लेखक राजेन्द्र कुमार शास्त्री ``गुरु`` का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास 

अध्याय- 6

शाम हो चुकी है।  आदित्य का छोटा भाई पार्थिव और उसकी छोटी बहन अदिति दोनों आंगन में खेल रहे हैं. उसके पिताजी आंगन में ही बैठे हैं. उसकी माँ रसोईघर में चाय  बना रही है. उसके पिताजी कुर्सी से खड़े होते हैं और वे कमरे के अंदर जाते हैं. फिर वे जैसे ही अपनी रोकडबही और बाउचर्स को उठाते हैं तो उनकी नजर रोकड़ पर पड़ी एक चाबी पर पड़ती है. वे उसे उठाते ही समझ जाते हैं की यह चाबी तो चेटिंग बोक्स की है. वे धीमे से बुदबुदाते हैं- आज क्या छोडा है साहेबजादे ने?

फिर वे उस बॉक्स को जब खोलकर देखते हैं तो उन्हें पता चलता है की आदित्य ने उनके लिए एक नोट छोड़ा है. वे उसे ओपन करते हैं और जैसे ही रीड करते हैं तो उनकी आँखो में आंसू झलक उठते हैं. वे रुधे हुए गले से कहते हैं- सरोज! ! सरोज, इधर . तेरे साहेबजादे की करतूत बताता हूँ.

सरोज दौड़ती हुई कमरे के अंदर आती हैं. वे आश्चर्यचकित होकर कहती हैं- क्या हुआ? ऐसा क्या कर दिया है आदि ने?

विजय कुमार नोट को आदि की माँ के हाथ में थमाते हुए कहता है- ये लो. इसे पढो सब अपने आप पता चल जाएगा.

सरोज- ठीक है.

फिर सरोज उस नोट को खोलती है और उसे पढना शुरू करती है-

डिअर पापा,

मुझे पता था कि आप पिछले तीन दिनों से रोकड़बही के दस हजार रुपयों को लेकर चिंतित थे. इस लिए मैंने सोचा क्यों मैं आपकी मदद कर दूं? कल शाम को मैंने आपको बोला भी था लेकिन आप नहीं माने. इस लिए रात को आप सब के सोने के बाद मैंने सभी बाउचर्स का रोकड़ के साथ मिलान करना शुरू किया तो आई फाउंड आउट की वो दस हजार रूपये आपने पिछले महीने की इक्कीस तारीख को गुरमीत चाचाजी को उनके लड़के की पढाई के डोनेशन वास्ते दिए थे. आपने उन पैसो को बाउचर में तो लिख दिया था लेकिन किसी कारणवश आपने उन पैसों की रोकड़ में एंट्री नहीं की थी. खैर कोई अब उनका पता चल गया है. आप पिछले महीने की इक्कीस तारीख के बाउचर को देखें मैंने वहां अंडरलाइन कर दिया है और हाँ! थैंक यू कहने की कोई जरुरत नहीं है. एट लीस्ट यू आर माय फादर. वर्ल्डस बेस्ट फादर फॉरएवर.

लव यू सो मच.

योर्स

आदि

पूरा नोट पढने के बाद आदि की माँ की आँखों में भी आंसू जाते हैं. वह अपनी आँखों के आंसू को पोंछते हुए कहती है- ये लड़का तो सच में पागल है. इसलिए ही मैं सोचूँ की आज उसकी आँखे लाल क्यों है? शायद वह कल पूरी रात को सो नहीं पाया होगा...

विजय कुमार मुस्कुराते हुए कहते हैं- हाँ! बिलकुल.. अब तो उसकी खेर नहीं. आने दो आज उसको..

सरोज- हाँ! बिलकुल. मैं भी आज उसके लिए एक नई झाड़ू निकाल लूंगी.

वे दोनों फिर एक दुसरे की तरफ मुस्कुराते हैं.

इधर स्कूल की छुट्टी हो जाती है. सभी स्टूडेंट्स जल्दी-जल्दी घर की तरफ जाते हैं. आदि छुट्टी होते ही जल्दी से विद्यार्थियों के मध्य से निकलता हुआ घर की तरफ चला जाता है तो वही पायल बस दूर से उसकी पीठ ही देख पाती है. उसे लगता है की वह स्कूल के गेट के बाहर उसका इंतजार करेगा लेकिन वह उसके लिए नहीं रुकता है और तेज कदम बढाते हुए आगे बढ़ जाता है. शायद उसने उसकी गलती के लिए उसे माफ़ नहीं किया है.

इधर पायल जल्दी से जैसे ही मुख्य द्वार की तरफ दौड़कर आती है तो उसे वहां आदि नजर नहीं आता है. वह द्वार के पास खड़ी अपनी एक सहपाठी मुस्कान से पूछती है- ! मुस्कान, तुमने उस लंगूर को देखा क्या?

मुस्कान हँसते हुए कहती है- कौन लंगूर? लंगूर बेचारा इस गाँव में क्या खाने आएगा?

पायल- अरे! यार.. आई मीन. आदि को देखा क्या?

मुस्कन- अरे! आदि.. वो.. वो तो अभी-अभी पांच मिनट पहले ही निकला है.

`क्या!` पायल आश्चर्यचकित होकर कहती है.

फिर वह भागते हुए बुदबुदाती है- साले लंगूर आज तो मैं तुझे नहीं छोडूंगी. तेरी पूछ को खींचकर तेरे हाथ में दे दी तो मेरा नाम पायल नहीं..

फिर वह तेज दौड़ने लगती है. उसके बेग से टिफिन और ड्राइंग बॉक्स के आपस में टकराने की आवाज आती है.

इधर आदित्य गाँव से बाहर निकल गया है और फॉर्म की तरफ जाने वाले मुख्य मार्ग पर गया है. वह उदास है. और बहुत तेज चल रहा है.

इधर दूसरी ओर पायल तेज दौड़ रही है. वह अभी गाँव में ही है लेकिन उसे आदित्य दूर-दूर तक भी नजर नहीं आता है. इस लिए वह पुन: तेज दौड़ना शुरू कर देती है. वह कुछ दूर जाकर दौड़ना बंद कर देती है क्योंकि उसकी साँस फूल जाती है. वह पुन: बुदबुदाना शुरू कर देती है- कमीना. कुता कुछ देर भी नहीं रूक सकता था क्या? गधा, कुता, बंदर, उल्लूथोड़ी बहुत भी नहीं सोचता है मेरे लिए.. कमीने आज जैसे ही तुझे पकड लिया मैं तुझे नहीं छोड़ने वाली.. तेरी तो तू तो बस... अब एक बार मिल जाईयों मुझे..

फिर वह पुन: तेज दौड़ना शुरू कर देती है. इतनी देर में वह गाँव से निकल जाती है और मुख्य रास्ते पर जाती है. वह जोर से आवाज देती है- लंगूर... अरे! ओये लंगूर..

लेकिन उसे आदि नजर नहीं आता है.

इधर आदि अपनी उसी रफ़्तार में चल रहा है. वह निराश नजर रहा है. वह जैसे ही अगला कदम उठाता है उसे अचानक ही पायल की आवाज सुनाई देती है. ``ओये! लंगूर रूक जा..कमीने..`` उसके पीछे पायल दौड़ रही है लेकिन आदि रुकता नहीं है.

इधर पायल पुन: दौड़ना शुरू कर देती है. उसे आदि दूर से दिखाई दे रहा था. उसने फिर से उसे रोकने के लिए आवाज लगाईं- ओये! लंगूर रुक जा.. तुम्हे मेरी सौगंध.. रूक जा लंगूर.

इधर आदित्य को जैसे ही सौगंध की आवाज सुनाई देती है तो आदित्य एक पेड़ के निचे रुक जाता है. लेकिन वह पायल की तरफ नहीं देख रहा होता है. वह दौड़ते हुए उसके पीछे आती है और पीछे से उसके सर पर मारते हुए जोर से कहती है- ओये! लंगूर..

``लिसन! माय नेम इज आदित्या शर्मा नोट लंगूर.. अंडरस्टुड. `` आदित्य क्रोधित होकर कहता है.

पायल- उई! तेरी. मैं तो भूल ही गई की तेरा नाम आदित्य शर्मा है.

फिर वह क्रोधित होकर उसकी गिरबान पकड़कर कहती है- तेरी इस इंग्लिश की माँ की आँख..

आदित्य- मेरी कोलर छोड़.. मैंने कहा पायल मेरी कोलर छोड़..

फिर वह उसे जोर से धक्का देते हुए अपनी कोलर छुड़ा लेता है. पायल उसके धक्के के कारण पीछे हट जाती है. वह आदित्य के बदले हुए व्यवहार से आश्चर्यचकित हो जाती है क्योंकि पहले भी उनके मध्य काफी बार लड़ाई हो चुकी थी लेकिन कभी भी आदित्य इस हद तक नाराज नहीं हुआ था. वह दुखी हो जाती है. आदित्य जैसे ही वापस चलने लगता है पायल उसका हाथ पकड कर उसे रोक लेती है. वह रोने लगती है.

``वाह! आदि, यही होती है क्या दोस्ती? तुझे पता है आदि, मुझे जब मेरे बाबा कुछ कहते हैं तो मुझे कोई परवाह नहीं, माँ भी कहती है तो भी कोई परवाह नहीं....

इतना कहते कहते उसका गला अवरूध सा हो जाता है. उसकी आँखों में आंसूओं की बाढ़ सी जाती है.

``यहाँ तक भूपेश भैया या कोई और गाली भी देता है तब भी मुझे फर्क नहीं. इवन वो अमजद खान भी मुझे अगर कुछ कहता है तो मुझे परवाह नहीं. क्यों? कारण जानते हो? नहीं .. क्योंकि मेरे पास वो लंगूर है जो मुझे हर गलती करने पर डांटता है. मुझे समझाता है. लेकिन आज... लेकिन आज मेरा वही लंगूर मेरे साथ नहीं... आज जब तुम मुझसे रूठ गए तो बहुत तकलीफ हुई आदि.. बहुत.. ऐसा लगा जैसे सब बर्बाद हो गया.. इसके पीछे का कारण मुझे नहीं पता आदि क्या है लेकिन तुम्हारे बगेर मैं दस मिनट भी रह नहीं सकती. आज जब तुम मुझे अकेली छोड़ आए थे तो ऐसा लगा जैसे मैं तुम्हे कभी नहीं पकड़ पाउंगी. ऐसे लगा जैसे किसी ने मेरी आत्मा को मुझसे अलग कर दिया हो. लेकिन तुम.. तुम हो की उस साले अमजद खान की बातों में गए. तुम्हे क्या लगा की तुम जो करोगे वो सब सही है?

``लेकिन.. लेकिन तुम्हे मुझसे झूठ नहीं बोलना चाहिए था.``, आदित्य भी दुखी होकर कहता है.

पायल- तो उसके लिए कमीने माफ़ी मांग रही हूँ .. तू कहे तो मुर्गी बन जाऊं. आई एम सो सॉरी. वैसे भी मैंने सवाल ही तो कॉपी किए थे. उस गब्बर सिंह के बच्चे को तो बात का बतंगड़ ही बनाना आता है..

आदित्य- उन्होंने सही कहा था. मैं ही भूल गया था की एक सच्चा दोस्त क्या होता है? मैं जानबूझकर तेरी भावनाओं में फंसकर तुम्हे नोट बुक दे दी.

पायल- अच्छा! ज्यादा ज्ञान मत दो समझे. वैसे भी मुझे किसी फ्यूचर की कोई परवाह नहीं है क्योंकि तुम हो मुझे सवाल बताने वाले.

आदित्य- अबे! घोंचू. मैं हमेशा ही तुझे सवाल थोड़े ही बताऊंगा?

पायल- हाँ! तुम मुझे हमेशा ही सवाल बताओगे. तुम मुझसे बच नहीं सकते समझे. वैसे भी मैं किसी ओर से सवाल पूछना भी नहीं चाहती.

आदित्य- अरे! पागल मैं हमेशा ही तुम्हे सवाल कैसे बताऊंगा? आई मीन.. जब तुम्हारी शादी हो जाएगी तो फिर मैं ही सवाल थोड़े ही बताऊंगा?

पायल हाँ! तुम ही. तुम ही मुझे हर सब्जेक्ट बताओगे. मेरी शादी के बाद भी.

आदित्य (असंजस की स्थिति में) तुम क्या कह रही हो पायल? मैं तुम्हे कैसे सवाल बता पाउँगा? आई मीन जब तुम्हारी शादी हो जाएगी तो मैं तुम्हारे ससुराल आकर तुझे क्यों सवाल बताऊंगा बुद्धू?

पायल क्रोधित होकर उसकी कोलर पकड़कर कहती हैकमीने! तुम्हे हर बात क्लीयरली बतानी पड़ती है क्या? गधा कहीं का. आई लव यू.. और जब हमारी दोनों की शादी हो जाएगी तो तुम ही मुझे सारे सवाल बताओगे. कुछ सुनाई दिया. चल दोबारा बोलती हूँ- आई लव यू.. और हाँ! मुझ जैसी बंदरिया को तुम्हे हर रोज सवाल बताने होंगे.. समझे.. और यही कारण है की मैं तुम्हारे सवालों की कॉपी करती हूँ क्योंकि तुम मेरे साथ रहोगे तो मुझे मेरे फ्यूचर की कोई टेंशन नहीं है. और हाँ! कल जाकर उस आमजद खान को भी बोल दूँगी..

आदित्य- क्या आई लव यू?

पायल को उसकी बात से हंसी जाती है. वह उसकी गिरेबान पकड़कर जोर से कहती है- कमीने! तू नहीं सुधरने वाला. अच्छा तुझे पता था की मैं तुमसे प्यार करती हूँ?

आदित्य- हाँ!

पायल- तो पहले तुम्ने कहा क्यों नहीं?

आदित्य- क्योंकि तुम्हे है मुझे नहीं.

पायल-( उदास होकर) कमीने सच-सच बता की तू किससे प्यार करता है?

आदित्य- ... ..

पायल- बीच में ही उसकी गिरेबान पकड़कर उसे रोकते हुए कहती है- अगर कमीने तुमने उस तीखे नाक वाली प्रिया का नाम लिया तो मैं तेरी जीभ निकाल लूंगी.

आदित्य- मैं.. मैं..

पायल- क्या मैं.. मैं बकरी की तरह बोल रहा है.. चल बता की तू मुझसे प्यार करता है की नहीं... बोल..

आदित्य- हाँ!

आदित्य के इतना कहते ही पायल उछलकर उससे गले मिलती है.

पायल- आई लव यू.. आई लव यू.. आई लव यू लंगूर.. आई लव यू सो मच..

आदित्य- अरे! बस.. बस..

पायल- अच्छा! एक बात बता तुमने मुझे बताया क्यों नहीं की तू मुझसे प्यार करता है?

आदित्य- क्योंकि मैं कंफ्यूजन में था.

पायल- किस बात के लिए?

आदित्य- मैं सोच रहा था की एक लंगूर की जोड़ी भला एक बंदरिया से कैसे जमेगी?

पायल- क्या कहा तुमने.. कमीने..

इतना कहकर वह उसे पीटना शुरू कर देती है..

``अरे! बस.. बस.. बहुत हो गया.. मैं कोई तेरे बाप की प्रॉपर्टी नहीं हूँ जो तू जब दिल करे अपने हाथ साफ़ कर ले..``

पायल-अच्छा! लेकिन तू मेरी प्रॉपर्टी जरुर है. वैसे मेरे लंगूर को गुस्सा भी आता है?

आदित्य- बिलकुल आता है.. और हाँ! मेरा भी टाइम आएगा.

पायल- फिर क्या करेगा तू?

आदित्य- जब मेरा टाइम आएगा मोटी तो फिर मैं सिक्स पैक एब्स वाली बॉडी बनाऊंगा और फिर जब तुम लड़ोगी तो तुझे हरा दूंगा..

पायल- अच्छा! तेरी तो.. बड़ा आया....

फिर पायल मजाक में उसके पीछे उसे पीटने के लिए दौड़ने लगती है. आदित्य भी बहुत तेज दौड़ता है. आखिर कार वे कुछ दूर आगे जाकर रुकते हैं और जोर-जोर से हँसना प्रारम्भ कर देते हैं. कितना अद्भुत अहसास था उन दोनों के लिए की आज उनका रिश्ता दोस्ती से प्रेम में बदल गया.

क्रमश:..........

अध्याय- 7

पायल और आदित्य दोनों हाथी के मदमस्त जोड़े की भांति एक दूसरे में मगन होकर चल रहे हैं. आज उनकी दोस्ती को एक नया नाम मिल गया था. यही वजह थी की दोनों का किशोर मन हिरण की भांति कुलांचे भर रहा था. वे दोनों एक दूसरे को चकोर पक्षी की भांति देख रहे थे. आज दोनो को एक दूसरे की आँखों में कुछ अलग ही नजर आता है. वे दोनों एक दूसरे की आँखों में डूब जाना चाहते थे. खैर प्रेम होता ही कुछ ऐसा है. इसकी शुरुआत अद्भुत होती है. मुस्कराहटो का आदान प्रदान होना तो एक आम सी बात होती है और प्रेम का इजहार करना तो सूई में धागा पिरोने से भी ज्यादा मुश्किल होता है. लेकिन उन दोंनो तो इज़हार भी कर दिया और एक दूसरे के प्रेम को सहर्ष स्वीकार भी कर लिया. अब भला उन दोनों को इससे ज्यादा क्या चाहिए था?

. खैर उन दोनों का प्रेम अब धीरे-धीरे परवान चढ़ रहा था. जहाँ पायल की गहरी झील सी आँखे आदि को आकर्षित कर रही थी तो वही पायल को आदि की मुस्कराहट सरसों के फूल से भी ज्यादा प्रिय लगी. वे धीरे-धीरे अपने घर की ओर बढ़ रहे थे. अब जिस आदि की चाल किसी चीते के समान थी जाने अचानक प्रेम ने उसकी चाल को क्यों मंथर कर दिया? जो पायल कभी उसे हाथी का बच्चा नजर आता था और वह उसकी चाल की मजाक बनाता था आज वह उसी पायल के संग उसकी ही रफ़्तार में चलने को तैयार था या यूं कह लो की उस किशोरी के प्रेमजाल में वो बंध चुका था. सूरज भी डूब चुका था और गोधूली बेला का समय अत्यंत मनोरम था. लेकिन उन दोनों को उनके नयनो का संसार शायद उस प्रकृति से भी अच्छा लग रहा था. शायद यही कारण था की आज वे वक्त से एक घटा लेट थे. आखिरकार वे दोनों पायल के घर की सीध में आकर खड़े होते हैं. पायल आदि की तरफ मुस्कुराती है बदले में भी मुस्कराहट लौट आती है. आदि जैसे ही अपने घर की ओर जाने लगता है पायल उसे पीछे से आवाज देती है- ओये! लंगूर..

आदित्य- हाँ! बोल बंदरिया.

पायल- क्या आज शाम को मैं तेरे घर सकती हूँ?

आदित्य (आश्चर्यचकित होकर) क्या! ये क्या बोल रही है? तू मेरी माँ को नहीं जानती वे कितनी स्ट्रिक्ट है. अगर कहीं हम दोनों को एक साथ...

पायल- चुप कर कमीने.... मैं तुमसे प्यार करने नहीं रही हूँ. कुछ भी उटपटांग सोचता है तू. मैं तो तुमसे गणित के सवाल पूछने रही थी..

आदित्य- ओह! ये बात थी क्या? मैं तो कुछ ओर ही सोच रहा था.

पायल- हाँ! वो तो तू सोचेगा ही.. मैं सब जानती हूँ तेरे दिमाग में क्या-क्या चलता है? कमीना कहीं का?

और पायल उसकी ओर मुस्कुरा देती है. इधर आदि भी मुस्कुरा देता है. वह उससे कहता है- ठीक है. कोई बात नहीं तू सकती है. लेकिन खाना खाकर आना मोटी.

पायल- क्या कहा तेरी तो? कमीने पत्थर से सर फोड़ दूँगी तेरा..

पायल आदित्य के पीछे दौड़ती है लेकिन वह उसके हाथ नहीं आता है. फिर दोनों दूर से ही एक दूसरे की तरफ मुस्कुराते हैं. उसके बाद आदि अपने घर की ओर चला जाता है तो पायल अपने घर की ओर.

आज पायल और आदि दोनों अपने घर देर से पहुँचते हैं. सर्दियों का वक्त हैं इस कारण अँधेरा जल्दी ही होने लगता है. आदि जैसे ही अपने घर के अहाते में प्रवेश करता है उसकी एक बारह वर्षीय बहन (आरती) गृहकार्य कर रही है. वह आज ही अपने मामा के घर से आई थी. वह फॉर्म के पास में ही स्थित एक प्राथमिक विद्यालय में पढने जाती है. आरती के पास में ही पार्थिव बैठा है तो अदिति भी उसी चारपाई पर बैठी है जिस पर आरती बैठी हुई है. एक काला कुता भी उन तीनो के पास बैठा हुआ है. वह जैसे ही अपने घर के अहाते में प्रवेश करता है पार्थिव की नजर उस पर पड़ जाती है. ``भैया गया...`` वह दौड़कर आदि के जाकर गले लगता है.

आदि उसका माथा चूमता है. तब तक आरती को भी पता चल जाता है की आदि घर चुका है. वह भी अपनी पुस्तकों को बंद कर देती है और आदि की तरफ जाती है. वह उन तीनो को एक-एक चोकलेट देता है.

`तुम्हे कौन छोड़कर गया आरती?`

आरती- मामा छोड़कर गए थे.

आदित्य- इतनी जल्दी वापस ही चले गए?

आरती- हाँ! उन्हें कुछ काम था. वैसे आज वो आपके फेवरेट मोतीचूर के लड्डू लेकर आए थे. जाओ अभी ले लो मम्मी से.

` अरे! वाह, क्या बात है. मैं अभी जाता हूँ.` फिर वह जल्दी से घर के अंदर जाता है तो उसके पिताजी बरामदे में बैठे कुछ हिसाब कर रहे हैं. वे जैसे ही आदि को देखते हैं प्रसन्न हो जाते हैं और मुस्कुराते हुए पूछते है- आज इतनी देर कर दी आदि आने में?

आदित्य- बस पापा आज थोडा थका हुआ था इस कारण जल्दी नहीं चल पा रहे थे.

विजय कुमार- ओह! कोई बात नहीं. आज तेरे मामा आए थे. तुम्हारे लिए लड्डू छोडकर गए हैं जा जाकर अपनी माँ से ले ले..

आदित्य- हाँ! पापा अभी लेकर आया.

फिर वह अपना बस्ता अपने कमरे में छोड़कर रसोइघर में जाता है. रसोईघर में उसकी माँ सब्जी बना रही है. वह अपनी माँ को दूर से कहता है- माँ! मामा जो लड्डू छोड़कर गए थे वो कहाँ है?

आदि की माँ धीमे से निचे गर्दन करके मुस्कुराती है फिर कहती है- हाँ! जाओ देती हूँ लड्डू तुम्हे.. आजा..

``आया..`` और आदि जैसे ही अपनी माँ के पास लड्डू लेने अंदर जाता है. उसकी माँ चिमटा उठा लेती है. ` ले मैं देती हूँ तुझे लड्डू.. तुझे बड़े दिन हो गए..`

``अरे! माँ छोड़ दे बस.. बस.. ` फिर आदि अपना बचाव करने के लिए जैसे ही भागने लगता है उसके पापा उसे पीछे से पकड़ लेते हैं.

``सरोज! आज तो तेरे इस साहेबजादे को मत छोड़ना. इसे बड़े दिन हो गए...``

``पापा छोड़ दो प्लीज.. और माँ.. तू तो मेरी माँ है.. यार छोड़ दे .. मैंने गलत क्या किया है? पहले मेरी गलती तो बताई जाए..``

सरोज- गलती.. गलती तो बेटा तू जानता है की तेरी क्या गलती है? लेकिन तेरी उस गलती की वजह से मुझे ख़ुशी है इस कराण मैं प्यार जता रही हूँ.. तो चुप चाप एक चिमटे की तो खा ही ले.. अजी आप इसे कसकर पकड़ो ..

विजय कुमार- पकड लिया.. पकड़ लिया... मार.. मार

आदि मन में सोचता है- हे! भगवान, अजीब लोग हैं इस धरती पर.. एक तो वो बंदरिया है जो प्यार जताने के लिए मेरे सर पर मारती है और एक ये माँ जो प्यार भी चिमटे से जताती है..

आदि जैसे ही ये सब सोचता है उसकी माँ चिमटे को छोड़ देती है और उसके कान को पकड़कर खींचते हुए कहती है- क्यों करता है आदि ऐसे काम जिनसे हमें ये अहसास हो जाता है की हम कहीं कहीं तुम्हारा ध्यान नहीं रख रहे हैं... अब कल रात को सोये बगेर तुम्हे रोकड़ का काम करने की क्या जरुरत थी.. बता..

आदित्य- क्योंकि माँ मैं पापा को परेशांन नहीं देख सकता.

विजय कुमार- अच्छा! बड़ा आया. आगे से अगर ऐसा किया तो मार पड़ेगी तुझे समझा..

आदित्य- हम्म.. समझ गया.. वैसे माँ मुझे चिमटा ही खाने को मिलेगा या तुम लड्डू भी दोगी मुझे... बोल..

सरोज- अरे! हाँ ये तो भूल ही गई मैं तो.... चल . देती हूँ..

आदित्य के पिताजी उसे प्यार से देखते हैं. वह अपनी माँ के पीछे-पीछे जाता है. उसकी माँ एक टोकरी में उसे कुछ लड्डू खाने के लिए देती है. वह उन्हें लेकर अपने कमरे में चला जाता है.

क्रमश...

अध्याय-8

फार्म की कच्ची सडक पर पायल बेटरी लेकर चल रही है. उसके हाथ में गणित की एक पुस्तक और नोटबुक है. वह एक प्यार भरा गाना गुनगुनाती हुई जा रही है. आज उस किशोरी के चेहरे पर एक अलग ही किस्म का नूर है. उसकी आँखे फार्म में स्थित एक खम्बे की टयूब लाइट के प्रकाश के गिरने की वजह से किसी सितारे सी चमक रही हैं. वह फार्म में स्थित एक गोदाम के पास से होकर आदित्य के घर की ओर जा रही है. घर के आंगन में प्रवेश करने के बाद वह सीधे ही आदित्य के कमरे के अंदर प्रवेश कर जाती है. आदित्य चुप-चाप गणित के सवालों को दोहरा रहा है. उसने रजाई ओढ रखी है. इधर पायल बिना आवाज किए अपने पंजों के बल चलकर उसके पीछे जाती है और उसके सर पर पीछे से मारते हुए कहती है- हाय! लंगूर..

आदित्य- (गुस्सा होकर)- तुम्हे कितनी बार कहा है पायल. मुझे मारा कर मत. मैं तेरे बाप की प्रॉपर्टी नहीं हूँ. समझी..

पायल उसके कान के करीब जाती है और प्यार से कहती है- मेरे बाप की प्रॉपर्टी का तो पता नहीं लेकिन तू मेरी प्रॉपर्टी जरुर है मेरे लंगूर.

आदित्य- ओह! अच्छा.. कान के निचे लगाऊंगा की अक्ल ठिकाने जाएगी..

पायल- ओह! अच्छा जी. तो मार लो रोकता कौन है तुम्हे..

फिर वह रजाई को उतार देती है और उसकी रजाई को आधा खुद भी अपने पांवो पर ओढ लेती है और प्यार भरी नजरों से उसकी तरफ देखती है..

आदित्य- देख पायल मुझे ऐसे मत देख अब..

पायल- क्यों क्या होता है? मैं तो देख रही थी की तेरी आँखे कितनी छोटी हैं.

आदित्य- अच्छा! अब तू यहं बकवास करने आई है या कुछ पढने भी आई है?

पायल- अरे! हाँ मैं तो भूल ही गई की आज तो तुम मेरे गुरुदेव हो.. जय हो गुरुदेव की. चलो पढाओ फिर मुझे आज..

आदित्य- बकवास कम कर और चुप-चाप वहां से खड़ी होकर मेरी पास जा..

पायल (प्यार से देखते हुए) अरे! वाह! आज तो खुद बुला रहे हो.

फिर वह उसे चिढाते हुए उसके करीब जाती है और पुन: उसकी रजाई को पांवो पर ओढ लेती है.

पायल- चलो बताओ.. क्या पढाओगे आज..

आदित्य- हाँ! चल सबसे पहले एक काम करते हैं. मैं तुम्हे टिक्नोमेंट्री बताता हूँ. क्योंकि यही सबसे पहले तुम्हे कम आती है. एक काम कर तू पहले सभी मान ढंग से याद कर ले. फिर सवाल बताना शुरू करूँगा..

पायल- ओके! लेकिन ये मान मुझे याद नहीं रहते हैं. क्या तुम याद करवा सकते हो?

आदित्य- ओके!

फिर आदित्य उसे एक-एक करके सभी मान उसे याद करवाना शुरू करवाता है. इस दरमियाँ पायल को याद करने में दिक्कत रही थी लेकिन आखिरकार उन्हें याद कर लेती है. वह बीच-बीच में आदित्य की तरफ प्यार भरी नजरों से देख भी रही होती है.

आदित्य जैसे ही सभी सवालों को बता देता है. फिर वह उसे उसकी नोट बुक और गणित की पुस्तक देते हुए कहता है- ये लो बंदरिया. अब सारे सवाल हो गए हैं. अब मुझे नींद रही है.

`एक सवाल अब भी बाकी है.`, पायल उसकी आँखों में देखते हुए कहती है.

आदित्य खुश होकर- कौनसा?

``कमीने! मुझे तू घर कब छोड़कर आएगा. मुझे अब अकेली को जाने से डर लगता है.``, पायल उसके कोहनी मारते हुए कहती है.

आदित्य- आह! सुधर जा बंदरिया. खैर कोई अभी चलते हैं..

फिर आदित्य वहां से खड़ा होता है. पायल भी उसके पीछे-पीछे चलती है. आदित्य बरामदे में आकर अपनी माँ को जोर से कहता है- माँ! ! माँ मैं इस बंदरिया को इसके घर छोड़कर आता हूँ.

सरोज- हाँ! जा लेकिन जल्दी आईयों..

आदित्य- बस अभी जाऊंगा. चल बंदरिया..

ऐसा बोलते ही पायल अपने हाथ से उसके मारने की कोशिश करती है लेकिन वो अपने आप को बचा लेता है. वे शीघ्र ही पायल के घर की सीध में आकर रुकते हैं. रात की करीब ग्यारह बजने वाले हैं. फॉर्म के कुते अलग-अलग राग अलाप रहे हैं. आदित्य पायल की आंखों में प्यार से देखते हुए कहता है- ठीक है बंदरिया.. अब जा जाकर सो जा..

पायल- ठीक है. बाय..

आदित्य( पायल की तरफ प्यार से देखते हुए) बाय..

पायल- ऐसे टुकुर-टुकर क्या देख रहा है लंगूर..कुछ चाहिए क्या?

आदित्य- .... नहीं तो. मुझे क्या चाहिए?

पायल- मैं सब देख रही हूँ की तू कितना कमीना है.

आदित्य- अच्छा! तो अब तुम्हे मेरा कमीनापन ही दिखाता हूँ..

फिर वह उसे अपनी ओर जोर से खीच लेता है.

पायल आउच! देख लंगूर. कुछ किया तो देख लेना मैं माँ को बोल दूँगी..

आदित्य अपने हाथ को पायल की जुल्फों में फिराता है. फिर वह उसकी गर्दन को पीछे से प्यार से पकड़ लेता है..

पायल-(आँखे बंद किए हुए ही कहती है)- रूक जा लंगूर. मैं माँ को बोल दूँगी.

आदित्य- ठीक है बोल देना.

पायल अनायास ही उसकी बाहों में लिपट जाती है. उसका एक मन दूर जाने को करता है तो दूसरा उसकी आगोश में आने को करता है. वही इसी उहापोह में थी की आदित्य ने प्यार से उसका माथा चूमा और कहा- बंदरिया! मेरा प्यार कमीना नहीं हो सकता है. मैंने तुम्हारा माथा भी इस लिए चूमा क्योंकि मुझे तुम्हे यह अहसास करवाना जरुरी हो गया था की मैं तेरे लिए क्या सोचता हूँ समझी..

पायल उसके गले लगकर कहती है- हम्म समझ गई..

फिर वो उसे धक्का देते हुए कहती है- लेकिन तू कमीना तो है ये मैं जानती हूँ..

आदित्य- मैं कमीना नहीं हूँ. पगली..

पायल- देख लूंगी.

आदित्य- देख लेना.. हम सच्चे आशिक हैं मैडम..

और फिर वे दोनों खिलखिलाकर हंस पड़ते हैं. पायल अपने घर की तरफ चली जाती है तो इधर आदित्य भी अपने घर की तरफ चला जाता है. आज वे दोनों ही बहुत खुश हैं क्योंकि आज उन्होंने पहली बार एक दूसरे का सपर्श किया था.

क्रमश..

 अध्याय- 9

सुबह का वक्त है. काले बादलों ने पूरे आसमान को घेर रखा है. उतरी हवाओं के दौर के फिर से चलने की वजह से तापमान निचे गिर चुका है. आदित्य के पिताजी गुरमीत के पास खड़े हैं. उनके पास आदित्य के पिताजी का भाई महेश भी खड़ा है. उनसे कुछ दूर पर ही एक दुसरे ट्रेक्टर के पास श्याम सिंह, टौमी और राम सिंह भी खड़े हैं. उन तीनो की शक्ल पर ईर्ष्या का भाव सपष्ट दिखाई दे रहा है. आदित्य के पिताजी ट्रेक्टर के पीछे जोड़े गए छोटे तेल के टेंकर के अंदर झांककर देखते हैं. फिर वे कहते हैं- ठीक है गुरमीत तुम अभी जाओ तेल लाने. शाम तक थोडा जल्दी ही जाना हमे कुछ काम है.

गुरमीत- ठीक है पाजी..

फिर गुरमीत अपने सर पर गर्म टोपी को पहनता है और जैसे ही ट्रेक्टर को स्ट्रार्ट करने लगता है वो ट्रेक्टर स्टार्ट नहीं होता है. वो फिर से कोशिश करता है लेकिन ट्रेक्टर फिर से भी स्टार्ट नहीं होता है. बार-बार कोशिश करने पर भी जब ट्रेक्टर स्ट्रार्ट नहीं होता है तो आदित्य के पिताजी पूछते हैं- क्या हुआ गुरमीत ट्रेक्टर स्टार्ट क्यों नहीं हो रहा है?

गुरमीत- पता नहीं पाजी क्या दिक्कत हो गई है? मैं देखता हूँ.

फिर गुरमीत ट्रेक्टर से निचे उतरता है और ट्रेक्टर की खराबी की जांच करता है लेकिन काफी प्रयास करने के बाद भी जब ट्रेक्टर स्टार्ट नहीं हुआ तो आदित्य के पिताजी गुरमीत से कहते हैं- गुरमीत शाम तक तुम्हे वैसे भी जल्दी आना होगा. क्या हुआ ट्रेक्टर स्ट्रार्ट क्यों नहीं हो रहा है?

गुरमीत- पाजी, खराबी तो कोई नजर नहीं रही है मुझे. लेकिन यह तो बिलकुल भी नहीं बोल रहा है. क्या करूँ?

``अच्छा! भाई जी अगर आप चाहें तो मैं और टौमी हमारा दूसरा ट्रेक्टर लेकर चले जाए तेल लाने? वैसे भी तेल ही तो लाना है. ``, आदित्य का चाचा महेश बोल पड़ता है.

विजयकुमार- अरे! हाँ! गुरमीत एक काम करते हैं फिर.. टौमी हमारे दुसरे ट्रेक्टर को लेकर चला जाएगा. वरना फिर शाम को देर हो जाएगी. तब तक तुम देख लो की क्या खराबी है इसमें और अगर ठीक हो तो तुम मिस्त्री को लेकर जाओ.

गुरमीत- जी पाजी आप सही कह रहे हैं.

इधर टौमी और बाकी के सभी सदस्य इस बात को जानकार बहुत खुश होते हैं. टौमी उनके पीछे से निकलकर विजय कुमार के सामने जाता है.

विजय कुमार- टौमी तुम महेश के साथ अभी ऐनलाबाद (हरियाणा) जाओ तेल लाने.

टौमी (मुस्कुराते हुए) जी पाजी,

और फिर वह अपने ट्रेक्टर को स्टार्ट करने के लिए जैसे ही जाने लगता है विजय कुमार पीछे से आवाज देता है.

``अरे! ठहरो..``

टौमी- जी पाजी....

विजयकुमार- तुम दोनों जा तो रहे हो लेकिन तुम्हे सिर्फ नौ सौ लीटर ही तेल लाना है इससे ज्यादा मत लाना.

टौमी- क्यों पाजी इससे ज्यादा क्यों नहीं?

विजय कुमार- अरे! सवाल बहुत करते हो. कहा बस उतना ही लाना. हमें इतने की ही जरुरत है तो ज्यादा क्यों लाना है?

टौमी- जी पाजी..

फिर टौमी मन ही मन थोडा गुस्सा करता है लेकिन उसे ख़ुशी इस बात की होती है की आज वे शायद कुछ गड़बड़ कर सकते हैं.

वह शीघ्र ही अपने ट्रेक्टर को स्टार्ट करता है. वे गुरमीत के ट्रेक्टर के टोचन करके खींचते हैं और फिर उसके पीछे लगे छोटे से तेल के टेंकर को खोल लेते हैं और टौमी के ट्रेक्टर के पीछे जोड़ देते हैं. उसके बाद महेश और टौमी दोनों ट्रेक्टर लेकर ऐनलाबाद की ओर निकल जाते हैं. इधर आदित्य के पिताजी थोड़े चिंतित तो होते हैं क्योंकि उनका विश्वास पात्र गुरमीत तेल लाने के लिए नहीं जा पाया लेकिन फिर भी उन्हें विश्वास था की उनका भाई महेश टौमी के साथ गया था.

दरअसल हनुमानगढ़ में स्थित फार्म ऐनलाबाद से ज्यादा दूर नहीं था. देखा जाए तो दोनों ही शहर नजदीक थे. लेकिन डीजल हरियाणा में राजस्थान के मुकाबले तीन रूपये .सस्ता मिलता था. इस लिए फार्म में खफ्त होने वाले डीजल को ऐनलाबाद से ही हर महीने लाया जाता था. अक्सर गुरमीत ही डीजल लाने जाता था क्योंकि वह आदित्य के पिताजी का विश्वास पात्र था. वह कभी भी हेर फेर भी नहीं करता था. लेकिन आज मजबूरी के चलते उन्हें टौमी को ट्रेक्टर लेकर भेजना पड़ा.

इधर दूसरी तरफ आदित्य जैसे ही स्कूल के लिए बाहर निकलने लगता है उसकी माँ पीछे से आवाज देते हुए कहती है- अरे! आदि..

आदित्य (पीछे मुड़कर देखते हुए)- हाँ! माँ.

सरोज- छाता ले जाओ.. आज बादल छाए हुए हैं क्या पता रास्ते में बारिश जाए.

आदित्य- अरे! माँ तुम भी .. आजकल कहाँ बारिश होती है. ये कौनसा अगस्त का महिना है जो बारिश जाएगी?

सरोज- आदि ले जाओ क्या पता जाए!

आदित्य- नहीं आएगी.. तुम भी माँ.. चल मुझे देर हो रही है. मैं जाता हूँ..

इतना कहते हुए आदि बाहर की और भाग जाता है. उसकी माँ पीछे से बुदबुदाती है- ये लड़का भी .. ;कभी नहीं सुधरेगा.

इधर दूसरी तरफ पायल आदित्य का रास्ते पर इंतजार कर रही है. उसके हाथ में टिफिन, और छाता है. आदित्य दौड़ता हुआ जल्दी से उसके पास पहुँचता है. वह पायल के चेहरे की ओर देखकर मन ही मन हँसता है. पायल असमजस की स्थिति में उसकी ओर देखते हुए कहती है- क्या बात है लंगूर आज हंस क्यों रहे हो?

आदित्य एक बार फिर उसके चेहरे की तरफ देखता है और जोर-जोर से हँसता है.

पायल क्रोधित होकर कहती है- तुम्हारे क्या परेशानी है? क्या हुआ? क्यों मेरी तरफ देखकर हँसे जा रहा है.? चल बता, क्या बात है ?

आदित्य- हा हा हा, अब क्या बताऊँ? आज पाउडर फ्री का मिल गया था क्या तुझे जो तू भांड बनकर आई है?

पायल- कमीने तेरी तो....

फिर पायल आदित्य के पीछे दौड़ती है. लेकिन आदित्य उसके हाथ नहीं आता है.

आदित्य- गुस्सा मत कर. लेकिन तुमने इतना पाउडर क्यों लगाया?

पायल- बस ऐसे ही. मैंने सोचा..

आदित्य- क्या सोचा? यही की तुम तुम्हारे लंगूर को खूबसूरत लगो?

पायल मुस्कुराते हुए- हम्म..

आदित्य- अच्छा! तो एक बात कहूं?

पायल- हाँ बोल दे. क्या कहना चाहता है? वैसे भी तुमने मेरा मजाक तो बना लिया अब क्या कहेगा तू?

आदित्य- बस यही की मेरी बंदरिया को किसी भी मेकअप की कोई जरूरत नहीं है. उसका दिल सबसे ज्यादा खूबसूरत है. वैसे भी तू बहुत खूबसूरत है. और पता है मुझे तुम्हारे चेहरे पर नूर कब झलकता है?

पायल मुस्कुराते हुए- कब?

आदित्य- जब तुम मुस्कुराती हो तब.. तब ऐसा लगता है बस देखे ही जाऊं तुझे.. दुनिया रुकी-रुकी सी नजर आती है. तुम्हारे चेहरे की मुस्कराहट के आगे तो ये सरसों के फूलों की सुन्दरता भी कुछ नहीं है. मैं कोई शायर तो नहीं लेकिन इतना जरुर कह सकता हूँ अगर शायर होता तो अपनी पूरी एक गजल तुम्हारी मुस्कराहट के नाम कर देता.

पायल- चल झूठा..

आदित्य- अरे! सच बोल रहा हूँ और हाँ, तुझे किसी भी तरह के मेक-अप की कोई जरुरत नहीं है. आई लाइक योर सिम्प्लिसिटी.

पायल- अच्छा!

आदित्य- हम्म. चल अब जल्दी चला वरना अब जरुरत से ज्यादा तारीफ़ करूँगा तो तू गुब्बारे की तरह फूल जाएगी..

पायल- तेरी तो कमीना तू नहीं सुधरने वाला.

यह कहते हुए पायल आदित्य को पीटने के लिए उसके पीछे तेज दौडती है. लेकिन आदित्य उसके हाथ नहीं लगता है. फिर वह एक सरसों का पौधा उखाड लेती है और उसके पीछे फैककर मारती है. ओस की बूंदो से लदे सरसों के फूल जब आदित्य के चेहरे पर गिरते हैं तो उसे अपने चेहरे पर ठंडक महसूस होती है..

आदित्य- आह... बंदरिया. अब दूसरा मत फैंकना यार वरना मेरा चेहरा पूरा का पूरा गिला हो जाएगा.

पायल (हांफते हुए) अच्छा! तो फिर मुझे तंग क्यों करता है?

आदित्य- क्योंकि जब गुस्से में तुम प्यार जताती हो तब तुम्हारे चेहरे को देखने का एक अलग ही मजा है. फिर तुम्हारी नाक फूल जाती है. बोहें तन जाती है और जब तुम मुझे मारने में सफल हो जाती हो और फिर खुश के मारे जो मुस्कराहट तेरे चेहरे पर आती है वो..

पायल- अरे! बस..बस अब तुम मुझे गणित के फोर्मुलाज की तरह मेरी मुस्कराहट का फार्मूला बताकर यूं असमजस की स्थति में मत लाओ समझे..

आदित्य- समझ गया. अब क्या कहें किसी भेड की आँख में घी डाले तो वो यही कहेगी की मेरी आँख फोड़ रहे हो.

पायल- मतलब क्या है तुम्हारा?

आदित्य- बस यही की एक तो तुम जैसी मोटी की मैं तारीफ करता हूँ और फिर ऊपर से तुम मुझे रोक भी लेती हो.

पायल- तो तेरे कहने का मतलब मैं भेड हूँ?

आदित्य- वैसे किसी ने कहा है की समझदार को इशारा ही काफी होता है. बाकी तुम सोच लो?

पायल- मैंने तो सोच लिया.

आदित्य- क्या?

``की तेरी पिटाई करनी पड़ेगी.` फिर पायल गुस्से में पुन: एक सरसों के पौधे को उखाड़ लेती है और आदित्य को पीटना शुरू कर देती है और बेचारा आदि असहाय होकर उस अबोध किशोरी के हाथो मार खा रहा था. वैसे देखा जाए तो ऐसे दृश्य आदि के लिए किसी वरदान से कम नहीं थे.

क्रमश.....

 अध्याय- 10

आकाश में छाई काली घटाओ ने सूरज को वक्त से पहले ही सोने को मजबूर कर दिया है और ऊपर से उतरी हवाओं के चले दौर की वजह से मौसम फिर से ठंडा हो गया है. जिस कारण अच्छे ऊनि कपड़ों पर भी ठंडी हवा के थपेड़े महसूस किए जा सकते हैं. हालाँकि इस समय बारिश होने के कारण फसल में किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं होना था. काली घटाओं को देखकर सरसों के फूल मुस्कुरा रहे थे और गरजते मेघों की आवाभगत करने के लिए वे तैयार थे. इधर फसलें जहाँ मौसम को देखकर ख़ुशी के मारे नाच रही थी तो वही आदित्य के पिताजी की बैचेनी बढती ही जा रही थी क्योंकि टौमी और महेश अब तक भी तेल लेकर नहीं आए थे. वे एकटक पिछले एक घंटे से राह को तके जा रहे हैं. लेकिन उन्हें दूर-दूर तक भी ट्रेक्टर की आवाज सुनाई नहीं दे रही थी. उन्होंने महेश और टौमी से संपर्क साधने के लिए फोन भी किया लेकिन उन दोनों का ही फ़ोन बंद रहा था. वे निराश थे की कुछ ही देर में गुरमीत उनके पास चाय लेकर आते हुए कहता है- लो पाजी.. चाय पी लो..

`गुरमीत यार बात क्या हो सकती है? उन दोनों को तो तीन बजे तक ही जाना था और अब साढे पांच होने को है. वे अब तक आए क्यों नहीं हैं?`

गुरमीत- पाजी चाय पी लो. ज्यादा टेंसन लेने दी जरुरत ना है. आज बारिश का मौसम है और क्या पता बीच रास्ते में बारिश शुरू हो गई हो! इस लिए हो सकता है वो किसी सुरक्षित जगह ठहर गए हों! आप चाय पी लो वरना यह ठंडी हो जाएगी.

विजय कुमार (चाय की एक चुश्की लेते हुए) हाँ! गुरमीत ये भी हो सकता है. चल तू बता ट्रेक्टर को ठीक करने के लिए मिस्त्री कब आएगा?

गुरमीत- आज मौसम खराब है इस कारण वो नहीं पाया. शायद कल दोपहर तक वो जाए.

विजयकुमार- ओह! फिर तो ठीक है. वैसे अब तक आदि भी नहीं आया है. अगर बारिश शुरू हो गई तो उन दोनों को आने में दिक्कत होगी.

गुरमीत- हाँ! पाजी ये भी है. ये स्कूल वाले भी . आज-आज अगर जल्दी छुट्टी कर देते तो क्या फर्क पड जाता. दोनों बच्चे वक्त पर घर तो पहुँच जाते .

इधर दूसरी तरफ आदित्य और पायल बहुत तेज गति से चल रहे हैं क्योंकि मौसम बहुत ख़राब था. दोनों के ऊनि कपडे ठंडी हवा के थपेड़ों को रोकने में सक्षम नहीं थे. वे ठिठुरते हुए लगातार घर की ओर बढ़ रहे थे. आदित्य पीछे मुड़कर पायल की ओर देखते हुए कहता है- जल्दी चल बंदरिया अगर रास्ते में बारिश शुरू हो गई तो दिक्कत हो जाएगी.

पायल- अब मुझसे तुम्हारे जितना तेज तो चला नहीं जाता है. तुम्हारा एक कदम और मेरे दो कदम बराबर ही है.

आदित्य- देख अब ये थ्योरी मुझे मत दे तू.. चल जल्दी चल वरना उधर देख कितनी काली घटाएं छाई हुई हैं. चल..चल..

इतना कहते हुए आदित्य पुन: रफ़्तार पकड लेता है. पायल उसके पीछे-पीछे तेज गति से चलने का प्रयास कर रही है. उसके हाथ में टिफिन और छाता है और कन्धों पर भारी-भरकम बैग. इस कारण वह चल नहीं पाती है. वह जब पीछे रह जाती है और आदि को पायल की पायजेब की आवाज जब दूर से सुनाई देती है तो वह पीछे मुड़कर देखता है. वह रुक जाता है और दूर से आवाज देते हुए कहता है- देखो पायल तुम अगर ऐसे चलोगी तो हम दोनों भीग जाएंगे!

पायल- तो क्या करूँ लंगूर? मुझसे तुम्हारे जितना तेज नहीं चला जाता और ऊपर से ये सामान.. उफ्फ्फ! अब मुझसे तो नहीं तेज चला जाता है..

आदित्य अपने सर पर हाथ की मारते हुए बुदबुदाता है- हे! भगवान आज तो बंदरिया भीगोकर ही रहेगी.

फिर वह उसके सामने जाता है और उससे कहता है- अच्छा! चल ये बैग मुझे दे दे.

पायल (आश्चर्य से) क्या!

आदित्य- क्या.. क्या ये बैग मुझे दे दे मैं जानता हूँ तुम थक चुकी हो..

पायल- अरे! पर तुम..

आदित्य- अरे पर क्या? चल ला दे ..

फिर वह पायल का एक हाथ ऊपर की और करता है और बैग को एक तरफ से निकाल लेता है और पायल फिर उसे दुसरे हाथ से भी निकाल लेती है. आदित्य मुस्कुराते हुए उसका बैग लेता है. पायल उसे अचरज में देख रही थी. आदित्य उस बैग को अपनी बैग के साथ ही दोनों कन्धों पर लटका लेता है.

`अरे! वाह, मेरे लंगूर को मुझ पर इतना तरस कब से आने लगा?`, पायल मुस्कुराते हुए उससे पूछती है.

आदित्य- तुम अब जल्दी चलो यार. ये सब बताने का समय नहीं है मेरे पास.. चल जल्दी से कदम उठा. अब तो तेरे पास वजन भी नहीं है.

`हम्म! ये तो है.`

पायल मन ही मन मुस्कुराती हुई बुदबुदाती है- अरे! वाह, आज तो फिर तो पक्का ही बारिश होगी.

इतने में जोर से आकाशीय बिजली की गडगडाहट सुनाई देती है. वह दौड़कर आदित्य के बिलकुल पास में चली जाती है. आदित्य को आभाष हो जाता है की पायल बिजली गिरने की वजह से डर रही है. वह उसका हाथ पकड़ते हुए कहता है- चल अब जल्दी चल आज मौसम बहुत खराब है..

आदित्य के चेहरे पर मौसम और बढ़ते हुए अँधेरे को लेकर चिंता की लकीरे थी क्योंकि उसके साथ पायल थी. लेकिन पायल को इस बात की कोई परवाह नहीं थी. उसका तो पूरा का पूरा डर आदित्य का हाथ थामते ही दूर हो गया.

वह तो उस नाविक के साथ प्रेम सागर को पार कर रही थी जिस पर उसे सबसे ज्यादा यकीन था. आज उस नटखट बाला की सारी शैतानियाँ जाने क्यों लुप्त सी हो गई थी? वह तो बस एकटक आदित्य को ही देखे जा रही थी. आज उसे आदित्य के चेहरे पर वो भाव दिखाई दे रहा था जो उसे पहले कभी नहीं दिया था. समूचा आकाश काली घटाओं से घीरा होने के कारण अंधेरा लगातार बढ़ रहा था और अब हवा बंद हो गई थी. वे दोनों जल्दी-जल्दी घर की ओर बढ़ रहे थे. आकाशीय बिजलियों की गडगडाहट लगातार तेज हो रही थी. वे शीघ्र ही जंगल में प्रवेश कर जाते हैं. अचानक ही एक बारिश की बूँद आदित्य के मुहं पर आकर गिरती है.

`उफ़! ये क्या?`, वह जैसे ही आकाश की तरफ देखता है तो बादल अब उनके ठीक ऊपर थे. अचानक ही तेज बारिश शुरू हो जाती है. पायल हडबडाहट में छाता खोलने का प्रयास करती है तो इधर आदि तेज गति से दौड़कर उसे एक पेड़ के पास ले जाता है.

`अरे! छाते के निचे जाओ.. लंगूर.` पायल के चेहरे पर डर की जगह नूर झलक रहा था.`

`इस बारिश को भी यार इस वक्त आना था.` आदित्य बुदबुदाता हुआ उसके साथ छाते के निचे जाता है. छाता छोटा होने के कारण वे दोनों एक ही छाते के निचे नहीं समा पा रहे थे. आदित्य छाते को दोनों बैग की ओर किया ताकि उनकी पुस्तके भीगें तो पायल की पीठ पर बारिश की बूंदे गिरने लगी.

`उफ़! लंगूर सारा छाता तू ही ले लेगा क्या पागल? मैं भीग रही हूँ.`,

फिर पायल आदित्य की तरफ सटककर खड़ी हो जाती है. उसे आदित्य की सांसे महसूस हो रही थी.

अचानक फिर से आकाशीय बिजली के गिरने की तेज गर्जना होती है. जिससे पायल डर के मारे आदित्य को गले लगा लेती है. वह उसके गले से लिपटकर कहती है- मुझे डर लग रहा है लंगूर.

आदित्य- डोंट वरी. मैं हूँ तो डर किस बात का.

फिर वह अपने एक खाली हाथ से पायल को अपने गले लगा लेता है. पायल उससे चिपक जाती है. उसका सारा डर दूर हो जाता है. उसे पायल के दिल की धडकन साफ सुनाई दे रही थी. आदित्य के सीने से चिपककर खडा होना उसके लिए सबसे ज्यादा सुरक्षित स्थान लग रहा था. वे दोनों शांत थे. एक दूसरे की सांसो और हृदय की धडकनो को वे महसूस कर रहे थे. आदित्य उसकी पीठ पर गिरी बारिश की बूंदों को अपने हाथ से साफ़ कर रहा था. हालाँकि अब बारिश धीमी पड चुकी थी. जिस कारण जैसे ही आदित्य ने अपना हाथ उसके कंधे से उठाया तो अचानक ही एक दूसरी आकाशीय बिजली गिरती है और पायल डर के मारे फिर से आदित्य को गले लगा लेती है. आज मौसम भी शायद नहीं चाह रहा था की वे दोनों एक दूसरे से अलग हो. वे कुछ देर उसी अवस्था में रहते हैं.

`बारिश रुक गई है पायल. चल जल्दी चल घर चलते हैं...`, आदित्य ने छाते को दूसरी तरफ करते हुए कहा.

`पायल को चाहते हुए भी अब आदित्य से अलग होना पड रहा था. उसने आदि को अपनी दोनों गोरी बाहों से आजाद किया. वह उसकी तरफ देखकर थोड़ी दुखी हुई मानो वह चाहती हो की ये कमबख्त बारिश रुक क्यों गई? आखिर क्यों बारिश आज उसे अपने प्रेमी से पूरी रात ही गले मिलने से वंचित कर रही है? वह चाहती तो वक्त के पहिए को चलने से रोक लेती और सारी उम्र ही वह आदित्य के सीने से चिपककर बीता देती. लेकिन वह जो चाहे वही हो यह जरुरी तो नहीं था!

क्रमश.