अध्याय- 16
आदित्य के पिताजी घर के अंदर प्रवेश करते हैं. पार्थिव उनकी तरफ दौड़ता है. वे उसे गोद में उठाते हैं और उसका माथा चूमते हैं.
`तेरे आदि भैया कहाँ है आरती?`
`वो पायल के घर चला गया, और आज हम दोनों से बहुत नाराज है.`, आदित्य की माँ रसोई घर के अंदर से ही आवाज देती है.
विजय कुमार- अच्छा! लेकिन नाराज क्यों है?
सरोज- बोल तो आप ऐसे रहे हो जैसे आपको कुछ भी नहीं पता है. उसे आज किसी ने पूरी बात बता दी. इस लिए नाराज होकर चला गया है की मैं आपके लिए कोई मायने नहीं रखता.
विजय कुमार- (मुस्कुराते हुए) ओह! तो ये बात है.
सरोज- हाँ! वैसे आप बताओ न केस का क्या हुआ?
विजय कुमार- उसकी अब ज्यादा टेंशन वाली बात नहीं है. सेठजी जी की वकील से बात हुई है. हम अपना पक्ष रखेंगे. इस लिए अब लगता है ज्यादा दिक्कत वाली बात नहीं होनी चाहिए. मुझे कल ही एस.आई से मिलने जाना है.
सरोज- चलो फिर तो बढ़िया है. लेकिन आदि नाराज हो गया उसका क्या?
विजय कुमार- उसकी तुम चिंता मत करो. मैं उसे मना लूँगा.
सरोज- अच्छा! वो आरती नहीं है जो एक दो प्यारी बातें करते ही मान जाएगी. जनाब बहुत गुस्से में थे आज.
विजय कुमार- अच्छा! देखते हैं वो कितने गुस्से में है.
`ऐ! मोटी मरवाएगी क्या? इस बछड़े को कसकर पकड.`, आदित्य पायल से क्रोधित होकर कहता है क्योंकि वो गाय के बछड़े को सही से काबू नहीं कर पा रही है.
पायल- हा हा हा,, लंगूर देख कितना प्यारा है ये.
आदित्य- तू इसे प्यार करना बंद कर.. कसकर पकड ले.. वरना सारा का सारा दूध जमीन पर फ़ैल जाएगा.
`उफ़! ओ.. ओये लंगूर छूट गया ये..`
बछड़ा पायल के काबू में नहीं आया. वह छुड़ाकर वापस गाय का दूध पीने के लिए दौड़ता है और वह जोर से आदित्य के सर की मार देता है. आदित्य दूध को बचाने का प्रयास करता है. लेकिन दूध को बचाने के चक्कर में वह बछड़ा उसके जोर से मार देता है जिससे वह घुटनों के बल गाय के पांवो के पास गिरता है और उसकी पेंट गोबर से भर जाती है.
`आह!.. `, गिरते ही कराह उठता है.
`हा हा हा हा... लंगूर तेरी पेंट.. हा हा हा .`
आदित्य (गुस्से में) चुप कर.. एक तो दूध निकाल कर दे रहा हूँ...
पायल- (हँसते हुए) हा हा हा...ओके बुरा मान गया क्या?
आदित्य- तू चुप-चाप उस बछड़े को पकड ले. वरना मैं तेरा सर फोड़ दूंगा.
पायल- अरे! इतना गुस्सा क्यों कर रहा है. पकड रही हूँ न.
फिर पायल उस बछड़े को पकडती है.. वह उसे खींचती है...
या.. या... कमीने.. इसने तो अपने पाँव जमीन में ही गडा दिए हैं.. ये तो ढीट है रे..
अरे! जोर से खींचो इसको... तू खुद तो मोटी सांड की तरह है. लेकिन फिर भी ये नहीं बंद रहा है तुझसे.`, आदित्य पुन: खड़ा होता है. वह अपने हाथो को पौंछता है. वह लंगड़ाता हुआ उसकी ओर चलता है. फिर वह बछड़े की रस्सी को पकड़ता है और जोर से खींचकर उसे पास के ही खूंटे पर बाँध देता है. उसके बाद वह पुन: दूध निकालने लगता है. वह धीरे-धीरे दूध निकालता है..
`हा हा हा.. वैसे लंगूर कितनी जोर से लगी तुझे?`, पायल हँसते हुए पूछती है.
आदित्य- मैं तुझे अच्छे से जानता हूँ.. बंदरिया. ये तुम्हारा प्लान था मुझे पटकने का समझी..
`अरे! वाह! ये प्लान तो काम करेगा.. अब तो वो मान ही जाएगा.`, आदित्य की माँ जोर से बोलती है. विजय कुमार, आरती, पार्थिव और अदिति सभी एक ही कमरे में बैठे हैं. वे सभी खुश नजर आ रहे हैं.
विजय कुमार- वैसे प्लान बन गया है. अब इसे हम सबको मिलकर सफल बनाना है.
सरोज- जी! जहाँपनाह.. आप जो कहेंगे हम वो करेंगे.. ?
विजयकुमार- हा हा हा हा..
आदित्य के पिताजी जोर-जोर से हंसने लगते हैं. आज पूरे दो दिन बाद उनके चेहरे पर सरोज ने हंसी देखी थी. उनकी हंसी बहुत ही मनमोहक थी. आरती, पार्थिव भी हंसने लगते हैं तो वहीँ अदिति मासूमियत भरी नजरो से उन्हें देख रही थी. सरोज को दो दिनों बाद सूकून मिला था. जब सब शांत हो जाते हैं तो वो कहती है- आदि के पाप वैसे हमारे पास सामान तो सीमित ही है तो क्या हम कर लेंगे?
विजय कुमार- अरे! आराम से हो जाएगा. चलो काम पर लग जाओ..
आरती- (हँसते हुए) जी पापा..
`अरे! ढंग से रोटी को सेक. पागल कहीं की.`, आदित्य पायल को डांटते हुए कहता है. पायल उसकी तरफ गुस्से में देखती है.
`मेरा मन तो करता है कि इस तवे पर इस कमीने को बैठाकर चूल्हे में इतनी आंच लगाऊं की.. `, पायल धीमे से बुदबुदाती है.
`क्या कहा?`, आदित्य उसे संदेह की नज़रों से देखते हुए कहता है.
पायल- कुछ भी तो नहीं मैंने तो बस यही कहा की तुम बहुत स्वीट हो.
आदित्य (थोडा करीब खिसकते हुए) अच्छा!
पायल- इतने भी स्वीट नहीं हो समझे..
आदित्य- (प्यार से देखते हुए) तो कितना स्वीट हूँ बताओ..
पायल-(कोहनी मारते हुए) चुप चाप रोटी को बनाओ.. समझे.. बाद में बताउंगी.
`अजीब लड़की है यार. इतना काम करवा रही है लेकिन एक किस नहीं दे सकती. किस की बात तो दूर साला आई लव यू भी नहीं बोल सकती..`, आदित्य धीमे से बुदबुदाता है.
`क्या कहा?`, पायल सक की नजरो से उसकी तरफ देखते हुए कहती है.
आदित्य- कुछ भी नहीं. मैं तो कहने वाला था तेरे बाबा आ गए.
पायल जैसे ही अपनी नजर उठाकर देखती है तो उसके पिताजी आंगन में आ चुके थे. वे शराब नहीं पीये हुए थे.
`अरे! वाह, आदि तुम्हे भी रोटिया बनानी आती है.`, पायल के पिताजी आंगन में पड़ी चारपाई पर बैठते हुए कहते हैं.
`बाबा, ये लोगो को बंदर भी अच्छे से बना देता है. आप बचकर रहना.`
`हा हा हा, सच बोल रही है क्या बेटा, यह?`, पायल के पिताजी आदित्य की तरफ मुस्कुराते हुए पूछते हैं.
आदित्य- अंकल जिन लोगो की सोच जानवरों तक ही सीमित रहती है उनकी बातो का बुरा नहीं मानते. यह खुद बंदरो की सरदारनी है.
`और कमीने तू लंगूरों का सरदार है.
-"तू बंदरो की."
"तू.."
"तू.."
`अरे! बस.. बस... तुम दोनों तो बहुत लड़ते हो. अच्छा. बताओ सारा काम कर लिया क्या?` पायल के पिताजी उन दोनों से पूछते हैं..
`गाय का दूध निकाल लिया, मेरी पेंट को गोबर में कर लिया, पन्द्रह चपातियाँ बना दी.. सब्जी बना दी.. आपके लिए पानी गर्म कर दिया. अब कुछ ओर रह गया हो तो बोलो अंकल..` आदित्य मुस्कुराते हुए पायल के पिताजी से पूछता है..
" अरे! वाह, फिर तो कुछ भी नहीं रहा.. वैसे आज तेरी वजह से पायल इतना काम आसानी से कर पाई.. तू ऐसे ही हमेशा इसका साथ देना.."
आदित्य पायल के पिताजी की तरफ ध्यान से देखता है. पायल भी अपने पिताजी के तरफ प्यार से देखती है.
`बोल इसका साथ देगा न हमेशा... हमेशा साथ रहेगा न.. `, पायल के पिताजी उससे पुन: पूछ लेते हैं..
आदित्य पायल की तरफ प्यार से देखते हुए कहता- हाँ! अंकल, मैं इसका साथ कभी नहीं छोडूंगा..
"हाँ! मैं भी यही चाहता हूँ. तुम दोनों साथ रहो. आदि बेटा जब तुम्हे इसके साथ देखता हूँ तो सुकून मिलता है. एक तुम ही तो हो जो इसे सही से समझते हो. इसकी कद्र करते हो..
पायल के पिताजी बीच में ही रूक जाते हैं. वे दुखी से नजर आते हैं."
पायल अपने बाबा की तरफ अपनी अंगुली मुहं पर लगाते हुए उन्हें चुप रहने का इशारा करती है.
`आप चिंता मत करो अंकल मैं हमेशा इसके साथ रहूँगा.`, आदित्य मुस्कुराते हुए कहता है.
रामवतार- मैं भी यही चाहता हूँ बेटा की तू हमेशा इसके साथ रहे. यह लडती होगी तुम्हारे साथ लेकिन दिल की बुरी नहीं है. बहुत भोली है. बहुत...
`क्या हो गया है बाबा अचानक से आपको? आज फिर से शराब पीकर आए हो क्या आप?`, पायल भावुक होकर बोलती है.
`आज शराब पीकर नहीं आया हूँ तभी तो ये सब बोल रहा हूँ. खैर तू जल्दी से खान लगा मैं हाथ-मुहं धोकर आता हूँ.
आदित्य आश्चर्यचकित हो जाता है की आज पहली बार उसने पायल के पिताजी को इस तरह से बात करते हुए सुना था. इससे पहले तो वह बस यही सोचता रहता था कि वो एक पियक्कड़ ही हैं और उनके दिल में किसी भी तरह की कोई भावनाएं नहीं हैं. पायल अपने पिताजी को खाना परोसती है. वे शीघ्र ही खाना खा लेते हैं.
इधर दूसरी तरफ आदित्य के कमरे में उसकी माँ, पिताजी, आरती सबकी हंसने की आवाज आ रही है.
`अरे! इसे सही से लगाओ. एक बार देखते ही वो खुश हो जाना चाहिए.. समझी..`, आदित्य के पिताजी उसकी माँ से कहते हैं.
सरोज- अब आप मुझे बताएंगे क्या की मुझे कैसे लगाना है?
विजय कुमार- अच्छा! तुम्हे आता है क्या? फालतू में झगडा कर रही है..
आरती- अरे! मम्मी-पापा आप तो झगड़ने लगे.. भैया आने ही वाला होगा.. आप जल्दी करो..
`ठीक है बंदरिया मैं चलता हूँ..`, आदित्य पायल से कहता है.
`हाँ! जाओ. लेकिन कल सन्डे है तो तुम सुबह भी जल्दी ही आ जाना मेरे घर.. फिर काम करने के बाद मुझे गणित के सवाल भी बताने होंगे तुम्हे..
`हे! भगवान, इस बंदरिया का बस चले तो ये मुझे मुर्गा बना दे.` आदित्य धीमे से बुदबुदाता है.
`क्या कहा लंगूर?` पायल पूछती है.
आदित्य- (मुस्कुराते हुए) कुछ भी तो नहीं.. बस यही की आ जाऊंगा. कल सुबह टाइम से.. चल अब बाय..
पायल- बाय..
फिर आदित्य अपने घर की तरफ निकल पड़ता है. इधर पायल सभी बर्तनों को धोने लग जाती है. पायल के पिताजी कमरे के अंदर लेटे-लेटे बीडी पी रहे हैं. वे आज हमेशा की अपेक्षा खुश नजर आ रहे हैं. पायल बर्तन धोने के बाद कमरे के अंदर आती है. फिर वह अपनी रजाई को लेती है और ओढ़कर बैठ जाती है.
इधर दूसरी तरफ आदित्य अपने कमरे के दरवाजे के पास खड़ा होता है.
`आज इतनी शांति कैसे छाई हुई है? सब कहा हैं? `, आदित्य धीमें से बुदबुदाता है.
फिर वह दरवाजे को जैसे ही खोलता है तो अंदर के नज़ारे को देखकर आश्चर्यचकित हो जाता है.
क्रमश..
अध्याय-
17
आदित्य के घर में शांति छाई हुई है. उसके पापा के कमरे से भी आवाज नहीं आ रही है. वह बाहर से बंद हैं. वह आश्चर्य में धीमे से बुदबुदाता है- आज इतनी शांति कैसे छाई हुई है?
फिर वह धीमे से दरवाजा खोलता है.
`उई.. `
आदित्य के सर पर फूलो से भरा गुब्बारा फूटता है. बहुत सारे फूल उसके चेहरे पर गिर जाते हैं। वह चौंक जाता है. उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ जाती है. फिर वह कमरे में चारों ओर देखता है तो आश्चर्यचकित हो जाता है. जगह-जगह कागज पर हाथ से मेसेज लिखे हुए थे. उनमे दिल बने हुए थे. कमरे के पंखे के हुक से एक बड़ा सा गुब्बारा लटका हुआ था जिस पर एक स्माईली पेंट की हुई है. उसके पास में एक लैटर भी लटका हुआ है. चारो और कमरे में जगह-जगह फूलों की माला वह कार्ड्स पर लिखा हुआ था वी लव यू आवर रॉकस्टार`
चारो ओर कमरे में जगह जगह फूलों की माला व कार्ड्स पर कुछ लिखा हुआ था। आदित्य की नजर ऐसे ही एक कोने पर लगे एक कार्ड्स पर गिरी जिसमे लिखा हुआ था " आई लव यू माय रॉकस्टार। सॉरी! हमने तुम्हे बताया नहीं। लेकिन अब इतनी भी क्या नाराजगी। मुस्कुरा दे। वरना फिर आंसुओं की बाढ़ आ जाएगी। अच्छा कोई ना ज्यादा मत सोच तुम्हारी माँ का लिखा एक दूसरा लेटर पढ़ ले। इस जगह से गिनकर सात्त कदम ले और बाई तरफ देख। एक कोने में जो माला है उसके पीछे चिपके हुए लेटर को पढ़।
तुम्हारा प्यारा
पापा
आदि मन ही मन मुस्कुराता है। वह धीमे से बुदबुदाता है- ये सब.... पापा भी न.. कोई ना देखता हूँ क्या लिखा है माँ ने.. वैसे मैं नहीं मानूंगा आज चाहे कुछ भी हों जाए। ऐसे थोड़े न अपनी हड़ताल तोड़ दूं.
फिर वह कोने की तरफ लटकी उस माला की तरफ जाता है। गुलाब के फूलों से बनी माला महक रही थी। वह उसको प्यार से छूता है फिर जैसे ही उसके पीछे देखता है तो टेप से चिपके हुए एक लेटर को देखता है। वह उसे खोल लेता है।
"मेले डियर आदू,
अब ज्यादा लड़कियों की तरह नखरे मत दिखा समझे, इतनी नाराजगी भी अच्छी नहीं।, वरना मैंने कल ही नई झाड़ू निकाली हैं। अच्छा मैं भी ना प्यार भी हमेशा झाड़ू से ही दिखाती हूँ। क्या करूँ? तुम मुझे आंतकवादी माँ जो कहते हो। अब आतंकवादी तो हिंसक होते ही है। खैर जाने दो। तुम जो भी कहो। हूँ तो तुम्हारी माँ ही। वैसे एक बात कहूँ? तुम्हारे ऊपर गुस्सा बिलकुल भी नहीं जंचता। वो तुम्हारी दोस्त पायल तुम्हे लंगूर बिलकुल सही कहती है। उसे इसके लिए नोबेल प्राइज मिलना चाहिए क्योंकि उसने तुम्हारा नाम बहुत सोच समझकर रखा है। अरे! मैं तो मुद्दे से ही भटक गई। हाँ! तो मैं कहने वाली थी कि जब तुम गुस्सा करते हो तो बिलकुल लंगूर लगते हो और इससे भी ज्यादा बुरी बात तू नखरे करता है लड़कियों की तरह। कभी-कभी तो दिल करता है कि तुम्हारा नाम आदित्य से बदलकर बॉर्बी डॉल कर दूं। चुप चाप मान जाना। वरना उस बन्दरिया को नया नाम देने में मैं महत्वपूर्ण भूमिका अदा करुँगी। समझे।
अच्छा सुन, एक बात तो बताना ही भूल गई। तू मेरा बेस्ट बेटा है। बस थोड़े नखरे कम कर दे।
तुम्हारी प्यारी आंतकवादी माँ
"हा! हा! हा! , माँ भी न कुछ भी बोलती है।", आदित्य जोर से हँसते हुए अपने आप से कहता है।
फिर अचानक उसकी नजर कोने में जाती है। जहाँ एक और लेटर लिखा हुआ था बड़े-बड़े और अजीब से अक्षरों में ।
" डियर भैया,
सबसे पहली बात आप मेरी हैण्ड राइटिंग का मजाक मत बनाना क्योंकि आपके अक्षरों को भी देखकर ऐसा लगता है जैसे सभी ने शिव की भक्ति में मग्न होकर भांग पी रखी हो। खैर कोई बात नहीं मैं, पार्थिव, और अदिति तीनो चाहते हैं कि आप मम्मी- पापा को माफ़ कर दें। अब ये लॉजिक मत देना आप कि अदिति और पार्थिव नहीं कह सकते क्योंकि वे दोनों बहुत छोटे हैं तो इसका मैं बता दूं। मैं आजकल मोटी टाई से ज्योतिष विद्या सीख रही हूँ तो लोगो के भविष्य का पता लगा लेती हूँ की अदिति बड़ी होगी तो यही चाहेगी।
इस लिए आपका लॉजिक सिरे से खारिज किया जाता है। इस लिए सभी सबूतों और ग्वाहों को मध्यनजर रखते हुए यह फैसला सुनाया जाता है कि आप अभी के अभी मम्मी पापा को माफ़ कर दें।
अच्छा सच बताते हैं। यह लेटर भी पापा ने ही लिखवाया है। बस हैण्ड राइटिंग मेरी है😂😂 पर फिर भी मेरी बात मान जाओ न भाई। आखिर जो दिमाग आप ऊपर भगवान के पास छोड़ आए थे उसे मैं ही तो लेकर आई थी।
आपकी दो दिमाग की बहन
आरती
आदित्य मंद-मंद मुस्कुराता है. धीमे से बुदबुदाता है- ये सब..
`ये सब तुम्हारे लिए था मेरे रॉकस्टार. अब तो माफ़ कर दे हम दोनों को यार.` आदित्य के पिताजी उसे गले लगाने के लिए अपनी बाहँ फैलाते हैं. आदित्य उनकी तरफ देखता है.लेकिन वह जानबूझकर झूठी नाराजगी दिखाता है.
`लेकिन मैं आपको माफ़ नहीं करने वाला पापा. आपने बहुत गलत किया है.`, आदित्य मुहं फुलाते हुए कहता है.
`अच्छा! बड़ा आया. अब चुप चाप मान जा. वरना झाड़ू लेकर आ रही हूँ.`, आदित्य की माँ उसे मुस्कुराते हुए डराती है.
आदित्य- मुझे डर नहीं लगता झाड़ू से.
सरोज- आदि के पापा आप इसे पकड़ो और आरती बेटा तुम भी. इसकी सेवा करनी पड़ेगी आज.
फिर वे कोने में रखी झाड़ू को उठाने के लिए लपकती हैं. इधर आदित्य के पिताजी आदित्य को पकड़ने के लिए अपने कदम बढ़ाते हैं- अरे! क्यों नहीं? मैं अभी पकड़ता हूँ.
आदित्य कोने की तरफ भागता हैः. ये अत्याचार है मेरे खिलाफ. घोर अत्याचार. आप मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते. इडिया इस डेमोक्रेटिक कंट्री. मैं अहिंसा में विश्वास करता हूँ तो इसका मतलब यह नहीं की मैं अन्यांय सह लूँगा.
वह कमरे में इधर-उधर दौड़ने लगता है. इधर दूसरी तरफ उसकी माँ झाड़ू उठा लेती है तो उसके पिताजी और आरती उसकी तरफ दौड़ते है.
`अरे! आरती बेटा पकड़ो इसे. पकड़ो.`, आदित्य के पिताजी उसकी तरफ दौड़ते हैं. वे कुछ देर बाद उसे पकड लेते है. .`आह! हाथ आ गया.`
``आप कसकर पकड़ो न इसे.`
आदित्य- ये गलत है. इसका बदला लिया जाएगा. ब्याज सहित लिया जाएगा.
सरोज- अच्छा! बदला लेगा.. ले तो..
फिर आदित्य की माँ सरोज उसे प्यार से पिटती है.
`माँ! बस... बस मान गया हूँ.. अब ओर मत पीटो प्लीज..`, आदित्य अपने पापा से छुड़ाने का प्रयास करता है.
`नहीं! इसे ऐसे ही मत छोडो आदि की माँ.. दो चार तो और मारो.. हा हा हा..`
आदित्य- छोड़ दो पापा.. प्लीज.. छोड़ दो..
आखिरकार जब उसके पापा उसे छोड़ देते हैं तो सभी बारी-बारी आदि को गले लगाते हैं. उसकी माँ उसका माथा चूमते हुए कहती है- क्यों अब दूर हो गई तेरी नाराजगी. मार खाने के बाद ही मानता है. पहले ही मान जाया कर.
आदित्य- लेकिन आप सबने मुझे जबरदस्ती मनवाया है. वरना..
सरोज- (आखे दिखाते हुए) वरना क्या?
`कुछ नहीं..कुछ नहीं वरना मैं खुद ही मान जाता न.`, आदित्य अपनी बात को पलटते हुए कहता है.
विजय कुमार- अच्छा! कोई न अब तू खाना खा ले..
आदित्य- वो तो मैं खा आया पापा. बंदरिया के घर..
सरोज-अच्छा! लेकिन तेरे पापा और हम सब तेरा इंतजार कर रहे थे. थोडा बहुत खा लेना.. चल आ जा..
फिर आदित्य के पिताजी, माँ, आदि और उसके सभी भाई बहन उसकी माँ के पीछे-पीछे रसोई घर में जाते है. आज पूरा परिवार फिर से खुश हो गया था. ऐसा लग रहा था जैसे सभी दुःख दर्द दूर हो गए हों.
इधर दूसरी तरफ पायल और उसके पिताजी एक ही कमरे में बैठे हैं. पायल अपने सवालों को दोहरा रही हैं. उसके पिताजी उसकी तरफ ध्यान से देख रहे हैं.
`एक बात सुन पायलिया?`
पायल (मुस्कुराते हुए) बोलो बाबा.
रामवतार- तू ऐसे ही पढ़ाई कर. मुझे बहुत ख़ुशी होती है जब तुम पूरा मन लगाकर पढ़ती हो. आजकल आदि भी तेरी बहुत मदद करता है. वह लड़का नहीं हीरा है जो हर वक्त तेरी मदद करने के लिए तैयार रहता है. ऐसे लड़के का कभी भी साथ मत छोड़ना.
पायल- हाँ! पापा आपने सच कहा. लंगूर बहुत अच्छा है. कभी-कभी मुझे तंग करता है लेकिन मेरी मदद भी बहुत करता है.
रामवतार (मुस्कुराते हुए) तंग करता है! मुझे तो लगता है मेरी बेटी ज्यादा तंग करती है उसे.
पायल- (मुहं फुलाते हुए) बाबा..
रामवतार- हा हा हा.. क्या हुआ सच सुनने में बुरा लगता है न. लेकिन यही सच है.
पायल- अच्छा! आपको नहीं पता वह मुझे क्या-क्या बोलता है. कभी बंदरिया तो कभी मोटी सांड. अब आप ही बताओ क्या मैं इतनी मोटी हूँ?
रामवतार- अरे! नहीं, वो तो बस मजाक करता होगा. तू भी तो उसे बहुत कुछ बोलती है.
पायल- तो मैं पीछे क्यों रहूँ?
रामवतार- (मुस्कुराते हुए) हाँ! ये भी है.. खैर मैं चाहता हूँ तू ऐसे ही मेरा नाम रौशन करे. आखिर तू ही तो है मेरा सहारा. मुझे बहुत गर्व है तुम पर..
पायल- अच्छा! लेकिन मुझे नहीं लगता की आपको मुझ पर गर्व है.
रामवतार- अरे! ये क्या बोल रही है. सच में गर्व हैं तुम पर.
पायल- नहीं है . अगर होता तो आप मेरा एक कहना मानते.
रामवतार- तू बोल तो सही क्या कहना मानना है. मैं तैयार हूँ.
पायल- अच्छा! पहले वादा करो की आप मेरा कहना मानोगे.
रामवतार- (मुस्कुराते हुए) वादा रहा.
पायल- बाबा! आप शराब छोड़ दो.
रामवतार आश्चर्य से देखते हुए कहता है- क्या!
पायल रजाई से निकलकर अपने पिताजी का हाथ पकड़कर बोलती है- हाँ! बाबा, मैं जानती हूँ आप बहुत अच्छे हो. मैं यह भी जानती हूँ की आप मुझसे बहुत प्यार करते हो. लेकिन बाबा आखिर क्यों आप शराब पीते हो?
रामवतार- बेटा गम ही ऐसे हैं की...
पायल ( नाराज होकर) ऐसे क्या गम है बाबा जो आपकी बेटी से भी बढ़कर हैं.
रामवतार कुछ देर के लिए सोचता है. वह शांत हो जाता है. आखिर शराब छोड़ना उसके लिए कोई आम बात तो नहीं थी न. जिस नशे की लत में वह पिछले दश साल से था भला उसे एक ही झटके में छोड़ना कोई आसन काम नहीं था.
पायल पुन: अपने पिताजी की तरफ देखते हुए कहती है. बोलो बाबा.. छोड़ दोगे न.
रामवतार प्यार से मुस्कुराते हुए अपने हाथ को पायल के सर पर रखते हुए कहता है—वादा रहा. मैं आज से.. अभी से अब कभी भी शराब को हाथ तक नहीं लागाऊंगा. अब नहीं पीऊंगा बेटा कभी भी.
पायल ख़ुशी के मारे उछलकर अपने पिताजी के गले लगती है- वाह! बाबा... आप बहुत अच्छे हो. बहुत अच्छे हो.. बहुत अच्छे हो..
रामवतार उसे गले लगाता है. उसके सर को थपथपाते हुए कहता है - अरे! बस.. बस इतनी तारीफ भी मत करो.. दुनिया के लिए मैं बहुत बुरा हूँ..
पायल- आप ऐसी बकवास मत किया करो बाबा..
रामवतार- अच्छा! तो मैं बकवास करता हूँ.
पायल- नहीं तो.. आप तो बहुत अच्छे से बाते करते हो. बकवास तो आप शराब पीने के बाद करते थे. हा हा हा..
रामवतार- अच्छा.. अब भी ताने देकर सताएगी मुझे..
पायल-(मुस्कुराते हुए) अभी तो सताना शुरू किया है. अभी तो ओर सताउंगी मैं..
रामवतार ( आश्चर्य से) मतलब!
पायल अपने पिताजी की रजाई में घुसते हुए कहती है- मतलब! मतलब यही की. अब मुझे नींद नहीं आ रही है. इस कारण आप मुझे बचपन की तरह अपने सीने से लगाकर सुलाएगे और मेरे बालो को सहलाते हुए मुझे कोई प्यारी सी कहानी सुनाएंगे जैसे की आप मुझे बचपन में सुनाते थे.
पायल अपने पापा के बगल में सो जाती है. वह अपने एक हाथ को अपने पापा की छाती पर रख देती है.
`बेटा! अपने बूढ़े बाप पर ये जुल्म क्यों?`
पायल- क्योंकि इतने दिन शराब पीकर आपने मुझे बहुत रुलाया था अब मैं आपको तंग करुँगी.. मुझे बस चुप चाप सुलाओ.. रात की ड्यूटी है अब आपकी..
रामवतार- हे! भगवान कैसी बेटी दी है मुझे
पायल- देखो, बाबा अब रात को भगवान को तंग नहीं करते. वो भी तो अपने बाल बच्चो को लोरी गाकर सुला रहे होंगे. तो चलिए शुरू हो जाईये.
`हा हा हा. कुछ भी बोलती है,, चल इधर आ..
रामवतार अपने हाथो से पायल के बालो को सहलाता है.- वैसे तू अब मुझसे रात को काम ओर करवाएगी.
पायल- जी बिलकुल..
रामवतार- चल कोई न भई... अब सुन एक कहानी... एक बार एक राजकुमार था..
पायल के पिताजी उसे कहानी सुनानी शुरू कर देते हैं. वे साथ-साथ में उसके बालो को सहला भी रहे हैं. पायल उनकी छाती में दुबककर सोई हुई है. काफी सालो बाद अपने पिताके सीने से चिपककर सोना पायल के लिए सुकून भरा था. शीघ्र ही उसे नींद आ गई. रामवतार का भी दिल भर आया क्योंकि उसे ख़ुशी हो रही थी की उसकी एक बेटी है जो उसके सुख दुःख की बराबर की भागिदार है. वह जानता था की दुनिया की नजर में उसकी छवि एक बुरे पिता की है लेकिन हकीकत तो इसके विपरीत थी. किसे पता था जो पायल के सच्चे शुभचिंतक थे वो असल में उसके बारे में क्या सोचते हैं? खैर रामवतार पायल की हर परेशानी के आगे एक चट्टान की भांति खड़ा था. रात धीरे-धीरे गहराने लगी और रामवतार को भी अपनी बेटी का वही पुराना स्पर्श पाकर नींद आ गई.
क्रमश..
अध्याय-
18
सूरज किरण धेनुएँ हांककर ला रहा है. सुबह का मौसम बहुत ही सुहावना है आज. रविवार का दिन है लेकिन फिर भी आदित्य नहा धोकर तैयार हो चुका है. वह अपनी गणित की पुस्तक और नोटबुक लेता है और पायल के घर की तरफ निकल पड़ता है.
इधर दूसरी तरफ आदित्य के पिताजी भी ट्रेक्टर पर गुरमीत के साथ शहर की तरफ निकल गए हैं क्योंकि उन्हें आज एस.आई से केस के सिलसिले में बात करनी थी. उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ नजर आ रही थी लेकिन फिर भी उन्हें अपना कर्तव्य ढंग से निभाना था.
`ओये! बंदरिया, कितना टाइम लेगी सारा काम करने में?`, आदित्य पायल को बर्तन साफ़ करते देखते हुए कहता है.
पायल- ज्यादा टाइम नहीं लगेगा अगर तू मुझे काम करवाएगा तो.
आदित्य- मतलब!
पायल- मतलब, साफ़ है की अगर तू मुझे यह बर्तन साफ़ करवा देगा तो फिर सब्जी छोंक दूँगी. सब्जी उबलेगी इतने में हम दोनों गाय का दूध निकाल लेंगे. उसके बाद उसे चारा डालेंगे. फिर..
आदित्य-(आशचर्य से) अरे! बस... बस.. मतलब इतना काम करवाएगी तू मुझसे?
पायल- हाँ! पर इसमें इतना आश्चर्यचकित होने जैसे क्या है? तू नहीं करवाएगा तो कौन करवाएगा?
आदित्य- (उदास होकर) देखो बंदरिया ये गलत है.
पायल- गलत वलत कुछ नहीं है. चुप चाप ये कढाई उठा और शुरू हो जा मेरी जान.
आदित्य-(मुहं फुलाते हुए) कुछ ज्यादा ही प्यार नहीं जता रही है क्या आजकल तू मुझे पर.
पायल- अब लड़कियों की तरह नखरे मत कर.. चुप चाप आ जा..
`सर आपको अंदर बुला रहे हैं.`, एक कांस्टेबल आदित्य के पिताजी से कहता है.
विजय कुमार और गुरमीत दोनों खड़े होते हैं. वे जैसे ही दोनों साथ बढ़ने लगते हैं. कांस्टेबल गुरमीत से कहता है- आप इनके साथ नहीं आ सकते.
`क्यों?`, गुरमीत आश्चर्यचकित होकर पूछता है.
`आपको जो कहा जाए वो कीजिए. साहब ने बोला है की आप साथ नहीं आ सकते.`, कॉन्स्टेबल रूखे स्वर में कहता है.
विजय कुमार- ठीक है गुरमीत, तुम इंतजार करो. मैं जाता हूँ.
गुरमीत- ठीक है पाजी.
गुरमीत वापस बेंच पर बैठ जाता है तो वही आदित्य के पिताजी उस कांस्टेबल के साथ एस. आई. चेम्बर में जाते हैं. एस. आई. अपने चेंबर में बैठा सिगरेट पी रहा था. आदित्य के पिताजी कुर्सी पर बैठ जाते हैं.
`उहू..उहूं..` आदित्य के पिताजी को सिगरेट के धुएँ की वजह से खांसी आने लगती है.
`क्या आप इस सिगरेट को बुझाएंगे? मुझे साँस लेने में दिक्कत आ रही है.`, आदित्य के पिताजी विनम्रता पूर्वक कहते हैं. लेकिन एस. आई. सिगरेट के धुएँ को आदित्य के पिताजी की तरफ छोड़ते हुए कहता है- और सुनाईये क्या हाल है? वैसे आप तो खुश होंगे!
`किस बात की ख़ुशी? और कृपया करके आप इस सिगरेट को बुझा दीजिए. उहू.. उहू.. मुझे स्वांस लेने में दिक्कत हो रही है.
`मुझे ये सवाल समझने में दिक्कत आ रही है लंगूर. चल सही से बता न.`, पायल आदित्य से कहती है. आदित्य उसे सवाल बता रहा है. उन्हें पढ़ते हुए काफी समय हो गया है.
`ठीक है बता रहा हूँ`, आदित्य उसे पुन: सवाल बताना शुरू कर देता है. पायल आज हमेशा के मुकाबले बहुत ध्यान से सवालों को समझने का प्रयास कर रही है. दीवार पर लगी घडी में पहले बारह, फिर एक और दो बज जाती है लेकिन फिर भी वे दोनों किताब को छोड़ते नहीं हैं. यह गणित के अध्यापक का डर था या फिर आदित्य का जूनून की मैं पायल को गणित में होशियार बनाकर ही दम लूँगा, इसका पता नहीं था। लेकिन कुछ भी हो इससे उन दोनों को ही फायदा होने वाला था. जब उन दोनों को पढने में काफी समय हो जाता है तो आदित्य पायल से कहता है- पायल अब एक चाय बना ला यार, मैं थक गया हूँ.
`अच्छा! गुरुदेव के तो नखरे भी न्यारे हैं. तू ही बना ला ना.`, पायल आदित्य के कोहनी मारते हुए कहती है.
`आउच! ये गलत है. मैं थक गया हूँ. चाय बनाकर अगर पीला देगी तो जरुर मैं आगे के सवाल बता सकता हूँ वरना नहीं. समझी..`
पायल (प्यार से) अच्छा ठीक है, ला रही हूँ.
इतना कहकर पायल चाय बनाने चली जाती है. आदित्य उसके बिस्तर पर पाँव फैलाकर लेट जाता है.
इधर गुरमीत और आदित्य के पिताजी फॉर्म की तरफ वापस आ रहे हैं. आदित्य के पिताजी बहुत उदास नजर आ रहे हैं. गुरमीत भी बिलकुल नहीं बोलता है. आदित्य के पिताजी का चेहरा पीला पड़ा हुआ है. गुरमीत एक ढाबे को देखता है. वह ट्रेक्टर को रोकते हुए कहता है- पाजी, आओ चाय पीते हैं.
`नहीं!, गुरमीत घर चलो. मेरा मन नहीं है.`, आदित्य के पिताजी उदास होकर कहते हैं.
गुरमीत- पाजी, बात क्या है? आप एस. आई से मिलके बाद से ही उदास नजर आ रहे हैं.
विजय कुमार- कुछ भी नहीं है. गुरमीत तुम चलो.
गुरमीत- नहीं!, पाजी आपको बताना ही होगा. आप बताओ न क्या बात है?
`कुछ भी नहीं है गुरमीत, वैसे भी तू क्या कर लेगा? चल अब जल्दी चल.`, आदित्य के पिताजी रूखे स्वर में कहते हैं.
आदित्य के पिताजी के गुस्सा करने की वजह से गुरमीत आश्चर्यचकित सा हो जाता है. वह उदास हो जाता है.
`ठीक है पाजी, जो आपकी मर्जी. चलता हूँ.`
गुरमीत ट्रेक्टर को पुन: स्टार्ट कर लेता है और फॉर्म की तरफ चल पड़ता है. आदित्य के पिताजी बहुत चिंतित नजर आ रहे हैं. उनके और गुरमीत के बीच बाद में बात नहीं होती है.
`हा, हा, हा, इस बार ताबूत में जो कील ठोकी गई है. वो बहुत मजबूत है. अब तेरा क्या होगा, विजय कुमार... हा हा हा.`, श्याम सिंह जोर-जोर से हँसता है.
टौमी- जी, पाजी क्या प्लान था!
श्याम सिंह- अरे! ये प्लान मेरा नहीं था.
राम सिंह- तो किसका था, क्या महेश तुमने बनाया था?
महेश- नहीं! पाजी मेरा भी नहीं था. मैं भी जानना चाहता हूँ कि आखिर किसने यह प्लान बनाया था?
श्याम सिंह- वो वक्त आने पर अपने आप पता चल जाएगा. अभी तो खुश होने का टाइम है. हा हा हा..
श्याम सिंह के इतना कहते ही सभी जोर-जोर से ठहाके मारकर हंसने लगते हैं.
क्रमश..
अध्याय-
19
शाम हो चुकी है. धुंध ने पूरे फॉर्म को अपनी आगोश में ले लिया है. आदित्य के पिताजी को घर में आए काफी समय हो गया है. लेकिन वे निराश हैं. वे अपने कमरे के अंदर चारपाई पर लेटे हैं. आदित्य की माँ कमरे के अंदर चाय लेकर आती है.
`लो चाय ले लो`, आदित्य की माँ चाय के कप को आदित्य के पिताजी की तरफ आगे बढ़ाते हुए कहती है.
विजय कुमार अपने बिस्तर से उदास होकर खड़े होते हैं.
`क्या बात हुई आज एस.आई से? आपने उस वक्त भी बात का रुख मोड़ दिया था. बोलिए?`
विजय कुमार- कुछ भी नहीं. बोला न बस ऐसे ही सर दर्द कर रहा है. तुम जाओ अपना काम करो.
सरोज- ये क्या बात हुई? बताओ न क्या बात है?
`क्या बताऊँ? जब कुछ बात हुई ही नहीं तो. कुछ तो बात है.. कुछ तो बात है.. हमेशा दिमाग खाती रहती है. जाओ अपना काम करो..`, आदित्य के पिताजी क्रोधित होकर कहते हैं.
आदित्य की माँ आदित्य के पिताजी के ऐसे व्यव्हार को देखकर आश्चर्यचकित हो जाती है.
`अजी! मैंने तो सिर्फ यह तो पूछा न.`
`तुम्हे कितनी बार कहा है की तुम बस अपने काम से मतलब रखा करो. हर बात में टांग घुसाने के जरुरत नहीं है.`
आदित्य के पिताजी का गुस्सा देखकर आदित्य की माँ का चेहरा पीला पड़ जाता है.
`मुनीम जी, मुनीम जी... आप से सुरेश पाजी मिलने आए हैं.`, बाहर से कोई आदमी आवाज देता है.
`मैं जाकर देखती हूँ`
आदित्य की माँ बाहर जाकर देखती है तो सूखी खड़ा था.
`बोलो सूखी भैया. क्या काम था?
`सुरेश पाजी मुनीम जी से मिलना चाहते हैं .`
सरोज- अजी! सुनते हो, आपको सुरेश जी ने बुलाया है.
`उसे बोल दो की मैं बाद में आता हूँ.`, आदित्य के पिताजी रूखे स्वर में कमरे के अंदर से ही कहते हैं.
`पर पाजी सिर्फ दो मिनट का ही काम है. आप आ जाओ न.`
`एक बार जो कहा वो सुनाई नहीं दिया क्या तुझे? जो बच्चो की तरह जिद करता है. चुप-चाप जाकर उससे कह दो.` आदित्य के पिताजी बाहर आकर क्रोधित होकर कहते हैं।
आदित्य के पिताजी का ऐसा स्वभाव देखकर सूखी आश्चर्यचकित हो जाता है. वह उदास होकर घर से बाहर चला जाता है. इधर आदित्य की माँ को भी आश्चर्य हो रहा था की आज बात क्या हुई है?. वे आदित्य के पिताजी से उसका कारण जानना चाहती थी लेकिन आदित्य के पिताजी की मन: स्थिति को देखकर अपने इरादे को बदल दिया.
`अच्छा! पायल मैं चलता हूँ. तुम रात को सभी सवालों को दोबारा देख लेना.` आदित्य पायल की चारपाई से खड़ा होते हुए कहता है.
`ठीक है, मैं देख लूंगी तुम घर जाओ.`
पायल आदित्य की तरफ मुस्कुराती है. आदित्य भी पायल की तरफ मुस्कुराता है और अपने घर की तरफ चला जाता है.
` हा, हा, हा... अब मजा आएगा. वाह! महेश क्या बात कही? तुम तो छुपे रुश्तम निकले यार. अगर तुमने ये काम अच्छे से कर दिया तो तेरे भाई को निकलाने के बाद हम सब मिलकर इस सेठ को अच्छे से लूटेंगे. तू जल्द ही पैसे वाला हो जाएगा.`, श्याम सिंह महेश की पीठ थपथपाते हुए कहता है.
`अरे! पाजी, पैसों के लिए तो मैं अपनी माँ का कत्ल कर दूं. ये तो अपने भाई को यहाँ से निकलाने का काम है. तुम टेंशन ना लो.`, महेश शैतानी मुस्कराहट मुस्कुराते हुए कहता है.
टौमी- वाह! पाजी, अब तो मजा आने वाला है. आज तो वैसे विजय कुमार के चेहरे की हवाईयां उडी हुई थी.
राम सिंह- अरे! हवाईयां क्या सब उड़ जाएगी. बस अब अगला प्लान ओर सफल हो जाए.
महेश- जरुर होगा. तुम सबको मेरी क्षमताओं पर सक है क्या?
श्यामसिंह- सक! कैसा सक, तू एक्टिंग में तो अभिताभ बच्चन को भी मात दे दे.
महेश- जरुर, पाजी.
इतना कहकर वे सभी एक दूसरे की तरफ मुस्कुराते हैं. उनकी मुस्कराहट के पीछे छिपे शैतान की पहचान आदित्य के पिताजी जैसे नेक इन्सान के लिए समझ पाना आसान नहीं था.
इधर आदित्य अपने कमरे में प्रवेश करता है. घर में शांति छाई हुई थी. आदित्य की माँ रसोई घर में खाना बना रही थी. आदित्य अपनी माँ के पास जाता है-
`माँ! मुझे भूख लगी है खाना दो न`, आदित्य अपनी माँ को पीछे से गले मिलते हुए कहता है.
`देती हूँ. तुम हाथ-मुहं धोकर आओ.` आदित्य की माँ धीमे से कहती है.
`क्या हुआ माँ? आज इतनी उदास क्यों है?`, आदित्य जैसे ही अपनी माँ का चेहरा देखता है उसे उसका माँ का चेहरा उदास नजर आता है. उनकी आँखे लाल हैं.
`माँ तू रो रही थी.`
`न..नहीं तो..` आदित्य की माँ हिचकिचाते हुए शब्दों में कहती है.
`कुछ तो बात हुई है माँ! बोल न.` आदित्य अपनी माँ से जिद करके पूछता है.
` बस ऐसे ही आज तेरे पापा..`
आदित्य की माँ आदित्य को सारी बात बता देती है. इस दौरान उनकी आँखों में आंसू झलक पड़ते हैं.
आदित्य अपनी माँ से गले लग जाता है.
`सब ठीक हो जाएगा माँ. अभी पापा चिंतित हैं. इस कारण बात करना उचित नहीं है. जैसे ही उनका मूड ठीक होता हैं मैं बात कर लूँगा. तुम टेंशन न लो.`, आदित्य अपनी माँ के आंसू पोंछते हुए कहता है.
`पर बेटा वो बता भी तो नहीं रहें हैं कुछ! आज तो उन्होंने मुझ पर भी गुस्सा निकाल दिया.`, आदित्य की माँ पुन: दुखी होकर कहती है.
`आदित्य- माँ तुम चिंता मत करो. चलो अभी मुझे खाना दो. मैं पापा को देकर आता हूँ और हाँ, तुम उनसे कुछ भी मत पूछना.
सरोज- ठीक है.
`अब सो भी जाओ बेटा. तुम्हे कल स्कूल जल्दी जाना है.`, पायल के पिताजी पायल से कहते हैं
पायल- बस बाबा दस मिनट ओर. फिर सो जाउंगी.
रामवतार- अच्छा ठीक है..
पायल सवालों को हल कर रही है. उसके पिताजी उसकी तरफ प्यार से देख रहे हैं. वह कुछ देर ओर सवालों को हल करती है और उसके बाद सो जाती है.
रात की बारह बज चुकी है. आदित्य के पिताजी के कमरे में उसकी माँ, पार्थिव , आरती और अदिति सब सोये हुए हैं. लेकिन आदित्य के पिताजी को नींद नहीं आ रही है. वो चिंतित नजर आ रहे हैं. कुछ ही देर में उनके फ़ोन पर घंटी बजती है.
`इस वक्त किसने फ़ोन किया है.`, आदित्य के पिताजी बुदबुदाते हुए फ़ोन की स्क्रीन की तरफ देखते हैं. नंबर किसी अनजान का लग रहा था. वे एक कम्बल लेकर कमरे से बाहर आते हैं.
`हेल्लो!`, आदित्य के पिताजी धीमे से कहते हैं.
`हेल्लो!.
`हेल्लो! कौन है भाई बोलो..`
`तुम बस इतना जान लो कि अब सेठजी तुमने नहीं छोड़ेंगे. तुमने उनके साथ धोखा किया है.`, सामने वाला व्यक्ति रूखे स्वर में कहता है.
`लेकिन मैंने क्या किया है?`
`अरे! वाह उल्टा चोर कोतवाल को डांटे. कमाल के बन्दे हो तुम तो. लेकिन बस इतना जान लो. अब पुलिस तुम्हे नहीं छोड़ेगी विजय कुमार. तू तो गया. हा हा हा..`
`तुम कौन हो? चुप-चाप बताओ.`, आदित्य के पिताजी गुस्से में बोलते हैं.
`अरे! चुप हो गया तो मैं बोलूँगा कैसे? चल कोई न. गुड नाईट. स्वीट ड्रीम्स. अपनी बीबी और बच्चो का ध्यान रखना. क्या हैं ना तेरी बीबी बड़ी खूबसूरत है और वो आदि.. वो तो अकेला ही तो जाता है न स्कूल..`
विजय कुमार- चुप चाप अपना नाम बताओ.
`अरे! इतनी भी क्या जल्दी है? जब वक्त आएगा तो पता चल ही जाएगा. गुड नाईट.`
`हेल्लो!, हेल्लो.. आदित्य के पिताजी जोर-जोर से कहते हैं लेकिन सामने से कोई जवाब नहीं आता है. वे निराश हो जाते हैं. वे पुन: नंबर डायल करते हैं लेकिन फ़ोन स्विच ऑफ आता है.
क्रमश...
अध्याय-
20
रात के करीब बारह बजने वाले हैं. फॉर्म में शांति छाई हुई है. कुछ कुते अपनी राग अलाप रहे हैं. आदित्य के पिताजी परेशान नजर आ रहे हैं. वे बाहर हाड जमा देने वाली ठण्ड में बिना कम्बल बैठे हैं. ऐसा लग रहा है जैसे बुराई ने अच्छाई को जकड लिया है. इतने सारे लोग एक साथ उनके खिलाफ हो जाएंगे ये कभी उन्होंने सोचा नहीं था. उन्हें अचानक एस. आई की बाते याद आने लगती हैं. वह दृश्य उभर-उभर कर उनकी आँखों के सामने आ रहा है.
`कृपया करके आप इस सिगरेट को बुझा दीजिए`., आदित्य के पिताजी एस आई से कहते हैं.
`हा हा हा, इतनी भी क्या जल्दी है. अभी तो मैंने यह सिगरेट जलाई है.`
विजय कुमार- आप यूं अनाप-सनाप क्यों बोल रहे हैं? और कृपया करके इस सिगरेट को बुझा दीजिए.
एस. आई. —वैसे आपको नहीं लगता की आप कुछ ज्यादा ही भोले बन रहे हैं.
विजय कुमार-(गुस्से में) मतलब क्या है आपका?
एस. आई. – अरे! साहेब इतना गुस्सा. कुछ दिनों में आपका ये सारा गुस्सा निकल जाएगा और ये अकड भी, जब आप पकडे जाएंगे.
विजय कुमार- ले..ले.. लेकिन किस जुर्म में? मैंने किया क्या है?
एस. आई.- आपने क्या किया है? मैंने सुना है आपने सेठजी के ट्रेक्टर को जानबूझकर पकडाना चाहा.
`क्या! ये क्या बोल रहे हैं आप? भला मैं ऐसा क्यों करूँगा?`, आदित्य के पिताजी आश्चर्यचकित होकर कहते हैं.
एस. आई. – इस लिए ताकि आप ट्रेक्टर को पकडाकर फिर उसे छुडाने के लिए आप सेठजी से बोलो की पुलिस इतने पैसे मांग रही है.
विजय कुमार- ये क्या बेहूदा मजाक है? मैं ऐसा नहीं हूँ.
एस. आई. – बिलकुल सही कहा आपने. आप वैसे नहीं है जैसे इस फॉर्म का सेठ सोच रहा है. आपकी हकीकत तो कुछ ओर ही है.
विजय कुमार- आप ऐसा क्यों बोल रहे हैं? मुझे नहीं पता आपको ये सब किसने कहा है लेकिन मेरा यकीन मानिए मैं ऐसा नहीं हूँ.
एस. आई.- मुझे जो मानना था मैंने मान लिया. मैं आपकी सच्चाई से वाकिफ हूँ. आप मुझे सफाई न दे. मैं अब आपकी सच्चाई सेठजी के सामने लाकर ही रहूँगा. फिर देखना कैसे सेठजी आपको जेल की हवा खिलाते हैं.
विजयकुमार- आ,...आ.. आप ऐसा कुछ नहीं कर सकते. अगर आपको बात करनी है तो केस के सिलसिले में कीजिए.
एस. आई. – वही तो कर रहा हूँ. केस के सिलसिले में. अब जब सेठजी को पता चलेगा न की आप ऐसे हैं तो देखना वो आपका क्या हाल करते हैं? मेरे पास आपके खिलाफ सबूत भी हैं.
विजय कुमार- ये क्या बक रहे हैं आप? कुछ भी मनगढ़ंत कहानी बना रहे हैं. मैं यहाँ केस के सिलसिले मैं बात करने आया था और आप..
एस. आई. – तो वही तो कर रहा हूँ. क्या आपको केस के सिलसिले में बात नहीं करनी.
एस. आई ने अपने फ़ोन की स्क्रीन पर अपनी अंगुली रखते हुए कहा.
विजय कुमार- नहीं करनी मुझे. किसी भी केस के सिलसिले में बात. मैं जा रहा हूँ.
इतना कहकर आदित्य के पिताजी एस. आई के चेम्बर से बाहर निकलने लगते हैं. एस. आई पीछे से पुन: आवाज देता है.
एस. आई- अरे! सर जी बात तो कीजिए. मैं संभाल लूँगा केस को.
`मुझे कोई बात नहीं करनी अब.`, आदित्य के पिताजी क्रोधित होकर चेम्बर का दरवाजा पुन: बंद कर देते हैं.
वे पुलिस थाने से बाहर आ जाते हैं.
इधर पीछे से एस. आई अपनी अंगुली पुन: स्क्रीन पर टेप करता है और किसी को फ़ोन करता है. घंटी जा रही होती है.
` हेल्लो! आप चिंता न करे. कहानी झूठी ही सही लेकिन विजय कुमार को हिलाकर रखने में काफी है.`
सामने से फ़ोन पर से आवाज आती है- वाह! इस बात को संभालने के लिए आपके पास दस हजार रूपये पहुँच जाएगें.
एस. आई. मुछो मर ताव देते हुए- तब तो ऐसी कहानियाँ मैं ओर भी बना लूँगा. हा हा हा...
`पहले उस एस. आई ने और अब इस फ़ोन वाले ने मुझे पकडाने की बात क्यों की? कहीं ये मुझ पर तो केस नहीं कर देंगे? कहीं मुझे तो नहीं फसा देंगे?. हे भोलेनाथ.. ` आदित्य के पिताजी धीमें से बुदबुदाते हैं. उनके चेहरे पर घोर निराशा छाई हुई है. तमरूपी समन्दर में वे ऐसे डूब गए थे कि सूर्य की किरण रुपी नौका उन्हें कहीं दिखाई नहीं दे रही थी. वे ऐसे ही निराश, हताश बैठे रहते हैं.
सुबह हो चुकी है. आदित्य अपना बैग उठाकर जैसे ही स्कूल की तरफ जाने लगता है आदित्य के पिताजी उसे पीछे से आवाज देते हैं- अरे! आदि.
आदित्य अपने पिताजी की तरफ देखता- हाँ! पापा. कहिए क्या काम है?
विजय कुमार- ध्यान से जाना, और शाम को वक्त से आ जाना.
आदित्य- क्यों पापा? कोई काम था क्या?
`कोई काम हो तभी बोला जाए क्या? एक बार कह दिया सुनाई नहीं देता तुझे. शाम को वक्त से घर आ जाना`, आदित्य के पिताजी रूखे स्वर में कहते हैं.
`ये क्या बात हुई? आप कल से ही खामखा गुस्सा कर रहे हैं. आदि ने बस यही तो पूछा था की कोई काम था क्या?`
`तू बीच में क्यों बोल रह है? चुप-चाप जाकर अपना काम कर.`
`पापा आप गुस्सा मत करो. मैं वक्त पर आ जाऊंगा. आप चिंता मत करो`, आदित्य उदास होकर कहता है. उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा है की उसके पिताजी ऐसा अजीब व्यवहार क्यों कर रहे हैं?
विजय कुमार- हाँ! जरुर, वक्त पर आ जाना और अपना ध्यान रखना.
आदित्य- ठीक है पापा.
आदित्य अपना बैग उठाकर निकल जाता है. वह मन में कुछ सोचता हुआ जा रहा है.
इधर उसके घर में आदित्य की माँ जैसे ही आदित्य के पिताजी की आँखों की तरफ देखती है तो वो आश्चर्यचकित हो जाती है. उनकी आँखे लाल है.
`आपकी आंखे लाल क्यों है?`, आदित्य की माँ आदित्य के पिताजी से पूछती है.
विजयकुमार- नहीं बस ऐसे ही है. तू चाय बनाकर ला.
सरोज (आश्चर्य से) क्या! अभी-अभी तो आपने चाय पीयी थी.
`तो क्या हो गया? और बना ला एक चाय.`, आदित्य के पिताजी पुन: क्रोधित होकर कहते हैं.
आदित्य की माँ के कंपकपी छुट जाती है. वह शीघ्र ही रसोईघर में चली जाती है. उन्हें आभाष हो जाता है कि आदित्य के पिताजी के साथ कुछ तो गलत हुआ है.
`ओये! लंगूर क्या बात है? आज इतना उदास क्यों लग रहा है?
आदित्य (उदास होकर) बस ऐसे ही.
पायल-अच्छा! मुझे भोंदू मत बना. चल बता क्या बात है?
आदित्य- अरे! कुछ नहीं बाबा, बस ऐसे ही लग रहा है तुझे. तू ये बता तुमने गणित की सभी प्रश्नावली निकाल ली क्या?
पायल मुस्कुराते हुए कहती है- अरे! हाँ, तू उसकी चिंता मत कर. मैंने सब निकाल लिए हैं. अच्छा तू बता तेरी तैयारी कैसी है?
आदित्य- कल रात को पढ़ा था कुछ देर के लिए.
आदित्य मन ही मन मुस्कुराता है. उसने बात का रूख बदल दिया. वह नहीं चाहता था कि पायल का दिमाग गणित के टेस्ट से हटे. वह पायल के साथ गणित के सवालों के विषय में बाते करता हुआ आगे बढ़ रह था.
`वाह! महेश, तुमने तो उम्मीद से भी ज्यादा बढ़िया काम कर दिखाया. हम सबको तुझ पर गर्व है.`, श्याम सिंह महेश की पीठ थपथपाते हुए कहता है.
महेश मुस्कुराते हुए कहता है- ये तो काम था मेरा पाजी,
रामसिंह- बिलकुल सही कहा है. वैसे हमारे पाजी आगे का प्लान हमें बता देंगे.
श्याम सिंह- अरे! हाँ! बोला था. उन्होंने कहा था की आज कुछ सरप्राइज देंगे. देखते हैं वो क्या करते हैं!
टौमी- जब से वो हमारे साथ आए हैं तब से तो स्थिति ही बदल गई है.
श्याम सिंह- बिलकुल. चलो मैं उन्हें कॉल करता हूँ ताकि आगे का प्लान जाना जा सके.
इतना कहकर श्याम सिंह कमरे से बाहर आ जाता है तो वही टौमी, महेश और राम सिंह एक दूसरे की तरफ मुस्कुराते हैं.
`अरे! आदि, तीन नंबर सवाल का उतर बता ना.`, राघव नाम का लड़का आदित्य से पूछता है जो उसकी बगल में बैठा है.
`मैं नहीं बता सकता खुद पढ़कर आया कर.`, आदित्य नीचे गर्दन किए हुए ही बोलता है.
राघव को मन ही मन गुस्सा आता है. सभी ग्याहरवीं के विद्यार्थी गणित का टेस्ट दे रहे हैं. पायल भी अपने सभी प्रश्नों को ध्यान से हल कर रही है. आदित्य फिर से जैसे ही लिखना शुरू करता है राघव धीमे से बोलता है- आदि बता न?
आदित्य धीमे से कहता है- मैंने कहा न मैं नहीं बताऊंगा. तू चुप कर. वरना मैं सर को कह दूंगा.
`बताता है या नहीं वरना अच्छा नहीं होगा.`, राघव अपनी बोहें तानकर कहता है.
आदित्य- क्या कर लेगा तू? मैं नहीं बताऊंगा. मैं सर को कह दूंगा. तू चुप कर.
राघव- मैं तुम्हे बाहर देख लूँगा.
`सर, यह राघव बार-बार मुझे तंग कर रहा है. बोल रहा है अगर सवालों के उतर नहीं बताए तो ये बाहर मुझे देख लेगा.`, आदित्य खड़ा होकर अमजद सर से कह देता है.
`क्या! खड़ा हो जा राघव. गधा कही का. खुद तो पढता नहीं है और दूसरों को पढने नहीं देता है.`
अमजद सर राघव के पास आ जाते हैं वो उसके जोर से चांटा मारते हैं.
`अभी का अभी मुर्गा बन.`, अमजद सर उसके बाल पकड़कर उसे मुर्गा बना देते हैं.
आदित्य फिर से अपना काम करना शुरू कर देता है. इधर राघव आदित्य को तीखी नज़रों से क्रोधित होकर देखता है.
क्रमश...
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