अध्याय- 21

 

आदित्य के पिताजी बरामदे में निराश बैठे हुए हैं. दोपहर के लगभग तीन बजने वाले हैं. अचानक आदित्य के पिताजी के फ़ोन की घंटी बजती है. फ़ोन की स्क्रीन पर सेठजी का नाम दिखाई देता है.

`हेल्लो! नमस्ते सेठजी`

`तुमने कल सुरेश से बात क्यों नहीं की? उसे कल अपने गाँव जाना था और पैसों की जरुरत थी. क्या तुम्हारे पास इनता भी समय नहीं था?`, सेठजी रूखे स्वर में बोलते हैं.

विजय कुमार- कल मेरा मूड ठीक नहीं था तो गुस्से में कह दिया. इसके लिए माफ़ी चाहता हूँ सेठजी.

`तुम किन-किन गलतियों की माफ़ी मांगोगे विजय? देख रहा हूँ मैं आजकल तुम अपने काम के प्रति कितने लापरवाह हो गए हो. पहले टौमी को ट्रेक्टर देकर तेल लाने भेज दिया जिसे हरियाणा-राजस्थान बॉर्डर की तेल पालिसी का बिलकुल पता नहीं था. इधर कल जब तुम्हे उस एस. आई से बात करने को कहा तो तुम उल्टा उससे ही लड़कर गए.`, सेठजी पुन: क्रोधित होकर कहते हैं.

आदित्य के पिताजी कुछ देर बिलकुल नहीं बोलते हैं. वे चुप थे.

`क्या हुआ कुछ जवाब है तुम्हारे पास विजय?`

`वो..वो..`

`क्या वो.. वो. साफ़ कहो . क्या कहना चाहते हो?`

विजय कुमार- उसने मेरे साथ बदतमीजी की थी.

सेठजी- अगर यही बात मैं तुम्हे कहूं तो क्या कहोगे? एस. आई ने मुझे कहा की तुमने उसकी बात तक नहीं सुनी. वो तुम्हे मामले को निपटाने की बात कहता रहा लेकिन तुमने उसकी एक सुनी.

विजय कुमार- नहीं! ये सच नहीं है.

`तो या सच है विजय? अब तो तुम झूठ भी बोलने लगे. उसने मुझे कल रात को ही एक ऑडियो मेल किया है. तुम कहो तो भेजूं उसे?`, सेठजी आदित्य के पिताजी से क्रोधित होकर कहते हैं.

विजयकुमार- मैंने उसे ऐसा कुछ भी नहीं कहा है. मैं सच कह रहा हूँ.

`अच्छा! ठीक है. मैं तुम्हे अभी ऑडियो मेल करता हूँ. तुम उसे सुनो फिर कहना. क्या है आजकल तुम क्या कर रहे हो ये तुम्हे खुद भी नहीं याद रहता  है.

कुछ ही देर में फ़ोन कट गया. आदित्य के पिताजी निराश हो जाते हैं. अचानक फ़ोन की घंटी बजती है. उनके फ़ोन पर सेठजी का मेल आया हुआ था.

 

` रोल नंबर वन.. आदित्य.. आदित्य के बीस नंबर में से पूरे बीस आए हैं. शाबाश आदित्य ऐसे ही पढ़ा कर.`

अमजद खान ग्याहरवी कक्षा में गणित के टेस्ट का परिणाम बता रहे हैं.

`हाँ! जैसा की मैंने पहले ही बताया था की इस टेस्ट को पास करने के लिए आप सभी के बीस में से पन्द्रह नंबर आने जरुरी है वर्ना सजा मिलेगी..`, अमजद खान सभी बच्चों की तरफ देखते हुए कहते हैं.

`हाँ! तो अब अगला नंबर आयुष्मान का है.. आयुष्मान ने टेस्ट में बीस में से सोलह नंबर प्राप्त किए हैं. शाबाश! गुड पेर्फोमंस.`

इस तरह से वे लगातार नंबर सुनाते जाते हैं.

रोल नंबर इलेवन- पांचाल शर्मा... ओह! तेरी ये क्या किया रे तुमने.. केवल पांच नंबर लाया है तू.. चल मुर्गा बन जा.. नालायक कहीं का.`, अमजद खान क्रोधित होकर कहते हैं.

`सर.. सर.. आगे से याद करके जाऊंगा.`, पांचाल धीमे से बोलता है.

`चुप कर.. मुर्गा बन जा.` अमजद खान पुन: क्रोधित होकर कहते हैं. पांचाल आगे आकर मुर्गा बन जाता है. सभी बच्चे डर जाते हैं. आदित्य पायल की तरफ देखता है क्योंकि अगला नंबर उसका ही था.

 

`तो आप केस के बार में बात नहीं करना चाहते`

`नहीं! मुझे अब कोई बात नहीं करनी.`

`अरे! आप तो खामखा नाराज हो गए हो. पहले मेरी बात तो सुन लीजिए. मैं केस को देख लूँगा.`, फ़ोन की रिकार्डिंग से लगातार आवाज रही थी. आदित्य के पिताजी बरामदे में बैठे रिकॉर्डिंग को सुनं रहे हैं।

`नहीं मुझे कोई बात नहीं सुननी.` रिकार्डिंग में आदित्य के पिताजी की आवाज सुनाई दे रही थी. थोड़ी देर में चेम्बर बंद होने की आवाज आती है और रिकार्डिंग बंद हो जाती है.

` उफ्फ्फ! कमीने ने मेरी उतनी ही बात को रिकॉर्ड किया जितना उसे सेठजी को सुनाना था. उसे जरुर ये सब कहने को बोल रहा है कोई!`, आदित्य के पिताजी क्रोधित होकर बुदबुदाते हैं.

वे निराश हो जाते हैं.

-रोल नंबर ट्वेल्व. पायल.. आगे जाओ पायल.` अमजद खान कॉपी की तरफ ध्यान से देखते हुए पायल के नंबर सुना रहे थे.

आदित्य पायल की तरफ ध्यान से देखता है. पायल अमजद जी सर की तरफ जाती है. आदित्य आँखे बंद करके मन ही मन बुदबुदाता है.- हे! भोलेनाथ, पायल के बचने लायक नंबर जाए बस..

` हाँ! तो पायल के बीस में से... बीस नंबर आए हैं. वाह! पायल.. साबाश!` अमजद खान पायल की पीठ थपथपाते हुए कहते हैं. आदित्य जोश में खड़ा हो जाता है जश्न मनाता है.

`येस! येस.. पायल जोर से उछलती हुई आदित्य की तरफ बढती है. वह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाती है.

`देख ले लंगूर हमने कर लिया.. देख ले.. तुम बहुत अच्छे हो`, पायल उछलकर आदित्य से कक्षा में ही गले लग जाती है.

`हा हा हा..` सभी बच्चे उन्हें गले मिलकर देखते हुए हँसते हैं.

पायल को अचानक आभाष हो जाता है की उसने भावनाओं में बहकर सबके सामने ही आदित्य को गले लगा लिया. आदित्य भी अपने आपको शर्मिंदा महसूस करता है. सभी बच्चो को हँसते हुए देखकर अमजद खान की त्योरियां चढ़ जाती हैं.

`चुप करो नालायको. और ये क्या है पायल? आज नंबर लेकर गई तो क्या हुआ? तुम कभी नहीं सुधर सकती. चल अपने हाथ ऊँचे करके खड़ी हो जाओ.`

कुछ लड़कियां फुसफुसाती हैं- बेचारी पायल की तो किस्मत ही खराब है. कभी कुछ तो कभी कुछ.

राघव मन ही मन क्रोधित होता है. पायल अपने हाथ ऊपर करते हुए धीमे से कहती है- सर अब से कुछ भी गलत नहीं करूँगा. आई एम सॉरी सर.. प्लीज आखिरी बार माफ़ कर दो.

` अच्छा!` अमजद खान तीखी नजरो से देखते हुए कहते हैं.

`हाँ! सर प्लीज`, पायल पुन प्रार्थना करती है.

`ओके! बैठ जा लेकिन आगे से नहीं होना चाहिए.`, अमजद खान रूखे स्वर में कहते हैं.

पायल ख़ुशी जताने ही वाली थी की आदित्य अपने हाथ से इशारा करते हुए उसे समझा देता है. पायल अपनी बेंच पर बैठ जाती है.

 

इधर आदित्य के पिताजी निराश बैठे हैं.

`एक कप चाय लेकर आओं मेरे लिए. सर दर्द कर रहा है.` आदित्य के पिताजी रूखे स्वर में कहते हैं.

`हाँ! अभी लेकर आई.` आदित्य की माँ उसके बाद रसोई घर में चली जाती है.

 

इधर स्कूल की छुट्टी हो गई है. आदित्य विद्यालय के मुख्य दरवाजे पर पायल का इंतजार कर रहा है. कुछ ही देर में पायल जाती है.

`चल आज मुझे पार्टी देनी होगी. समझी. तेरे बीस में से बीस नंबर आए हैं.`, आदित्य पायल की तरफ मुस्कुराते हुए कहता है.

पायल- अच्छा! वो तो तुझे भी देनी चाहिए क्योंकि तेरे भी तो बीस में से बीस नंबर आए हैं .

आदित्य- तो क्या हुआ? मेरे तो अक्सर जाते हैं. बात तेरी है. तुझसे तो पार्टी लेकर ही रहूँगा.

पायल- अच्छा! ठीक है दे दूँगी चल चलते हैं रामू काका की दूकान पर.

आदित्य- चल..

`इस आदि को तो मैं पार्टी दूंगा और इस पायल को तो ऐसी दूंगा की ये किसी को मुहं दिखाने के लायक नहीं रहेगी.`, राघव पास खड़े अपने दोस्त से गुस्से में कहता है.

निखिल- क्या करने वाला है तू?

राघव- चल बताता हूँ तुझे.

इतना कहकर वे दोनों चले जाते हैं. इधर आदि और पायल बाजार की तरफ चले जाते हैं.

 

धीरे-धीरे अँधेरा छा रहा है. आदित्य के पिताजी एक खेत से दूसरे खेत में जा रहे हैं. वे निराश लग रहे हैं. वे मन में कुछ सोच ही रहे होते हैं कि अचानक उनके फ़ोन की घंटी बजती है. वे जैसे ही फ़ोन की स्क्रीन की तरफ देखते हैं तो पता चलता है की उन्हें एस. आई फ़ोन कर रहा था.

`हेल्लो`

`हा, हा, हा, क्या हुआ मुनीम जी, होश उड़ गए . मैं ऐसे ही एस. आई नहीं बना हूँ. अभी तो मैंने शुरू किया है. आगे देखो मैं क्या करता हूँ.`,फ़ोन पर एस. आई बोलता है.

`तुम चाहते क्या हो?`, आदित्य के पिताजी क्रोधित होकर पूछते हैं.

`एस. आई.- तुम्हारी बर्बादी.

विजय कुमार- लेकिन मैंने तुम्हारा क्या बुरा किया है?

आदित्य के पिताजी जोर से बोलते हैं लेकिन फोन कट जाता है. वे क्रोधित हो जाते हैं.

 

क्रमश...

 

 

 

अध्याय- 22

 

 

गाँव का छोटा सा बाजार बहुत मनोरम लग रहा है. कुछ बेलगाड़ियाँ गाँव की कच्ची सडक से गुजर रही हैं. आदित्य और पायल मुस्कुराते हुए रामू काका की दूकान की तरफ जा रहे हैं. वे शीघ्र ही दूकान  पर पहुँच जाते हैं. दूकान पर कचोरी, समोसा, जलेबी, लड्डू आदि एक छोटी कांच की बनी फ्रेम के पीछे सुव्यवस्थित ढंग से रखे हुए थे. रामू काका एक महिला के लिए चाय बना रहे थे जो की दूसरी तरफ पड़ी लकड़ी की बेंच पर बैठी बस का इंतजार कर रही थी.

`चल बंदरिया निकाल बीस रूपये.`, आदित्य पायल से दूकान पर पहुँचते ही कहता है.

पायल बेग को लकड़ी की बैठने की बेंच पर रख देती है और पैसों की तलाश करती है. आदित्य उसकी तरफ देखते हुए कहता है- अरे! कंजूस पैसे निकाल .

`अरे! आदि बेटा पैसे नहीं हैं तो कोई बात नहीं. नाश्ता कर लो. कल दे देना तुम तो आते जाते रहते हो.

`नहीं अंकल, आज इस बंदरिया के गणित में बीस में से बीस नंबर आए हैं तो इससे पार्टी ले रहा हूँ. अब पैसे तो इससे ही लेने हैं वरना तो पार्टी लेने का मजा नहीं रहेगा.`

`हा, हा, हा.. मतलब आदि तुम आज इस बेचारी के चुना लगाकर ही मानोगे.` रामू काका हंसते हुए कहते हैं.

`और नहीं तो क्या अंकल, ये कमीना बहुत बुरा है. कोई आप दे दीजिए. मैं कल दे दूँगी आपको पैसे.`, पायल मुस्कुराते हुए कहती है.

रामू काका- अच्छा! बेटा कोई बात नहीं. क्या खाओगे.

आदित्य- दो कचोरी दे दो अंकल गरमा गर्म.

रामू काका- अच्छा ठीक है.

पायल उखड़े हुए मन से आदित्य की तरफ देख रही थी. इधर रामू काका जैसे ही दोनों कचोरी को अलग-अलग अखबार पर रखने लगते हैं. आदित्य बीच में बोल पड़ता है- अंकल, ये क्या कर रहे हो? एक ही अखबार के टूकड़े पर रख दो.

`मैं तुम्हारे साथ नहीं खा सकती समझे.` पायल रूखे स्वर में कहती है.

आदित्य- अरे! तो तुझे साथ में खाने को कौन बोल रहा है? ये तो मैं अकेले ही दो खाने वाला हूँ.

`अबे! दो दिनों से कुछ भी नहीं खाया क्या जो सारी रही कही कसर यही निकाल दोगे? `, पायल पुन: गुस्सा होकर बोलती है.

रामू काका उन दोनों को लड़ते हुए देखते हैं.

`अंकल आप इसे मत देखो. बस दो तो कम से कम डाल दो. ` आदित्य के इतना कहते ही पायल आदित्य की तरफ क्रोधित होकर देखती है.

`लो बेटा, और तुम्हारे लिए कितनी दूं पायल बेटा.`, रामू काका आदित्य को दो कचोरी एक ही अखबार के टुकड़े पर रखकर दे देते है. आदित्य उन्हें अपने हाथ में लेता है.

`आह! उह... मजा ही जाएगा अब तो.` आदित्य अपने एक हाथ से बैग को बेंच पर रखता है और फिर अपनी दोनों टांगो को बेंच की दोनों तरफ कर लेता है. उसके बाद कचोरियों को टेबल के बीच में रख देता है. पायल उसे लगातार देख रही थी.

`बोल पायल बेटा. तेरे लिए कितनी बनाऊं.`, रामू काका फिर से पायल से पूछते हैं.

लेकिन पायल आदित्य की तरफ एकटक देख रही थी. आदित्य पायल की तरफ बिना देखे ही पहला निवाला खाता है.

`उम्म... आह... मजा ही गया रामू काका.. बस थोड़ी सी चटनी ओर डाल दो.`

`अरे! क्यों नहीं बेटा? ये लो...`रामू काका आदित्य की कचोरी में चटनी डाल देते हैं..

पायल को मन ही मन गुस्सा रहा था क्योंकि आदित्य ने उससे कचोरी खाने के लिए पूछा भी नहीं.

" उम्म.. आह.. बहुत स्वादिष्ट कचोरी बनाई है रामु काका आपने आज। ऊपर से गर्म भी है।

 

पायल अपनी भवनाओं पर नियंत्रण नहीं रख पाती है। वह आदित्य के सामने बैठ जाती है।

"कमीने! बुखड़.. मुझे पूछकर नहीं खा सकता तू। चल पीछे खिस्क। " पायल आदित्य को पीछे खिसकने को बोलती है। वह कचोरी का एक निवाला तोड़ती है।

"आह!! गर्म है.."

"तो मैंने कब कहा कि ठंडी है, हा, हा हा , " आदित्य हँसते हुए कहता है।

 

रामु काका उनकी खिटपिट को देखकर मुस्कुराते हैं। पायल मायूस होकर बैठ जाती है। वह अपनी अंगुली की तरफ देख रही थी। इतने में आदित्य ने एक निवाले को ठंडा किया और पायल के मुहँ की तरफ किया। पायल ने मासूमियत से उसकी तरफ देखा।

" खा ले। अभी के लिए खिला रहा हूँ। वरना ये अहसान बाद में नहीं होगा तुम पर।

 

पायल ने मुहं खोला, आदित्य ने उसे निवाला दिया. ये सब देखकर रामू काका अपना आपको मुस्कुराने से रोक सके. पायल एकटक आदित्य की तरफ देख रही थी.

`ले खा ले मोटी, फिर मत बोलना की तुम भूखी रह गई.`, आदित्य ने पुन: एक निवाला देते हुए कहा.

इधर पायल उसे एकटक देख रही थी.

`एक कचोरी ओर दे दो अंकल.` , आदित्य ने रामू काका से कहा.

वे एक के बाद एक  कचोरी खाते जाते हैं.

 

`तू क्या करने वाला है राघव?`, राघव के दोस्त निखिल ने राघव से पूछा.

राघव- कुछ भी करना पड़े. आज मैं उस आदि को मजा चखाने वाला हूँ. वे उस रामू की दूकान से आएँगे उससे पहले ही हम उन्हें रास्ते में रोक लेंगे.

निखिल- मतलब क्या है तुम्हारा?

राघव- अरे! मतलब नहीं समझा. हा हा हा, तू सच में पागल है. क्या तुमने कभी पायल को नहीं देखा. कितना कड़क माल है यार. मुझे तो वो काफी दिनों से पसंद हैं. आज उस कमिनी ने मेरा दिल तोड़ दिया जब उसने सबके सामने आदि को गले लगाया. उसको तो अब मैं नहीं छोडूंगा और उस आदि के बच्चे की तो मैं टांग तोड़ दूंगा.

निखिल- तेरा दिमाग ख़राब है क्या? आदि के पापा मुनीम है. अगर केस हो गया तो तू जानता है. हम ऐसा कुछ नहीं करने वाले हैं.

राघव- अरे! पागल तुम्हे भी तो उस कड़क माल का भोग लगाने का मौका मिलेगा और सब काम करने के बाद हम उन्हें इतना डरा देंगे की वो किसी को कुछ भी नहीं कहेंगे. तू चिंता मत कर. हम उसका विडियो भी बना लेंगे तो वो किसी को नहीं कह पाएंगे.

निखिल- अच्छा! ऐसा क्या? फिर तो रेडी हूँ.

राघव- हाँ! चल चलते हैं. तुम्हारी साइकिल निकाल ले मैंने रमेश और किशन को भी बोल दिया है. चार लोग मिलकर तो उस आदि का कचूमर निकाल देगी और उस सेनोरिटा के लिए तो मैं अकेला ही काफी हूँ.

निखिल- हा, हा, हा, सही कहा... चल चलते हैं.

वे दोनों जल्दबाजी में राघव के घर से निकल जाते हैं.

 

`लो अंकल काट लो.` आदित्य ने अपनी जेब में से सौ रूपये का नोट निकालकर रामू काका को देते हुए कहा.

`अरे! लंगूर मैं दे दूँगी कल. तू अपने पास रख.` पायल ने सौ रुपयों के नोट को अंदर डालने के लिए कहती है.

रामूकाका- अरे! बेटा बताओ मुझे पैसे आज ही दोगे या कल. तुम दोनों भी ..

`आप ले लो अंकल.` आदित्य ने रामू काका को सौ रूपये का नोट पकड़ा दिया.

पायल- तू कभी नहीं सुधरेगा बंदर. मैंने कहा मैं दे दूँगी कल.

आदित्य- तो क्या हुआ? तू चुप कर समझी.

`अरे! आदि बेटा.`

आदित्य- हाँ! अंकल, कहिए.

रामू काका- अरे! मेरे पास सौ रूपये के छुट्टे नहीं हैं. तू एक काम कर आगे जब भी आओ तो ले जाना. मैं लिख लेता हूँ.

आदित्य- कोई बात नहीं अंकल. आप लिख लो. चलो हम चलते हैं.

रामू काका- हाँ! जल्दी जाओ बेटा. आप दोनों को काफी देर हो गई है.

`चल बंदरिया जल्दी चल.`, आदित्य ने बैग उठाया ओर चल पड़ा. वे जल्दी-जल्दी फॉर्म की तरफ बढ़ने लगते हैं.

 

`ये कमीना आदि कहीं हमें चकमा देकर निकल तो नहीं गया पायल के साथ! वो बहुत चालक है.`, राघव ने अपने सभी दोस्तों से कहा.

`अरे! नहीं गया है. अगर गया होता तो उन दोनों के कदमो के चिन्ह भी दिखाई देते लेकिन नहीं है.` रमेश ने जमीन की तरफ देखते हुए कहा.

राघव- अरे! वाह, मेरे वैज्ञानिक क्या बात है! बिलकुल सही कहा. अब कैसे बचेगा साला! अच्छा तुम तैयार रहना. उससे ज्यादा बात मत करना वो हमें भोंदू बनाकर भाग भी सकता है.

`तू चिंता मत कर भाई. ये क्रिकेट स्टंप किस काम आएगी. उसके सर पर एक ही मारूँगा की सारी अक्लमंदी बाहर निकल जाएगी.

राघव- हा हा हा, सही कहा..

इधर दूसरी तरफ आदित्य और पायल गाँव से बाहर गए हैं. वे जल्दी- जल्दी फॉर्म की तरफ बढ़ रहे हैं.

`वैसे बंदरिया तू है तो पागल ही.` आदित्य पायल से कहता है,

 

कैसे?

 

आदित्य- अब क्या पूरी बात समझाऊं? पूरी भरी कक्षा में तुमने मेरी इज्जत की टूडी कर दी. सबके सामने मेरे गले लगने की क्या जरुरत थी?

पायल- ओह! अरे यार, सच में वो जानबूझकर नहीं किया. आजकल तुझे गले लगाने की इतनी आदत पद गई है की भूल ही गई थी की ये कक्षा है.

आदित्य- अच्छी बात है तुझे सिर्फ गले लगाने की ही आदत पड़ी है वरना कहीं उसकी आदत पड गई होती तो?

पायल- उसकी किसकी?

आदित्य- किस की, हा हा हा?

पायल- तेरी तो कमीने सुधर जा.. मैं तेरी बैंड बजा दूँगी..

पायल एक छड़ी उठाकर आदित्य के पीछे उसे मारने के लिए दौड़ती है.

`मैं तुझे नहीं छोडूंगी लंगूर..`

`कभी तो हमें भी पकड़लो. तू कहे तो असली का लंगूर बन जाऊँगा.`, राघव रास्ते पर खडी झाड़ियों के पीछे से बाहर आकर कहता है. उसके हाथ में स्टंप है. आदित्य को उसे देखकर गुस्सा आता है.

`तुम्हारे परेशानी क्या है राघव?`, आदित्य क्रोधित होकर कहता है.

राघव- अरे! रमेश ये मेरी परेशानी दूर करना चाहता है. बाहर आईयों.

`हा, हा, हा वाह बन्दे ने लड़की तो अच्छी पटा रखी है.` करीब बीस वर्षीय रमेश कहता है.

`चुप कर कमीने. तू आदि की बराबरी कभी नहीं कर सकता. आर्ट्स में भी तू दो बार फेल हो चुका है. ज्यादा बकवास की ना तो दांत तोड़ दूँगी तेरे.`, पायल क्रोधित होकर कहती है.

 

`पायल जाने दो, इनके मुहं मत लगो. चलो तुम`, आदित्य पायल का हाथ पकड़कर खींचते हुए कहता है.

`अरे! ऐसे कैसे जाने देंगे? अभी तो हमें प्रसाद खाना है. उफ़!!! बहुत नमकीन है लड़की..` निखिल और किशन दोनों बाहर आकर कहते हैं.

 

पायल- तुम सब चाहते क्या हो?

 

राघव- समझदार को इशारा ही काफी होता है मेरी जान. ! रमेश पकड़ साली को. अभी पता चल जाएगा.

 

`अबे! , अगर एक कदम भी आगे बढ़ाया तो कान के नीचे ऐसी मारूंगा की पेंट का रंग ब्लैक से येल्लो कब हो जाएगा पता तक नहीं चलेगा समझे.`, आदित्य पायल की तरफ बढ़ते रमेश को चेतावनी देते हुए कहता है। पायल आदित्य का गुस्सा देखकर चौंक जाती है.

`हा, हा, हा, पहले तो इसे ले.. स्टंप की मार साले के सर पर .` निखिल रमेश से कहता है.

रमेश जैसे ही आदित्य की तरफ बढता है. आदित्य झुककर मिट्टी को हाथ में लेता है और रमेश की आँखों में फैंक देता है.

`आह! `, रमेश की आँखों में मिट्टी गिरने से वह आँखे रगड़ने लगता है.

`भागो पायल... ` आदित्य पायल का हाथ पकड़कर भागने लगता है.

`पकड़ो सालो को`, राघव सबसे कहता है. वे सभी आदित्य और पायल के पीछे दौड़ते हैं. इधर आदित्य और पायल उनसे बीस फीट आगे दौड़ रहे हैं.

`उफ़! उफ़!.... अरे! लंगूर हम भाग क्यों रहे हैं? इससे अच्छा है हम उनसे लड़ ले.` पायल हांफते हुए कहती है.

`तू पागल हो गई है क्या? सभी के सभी हमसे ज्यादा ताकतवर हैं और वे बड़े भी हैं. हम उनका मुकाबला नहीं कर सकते.`

पायल- अरे! ये मत सोचो. लड़ाई ताकत से नहीं. साहस से जीती जाती है. वैसे भी मैं दौड़ नहीं सकती.

 

आदित्य- पायल, इनकी सोच बहुत गन्दी है. दौड़.. वरना..

`वरना क्या? तू लंगूर बस एक बार मेरा साथ दे दे.. मुझे इन्हें सबक सीखाना है. इससे ज्यादा बड़ा मौका मुझे हाथ साफ़ करने का नहीं मिलेगा. काफी दिनों से हाथो में खुजली रही है.

 

`भाग.. निखिल और तेज भाग.. आज तो इन्हें पकड़कर ही रहेंगे.. `, राघव सबसे कहता है. वे आदित्य और पायल को पकड़ने के लिए तेज दौड़ रहे हैं.

`तू सच में पागल हो गई है. हम उनसे नहीं लड़ सकते यार वो चार है.`

पायल- उफ्फ! अब मुझसे नहीं दौड़ा जा रहा है. चल तू इतना बता... इनमे से एक को चुन ले की तू किसकी पिटाई कर सकता है. क्या एक को पीट लेगा.. बोल..

आदित्य- हाँ! लेकिन एक को पीटने से क्या होगा? बाकी के तीन..

पायल- उनकी तू टेंशन मत ले. मैं देख लूंगी... लेकिन जब तक मैं इशारा करूँ.. तब तक हमें धावा नहीं बोलना है.. ओके..

आदित्य- ओके..

इधर वे राघव और उसके दोस्त तेज दौड़ रहे हैं..

`कितना भी भाग लो.. आज तुम दोनों नहीं बचने वाले..`

इधर पायल और आदित्य तेज दौड़ रहे हैं.

`आह!` अचानक पायल उलझकर नीचे गिर जाती है.

`खड़ी हो पायल.. प्लीज खड़ी हो..`, आदित्य पायल का हाथ पकड़कर खींचते हुए कहता है लेकिन पायल से खड़ा नहीं हो पाती है। वह खड़ा हो पाती इससे पहले ही वे चारों उन दोनों को घेर लेते हैं।

 

"हा, हा ,हा बहुत दौड़ाया यार इन दोनों ने तो। लेकिन मेहनत का फल मीठा होता है... चल निखिल पकड़ साली को....", राघव निखिल से कहता है।

"रूक जा निखिल वरना अच्छा नहीं होगा", आदित्य निखिल को खड़े-खड़े चेतावनी दे देता है। वह असहाय है क्योंकि पायल खड़ी नहीं हो पाती है। निखिल उन दोनों की तरफ बढ़ता है। उसके हाथ में स्टंप है।

 

क्रमशः....

 

 

अध्याय- 23

 

 

राघव और उसके तीनो दोस्तों ने उन दोनों को चारों ओर से घेर लिया है. आदित्य घबरा सा जाता है. इधर पायल जमीन पर पड़ी है. उसके कन्धों पर बैग पड़ा है. उसके एक हाथ में स्टील का टिफिन है.

`! निखिल स्टंप की मार साले के पांवो पर..बस मरना नहीं चाहिए.`, राघव निखिल से गुस्से में कहता है.

`या.. ` निखिल आदित्य के स्टंप की मारने के लिए जैसे ही उसकी तरफ बढ़ता है पायल उसके सर पर जोर से टिफिन की मारती है.

`आह!` निखिल के हाथ से स्टंप गिर जाती है.

आदित्य झट से उसे उठा लेता है और अपने बैग को उतार देता है.

`मैंने तो एक को लगा दिया ठिकाने आदि अब तुम्हारी बारी है.`, पायल अपने हाथो को झडकाते हुए कहती है.

राघव उसे इस अवस्था में देखकर चौंक जाता है.

` कमीनी तू नौटंकी कर रही थी. तेरी तो.. अब तुझे बताता हूँ मैं की मैं क्या-क्या कर सकता हूँ.`

इतना कहकर जैसे ही वो दौड़कर पायल की तरफ जाने लगता है. आदित्य उसके हाथो पर जोर से स्टंप की  मारता है जिससे उसके हाथ से स्टंप गिर जाती है. फिर वह उसी स्टंप से  उसकी पीठ पर मारता है.

`आय.. आय...या...` राघव जमीन पर गिर जाता है और वह अपनी पीठ को जमीन पर रगड़ता है. इधर पायल दूसरी स्टंप को उठा लेती है और नीचे पड़े हुए निखिल के जोर से पावों पर मारती है.

`आह.`, वह जोर से चीख पड़ता है.

ये सब देखकर रमेश जैसे ही पायल की तरफ लपकता है पायल टिफिन को जोर से उसकी तरफ फैंकती है जो उसके मुँह पर लगता है.

`आह` वह चीख पड़ता है.  उसके हाथ से स्टंप गिर जाती है और फिर पायल और आदित्य दोनों एक साथ मिलकर किशन को पीटना शुरू कर देते हैं.

`आह!.. आह! किशन जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर देता है. लेकिन पायल लगातार उसके पांवो पर मारती रहती है. फिर वह उसे छोड़कर लगातार लातों घूसों से नीचे पड़े हुए रमेश को मारने लगती है. वे सभी को बारी-बारी से एक-एक करके पीटने लगते हैं. आदित्य बची हुई दो स्टंप को पास में बह रही नहर में फैंक देता है ताकि उन्हें हथियार के तौर पर वो स्टंप ना मिले। फिर वह अपनी स्टंप से राघव के पेरों पर मारता है.

`क्या बोल रहा था तू पायल के बारे में? कड़क माल..`

`अरे! रूक आदि तू उसे छोड़ उसे तो मैं सबक सीखाऊँगी. तू इसको मार.. कमीने तेरी माँ की आँख...` फिर वह राघव की तरफ बढती है और उसके बालों को पकड़कर घसीटने लगती है.

`छोड़ दे पायल प्लीज.. अब कभी नहीं कहूँगा..तू तो मेरी बहन के जैसी है.`, राघव गिदगिड़ाते हुए कहता है.

`अरे! नहीं मैं तो तेरी जान हूँ.. हैं ... यही सोचता है ... अब रूक मैं बताती हूँ तुझे.. ये कड़क माल कितनी खतरनाक है.. तेरा पीछ्वाडा मैंने बंदर के जैसे लाल नहीं कर दिया तो मेरा नाम पायल नहीं.` वह उसके बालो को पकड़कर उसे घसीटने हुए रास्ते के एक पेड़ के पास ले जाती है..

`उई..उई...`, राघव चिल्लाता है. उसके मुहं से खून बह रहा था. लेकिन पायल उसे छोडती नहीं है. अचानक उसकी नजर पास खड़े  शीशम के पेड़ की हरी लचकदार  टहनी पर पड़ती है। वह राघव के बालों को छोड़कर उस टहनी को तोड़ लेती है. फिर वह स्टंप को नहर में फैंक देती है और राघव के जोर से  उस छड़ी की उसके पीछवाडे पर मारती है..

`उई.. माँ .. उई...`, राघव जोर से चीख पड़ता है..

`क्यों मजा रहा है ? मैं अब तेरे पीछवाडे पर ही मारूंगी. घर जाकर दिखाने के लायक भी नहीं रहेगा तू.. कमीने मेरे बारे में तू गलत सोचता है. अरे! आदि देख ये कमीना मेरे बारे में गलत सोचता है.`

`हाँ! पायल दो ओर मार..`

 

`कमीने मैं तुझे..` राघव जैसे ही गुस्सा करता है..

 

`तेरी तो. तू ऐसे नहीं मानने वाला.. रस्सी जल गई लेकिन बल नहीं गया। मेरे आदि पर गुस्सा दिखाता है..` पायल फिर से राघव को पीटना शुरू कर देती है. राघव जोर-जोर से चीखे मारने लगता है. इधर आदित्य भी उन सबको जोर-जोर  से मारता है.

`छोड़ दो भाई.. आगे से हम कभी उस कमीने राघव का साथ नहीं देंगे.`, राघव के सभी दोस्त आदित्य के आगे हाथ जोड़कर कहते हैं.

`पक्का ?`

`हाँ! पक्का..पक्का. अब कभी नहीं आएँगे..`

`चलो भागो..` , आदित्य स्टंप को लहराते हुए कहता है. वे सभी लड़के लड़खड़ाते हुए भाग जाते हैं. आदित्य स्टंप को नीचे फैंक देता है.

`अरे! अब उसे छोड़ दो.`, आदित्य पायल से कहता है.

`नहीं! अभी तो इसे मैं मुर्गा बनाउंगी? चल अब मुर्गा बन.` पायल राघव से कहती है.

`छोड़ दे पायल... बहुत हो गया.. मार ही डालेगी क्या इसे?`

`इसे तो मैं... इसकी तो..` पायल पुन: गुस्सा करती है.

`प्लीज छोड़ दे पायल.... अब नहीं करूँगा कभी भी`, राघव पीछे खिसकते हुए कहता है.

`अरे! छोड़ दे बेचारे को.`, आदित्य पायल की लकड़ी को छिनते हुए कहता है.

`नहीं! इसे नहीं छोड़ सकती है.`

आदित्य- छोड़ दे.. अब नहीं करेगा..

राघव- हम्म.. अब नहीं करूँगा.. प्लीज छोड़ दे..

पायल- चल भाग और हाँ.. घर में जब तेरा बाप तुझसे गब्बर सिंह की तरह पूछे की अरे! ओये साम्भा कितने आदमी थे.. तो बोल देना गब्बर दो.. हा हा., हा चल फूट.

पायल के इतना कहते ही राघव वहां से लंगडाता हुआ अपने घर की तरफ भाग  जाता है. आदित्य पायल की तरफ मुस्कुराता है. वह भी उसकी तरफ मुस्कुराती है और आदित्य से गले लग जाती है.

`क्यों कहा था लंगूर की लड़ाई ताकत से नहीं साहस से जीती जाती है.`,

आदित्य- हम्म.. मान गया.. लेकिन तुझमे ये गुंडों वाले गुण कहा से गए..

पायल- अच्छा! तो मैं तुम्हे गुंडी लग रही हूँ.

`अरे! नहीं... नहीं... बिलकुल भी नहीं... तू गुंडी तो बिलकुल नहीं लगती.. अब प्लीज मुझे मत पीटने लगना.` आदित्य हिचकिचाते हुए बोलता है.

पायल- अरे! अरे!, जिन्दगी में पहली बार तुमने मेरी तारीफ की है. मुझे गुंडी बोला है. सच में सुकून मिला।

आदित्य ( आश्चर्य से) क्या!

पायल- और नहीं तो क्या? मुझे गुंडी नाम सुनना बहुत पसंद है. मजा ही गया.

आदित्या- हे भगवान कैसी लड़की है तू?

पायल- जैसी भी हूँ तेरी हूँ और कोई ओर राघव जैसा आया तो साले का पिछवाड़ा..

आदित्य- अरे! बस... बस.. तेरी जैसी गुंडी के पास भला कौन आएगा? हा, हा, हा..

 

पायल- अच्छा! मेरा मजाक बना रहा है!

 

आदित्य- अरे नहीं, मैं तो मजाक कर रहा था।  अच्छा!  सुन मैं एक बात पूछना चाहता था.

पायल- बोल? क्या पूछना चाहता था.

आदित्य- तुमने आज जिस तरह से उनकी पिटाई की थी. क्या शादी के बाद मेरी भी हजामत ऐसे ही होने वाली है?

पायल- अरे! नहीं तो....भला तू तो अच्छा लड़का है. मैं तेरी पिटाई क्यों करुँगी? ये स्पेशल ऑफर तो राघव जैसे लडको के लिए है.

आदित्य- हा हा हा.. स्पेशल ऑफर.. तू भी ..

पायल- वैसे यार.. आज पार्टी करने का कोई मजा ही नहीं आया..

आदित्य- क्यों?

पायल- क्यों का क्या यार? जितना खाया था वो तो इस लड़ाई मे बर्न हो गया चल अब जल्दी चल मुझे भूख लगी है..

आदित्य- उफ्फ्फ.. आगे भी खा खाकर छोटा हाथी हो गई है. ओर क्या बनेगी..

`कमीने.. तेरी तो...` पायल गुस्सा होकर आदित्य के पीछे दौड़ना शुरू कर देती है. वह उसके पीछे छड़ी फैंकती है. लेकिन आदित्य बच जाता है.

 

गोधूली बेला का वक्त हो गया है. आदित्य के पिताजी घर के बाहर चिंतित मुद्रा में खड़े हैं. शायद वे आदित्य का इन्तजार कर रहे हैं. आदित्य के बहन भाई खेल रहे हैं. एक काला कुता भी उनके बिलकुल पास बैठा है. अदिति उस कुते का माथा चूमती है.

`मोती मेला है.`, अदिति तुतलाते हुए बोलती है.

`नहीं मेरा है मोती.. दूर हो जा`, पार्थिव अदिति के धक्का दे देता है. वह नीचे गिर जाती है और रोने लग जाती है. आदित्य के पिताजी ये सब देखकर क्रोधित हो जाते हैं. वे पार्थिव के पास जाते हैं और क्रोधित होकर उसकी एक बाहँ पकड़कर उसे दूर कर देते हैं.

`चल अंदर भाग.. वरना थप्पड़ मारूंगा. ` आदित्य के पिताजी क्रोधित होकर बोलते हैं. पार्थिव, अदिति और आरती उनका गुस्सा देखकर रोने लग जाते हैं. आदित्य की माँ उनकी डांट सुनकर रसोई घर के अंदर से दौड़ती हुई आती है.

`क्या बात हुई? आप बच्चों पर गुस्सा क्यों कर रहे हैं?`

`ये लड़का अदिति को तंग कर रहा है. इसे लेकर अंदर जाओ वरना दो चार चांटे लगा दूंगा.`, आदित्य के पिताजी क्रोधित होकर कहते हैं.

सरोज- आपको हो क्या गया है आजकल? क्यों अजीब सा व्यवहार कर रहे हो?

विजय कुमार- अच्छा! तू कहना क्या चाहती है? मैं पागल हो गया हूँ. मैं अजीब हूँ.

सरोज- मैंने ऐसा तो नहीं कहा.. आप खामखा बात को बढ़ावा दे रहे हैं.

`अच्छा! तो मैं बात को बढ़ावा देता हूँ. चुप चाप इन्हें अंदर लेकर चली जाओ. खामखा किसी के लग जाएगी`, आदित्य के पिताजी क्रोधित होकर कहते हैं.

आदित्य के पिताजी का गुस्सा देखकर आदित्य की माँ आश्चर्यचकित हो जाती है. वे सभी बच्चों को घर के अंदर लेकर चली जाती हैं. आदित्य के पिताजी को सभी पर गुस्सा करके बुरा लग रहा था लेकिन वे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण नहीं रख सके.

इधर आदित्य और पायल फॉर्म के अंदर प्रवेश कर जाते हैं. पायल आदित्य को अलविदा कहती है. उन दोनों के चेहरे पर मुस्कराहट थी. अचानक आदित्य की नजर जैसे ही पायल की घडी पर पड़ती है आदित्य को याद आता है कि उसके पिताजी ने आज उसे जल्दी बुलाया था.

`ओह! माय, गोड पायल... मैं तो लेट हो गया.` आदित्य अपने घर की तरफ दौड़ता हुआ कहता है.

`अरे! लेकिन बात क्या है? अचानक क्यों दौड़ पडा लंगूर?` पायल पीछे से आवाज देती है.

आदित्य- ये सब बताने का वक्त नहीं है. मैं अभी जाता हूँ.

वह तेज दौड़ता हुआ घर की तरफ जाता है.

`सच में है तो ये लंगूर ही. हमेशा के मुकाबले आज यह पचास मिनट लेट है और अगर घर बावन मिनट लेट पहुँचता तो क्या फर्क रह जाता. लंगूर कहीं का.. हा हा हा..`, पायल बुदबुदाती हुई अपने घर की तरफ जाती है. इधर आदित्य जैसे ही गोदाम के पास से दौड़ता हुआ निकलता है तो उसके चाचा की नजर उस पर पड जाती है.

`और आदि तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है?`, आदित्य के चाचा महेश ने पीछे से आवाज दी.

आदित्य रूककर पीछे मुड़कर देखता है तो उसकी आँखों के सामने उसके चाचा थे. पहले तो वो बात नहीं करना चाहता था लेकिन अचानक अपना मन बदल दिया.

`हम्म.. अच्छी चल रही है. चाचा.`

महेश- अच्छा! लेकिन तुम्हारे ये चेहरे पर खरोंच कैसे आई?

आदित्य चुप हो जाता है. वह नहीं चाहता था की राघव के साथ हुई लड़ाई के बारे में जिक्र करे.

`बोल आदि, ये खरोंच कैसे आई?`

आदित्य- ये..ये तो बस ऐसे ही..

महेश- ऐसे कैसे? किसी से झगडा हुआ क्या? बता.

आदित्य कुछ भी नहीं बोलता है.

महेश- बोल आदि.. किसी से झगडा हुआ क्या?

आदित्य- आप पापा को तो नहीं बताओगे .

महेश- अरे! नहीं बताऊंगा. तू बता क्या हुआ?

आदित्य- आज रास्ते में मेरा और पायल का कुछ लडको के साथ झगडा हो गया था इस वजह से लग गई.

महेश- अच्छा! ये कैसे हुआ? और पायल को ज्यादा चोट तो नहीं लगी ?

आदित्य- हा हा हा... उसे और चोट.. हे भगवान उस मोटू ने उन सबकी ऐसी धुनाई की कि पूछो ही मत..

महेश- हा..हा हा.. अच्छा कोई .. तुम घर जाओ और दवाई लगाओ चेहरे पर.

आदित्य- ठीक है चाचा..

आदित्य अपने घर की तरफ चला जाता है और महेश उससे दूर खड़े टौमी की तरफ हाथ का इशारा करके शैतानी मुस्कराहट मुस्कुराता है.

आदित्य के पिताजी बरामदे में आदित्य का इन्तजार कर रहे हैं. आदित्य जैसे ही घर में प्रवेश करता है तो आदित्य के पिताजी की बोहें तन जाती है. वे क्रोधित होकर पूछते हैं- जल्दी आने को कहा था तो इतना लेट क्यों आया? तुम्हे ज़रा सा भी ख्याल नहीं की मुझे तुम्हारी कितनी चिंता थी?

आदित्य अपने पिताजी का गुस्सा देखकर चौंक जाता है. लेकिन वह जैसे तैसे करके स्थिति को संभालते हुए कहता है- सॉरी पापा. क्या है आज वो मैथ्स का टेस्ट था तो सर ने हमें स्कूल से लेट छोड़ा था इस वजह से देर हो गई.

विजय कुमार- अच्छा? और ये चेहरे पर कैसे लगी?

आदित्य- ये.. ये.. ये तो जल्दबाजी मैं हम दोनों जब दौड़ते हुए रहे थे तो रास्ते में एक जगह फिसलकर गिर गया था तो मामूली खरोंच गई.

विजय कुमार- अच्छा! कोई . जा अपनी माँ से दवाई लगवा ले. लेकिन कल समय से घर जाना`.

आदित्य- ठीक है पापा.

आदित्य के पिताजी घर से बाहर चले जाते हैं. इधर आदित्य अपने कमरे में सुकून से जाता है क्योंकि उसने कैसे भी करके सच को अपने पिताजी से छुपा लिया था.

रात का दूसरा पहर हैं. आदित्य के पिताजी के कमरे में सभी सो रहे हैं. लेकिन आदित्य के पिताजी को नींद नहीं रही है. वे बार-बार बगल बदल रहे हैं. अचानक उनके फ़ोन की घंटी बजती है. वे नंबर देखते हैं तो उन्हें फिर से अनजान नंबर था   वे कमरे से बाहर जाते हैं.

`हेल्लो! कौन बोल रहा है?`

`मैं कोई भी बोलूं तुम उस बारे में मत सोचो. वैसे एक बात पूछूं? क्या तुमने आज अपने लाडले बेटे की शक्ल देखी?

विजय कुमार- देखी थी. लेकिन क्या मतलब है तुम्हारा?

`अजीब बाप हो यार. तुम्हे अपने बेटे के चेहरे पर लगी चोट दिखाई नहीं दी? कमाल है. मैं चाहता तो उसके हाथ पाँव भी तुडवा सकता था लेकिन करवाया नहीं. हा हा हा..` सामने से फ़ोन पर उसी आदमी की आवाज आती है जो पिछले कुछ दिनों से आदित्य के पिताजी को परेशान कर रहा था.

`तुम चाहते क्या हो?`, आदित्य के पिताजी क्रोधित होकर कहते हैं.

`तुम्हारी बर्बादी.`

`लेकिन क्यों?`

सामने से फिर फ़ोन कट जाता है. उसके पिताजी गुस्सा होते हैं. वे पुन: फ़ोन को मिलाते हैं लेकिन सामने से फ़ोन बंद आता है. आदित्य के पिताजी परेशान हो जाते हैं. उन्हें आदित्य पर भी गुस्सा आता है क्योंकि उसने उन्हें सच नहीं बताया था. वे गुस्सा थे लेकिन असहाय भी.

 

क्रमश...

 

 

 

 

 

 

अध्याय-24

 

 

सूर्य की किरण जैसे ही सरसों की फलियों पर जमी ओंस की बूंदों पर गिरती हैं तो अनायास ही मोतियों की तरह चमक उठीं। आदित्य नहा चुका है. उसके पिताजी कल रात देर से सोने के कारण अब तक नहीं जागे हैं. आदित्य ने नाश्ता समय पर कर लिया. वह कमरे के अंदर अपना बैग लाने जाता है. इधर आदित्य के पिताजी के फ़ोन की घंटी बजती है. वे कमरे से बाहर आते हैं.

`हेल्लो, कौन?`

`ये भी कोई पीटना होता है? माना मेरे बच्चे ने आपके लड़के के साथ बदमाशी की लेकिन भला इतनी बुरी तरह से कौन पीटता है? कल रात तो उसने मुझसे छुपा लिया लेकिन आज जब उससे उठा नहीं गया तो पता चला.`

विजय कुमार (गुस्से से)- पहली बात तो ये की मैं नहीं जानता कि आप कौन है? और किस बारे में बात कर रही हैं?

एक महिला की आवाज- मैं राघव की माँ हूँ. आपके बेटे आदि और पायल ने मेरे लड़के को बहुत बुरी तरह से पीटा है. अले मेरे बच्चे... ( आह...फ़ोन में राघव के चीखने की आवाज आती है) ये देखो.. इसकी पीठ... जांघ.. टखने मुँह..यहाँ तक की मेरे बच्चे की बालों को भी पकड़कर खींचा गया है..

विजय कुमार- (गुस्से में) क्या!

राघव की माँ- जी हाँ, माना आप पैसे वाले हैं लेकिन मेरे बच्चे की इस तरह से पिटाई करनी मतलब? मैं नहीं बख्सने वाली हूँ मुनीम जी..

विजय कुमार- आप चिंता करे. आगे से ऐसा नहीं होगा.. इसी दौरान आदि जैसे ही स्कूल की तरफ जाता आदित्य के पिताजी की नजर उस पर पड जाती है. आदित्य के पिताजी उसे गुस्से में आवाज देते हैं- ! आदि रुक..

आदित्य जैसे ही पीछे मुड़कर देखता है तो वो चौंक जाता है क्योंकि उसके पिताजी गुस्से में थे.

`हाँ! .. पा.. पापा कोई काम था?` आदित्य हिचकिचाते हुए कहता है.

विजय कुमार (गुस्से में) तुमने राघव की पिटाई की थी कल? बोल..

इधर राघव की माँ ये सब सुनकर मन ही मन खुश हो रही थी.

`अब बोलता क्यों नहीं है? बोल तुमने राघव की पिटाई की थी ?

आदित्य- .. पा.. पापा..

आदित्य के पिताजी उसकी तरफ बढ़ते हुए कहते हैं- क्या पापा.. पापा कर रहा है.. बोल.

`हाँ पापा..पर..` आदित्य आगे बोल पाता उससे पहले ही आदित्य के पिताजी उसके जोर से गाल पर थप्पड़ मार चुके थे.`

`आह!` आदित्य की आँखों से आंसू बहने लगते हैं. इधर राघव की माँ ने फ़ोन को कट कर दिया. आदित्य की माँ आदित्य की चीख सुनते ही दौड़कर रसोईघर से बाहर जाती है.

वह कांपते हुए कहती है.

`क्यों मार रहे हो इसे? `

`पूछ तेरे इस साहबजादे से की इसने राघव की क्यों पिटाई की?`

`बोल.. बेटा तुमने राघव की पिटाई की थी.`

आदित्य (हिचकिचाते हुए) हाँ... .. माँ.. लेकिन जब मैंने उसे सवाल नहीं बताए तो उसने मुझे धमकी दी और फिर...

आदित्य रोते हुए अपनी माँ को पूरी कहानी बता देता है कि कैसे राघव उसके दोस्तों ने पायल और उसे घेर लिया तो और उन दोनों के लिए लड़ना मजबूरी हो गया था. इस दौरान उसकी माँ के भी आँखों में आंसू जाते हैं.

`क्या आप पागल हो गए हैं जो आदि से पूरी बात जाने ही उसके थप्पड़ मार दी?

अगर आप इसकी जगह होते तो क्या करते? बोलो.. बोलो .

विजय कुमार- मैं.. मैं.....

सरोज- कहना क्या चाहते हो आप? बस यही की मैं भी एक लड़की की इज्जत बचाने के लिए उसका साथ देता आपने भी तो इसे बुराई के खिलाफ खड़ा होना सीखाया है तो अब अपनी ही बात को भूल गए?

विजय कुमार- तो इसने ठेका ले रखा है क्या बुराई के खिलाफ लड़ने का? वैसे भी

अच्छे लोगो का कुछ नहीं होता इस दुनिया में.

`आपको हो क्या गया है? क्यों अजीब सी बाते कर रहे हो आजकल?

विजय कुमार- तू कहना क्या चाहती है? बस यही की मैं पागल हो गया हूँ. तो सुन ले.. मेरे दिमाग में भूसा भर गया है और हाँ, मुझे तुम्हारे ज्ञान की कोई जरुरत नहीं है. मेरी नजर में इसने गलत किया है.

आदित्य बगल में खड़ा अपने पिताजी की बातों को सुन रहा था.

सरोज (क्रोधित होकर) ये क्या कह रहे हो आप?

` तू यहाँ खड़ा-खड़ा क्या सुन रहा है? स्कूल नहीं जाना क्या तुम्हे? चल जल्दी निकल और हाँ समय से घर जाना.` आदित्य के पिताजी क्रोधित होकर कहते है.

आदित्य (उदास होकर) .. ठीक है पापा जा रहा हूँ..

आदित्य अपना बैग उठाता है और स्कूल की तरफ निकल जाता है. आदित्य के पिताजी भी घर से जैसे ही बाहर जाने लगते हैं आदित्य की माँ को गुस्सा जाता है. वह आदित्य के पिताजी का हाथ पकड़कर कहती है- लाओ मुझे अपना फ़ोन दो मैं उस कमिनी को अभी बताती हूँ और आज मैं जाने वाली हूँ उसके घर. उसके बेटे की इतनी बड़ी गलती. मैं उसकी सारी की सारी हेकड़ी निकाल दूँगी.

`चुप कर.. हेकड़ी निकाल देगी. किस-किस की निकाल देगी. ये सब मिले हुए हैं. सबके सब हमें फसाना चाहते हैं. तू समझ क्यों नहीं रही है?`, आदित्य के पिताजी उसकी माँ के धक्का दे देते हैं जिससे वो नीचे गिर जाती है.

`आह!` उनकी मुहं से चीख निकल जाती है.

`हूँ... फ़साना चाहते हैं लेकिन कौन? कौन फ़साना चाहते हैं आपको? ये बेसिरपैर की

बातों को छोडिए.`, आदित्य की माँ क्रोधित होकर कहती है.

विजय कुमार- अच्छा! तो तुम्हे ये सब बेसिरपैर की बाते लग रही हैं? वैसे भी क्या मतलब है तुम्हे ये सब बताने का. मैं जा रहा हूँ..

आदित्य के पिताजी घर से निकल जाते हैं.

` रुकिए तो. कुछ बताईये .`, आदित्य की माँ पीछे से आवाज देती है लेकिन आदित्य

के पिताजी बिना कुछ बोले चले जाते हैं।

 

"अरे! ओए लंगूर, तेरा गाल आज बंदर के जैसा लाल कैसे हो गया? " , पायल आदित्य

के गाल को देखकर कहती है जिस पर उसके पिताजी के थप्पड़ के कारण अँगुलियों के

निशान छपे हुए हैं।

आदित्य कुछ भी नहीं बोलता है। उसकी आँखों में आंसू अब भी झलक रहे हैं।

"क्या बात है लंगूर? मुझे नहीं बताएगा क्या?", पायल गंभीर स्वर में कहती है।

आदित्य- आज सुबह पापा के पास राघव की माँ का फ़ोन आया था। उन्होंने पापा को गुस्सा दिला दिया और पापा ने बिना पूरी बात जाने मेरे थप्पड़ मार दी।

पायल- अच्छा! बहुत बुरा हुआ तेरे साथ तो। वैसे एक बात कहूँ?

आदित्य- हम्म! बोल ले। अब तू भी जले पर नमक छीड़क दे।

पायल- हा, हा, हा, अरे ऐसी बात नहीं है। मैं तो बताने वाली है। शायद तेरे ऊपर शनि की साढ़े साती लगी है। तभी तो जो आता है वही तेरे कान लाल करके चला जाता है। हा, हा,हा।

आदित्य- सुधर जा... मुझे तुमसे बात ही नहीं करनी है। आदित्य उदास हो जाता है।

पायल- अरे! अरे! तू तो नाराज हो गया। मैं तो तेरा मूड लाइट करने की कोशिश कर रही थी।

आदित्य- अच्छा! बड़ी आई। तू मूड लाइट करने की जगह मेरी इनडायरेक्टली बेईज्जती

कर रही थी।

पायल- अरे! नहीं यार.. तू भी ना कुछ भी सोचता है। चल बता। तेरी माँ ने कुछ भी

नहीं कहा क्या तेरे पापा को?

आदित्य- हाँ! कहा। लेकिन जाने पापा को आजकल क्या हो गया है कि वे बहुत गुस्सा कर रहे हैं! उन्होंने तो मेरी माँ को भी डाँट दिया।

पायल- अच्छा! ज्यादा मत सोचो यार। क्या पता वो आजकल ट्रेक्टर के पकडे जाने से परेशान हों। तू टेंशन ना ले। सब ठीक हो जाएगा।

आदित्य (उदास होकर) आई होप सो.

पायल- क्या यूं उदास होकर कह रहे हो 'आई होप सो' ? मुझे अंग्रेजी नहीं आती। तू चुप चाप अब मुस्कुरा दें वरना दूसरा गाल भी लाल कर दूँगी। समझा?

आदित्य झूठी मुस्कराहट मुस्कुराते हुए कहता है- हम्म!

पायल- ये हुई बात चल अब जल्दी चल हमे देर हो जाएगी।

आदित्य पायल फिर जल्दी चलने लग जाती है तो वहीँ आदित्य हमेशा की अपेक्षा धीमे

चल रहा होता है।

 

आदित्य की माँ रसोईघर में उदास खड़ी है। उनकी आँखों से आंसू बह रहे हैं। वे अपने फ़ोन की तरफ देखती हैं और फिर उस पर नंबर डायल करती हैं। कुछ देर में घंटी जाती है और सामने से हेल्लो की आवाज आती है।

"हेल्लो! भैया कुछ कीजिए.." आदित्य की माँ रोते हुए अपने भाई रविंद्र से कहती है।

रविंद्र- क्या हुआ सरोज? अब कुछ कहेगी भी या रोयेगी ही?

"भैया! पिछले कुछ दिनों से वो...", आदित्य की माँ आदित्य के पिताजी के बदलते हुए व्यवहार के बारे में रोते हुए उन्हें बता देती है।

"तू चिंता कर सरोज और रोना बन्द कर। मैं आज ही घर रहा हूँ। सब ठीक हो जाएगा। ", आदित्य के मामा रविंद्र उसकी माँ को ठान्ठस बंधाते हैं। उसकी माँ शांत हो चुकी थी।

"ठीक है भैया मैं इंतजार कर रही हूँ। अब आप ही हैं जो उन्हें समझा सकते हैं वरना....", आदित्य की माँ धीमे से कहती है।

 

- ठीक है आता हूँ, सरोज।

इतना कहते हुए आदित्य के मामा ने फ़ोन कट कर दिया।

शाम हो चुकी है. आदित्य ने पायल को अलविदा कहा और अपने घर की तरफ चल दिया.

`आप क्यों खामखा ऐसी बाते बोल रहे हैं? कौन आपको फ़साने का प्रयास करेगा?`

`आप नहीं जानते रवि जी. ये सब के सब मेरे खिलाफ हैं.`

रविन्द्र- कौन है आपके खिलाफ? अब कुछ बोलेंगे भी आप?

विजय कुमार- अगर बता दिया तो भी क्या फायदा होगा रवि जी?

`आपको कोई भी फ़साना नहीं चाहता है. ऐसे ही बेसरपैर की बाते कर रहे हो आप.`, आदित्य की माँ ने कहा.

विजय कुमार- अच्छा! तो अब तुम्हे मेरी बाते बेसरपैर की लग रही हैं. तुम सबको क्या लगता है की मैं पागल हो गया हूँ.

रविन्द्र- आप ऐसा क्यों बोल रहे हो विजय जी? भला हम आपको पागल क्यों ठहराएंगे?

विजय कुमार- मुझे नहीं पता लेकिन लगता तो यही है..

सरोज- ये क्या कह रहे हो आप? आपका दिमाग तो सही है ?

विजयकुमार- हाँ! हो गया है मेरा दिमाग खराब. सबके सब जाने क्यों मेरे खिलाफ बोल रहे हैं.

आदित्य के पिताजी गुस्सा होकर घर से बाहर जाने लगते हैं.

`ठहरिये! आप बात तो पूरी सुनिए मेरी.`

विजयकुमार- मुझे कुछ नहीं सुनना. मैं जा रहा हूँ.

आदित्य के पिताजी घर से निकल जाते हैं. इधर उसके मामा और उनकी माँ दोनों उदास से प्रतीत होते हैं. आदित्य घर में प्रवेश करता है. अपनी माँ मामा दोनों को उदास देखकर आदित्य दुखी हो जाता है. वह उनके पास जाकर पूछता है- क्या हुआ मामा जी, आप दोनों उदास क्यों है?

सरोज- कुछ भी तो नहीं. तुम्हे ऐसे ही लग रहा है.

`अब इससे बात को छुपाकर क्या करोगी? जो है सब बताना होगा .

आदित्य- क्या बताना होगा मामाजी? आप बात को घुमाकर मत कहिए प्लीज. जो कहना है साफ़ कह दीजिए. बोलिए मामा जी.

रविन्द्र- हाँ! बेटा. चलो आओ मेरे साथ.

आदित्य के मामा, उसकी माँ और वो तीनो एक कमरे में जाते हैं. आदित्य के मामा कमरे के दरवाजे को बंद कर देते हैं. इधर आदित्य के पिताजी गुस्से में खेतों की तरफ जाते हैं.

`ये क्या कह रहे हैं भैया आप? आपका मतलब वे पागल हो गए हैं?`

-अरे बहना मैंने ये कब कहा है. मेरे कहने का मतलब उनका दिमाग अब संतुलित नहीं है. आज कल दिमाग की बहुत सी बीमारिया हो गई हैं. तो क्या पता कुछ दिमागी परेशानी हो उन्हें!

`नहीं! मामाजी मेरे पापा को किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं है. वे स्वस्थ हैं.

तुम समझो आदि. अगर परेशानी नहीं होती तो क्या वे इस तरह का व्यवहार करते? बोलो.

 

-लेकिन..

- लेकिन-वेकिन कुछ नहीं सरोज. उनका व्यवहार दिन--दिन बदलता ही जा रहा है. वरना क्या पहले कभी इतना गुस्सा करते थे वो? नहीं ना.. तुम समझो इस बात को..

- पर भैया..

- पर- वर कुछ नहीं सरोज. तुम दोनों को मैंने यह बात इस लिए बताई क्योंकि तुम दोनों को यह बात अच्छे से जाननी बहुत जरुरी है. आपको उनकी अब अच्छे से देखभाल करनी होगी. जहाँ तक हो उन्हें चिंता से मुक्त करना होगा और वे ज्यादा देर तक काम कर पाएं वरना दिमाग पर दबाव पड़ता है.

आदित्य- मुझे नहीं लगता कि पापा को कुछ भी हुआ है मामा..

- अच्छा! अगर नहीं मानते तो मैं कुछ नहीं कह सकता लेकिन धीरे-धीरे तुम्हे उनके व्यवहार में परिवर्तन दिखाई अपने आप दे देगा. अगर दिखाई दे तो वे स्वस्थ हैं और मैं भी यही चाहता हूँ की वो स्वस्थ हो.

- भैया! लेकिन ये कैसे हो गया सब?

आदित्य रोते हुए कहता है- मेरे पापा को कुछ नहीं हुआ है मामा और तुम भी चुप करो माँ. कुछ भी मत बोले ऐसे ही.

रविंद्र- अब मैं कैसे समझाऊं आदि? तुम्हारे पापा कोई पागल नहीं हुए हैं लेकिन...

आदित्य- लेकिन मामा..

रविंद्र - लेकिन वे अवसाद में जरुर हैं.. अब ज्यादा चर्चा मत करो आप दोनों. मैं चलता हूँ. तुम दोनों अपना ख्याल रखना...

आदित्य के मामा जी आदित्य के घर से निकल जाते हैं. वे भी दुखी थे.

`माँ! पापा को कुछ भी नहीं हुआ है.` आदित्य अपनी माँ से गले लगकर रोते हुए कहता है.

`रो मत बेटा. कुछ भी नहीं हुआ है तेरे पापा को. शांत हो जा.` आदित्य की माँ आदित्य को सांत्वना देती है लेकिन दोनों के ही मन में अनगिनत शंकाएं थी. उन्हें नहीं मालूम था ये सब क्या हो रहा है!

क्रमश....

 

 

 

 

 

 

अध्याय- 25

 

उत्तरी हवाओं का दौर फिर से शुरू हो गया गया है. रात गहरा चुकी है. फॉर्म के कुते जोर-जोर से भोंक रहे हैं. आदित्य के पिताजी के फ़ोन पर किसी का कॉल आता है. वे अपने कमरे से निकलकर फ़ोन उठाते हैं- हेल्लो!

- हा, हा, हा जोर का झटका लगा.. तो आज साले साहेब को बुलाया गया है अपनी परेशानी को हल करने के लिए..

- तुम? तुम चाहते क्या हो?

- अरे! मेनेजर साहेब, मैं कितनी बार कहूं तुझे? मैं तुम्हारी बर्बादी चाहता हूँ. अब ओर क्या सुनना चाहता है तू? बता ना? हा, हा, हा..

- चुप कर कमीने...

- अच्छा! अगर मैं चुप हो गया तो तुझे एक अच्छी खबर कौन सुनाएगा बता?

`कौनसी खबर?`, आदित्य के पिताजी क्रोधित होकर कहते हैं.

- खबर.. हा! हा! हा!.. बड़ी जल्दी है तुझे. खबर सुनने की..

- तू बताता है या नहीं..

- खबर... तो सुन.. तुझे पता है तेरा सेठ क्या चाहता है?

- क्या चाहता है?

- बस यही की अगर तस्करी के चक्कर में वह पकड़ा जाता है तो वो तुझे अपनी जगह जेल भेज देगा.

``चुप कर.. तू कुछ भी बोलेगा और मैं मान लूँगा? मैं सब जानता हूँ. ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है. आखिर यह फॉर्म मेरा नहीं सेठजी का है.``, आदित्य के पिताजी क्रोधित होकर कहते हैं.

- अरे! मुनीम जी. आप तो भोले के भोले ही रह गए. आज के समय में पैसे से इन्सान कुछ भी खरीद सकता है. तो क्या पुलिस खरीद नहीं सकता?

-तुम बकवास मत करो.

- अच्छा! तो मतलब मैं बकवास कर रहा हूँ? कोई बात नहीं यकीन हो तो कल सुबह पता चल जाएगा. जब सेठजी खुद तुम्हे फ़ोन करके ऑफर देंगे. समझे.

- ऐसा कभी नहीं होगा. मेरे सेठजी इतने गिरे हुए नहीं है.. हेल्लो... हेल्लो..

सामने से फ़ोन कट जाता है. आदित्य के पिताजी क्रोधित हो जाते हैं. वे गुस्से में एक लोहे की बाल्टी के लात मारते हैं और निराशावस्था में एक शीला पर ही बैठ जाते हैं. उत्तरी हवा के थपेड़े उनके बदन पर कोड़े की भांति वार कर रहे हैं.

इधर आदित्य को नींद नहीं आई है. वह लघुशंका के लिए खड़ा होकर बाहर आता है. वह अपने पिताजी को उस शीला पर बैठे हुए पाता है. उसके पिताजी निराश बैठे हुए हैं.

`ये क्या पापा यहाँ अकेले इतनी ठण्ड में बाहर क्यों बैठे हैं?`, आदित्य धीमे से बुदबुदाता है. वह निराश हो जाता है. वह पहले तो उनके पास जाना चाहता था लेकिन फिर नहीं जाता है.

- सब के सब मिले हुए हैं. मुझे फंसाना चाहते हैं..

आदित्य के पिताजी गुस्सा करते हुए बुदबुदाते हैं. आदित्य उन्हें ध्यान से देख रहा है.

``अब ये सेठजी भी मुझे फ़साने पर तुले हुए हैं. आखिर मैंने क्या गलती कर दी है? मैंने तो सबका भला चाहा है. आखिर सब मेरे ही खिलाफ क्यों हैं?``, आदित्य के पिताजी गुस्सा करते हैं.

- पापा इतनी रात गए अकेले बात क्यों कर रहे हैं?

आदित्य चिंतित हो जाता है. अपने पिताजी को इस हालात में देखकर वह निराश हो जाता है. उसे नहीं पता था कि वो क्या करे? वह उन्हें पुन: ध्यान से देखने लग जाता है.

`आखिर सेठजी मुझे क्यों फ़साना चाहते होंगे? मैंने तो उल्टा इस फॉर्म में ईमानदारी से काम किया था. आखिर क्यों? क्यों मुझे ही? इसलिए ही क्योंकि मैंने ईमानदारी से अपना काम किया था. बिलकुल सही विजय कुमार.. बिलकुल सही. तुमने अपना काम ईमानदारी से किया इसी कारण तुम्हे ये सब झेलना पड़ रहा है. लेकिन नहीं. नहीं बिलकुल भी नहीं विजय. सेठजी तुम्हे कभी नहीं फंसा सकते. वो तुम्हारी बहुत इज्जत करते हैं. भला वो तुम्हे क्यों फंसाएंगे?` लेकिन?, आदित्य के पिताजी की आँखों में आंसू जाते हैं. इधर आदित्य भी रोने लग जाता है.

-इसका मतलब मामा सही कहते थे! पापा को मानसिक बीमारी हो गई है! उनका दिमाग सही से काम नहीं कर रहा है! नहीं यह नहीं हो सकता. मेरे पापा बिलकुल सही है`,

आदित्य सुबककर रोने लग जाता है. वह बेहद दुखी है. इधर आदित्य के पिताजी उस शीला से खड़े होकर अपने कमरे की तरफ जाने लगते हैं. आदित्य दीवार के पीछे छीप जाता है ताकि उसके पिताजी उसे देख सके. उसके पिताजी कमरे के अंदर चले जाते हैं.

`पापा आपको क्या हो गया है? ये सब क्या हो रहा है? हे! भगवान जी आप जल्द से जल्द मेरे पापा को ठीक कर दो.` आदित्य सुबककर रोने लग जाता है.

 

आसमान साफ़ है. सूरज ने हमेशा की अपेक्षा जल्दी ही दस्तक दे दी है. रात को तेज हवा के चलते आज सुबह धुंध भी नहीं आई थी. आदित्य स्कूल के लिए तैयार हो रहा है. उसकी माँ नाश्ता बना रही है.

इधर आदित्य के पिताजी सुबह-सुबह अमरूदों के बाग़ में टहल रहे हैं. वे निराश है. अचानक उनके फ़ोन की घंटी बजती है. वे स्क्रीन की तरफ देखते हैं तो कोई नया नंबर दिखाई दे रहा था.

- हेल्लो!

- कैसे हो विजय?

- ठीक हूँ सेठजी.

- अच्छा! एक काम के लिए फ़ोन किया था तुम्हे.

- बोलिए! सेठजी क्या काम था?

- देख! विजय तुझे शायद अजीब लगे लेकिन तुझे इस बारे में मैं खुलकर बता देना चाहता हूँ.

- बोलिए! सेठजी क्या काम था? आप भला क्यों कतरा रहे हैं?

- अच्छा! सुनो. देखो विजय यह केस तस्करी का होने के कारण अब बहुत ज्यादा फंस चुका है. अब चूंकि यह ट्रेक्टर मेरे ही नाम है इस कारण मेरे ही फंसने के ज्यादा चांस हैं.

- नहीं आप ये क्या बोल रहे हैं?

`मैं ठीक ही बोल रहा हूँ विजय. अब अगर मैं पकड़ा गया तो दिक्कत हो सकती है. अगर तुम चाहो तो मेरी मदद कर सकते हो.

- कैसी मदद?

- बस यही की अगर तुम पुलिस को यह बोल दो कि ट्रेक्टर भले ही सेठजी का था लेकिन तस्करी का काम मैने ही किया था.

`क्या!, आदित्य के पिताजी आश्चर्यचकित होकर कहते हैं.

- हाँ! विजय लेकिन मैं तुम्हे कुछ नहीं होने दूंगा. मैं तुम्हे बेल पर छुड़ा लूँगा.

- लेकिन सेठजी?

`लेकिन वेकिन कुछ नहीं विजय. तुम भला मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकते? अगर तुमने यह काम कर दिया तो मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करूँगा. उल्टा तुम्हे इस काम के लिए मैं पांच लाख रूपये भी दूंगा. तेरे सभी बच्चो की पढ़ाई  का खर्च भी मैं ही उठाऊंगा.

- सेठजी आप ये क्या बोल रहे हैं? नहीं सेठजी मैं ये सब नहीं कर सकता.

- लेकिन विजय?

`लेकिन वेकिन कुछ नहीं सेठजी. मैं नहीं कर सकता. आप भी मुझे फंसाने पर तुले ही हैं` , आदित्य के पिताजी ने गुस्से में फ़ोन काट दिया. उनके चेहरे पर अविश्वास की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थी.

 

 

क्रमश.....