कहानी - बड़े घराने की बहू
भाग- 16
श्रेणी- हॉरर, सस्पेंस-थ्रिलर, आध्यात्मिक, स्त्री-विमर्श
लेखिका- आस्था जैन "अन्तस्"
बड़े घराने की बहू

पार्ट 16

" अरे स्नेहा से कहना होगा इसे साथ रहने को इसीलिए अकेले में प्रैक्टिस कर रहा है, मैंने भी तुम्हारी माँ को मनाने की बहुत प्रैक्टिस की थी अकेले में लेकिन फिर मुझसे कुछ हुआ नही तो घरवालों से ही बात करनी पड़ी , खैर तुम्हारी तो शाम को ही सगाई है तुम मत घबराओ"  नायक जी ने राहुल के पास आकर उसके कंधे पे हाथ रखते हुए कहा।

" हाँ, वो मैं थोड़ा थक गया हूँ, आराम कर लेता हूँ " राहुल ने कहा और जाने लगा।

" अरे जा कहाँ रहे हो , हम दोनों के साथ खाना खाओ फिर तुम्हारे लिए कुछ कपडे सेलेक्ट किये हैं उन्हें देख लो , शाम को क्या पहनोगे उसके लिए" रामायणी जी ने उसे रोकते हुए कहा।

" थोड़ी देर आराम कर लूँ माँ, प्लीज,खाना आप दोनों खा लो मैं बाद में खा लूँगा और अपने कपडे भी सेलेक्ट कर लूँगा , ठीक है टेंशन वाली कोई बात नही " राहुल ने कहा।

" अरे पर दयान  ,वो आएगा न या कहीं भेज दिया तुमने उसे "रामायणी जी ने पूछा।

"मैं उससे बात करके अभी आपको बता दूँगा माँ , ठीक "

" ठीक है , जाओ" रामायणी जी ने कहा और राहुल अपने कमरे की तरफ चला गया

" आप बैठिये , मैं अभी आती हूँ" रामायणी जी ने कहा।

" क्यों जाना कहाँ है खाना तो आप हमारे साथ ही खाएंगी न रमा " नायक जी ने पूछा।

" खाना बनाना भी तो है , अभी काफी कुछ बाकी है , ज्यादा देर नही लगेगी बस थोड़ी ही देर इंतजार करना पड़ेगा आपको "

" इंतजार करने तो नही आया रमा, चलो साथ मे बनाते हैं , इसी बहाने बाते भी कर लेंगें"

" आपको खाना बनाना कबसे आ गया, चाय भी तो आपसे छानी नही जाती , रहने दीजिए मैं कर लूँगी" कहती हुई रामायणी जी अपनी रसोई में चलीं गईं।

नायक जी भी उनके पीछे पीछे रसोई में चले आये , उनसे बातें करते जाते और काम भी करवाते जाते। रामायणी जी उनकी अद्भुत पाक कला देख कर चकित थीं।

" आपने कब सीखा इतना अच्छा खाना बनाना " रामायणी जी ने खाना टेबल पे लगाते हुए पूछा।

" अरे , नव्यम आने वाला था न तब ही, नीति कितनी देर में  खाना बना पाती है ये तो सबको ही पता है, तो जब वो पेट मे था तबसे ही मैंने सीखना शुरू किया और बनाते बनाते सीख गया" नायक जी बोले।

रामायणी जी मुस्कुरा दीं , दोनो ने साथ खाना खाया ।

" सोचा था कि तुमसे आज बात करके माफी ले ही लूँगा , माफी न मिली तो सजा ले कर ही जाऊँगा, पर खाली हाथ नही लौटूंगा, लेकिन तुम्हे देख कर समझ नही आता क्या करूँ , न तो तुम मुझसे नाराज हो , न ही वो पहले वाला स्नेह है तुम्हारी आँखों में मेरे लिए, मेरी गलतफहमी की शायद यही सजा है कि न मैं तुमसे  इज्जत मांग सकता हूँ न बेइज्जती" 
नायक जी कमरे की खिड़की की तरफ खड़े कहे जा रहे थे।

रामायणी जी उनके पीछे ही खड़ीं थीं , बोलीं - " मैंने सारी दुनिया से मोह छोड़कर आप पर केन्द्रित कर रखा था नायक, पर जब आपसे ठोकर मिली तो मेरा जीवन जीना भी दूभर हो रहा था, बहुत मानसिक वेदना, तपस्या और समय के बाद मैने अपने आपको अपनी तरफ मोड़ लिया है, आपके पिताजी जो कहा करते थे उन्ही बातों ने मुझे इतने समय तक संबल दिया, अब सच कहूँ तो मेरा जीवन राहुल पर भी केंद्रित नही है, जिसका संयोग हुआ है उसका वियोग तय है, इसलिए मैं जीवन के हर बंधन में सहज ही रह सकती हूँ , अब मैं अपने आप को छोड़कर किसी की तरफ नही मुड़ना चाहती नायक " 

नायक  - " मतलब नव्यम की शादी के बाद आप मेरे साथ नहीं चलेंगी" 

रामायणी -" राहुल आपसे  मिलने जाता रहेगा, जब जिसे मुझसे मिलना हो वो यहां चला आये, पर मैं दुबारा किसी भी तरह आपके जीवन मे नही आ सकती "

नायक -" मैं तो इसे अंहकार समझता हूँ रमा, तुम बदला ही लेना चाहती हो तो सबके सामने मेरी बेइज्जती कर दो , मैं सबके सामने माफी मांगने तैयार हूँ , कम से कम एक मौका तो दो मुझे प्रायश्चित्त का "

रामायणी - " आपको पता है , जब मैं बिल्कुल अकेली थी , रावत भाई साहब ने उस समय मेरा बहुत ध्यान रखा लेकिन अपनी मानसिक वेदना कभी उनसे बांट नही पाई, सोचती थी कि उन्हें तकलीफ होगी , अंदर ही अंदर घुटा करती थी इसलिए नहीं कि आपने मेरा परित्याग कर दिया था बल्कि इसलिए कि आप मुझपे भरोसा नही कर पाए जबकि मैंने कभी आपसे कुछ छुपाया ही नहीं, मैं अंदर से बहुत असहाय सा महसूस करती , आप सब सोचते थे मैंने आपको श्राप दिया होगा, पर सच कहूँ कभी कभी मन मे आता था कि सौ सौ श्राप दूँ आपको और इस समाज को, फिर ससुर जी की बात याद आ जाती थी कि सती स्त्री का श्राप विफ़ल नही होता , आपका अनिष्ट भी नही देख सकती थी, बहुत पीड़ित थी मानसिक रूप से , कभी कभी आत्महत्या तक के विचार आते थे , फिर राहुल मेरी गोद मे आया, मेरा सारा मानसिक संताप जाने कहाँ विलीन हो गया उसका चेहरा देख कर, लेकिन उस संताप का राहुल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था गर्भावस्था में , उसे बचपन मे ही हर चीज से डर लगता था, बच्चे नई चीज देखकर उसके बारे में जानने की कोशिश करते हैं वो हर नई चीज को देख घबरा जाता था, रातों में बहुत रोया करता, इलाज के बाद भी उसका मानसिक विकास सही से नही हो पा रहा था "

नायक - " पर राहुल तो बहुत समझदार , बहुत होनहार है रमा, इतना बड़ा बिज़नेस संभाल रखा है उसने , उसे ये सब... "
रामायणी - " वो रोज मन्दिर जाता था बचपन मे मेरे साथ, मैं पूजा में लगी रहती वो जाने कौन से दादाजी के साथ खेला करता था , कभी कभी उसका पीछा किया तो मन्दिर के पीछे के आँगन में अकेला खेलता पाती थी उसे, लेकिन उसमें अच्छे परिवर्तन आने लगे थे, उसकी मानसिक अवस्था बेहतर हो रही थी, धीरे धीरे उसके सब डर ख़त्म हो गए , शायद कोई दैवीय आत्मा ने मेरे बेटे की सहायता की हो, लेकिन अगर ऐसा नही होता, तो अपने बच्चे की उस हालत के लिए क्या मैं आपको कभी माफ़ कर सकती थी, संसार मे सुख दिखते हैं नायक लेकिन सबके पीछे पीड़ादायक संताप हैं, मैं ये संताप दुबारा नही भुगतना चाहती इसलिए मैं अपने आप को छोड़कर फिर से संसार सुखों की कामना में इन बन्धनों में नही बन्ध सकती " 

नायक - " मैं तुम्हारा अपराधी हूँ , राहुल का अपराधी हूँ, क्या सच मे बिना सजा दिए जाने दोगी मुझे "

रामायणी - " आप मेरी तरफ से निश्चिंत रहिये , मेरे मन मे किसी के लिए मैल नही, कोई अहंकार नहीं, ये एकांत मेरा आत्म हित है जो मेरे लिए जरूरी है  "

नायक - " अब समझ आता है, गहनों के भार और कपड़ों की सजावट से कोई स्त्री बड़े घराने की बहू नही बनती, बल्कि अपने आत्मसम्मान के गुणों से ही उसका ससुराल बड़े घराने की संज्ञा पा जाता है, हमारा घर भी एक सामान्य सा ही घर है रमा ,तुम जब चाहो तब आकर हमारे घर को उसका गर्व उसकी श्री वापस दे सकती हो, अगर इस आध्यात्मिक साधना से तुम्हे शांति मिल रही है तो मेरे भी प्रायश्चित से सन्तप्त हृदय को शांति मिलनी चाहिए, कभी पिताजी समझाया करते थे तो सुनता नही था, तुम समझाओ तो शायद मैं भी खुद को समझ पाऊँ " नायक जी ने कहा और भारी कदमो से उस घर से चले गए ।


......... 

राहुल कमरे में अपने बेड पे बैठा शुरू से लेकर आखिर तक हर चीज एक बड़े से चार्ट पे नोट करता जा रहा था और उन सबको आपस में जोड़ने की कोशिश कर रहा था , जहाँ उसे समझ नही आता वहाँ , दददू की थ्योरी लगाने की कोशिश करता ।

" दयान आया है, कह रहा है तुम्हारे ही साथ खायेगा , तुम बाहर आ रहे हो या मैं उसे ही भेज दूँ " रामायणी जी ने  कमरे में आकर कहा।

" हाँ , माँ आप भेज दो , मेरा काम बाकी है अभी" राहुल ने कहा और काम मे लग गया।

वो अभी अपने चार्ट में लगा ही हुआ था कि वही शापित बेंदा उस चार्ट के ऊपर आ गिरा, राहुल घबरा कर बेड से उछल गया , सामने देखा तो दयान खड़ा था। उसने चैन की सांस ली।

" वाह तुम तो बड़ी बड़ी बातें करके आये थे और एक बेंदा क्या देख लिया 10 फुट दूर उछल पड़े" दयान ने उसके पास आते हुए कहा।

" तुम सब ऐसे ही डरा डरा कर मर डालो , पहले वो पैलेस , फिर दद्दू अब तुम " खीझता हुआ राहुल वापस से अपने काम मे लग गया। 

दयान - " माई से कहा है मैंने 1 घण्टे बाद खाना लाएं तब तक मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है, मुझे लगता है मैं कुछ कर सकता ..."

राहुल - " तुम अपनी काली शक्तियों से कुछ नही कर सकते दयान, अंधेरे से अंधेरे को खत्म नही किया जा सकता उसे सिर्फ रोशनी ही खत्म कर सकती है " 

दयान - " जानता हूँ , ये तो मैं भी तुम्हे बता चुका हूँ कि मैं उस बाबा को अपनी बुरी शक्तियों से हरा नही सकता, लेकिन अपने दिमाग का प्रयोग करके भी मैं काफ़ी कुछ कर सकता हूँ, हो सकता है मेरा जो शक है अगर वो सही हो तो हमे उस बाबा की शक्ल भी न देखना पड़े और सब की जान बच जाए " 
राहुल हैरत से उसे देखने लगा, बोला - " मुझे तो यकीन नही होता , सच बताओ  .... दिमाग है तुम्हारे पास "

दयान हँसते हुए बोला  - " कोई और वक्त होता तो जरूर बताता लेकिन अभी तो तुम वो सुनो जो मैंने सोचा है , मुझे लगता है वो जिस आत्मा का ये बेंदा है , वो उस बाबा के वश......" 

राहुल - " अरे क्या हुआ बोलो न , सस्पेंस न रखो यार ..."

दयान से कुछ बोला न गया उसने काँपते हाथ से राहुल के कमरे की आधी खुली खिड़की की तरफ इशारा किया जिसपे डले हुए पर्दे में कोई आधा इंसानी साया हिल रहा था ।

" ओ तेरी...."  चिल्लाते हुए राहुल दयान से चिपक गया ।

उसके चिल्लाते ही बाकी की आधी खिड़की भी धड़ाक से खुल गई और...............

......
उस पर्दे के साथ ही वो इंसानी साया भी कमरे में अंदर आ गिरा .

पर्दे में लिपटा वो साया जमीन पर ही रेंगते हुए उन दोनों की तरफ़ बढ़ने लगा ।

"कुछ कर दयान " राहुल ने मरी हुई आवाज में दयान से कहा।
दयान ने कुछ मन्त्र बड़बड़ाने शुरू किए लेकिन उनका कोई असर उस प्रेत पे नहीं हुआ।

" ये बहुत ताकतवर बुरा प्रेत है राहुल, तुम ही कुछ करो" दयान खुद को राहुल के पीछे सरकाता हुआ बोला।

अपनी पूरी हिम्मत बटोरकर राहुल ने ॐ कार का जाप करना शुरू किया लेकिन अद्भुत... इसका भी उस प्रेत पर कोई असर नही हुआ , वो उसी तरह पर्दे में जमीन पर रेंगता हुआ धीरे धीरे उनके पास बढ़ता आ रहा था

इस भरी दोपहर में इस प्रेत लीला को साक्षात देख कर दोनो के दिल धड़कना ही भूल गए, दोनों की हालात कब्रिस्तान में पड़ी लाश जैसी हो गई थी जिसे दो लम्हों बाद दफनाया ही जाना था ।

अचानक उस साये की ख़ौफ़नाक फुसफुसाहट उन दोनों के दिमाग को सुन्न करती हुई उनके कानों के आर पार हो रही थी।

" मदद करो मेरी, मदद करो "

ये दोनों सारा दया धर्म भूले एक दूसरे से ही सटे बैठे रहे। आख़िर कुछ मिनटों  की जद्दोजहद के  बाद उस साये ने अपने आपको उस पर्दे से आजाद कर ही लिया।

" स्नेहा ......" दयान और राहुल दोनो एक साथ बोल पड़े 

" श्श्श्श्श्श्श्श....... माँ सुन लेंगी , धीरे बोलो " अपनी कोहनी सहलाती हुई स्नेहा बोली ।

वो दोनों भौचक्के से आँखे फाड़कर एक दूसरे को घूरे जा रहे थे ।

" अरे मुझे आपकी वजह से इतनी चोट आई है और आप है कि एक दूसरे को घूरे जा रहे हैं " स्नेहा वैसे ही फुसफुसाते हुए बोली ।

" तुमको तो मैं .... " राहुल का सारा डर ग़ुस्से में बदल गया उसी बेड से उठकर वो स्नेहा के पास आया ।

" दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा , घर में दरवाजा नही है, खिड़की से अंदर कौन आता है , और वो भी इस तरह.. तुम सब मिलके न आज डरा डरा कर ही मेरी जान ले लो " 
राहुल गुस्से मे बोला ।

" अरे वो माँ को पता चल जाता कि मैं सगाई की रस्मे छोड़कर यहाँ आपसे मिलने आई हूँ तो वो परेशान हो जाती इसलिए खिड़की से आई , मैं तो आराम से आ रही थी तभी आप चिल्लाए और मेरा बैलेंस बिगड़ गया और मैं गिर पड़ी मुझे इतनी चोट आई और आप बरस भी मुझपे रहे हैं " बोलते हुए  मायूस सा चेहरा बनाकर स्नेहा वहीं जमीन पे बैठ कर अपनी कोहनी सहलाने लगी।

" बहन , राहुल भी सही है, डर तो मैं भी गया था , खैर अब दवा लगा लो , राहुल दवा कहाँ रखी है " दयान ने राहुल की तरफ देखते हुए कहा।

राहुल दवा लेकर आया और चुपचाप स्नेहा की कोहनी पर लगाने लगा ।

स्नेहा -" गुस्सा क्यों हो मैंने...." 

राहुल - " चुप , तुमसे सगाई के बाद फ़ाइल माँगी थी मैंने अभी इतनी जल्दी बना भी ली तुमने फ़ाइल और बात भी कर ली कल्पना से ?"

स्नेहा - "अरे इन सब मे बहुत टाइम लग जाता और टाइम हमारे पास है नहीं इसलिए मैं दीदी की पर्सनल डायरी उठा लाई , इसमे वो सब लिखती हैं , क्यों दयान भैया , मैने सही किया न "

दयान ने सहमति में सिर हिला दिया और राहुल से परे नजर फेर ली।

राहुल - " अब तुम भी इसकी इन हरकतों का साथ दो , पहले से ही कम जासूस नही है ये "

स्नेहा -" आप ये डायरी लीजिये और मुझे जाने दीजिए , डांट बाद में लगा लेना , वैसे अब दयान भैया भी हैं न आपके साथ " 
दयान - " हाँ , मुझे कुछ नई बाते समझ मे आईं हैं , मैं चाहता हूं स्नेहा तुम भी वो सब सुनो "

राहुल - " मुझे भी कुछ दिक्कत आ रही है चार्ट के कुछ पॉइंट्स में , वो भी हम तीनों साथ ही डिसकस कर लेते हैं " 

सबने सहमति में सिर हिलाया और उस चार्ट को जमीन में तीनो लोगों के बीच रख कर  बैठ गए।

क्रमशः....

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