अध्याय- 11
आदित्य के पिताजी ट्रेक्टर के इंतजार में एक टीनशेड के नीचे खड़े हैं. लेकिन ट्रेक्टर अब तक नहीं आया है. उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही हैं. वे कुछ देर यूंहीं निराशा की मुद्रा में खड़े थे की अचानक ही उनके फोन पर घंटी बजती है. जब में मोबाइल स्क्रीन की तरफ देखते हैं तो किसी अनजान व्यक्ति का नंबर दिखाई दे रहा था.
`हेल्लो!`
`क्या आप विजय कुमार जी बात कर रहे हैं?`
`जी हाँ!, बोलिए आप कौन?`
`लो आप महेश जी से बात कीजिए,`
सामने से बोलने वाला व्यक्ति महेश को फ़ोन देता है.
`भाईजी गजब हो गया हमारा ट्रेक्टर....`
`क्या! लेकिन ये सब कैसे हुआ? मैंने तुम दोनों को जाते वक्त क्या कहा था? लेकिन ये कैसे हो गया?`
महेश ने न जाने ऐसी क्या बात बताई आदित्य के पिताजी को की वे निराशा रूपी गहरे समन्दर में डूब गए. सामने से महेश की आवाज आ रही थी.
`हेल्लो! भाईजी, आप मेरी आवाज सुन रहे हैं न? क्या कहूं? ये सब अचानक ही हुआ. अब कुछ कीजिए भाईजी.`
आदित्य के पिताजी को कुछ पल के होश ही नहीं रहा की वो क्या बोले? आखिरकार उन्होंने स्थिति को संभालते हुए कहा- ठीक है, मैं कुछ करता हूँ. तुम दोनों तो ठीक हो न?
महेश- हाँ! भाईजी, हम दोनों ठीक है लेकिन...
महेश सामने से रुधे हुए गले से बोल रहा था. न जाने ऐसा अचानक ही क्या हो गया था की न तो आदित्य के पिताजी से बोला जा रहा था और न महेश से. आदित्य के पिताजी ने तुरंत फ़ोन को कट किया. वे एक लम्बी स्वांस लेते हैं. अपने माथे पर हाथ लगाने के बाद वे तुरंत मोबाइल फ़ोन पर किसी के नंबर ढूढने लग जाते हैं. हडबडाहट में उनका मोबाइल भी हाथ से गिर जाता है. वे उसे उठाते हैं और पीछे अपने घर की ओर चले जाते हैं.
इधर दूसरी तरफ बारिश के रुक जाने से आदित्य और पायल वापस घर की ओर चलने लग जाते हैं. ठंडी हवा के थपेड़ों से दोनों कंपकंपा रहे थे. पायल के दांत ठण्ड के मारे आपसे में टकराकर कर्कश ध्वनी कर रहे थे. आदित्य जैसे ही पीछे मुड़कर देखता है तो पाता है की बारिश में पायल की पीठ के भीगने से पायल को ठण्ड लग रही है. वह रुकते हुए कहता है- ठण्ड लग रही है क्या पायल?
आदित्य के इतना कहते ही पायल कांपती हुई उसकी तरफ देखती है. आदित्य पुन: उससे पूछता है- ठण्ड लग रही है क्या?
`हम्म! लंगूर.`
`अच्छा कोई न. मैं कुछ करता हूँ.`
आदित्य दोनों बैग को अपने कंधो से नीचे उतार देता है. वह अपने कोट को जैसे ही खोलने लगता है. पायल उसके हाथ को पकड लेती है.
`अरे! तुम मुझे अपना कोट क्यों दे रहे हो? वैसे भी बहुत ठण्ड है यार.`
`तू चुप कर.`
फिर आदित्य अपने कोट को खोल लेता है. वह पायल के एक हाथ को ऊपर करता है ओर उसमे अपने कोट की बाहं डालता है. पायल उसे चकोर पक्षी की भांति एकटक देखे जा रही थी. उसकी झील सी गहरी आँखों में आज आदित्य के लिए अपार प्रेम झलक रहा था. उसकी कोई सीमा नहीं थी. वह मूक होकर बस आदित्य को देख रही थी.
`चल ये लो पहना दिया. अब जल्दी चल वरना मेरी कुल्फी जम जाएगी आज.` आदित्य कोट की चेन को बंद कर देता है. लेकिन पायल अब भी कुछ नहीं बोलती है.
आदित्य- अब ऐसे टुकुर-टुकुर क्या देख रही हो?
पायल- न.. नहीं तो.. कुछ नहीं बस ऐसे ही देख रही थी.
आदित्य- नहीं, मुझे तो आज कुछ ओर नजर आ रहा है तुम्हारी आँखों में.
पायल- अगर यही सवाल मैं तुमसे करूँ तो क्या जवाब दोगे बोलो?
आदित्य- कुछ नहीं. मुझे ये सब समझ नहीं आता लेकिन इतना जरुर कह सकता हूँ की मैं तुम्हे तकलीफ मैं नहीं देख सकता.
पायल प्यार भरी नजरों से उसकी तरफ देखते हुए कहती है- एक बात पूछू लंगूर?
आदित्य- बोल?
पायल- तुम इतना प्यार कबसे करने लगे मुझे?
आदित्य- अगर ऐसा कभी पता चलता तो मैं तुमसे कभी प्यार नहीं करता.
पायल- क्यों?
आदित्य- क्योंकि फिर मैं तुम्हारी मार से बच जाता.
पायल- रुक कमीने तू. मैं बताती हूँ तुम्हे. वो तो तू अब भी नहीं बच सकता.
फिर पायल गुस्से में एक सरसों के पौधे को उखाड़ लेती है और उसके पीछे दौड़ने लगती है. वह कुछ देर उसके पीछे दौड़ती है. अब वे घर के बिलकुल करीब पहुँच जाते हैं. काली घटाएं फिर से बनने लगी हैं. मौसम पहले के मुकाबले ओर भी ज्यादा खराब हो जाता है.
वे दोनों पायल के घर के बिलकुल पास में पहुँच जाते हैं. पायल आदित्य से अपना बैग ले लेती है और उसे उसका कोट भी दे देती है. वह मुस्कुराते हुए कहती है- ओके बाय लंगूर. क्या तुम आज मेरे घर सवाल बताने आ सकते हो?
आदित्य- पर!
पायल- पर क्या? आज मौसम खराब है और तुझे तो पता है कि अगले सोमवार को हमारा टेस्ट होना है.
आदित्य- ओके कोशिश करूँगा. क्या पता माँ आने न दे?
पायल- मैं कुछ नहीं जानती. मैं इंतजार करुँगी समझे. चुप चाप आ जाना.
आदित्य- ओके चल बाय..
`लेकिन आप कुछ बता क्यों नहीं रहे हैं आदि के पापा? कुछ तो बोलिए.` आदित्य की माँ आदित्य के पिताजी से उनकी परेशानी के विषय में कुछ पूछ रही है.
विजय कुमार- क्या कहूं, सरोज.! कुछ कहने लायक छोड़ा ही नहीं मुझे आज.
सरोज- लेकिन आप बातो को यूं गोल-गोल क्यों घूमा रहे हो? आप कुछ तो बोलिए न.
`माँ! मुझे जोरों की भूख लगी.. खाना दो न माँ..` आदित्य घर के अंदर घूसते ही बोल पड़ता है.
`हाँ! आई तू दो मिनट रुक.`
आदित्य के बीच में बोलने की वजह से उसके पिताजी उसकी माँ को बात नहीं बता पाते हैं. आदित्य की माँ बीच में ही चली जाती है. इधर आदित्य के पिताजी बहुत निराश नजर आ रहे हैं.
आदित्य की माँ उसे खाना परोसती है लेकिन आज उनके चेहरे की रौनक उडी हुई है. आदित्य अपनी माँ की उदासी को भाप लेता है-
`क्या बात है माँ आज तू इतनी उदास क्यों लग रही है?`
`अरे! बुद्धू आज मैं थोड़ी बारिश में भीग गई थी इस कारण मेरी तबियत ख़राब हो गई है. चल तू खाना खा तब तक मैं आती हूँ.`
आदित्य- लेकिन माँ मुझे लग रहा है कुछ तो ऐसी बात है.
सरोज (क्रोधित होकर) बोला न कोई बात नहीं है. चुप चाप खाना खा और जाकर पढ़ाई कर.
आदित्य- माँ तू नाराज क्यों हो रही है? मुझे जो लगा बोल दिया. आई एम सो सॉरी. अच्छा सुन माँ?
सरोज- हां बोल.
आदित्य- क्या आज मैं बंदरिया को सवाल बताने जा सकता हूँ?
सरोज- इस वक्त? मौसम भी तो कितना खराब है.
आदित्य- लेकिन माँ हमारा अगले सोमवार को गणित का टेस्ट है और अगर उसके नंबर नहीं आए तो उसे डांट पड़ेगी.
सरोज- अच्छा! ठीक है चले जाना. लेकिन समय से वापस आ जाना.
आदित्य- ठीक है माँ.
इधर आदित्य के पिताजी अब भी निराश नजर आ रहे हैं. वे बिस्तर पर दुखी होकर बैठे हैं. शीघ्र ही एक कप चाय के साथ आदित्य की माँ कमरे में प्रवेश करती है- ये लीजिए गरमागर्म चाय और अब बताईये की क्या बात है?
आदित्य के पिताजी चाय का कप हाथ में ले लेते हैं लेकिन वे कुछ भी नहीं बोलते हैं. उनका यह बदला हुआ व्यव्हार आदित्य की माँ को बिलकुल पसंद नहीं आता है.
`ऐसी क्या बात हो गई है की आप मुझे भी नहीं बता सकते? यहाँ तक की ट्रेक्टर भी अब तक नहीं आया है! आप पूरी बात तो बताईये न?
विजय कुमार- क्या बताऊँ? सरोज.. हमारा ट्रेक्टर जब तेल लेकर वापस आ रहा था तो बीच रास्ते में ही.
सरोज- क्या हुआ? बोलिए तो सही?
विजय कुमार- मैंने महेश और टौमी को अच्छे से समझाया था लेकिन?
और फिर आदित्य के पिताजी के शब्द ठहर से जाते हैं.
सरोज- लेकिन क्या?
`माँ! मैं जा रहा हूँ. जल्दी ही वापस आ जाऊंगा.`, आदित्य बरामदे के अंदर से ही कहता है.
सरोज-(क्रोधित होकर) अरे तू जा.. अब... कितनी बार बोलेगा..
आदित्य धीमे से बुदबुदाता है- आज ये माँ को क्या हो गया है?
लेकिन वह बिना रुके पायल के घर की ओर निकल पड़ता है. मौसम अब भी बहुत खराब नजर आ रहा है. वह एक छाता और बेटरी लिए उसके घर की तरफ जा रहा है. आकाश में एक भी तारा नजर नहीं आ रहा है. वह शीघ्र ही पायल के कमरे में पहुँच जाता है. वह उसे ध्यान से देख रहा होता है.
`क्या! लेकिन ये कैसे हो सकता है? भला, टौमी और महेश कोई बच्चे थोड़े ही न हैं. क्या उन्हें इतना भी पता नहीं था. उल्टा आपने भी उन्हें कहा था.``, सरोज क्रोधित होकर कहती है. शायद आदित्य के पिताजी ने उन्हें ऐसी बात बताई होगी जिससे उन्हें टौमी और महेश पर गुस्सा आ गया.
`कहा था सरोज लेकिन क्या किया जा सकता है? अब तो जो हो गया सो हो गया. लेकिन तुम इस बात को आदित्य को मत बताना वरना वो खामखा चिंतित हो जाएगा.
आदित्य की माँ उसके पिताजी का हाथ पकड़कर कहती है- कभी नहीं कहूँगी. आप चिंता न करें. भगवान सब ठीक कर देगा.
विजय कुमार- लेकिन सरोज इसमें भगवान क्या ठीक कर देगा? अब कुछ नहीं हो सकता सरोज.
सरोज- आप यूं खामखा गलत क्यों सोच रहे हो? मैंने कहा न सब ठीक हो जाएगा. आप चिंता मत करो.
लेकिन आदित्य के पिताजी के चेहर पर दिखाई पड़ रही चिंता की लकीरें ये बयान करने के लिए काफी थी की परेशानी कोई आम नहीं है. वे दोनों ही चिंतित मुद्रा में थे.
क्रमश..
अध्याय-
12
बाहर जोरों की बिजलियाँ कडक रही हैं. आदित्य पायल के कमरे में प्रवेश कर जाता है. वह बिस्तर में अकेली बैठी पढ़ाई कर रही है. आदित्य अपने छाते को बंद कर देता है. वह उसकी तरफ देखता है तो पाता है की आज पायल एक मासूम सी लड़की नजर आती है. उसने अपने कंधों पर एक कम्बल को ओढ़ रखा है और वह गणित के सूत्रों को रट रही थी. आदित्य उसकी तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहता है-अरे! वाह आज तो बंदरियां शुरू भी हो गई.
`तुम अब गुरुदेव जो बन गए हो.`
आदित्य (मुस्कुराते हुए) हम्म ये तो है. चल अब बोल दे गुरुदेव की जय.’
पायल- जय गुरुदेव की, हा हा हा हा
पायल जोर-जोर से हँसना शुरू कर देती है. आदित्य जैसे ही उसकी तरफ देखता है आज उसे पायल की हंसी बहुत प्यारी लगती है. उस नटखट बाला की हंसी का भी कोई कारण नहीं था. वह तो उस कोयल की भांति थी जिसे बस मीठी राग अलापने से ही मतलब होता है. आदित्य उसकी तरफ प्यार भरी नजरों से देखता है. बिखरी हुई जुल्फें , एक प्यारी मुस्कराहट और ऊपर से एक पंजाबी देहाती सलार शूट में पायल खूब जंच रही थी.
वह मुस्कुराता हुआ उसके पास जाता है. पायल अपनी रजाई को उतार देती है और चारपाई की दूसरी तरफ खिसक जाती है. वह उसके करीब बैठ जाता है. ऐसा नहीं था की पायल और आदित्य कभी एक साथ नहीं बैठे थे लेकिन जो अहसास आज पायल को आदित्य के साथ बैठकर हो रहा था उसे शब्दों में ब्यान करना सूई में धागा पिरोने से भी ज्यादा मुश्किल काम है. वह उसे एकटक देखे जा रही है.
`ऐसे क्या देख रही है बंदरिया?`
पायल- कुछ नहीं.. बस ऐसे ही. तुम सवाल बताओ न.
आदित्य- ओके.. बताता हूँ.
फिर वह उसे सवालों को बताना शुरू कर देता है. पायल बीच-बीच में आदित्य को प्यार से देख रही थी. जिस कारण आदित्य बार-बार उसे टोक रहा था.
इधर दूसरी तरफ आदित्य के पिताजी और उसकी माँ दोनों चिंतित मुद्रा में बैठे हुए हैं. कमरे में शांति छाई हुई है. जो मुस्कराहट अक्सर आदित्य की माँ के चेहरे पर छाई रहती थी आज वो कहीं गायब सी हो गई थी. वे कुछ देर आपस में बात नहीं करते हैं.
`मैं भैया को फ़ोन करके बताऊँ क्या?`
विजय कुमार- लेकिन उन्हें बताने से क्या होगा?
सरोज- क्या पता उनके पास कोई उपाय हो इस समस्या का! वैसे भी एक दिन तो इस बात का पता चल ही जाना है उन्हें.
विजयकुमार- लेकिन फिर भी.
सरोज- लेकिन वेकिन कुछ भी नहीं. अगर उन्हें नहीं बताया तो फिर वो ही कह देंगे की हम उन्हें हमारे परिवार का हिस्सा नहीं मानते हैं.
विजयकुमार- ये भी है. पर..
सरोज- पर क्या? आप अपना फ़ोन दो मुझे..
फिर आदित्य की माँ आदित्य के पिताजी से फ़ोन को ले लेती है. वह आदित्य के मामा को फ़ोन करती है. चंद ही मिनटों में उन्होंने सारा राज आदित्य के मामा रविंद्र को बता दिया.
`तुम चिंता मत करो सरोज. सब ठीक हो जाएगा. वैसे भी इसमें विजय कुमार जी की तो कोई गलती नहीं है. मैं कल ही सुबह घर आकर बात करता हूँ.
सरोज- हम्म! आप कल सुबह जल्द ही आ जाना.
रविंद्र - हाँ! जरुर आ जाऊंगा. तुम चिंता मत करो.
इतना कहते ही सामने से फ़ोन कट होने की ध्वनी आती है.
`समझ में आ गया क्या बंदरिया?`
`हम्म!`, पायल धीमे बुदबुदाती है.
आदित्य- `तो चल कोट 45 का मान बता क्या होगा?`
पायल - `तुम बहुत प्यारे हो.
आदित्य- अरे मैंने तुमसे क्या पूछा है तुम उसका जवाब दो न?
पायल (धीमे से बुदबुदाती है ) `हम्म.. सच्ची मैं तुम्हे बहुत पसंद करती हूँ.
आदित्य- हे! भगवान तुम क्या बोले जा रही हो पागल..
फिर आदित्य जैसे ही अपनी पुस्तक से नजर उठाकर पायल की तरफ देखता है तो पाता पायल उसके कंधे के सहारे सोई हुई है. उसे आदित्य के पास बैठने से मिली गरमाहट की वजह से नींद आ गई है. आदित्य को आश्चर्य होता है.
`अरे! ओये, कुम्भकर्ण खड़ी हो. मैं कब से बोल रहा हूँ तुझे.`, आदित्य उसे हिलाता है.
पायल- हम्म..
आदित्य- क्या हम्म.. हम्म... कर रही है. चल खड़ी हो जा. अगर नींद आ रही थी तो मुझे क्यों बुलाया? चल खड़ी हो.
पायल- हम्म..
और फिर पायल अपने हाथ को आदित्य के गले पर रख लेती है और चिपककर सोने लगती है.
आदित्य – (आश्चर्य से) अजीब बंदी है तू तो.. अरे खड़ी हो न..
पायल- हूँ....
पायल निचे खिसक कर आदित्य के ऊपर अपने हाथ को डाल लेती है. आदित्य उसकी इस तरह की हरकत से शुरू में तो चौंक जाता है. लेकिन बाद में वह स्वीकृति दे देता है. वह एक तकिये को उठाता है और पायल की गर्दन के निचे लगा देता है. फिर वह पायल के एक हाथ को जैसे ही उठाकर रजाई में देने लगता है तो उसके बाल उसके चेहरे पर आ जाते हैं. वह उसके बालों को उसके चेहरे से दूर करता है और फिर उसे रजाई ओढा देता है. उसके बाद उसने पायल की सभी पुस्तकों को उसके सराहने पड़ी टेबल पर रख दिया और जैसे ही खड़ा होकर जाना लगा. पायल ने नींद में उसके हाथ को खींच लिया. आदित्य उसकी तरफ मुस्कुराता है. वह उसके सर को अपने हाथ से छूकर देखता है की कहीं पायल स्वस्थ है या नहीं. लेकिन जब वह उसके माथे को छूता है तो पाता है की पायल को किसी भी तरह का कोई बुखार नहीं है. वह उसके हाथ को रजाई के अंदर देता है और प्यार से उसके माथे को चूमते हुए बुदबुदाता है- तुम पागल हो बंदरिया.. सच्ची.. बट आई लव यू सो मच.
वह अपने छाते को लेता है और पायल के कमरे को बंद करके घर से जैसे ही बाहर जाने लगता है उसके पीछे से पायल की माँ कमला उसको आवाज देती है- क्या हुआ आदि? जल्दी ही जा रहे हो?
आदित्य- वह पढ़ते-पढ़ते ही सो गई आंटी.
कमला- अच्छा!
आदित्य- हम्म.. अच्छा मैं चलता हूँ..
कमला मुस्कुराते हुए कहती है- हाँ! ठीक है जाओ..
आदित्य मुस्कुराते हुए पायल के ख्यालो में खोया हुआ अपने घर की ओर जा रहा है. मौसम अब भी उतना ही खराब है हालाँकि बारिश नहीं हो रही है. लेकिन ठंडी हवा कोडे की भांति आदित्य के बदन पर वार कर रही है. वह शीघ्र ही अपने घर कांपता हुआ पहुँच जाता है. वह जैसे ही घर पहुँचता है उसके पिताजी के कमरे के अंदर किसी की भी आवाज नहीं आ रही है. वह कमरे के दरवाजे को बजाते हुए कहता है- माँ! सुबह मुझे जल्दी उठा देना.
`हाँ! उठा दूँगी. तुम अब चुप चाप सो जाओ जाकर.`, आदित्य की माँ रूखे स्वर में कहती है.
आदित्य धीमे से बुदबुदाता है- आज माँ को क्या हो गया है जो इतना अजीब तरह से बात कर रही हैं?
लेकिन वह अपनी माँ से बिना कुछ पूछे सीधे अपने कमरे में जाता है और जाकर सो जाता है. जब वह रजाई को ओढ़ता है तो उसे पायल की याद आ जाती है. वह फिर से पायल के ही ख्यालों में खो जाता है. कितना प्यारा पल था आज जब वह और पायल एक ही छाते के निचे बारिश में खड़े थे और पायल उसे लिपटकर खड़ी थी और किस तरह से पायल आज उसके कंधे पर सर रखकर सो गई थी. वह मन ही मन प्रसन्न होता है और रजाई को प्रियतमा समझकर उसके ऊपर अपनी टांग डालता है और खराटे भरने के लिए तैयार हो जाता है.
क्रमश..........
अध्याय-
13
आसमान में चारो ओर घना कोहरा छाया हुआ है. रात की बारिश से मौसम ज्यादा ठंडा हो गया है. हालाँकि अब ठंडी हवाओं का दौर धीमा पड चुका है. सभी फसलों को बारिश का पानी मिलने से उनमे एक रंगत सी आ गई है. आदित्य के घर में उसकी माँ रसोई घर में चाय बना रही है. वह उसके माँ के बिना जगाए ही खुद ही खड़ा हो जाता है. मुहं धोने के बाद वह जैसे ही रसोई घर में जाता है उसकी माँ चाय में अदरक डालने के लिए उसे छोटी मूसली से कूट रही थी. वह उनके पास जाता है और पीछे से उन्हें प्यार से गले लगाते हुए कहता है- माँ.. ओ माँ मेरी चाय दो न..
`क्या है ये सब? तुम अब बच्चे थोड़े न रहे हो जो बार-बार ऐसी हरकते करते रहते हो? हरदम माँ.. माँ की रट लगाए रहते हो.` आदित्य की माँ क्रोधित होकर उसकी तरफ देखकर कहती है.
सुबह-सुबह इस तरह से पहली बार डाँटते से आदित्य की आँखों में आंसू झलक जाते है.
`सॉरी माँ, तुम्हे बुरा लगा. आई एम रियली सॉरी. पर तू कल से ही मुझे डांट रही है बात क्या है?`
सरोज- कुछ भी नहीं हुआ है. ज्यादा दिमाग मत खा. चाय पीनी है तो पीलो.. वरना नहा धोकर स्कूल जाओ.. समझे..
आदित्य आश्चर्यचकित होकर अपनी माँ को देखता है. वह मन ही मन सोचता है की कहीं उसकी माँ को पायल और उसके प्यार के बारे में तो पता नहीं चल गया है! वह बिना कुछ बोले ही स्कूल के लिए तैयार होने के लिए चला जाता है. इधर उसकी माँ उसे डांटने के कारण रोने लगती है. वह नहीं चाहती थी की आदि को वह डांटे लेकिन जीवन में आई यह एक परेशानी दोनों माँ बेटे के रिश्ते के मध्य में खटास ला रही थी. वह चाहती तो आदित्य को सब बता देती लेकिन उसके पिताजी के कहने की वजह से वह वचनबद्ध थी. आदित्य नहा धोकर स्कूल की तरफ चला जाता है.
वह चुप चाप नीच गर्दन किए स्कूल की तरफ जा रहा होता है. पायल रास्ते में उसका पहले से ही इन्तजार कर रही थी. वह उसे उस अवस्था में देखकर आश्चर्यचकित हो जाती है.
`क्या बात है लंगूर? आज उदास दिखाई दे रहे हो?` पायल प्यार से आदित्य से पूछती है.
आदित्य बेमन से- कुछ भी तो नहीं.
पायल- अच्छा! पर मुझसे कुछ मत छिपा. चल जल्दी से बता क्या बात है?
आदित्य- बोला न कुछ नहीं हुआ है. बस ऐसे ही. वैसे कल तुझे तो पढ़ते-पढ़ते नींद ही आ गई.
पायल मुस्कुराते हुए- वो तो आनी ही थी.
आदित्य- क्यों?
पायल प्यार से उसकी तरफ देखते हुए कहती है- क्योंकि तुम्हारे कंधे का सहारा जो था मेरे सर के साथ.
आदित्य- अच्छा!
पायल- ओर नहीं तो क्या? कल मुझे सूकून की नींद आई सच्ची. ऐसा लगा जैसे मैं तुमसे लिपटकर सो रही हूँ. वैसे एक बात पूछूं?
आदित्य- हाँ!, पूछो?
पायल- रजाई तुमने ही औढाई थी न मुझे?
आदित्य- हाँ!
पायल ( मुस्कुराते हुए) ओर किस भी तुमने ही किया न?
आदित्य- मैंने कोई किस नहीं किया था. समझी.
पायल- अच्छा! चल झूठा. मुझे सब पता है. तुमने किस किया था मुझे.
आदित्य- तुम्हे कैसे पता? तुम तो सोई हुई थी.
पायल- हाँ! मैं सोई हुई थी लेकिन फिर भी मुझे पता है की तुमने मुझे किस किया था.
आदित्य- अच्छा! बड़ी आई. चल अब बता. आज सुबह कितने बजे उठी थी तू?
पायल- सुबह पांच बजे.
आदित्य- तो इसका मतलब सभी सवाल तुमने कर लिए थे?
पायल- हाँ! बस एक दो सवाल ही तुझे पूछने हैं बाकी के तो आते हैं.
आदित्य- अरे! वाह बंदरिया. आजकल तो तू पढ़ाकू हो गई हो.
वह उसकी तरफ मुस्कुराते हुए कहता है. लेकिन आज आदि की मुस्कुराहट में वो नूर नजर नहीं आ रहा जो हमेशा आता है. पायल से रहा नहीं जाता.
`देख लंगूर. अब मुझसे मत छिपा की बात क्या है? चल बता. क्या बात है?
आदित्य- मुझें नहीं पता यार क्या बात है? लेकिन कल से माँ मुझे लगातार डांटे जा रही है.
पायल- लेकिन क्यों?
आदित्य- पता नहीं क्यों यार?
पायल- अरे! कोई न. शायद उनकी तबियत ठीक न हो! या कोई परिवार का काम होगा. तुम चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा. आंटी बहुत अच्छी हैं.
आदित्य- आई नो पायल. लेकिन आज उनकी बातो में रूखापन था पायल.
पायल- अरे! बोला न होता है. तुम चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा.
आदित्य- आई होप सो. चल अब जल्दी चल वरना लेट हो जाएंगे.
फिर पायल और आदित्य तेज गति से चलने लगते हैं. कोहरा पायल और आदित्य के नाक और मुहं पर जम सा गया है. उनके जूतों के फीते भी अब गंदे हो गए हैं. वे ठिठुरते हुए शीघ्र ही स्कूल पहुँच जाते हैं.
`लेकिन ये सब अचानक हुआ कैसे?` वे तो समझदार इंसान थे. महेश जी भी भोले नहीं हैं.`, आदित्य के मामा रविन्द्र आदित्य के पिताजी से पूछते हैं.
विजय कुमार- मैंने उनको जाते वक्त ध्यान रखने को कहा था रवि जी. लेकिन उनके कान पर जूं तक नहीं रेंगी. अब सेठजी को मैं क्या जवाब दूंगा?
रविन्द्र (मुस्कुराते हुए कहता है) आप चिंता न करें. सब ठीक हो जाएगा.
विजय कुमार- लेकिन..
रविन्द्र- लेकिन .. वेकिन की आप न सोचे.. अब जो कुछ भी हुआ है उसके आप अकेले ही तो जिम्मेदार है नहीं. इस लिए ज्यादा न सोचे. सेठजी को सारी बात बता दें की क्या हुआ है.
विजय कुमार- ठीक है फिर बताता हूँ.
रविन्द्र- ठीक है आप सेठजी को बता दीजिए. मैं चलता हूँ.
विजय कुमार- ठीक है.
उसके बाद आदित्य के पिताजी घर से बाहर की तरफ जाते हैं और फ़ोन मिलाते हैं.
इधर दूसरी तरफ अमजद खान सर सभी बच्चों से एक-एक करके सवाल पूछ रहे हैं. इसी दौरान पायल की भी बारी आ जाती है. आदित्य की हृदय की धड़कने तेज हो जाती है. वह पायल की तरफ देखता है. पायल ब्लैक बोर्ड पर लिखे हुए एक सवाल को ध्यान से पढ़ती है और फिर उतर देना शुरू करती है. वह एक चरण के बाद दूसरा और दुसरे के बाद तीसरे चरण को पूर्ण करती जाती है. इधर आदित्य मन ही मन प्रसन्न होता है. पायल ने जैसे ही पूरे सवाल का उतर सही से दिया था उसके तुरंत बाद अमजद खान उसकी तरफ आश्चर्य की नजर से देखते हुए कहते हैं- अरे! वाह! आज क्या खाकर आई हो घर पर जो की पूरा सवाल सही कर दिया?
पायल मुस्कुराते हुए कहती है- मुझे एक नए गुरुदेव मिले हैं जो मुझे ट्यूशन करवाते हैं हर रोज शाम को.
आदित्य मन ही मन मुस्कुराता है.
अमजद खान- अच्छा!
पायल- हाँ! सर.’
अमजद खान- कोई न अच्छी बात है. तुम्हे मेरे बताए सवाल समझ नहीं आए लेकिन उस गुरूजी के बताए हुए सवाल समझ आ गए. खैर कोई न मैं भी उस गुरूजी से मिलना चाहूँगा की आखिर उन्होंने तुम्हे क्या घोलकर पिलाया की तुमने सवालों का जवाब दे दिया.
पायल-(उत्सुक होकर कहती है-) जरुर मिलेगा सर..
आदित्य अपने हाथ से पायल की और चुप रहने का इशारा करता है. वह उसके इशारे को देखकर शांत हो जाती है और जल्दी से चाक को अमजद सर को देते हुए अपनी बेंच पर जाकर बैठ जाती है.
``क्या हुआ जी? आप बहुत निराश लग रहे हैं.` आदित्य की माँ आदित्य के पिताजी के निराश चेहरे को देखकर पूछती है. वे बहुत दुखी नजर आ रहे थे. सेठजी ने न जाने उन्हें ऐसा क्या बोल दिया था की वे अचानक ही बहुत दुखी हो गए! जब वे कुछ नहीं बोलते हैं तो आदित्य की माँ पुन: दुखी होकर पूछती है- बोलो न क्या हुआ?
विजय कुमार- कुछ नहीं सरोज. लगता है अब कुछ नहीं होगा. मुझे नहीं लगता अब ट्रेक्टर वापस आ भी पाएगा.`
सरोज ( आश्चर्य से) क्या!
विजय कुमार- हां! सरोज, अब ये मामला इतना आसान नहीं रहा है. ट्रेक्टर को अब पुलिस से छुड़वाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन सा गया है. हालाँकि टौमी और महेश आज शाम तक आ जाएंगे लेकिन ट्रेक्टर नहीं आ पाएगा. सेठजी बहुत कफा है.
सरोज- लेकिन इसमें आपकी क्या गलती है?
विजय कुमार- मेरी ही गलती है. आखिर एक दिन बाद भी तो तेल लेने भेजा जा सकता था लेकिन मैंने टौमी और महेश पर यकींन करके गलत कर दिया सरोज. अब कुछ नहीं हो सकता.
सरोज लेकिन आपने तो कहा था की ज्यानी साहेब जरुर हमारी मदद करेंगे.
विजय कुमार- उनसे बात हुई लेकिन..
सरोज- लेकिन क्या?
क्रमश.........
अध्याय-
14
आदित्य की माँ आदित्य के पिताजी से ज्यानी जी के बारे में पूछ रही है की उन्होंने उनकी मदद क्यों नहीं की? लेकिन आदित्य के पिताजी चुप रहते हैं. वे बहुत दुखी हैं.
सरोज- बोलो न वो हमारी मदद क्यों नहीं कर पाएंगे?
विजय कुमार- क्योंकि जब तक ज्यानी जी मामले को संभालते उससे पहले ही हमारे ट्रेक्टर के खिलाफ एफ.आई. आर. दर्ज हो चुकी थी.
सरोज- क्या! लेकिन इतना जल्दी कैसे हुआ ये सब?
विजय कुमार- मुझे भी नहीं पता सरोज की ये सब इतना जल्दी कैसे हुआ? अब कुछ नहीं किया जा सकता.
सरोज- सेठजी ने क्या कहा?
विजय कुमार- बस गुस्सा थे मुझे पर.
सरोज- लेकिन आप पर ही क्यों? आपने क्या गलती की है?
विजय कुमार- बस यही गलती की मैंने जिन दो लोगो का चुनाव किया था वो मुर्ख निकले.
सरोज- तो अब क्या होगा?
विजय कुमार (उदास होकर) कुछ भी हो लेकिन तुम आदित्य को पता मत चलने देना. क्योंकि अगर उसे पता चल गया तो फिर दिक्कत हो जाएगी. वह ढंग से पढ़ाई नहीं कर पाएगा.
`ठीक है. आप चिंता न करें. मैं सब संभाल लूंगी.`, आदित्य की माँ ने आदित्य के पिताजी की तरफ झूठी मुस्कराहट मुस्कुराते हुए कहा. वे दोनों बहुत चिंतित नजर आ रहे थे.
इधर दूसरी तरफ आदित्य पायल के साथ अपनी हमेशा की चाल की अपेक्षा में धीमे चल रहा है. वे दोनों शांत हैं.
`लंगूर, अपनी माँ की सुबह की बात के लिए अब भी दुखी हो?`, पायल ने चुपी तोड़ते हुए कहा.
आदित्य (उदास होकर) हाँ! यार क्या करूँ? आज पहली बार ऐसा लगा जैसे मैं उनका बेटा नहीं हूँ. मुझे लगता है कोई बहुत बड़ी परेशानी आ गई है! वरना माँ कभी भी मुझसे इतना नाराज नहीं होती हैं.
पायल- अरे! बुद्दू इतना मत सोचो. कई बार हो जाता है. वैसे भी आंटी भी तो इन्सान ही है. सब बढ़िया हो जाएगा.
आदित्य- (उदास होकर) आई होप सो.
पायल- अब यूं गोरिल्ला की तरह मुहं क्यों उदास करता है? चल मुस्कुरा दे.
आदित्य- ह्म्म्म..
पायल- क्या हम्म... हम्म कर रहा है. चल मुस्कुरा वरना किस कर लूंगी समझे.
आदित्य- अच्छा बड़ी आई..
पायल- नहीं छोटी आई...
आदित्य- हा हा हा... तुम भी न कुछ भी अनाप सनाप बोलती हो.
`तुम्हारे लिए कुछ भी करुँगी लंगूर.. आई लव यू..`, पायल ने आदित्य का हाथ पकड़कर उसकी तरफ मुस्कुराते हुए कहा.
आदित्य- आई आल्सो लव यू..
पायल- लगता तो नहीं.
आदित्य- मतलब क्या है तुम्हारा?
पायल- बस यही की कभी इजहार नहीं करते हो.
आदित्य- प्यार को इजहार करने की क्या जरुरत है. वैसे भी तुम तो मेरी जान हो. मेरी रगो में बहता खून हो. मेरा वजूद हो..
पायल- अरे! बस.. बस.. गाड़ी को ब्रेक मारो. वरना मैं मर जाउंगी... इतनी तारीफ.. क्या खा लिया था आज खाने में..
आदित्य मुस्कुराते हुए- तुम्हे पता नहीं क्या? आलू की सब्जी.. और परांठे..
पायल- हा हा हा हा.. तू भी न. चल अब जल्दी चलते हैं. वैसे भी आज मेरी माँ मेरे मामा के घर गई हुई है तो सारा काम मुझे और बाबा को मिलकर ही करना होगा.
आदित्य- वाह! ग्रेट..
पायल (गुस्से में) इसमें ग्रेट क्या है कमीने? मेरी बैंड बज जाएगी और तुझे ग्रेट की पड़ी है.
आदित्य- अरे! तू तो नाराज हो गई. मुझे तो घर का काम करने में मजा आता है.
पायल- अच्छा!
आदित्य- हाँ!
पायल- तो फिर मेरे घर का काम करवा दोगे तुम. गाय का दूध निकालना है. फिर खाना बनाना है और भी बहुत काम है..
आदित्य- (आश्चर्यपूर्वक) वैसे तू गाय का दूध निकाल लेगी क्या?
पायल- यार ढंग से तो नहीं निकालना आता. लेकिन फिर भी थोडा बहुत काम आने जितना तो निकाल ही लूंगी. बाकी का बछड़ा पी लेगा..
आदित्य- ये भी है. वैसे एक बात कहूं?
पायल- बोल दे.
आदित्य- मुझे गाय का दूध निकालना आता है अच्छे से.
पायल- अरे! वाह, फिर तो ठीक है. चल फिर जल्दी चल. आज का सारा काम तेरे नाम. हा हा हा.
आदित्य- कोई न चल अब जल्दी चल.
इतना कहते हुए वे दोनों तेज गति से घर की ओर चलने लगे.
इधर फॉर्म के मुख्य गेट के पास कम से कम पचास आदमी खड़े है. आदित्य के पिताजी, गुरमीत उन सब के बीच में है. एक सफ़ेद गाड़ी भी खड़ी है. उनके सामने टौमी और महेश भी खड़े हैं. वे वापस आ गए हैं लेकिन ट्रेक्टर अब भी दिखाई नहीं दे रहा है. आदित्य पायल को बाय बोलकर वापस आने का वादा करता है लेकिन जैसे ही वह फार्म के मुख्य दरवाजे के पास पहुँचता तो वह इतने सारे लोगो को एक साथ देखकर आश्चर्यचकित हो जाता है. उसे महेश और टौमी दोनों दिख जाते हैं लेकिन ट्रेक्टर दिखाई नहीं देता है. वह सुभाष को आवाज देता है- सुभाष भैया ज़रा इधर आना.
सुभाष धीरे-धीरे चलकर उसकी तरफ आता है. वह भी उदास है. वह जैसे ही आदित्य के पास पहुँचता है. आदित्य उससे पूछता है- सुभाष भैया आज इतनी भीड़ क्यों है फार्म में और ट्रेक्टर भी दिखाई नहीं दे रहा है?
`अरे! तुझे नहीं पता?`, सुभाष आश्चर्यचकित होकर उससे पूछता है.
आदित्य- (आश्चर्य से) नहीं तो भैया मुझे तो नहीं पता. आप बताए न क्या बात है?
सुभाष- अरे! यार तुझे कैसे पता नहीं है? तुझे तो सबसे पहले पता चलना चाहिए था. मुझे भी आज सुबह ही पता चला था की..
आदित्य- क्या पता चला था भैया? आप जल्दी से बताओ न?
सुभाष- इधर नहीं चल मेरे साथ चल..
वह आदित्य को एक गोदाम की तरफ ले जाता है. आदित्य उत्सुकतावश उसके साथ जाता है. सुभाष गोदाम के टीन शेड के निचे जाकर रुक जाता है.
`अब बताओ भी न भैया बात क्या है?`
सुभाष- बहुत बुरा हुआ आदि. हमारे ट्रेक्टर को पुलिस ने पकड़ लिया हरियाणा-राजस्थान बोर्डर पर.
आदित्य ( आश्चर्यचकित होकर) क्या? लेकिन क्यों? ऐसा क्या किया टौमी अंकल और महेश चाचा ने?
सुभाष- ये सब समझ नहीं आएगा तुम्हारे.
आदित्य- आप बोलिए न भैया. तेल लाने तो हर बार जाता है ट्रेक्टर अबकी बार ही क्यों पकड़ा बोलिए न भैया?
सुभाष- तुझे शायद पता नहीं होगा. जब किसी दूसरे राज्य से डीजल या पेट्रोल लाया जाए तो उसके लिए तेल का नेशनल लेवल का परमीट होना अनिवार्य है.
आदित्य- लेकिन पहले भी तो काफी सालो से हमारे फार्म में हरियाणा से ही तेल लाया जाता था.
सुभाष- हां! तुम सच कह रहे हो पहले भी तेल लाया जाता था लेकिन शायद तुझे पता होगा की हरियाणा से जब राजस्थान में डीजल लाया जाए तो उसकी लिमिट नौ सो लीटर के लगभग है. अगर उससे अधिक कोई बिना परमीट अपने निजी कार्यों के लिए तेल लाता है तो वो तस्करी की श्रेणी में आता है.
आदित्य (उदास होकर) तो क्या टौमी चाचा हमारे ट्रेक्टर से ज्यादा तेल लेकर आ रहा थे?
सुभाष- हाँ! ग्यारह सौ लीटर लेकर आ रहे थे. इस वजह से बीच में किसी आर.टी.ओ. ने रोक लिया और ट्रेक्टर को पकड़ लिया.
आदित्य के पावों तले जमीन खिसक चुकी थी. उसकी सारी की सारी प्रसन्नता धूमिल सी हो गई. ऐसा लगा जैसे सबकुछ ख़त्म हो गया.
`अब क्या होगा भैया?`, आदित्य ने उदास होकर कहा.
सुभाष- कुछ भी पता नहीं है आदि. तस्करी का मामला है तो केस को निपटाना बहुत मुश्किल है. हालाँकि टौमी को जमानत मिल गई है लेकिन..
आदित्य- लेकिन भैया टौमी अंकल और महेश चाचा को क्या पता नहीं था की नौ सौ लीटर से ज्यादा डीजल नहीं लाना है?
सुभाष- मैंने सुना था की विजय चाचा ने सब बताया था लेकिन..
आदित्य- (क्रोधित होकर) क्या! लेकिन उन्होंने अनसुना कर दिया?
सुभाष- हाँ! आदि. शायद उन्हें लगा होगा की थोडा ज्यादा डलवा लेते हैं. लेकिन तू उदास मत हो सब ठीक हो जाएगा.
आदित्य (उदास होकर) कुछ ठीक नहीं होगा भैया. टौमी और महेश चाचा ने ये सब ठीक नहीं किया.
आदित्य की आँखों से आंसू झलक पड़े. वह लड़खड़ाते हुए पेरो से घर की तरफ चल दिया. सुभाष को बहुत दुःख हो रहा था की उसे ये सब आदित्य को नहीं बताना चाहिए था लेकिन अब कुछ भी नहीं हो सकता था. आदित्य उदास होकर घर की तरफ चल देता है तो उधर सुभाष भी वापस पूरे मामले को जानने के लिए आ जाता है.
क्रमश..
अध्याय-
15
आदित्य चुप चाप अपने घर के अंदर जाता है. उसकी माँ रसोई घर में चाय बना रही है. उसके भाई-बहन दूसरी तरफ खेल रहे हैं. वह बिना किसी से बोले अपने कमरे के अंदर जाता है. उसे अंदर जाते हुए उसकी माँ देख लेती है. वह स्वयं दुखी है. वे उसके कमरे में जाती हैं. आदित्य अपने बस्ते को टेबल पर रखता है और शांत होकर बैठ जाता है.
`क्या बात है? आज उदास क्यों है?`, आदित्य की माँ उससे प्यार से कहती है.
आदित्य (दुखी होकर) अगर यही सवाल मैं आपसे करूं तो माँ आपका क्या जवाब होगा? आपने तो मुझे एक ही झटके में पराया कर दिया.
सरोज- ऐसा क्या कर दिया मैंने?
आदित्य- क्या कर दिया? क्या नहीं किया माँ तुमने? तुमने और पापा ने तो मुझे घर का सदस्य तक नहीं माना. हमारे ट्रेक्टर को तस्करी के केस में पकडे हुए दो दिन हो गए थे.लेकिन आपने मुझे बताना जरुरी ही नहीं समझा. कल से आप मुझ पर गुस्सा निकाल रही थी. मैं सोच रहा था की आप मुझसे नाराज हो लेकिन बात तो कुछ ओर ही थी. मैं तो कुछ भी नहीं हूँ. इस घर में आपके लिए.
सरोज (सर पर हाथ रखने का प्रयास करते हुए) तुम्हे बताते तो क्या कर लेता? और मुझे तुम्हारे पापा ने कहा था की तुझे न बताऊँ. लेकिन तुम्हे ये सब किसने बताया?
आदित्य गुस्से में खड़ा होते हुए कहता है- कोई भी बताए माँ लेकिन आपने नहीं बताया. वैसे भी मैं इस घर में आपके लिए कोई मायने नहीं रखता.
उसकी माँ उदास होकर उसका हाथ पकड़ते हुए कहती है- ऐसा कुछ भी नहीं है. तुम कुछ भी अनाप सनाप मत बोलो. चल अब खाना खा ले. वैसे भी टौमी की जमानत हो गई है तो क्या पता सब ठीक हो जाए!
आदित्य- अब आप झूठा प्यार मत जताओ मेरे ऊपर. मैं जा रहा हूँ.
आदित्य बाहर जाने लगता है तो उसकी माँ उसे रोकते हुए कहती है- आदि, बेटा इतनी भी नाराजगी कैसी? हम दोनों के लिए बहुत मुश्किल था. हम नहीं चाहते थे की तुम चिंता करो और तुम्हारी पढ़ाई डिस्टर्ब हो.
आदित्य- अब मुझे कुछ भी नहीं सुनना माँ और हाँ, मुझे बंदरिया के घर में उसे कुछ काम करवाना है तो देर से आऊंगा. आप मेरा इन्तजार मत करना.
सरोज- अरे! पागल हो गए हो क्या? इतना गुस्सा आ रहा है वो भी मेरे प्यारे बेटे को.
आदित्य- अगर मैं आप दोनों का प्यारा बेटा होता न तो सबसे पहले आप ये बात मुझे बताते. समझी. खैर जाने दो मुझे अब इस विषय पर कोई बात नहीं करने.
सरोज- अरे! ये क्या बात हुई..
उसकी माँ उसके सर पर हाथ रखकर प्यार जताने की कोशिश करती है. लेकिन आदित्य उनके हाथ को दूर कर देता है- नहीं माँ अब मैं नहीं सुनने वाला. मैं जा रहा हूँ.
फिर आदि बाहर की ओर जल्दी से निकाल जाता है. उसकी माँ पीछे से उसे आवाज देती ही रह जाती है-
सरोज- अरे! आदि बेटा.. अरे रुक न.
लेकिन आदि रुकता नहीं है. वह बिना बात किए ही पायल के घर की तरफ निकल जाता है. वह उदास है. आज पहली बार आदित्य और उसकी माँ के मध्य झगडा हुआ था. वह रास्ते में जब देखता है तो अब जो लोग इकठ्ठे थे वो सारे जा चुके हैं. वह शीघ्र ही पायल के घर पहुँच जाता है. वह घर में अकेली ही है. उसके पिताजी बाहर खेतों में काम पर गए हुए थे. वह अपने बाबा के नहाने के लिए पानी गर्म कर रही थी. आदित्य जैसे ही उसके आंगन में प्रवेश करता है तो उसे उदास देखकर बोलती है- अरे! क्या हुआ लंगूर? उदास नजर आ रहे हो? और आज हमारे फार्म में इतने सारे लोग क्यों खड़े थे?
आदित्य अब भी उदास है. उसकी आँखों से आंसू झलक पड़ते हैं. पायल अपनी जगह से खड़ी होती है. वह उसके पास जाकर पूछती है- बोल न अब मुझे भी नहीं बताएगा क्या?
आदित्य (उदास होकर) तुझे पता है बंदरिया? मेरे माँ-पापा ने मुझे एक ही झटके में पराया कर दिया. हमारे फार्म का ट्रेक्टर तस्करी में परसों पकड़ा गया था.
पायल (आश्चर्य से) क्या! लेकिन ये सब कैसे हुआ?
आदित्य- पापा ने टौमी अंकल और महेश चाचा को तेल लाने भेजा था...
आदित्य जैसे-जैसे पूरी बात बताता है. पायल का चेहरा पीला पड जाता है. वह भी उदास हो जाती है. उन दोनों के बीच कुछ देर के लिए शांति सी छा जाती है.
`तुम्हारे माँ पापा से तुम्हारी नाराजगी जायज है लंगूर लेकिन..,` पायल चुपी तोड़ती है.
आदित्य- लेकिन क्या पायल?
पायल- लेकिन लंगूर, तुम भी तो ज़रा सोचो की अगर उनकी जगह तुम होते तो क्या करते? उन्हें तुम्हारी पढ़ाई की फ़िक्र हो रही होगी. इसके अतिरिक्त तुम दुखी भी हो सकते थे. इस लिए ही अंकल ने तुम्हे न बताने का निर्णय लिया होगा.
आदित्य- लेकिन पायल फिर भी..
पायल- फिर क्या लंगूर? अगर हमारे पेरेंट्स ऐसी बात हमें नहीं बताते हैं तो इसके पीछे के बहुत से कारण है. चल अब तू ये बता क्या यह मामला अब खत्म नहीं होगा कभी भी?
आदित्य- कुछ भी नहीं पता पायल की केस का क्या होगा? सेठजी भी लगातार पुलिस के सम्पर्क में हैं. अब फार्म उनका है. ट्रेक्टर उनका है तो ज्यादा दिक्कत हो उन्हें ही होनी है. हालाँकि टौमी अंकल को जमानत मिल गई है लेकिन ट्रेक्टर का क्या होगा कुछ पता नहीं है?
पायल- किसी ने कुछ कहा नहीं?
आदित्य- हाँ! कहा न. माँ ने कहा है की शायद पांच-चार दिन में ठीक हो सकता है सबकुछ.
पायल-(मुस्कुराते हुए ) अरे! वाह, बढ़िया फिर तो ठीक है. चल कोई न तुम चिंता मत करो. शिवजी सब बढ़िया कर देंगे.
आदित्य- (मुस्कुराते हुए) आई होप सो.. चल हम अब बता मुझे क्या काम करना होगा? खामखा तुम भी उदास हो गई.
पायल- हम्म... बताती हूँ. सबसे पहले मैं गाय को चारा डालती हूँ और तुम..
आदित्य- और मैं..
पायल- तुम्हे गोबर उठाना होगा न.
पायल जोर-जोर से हँसना शुरू कर देती है.
आदित्य- तेरी तो बंदरिया..
और फिर वह उसकी तरफ गुस्सा करता है.
पायल- गुस्सा मत करो मेरी जान. खून जल जाएगा।
आदित्य मन ही मन गुस्सा होता है लेकिन कुछ भी हो पायल ने उसकी उदासी को एक ही झटके में दूर कर दिया. पायल मन में सोच रही थी की वो उदास न हो।
क्रमश..
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