कहानी - जल पिशाच

लेखिका - आस्था जैन "अन्तस्"

श्रेणी- हॉरर, सस्पेंस-थ्रिलर, साइंस-फिक्शन

भाग -7

" क्या है ये ......., क्या मैं अंतरिक्ष में हूँ ......, सच में?"


एक विशाल परिदृश्य मानव मन को उसकी सूक्ष्मता का आभास करा रहा था जो कि पिया के लिए बिल्कुल अद्भभुत था .....,


वर्फ़ के बादल अब उसका साथ छोड़ चुके थे और अनन्त असीम फैला हुआ अंतरिक्ष उसके सामने था ....


वो विशाल हिमपर्वत की सबसे ऊपरी चोटी पर आ चुकी थी उस हिमखंड के साथ , यहाँ से हिमनदी दो हिस्सों में विभाजित होकर हिमपर्वत के दोनों ओर की घनी बर्फ़ की पर्वत श्रृंखलाओं में विलुप्त हो जाती थी .... ,


पिया को नहीं पता था कि उसका हिम खण्ड उसे किस ओर ले जाने वाला था , वो दोनो हाथ अपने खुले मुँह पर रखे हुए बस देखती जा रही थी , .....


असीम अंधकार में अनेक पत्थरों के तैरते हुए छोटे बड़े पुंज को,वलय बनाती हुई गोल संरचनाओं को , दूर दिख रहे गोल गेंद जैसे ग्रहों को , सब कुछ प्रकाशित करने वाले सूर्य को , पिया को एक पल को लगा कि मानों स्कूल में टँगी हुई अंतरिक्ष की तस्वीर में किसी ने उसे उठा कर बैठा दिया हो।


उस विशाल हिमपर्वत से नीचे देखने पर बर्फ़ के बादलों से ढके किसी गोल ग्रह की आकृति दिख रही थी .....,


पिया जिस हिमखंड पर थी वो हिमपर्वत की चोटी से दाएं मुड़ चुका था और घनी हिमपर्वत श्रृंखला में कहीं खो गया था , पिया को अहसास हो रहा था कि वो अब हिमनदी के साथ नीचे की ओर आ रही थी वापस उन्हीं बर्फ़ के बादलों के पास ,......


धीरे धीरे अंतरिक्ष का दृश्य नजरों से दूर हो गया, तेजी से नीचे आते हुए हिमखंड के सामने एक विशाल बर्फ़ की चट्टान को देखकर उस बर्फ़ीले संसार में भी पिया के माथे पर पसीना आ गया ।


उसे समझ नहीं आ रहा था कि उस चट्टान से टकराने के बाद उसके खुद के कितने टुकड़े होंगे ,  उस ठंडे हिमखंड पर बैठे बैठे उसका कमर से नीचे का पूरा शरीर वैसे भी सुन्न हो चुका था अब इतनी बड़ी चट्टान के ऊपर इतनी रफ्तार से गिरने के ख़्याल से उसका दिमाग भी सुन्न हो गया था वो टस से मस भी नहीं हो पा रही थी, न चाहते हुए भी उसकी आँखे कसके बन्द हो चुकी थीं ।


चट्टान ने हिमखंड या पिया का कोई प्रतिरोध नहीं किया बल्कि बड़ी ही शालीनता से दोनों को अपने अंदर समा लिया।


बहुत देर बाद भी कोई धमाका न होने पर पिया ने अपनी आँखें खोलीं और अपने चारों ओर देखा और जैसे सौ साल बाद उसने अपनी रुकी हुई साँस ली ।


किसी गलियारे में खड़ी पिया बहुत हद तक डरी हुई और रोमांचित थी , वो किसी तिकोने कमरे में थी, उसके सामने कोई सफ़ेद पानी के झरने जैसी तस्वीर पूरी दीवार पर लगी हुई थी और बाकी की दो दीवारें उजली रुई जैसी बर्फ़ से ढकी हुईं थीं , फ़र्श की जगह बहता हुआ ठंडा पानी था जिसके ऊपर पिया खड़ी हुई थी ।


पिया ने चलने की कोशिश की लेकिन बहते पानी में उसके पैर स्थिर ही रहे , काफी कोशिश करने के बाद भी कुछ नहीं हुआ तो गुस्से में अपना हाथ पिया ने बाई तऱफ की दीवार पे दे मारा , दीवार की कुछ बर्फ़ फ़र्श के बहते पानी मे गिर गई और बह गई पर पिया को झटका तब लगा जब तीनों दीवारों में भयानक कम्पन हुआ और वे सिकुड़ने लगीं ।


पिया से  कुछ एक फुट की दूरी पर तीनों दीवारें आ चुकी थीं ,  पिया का दिमाग बेहद तेज़ चल रहा था , दो बर्फ़ की दीवारों और सामने झरने की तस्वीर लगी दीवार देख देख कर उसका दिमाग फटा जा रहा था , उसे अपने पैरों में हलचल महसूस हुई उसने तुरंत नीचे देखा तो बहते पानी मे उसे तिकोने कमरे की तिकोनी छत का हिलता हुआ प्रतिबिंब नजर आया ।


पिया ने चौंक कर ऊपर सिर उठाया तो उसकी आँखे फ़ैल गईं और जबड़ा लटक गया ... ।


हल्के बैंगनी रंग के छोटे छोटे गोले आपस मे मिलकर उस छत को बनाये हुए थे और नर्सरी क्लास के बच्चों की तरह एक दूसरे को धक्के भी मार रहे थे क्योंकि दीवारों के साथ छत भी सिकुड़ रही थी और सभी गोलों के लिए पर्याप्त जगह नहीं हो पा रही थी तभी एक गोले को बगल वाले गोले ने गुस्से से नीचे पटक दिया और वो पिया के बगल से होता हुआ पानी मे गिर गया और बह गया लेकिन उसके जाने के बाद पिया को ऐसा लगा कि बाकी के गोले धीमी धीमी हँसी हँस रहे थे जैसे कोई छोटा बच्चा अपने मुँह के दबा कर हँसने की कोशिश कर रहा हो ।


अगले ही पल एक और बैंगनी गोला नीचे टपका, पिया ने हिम्मत करके उसे अपने हाथ मे पकड़ लिया , वो बर्फ़ का गोला था जिसके अंदर बैंगनी रंग भरा हुआ था , पिया का हाथ सुन्न होने लगा और उसकी हथेली के चारों ओर बैंगनी रंग की बर्फ़ कब्जा जमाने लगी और ये कब्जा धीरे धीरे उसकी कोहनी तक बढ़ रहा था ।


घबराई हुई पिया ने दूसरे हाथ से वो गोला उठाकर तुरन्त ही सामने की दीवार पर फेंक दिया और उसका बर्फ़ के कब्ज़े में कैद हाथ अब सामान्य हो गया, दीवारों का सिकुड़ना भी बन्द हो गया था , पिया ने थोड़ी राहत महसूस की ही थी कि उसे लगा कि वो ऊपर की ओर बढ़ रही है छत की तरफ़, कमरे में पानी का स्तर बढ़ रहा था ।


पिया ने वो गोला झरने की तस्वीर वाली दीवार पर मारा था जिससे अब वो दीवार असली झरने में बदल गई थी और झरने का पानी कमरे में भर रहा था , छत के बैंगनी गोलों से टकराते ही पिया का सिर बर्फ़ के कब्जे में आ जाता इस डर से पिया कांपने लगी और दीवारों पर अपने हाथ से चोट करते हुए वहाँ से भागने की कोशिश करने लगी लेकिन इसका उल्टा असर हुआ दीवारे फिर से सिकुड़ने लगीं , पानी का स्तर और भी बढ़ गया और छत से लगातार बैंगनी गोले गिरने लगे ...


.......


"भागो ......." चिल्लाते हुए सब के सब उस केबिन से गिरते पड़ते बाहर निकले , थाना पूरी तरह खाली था , वे सब भी थाने से बाहर भागने लगे, थाने से बाहर आकर सबने देखा कि बाकी के पुलिस वाले भी हाँफते हुए थाने से दूर भाग रहे थे ।


" रुको , ...... अंदर कुछ गुंडे हैं जिन्हें पकड़ रखा था वो बन्द हैं , मैं  वापस जा रहा हूँ ...." अपनी गाड़ी का दरवाजा खोलते हुए डी एस पी राहिल खन्ना ने घबराकर कहा।


" रुकिए सर, मैं भी आ रहा हूँ ,संयोगी तुम यहाँ सबका ध्यान रखना " गाड़ी से बाहर निकलते हुए संवर ने कहा, वे सब भागने के लिए पहले ही गाड़ी में बैठ चुके थे ।


संयोगी ने हाँ में सिर हिलाया और परी को कसके अपने सीने से लगा लिया ।


खन्ना और संवर अपने कदम बढ़ाते हुए थाने के अंदर चले गए।


"वो ....... वो क्या था , क्या था वो , वो .... संयोगी " नेहा सदमे से बड़बड़ा रही थी ।


" कुछ गलत, बुरा ,बहुत बुरा ......" संयोगी के चेहरे से घृणा और दहशत के भाव साफ़ झलक रहे थे।


" वो भूत था .... " परी ने सुबकते हुए कहा ।


" पता नहीं , बस संवर और खन्ना सर जल्दी आ जाएं " संयोगी ने अपने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा।


" उसे गोली नही लगी थी संयोगी , वो भूत ही था " नेहा ने काँपते हुए कहा।


5 मिनट पहले का खन्ना सर के केबिन का दृश्य फिर से संयोगी की आँखों मे उतर आया ।


उस खौंफनाक अजीब सी तेज़ आवाज़ के साथ कोई अजीब सा आकार उन सबके सामने खड़ा था जैसे किसी लम्बे चौड़े आदमी ने धूल से सना हुआ दुशाला ओढ़ रखा हो,उसका चेहरा भी नही दिख रहा था , उसी धूल से सने कपड़े से उसका मुँह भी ढँका हुआ था , उसके चारों तरफ़ से कितनी सारी अजीब मटमैले रंगों की गैस निकल रही थीं, उसपर बंदूक तान दी थी खन्ना सर ने लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ा , वो वहीं खड़ा रहा और धूल के कपड़ों से निकलता हुआ उसका काँच जैसा हाथ लगातार परी की ओर बढ़ता चला आ रहा था , और उसके बाद वो भयानक हँसी हँसता रहा और अपना हाथ परी के पेट मे घुसाना चाहता था कि तभी खन्ना सर ने गोली चला दी लेकिन वो गोली उसके हाथ मे से आर पार हो गई, परी तो वहीं जम गई थी लेकिन बाकी सबके साथ संयोगी उसे घसीटते हुए उस केबिन से बाहर ले आई, उस अजीब से आदमी का हाथ बढ़ता जा रहा था उन लोगों की तरफ़ लेकिन वो उससे भी अधिक रफ्तार से थाने से बाहर निकल आये थे ।


" वो दोनों अभी तक नहीं आए " नेहा ने कहा तो संयोगी के आँख से दहशत का वो पल आँसू बनकर बह गया , वो अब और डर रही थी ।

" तुम परी को संभालो, मैं अंदर देख कर आती हूँ " संयोगी ने कहा और गाड़ी से बाहर जाने लगी।

" संयोगी .........., अगर अंदर खतरा दिखे तो वापस आ जाना ..... प्लीज़ " नेहा ने अपने आपको काबू करते हुए कहा , संयोगी ने सिर हिलाया और सावधानी से थाने की ओर बढ़ चली ...

क्रमशः.......

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