कहानी -जल पिशाच (भाग 2)
लेखिका - आस्था जैन "अन्तस्"

" सारी जिंदगी ये सोशल वर्क ही करते  रहेंगे क्या , अब करियर का भी तो कुछ करना है ना " परी ने कहा।
" तो तुम कौन सा सोशल वर्क कर रही हो , सारा दिन तो तुम्हारे ऑडिशन में ही चला जाता है, कोचिंग तो संयोगी और नेहा ही के भरोसे है, हम लड़के तो फील्ड में काम करते करते ही थक जाते हैं , एक रवि ही तो हम से नया जुड़ा था वो भी चला गया" विभु ने कहा।
" चला नही गया, मर गया और तुम्हारे डरपोक चेहरे को देख के वो इंस्पेक्टर अब हम लोगो के पीछे पड़ा है" वासु ने एक चपत विभु के सिर पर लगाते हुए कहा।
सभी दोस्त संयोगी के घर मे बैठे हुए बात कर रहे थे, शाम का वक्त हो गया था।
" पुलिस का काम जो है उसे करने दो , हमे अपना काम करना है, तुम तीनो गर्ल्स आज कम्पलीट सिलेबस का एक टेस्ट तैयार करो , हम लड़के लोग आज रात उसी बस्ती में जाकर वहाँ के बच्चों को पढ़ाएंगे " संवर ने कहा और उठ खड़ा हुआ।
" मैं नही जाऊँगा" विभु ने डरते हुए कहा।
" ठीक है, लेकिन फिर तुम यहां भी नही रुकोगे, तुम्हे हमारे घर मे ही अकेले रहना होगा जब तक मैं , वासु और राधे वापस न आ आ जाएं" संवर ने उसके कंधे पर हाथ रखते  हुए कहा।
" नहीं यार , ऐसा ज़ुल्म मत कर यार, अभी तो  MBA पूरी भी नही हुई मेरी, कहीं अकेले घर मे कोई मुझे मार गया तो ..." विभु ने उसी तरह डरते हुए कहा।
तीनो लड़कियां एक घर मे और चारों लड़के एक बगल के घर मे रहते थे । मोहल्ले से लगभग 2 किलोमीटर दूर उनका कोचिंग सेंटर था ।
" ऐसा करो इसे रामशरण भैया के दुकान में छोड़ आओ , वहीं सही रहेगा ये" राधे ने अपना सुझाव दिया।
"ठीक है , यही तय रहा , अब सब लोग खाना खा लो और टेंशन कोई भी मत लेना  , अपना अपना काम करना अच्छे से , मैं रामशरण भैया से बात करके आता हूँ " संवर ने कहा और उस घर से निकल गया।
.......
" हम तो सम्भर ( संवर) बेटा से कह रहे थे कि भीभूती बेटा को साथ ही ले जाओ , यहाँ छोटे से कमरा में कहाँ नींद आएगी तुम्हें" रामशरण ने पास बैठे विभु के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
विभु मुस्कुराता हुआ उनकी गोद मे सिर रख कर बोला , - " हम सब अपने अपने घरों से इतना दूर हैं लेकिन आपके इस छोटे से कमरे और बाहर लगी चाय की स्टॉल हमें अपने घर जैसी लगती है, जब तक आप हम लोगो के साथ हैं , हम सबको अपने मम्मी पापा की याद ज्यादा नही सताती, हम सब तो यूँ ही आपको रामशरण भैया बुलाया करते हैं, पर सच मे तो आप हम सबके पापा जैसे हैं , सबका ध्यान रखते हैं , सबकी फिक्र करते हैं, इस छोटे से कमरे में हम सबके हिस्से का प्यार मिल ही जाता है रामशरण भैया "
रामशरण की आँखे नम हो आईं , जल्दी जल्दी पलकें झपकाते हुए बोले - " हमारी तो अपनी बिटिया को हमे पिता कहते शरम आती है, और तुम बेगाने बच्चे सब हमे इतना सम्मान देते हो, कभी कभी तो जी मे आता है कि हम ही अपनी बिटिया को सही संस्कार नही दे पाए वरना पढ़े लिखे तो तुम लोग भी हो , फिर भी कितने संस्कारी हो , ईश्वर ने एक बिटिया को हमसे दूर करके इतने बेटा बिटिया दे दिए, कोई आशा ही नही है अब कोई और चीज की , ....."
और रामशरण फफक फफक कर रोने लगे, उनके आँसू उनकी प्रौढ़ अवस्था की आँखों से ढुलक कर  मूँछो और दाढ़ी के सफेद बालों को चमका रहे थे और कुछ तो विभु के चेहरे पर गिर पड़े, विभु उठ गया और उनके आँसू पोंछते हुए बोला
- " सब सही कहते हैं,मैं आपको हमेशा रुलाया करता हूँ , अब बच्चों की तरह रोना बन्द कीजिये और चलिये सो जाइये "
" दादा , सुना क्या , बहुत बड़ा झमेला हो रिला है  इधर , अभी अभी चौक से सुन के आएला है अपुन " एक लड़का हड़बड़ाते हुए रामशरण के पास आकर बोला।
ये सती माई मोहल्ले का असली मुम्बइया गुंडा कंचा था , अनाथ था, अभी तक कंचे खेलना पसंद करता था इसलिए सब इसे कंचा ही कहते थे ।
" क्या हुआ बेटा , बैठो तनिक, साँस लो , हड़बड़ाए काहे रहे हो " रामशरण उसे बैठाते हुए बोले।
" क्या हुआ कंचा भाई , सब ठीक है ना , संवर वगैरह बाहर गए हैं पढ़ाने , मुझे तो डर लग रहा है , बोलो न क्या हुआ" विभु उसे लगातार झकझोरते हुए पूछने लगा।
" अबे ए चवन्निछाप हलकट, साला बिजली के करंट के माफिक हिलाता काये को है रे " कंचा ने उसे परे धकेल दिया।
" अच्छा अब बताओ तो सही हुआ क्या है " रामशरण दोनो के बीच मे आकर बैठ गए
" अभी एक पुलिस वाले को बात करता सुना मैं फोन पे , वो 10 डेडबॉडी मिली थी न ,अरे वो नाले में सवेरे, अरे दादा , आई शपथ सारी डेडबॉडी गायब , पुलिस वाला लोग सब छुपा रिला है अपन सब से "
कंचा ने बताया तो विभु सिटपिटा कर  दीवार से चिपक गया।
" अरे ऐसा कैसे हो सकता है बेटा, वो तो सब अम्बुलेंस में गईं थी , खुद देखे थे दोपहर में उधर जाके हम " रामशरण ने कहा
" अरे दादा तुम बस अपना धोती कुर्ता को ही दुनिया समझता है, साला दुनिया बहुत आगे निकल गया , कोई बड़ा झमेला निकलेगा सौ टका , अरे अपुन तो खुद डेडबॉडी देखा है , सबके बॉडी ऐसा निचोड़ कर कपडे के माफिक सुखाया था कोई, बॉडी में नो ब्लड नो पानी, कोई प्रेत फ्रेत है पक्का , अपुन को तो यही लगता है दादा , ये दरवाजा न बन्द रखने का पूरा रात, अभी चलता है अपुन सबको बता के आता है " कहकर कंचा उठकर चला गया।
दीवार से चिपक कर बैठा विभु संवर और बाकी दोस्तों की फिक्र में घुला जा रहा था ।
........
" यार ये संवर की बाइक किधर रह गई , 10 मिनट हो गए यहाँ खड़े खड़े , जाने कितना पीछे रह गया यार ये ? " राधे ने  घबराते हुए वासु से कहा ।
" अरे ज्यादा न घबराओ राधे , आ रहा होगा यार, उसके बिना अगर हम घर पहुँच गए तो वो विभु रो रो कर पूरा मोहल्ला सिर पर उठा लेगा " वासु मुस्कुराते उसे समझाता हुआ बोला।
राधे बाइक से ही टिक कर खड़ा हो गया , उसे अजीब तरह की ठिठुरन महसूस हो रही थी फिर भी वो बड़बड़ाते हुए बोले जा रहा था,-
" एक ही बाइक पे तीनो चलते तो क्या बुराई थी , पर नहीं सारे नियम कानून इसी के लिए तो बने हैं , अब इस तरह रात के 12 बजे बीच हाईवे पे बाइक लेकर खड़े हैं , कल ही तो रवि का एक्सीडेंट हुआ है इधर , अरे उठा न किसका कॉल है " 
" संवर का कॉल है , .... हां किधर रह गया यार तू ...... क्या ..... अबे कब , हम तो कबसे खड़े हैं इधर , .......... क्या यार तू भी , ........ चल ठीक है आ रहे हैं हम ...... हां ठीक है " वासु ने फ़ोन वापस अपने पॉकेट में रख लिया ।
" क्या हुआ , क्या बोला वो , कहाँ रह गया कितनी देर में आएगा " राधे ने पूछा
" वो तो निकल गया , घर भी पहुँच गया, चल अब बहुत लेट हो गया वैसे भी " वासु ने बाइक स्टार्ट करते हुए कहा और राधे को पीछे बैठने का इशारा किया।
राधे ने पीछे बैठ कर वासु से कहा , - " अजीब बात है , निकल  कैसे गया, न हमे वो दिखा , न उसे हम दिखे , न बाइक की लाइट दिखी यार "
वासु ने फिर उसे समझाया - " अरे वो जल्दी में होगा तो नही देख पाया होगा , और तुम्हारी बकबक में हम उसे नही देख पाए होंगें "
......
" अबे यार , हम दोनों भी मर जायेंगे आज रात ..... , मुझे तुम लोगों के साथ मुम्बई ही नही आना चाहिए था , ये सोशल वर्क के चक्कर मे भी नही पड़ना चाहिए था.... मम्मी ..... मुझे मम्मी के पास जाना है वासु .... मम्मी ....." राधे डर और खौफ़ के मारे वासु के कंधे से चिपका सुबक रहा था और वासु उसे समझाने की कोशिश कर रहा था हालाँकि अंदर से अब वो भी डरा हुआ था ।
उनकी बाइक का पेट्रोल खत्म हो चुका था लेकिन अब तक हाईवे ख़त्म ही नहीं हुआ था , हाइवे के पास बसी जिस बस्ती के बच्चों को पढ़ाने वो गए थे वहाँ का रास्ता भी समझ नही आ रहा था , बस एक अंतहीन सड़क और दोनों ओर के सुनसान खेतों  के अलावा और कुछ भी दिखाई नही दे रहा था । राधे अब बहुत डर चुका था और रोते रोते उसके गले मे दर्द होने लगा था ।
तभी उन्हें एक उम्मीद आती हुई दिखाई दी , एक कार सामने से आ रही थी , उस कार की लाइट देखकर राधे को थोड़ी हिम्मत बन्धी और वे दोनों उस कार से लिफ्ट लेने के लिए थोड़े आगे आ गए लेकिन उस कार के पास आते ही दोनो को खौफ़ का जोरदार झटका लगा ।
वासु तुरन्त राधे का हाथ पकड़कर उसे घसीटते हुए बाइक के पीछे लेकर आ गया और दोनों बाइक के पीछे छिप गए।
जब कुछ गलत होने की आशंका होती है तो इंसान डर जाता है लेकिन जब सामने बहुत कुछ अजीब और गलत हो रहा हो तो इंसान जड़ हो जाता है वही स्थिति राधे की हो रही थी।
उसने दबे शब्दों में वासु ओर देखकर कहा , - " वा.... वासु ,ये क्या है , ये बारिश कैसे हो रही है इस कार के ऊपर "
वासु ने उसके हाथ अपने हाथों से दबाकर चुप रहने का इशारा किया और देखते देखते सामने से वो कार निकल गई और उसके ऊपर हो रही बारिश भी उसी के साथ चली गई लेकिन अब भी किसी अनहोनी की आशंका में दोनों लोग बाइक के पीछे छिपे बैठे थे ।
" दुनिया मे बहुत कुछ ऐसा होता है जिसे हम समझ नहीं सकते और हमे उसमे दखल भी नहीं करना चाहिए , बस चुपचाप बैठे रहना होगा हमें यहीं , एक दूसरे का हाथ पकड़ के बिना डरे " वासु ने दबी आवाज़ में राधे से  कहा।
" अगर पता होता आज ही मरना है तो परी को आज ही बता देता कि मैं उससे कितना प्यार करता हूँ , मम्मी को बता देता कि मुझे नहीं करनी एक्टिंग , मैं तो एमएससी के बाद NET की ही तैयारी करना चाहता हूँ, और तुझे बताता कि ... "
वासु - " क्या बताता मुझे बोल "
राधे - "यही कि तू वो जो बेकरी वाली गली में रोज एक चक्कर लगाने जाया करता है न उस लड़की के लिए, उसका
कोई बॉयफ्रेंड नही बन सकता "
वासु - " तुझे कैसे पता और इतनी बड़ी बात कैसे बोल दी तूने , तू नही जानता भोले बालक , प्रेम में बहुत शक्ति है "
राधे - " हाँ मगर वो लड़की खुद एक लड़की के प्रेम में है मेरे भोले बालक "
वासु - " मैं नहीं मानता तू झूठ बोल रहा है "
राधे - " मोबाइल घर छोड़ आया नही तो तुझे दिखाता मैं उसकी चैट , मैंने खुद उससे तेरे लिए बात की थी तब उसने कहा वो किसी लड़की को पसन्द करती है , सच बोल रहा हूँ तेरी कसम यार "
वासु - " क्या यार , इस मनहूस जगह में ही इतनी मनहूस बात
बतानी थी तुझे , ये क्या ... "
एक गोली चलने की आवाज़ से दोनों दहल उठे थे ।
उन्होंने बाइक के पीछे से ही छिपकर देखा , सामने वही कार खड़ी थी , लगातार बारिश हो रही थी उस कार के ऊपर बिजली कड़क रही थी जबकि उन दोनों के तरफ की सड़क सूखी साफ पड़ी थी।
कार के दरवाजों को कोई अंदर से खोलने की कोशिश कर रहा था लेकिन दरवाजे शायद खुल नहीं रहे थे। पूरी सुनसान अँधेरी सड़क पर केवल वही कार थी जो दिखाई दे रही थी और धीरे धीरे कार पारदर्शी हो गई उसके अंदर का नज़ारा अब साफ़ दिखने लगा था ........  राधे वो सब देखकर चीख़ने ही वाला था कि वासु ने अपने हाथ से उसका मुँह बन्द कर लिया और आँखे भी ।
वो उस ख़ौफ़ नाक और दिल की गति रोक देने वाले नजारे का अकेला ही गवाह बन रहा था।
अंदर कार में पीछे की तरफ रवि की लाश पड़ी हुई थी जिससे काले रंग का खून बह रहा था उसकी मृत आँखों में ख़ौफ़ और पश्चताप के आँसू निकल रहे थे , उसकी लाश के ऊपर गन्दगी से सना हुआ कोई बैठा हुआ था जो इंसान ही लग रहा था , उसके पूरे शरीर से गन्दगी टपक रही थी , कार में पीछे बैठी दो लड़कियाँ हाथों कार का काँच  तोड़ने की कोशिश कर रही थीं और चिल्ला रहीं थीं ।
आगे बैठे दोनो लड़के भी गालियाँ बकते हुए काँच तोड़ने की कोशिश कर रहे थे , उनमे से एक के हाथ मे बंदूक थी ।
वासु उनमे से किसी को नहीं पहचान पा रहा था सिवाय एक लड़की के , ये वही लड़की थी जिसके लिए उस बेकरी वाली
में रोज जाया करता था ।
उन सबके चिल्लाने के बीच उस गन्दगी से सने इंसान की आवाज़ भी सुनाई दे रही थी , " पानी .... गन्दा .... मत .... करो "
वासु को इतनी दूर से भी ऐसा लग रहा था मानो उसे सबकुछ zoom करके दिखाया जा रहा हो।
उसके गले में कुछ फँस रहा था , बोलने की शक्ति जैसे खत्म हो रही हो , उसके हाथ भी ढीले होते जा रहे थे  और सामने खौफ़ का नाटक जारी था। वो सब कार में रोते चीख़ते जा रहे थे और उस इंसान के शरीर से गन्दगी टपकती ही जा रही थी और देखते देखते पूरी कार उसी गन्दगी से भर गई और वो सब तड़पते रोते उसी गन्दगी में डूब गए , उस गन्दगी में उनकी दबी घुटी आवाजें अभी भी वासु के कानों तक पहुँच रही थीं ।
धीरे धीरे आवाजों की घुटन बन्द हो गई । सब ग़ायब हो गया । वासु अभी भी जड़ हुआ बैठा था , उसे महसूस हुआ कि राधे का चेहरा फूल रहा है , उसने तुरंत अपने हाथ उसके मुँह से हटाये और राधे की लाल सुर्ख़ आँखे उसके चेहरे से बाहर निकलती हुईं दिख रही थीं , राधे ने उसके चेहरे के बिल्कुल पास आकर उसपर चिल्लाते हुए कहा , - " डर नहीं लगता तुझे......"  वो आवाज़ राधे की नहीं थी ।
वासु को उसके चेहरे से वही कार के अंदर बैठे चार चेहरे बाहर निकलते हुए दिख रहे थे , चारों चेहरे समवेत स्वर में वासु के चेहरे के पास आकर चीख़ रहे थे " डर नहीं लगता तुझे ....."
इससे ज्यादा वासु सहन नही कर सकता था उसका सिर घूम गया , जैसे मस्तिष्क में हृदय ने रक्त संचार रोक दिया हो और वो वहीं बेहोश हो गया।
.......
" अब कैसे हो वासु " राधे ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा। वासु कुछ सेकण्ड्स पहले ही होश में आया था।
राधे को इतना पास देखकर वासु पलंग से उछल कर दूर दीवार से चिपक गया।
कमरे में मौजूद संवर और विभु उसके इस व्यवहार से चकित रह गए, खुद राधे को भी बहुत अजीब लगा।
" क्या हुआ वासु , यहाँ आओ ,वहाँ क्यों खड़े हो " राधे ने उसकी तरफ बढ़ते हुए कहा।
" अबे भूतनी के .... " वासु ने राधे को पकड़ कर पलंग पर पेट के बल पटक दिया और उसकी पीठ पर चढ़ कर बोला- " इसके अंदर चार चार भूत हैं , बहुत डराया इसने मुझे , उस कार से ज्यादा तो ये राधे भूतिया है, पक्का भूतिया है ये "
" अबे छोड़ दे साले , तेरी गली वाली की कसम मैंने कुछ न किया यार "
राधे कराहते हुए चिल्ला रहा था।
"अरे बस करो यार, उतरो उसके ऊपर से , हुआ क्या है कोई बतायेगा तुम दोनों में से या लड़ते ही रहना है "संवर उन दोनों को अलग करते हुए बोला।
" अरे यार, यहाँ घर कैसे आये हम दोनों, हम तो हाइवे में फँस गए थे " वासु को होश आया कि वो अब घर पे था और जिंदा था ।
" कौन से हाईवे पर थे महाराज, पूरी रात विभु के साथ उस हाइवे और बस्ती के 100 चक्कर लगा डाले मैंने , न तुम लोग दिखे कहीं न तुम्हारी बाइक , और तो और फोन भी बन्द था तुम दोनो का " संवर ने उससे कहा तो वासु हक्का बक्का रह गया क्योंकि बेहोश होने तक तो वो हाइवे की सड़क पर ही था राधे के साथ।
" ये एनाकोंडा सा मुँह न फाड़ो , संवर सच कह रहा है , सारी रात हम दोनों की जान हलक में अटकी रही ,और सुबह चार बजे यहीं मोहल्ले के मंदिर में तुम दोनों बेहोश मिले और बाइक का कुछ पता नहीं" विभु उसका मुँह बन्द करते हुए बोला पर मन्दिर की बात सुनकर वासु की आँखे भी चौड़ी हो गईं।
" सती माई के मंदिर में, लेकिन मैं तो वहीं बेहोश हुआ था हाइवे पर और उससे पहले ... " वासु ने आँखों देखा सब कुछ कह सुनाया।
" मैं तो तभी बेहोश हो गया था जब वासु ने मेरा मुँह बन्द किया , डर के मारे इसका पसीना छूट रहा था और मैं उसकी बदबू से ही बेहोश हो गया, सच कह रहा हूँ मैंने इसे नहीं डराया" राधे ने बड़ी सफाई से अपना पक्ष रखा।
" हाँ और तुम्हारे पसीने से तो चमेली के फूल बरसते हैं न रुक तुझे अभी बताता हूँ , तूने ही डराया मुझे वरना मैं बेहोश नही होता और मेरी एकलौती बाइक गायब नही होती " वासु ने राधे चपत लगाते हुए कहा
"अरे यार तुम दोनो जान की खैर मनाओ , बाइक का क्या है गई तो जाने दो " विभु ने अपने दोनों हाथ दिल से लगाकर आसमान में जोड़ लिए और सिर झुका लिया।
" बाइक मिल गई " संयोगी दौड़ी दौड़ी उनके कमरे में आकर बोली।
" कहाँ मिली " सबने एक साथ पूछा।
" वो ....वो आगे हलवाई खाने की बस्ती के पीछे के नाले से ,  वहाँ तीन लाशें भी मिली हैं पुलिस को " संयोगी ने हाँफते हुए कहा ।
" क्या , मर गए, अब तो पुलिस इन दोनो को ढूढ़ कर मर्डर का केस बनाएगी " विभु ने अपने हाथों से माथा पीट लिया
वासु और राधे की शक़्लें देखने लायक थीं , कुछ देर पहले लड़ रहे दोनो लड़के जुड़वाँ भाईयों की तरह एक दूसरे से चिपक गए और एक साथ बोले - " हमने तो कुछ नहीं किया भाई ...... "
.........
" आज वासु और राधे बेटा नही आये , जागे नही क्या अभी तक " रामशरण अपने स्टॉल पे चाय छानते हुए संवर और विभु से पूछ रहे थे । संवर चाय पी रहा था और विभु रोज की तरह रामशरण की मदद कर रहा था।
" नहीं वो ... वो दोनों तो कल शाम को ही निकल गए  , राधे के पापा का फ़ोन आया था तो पुणे के लिए निकल लिए दोनो कल शाम ही " संवर ने चाय सुड़कते हुए बेपरवाही से  कहा।
" अरे बेटा , ये क्या कह रहे हो, कल रात तो यहाँ ग़जरीगांव में बड़ा कहर था ..... वो दोनो ठीक तो हैं ना , फ़ोन से बात हुई या नही " एक अन्य सज्जन ने बीच मे ही अपनी चाय को किनारे रखकर बड़ी अजीब बात की।
" कहर , कैसा कहर दादा " विभु ने उनके पास आकर बैठते हुए कहा।
" अरे , कल इस मोहल्ले को छोड़कर बाकी सब मोहल्लों और बस्तियों में सबके घरों के छतों पर किसी के कूदने की आवाजें सुनाई दी हैं , अरे मौत भी तो हुई है , तीन और लोगों की , बिल्कुल वैसे ही शरीर मिले हैं, कल सुबह जैसे  , बिल्कुल सूखे और निचुड़े हुए .... "  उन सज्जन ने आखिरी घूंट चाय के साथ बात पूरी की।
विभु और संवर एक दूसरे के चेहरे ताकते रह गए , " आखिर क्या मुसीबत है ये ....." वाले भाव उनके चेहरे से साफ चिंता बनकर प्रकट हो रहे थे।
क्रमशः ......
- आस्था जैन " अन्तस्"