कहानी - बड़े घराने की बहू
भाग -15
श्रेणी- हॉरर, सस्पेंस-थ्रिलर, आध्यात्मिक , स्त्री-विमर्श
लेखिका - आस्था जैन "अन्तस्"
दयान लकवे के मरीज के जैसा ज़मीन पे बैठा रह गया था। स्नेहा कभी राहुल को देख रही थी तो कभी दयान को, उससे कुछ बोला ही नहीं जा रहा था इस परिस्थिति में ।
राहुल दयान के पास बैठा उसके सहज होने का इंतजार कर रहा था ।
" भूल जाओ इस पैलेस को, चलो राहुल , सबको ले चलते हैं यहाँ से, जो होगा देखा जाएगा " दयान मरे हुए स्वर में बोला।
"लेकिन हम सबको खतरा है यहाँ से जाने में , तुमने ही तो कहा था ,पैलेस की आत्माएं हमें जाने नहीं देंगी " राहुल व्याकुल होता हुआ बोला।
दयान - " इस समस्या का कोई हल नहीं है हमारे पास, बेहतर होगा सबको जल्द से जल्द यहाँ से निकाल दें , एक रास्ता है मेरे पास, मैं कुछ देर के लिए पैलेस में भ्रम जाल विद्या का प्रयोग कर सकता हूँ, उतनी देर में सबको राधौगढ़ की सीमा से बाहर निकलना होगा "
स्नेहा- " और उस भ्रम जाल के बाद ?"
दयान -" शायद उनका कोप पैलेस की दीवारों पर बरसे या इस कस्बे पर लेकिन तब तक हम सब दूर जा चुके होंगे"
राहुल - " और तुम्हारी माई"
दयान के आँखों में आँसू भर आये , मन की भावनाओं को ज़ब्त करते हुए बोला - " मैं इस जनम में इस लायक नहीं हूँ कि अपनी माँ की आत्मा को आज़ाद करवा सकूँ "
स्नेहा - " अरे पर तुमने तो कहा था कि तुम एक प्रेत को सिद्ध करके अपनी माई को बचाने वाले थे उस बाबा से , तो अब क्या दिक्कत है अगर तुम्हारी माई उस पैलेस में है तो क्या हुआ , हम वहाँ से भी तो उस प्रेत की मदद से उन्हें आज़ाद करवा सकते हैं ना "
राहुल - " स्नेहा सही कह रही है दयान , एकदम से हार क्यों मान ली तुमने , मेरी तो कुछ समझ नही आ रहा, तुम्हारी माई और बाकी के इन राधौगढ़ के निर्दोष लोगों को उन आत्माओं का कोप झेलने के लिए हम सब छोड़ कर नही जा सकते, कोई न कोई रास्ता तो होगा न दयान "
दयान - " रास्ता? हम किसी दोराहे या चौराहे पे नही खड़े राहुल , हम एक भूलभुलैया में फंसे है , यहाँ कोई रास्ता नही है, सिर्फ विनाश है... "
राहुल - " तुम कहना क्या चाहते हो दयान , अभी थोड़ी देर पहले तुम अपनी माई को भी आज़ाद करवा सकते थे, पैलेस की आत्माओ का भी इलाज था तुम्हारे पास , अगर मैंने तुम्हारी माई की आत्मा को पैलेस में देख लिया तो अब कहते हो सिर्फ विनाश है कोई रास्ता नही है "
स्नेहा - " हो सकता है उस बाबा ने तुम्हारी माई को वहाँ कैद कर रखा हो बस इतनी सी तो बात है , इसकी वजह से हार क्यों मानना"
दयान - " तुम मेरी छोटी बहन जैसी हो स्नेहा , मैं तुमसे सच कहता हूँ , ये समस्या हमारे बस की नही है"
स्नेहा - " लेकिन क्यों , अभी तक तो आप तैयारी कर रहे थे उनसे लड़ने की और अब.... "
दयान - " अब मैं नही कर सकता , क्योंकि मुझे लगता था कि उस बाबा ने मेरी माई की आत्मा को वश कर रखा है क्योंकि वो एक कमज़ोर आत्मा हैं उन्हें अपनी शक्तियों का ज्ञान नही है , इसलिए किसी भी प्रेत को सिध्द करके मैं उस बाबा को खत्म करके अपनी माँ को आज़ाद करा सकता हूँ , लेकिन ऐसा है ही नही, मेरी माई की आत्मा को अपनी सभी शक्तियों का ज्ञान है "
स्नेहा - " मतलब?"
दयान - " मतलब कि भूत प्रेत योनि की आत्माओं को अपनी शक्तियों का इतना भी ज्ञान नही होता कि वो किसी मनुष्य को अपने होने तक का अहसास करवा सकें , ऐसी आत्माओं को बड़ी सरलता से कोई भी शक्तिशाली आत्मा या मनुष्य अपने वश में कर लेता है डरा कर । बिल्कुल वैसे ही जैसे सरल और सीधे मनुष्य को कोई भी डरा धमका कर अपनी बात मानने पर मजबूर कर लेता है। लेकिन मेरी माई की आत्मा ने राहुल को अपनी पूरी कहानी दिखाई है उस पैलेस में, कैसे उनके पति ने उनपे अत्याचार किये, उन्हें मार डाला और मुझे छोड़ कर उन्हें जाना पड़ा इसका मतलब समझती हो स्नेहा , इसका मतलब है कि इतनी शक्तिशाली आत्मा को वश में करने वाला खुद कितना अधिक शक्तिशाली होगा तब उसने मेरी माई की आत्मा को डरा धमका कर अपने बस में रखा है, और माई की आत्मा को उस पैलेस में अपनी शक्तियों का प्रयोग करने की अनुमति कैसे मिली क्योंकि वो सब उस बाबा के वश में है इतनी अधिक शक्तिशाली आत्माओ को अपने वश में करने वाले ने कितनी तो विद्याओ का प्रयोग किया होगा इन्हें वश करने में और इन्हें उस पैलेस तक सीमित रखने में "
राहुल - " अरे तो क्या हुआ दयान, तुम्हे भी तो उसी बाबा ने विद्याएँ सिद्ध करना सिखाया है ना , तुम उनका प्रयोग करो न "
दयान - " आत्माओ को वश करने और उनकी किसी एक विद्या को सिद्ध करने में जमीन आसमान का फर्क है राहुल, प्रेत योनि की किसी भी आत्मा को उसकी किसी शक्ति का आभास कराके उस शक्ति का प्रयोग कुछ देर के लिए अपने मतलब के लिये करना आसान है मैंने वही सीखा है, क्योंकि मैं तो एक विद्या सिद्ध करके सिर्फ अपनी माई से मिलना चाहता था, लेकिन प्रेत योनि की आत्मा को वश करना अलग है, उन्हें अपनी शक्तियां दिखा के डरा के अपनी बात मनवाना जब तक हमारा मन हो तब तक ये होता है वश करना जो मुझे नहीं आता , हमारी लड़ाई उन आत्माओ से है ही नही , हमारी लड़ाई उस बाबा से जो उन सभी आत्माओ से कई गुना शक्तियां रखता है तभी तो उन सबको वश में कर रखा है।"
स्नेहा - " लेकिन वो इस तरह इतनी सारी आत्माओं को वश क्यो कर रहा है, उसे क्या मिलेगा ये सब करके, और जैसा कि उस लड़की ने रामायणी माँ और कल्पना दीदी की तरफ इशारा किया था तो उनसे उस बाबा का क्या लेना देना "
दयान - " शक्ति , उसे और अधिक शक्तिशाली बनना होगा इसलिए वो ये सब कर रहा है , वो उन आत्माओ के जरिये कल्पना और रामायणी माई की बलि देकर उन्हें भी अपने वश में करना चाहता है, और हम लोग कुछ नही कर पाएंगे इसलिए अच्छा है कि हम सब यहाँ से निकल जाए"
राहुल - " अरे तो मेरी माँ या कल्पना में क्या खास है जो उस बाबा को इन्ही को वश में करना है, अरे स्नेहा को सब पता है फिर उसके साथ तो कुछ भी नही हुआ, जबकि मुझे सच जानने के बाद क्या कुछ नही झेलना पड़ा "
स्नेहा उसे गुस्से से घूरते हुए बोली - " इस इंसान के साथ आज मेरी सगाई है और इन्हें शिकायत है कि उस तांत्रिक को मेरी बलि क्यों नही चाहिए "
राहुल - " मेरे कहने का वो मतलब नही है यार, मेरी बात समझो , अरे आत्माएं तो सब एक सी है फिर उस तांत्रिक को औरतों की ही आत्माएं क्यों चाहिए और अगर सिर्फ औरतों की ही आत्माएं चाहिए तो सिर्फ कल्पना और मेरी माँ क्यों , औरते तो और भी कई हैं पैलेस में , मतलब हमे खुद अभी पूरी बात नही पता तो हम हार कैसे मान लें "
दयान - " जब तुम्हे लगे कि भ्रम जाल के लिए तुम्हे मेरी जरूरत है, मुझे बता देना मैं तैयार रहूँगा पर मैं अपनी शक्तियों से उस तांत्रिक बाबा की शक्तियों से नही लड़ सकता , अब तुम दोनो यहां से जा सकते हो , जब फैसला ले लो मुझे बता देना "
स्नेहा - " पर आपकी माई "
राहुल - " रहने दो स्नेहा , इस इंसान को अपनी माई की कोई फिक्र नही,हमे जो करना है हम कर लेंगे चलो पहले सब कुछ पूरा पता करने के बारे में सोचते हैं , चलो "
राहुल स्नेहा का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ उस बीरान घर से बाहर ले आया और अंदर दयान अपनी माई की तस्वीर सीने से लगाए कुछ देर तक खुद को ज़ब्त किये बैठा रहा, जब उससे अपनी बेबसी सहन न हुई तो उस घर मे रखी हर तंत्र मंत्र की चीज़ लाकर बाहर फेंकनी शुरू कर दी जो उसने बरसों से संभाल कर रखी थीं ताकि तंत्र में उनका उपयोग करके अपनी माई से मिल सके , तंत्र विद्या का कोई धागा भी वो अपने पास नहीं रखना चाहता था , अपनी लाचारी पर रोता जाता था, माई , माई चिल्लाता जाता था और हर कोने में छुपा कर रखी हर चीज निकाल कर फेकता जाता था सब चीजो के बीच वो बेंदा भी उसके हाथ आया जो पुलिस की कस्टडी से उसे वापस मिला था वो उसे भी फेंकने वाला था कि उसके दिमाग के सारे तार अचानक झन्ना उठे ...... वो बेंदा लेकर वो जल्दी से अपने तलघर में चला गया जो उसकी तांत्रिक विधियों का कमरा था।
......
स्नेहा राहुल के पीछे पीछे चल रही थी , अचानक उसके सामने आकर बोली, - " मुझे भी दयान की थ्योरी ही सही लग रही है, हम सब मामूली से लोग उन आत्माओं का सामना कैसे कर सकते है , अब तो दयान भी हमारे साथ नहीं है, ले चलते हैं ना सबको यहाँ से राहुल "
राहुल - " और उसके बाद, राधौगढ़ को बर्बाद होने के लिए छोड़ जाऊँ , सिर्फ अपनी गलती सुधारने के लिए जो मैंने तुम सब लोगो को यहाँ लाकर की है "
स्नेहा - " बचेगा तो वैसे भी कोई नहीं , हम पूरा कस्बा ही खाली करवा देते हैं "
राहुल - " बच्चों का खेल है क्या स्नेहा , 30000 से ज्यादा की आबादी वाला कस्बा कुछ मिनटों में खाली करवाना "
स्नेहा - " तो फिर क्या करें , हम सब तो सब कुछ जानते ही नही है , सही कह रहा था दयान ,परसो शादी है और हम अब तक भूलभुलैया में हैं "
राहुल ने स्नेहा का हाथ अपने हाथ मे लेते हुए कहा , - " हाँ , हम भूलभुलैया में ही हैं लेकिन मुझे लगता है कि अगर थोड़ा वक्त लेकर शांति से शुरु से लेकर आखिर तक सब चीजो को दुबारा सोचूँ तो मुझे इस भूलभुलैया का रास्ता मिल जाएगा, भरोसा रखो स्नेहा , मैने सबको मुसीबत में डाला है तो निकाल भी लूँगा वरना मेरी गलती की सजा सिर्फ मुझे मिलेगी और किसी को नहीं , तुम बस अपना ध्यान रखो , अभी पैलेस जाओ , शाम को मिलते हैं और हाँ टेंशन वाली कोई बात नहीं है " कहकर राहुल मुस्कुरा दिया।
स्नेहा थोड़ी देर के लिए चुप रह गई , फिर बोली , - " शाम को सगाई पे क्या गिफ़्ट लेकर आऊँ मैं आपके लिए "
राहुल - " गिफ़्ट.... ठीक है तुम मेरे लिए एक फ़ाइल तैयार करना "
स्नेहा - " ये कैसा गिफ्ट हुआ, मैं ठहरी साइंस की स्टूडेंट , कहाँ से तुम्हारे बिज़नेस की फ़ाइल बनाउंगी"
राहुल - " ये बिल्ली जैसा मुँह न बनाओ , बिजिनेस की फ़ाइल नही बनानी, तुम्हे अपनी दीदी के बारे में एक फ़ाइल बनानी है, जितना तुम अभी तक उनके बारे में जानती हो , जितना आज शाम तक जान सकती हो "
स्नेहा - " पर किस बारे में , किस चीज से रिलेटेड"
राहुल - " सब कुछ उनकी पसन्द नापसंद, शौक, उनके साथ कभी कुछ बहुत अच्छा हुआ हो कुछ बहुत बुरा हुआ हो, इस शादी को लेकर तुम्हारी दीदी के मन मे क्या है, नव्यम को लेकर क्या सोचती है वो,सबकुछ जो भी तुम पता लगा सको वो सब"
स्नेहा - " ये शादी वाला काम तो आपने नव्यम जीजू को दिया था न"
राहुल- " हाँ , और मुझे पूरा भरोसा है कि मेरे भाई ने अभी तक कल्पना से उसका हाल चाल भी नहीं पूछा होगा , शादी के बारे में बात करना तो बहुत दूर की बात है "
स्नेहा - " ठीक है, मैं कर दूँगी , और मेरी गिफ़्ट? "
राहुल - "कहो क्या चाहिए "
स्नेहा - " आप जो ये सबको बताते फिरते हैं ना कि मैं छुप छुप के सबकी बातें सुनती हूँ , प्रॉमिस कीजिये कि आप हमारे बच्चों को ये सब नहीं बताएंगे "
राहुल की आँखे नम हो गईं , स्नेहा का चेहरा अपने दोनों हाथों में लेकर थोड़ी देर उसे निहारता रहा फिर बोला , - " वादा करता हूँ कुछ नही बताऊँगा अगर 2 दिन बाद तक मैंने सब ठीक कर लिया तो "
" सब ठीक हो जाएगा, अब मैं कह रही हूँ , सब ठीक हो जाएगा, मैं हूँ न आपके साथ टेंशन वाली कोई बात नहीं है "
कहकर स्नेहा राहुल के गले लग गई।
.....
" माँ, माँ , कहाँ हो माँ , ये घर मे इतना अंधेरा क्यों कर रखा है , माँ , आप ठीक तो हो , माँ " घर मे आते ही दिन में पसरे हुए अंधेरे को देख कर किसी अनिष्ट की आशंका से भयभीत राहुल सब तरफ़ अंधेरे में गिरता पड़ता अपनी को आवाज लगाते हुए उनके कमरे की तरफ जाने की कोशिश कर रहा था । उनके कमरे की खिड़की खुली हुई थी जिससे थोड़ी सी रोशनी आ रही थी वो उसी ओर आगे बढ़ने लगा कि किसी साये ने वो खिडकी भी बंद कर दी।
"कौन है वहाँ , माँ कहाँ है मेरी , खिड़की क्यों बन्द की तुमने "
अपनी माँ के कमरे के दरवाजे पर खड़ा राहुल अँधेरे में चिल्लाते हुए बोला।
वो साया हल्की सी आवाज के साथ चलता हुआ राहुल के बिल्कुल करीब आकर खड़ा हो गया और उसके सिर पे हाथ फेरते हुए कहने लगा,
" अरे मैं हूँ , तुम्हारा दद्दू , वो इतना अंधेरा था न तो मैंने सोचा ये खिड़की बन्द कर दूँ तो उसके अंधेरे से ये अंधेरा कम हो जाएगा "
राहुल झुंझलाते हुए बोला "क्या आप भी दद्दू डरे हुए आदमी को और डरा रहे हो और अंधेरे से अंधेरा कम नही होता , रोशनी से होता है वैसे तो इतने प्रवचन देते हो और इतना भी नही जानते , रुको मैं लाइट ऑन करता हूँ "
अंदर आकर अंधेरे में टटोलते हुए उसने लाइट का स्विच ऑन किया पूरे कमरे में रोशनी हो गई। वो मुस्कुराते हुए अपने दददू की तरफ मुडा और बोला , - " देखो दददू ऐसे हारता है अंधेरा , रोशनी से "
दददू मुस्कुराते हुए उसके पास आये और बोले , -" वो दयान भी इसी तरह अपनी नकारात्मक शक्तियों से उस बाबा की कई गुना ज्यादा नकारात्मक शक्तियों से नही लड़ सकता, लेकिन तुम अपनी थोड़ी सी भी सकारात्मक ऊर्जा से उसे परास्त कर सकते हो, अँधेरा कितना भी घना हो बस जरा सी ही रोशनी उसे खत्म कर सकती है "
राहुल - "वाह दद्दू , आप तो ग्रेट हो , मैं उस दयान को भी समझा दूँगा , लेकिन मेरे पास कोई शक्ति कहाँ है उन आत्माओ जैसी "
दद्दू - " हे भगवान, इतना समझाया था उस दिन, अरे वो आत्माएं तो तुम क्या हो अरे तुम भी तो आत्मा हो जो इस शरीर मे बैठी है, फर्क क्या है उन्हें अपनी शक्तियों का ज्ञान है और वो उसका गलत प्रयोग कर रही हैं, तुम अपनी शक्तियों का ज्ञान करके उन्हें सही प्रयोग में लगाओ , जीत तुम्हारी होगी"
राहुल - " अरे दददू पर लोगों को अपनी शक्तियां पहचानने में सदियां लग जाती हैं कितनी तपस्या करनी पड़ती है और मेरे पास तो सिर्फ दो दिन है"
दद्दू - " आत्मा की शक्तियां अनन्त है बेटा , जो पूरी तरह से निर्वाण अवस्था मे ही प्रकट होती हैं लेकिन उस अवस्था तक जाने के रास्ते मे जैसे ऐसे साधक की आत्म में लीन होने की अवधि बढ़ती जाती है वैसे वैसे ही धीरे धीरे सब शक्तियाँ प्रकट होती जाती हैं , तुम भी अपनी आत्मा की कुछ शक्तियों से परिचित हो, बचपन मे ही मैने तुम्हे भावनाओ की ऊर्जा से ऊर्जा चक्र निर्मित करना सिखाया था , तुम्हारी भावनाएं ही तुम्हारी शक्ति है, और तुम्हारा सबसे बड़ा सहयोगी है ये तुम्हारा इंसानी दिमाग़ , इस इंसानी दिमाग से प्रेत, चुड़ैल, भूत, पिशाच, डाकिनी, माया, जिन्न, डायन, यहाँ तक कि बड़े से बडे देवता भी हार जाते हैं , तुमने सदा अपना आचरण और चरित्र पवित्र रखा है, उसी का भरोसा करो , शांति से इस दिमाग को अवसर दो , ये तुम्हारी ही आत्म प्रेरणा से तुम्हें रास्ता दिखायेगा "
राहुल - "मैं कोशिश करता हूँ दददू, पर आप मेरे साथ रहना "
"किस से साथ रहने को कह रहे हो राहुल " दरवाजे पे नायक जी के साथ खड़ीं रामायणी जी ने राहुल से पूछा।
क्रमशः .....
सुनें कहानी *बड़े घराने की बहू | लेखिका - आस्था जैन 'अंतस'*
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2 Comments
Ab Sara bhar Rahul k sir pe as gya hai dekhna ye hoga ki Rahul kaise ladta hai sari atmao se ar Kya dayaan sath deta hai ya ni
ReplyDeleteहम्म, राहुल ने बहुत जिम्मेदारी निभाने की कोशिश करी है इस कहानी में
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