कहानी - बड़े घराने की बहू
लेखिका - आस्था जैन "अन्तस्"
श्रेणी- हॉरर, आध्यात्मिक, सस्पेंस-थ्रिलर , स्त्री- विमर्श
भाग - 14
बड़े घराने की बहू
पार्ट 14
"कहाँ भागे जा रहे हो दयान , रुको तो सही "
राहुल ने पीछे से आवाज लगाते हुए कहा।
"तुम, तुम तो पैलेस गए थे न स्नेहा को ढूढ़ने " दयान ने उसे देखकर पूछा
राहुल - "हाँ , वो तो साथ है , पीछे देखो "
दयान ने पीछे मुड़कर देखा तो जल्दी जल्दी गुस्से में पैर पटकती हुई स्नेहा उन्ही लोगों के पास आ रही थी।
" ऐसे कोई किसी को छोड़ के आता है क्या " स्नेहा लगभग राहुल पे सौ बादलों सी बरसती हुई बोली ।
दयान भी राहुल की शक़्ल देखने लगा।
" अरे यार , इसे फल लेने थे तो ठेले वाले से लेने लगी , मुझे तुम दिखे तो मैं तुम्हारे पीछे दौड़ आया " राहुल दयान को अपनी सफाई सुनाने लगा क्योंकि उसे पता था स्नेहा की अदालत में तो उसकी सफाई सुनी ही नही जाएगी।
स्नेहा - "वाह, मुझे बताकर तो आते , मैं यहाँ वहाँ ढूढ़ रही थी वो तो बगल के ठेले वाले ने बताया आपके पति तो आगे निकल गए "
" पति !!!!" दयान फिर से राहुल की शक्ल देखने लगा ।
" अरे उस ठेले वाले को गलत फहमी हुई होगी , अब इसकी भी मैं क्या सफ़ाई दूँ , और ऊपर से ये भी जब से पैलेस से मेरे साथ आई है , पूरे रास्ते मे बिल्कुल धर्मपत्नी की तरह पेश आ रही है " राहुल ने इस बार अच्छी तरह अपना मोर्चा संभाला।
स्नेहा ने उसे शिकायत भरी नजरों से देखा।
राहुल ने देखा स्नेहा की आँखे छोटी छोटी हो गईं हैं , बिल्कुल पहली बार की तरह , वो मुस्कुरा दिया।
" इन जनाब की आज शाम मेरे साथ सगाई होनी है , लेकिन इन्हें तो मेरा धर्मपत्नी बनना पसन्द ही नहीं , ठीक है अभी मना कर आती हूँ सबको , मैं कौन सा किसी के गले जबरन बंधना चाहती हूँ " कहकर स्नेहा मुँह मोड़कर खड़ी हो गई।
दयान बीच रास्ते उनका ये तमाशा देख रहा था।
" मुझे कुछ जरूरी काम है , मैं तुमसे बाद में मिलता हूँ राहुल , अपना ध्यान रखना " दयान ने कहा
" एक मिनट क्या मतलब है आपका कि ध्यान रखना , मैं क्या कोई चुड़ैल हूँ जो इन्हें खा जाऊँगी , समझ क्या रखा है आपने मुझे " स्नेहा दयान के सामने आते हुए बोली।
दयान फिर से राहुल की शक्ल देखने लगा पर इस बार उसके चेहरे पे कुछ इस तरह के भाव थे " मैंने क्या किया 🙄"
" वो मेरी सेहत के बारे में कह रहा है स्नेहा , तुम्हारे बारे में नहीं " राहुल ने उसे समझाया।
" लेकिन ये जा कहाँ रहे हैं " स्नेहा ने पूछा
" वो मैं तुम्हे नहीं बता सकता , हाँ अगर राहुल तुम मेरे साथ आना चाहो तो आ सकते हो " दयान ने कहा।
स्नेहा ने उसकी बात सुनकर मुस्कुरा कर राहुल की तरफ देखा।
राहुल हँस पड़ा , बोला - " दयान, ये सच मे चुड़ैल है , इससे हम या तुम कुछ नही छुपा सकते , हम बताएं या न बताएं ये छुप छुपा के सब पता कर लेती है, कल का भी सब पता है इसे "
दयान ने एक नज़र आश्चर्य से स्नेहा की तरफ देखा फिर राहुल से बोला , - " इसे पैलेस में डर नही लगा सब कुछ जानने के बाद भी "
राहुल ने धीरे से उसके कान में कहा , - " बोला न ये भी उन्ही जैसी चुड़ैल है "
स्नेहा राहुल को घूरने लगी तो उसने कहा, " अरे मैं कह रहा हूँ, तुम बहुत बहादुर हो "
" ओह्ह, सच में आपको ऐसा लगता है " स्नेहा प्यार से उसे देखते हुए बोली।
" दीदी आपके फल , आप वहीं छोड़ आई थी " एक लड़के ने फलों की एक थैली स्नेहा की तरफ बढ़ाते हुए कहा।
" ओह हाँ , थैंक्यू छोटू " स्नेहा ने उसके हाथ से थैली लेते हुए कहा
" पैसे ?"राहुल ने अपना पर्स निकालते हुए उस लड़के से पूछा।
"नहीं , वो तो दीदी ने दे दिए , वो भी 50 रुपये ज्यादा " लड़के ने खुशी खुशी कहा और वापस चला गया।
" ज्यादा क्यों दिए स्नेहा , तुम्हे पता नही इस तरह इन लोगो की आदतें बिगड़ती हैं " राहुल ने स्नेहा को समझाते हुए कहा।
" जब होटल्स और रेस्टोरेंट में 500 रुपये पटक आते हो टिप के तब आदत नही बिगड़ती उन लोगो की " स्नेहा ने कहा।
" वो तो एक तरह का चलन है स्नेहा , अगर टिप न दे तो तुम्ही बताओ तुम्हे कैसा लगेगा " राहुल ने उसी से पूछा।
" मुझे बिल्कुल बुरा नही लगेगा , क्योंकि उन्हें मेरे खाने के बिल में से ही अच्छी भली सैलरी मिलती है , और रही बात चलन की तो टिप चलन के नही जरूरत के हिसाब से देनी चाहिए , और विकसित देशों में शायद वेटर ही सबसे गरीब होते होंगे इसलिए उन्हें टिप दी जाती है , हमारे यहाँ तो वेटर से भी गरीब लोग हैं जिनसे तो हम 10 रुपये - 5 रुपये भी कम करवा लेते हैं जरा सी चीजों में और होटल में पटक आते है हज़ारो रुपये जबकि हमारे यहाँ इन लोगों को ज्यादा जरूरत है टिप की " स्नेहा बोल रही थी।
" तुम्हारी सोच बहुत अच्छी है स्नेहा , मेरी माई भी ऐसे ही सिखाती थीं मुझे कि मंदिर में प्रसाद तभी चढ़ाओ जब तुम्हारी नजर में कोई भूखा न हो, जिसे जरूरत हो उसे प्राथमिकता दो " दयान बोला साथ ही अपनी माई के जिक्र से उसकी आँखे भी नम हो गईं ।
"चलो ठीक , तुम जीती मैं हारा , अब उनके पास चलें जिनके लिए आये हैं " राहुल ने हाथ जोड़ने की मुद्रा में कहा।
स्नेहा ने मुस्कुराते हुए सहमति में सिर हिला दिया ।
"किसके लिए आये हो , कहाँ जा रहे हो राहुल " दयान ने पूछा ।
" अपने दद्दू से मिलने , तुम भी चलो उनके मिलकर तुम्हारा भी जीवन धन्य हो जाएगा, फिर उसके बाद मैं तुम्हारे साथ चलूँगा, ठीक है " राहुल ने कहा
तीनों लोग मन्दिर पहुँचे । राहुल और स्नेहा ने मन्दिर के आस पास सब जगह ढूढ़ लिया लेकिन दद्दू कहीं नहीं मिले।
" हमेशा तो यहीं मिल जाते थे दद्दू, आज दिख ही नहीं रहे" स्नेहा मायूस होते हुए बोली।
तीनों मन्दिर में अंदर गए तो देखा दददू मन्दिर के प्रांगन में सफाई कर रहे थे।
" ये आप क्या कर रहे हो दददू , ये तो आपकी पूजा का समय है ना , आपकी पूजा तो छूट गई होगी आज की " स्नेहा उनके पास आते हुए बोली।
दद्दू ने मुस्कुरा कर उसके और स्नेहा के सिर पर हाथ रख दिया और बोले ,- " धर्म तो सिर्फ़ ओम स्वरुपी आत्मा के आश्रय से होता है बेटा, पूजा - भजन ये सब तो सेवा के तरीके हैं , मन के भावों को सरल करने के तरीक़े हैं और तरीका तो कुछ भी हो सकता है। अब मुझे लगा पूजन से ज्यादा जरूरी गन्दे प्रांगण को साफ करना है तो मैने साफ कर दिया , अब जिस काम की जरूरत ज्यादा हो उसी को प्राथमिकता देनी चाहिए न कि चलन या परम्परा को , है ना "
राहुल और स्नेहा एक दूसरे का चेहरा देखने लगे कि दददू को उनकी बातों के बारे में कैसे पता।
अचानक राहुल की आँखों मे आँसू भर आये , वो बोला, - "आप मेरे दादाजी हो , और आप जीवित नहीं हो "
दद्दू मुस्कुरा दिए , बोले - " जीवित तो हूँ , वरना सामने कैसे हूँ, बस जो देह तुम्हे दिख रही है , उसका संयोग अब नहीं है "
"पर आप तो हमें छू सकते हो न दद्दू और आत्माएं तो स्पर्श नहीं कर सकती " स्नेहा विस्मय से बोली।
" जब आत्मा देह में हो तो स्पर्श कर सकती है बेटा , मैं भी शरीर मे हूँ लेकिन ये देव योनि का दिव्य शरीर है , इसके परमाणु मनुष्य योनि के शरीर के परमाणु से उच्च कोटि के होते हैं " दददू ने कहा
राहुल अब भी रो रहा था।
दददू ने राहुल के आँसू पोंछे और उसे पास ही एक चबूतरे पर बैठाकर उसके सिर पर हाथ फेरा और बोले, - " टेंशन वाली कोई बात नही है , देह नहीं है तो क्या हुआ आत्मा तो है , सदाकाल से है और सदाकाल रहेगी बस जब तक इसकी मुक्ति नही होती ये 84 लाख योनियों के शरीर बदलती रहती है , रोना क्या है "
" आप जब बचपन मे आते थे , तब भी क्या ....." राहुल ने रुँधे स्वर में पूछा।
" हाँ , तब भी मैं मनुष्य नही था "
" तो फिर चले क्यों गए आप , हमेशा मेरे साथ क्यों नही रहे , मेरे और माँ के लिए तो ही आपने घर छोड़ दिया था न दद्दू ,कहीं मेरी वजह से तो आपके साथ कुछ गलत नही हुआ था न दद्दू और आपकी मौ... मौत.... मेरी वजह ... से "
" नहीं रे कितना सोचता है , बचपन मे भी कितना डरा करता था हर चीज से , इतने अच्छे से सिखाया तुझे कि कभी भी टेंशन वाली कोई बात ही नही है , हर परिस्थिति में संघर्ष किया जा सकता है , पर तू तो बोलना सीख गया टेंशन वाली कोई बात ही नहीं , मगर समझा कुछ भी नहीं , देखो तो कैसे बच्चों सा रोता है , अरे अब तो तेरी सगाई होने वाली है , अब तो चुप हो जा।"
" आपको कैसे पता चल जाता है दददू , क्या देव अंतर्यामी होते हैं " स्नेहा ने पूछा
" नही बेटा , देव अवधिज्ञानी होते हैं , वो केवल कुछ समय पहले और कुछ समय बाद की घटनाओं को जान सकते हैं , ज्ञान पूरे 5 प्रकार के होते है अलग अलग गतियों और योनियों में , इसके बारे में मैं तुम्हे फिर कभी बताऊँगा , अभी जो तुम्हारे काम का है वो सुनो "
स्नेहा और राहुल ध्यान से उनकी बात सुनने लगे।
दद्दू - "देखो मैं जानता हूं तुम मुझे लेने आये हो कि मैं तुम लोगों के साथ परिवार के पास चलूँ , लेकिन ये असम्भव है "
राहुल - "क्यों असम्भव है, जब आप मुझे और स्नेहा को मिल सकते हो तो परिवार वालो से क्यों नहीं , पापा आपसे माफी मांगना चाहते है , कम से कम उन्ही से मिल लीजिये"
दददू - " देखो , मैने तुमसे कहा था प्रत्येक कार्य तभी होता है जब उसके संबंधित द्रव्य, भाव ,भव, काल और क्षेत्र का एक साथ संयोग होता है, मेरा उस परिवार के साथ उतना ही संयोग था , मृत्यु उपरांत देव बनने के बाद भी मुझे तुम्हारे पास आना पड़ा क्योंकि तुम्हारा मुझसे संयोग था , बन्ध था जिसे हमे पूरा करना ही पड़ता है ।
कभी तुमने किसी जन्म में मेरी सहायता की होगी इसलिए बचपन मे तुम अकेले होते थे कमजोर पड़ते थे तो मुझे आना पड़ता था, आज तुम पे भारी विपदा है तो मुझे आना पड़ा , लेकिन फिर भी मेरी अपनी सीमा है ,
मैं अपनी दैवीय शक्तियों का प्रयोग तुम्हारे लिए नही कर सकता , क्योंकि जब तुमने मेरी सहायता की होगी तो मेरा मार्गदर्शन ही किया होगा तो वही संयोग बंधा है , वही मेरी सीमा है, वही मार्गदर्शन मैं तुम्हें दे सकता हूँ और जितने समय का बन्ध होगा हमारा तुम्हारा उतने समय बाद मुझे फिर जाना होगा , यही संसार है मेरे बच्चे "
स्नेहा - " ये चेहरा और पहचान तो वही है आपकी जो आपकी मनुष्य शरीर मे थी फिर आप देव कैसे?"
दददू - " ये मेरा वास्तविक दैवीय शरीर नही है उसका तेज तो इतना अधिक है , इतना विशाल है कि मनुष्य उसे अपनी आँखों से देख भी नहीं सकता , इसलिए मैंने ये रूप बदला है "
स्नेहा - " मतलब सभी देव रूप बदल सकते हैं "
दददू - "हाँ "
" सब कुछ ठीक होने के बाद फिर से मुझे छोड़कर चले जायेंगे जैसे बचपन मे छोड़ गए थे " राहुल ने नीचे सिर झुकाए सुबकते हुए कहा।
" मैं तो तुम्हारे संस्कारों और विचारों में हमेशा तुम्हारे साथ हूँ , पर अभी जरूरत है कि तुम सामने आए हुए संकट से संघर्ष करो और जिन्हें तुम्हारी मदद की जरूरत है उनकी मदद करो , जाओ , सत्य को साथ लेकर चलो " दददू ने कहा ।
राहुल ने खुद को संभाला और स्नेहा के साथ चलने के लिए खड़ा हो गया ।
" मैं इस परिस्थिति से निकलने के लिए हर मुमकिन कोशिश करूँगा दद्दू , शायद इस समस्या के साथ भी मेरा संयोग ही है जिसके हल होने का अब समय आ गया है " राहुल ने निश्चय पूर्वक कहा।
दददू - " तुम जरूर हल कर लोगे, सुनो ये जो लड़का इतनी देर से पागलों की तरह खड़ा होकर तुम लोगो को बड़बड़ाते हुए देख रहा है इससे कहना कि इसके बुरे कर्मो का पूरी तरह प्रायश्चित नही हुआ है , अभी ये मंदिर या कहीं भी सकारात्मक ऊर्जा को देख सुन नही सकता ,ठीक है , जाओ टेंशन वाली कोई बात नहीं "
स्नेहा और राहुल ने सामने प्रांगण के एक कोने में खड़े दयान की तरफ देखा तो वो सच मे उन लोगो को बेवकूफों की तरह घूर रहा था ।
......
" तुम्हारा घर बहुत डरावना है दयान " स्नेहा ने कहा।
" हाँ जिस घर मे मैंने अपनी बहन को अनाथ कर दिया हो वो डरावना तो लगेगा ही, मेरे पाप इतने हैं कि मैं तुम्हारे दादा जी की पवित्र आत्मा के दर्शन भी न कर सका" दयान के निराशा भरे शब्द उस दो कमरों के घर मे गूंज रहे थे ।
" हम यहाँ लेने क्या आये हैं , दयान " राहुल ने पूछा
" बस कुछ पुराना सामान , मुझसे और मेरी बहन से जुड़ा हुआ , क्योंकि यहाँ आज रात मैं एक विद्या सिद्ध करूँगा जो हमारी आगे बहुत मदद कर सकेगी, उसकी ऊर्जा बहुत अधिक है , हो सकता है घर में रखी सारी चीज़ें जल जाएं उस विधि के दौरान " दयान ने कहा और कमरे की खाट के नीचे रखे एक संदूक को खोल कर उसमें से कुछ सामान निकालने लगा ।
स्नेहा और राहुल भी उसकी मदद कर रहे थे ।
" ये क्या तुम्हारी माई हैं , दयान " उस समान में से एक तस्वीर दयान को दिखाते हुए राहुल ने पूछा।
" हाँ , यही मेरी माई है " ममता की चाह में निकले दयान के शब्दो के साथ दो आँसू भी बह निकले।
" मैंने इन्हें देखा है " राहुल ने कहा
" क्या, कहाँ देखा है" फ़टी आँखों से दयान ने राहुल की ओर देखते हुए पूछा।
राहुल -" वो ... वो कल रात पैलेस में ..... "
क्रमशः......
नोट- सुनें कहानी *बड़े घराने की बहू | लेखिका - आस्था जैन 'अंतस'*
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2 Comments
Hmm Jo shak tha vhi hua daddu hi uske dada the but Atma .. ar Jo bhi Kiya dhara h vo us tantrik ka h jisne dayaaan ki maa ki Atma kabje me ki ar vo bhi us palace me h dekhte h aage Kya hota hai
ReplyDeleteदद्दू बहुत प्यारे हैं, मेरे दादू के जाने के बाद से ही मैं चाहती थी कि मेरे दादू मुझसे मिलने आएं। दद्दू एक ऐसा किरदार हैं जिन्हें मैंने 12 सालों से अपने जेहन में सजा रखा है
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