखिर वह किस हाल में होगी वह बेमन  से अपने दादाजी के घर की साफ सफाई में अपनी मां के साथ जुट गया उसके मां-बाबा या अन्य सदस्ययों के मध्य बिल्कुल भी बातचीत नहीं हुई।  अचानक आदित्य की नजर अपने बैग  पर पड़ती है और उसे पुन: पायल की याद जाती है

 

पायल धीरे-धीरे कदमों से अपने घर की तरफ जा रही है आसमान में बिजलियां कड़क रही थी उसका मन अनायास ही आज निराश है वह अपने घर में दस्तक देती है।  उसके पिताजी घर के बाहर एक खाट पर बैठे हुए थे उसकी मां अंदर खाना बना रही थी और उसका भाई कहीं भी आसपास दिखाई नहीं दे रहा था उसके पिताजी निराश थे

 

- क्या बात है बाबा?  आप निराश क्यों हैं?

 

- हा, हा, हा वाह  अब क्या बताऊं,   महेश तुम्हें।  तुमने तो कमाल कर दिया यार तेरे भाई को तो अब तक पता भी नहीं चला कि आखिर उसको यहां से निकलवाने में तुम्हारा ही मुख्य हाथ है

 

टौमी सिंह शराब का एक पेग मारते हुए कहता है

 

-अरे,  नहीं पागल यह प्लान तो भाई जी का था  अगर वह इतना बढ़िया प्लान नहीं बनाते तो विजय को यहां से निकालना नामुमकिन था। 

 

श्याम सिंह बोलता है।

 

- ठीक कह रहे हो?

 

- आज तो भाई जी को बुलाना बनता है।

 

- हां, हां क्यों नहीं।  चलो मैं फोन करता हूं।

 

महेश अपनी जेब में से फोन निकालता है वह किसी को कॉल करता है।

 

- हेलो, भाई जी।

 

-हाँ, महेश बोलो।

 

-  भाईजी क्या इस खुशी के मौके पर आप आज रात को फॉर्म में रहे हो ना?

 

-अरे , क्यों नहीं?  आज तो खुशी की बात है मैं रात तक पहुंच जाऊंगा।

 

- वाह,  यह हुई ना बात।  चलो आप जाइए

 

महेश खुश होकर फोन कट कर देता है।  सभी खुश होकर ठहाके मारते हैं।

 

- बोलो ना बाबा क्या बात हुई? पायल गंभीरतापूर्वक अपने  पिताजी से पुनः  पूछती है

 

उसके पिता जी मौन थे।

 

- मां तुम बताओ ना।  क्या बात हुई?  तुम दोनों उदास क्यों हो और आदि  को अचानक से स्कूल से क्यों बुलाय लिया गया ?  बोलो ना माँ बोलो...

 

-क्या बोलूं बेटा?  तेरा लंगूर।

 

- क्या हुआ मां आदि को बोलो।  अच्छा मत बोलो मैं जा रही हूं

 

पायल ने अपना बस्ता तुरंत चारपाई पर पटका और घर से बाहर दौड़ते हुए निकल गई।

 

-,  पायलिया रुक ना बेटा।

 

उसकी मां पीछे से आवाज देती है।

 

- जाने दो उसे मत रोको आज आखिर कुछ देर बाद तो पता चल ही जाना था। 

 

पायल के पिताजी उसकी मां को रोक लेते हैं।  यह पहला अवसर था जब वे दोनों एक साथ थे

 

पायल दौड़ती हुई गोदाम के पास से होकर आदित्य के घर की तरफ जाती है।

 

- आदि...आदि...

 

वह आवाज देती है किंतु उसके घर से किसी की आवाज नहीं आती है वह  घर के दरवाजे को खोलकर अंदर प्रवेश करती है तो पाती  है कि घर में कोई नहीं था।

 

- आदि... आदि...

 

वह चिल्लाते हुए आदित्य के कमरे के अंदर जाती है।  किंतु उसके कमरे में कुछ बिखरे हुए कागज अन्य सामान के अतिरिक्त कुछ नहीं था।   वहां पर दो कुर्सियां भी पड़ी हुई थी। 

 

-आदि तुम  कहां हो? सरोज आंटी, विजय चाचा,  आरती..... अदिति... तुम सब कहा हो।

 

वह घर का  चप्पा-चप्पा छान मारती है किंतु उसे कोई दिखाई नहीं देता है उसकी आवाज बैठ जाती है पूरा शरीर कांपने लग जाता है।  यह दर्द असहनीय था।  वह घुटनों के बल नीचे गिर जाती है।

 

  आदि...

 

उसकी चीख में बेइंतहा दर्द था  आसपास के घरों के कुछ लोग इकट्ठा हो जाते हैं गुरमीत  दौड़ता हुआ आदित्य के घर की तरफ जाता है

 

-गुरमीत चाचा जी। आदि और बाकी सब  कहां है? कोई भी दिखाई नहीं दे रहा है।  कहां है? 

 

-बे... बे...बेटा सब ...

 

- बोलो ना चाचा जी...

 

-बेटा सेठ जी ने विजय चाचा जी को नौकरी से निकाल दिया।  इस कारण वे  अपने गांव चले गए।

 

- लेकिन क्यों? विजय  चाचा जी तो बहुत अच्छे थे ना

वह बहुत अच्छे थे चाचा जी ।बहुत अच्छे थे

 

वह कांम्पने लगती है।  गुरमीत इतना कहकर वापस चला जाता है पायल को आदित्य के  साथ बिताया गया हर एक लम्हा याद आने लगता है। उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे। जल्दी ही बारिश शुरू हो गई और वह भीगने लगी।   उसके पिताजी दौड़ते हुए आदित्य के घर उसे लेने आते हैं।  वह उसे उसका  हाथ पकड़कर खड़ा करते हैं।

 

- चलआ जा बेटा तू भीग रही है। छतरी के नीचे जा। 

 

-पिताजी ऐसा नहीं हो सकता।  मेरा आदि मुझे छोड़कर नहीं जा सकता ।बाबा....  बाबा आप कुछ करो ना।  बाबा आप मुझे थप्पड़ मारो मुझे यह सच नहीं हो सकता।  मारो ना बाबा यह हकीकत नहीं हो सकता है बाबा। आप थप्पड़ मारो।

 

पायल अपने पिताजी का हाथ पकड़कर जबरदस्ती थप्पड़ मरवाने की कोशिश करती है।

 

- पायल तू पागल मत बन।  सब ठीक हो जाएगा

 

-कुछ भी ठीक नहीं होगा।  कुछ भी नहीं कुछ भी नहीं

 

वह रोना प्रारंभ कर देती है।  उसके पिताजी उसे घर  ले जाते हैं उसके गीले बालों को पोंछते हैं।  पायल  को अब भी  यकीन नहीं हो रहा था कि आदित्य सच में उसे छोड़ कर जा चुका है।

 

क्रमशः...

 

 

 

 

अध्याय- 31

 

शाम के करीब 8:00 बजने वाले थे। आदित्य के घर में चारों ओर शांति छाई हुई थी। बीकानेर का मौसम बिल्कुल साफ है।  हालांकि तेज उत्तरी हवाएं जरूर चल रही हैं। जिस कारण  कुछ मोर बोल रहे हैं।  आदित्य एक छोटे से कमरे में एक चारपाई पर बैठा पायल की घड़ी को देखकर उसकी यादों में खोया हुआ है। उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे।  आरती उसके बगल में सोई हुई है अचानक आदित्य को किसी की आवाज सुनाई देती है।

 

-विजय... ! विजय...

 

शायद कोई व्यक्ति उनके घर आया था।  उसके पिताजी दुसरे  कमरे से बाहर निकलते हैं तो पाते हैं कि वह उनके पिताजी का बचपन का दोस्त  बीरबल था

 

- पूरे 4 साल बाद आया है  तू।  अब  बता कितने दिन रहने आया है तू यहाँ।  तेरी भाभी ने कहा था कि तू  आया हुआ है। 

 

-अरे! भाई सब बताता हूँ। चल घर के अंदर जा।

 

आदित्य के पिताजी अपने दोस्त को अपने कमरे में लेकर जाते हैं।  आदित्य भी अपने कमरे से जाकर बीरबल के पांव छूता  है।

 

- नमस्ते! अंकल...

 

- अरे! वाह तू आदि ही है ना। यह तो कितना बड़ा हो गया है रे विजय।   तुमने तो कहा था यह पढ़ाई में बहुत होशियार है। इसकी छुट्टी क्यों करवाई?  इसे तो वहां पढ़ने देते।

 

बीरबल के सवाल का जवाब ना ही तो आदित्य के पास था ना ही उसके माता-पिता के पास। उसके पिताजी एक-एक करके सारी हकीकत अपने दोस्त को बता देते हैं।

 

- तू चिंता ना कर सब ठीक हो जाएगा।  लेकिन मैं तुम्हें कहता था ना  विजय।  दूसरों के घर को  संभालते-संभालते कहीं तेरा खुद का घर ना ऊजड़ जाए।  लेकिन तू चिंता ना कर।  तेरा यार तेरे साथ है...

 

बीरबल आदित्य के पिताजी को सांत्वना देता है।

 

- पर बीरबल....

 

-  पर वर कुछ नहीं।  तेरी नौकरी छूट गई  है। कोई बात नहीं यार तू चिंता ना कर।  ठीक है...

 

आदित्य के पिताजी अच्छा महसूस करते हैं।

 

- अच्छा!  सरोज.. एक कप चाय बनाकर ले ...

 

-चाय...

 

-हाँ!

 

-पर चाय तो दूध..

 

-क्या हुआ भाभी जी दूध नहीं है क्या?

 

-हाँ! बीरबल जी।

 

" अरे!  भाभी जी ये  भी कोई बात हुई भला ।आदि बेटा जा तू हमारे घर जा और  अंकिता से कहना वह तुम्हें दूध दे देगी और हाँ जल्दी से लेकर आना। अंकिता को जानता है क्या?",  बीरबल मुस्कुराते हुए पूछता है।

 

-नहीं, अंकल जी।

 

- अरे मेरी बेटी है। 11वीं में पढ़ती है।  तू जाकर बोल देना।  तेरी काकी से मत कहना। वह बीमार है।

 

- ठीक है काका। आदित्य ने बेमन से उनके घर की तरफ प्रस्थान किया। उसके मन में हजारों सवाल थे। इधर बीरबल आदित्य के पिताजी आपस में बातें कर रहे थे।

 

-अच्छा सुन विजय। अब कल मेरे घर से एक गाय ले आना। अभी हमारे पास तीन है।  एक  को तू रख लेना।  चारे की व्यवस्था में कर दूंगा ठीक है...

 

- पर भाई यह क्या कह रहे हो?

 

- अरे! यह कोई एहसान नहीं है यारा एक भाई का फर्ज है। वैसे भी ये  सब यहीं रह जाना है मैं भी कोई अमीर नहीं हूं। जो मेरे पास है वह तुम्हें भी मिल जाएगा।

 

- बीरबल के साथ बात करके आदित्य के पिताजी को अच्छा महसूस होता है।  इधर आदित्य इसी उहापोह में  आगे बढ़ रहा था कि पायल  सकुशल है या नहीं।

 

पायल अपने पिताजी की गोद में उनके घर के पीछे वाले कमरे में सोई हुई थी। उसके पिताजी उसके बालों को सहला रहे थे। वह रो रही थी।

 

-बाबा! आदि ठीक तो होगा ना?

 

- तू चिंता मत कर बेटा। सब ठीक ही होगा।

 

- पर बाबा विजय अंकल को सेठ जी ने क्यों निकाल दिया?

वे  तो कितने अच्छे थे बाबा।

 

 

अच्छे थे तभी तो निकाल दिया ना बेटा अगर बुरे होते  तो उन्हें कोई नहीं निकाल पाता लेकिन इतना जान ले बेटा अब इस फार्म के उल्टे दिन शुरू हो जाएंगे आदित्य के पिताजी जैसे भले आदमी ने इस फार्म को संभाल रखा था एक दिन सेठ जी को जरूर अपनी गलती का एहसास होगा।

 

-... बाबा क्या वे वापस जाएंगे? जाएंगे ना बाबा? आदि  वापस आएगा ना बाबा!

 

"मैं वापस आऊंगा पायल। मैं वापस आऊंगा। लेकिन कब इसका पता ना तो मुझे है ना तुम्हें।", आदित्य पायल की घड़ी को चूमते हुए बीरबल  के घर में प्रवेश करता है।  अचानक ही उनके घर का कुत्ता उस पर भौंकता  है बीरबल की बेटी अपने कमरे से बाहर आती है तो उसे हाथ में जग लिए हुए आदित्य दिखाई देता है।

 

- तुम कौन हो?

 

- मैं... मैं आदित्य विजय जी का बेटा।

 

"ओह! तेरी तो तुम हो वो आदि जिसकी वजह से मैं इतना परेशान रहती हूं।" , अंकिता मुस्कुराते हुए  कहती  है।

 

- मतलब क्या है तुम्हारा?

 

" मतलब यही यार मेरे पिताश्री रोज तुम्हारे परसेंटेज गिनाते रहते हैं कि आदित्य के इस साल इतने मार्क्स आए हैं उतने आए हैं।  सुबह 4:00 बजे इस ठंड में मुझे जगा दिया जाता है।  कभी-कभी तो दिल करता था कि जिस दिन उस आदि के बच्चे से मिलूंगी तो उस दिन उसकी टांगे तोड़ दूंगी।  पर तुम तो...", अंकिता ताली पीटते हुए हंसती है

आदित्य उसकी हंसी पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है। वह तो सिर्फ पायल के बारे में ही सोच रहा था।

 

-अरे! उदास क्यों हो गए? बुरा लग गया हो तो सॉरी यार

 

-अरे! नहीं ऐसी कोई बात नहीं है माँ ने  तुम्हारे यहां से दूध मंगवाया है।

 

-  लाओ जग दो। अभी देती हूं।  अंकिता रसोई घर के अंदर जाकर दूध से जग भर लाती है।

 

"थैंक यू सो मच। ",आदित्य अपनी औपचारिकता पूर्ण करता है और अपने घर की तरफ चलते बनता है।

 

- यार अजीब लड़का है मैंने इसकी टांगे तोड़ने की बात की और यह मुस्कुराया तक नहीं। यार ये आदि इतना बोरिंग होगा मुझे नहीं पता था अंकिता धीमे से बुदबुदाती है और अपने कमरे में चली जाती है।

 

इधर पायल अपने पिताजी की छाती में दुबककर सोई हुई थी। उसके दिल में अनेकों सवाल डेरा जमाए हुए थे। किंतु अपने पिताजी के सीने में  दुबक कर सोने से उसे अपने दर्द को सहने की शक्ति जरूर मिल रही थी। उसका पिताजी जानता था कि यह रिश्ता केवल दोस्ती का तो नहीं था।  क्योंकि वह अपनी बेटी की आंखों में छीपे  दर्द को भली भांति जानता था। परंतु वक्त के पहिए के द्वारा हजारों सपने रौंद दिए जाते हैं तो भला उनके रिश्ते की क्या मजाल थी।  खैर, आदित्य के जाने से क्या पायल और आदित्य का रिश्ता टूट गया था या फिर वह प्रेम की पराकाष्ठा पार कर चुका था।  इस सवाल का जवाब  जितना जानने का प्रयास पायल के द्वारा किया जा रहा था।  जवाब भी उतना ही गहराई में था।

 

- अच्छा विजय मैं चलता हूं। सुबह मिलते हैं

 

-जरूर भाई आदित्य के पिताजी बीरबल  को घर से बाहर तक छोड़ने जाते हैं।  वे निराश थे।  आदित्य अपनी मां के पास बैठा हुआ था।  कुछ ही देर में उसके पिताजी वापस जाते हैं।

 

-मुझे भैया से मदद मांगनी होगी ताकि कुछ दिनों तक हमें दिक्कत उठानी पड़े  आदित्य की मां ने अपने अधर खोलें।

 

- पर सरोज...

 

- पर वर कुछ नहीं अब आप कुछ नहीं बोलेंगे जो करना है अब मुझे करना है आप मुझे अपना फोन दो।  आदित्य के पिताजी निराश थे।  वे अपना फ़ोन उसकी मां को दे देते हैं। उसकी मां अपने भाई रविंदर को फोन मिलाती है।  वह फोन को स्पीकर पर डाल देती है ताकि सब सुन पाए।

 

-हेल्लो! भैया।

 

-हा, हा,हा, बोलो..

 

-  भैया इनकी नौकरी छूट गई है तो मुझे कुछ पैसों की जरूरत थी।

 

-  अच्छा!

 

- हां! भैया बहुत दिक्कत रही है।  आप कुछ मदद करो ना।

 

- अरे! आगे जो मदद की वह कम थोड़े ही थी जो अब मदद मांग रही हो।

 

- मतलब क्या है भैया?

 

-  नहीं समझी?

 

"नहीं भैया। आप कहना क्या चाहते हैं?  आप ने  हमारी मदद कब की ?", सरोज मासूमियत से पूछती है।

 

- हा, हा, हा,  अरे!  कितनी मदद कर दी।  जीजाजी को यहां से निकलवा दिया और क्या मदद करूं?

 

- क्या यह क्या बोल रहे हो आप?

 

सरोज के पांव तले जमीन खिसक गई।

 

- अब महेश तू ही बात कर इससे।

 

-हेल्लो! भाभी जी नमस्ते!  भैया जी को भी प्रणाम!  अब क्या बताऊं आपको ? भाई जी ठहरे इतने ईमानदार और हम ठहरे बेईमान। अब भाई जी तो हमें यहां इस सेठ का पैसा खाने नहीं देते तो फिर सोचा क्यों ना भाई जी को निकाल दिया जाए।

 

" कमीने....तूने यह ठीक नहीं किया।  तू भाई नहीं आस्तीन का सांप निकला रे।",   आदित्य के पिताजी उसकी मां से फोन छीनकर महेश पर गुस्सा होते हैं।

 

- अरे! भाई जी पानी पी लो।  ओह तेरी मैं तो भूल ही गया।  हमारे बीकानेर में तो पानी की बहुत कमी है बेचारी भाभी जी को पानी दूर से अपने सिर पर लाना होगा।  हा, हा,हा,

 

  महेश उन सब का उपहास करता है आदित्य को गुस्सा आता है उसकी मां की आंखों से आंसू बह निकलते हैं। उन्हें कुछ भी समझ नहीं रहा था कि वे क्या करें।

 

-भाई जी आगे  नहीं सुनोगे क्या?  फिर क्या हुआ? आपको निकालने का प्लान बना।  प्लान बनाने वाला कौन?  नाम बताऊँ?

 

 

श्याम सिंह ताली पीटते हुए कहता है - भाईजी  आपके साले साहब।  हा, हा, हा,

 

-  अब आगे मैं बताता हूं।  महेश ने ही विजय तुम्हे तंग करने के लिए  रोज फोन किए।   सेठ जी बनकर भी उसने  ही आपको फोन किया

 

"कमीने...", .आदित्य के पिताजी गुस्सा करते हैं।

 

"ह्म्म्म यार महेश सच में बहुत प्रतिभाशाली निकला। ", टौमी सिंह हँसते हुए आदित्य के पिताजी का उपहास उडाता है।

 

" मैं तुम सबको जहन्नुम में भेज दूंगा कमीनो..", आदित्य क्रोधित होकर बोलता है।

 

-  अरे! पहले गालों पर दाढ़ी तो जाने दे।  बिल्ला चला शेरों का मुकाबला करने।  हा,  हा,  हा, श्याम सिंह तंज करता है।

 

"यह सब तुम सब ने ठीक नहीं किया।", आदित्य के पिताजी क्रोधित होकर बोलते हैं।

 

 

-  क्या ठीक नहीं किया जीजा जी।  सब ठीक ही तो है।  अब देख लो आप ईमानदार थे। लेकिन मिला क्या आपको?  नौकरी से निकाल दिया ना आपके सेठ जी ने और इधर हम बेईमान हैं लेकिन हमने बहुत कुछ हासिल कर लिया है।

 

- यह ज्यादा दिन नहीं रहेगा ऊपर वाले की जब लाठी सर पर पड़ती है तो आवाज नहीं होती वह तुम सबको कभी नहीं छोड़ेगा।

 

 

आदित्य के पिताजी क्रोधित होकर बोलते हैं।  इधर  रविंद्र अपने पूरे प्लान को आदित्य के पिताजी को चिढ़ाने के लिए बताता है कि कैसे उसने आदित्य की मां उसको भ्रम में डाला था कि उसके पिताजी की दिमागी हालत ठीक नहीं है  ताकि वे चिंतित हो जाए इसके अतिरिक्त वह यह भी बताता है कि उस पुलिस इंस्पेक्टर को भी पैसे देकर तंग करवाने का काम भी उसने ही करवाया था।  ट्रैक्टर को जानबूझकर पकड़वाने  का प्लान भी उन्हीं का था।  क्योंकि उस दिन गुरमीत के ट्रैक्टर को उन्होंने ही खराब किया था। ताकि वह स्टार्ट ना हो पाए और फिर मजबूरी में तेल लाने के लिए टॉमी महेश को भेजा जाए यानी  इन सब के पीछे जिसका मास्टर प्लान था वह कोई और नहीं आदित्य का मामा रविंदर ही था।

 

इन सब के बारे में यह जानकर आदित्य का पूरा परिवार हिल जाता है   आदित्य की माँ से यह धोखा बर्दाश्त नहीं हुआ। उन्हें  जिस भाई पर नाज था उस भाई ने ही उनके साथ धोखा किया था।   वह मौन हो जाती हैं।  आदित्य रोते हुए अपने कमरे में जाकर आरती के पास सो जाता है और उसके पिताजी की नींद हराम हो जाती है।

 

क्रमशः...

[26/02, 4:15 pm] Rajendra Kumar Shastri Guru 2: अध्याय- 32

 

आदित्य उसके परिवार को गांव आए हुए 10 दिनों से भी ज्यादा दिन का वक्त  हो गया था। अब फरवरी का अंतिम सप्ताह था।  इस कारण सर्दी कम हो गई थी। पायल  अकेली अपने स्कूल जाती वह अकेली ही वापस आती है इस  दौरान उसे जैसे ही जंगल में डर लगता वह आदित्य के द्वारा दिया गया शिवजी का ताबीज चूमती और वहां से निकल जाती है।  वह ताबीज ही तो था जो उसे  हर वक्त यह एहसास दिलाता रहता था कि वह आदित्य  की और आदित्य उसका है वह उस ताबीज के सहारे अपने विरह के दिन निकाल रही थी।  इस दरमियान उसे जब भी आदित्य की याद आती वह उस शीशम के पेड़ के लिपटकर रोने लग जाती।  जाने ऐसा क्या था उस पेड़ के तने में जो वह हर बार आदित्य के द्वारा पत्थर से बनाए गए दिल को हाथ से महसूस करती।  वह आदित्य के घर में भी अनेकों बार   गई।  उसके द्वारा लगाए गए पौधों दीवार पर लिखे गए नामों को वह अपने हाथों से महसूस करती। अपनी नोटबुक में लिखे गए उसके शब्दों को वह चूमती।  यहां तक कि पेन-पुस्तक,  आदित्य के पुराने जूते, दीवारों पर लिखे उसके नाम हर उन चीजों में वह आदित्य को ही खोजती।  अगर कोई उसे देख लेता तो ऐसा लगता है कि वह पागल हो चुकी है। उसकी सारी बदमाशियां दूर हो गई।  रात को अपने पिताजी के कमरे में रहकर  देर रात तक पढ़ाई करती है पायल की इस दशा को देखकर उसके पिताजी ने सभी तरह का नशा करना छोड़ दिया।  वे हमेशा यह ध्यान रखता कि पायल को किसी तरह की तकलीफ ना हो जो पिता कभी शराब के नशे में धुत होकर घर आता वह पिता पायल को यह दिलासा देने लगता कि भगवान सब ठीक कर देगा।  तू बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें।

 

इस दौरान वह रोज विद्यालय जाती। उसकी आमतौर पर किसी भी लड़की या लड़कों से बात नहीं होती। वह हमेशा आदित्य की यादों में ही खोई रहती।  वह केवल अध्यापकों के द्वारा बताई गई बातों पर ध्यान देती है। इसका परिणाम यह होने लगा कि जो अध्यापक कभी उसके व्यवहार को लेकर खफा रहते थे।  वहीं उसकी तारीफों के पुल बांधने लगे। अक्सर कक्षा में उसके व्यवहार मेहनत की तारीफ होने लगी कि वह कितना शांत रहने लगी है।  किंतु उनमें से यह बात कोई नहीं जानता था कि वह विरह की आग में जल रही है सीधे शब्दों में कहा जाए तो पायल जिंदा जरूर थी किंतु उसकी आत्मा आदित्य के पास थी उसकी तन्हाई का सहारा  आदित्य की यादें थी यहां तक कि वह उस छतरी के  अंदर भी आदित्य का स्पर्श महसूस करती जिसके नीचे एक दिन बारिश से बचने के लिए वे दोनों  खड़े थे।  कांश! वो दिन वापस लौट कर जाए इसी आस में वह दिन गुजार रही थी।

 

 

इधर फॉर्म  में सब कुछ अलग सा ही हो गया था। सेठ जी ने एक बार भी फार्म का भ्रमण नहीं किया था।  जिस कारण टॉमी, श्याम सिंह, राम सिंह और महेश चारों मिलकर पैसे बनाने लगे।  इसके अतिरिक्त वे पैसे का कुछ हिस्सा रविंद्र को भी पहुंचा देते थे। क्योंकि आखिरकार उसकी योजना अनुरूप ही तो वे आदित्य के पिताजी को निकालने में समर्थ साबित हुए थे।

 

इधर दूसरी तरफ आदित्य के घर में आदित्य के पिताजी के पास जो चंद रुपए बचे थे। वे सारे के सारे खर्च हो गए जिस कारण धीरे-धीरे घर की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो गई। हालांकि आदित्य के पिताजी के दोस्त ने उनकी बहुत मदद की उसने अपने घर के खाद्य भंडार में से 4 क्विंटल गेहूं, कुछ घरेलू सामान बिजली का कनेक्शन भी उपलब्ध करवा दिया ताकि उन्हें किसी तरह की परेशानी ना हो।  इसके अतिरिक्त उसने आदित्य के पिताजी की मदद से घर में गाय के लिए चारा डालने के लिए एक झोपड़ी गाय को बांधने के लिए एक छप्पर भी बनवा दिया।  यूं कह लो कि जितना आदित्य के  पिताजी की बीरबल मदद कर सकता था।  उतनी उसने की वह उसके पिताजी की आर्थिक मदद कर पाने में असमर्थ था क्योंकि उसकी पत्नी को कैंसर था। इस कारण उसका अधिकांश पैसा  उसके इलाज हेतु खर्च हो जाता अंकिता भी एक निजी विद्यालय में 11वीं पढ़ रही थी। जिस कारण उसकी पढ़ाई का ख़र्च भी उठाना होता। वह अपनी पढ़ाई करने के लिए स्कूल बस से पास के  शहर में जाती थी क्योंकि गांव में कोई भी स्कूल 12वीं तक के स्तर का नहीं था आरती बिना टी.सी.  के ही गांव के सरकारी विद्यालय में पढ़ने जाने लगी लेकिन आदित्य ऐसा कर पाने में असमर्थ था क्योंकि बीच सत्र में वह किसी भी स्कूल में पढ़ने नहीं जा सकता था।  ऊपर से विज्ञान वर्ग का स्कूल नहीं  था जहां वह  पढ़ने जा  सके।

वैसे आदित्य के गांव के पास एक दूसरे गांव में 12वीं तक का  सरकारी स्कूल था किंतु वह एक कला वर्ग का विद्यालय था इस  कारण आदित्य चाहते हुए भी अनौपचारिक रूप से स्कूल नहीं जा पा रहा था।  अंकिता आदित्य के व्यवहार को लेकर हमेशा खफा रहती। क्योंकि उसके बतलाने के  बावजूद भी वह कम ही बोलता उसे आदित्य की सच्चाई का पता नहीं था आदित्य की मां पिता जी अब दुखी रहते थे। उसके पिताजी बहुत कम बात करने लगे। वे अक्सर गुमसुम से रहने लगे उनके पास पहले की ही भाँति फोन आते। जिस कारण उनका व्यवहार दिन--दिन खराब हो रहा था

 

एक  दिन पायल हमेशा की तरह  शाम को अपने घर स्कूल से आती है   वह उदास थी।  उसने अपना बैग कंधे से उतारा और जैसे ही हाथ मुंह धोने के लिए बाहर निकली उसकी मां ने आवाज दी।

 

-! पायलिया। कल महाशिवरात्रि है।  क्या शिवजी का व्रत करेगी?

 

पायल को अचानक  ही आदित्य की याद जाती है कि कैसे वे बहुत ही रूचि के साथ महाशिवरात्रि का व्रत करते थे  और शिवजी की अराधना करते थे लेकिन अब उसके साथ आदि  नहीं था।  इस कारण वह निराश हो जाती है।

 

-नहीं! मां मुझे नहीं करना।

 

- पर क्यों बेटा?  हर वर्ष तो तुम रखती थी।

 

-"बोला ना मुझे नहीं रखना।  मेरा भगवान पर से विश्वास उठ गया है अब", पायल खींचते हुए कहती है

 

-अच्छा! गुस्सा मत हो मत रख लेकिन एक बात कहूँ?

 

" क्या है बोल?",  पायल गुस्से में झल्लाती है। 

 

- अरे! बात तो सुन ले।  झांसी की रानी।

 

-  अच्छा बोल।

 

-  कहते हैं,  महाशिवरात्रि व्रत रखने से अच्छा जीवनसाथी मिलता है भोले बाबा मन की मुराद पूरी करते हैं।

 

-अच्छा! सच

 

-हाँ! बाबा सच।

 

-  ठीक है,  मैं रखूंगी।  लेकिन मेरे लिए कोई फल मत मंगाना मैं भूखे पेट ही रहूंगी।

 

- पागल हो गई है क्या तू लड़की।  तू भूखी रह लेगी क्या?

 

- हाँ! रह लूंगी तू  मत मंगवाना।

 

पायल ने मुस्कुराते हुए कहा।  बहुत दिनों बाद उसे एक उम्मीद की किरण नजर रही थी कि अगर भोलेनाथ का वह व्रत रखेगी तो शायद आदि उसे मिल जाए उसे अगले दिन का इंतजार था।

 

 

अगली सुबह महाशिवरात्रि का व्रत था इधर पायल महाशिवरात्रि का व्रत करती है तो वहीं आदित्य भी महाशिवरात्रि का व्रत रखता है।  पायल फॉर्म के छोटे से मंदिर में शिव जी का व्रत करने के बाद पंचामृत का भोग लगाती है। वह  हाथ जोड़कर प्रार्थना करती है।

 

- हे! भोलेनाथ मुझे नहीं पता आदि  कैसे वापस आएगा? आप तो महादेव हो। कृपया करके मेरे आदि  को वापस भेज दो बस एक बार यह एहसास  दिलवा दो कि वह मुझे कभी नहीं भूलेगा। मैं चाहती हूँ एक  दिन में उसकी पत्नी बनूँ।

हे! भोलेनाथ आप तो कुछ भी कर सकते हैं।  मैं हर सोमवार आपका व्रत रखूंगी।  बस मेरा आदि मुझे लौटा दो उसके बिना मैं नहीं रह पाऊंगी प्लीज... प्लीज... भोलेनाथ इतना कर दो।

 

पायल की आंखों से आंसू बहने लगते हैं वह दिनभर आदित्य के बारे में ही सोच रही थी इधर आदित्य भी  महाशिवरात्रि का व्रत पायल को पाने के लिए करता है।  उन दोनों को नहीं पता था कि वह फिर दोबारा कभी मिलेंगे भी या नहीं लेकिन उन्हें भोलेनाथ पर विश्वास जरूर था।

 

क्रमशः....

 अध्याय-33

 

पांच माह बाद

 

बीकानेर की भूमि अब आग उगलने लगी है  आकाश में बादलों ने घेराबंदी भी करनी शुरू कर दी है। पिछले 2 साल से बीकानेर में इतनी ज्यादा बारिश नहीं हुई थी।  किंतु इस बार मानसूनी हवाओं का दौर देखकर ऐसा लग रहा था कि अबकी बार रेगिस्तानी जमीन पर वे मेहरबानी करेंगे।

 

     पायल का इंतजार और लंबा हो चुका था। वह हर सोमवार इसी आस में व्रत रखती कि आज आदित्य आएगा।  किंतु उसका इंतजार लंबा हो रहा था।  हालांकि वह पहले की ही भांति आदित्य की यादों में खोई रहती   इधर पायल से  मिलने का गम आदित्य को भी सता रहा था  उसकी नजरें जैसे ही अपने बसते पर पड़ती  वह अपने हाथ की लकीरों की तरफ देखने लग जाता और सोचता कि क्या मैं आगे पढ़ पाऊंगाक्योंकि उसके पास 11 वीं पास ना तो टी.सीथी और ना ही मार्कशीट  अगर वह किसी दूसरे स्कूल में भी एडमिशन लेता तो भी उसे 11वीं दोबारा करनी पड़ती।  लेकिन घर की  आर्थिक स्थिति को देखकर ऐसा लग नहीं रहा था कि वह आगे पढ़ पाएगा।

 

उसके पिताजी के साथ हुए धोखे के बाद से वे उस सदमे से उभर नहीं पाए थे।  जिस वजह से अक्सर वह उदास   अपने आप में ही खोए रहते  अगर घर का कोई सदस्य उन्हें  कुछ कहता तब भी वह उसका ढंग से उत्तर नहीं देते  उनका किसी भी काम को करने का मन नहीं करता  इसके अतिरिक्त वे शकी  प्रवृत्ति के भी हो गए।  यहां तक कि अगर गांव का कोई भी व्यक्ति उन्हें किसी काम के लिए बुलाता तो वह उल्टा उस पर ही शक करने लग जाते कि यह जरूर रविंद्र से मिला हुआ है।  ऐसा नही था कि उन्होंने दूसरी नौकरी पाने का प्रयास नहीं किया था  वह एक बार बीरबल से पैसे लेकर बीकानेर में किसी मिष्ठान भंडार पर काम करने के लिए गए थे  किंतु वहां के मालिक के रौबदार  व्यवहार के कारण उनकी उसके साथ बनी नहीं और वे 15 दिन में ही वापस लौट कर  गए।  इस वजह से घर का खर्चा चलाने के लिए आदित्य को लोगों के घर मकान निर्माण का कार्य करना पड़ता।

 

शुरू में कुछ दिन वह असहज रहा  किंतु आखिरकार सारे घर की जिम्मेदारी जब उसके कंधे पर आन पड़ी तो इस कार्य को करना उसकी मजबूरी हो गई  उसके पिताजी की तबीयत भी खराब रहने लगी।  जिस वजह से वह किसी के घर  मजदूरी का काम भी करने नहीं जा सकते थे।  घर का खर्चा चलाने के लिए आदित्य की मां ने फोन  अपने गहने तक भी बेच दिए।

 

घर के सभी सदस्यों के पहले के सिलाई हुए कपड़े फटना शुरू हो जाते हैं।  आदित्य के  हाथों    पांवो का हुलिया बिगड़ जाता है  क्योंकि निरंतर ईंट -पत्थर   सीमेंट का काम करने की वजह से उसकी शारीरिक हालत बद से बदतर हो गई थी  उसके हाथ फट चुके थे।  अंगुलियां कट चुकी थी।    धूप में काम करने की वजह से उसका चेहरा भी सांवले रंग का हो गया  वह इस दरमियान अपने पिताजी से मन ही मन शिकायतें भी करने लगा कि वह अपना फर्ज नहीं निभाते है।  उसकी मां भी अक्सर कई बार उसके पिताजी को ताने मार देती थी।  किंतु उनकी मानसिक स्थिति दिन--दिन खराब ही होती जा रही थी।  वह किसी भी प्रकार का कटाक्ष का जवाब सही ढंग से नहीं देते  यहां तक कि वह कम ही बात करते।  हालांकि आदित्य अपने पिताजी से वही प्यार  रिश्ता चाहता था जो कभी उनका हुआ करता था  किंतु अब वो रिश्ता पहले जैसा नहीं रहा था  अब उनके घर की आर्थिक परेशानियां उन दोनों के बेटे के रिश्ते में एक बड़ा रोड़ा बन गए थे  जिस पिताजी से कभी वह बेहद प्रेम और स्नेह रखता था।  आज जब भी वह घर में  आता  तो उनमें  किसी भी तरह की बातचीत नहीं होती। उसकी मां भी अक्सर उन्हें खरी-खोटी सुना देती थी।  उनका रिश्ता भी पहले के जैसा नहीं रहा था।  हालांकि आरतीपार्थिव या अदिति  के साथ उनके पिताजी कुछ देर बातें कर लेते थे या खेल लेते थे।

 

एक रोज शाम को जब आदित्य थका हारा घर आया तो एक डाकिया डाक लेकर उनके घर आया।

 

विजयविजय...

 

-"जी,  काका क्या बात है?" , आदित्य घर के आंगन से  बाहर जा कर देखता है तो उसे डाकिया दिखाई देता है।

 

अरेआदि बेटा तेरे पापा के नाम हरिपुरा से एक डाक आई है।  आकर ले जाओ।

 

-जीकाका  

 

आदित्य डाक पर अपने हस्ताक्षर करता है  डाक लेकर वह  अपने घर के अंदर  जाता है।

 

उसके पिताजी चारपाई पर बैठे हुए थे तो वहीँ उसकी मां शाम का खाना बनाने में व्यस्त थी।  आरती  अक्षय   आंगन में खेल रहे थे 

 

-बेटाकिसकी डाक आई है?

 

-  देखता हूं माँ।

 

आदित्य डाक खोलता है  सभी उसकी तरफ ध्यान से देख रहे थे।  आदित्य के पिताजी भी बेमन से उसकी तरफ देखते हैं।  वह डाक खोलता  है और उसमें लिखे एक लेटर को पढता  है-

 

 

प्रिय विजय कुमार जी,

 

आशा करता हूंआप स्वस्थ होंगे  घर के सभी सदस्य ठीक होंगे।  मुझे खेद है कि आदित्य को मजबूरी में स्कूल बीच में ही छोड़कर जाना पड़ा।  किंतु आदि ने पूरी साल मेहनत  लगन से पढ़ाई की थी।  फिर भी वार्षिक परीक्षा खुद नहीं दे पाया था।  मेरे पास आप के नंबर नहीं थे और जो थे उन पर कॉल नहीं लग पा रहा था।  इसलिए मजबूरी में किसी से डाक पता लिया।  वह यह पत्र लिख पाया हूं  जैसा कि पहले ही बता चुका हूं कि आदित्य बहुत अच्छा लड़का है। यह हमारी स्कूल में पहली से लेकर दसवीं तक पढ़ा था  मुझे आज भी याद है।  जब आप पहली बार आदित्य और  पायल को अपने साथ लेकर आए थे और हमारी  स्कूल में एडमिशन करवाया था।  इसलिए आदि मेरा हमेशा से ही एक चहेता  विद्यार्थी रहा है।  यह मेरे दिल के करीब है।  इसने पढ़ाई के दौरान सभी अध्यापकों का सम्मान किया था  इसलिए हम सभी अध्यापकों ने मिलकर निर्णय लिया था कि हम आदि  की एक साल की पढ़ाई बर्बाद नहीं होने देंगे।  अतः हमने  एक्स्ट्रा टाइम में पायल से आदित्य के पेपर करवाए थे।  अब आप यह मत करना कि यह आपने गलत किया विनोद जी।  मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है।  एक गुरु का फर्ज बनता है कि वह अपने शिष्य की हर संभव मदद करें।  इसलिए आप आकर आदित्य की 11वीं कक्षा की पास की मार्कशीट  टीसी.  लेकर चले जाईये  और इसे अच्छे से पढ़ाईये। मैं जानता हूं आदि एक बेहतरीन इंजीनियर बनेगा  मुझे पता है कि गह  अपनी मेहनत  लगन से मेरा सपना पूरा करेगा  मुझे इस बात का भी पता है कि आप यह सोच रहे होंगे कि हमने उसकी टी.सी  मार्कशीट फर्जी बनवाई है।  किंतु मैं आदि को जानता हूं।  अगर वह परीक्षा देता तो भी उसके अच्छे मार्क्स आते  अतः  कृपया इस बात को हमारे बीच ही रहने दीजिए एवं आदि का दूसरी स्कूल में एडमिशन करवा दीजिए और मेरे प्रिय विद्यार्थी को नई उड़ान भरने दीजिए 

 

धन्यवाद!

आपका शुभेच्छु

विनोद गुप्ता (प्रिंसिपल)

श्री नारायण सीनियर सेकेंडरी स्कूल

हरिपुरा (हनुमानगढ़)

 

पत्र पढ़कर आदित्य की आंखों में आंसू  जाते हैं  आदित्य के माता-पिता को महसूस होता है कि वह आदित्य की पढ़ाई खराब कर रहे हैं।  आदित्य चुपचाप जाकर पानी पीता है।

 

"हमें आदित्य को आगे पढ़ाना चाहिए।  यह सब गलत हो रहा है उसके साथ।  आप कुछ कीजिए ना ", आदित्य की मां उदास होकर कहती है.

 

मैं इस मामले में कुछ नहीं कर सकता सरोज  वैसे भी आदित्य को विज्ञान वर्ग की पढ़ाई करवाना हमारे लिए बहुत मुश्किल है 

 

आदित्य के पिताजी इतना कह कर के बाहर जाने लगते हैं।

 

यह क्या कह रहे हैं आप। इसका मतलब आप इसे पढ़ाना नहीं चाहते हैं।  तो मत पढ़ाइये। मैं पढ़ाऊंगी मेरे बेटे को।  आप तो बस आराम से बैठे चारपाई पर और मुफ्त की रोटियां तोड़िए।

 

आदित्य की  मां  उसके पिताजी पर झल्लाती  है उसके पिताजी बिना कुछ बोले ही घर से बाहर निकल जाते हैं।

 

आदि तू चिंता मत कर बेटा  तू कल ही हनुमानगढ़ जाना और टी.सीलेकर वापस  जाना  पैसे मैं तुम्हें दे दूंगी।",  आदित्य की मां आगे कुछ बोल पाती।  उससे पहले ही आदित्य बिलख पड़ता है  और उसकी मां के वक्षस्थल से लिपटकर रोने लग जाता है।

 

-चुप हो जा। एक साल देती हूं मैं तुम्हें।  भगवान मदद करें या ना करें।  लेकिन इस साल खूब मेहनत करके पढ़ाई करनी है तुम्हे।  कॉलेज में होगा जो देखा जाएगा।

 

आदित्य को ऐसा लग रहा था मानो उसके टूटे हुए सपनों का बस्ता उसे वापस मिल गया हो   वह दौड़कर अपने कमरे में गया और अपने बंद बस्ते  को उठाकर सीने से लगा कर रोने लगा। ये  आंसू गम के नहीं खुशी के थे।  क्योंकि वह जानता था कि टी.सी.  लाने के साथ-साथ वह पायल से भी मिल सकता था  भले ही यह एक छोटी मुलाकात होगी  किंतु इससे वह पायल को अपने हालातों के बारे में बता पाएगा।  इसके अतिरिक्त आगे पढ़ने का सपना भी तो उसका पूरा जो हो रहा था।

प्रश्न- क्या आदि और पायल की मुलाकात होगी? जानिये अगले अंक में😊

[26/02, 4:15 pm] Rajendra Kumar Shastri Guru 2: अध्याय-34

 

क्या होगी आज पायल और आदित्य की मुलाकात?

जाईये इस अंक में😊

 

आकाश में हल्के बादल छाए हुए थे। पायल का मन आज अनायास ही प्रसन्न है।  स्कूल का समय सुबह का है।  इस कारण वह जल्दी ही तैयार होकर निकल पड़ती है। आज जाने उसे क्यों महसूस हो रहा था कि सब अच्छा ही होगा।

 

 

इधर आदित्य तैयार हो जाता है उसकी मां उसे अपनी  किसी दोस्त से ₹2000 उधार लेकर उसे दे देती है ताकि वह हनुमानगढ़ जाकर टी.सी. मार्कशीट लेकर सके।  उसकी मां उसे जरूरती हिदायतें  दे देती है जैसे कि  वह पैसों को  सावधानी से खर्च करें।  इसके अतिरिक्त वह उसे यह भी बता देती है कि वह फार्म में किसी से भी मिलने ना जाए।  क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि रविंद्र श्याम सिंह जैसे  बुरे लोग उसके बेटे के साथ कुछ गलत करें।

 

हालांकि उसके पिताजी ने उसे किसी भी तरह की कोई हिदायत नहीं दी।  वह तैयार होकर जल्दी ही बस पकड़कर हनुमानगढ़ की ओर निकल जाता है।

 

 

आज पूरे 5 माह बाद वह वापस अपनी जानी पहचानी जगह की ओर जा रहा था ये पांच माह है उसके लिए कितने तकलीफ देह थे। उसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।  उसकी स्थिति उस परिंदे की जैसी थी जिसे कुछ वक्त के लिए खुला आकाश में उड़ने के लिए छोड़ दिया जाए वह निराश था।  लेकिन उसे सुकून इस बात का था कि वह आज पायल से भी मिल सकता है। उसकी शारीरिक दशा बहुत खराब थी उसने जो शर्ट पहन रखा था वह भी कोहनी पर से फट चुका था उसका फटा हुआ शर्ट कोई देख ले इस कारण उसने अपनी बाहों को ऊपर कर लिया था।  वह चार घंटे के सफर के दौरान रास्ते में कुछ भी नहीं खाता है।  क्योंकि वह जानता था कि जितने पैसे वह आज बचाकर चलेगा।  उतने वे  उसके आगे काम आएंगे बस अपनी रफ़्तार में  हनुमानगढ़ की ओर बढ़ रही थी अनायास ही उसका मन प्रफुल्लित हो रहा था।

 

बाहर सड़क किनारे खड़े शीशम सफेदा के पेड़ उसे आकर्षित कर रहे थे खेतों में नरमे ( कपास ) की बुवाई हुए 2 माह हो चुके थे।  इस कारण खेत हरे-भरे नजर रहे थे। वह बेहद प्रसन्न  था क्योंकि काफी दिनों बाद उसने हरियाली देखी थी उसके खिलखिलाते चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था मानो महीनों बाद उसके शरीर में आत्मा लौट आई हो उसका वही अल्हड़ लड़कपन लौट आया था जो 5 माह पूर्व कहीं खो सा गया था।

 

वह आंतरिक रूप से जितना प्रसन्न।  था उतना चिंतित भी था क्योंकि वह जानता था कि वह ये दृश्य कुछ देर के लिए ही देख पाएगा।  लेकिन उसे इस बात की आस थी कि आज वह अपने प्यार (पायल) से मिल सकेगा।  गाड़ी ज्यों-ज्यों आगे बढ़ रही थी त्यों-त्यों उसके दिल की धड़कनें भी तेज हो रही थी।  बस शीघ्र ही रावतसर पहुंच गई।  वही पुराना जाना पहचाना बस अड्डा।  उसे याद है कि एक बार वह पायल  और उसकी मां के साथ रावतसर  घरेलू सामान खरीदने के लिए आए थे अचानक उसकी नजर एक कुल्फी वाले पर पड़ती है।

 

 

-! आदि यह मेरी है।

 

- नहीं मेरी है।

 

-तू यह कुल्फी मत खा कहा ना मेरी है।

 

-चल बे बंदरियां। बड़ी आई यह कुल्फी मेरी है।

 

-मेरी है....

 

 

- हे! भगवान तुम दोनों फिर शुरू हो गए। अरे! आज तो मत लड़ो। यह शहर है।

 

-अरे! भाई खड़ा नहीं होना क्या?  यह बस यहां तक ही जाएगी आगे के लिए तुम्हें लोकल बस पकड़नी पड़ेगी। कंडक्टर ने आदित्य को अतीत से वर्तमान में ला पटका।

 

वह अपनी आंखें को रगड़ता है।  वह बस से नीचे उतर कर दूसरी लोकल बस में चढ़ जाता है।  उसे हरिपुरा जाने के लिए मटोरिया वाली ढाणी उतरना था इस कारण वह वहां तक की ही टिकट लेता है।  करीब 40 मिनट के बाद बस  आदित्य को मटोरिया वाली ढाणी छोड़ देती है।

 

 

इधर विद्यालय में अंतिम पीरियड चल रहा था। एक अंग्रेजी की अध्यापिका अंग्रेजी पढ़ा रही थी पायल का  दिल अनायास ही तेज धड़कने लगता है।

 

आदित्य पैदल ही हरिपुरा के लिए रवाना हो चुका था। वह काफी थका हुआ है इस कारण उसके पांव लड़खड़ा रहे हैं।  लेकिन पायल से मिलने की आस में वह बिना रुके  आगे बढ़ता जा रहा था।

 

इधर विद्यालय की छुट्टी हो चुकी थी पायल धीरे-धीरे कदमों से नीचे की तरफ आती है वह पानी पीती है वह अपने दुपट्टे को सिर पर लेकर फॉर्म की तरफ निकल पड़ती है।  हालांकि हमेशा की अपेक्षा वह धीमे  चल रही थी क्योंकि आज धूप तेज थी।

 

आदित्य तेज धूप होने की वजह से जल्दी नहीं चल पा रहा था वह पायल की घड़ी की तरफ देखता है तो 1:30 बज चुके थे।  वह जल्दी-जल्दी कदम बढ़ा रहा था अचानक ही उसे कोई व्यक्ति अपनी बाइक पर बैठा लेता है।

 

 

इधर पायल एक पेड़ के नीचे खड़ी है क्योंकि धूप तेज थी।  आदित्य को वह बाइक वाला मुख्य स्टैंड की तरफ छोड़ देता है।  वह विद्यालय की गली की तरफ जा रहा था तो वहीं पायल मुख्य चौराहे की तरफ रही थी।

[26/02, 4:15 pm] Rajendra Kumar Shastri Guru 2: 2: मेरी मोहब्बत का सफर...

 

अध्याय-35

 

 

आदित्य मुख्य चौराहे की ओर से विद्यालय की तरफ जा रहा है इधर पायल भी दूसरे रास्ते से फार्म की तरफ जा रही थी। वे दोनों एक दूसरे से महज 50 फीट की ही  दूरी पर थे।  लेकिन नीचे गर्दन करने की वजह से वे एक दूसरे की तरफ देख नहीं पाते हैं पायल धीमे-धीमे कदमों से फार्म की तरफ जाने लगती है तो वहीं आदित्य स्कूल की तरफ जा रहा था। वह कुछ ही देर में विद्यालय पहुंच जाता है मुख्य दरवाज़े पर अब कोई भी बच्चा नहीं था स्कूल के दरवाजे के पास  चपरासी खड़ा था

 

- नमस्ते! काका।

 

"  नमस्ते बेटा यह क्या हो गया है तुम्हें? कैसी हालत बना ली है तूने", चपरासी को आदित्य की दशा देखकर आश्चर्य हुआ। 

 

-कुछ नहीं काका। यह तो ऐसे ही।  अच्छा,  आप बताओ विनोद जी सर अंदर ऑफिस में ही है ना

 

- हाँ! ऑफिस में ही है।

 

-अच्छा ठीक है।

 

आदित्य मुख्य दरवाजे से ऑफिस की तरफ  चला जाता है। 

 

पायल फार्म की तरफ जा रही है वह चाहते हुए भी तेज नहीं चल पा रही थी।  जाने  ऐसी क्या बात थी कि  वह चाहकर भी अपने कदम आगे नहीं बढ़ा पा रही थी उसके दिल में एक अजीब सी बेचैनी थी। फिर भी वह धीरे-धीरे कदमों से फार्म की तरफ जाती है।

 

-और  आदि बेटा सब ठीक है।

 

-" हाँ! गुरुजी सब ठीक है", आदित्य ने कुर्सी पर बैठते हुए कहा

 

- लेकिन बेटा तुम्हारी हालत को देखकर लगता तो नहीं

 

- सर ऐसी कोई बात नहीं है।

 

आदित्य भले ही अपनी दशा अपने गुरु जी से छिपाने का  प्रयास कर रहा था लेकिन हकीकत तो यह थी कि जो गुरुजी उसे बचपन से जानते थे।  उसने  अपने दिल की बात छुपा पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था।  विनोद जी ने उसकी  टी.सी. काट कर उसे  थमा दी।

 

 

- यह लो आदि तुम्हारी टी.सी. मार्कशीट। अब  खूब मन लगाकर पढ़ाई करना

 

- ठीक है,  गुरु जी लेकिन आपके कितने पैसे हुए हैं

 

-अरे!  वाह तू तो अब मुझे पैसे भी देगा कुछ भी पैसे नहीं है।

 

-  पर,  सर मैं जानता हूं आप टी.सी. मार्कशीट शुल्क दो सौ रूपये  लेते हो और पापा ने कहा था कि मेरी फीस में भी एक हजार रूपये बकाया है।

 

 

-अरे! काहे की फीस।  तू रहने दे वैसे भी तूने पढ़ाई तो करी  ही नहीं तो फिर फीस  किस बात की

 

- पर गुरुजी...

 

- पर.. वर कुछ नहीं आदि   मैं जानता हूँ। तू खुद्दार है।  किंतु अभी तुम्हारा समय विपरीत है।  तू जा और मन लगाकर पढ़ाई कर।

 

विनोद जी ने आदित्य के सिर पर हाथ रखा अपने गुरु जी की बातें सुनकर आदित्य की आंखों में आंसू गए।  उसने टी.सी. लेकर अपने गुरु जी के पांव छुए।

 

-  ठीक है गुरुजी।  अब चलता हूं मैं।

 

 

हां! जाओ लेकिन पायल से मिलकर चले जाना।  मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा है कि जो पायल कभी बदमाशों में एक नंबर पर रहती थी वह अब अचानक ही इतना क्यों पढ़ने  लगी है तुम्हें उस पर गर्व होना चाहिए आदि।

 

- जी, सर मुझे बहुत खुशी हो रही है।  मैं जरूर उससे मिलकर आऊंगा।

 

आदि ने ने एक बार फिर अपने गुरु जी को नमस्कार किया।  वह कार्यालय से बाहर गया।  वह थका हुआ था किंतु पायल से मिलने की चाह में उसके कदम अपने आप तेज गति से बढ़ रहे थे वह जल्दी ही फार्म की तरफ जाने वाले रास्ते पर पहुँच गया। वहां पहुंचते ही अचानक उसके कदम रूक से जाते हैं। उसे अपनी मां की दी हुई हिदायतें  याद आने लग जाती हैं।  वह चाहते हुए भी आगे नहीं बढ़ पा रहा था।  एक तरफ उसका प्यार  था तो दूसरी तरफ उसकी मां की दी गई हिदायतें वह किसे  मानता किसे नकारता।  इस दुविधा का उसके पास कोई उपाय नहीं था।

 

इधर पायल का मन बेचैन है वह जंगल के अंदर प्रवेश कर चुकी थी चाहते हुए भी उसके कदम आगे नहीं बढ़ रहे थे।  अचानक उसकी नजर उस शीशम के पेड़ पर पड़ती है उसे आदित्य की याद जाती है वह उस पेड़ की तरफ दौड़ कर जाती है वह  उस पेड़   पर आदित्य के लिखे शब्द "लंगूर लव्स बंदरिया वेरी मच"  को हाथ से स्पर्श करती है उसे अतीत में आदित्य का मुस्कुराता हुआ चेहरा याद आने लगता है।  उसकी आंखों में भावनाओं का सैलाब जाता है।  वह उस पेड़ के तने से लिपट कर रोने लग जाती है

 

"आई लव यू आदि आई रियली लव यू।  भगवान जी आदि को वापस भेज दो ना प्लीज।"

वह फूटफूटकर रोने लग जाती है।

 

 

आदित्य उस रास्ते पर इसी दुविधा में खड़ा हुआ था कि वह पायल से मिलने के लिए  फार्म की तरफ बढे  या फिर वापस अपने गांव की तरफ   एक तरफ उसका प्यार था तो दूसरी तरफ उसकी मां की दी हुई हिदायतें।  लेकिन आखिरकार वह अपने आप को रोक नहीं पाता है और फार्म की तरफ अपने प्यार से मिलने के लिए चल पड़ता है।

 

पायल अपने आंसू पोंछती है।  वह हमेशा से ही अपना दिल हल्का करने के लिए उस पेड़ से लिपटकर रोने लग जाती थी।  जब पेड़ से लिपट कर रोने से भी मन नहीं भरता तो वह आदित्य के नाम का लेटर लिखती और उसे उस पेड़ के तने में बने एक छेद में डाल देती।  यह वह अक्सर करती।  पेड़ के पास कुछ देर बिताने से उसे महसूस होता है कि आदि उसके पास ही है।  हमेशा की तरह आज भी उसने अपने बैग में से  पेन निकाला    पत्र लिखना प्रारंभ कर दिया।

 

 

इधर आदित्य जल्दी-जल्दी फार्म की तरफ बढ़ रहा था वही पुराना रास्ता जिस पर कभी वह पायल के साथ विद्यालय आना-जाना करता था। वे  दिन भी  कितने प्यारे दिन थे।  कितना अद्भुत एहसास था उन दिनों का।  जब पायल के साथ कदम से कदम मिलाकर वह रोज चलता था और जब पायल पीछे रह जाती थी तो वह जोर से आवाज देती- "औए! लंगूर धीरे चल ना। "

 

वह ये सब सोचता हुआ जैसे ही उस शीशम के पेड़ के पास पहुंचा जिसके  नीचे कभी पायल आदि एक ही छाते के नीचे बारिश से बचने के लिए खड़े थे कितना प्यारा अहसास था वह जब पायल उससे लिपट कर खड़ी थी वह उसकी बाहों में थी लेकिन आज वक्त ने ऐसी पलटी मारी थी कि उसका प्यार उसकी अपनी भावनाएं सब तबाह हो चुकी थी वह थका हुआ था।  किंतु उसके कदमों की रफ्तार अब भी तेज थी।

 

इधर पायल पत्र को पूर्ण लिखने के बाद बेमन से खड़ी होती है वह फार्म की तरफ निकल पड़ती है।  उसके आदित्य के मध्य करीब 1 किलोमीटर का फासला है।  यही कारण है कि आदित्य उसे देख नहीं पाता है इधर आदित्य जंगल में प्रवेश करता है तो पायल जंगल से निकल जाती है आदित्य की नजर उस झाड़ के पेड़ पर पड़ती है जिसे देखने के बाद पायल अक्सर डरकर उसके गले लग जाती थी।  वह मुस्कुराता है और आगे बढ़ जाता है कुछ ही देर में रास्ते से कुछ ही दूर खड़े उस शीशम के पेड़ के ऊपर उसकी नजर पड़ती है जहां उसने पायल को सबूत के तौर पर लिखा था।

 

" लंगूर लव्स बंदरिया वेरी मच।"

 

वह अपने आप को उस पेड़ की तरफ जाने से रोक नहीं पाता है वह दौड़कर उस पेड़ के पास जाता है और उससे लिपट कर रोने लग जाता है।

 

- आई लव यू पायल.  पायल...

 

अनायास ही वह रो पड़ता है।  वह घुटनों के बल गिर जाता है।  तने पर बनाए गए उस दिल को वह चूमता है। वह आंसू पोंछकर देखता है तो   उसे पायल के पदचिन्ह  दिखाई देते हैं।

 

- पायल....

 

पायल तुम रोज आती हो।  मुझे पता है तुम मुझसे कितना प्यार करती हो।  पायल आई लव यू.... आई लव यू सो मच....

वह रोने लग जाता है। मिट्टी पर बने पायल के कदमों के निशानो  को वह महसूस करता है।  अचानक उसकी नजरें एक कागज के टुकड़े पड़ती है जो उस पेड़ के तने में बनी जगह के अंदर था।  वह उसे बाहर निकालता है तो पाता है कि वह कोई खाली कागज नहीं बल्कि एक लव लेटर था   ऐसे ही बहुत से लेटर उसके अंदर थे वह पहले लेटर को पड़

पढता है।

 

- पता है, आदि।  तेरे जाने के बाद क्या महसूस करती हूँ मैं।  ऐसा लगता है।  जैसे जिंदा हूं   लेकिन मेरी आत्मा नहीं है।  यार आग सी लगी हुई है सीने में।  ऐसा महसूस होता है जैसे मर रही हूं कभी-कभी तो दिल करता है मर जाऊं लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती क्योंकि मैं जानती हूं तू एक दिन आएगा मुझे लेने।

 

 

- पायल... हाँ पायल.. हाँ.. मैं आऊंगा मैं रहा हूं पायल। मैं रहा हूं

 

आदित्य जल्दबाजी में खड़ा होने का प्रयास करता है कि अचानक पेड़ के  तने की छाल में उसका शर्ट फंस जाता है

और फट जाता है।  वह अपने फटे हुए शर्ट की  तरफ देखता है तो उसे अपनी दशा पर ग्लानि महसूस होती है।  उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं।  वह अपने हाथों की तरफ देखता है।  अपने चेहरे को महसूस करता है।

 

-पायल... आई एम सॉरी आई एम सॉरी पायल।  मैं नहीं पाऊंगा   मैं नहीं पाऊंगा पायल।  अभी तेरे लायक नहीं हुआ हूँ पायल।  माफ करना मुझे

 

वह रोने लग जाता है उसकी आंखों से बहते आंसू उसकी मजबूरी है के परिचायक थे। वह टूट जाता है।  वह  रोते हुए पायल के लिखे सभी पत्र पढ़ना शुरू कर देता है।  उसके बाद वह एक लेटर के पीछे अपने पेन से कुछ लिखता है।  उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं ये आंसू उसकी मजबूरी के थे।   वह उन पत्रों को वापस उस पेड़ के तने में बनी  जगह में पुनः रख  देता है।  वह पायल के कदमो के चिन्ह की  मिट्टी को  वहां पास पड़ी एक थैली में डालकर अपने  बैग में डाल लेता है।  उसकी आंखों से आंसू बह रहे  थे।  वह असहाय था।  वह वापस रास्ते पर गया उसका मन कर रहा था कि वह पायल से मिलने जाए लेकिन अपनी दशा को देखकर  वह महसूस करता है कि उसे पायल से मिलने नहीं जाना चाहिए।  वह कुंठित था।  वह नहीं चाहता था कि उसकी दशा को देखकर पायल  को उस पर तरस आए वह रोने लग जाए।  अपने प्यार को इस दशा में देखकर टूट जाए।  वह नहीं चाहता था कि उसकी उस दशा पर पायल दिन--दिन रोए वह नहीं चाहता था कि उसकी पायल उसकी वजह से निराश हो जाए।  इसलिए उसने एक ऐसा निर्णय लिया जो भले ही उसके लिए असहनीय था।  किंतु वक्त के मुताबिक सही था।  उसने अपने कदम बेमन से वापस उस मंजिल की तरफ बढ़ा लिए जिस पर साथ देने के लिए उसके साथ पायल नहीं थी।  जहां गर्माहट पैदा करने के लिए पायल की बाहें नहीं थी।  जहां उसके आंसू पोंछने  के लिए पायल का दुपट्टा नहीं था।

 

उसे अब अकेले ही अपनी मंजिल पर चलना था।