कहानी - बड़े घराने की बहू
भाग - 18
श्रेणी- हॉरर, आध्यात्मिक, स्त्री- विमर्श, सस्पेंस-थ्रिलर
लेखिका - आस्था जैन "अन्तस्"

बड़े घराने की बहू 

पार्ट 18

"अंगूठी वापस उतार.... " 
हॉल में सबकी आवाजें आना बंद हो चुकी थीं , सिर्फ वही एक रोंगटे खड़े कर देने वाली आवाज पूरे हॉल में गूंज रही थी ,
वो भयानक आवाज सुनकर स्नेहा जड़ हो चुकी थी।
राहुल ने तुरन्त अपने हाथ से वो अँगूठी निकालकर फेंक दी ।
उस चेहरे ने मुड़कर राहुल की तरफ देखा, उसकी काली आँखों से एक काला आँसू निकला और झटके से वो वापस उसी स्विच बोर्ड में समा गया।

सारे हॉल की लाइट वापस आ गई।
स्नेहा अब भी सदमे में थी , राहुल ने पीछे मुड़कर देखा , हॉल में सब बेहोश पड़े थे , केवल रामायणी जी और कल्पना वहीं जड़ होकर खड़ी थीं मानो उन्होंने भी वो नजारा देखा हो।

राहुल सबको इस तरह बेहोश देख सकपका गया, उसने सबको होश में लाने की कोशिश की , सबको धीरे धीरे होश आना शुरू हुआ, रामायणी जी कल्पना और स्नेहा को लेकर वापस उनके कमरों में चलीं आईं ।

सबको ये घटना बेहद असामान्य लगी, राहुल के कहने पर सब आराम करने चले गए।

सबके जाने के बाद राहुल ने उसी स्विच बोर्ड के पास अँगूठी ढूढ़ना शुरू किया लेकिन वो उसे नहीँ मिली , मिला एक नग, काला नग , वो शायद उस चेहरे के आँसू से बना था, राहुल ने सोचा मनहूस आत्मा से जुड़ा हुआ ये नग भी मनहूस होगा, इसलिए उसे वहीं पड़ा छोड़कर वो वापस आ गया।

उसने खाना स्टाफ से कहकर सबके कमरों तक पहुंचवा दिया, उसने दयान को फोन करके सारी बात बताई।

राहुल बहुत डर गया था, अब वो यहाँ इतने लोगो को मुसीबत में छोड़कर अपने घर नही  जा सकता था उसने पैलेस में ही रुकने का मन बनाया।

आज स्नेहा को अपनी वजह से इतना डरा हुआ देखकर उसका दिल बहुत दुखी था।  

" दयान सच कहता है, ये सारी आत्माएं बुरी हैं , बहुत बुरी हैं" 
वो खुद में बड़बड़ा रहा था ।

दयान रात 1बजे पैलेस में आने वाला था । अभी सिर्फ 12 बजे थे । पैलेस में सन्नाटा पसरा हुआ था । सब सो रहे थे। रामायणी जी भी कल्पना और स्नेहा के कमरे में रुकीं थीं क्योंकि वे दोनों बहुत डरी हुईं थीं । रामायणी जी राहुल के लिए परेशान थीं लेकिन इन दोनों को भी छोड़ कर नही जा सकती थीं , किसी और को भी बताना अभी उचित नही था  न जाने और क्या मुसीबत आ जाये ।

जब कल्पना और रामायणी जी गहरी नींद में सो गईं तब स्नेहा चुपके से उठी और राहुल के केबिन की तरफ चल दी।

रात में ये पैलेस सच मे  कितना भूतिया लग सकता है आज स्नेहा को ये महसूस हो रहा था । किसी तरह खुद को हिम्मत देते हुए वो राहुल के केबिन में पहुँची । राहुल गहरी सोच में डूबा हुआ अपनी कुर्सी में सिर टिकाये आँखे बंद किये बैठा एक हाथ से अपना  सिर सहला रहा था।

राहुल को इतना परेशान देख स्नेहा केबिन के दरवाजे से ही वापस लौट गई । लेकिन अपने कमरे में जाने के बजाय वो पूरा पैलेस देखने लगी।

पैलेस बाहर से देखने मे काफी बड़ा लगता था , अंदर भी काफी फैला हुआ था , लेकिन कमरों की संख्या कम थी , बड़े बड़े हॉल ही ज्यादा थे । पहली मंजिल के कमरो में 2 कमरे स्टाफ मीटिंग के लिए थे, 2 केबिन थे , एक कमरा वेटिंग रूम था , 2 हॉल स्टोर रूम की तरह प्रयोग हो रहे थे और एक हॉल में एक्स्ट्रा फर्नीचर था। दूसरी मंजिल के कमरे दो हिस्सों में बंटे थे दाऐं तरफ 8 कमरे थे और बाएं तरफ भी 8 कमरे थे , बीच मे बड़ा सा हॉल था , जहां कभी मीटिंग्स आयोजित होतीं या छोटे छोटे कार्यक्रम, तीसरी मंजिल पर कोई कमरा नही था । 5 बड़े बड़े हॉल थे , जिनमे से 2 बन्द थे , 2 में सफाई का काम करवा के उनमे कमरे बनवाने का काम चल रहा था, 1 हॉल में पैलेस की सफ़ाई में निकलने वाले हर तरह का सामान रखा जाता था, जहां राहुल ने वो कौड़ी की पुताई के पत्थर देखे थे। तीसरी मंजिल के हॉल के ऊपर विशाल छत थी जहां तक जाने की सीढ़ियों पर एक दरवाजा था और वो बन्द था , बाकी किसी मंजिल की सीढ़ियों पर दरवाजे नही थे । ये दरवाजा भी पुराना था और उसपे लगा ताला भी।

पैलेस पूरी तरह बंद था , सिर्फ कमरों और हॉल में खिड़कियों की व्यवस्था थी, आँगन जैसी कोई भी जगह पैलेस में नही थीं ।

स्नेहा वापस उसी दूसरी मंजिल के हॉल में आ गई , यहीं आज उसकी सबसे खुशी का दिन दहशत में बदल गया था ।

वो उसी स्विच बोर्ड के सामने आकर खड़ी हो गई।
उसने उस स्विच बोर्ड को हाथ लगाना चाहा पर वो काली आँखों का चेहरा याद आते ही वो दो कदम पीछे हट गई और उसे महसूस हुआ कि उसका पैर किसी बिजली के नंगे तार पर रख गया हो, बिजली का एक जोरदार झटका उसे लगा और उसने तुरन्त अपना पैर हटा लिया , उसके पैर में  झन्नाहट हो रही थी। उसने नीचे झुक कर देखा तो वो एक काला नग जैसा था। उसको देखते ही स्नेहा को वो काली आँखों से गिरता काला पानी याद आ गया, उस चेहरे ने अँगूठी उतारने को कहा था और राहुल ने तुरन्त स्नेहा की पहनाई वो अँगूठी उतारकर फेंक दी थी , स्नेहा ने दर्द से आँखे बंद लीं , उसकी आँखों से निकला एक आँसू उस काले नग पर गिर गया।

खुद को संभालने के बाद स्नेहा ने आँखे खोलीं और वापस जाने के लिए खड़ी हो गई । लेकिन अपने आस पास का नज़ारा देख उसके होश उड़ गये । शरीर मे खौफ़ का लगातार कम्पन होने लगा , वो किसी छत पर थी , विशाल कब्रिस्तान सी छत  , ऊपर गहरा काला आसमान , न कोई तारा , न कोई चाँद । उसने आगे बढ़कर  डरते हुए नीचे देखा तो वो पैलेस का ही बगीचा था । वो पैलेस की ही छत पे खड़ी थी, उसे लग रहा था  कि जैसे वो पैलेस की छत पर न खड़ी हो बल्कि मौत के सिर पर खड़ी हो।

" अजीब बात है इतना अंधेरा है फिर भी सब साफ दिख रहा है , कोई रोशनदान तक नही है, यहाँ से वापस कैसे जाऊँ , क्या करूँ" वो परेशान सी  सीढियों की तरफ गई, दरवाजा खुला हुआ था , लेकिन जैसे ही वो सीढ़ियों पे उतरी उसे नीचे से किसी के आने का आभास हुआ , बहुत सारे कदमो की आवाजें आ रहीं थी। 

स्नेहा वापस लौट आई और छत के ही एक कोने में दुबक कर बैठ गई।

उसने देखा सीढ़ियों से दो औरतें एक औरत को लेकर ऊपर आईं और छत के किनारे ले गई , वो औरत छटपटा रही थी, अपने प्राणों की भीख मांग रही थी, खुद को निर्दोष बता रही थी , उसका चेहरा स्नेहा को साफ समझ आ रहा था । ये वही चेहरा था जो उसने आज स्विच बोर्ड से निकलते हुए देखा था , उसके शरीर की बनावट बहुत कुछ रामायणी जी जैसी थी , उन दो औरतों के चेहरे स्नेहा को नही दिखे क्योंकि वो उनके पीठ की तरफ़ छुपी हुई थी , स्नेहा काँपते हुए खड़ी हुई तभी सीढ़ियों से एक पतली रस्सी खींच कर लाते हुए वो आदमी ऊपर आया , काले कपड़ो में उस रात जैसे वो शैतान का दूसरा रूप था । उसने उन दोनों औरतों से जाने को कहा।

स्नेहा फिर दुबक कर बैठ गई । वो दोनों औरतें अपना लम्बा घूँघट लिए वापस नीचे चलीं गईं । 
औरत हाथ जोड़े रो रोकर उस आदमी से माफी मांग रही थी,  उस आदमी की एक खौफ़नाक आवाज़ पूरी हवा में तैर गई
" रो मत....... "  और कुछ मन्त्र बड़बड़ाते हुए उस आदमी ने उस रस्सी का सिरा जो वो अपने साथ लाया था उस औरत के सिर में चुभा दिया। वो रस्सी नहीं तार था , बिजली का तार.....

वो औरत छटपटाती रही ,वो आदमी कुछ मन्त्र बड़बड़ाता रहा , जब बिजली ने उस औरत का सारा खून जला कर काला कर दिया , आदमी ने उस औरत को छत से नीचे फेंक दिया। और बिजली का तार लेकर वापस नीचे जाने के लिए मुड़ गया ।

गहरे डीम अंधेरे ने उस आदमी की शक्ल साफ दिख रही थी स्नेहा को । उसे देखते ही स्नेहा सदमे से चिल्ला पड़ी .....
" दद्दू......"

क्रमशः ....