कहानी - बड़े घराने की बहू
भाग - 19
लेखिका- आस्था जैन " अन्तस्"
श्रेणी- हॉरर, सस्पेंस-थ्रिलर, आध्यात्मिक, स्त्री- विमर्श

बड़े घराने की बहू

पार्ट 19
हमेशा प्यार से , स्नेह से समझाने वाले शांत, सौम्य और तेजस्वी दद्दू को इस कलुषित और अपराधी रूप में देख कर स्नेहा को शायद जिंदगी का सबसे बड़ा सदमा लगा था ।

"ऐसा कैसे हो सकता है ये क्या है, सच या छलावा" स्नेहा सोच रही थी।

उस आदमी की शक्ल दद्दू जैसी थी लेकिन उस शक्ल में वो स्नेह वो आत्मीयता बिल्कुल भी नही थी जो दददू के चेहरे से सहज ही झलका करती थी।
उस आदमी ने अपने दोनों हाथ ऊपर उठाये और अपने अपनी भारी डरावनी आवाज में बुदबुदाया 

" दुनिया मे बुरा सबसे , एक इंसान होता है 
दुनिया को लगता है , बुरा बस शैतान होता है" 

उसकी आवाज उसके चेहरे से कहीं अधिक भयानक थी। 
अपना शैतानी रूप समेटे एक कत्ल को अंजाम देने के बाद वो सीढ़ियों से नीचे उतर गया जैसे उसने स्नेहा को देखा ही नही।
स्नेहा ने खुद को हिम्मत दी और उन सीढ़ियों के नीचे दबे पैर उतर आई ।
उस आदमी के ही पीछे चलने लगी। जल्दी ही उसे अहसास हुआ  कि उसके छिपने का कोई मतलब नहीं , यहाँ कोई उसे देख नही पा रहा था , हर हॉल और कमरे का दरवाजा बन्द था , बस कहीं कहीं रोबोट जैसी चलती फ़िरती औरतें लम्बा घूँघट डाले दिख जाती थीं , जो आपस मे भी बात नही कर रहीं थीं।
स्नेहा उस आदमी के पीछे पीछे पैलेस के बगीचे तक पहुँच गई ।
उस आदमी ने उस औरत की लाश उठाई और उस कमरे की ओर बढ़ चला जो वर्तमान में राहुल का केबिन था ।
उस कमरे में  चारों ओर दिए रखे हुए थे , बीच मे एक लड़का बिल्कुल उस आदमी जैसी तांत्रिक वेश भूषा में बैठा हुआ था ।
उस आदमी को आया देख , उस लड़के ने स्वयं उठकर उस लाश को अपने कंधे पे लिया।

उस आदमी ने फ़र्श के बीचों बीच की ज़मीन पर पैर रखकर एक मन्त्र बुदबुदाया और फ़र्श उस जगह से खुल गया , नीचे सीढ़ियाँ थी, दोनो नीचे उतर गए।

स्नेहा भी नीचे उतरी , दोनों के पीछे पीछे चलती रही ।
वो किसी कमरे में उतरे , वहाँ एक बड़ी सी तस्वीर थी किसी लड़की की बिल्कुल किसी रानी महारानी जैसी, स्नेहा ने देखा उस तस्वीर में उसके माथे पे वही बेंदा था जो स्नेहा ने दयान के पास देखा था , स्नेहा समझ गई ये वही लड़की है जिसने राहुल को न अपना चेहरा दिखाया था न अपनी कहानी बताई थी।
पर उस तस्वीर में उसका चेहरा साफ दिख रहा था।
साँवले रंग के चेहरे पे अलग ही अलौकिक तेज़ था, तस्वीर बनाने वाले ने हर एक सुखद भावना को उसके चेहरे पे उकेरा थे। प्रसन्नता की मूर्ति मालूम पड़ती थी वह लड़की।

उस आदमी ने उस तस्वीर को छुआ और कहा " बस , अब 5 बलि और , 5 शक्तियाँ और, फिर तुम्हारा बलिदान सफल हो जाएगा , जो तुमने मेरे लिए किया था, तुमने मुझसे इतना प्रेम किया , मेरे घराने का इतना मान सम्मान बढ़ाया, अपना जीवन, मृत्यु , और मृत्यु के पश्चात भी तुम मेरे प्रति स्वामिभक्त बनी रहीं , मैं तुम्हारा ऋण कभी नही उतार पाऊँगा  देवी, इसलिए मैं इसका व्यर्थ प्रयास भी नही करना चाहता ।
स्त्री की नियति ही यही है कि उसका जीवन पुरुष की सेवा में उत्सर्ग हो जाये"

स्नेहा ये बातें सुनकर विश्वास ही नही कर पा रही थी कि ये आदमी दददू है।

उस कमरे से बाहर निकल कर वे लोग उस लाश को लेकर नीचे की चौथी मंजिल तक लेकर गए। स्नेहा भी उनके पीछे पीछे चल रही थी । तीनो मंजिलों में उसे कमरे ही मिले जिनके दरवाजे बंद थे । चौथी मंजिल की सीढ़ियाँ उतर कर उसने देखा सब कुछ वैसा ही था जैसा राहुल ने बताया था ।

वही बड़ा सा हॉल जिसमे वो जलाशय काले पानी से भरा हुआ और बेहद बदबूदार । अपना मुँह पर हाथ रखे स्नेहा सीढ़ियों से नीचे उतरी ।
लड़के ने लाश को नीचे पटक दिया और एक उसी काले पानी के कुंड के किनारे खड़े होकर हाथ आगे फैलाकर कुछ मन्त्र पढ़े। उस कुंड में से एक ख़ंजर निकल कर आया और उस लड़के के हाथ मे आ गया , लड़के ने वो ख़ंजर उस आदमी को दे दिया ।
उस आदमी ने कुछ अजीब सा बुदबुदाते हुए उस ख़ंजर से उस औरत के हाथ की एक उंगली में ख़ंजर से हल्का सा काट दिया। उस जरा से ज़ख्म में से बहुत सारा काला बदबूदार पानी उस कुंड में जाकर गिरने लगा । उस कुंड का में काले पानी का  स्तर बढ़ गया । कुंड में से एक तीव्रता की बिजली निकली और उसी कुंड में समा गई । 
उस आदमी ने लड़के से से कहा, " इस लाश को इसके कमरे की दीवार में दफ़न कर दो, अब बिजली की समस्त शक्तियों के साथ इसकी आत्मा हमारी गुलाम है , बस अब दो बलि और.... दो शक्तियाँ और फ़िर नरेंद्र राठौड़ होगा इस पूरी रियासत का मालिक , इस पूरी दुनिया का मालिक , इस पूरे ब्रह्मांड का मालिक, सारी शक्तियाँ मेरी गुलाम होंगीं, बस दो सती और " 
उस भयानक दृश्य को उसके शैतानी अट्टहास ने और भी भयानक बना दिया था।
उस लड़के ने लाश ली और उसे उठाकर ऊपर की तरफ चला गया।
स्नेहा के लिए वहाँ साँस लेना मुश्किल हो रहा था अब वो शैतानी हँसी उसके कानों को फाड़ कर उसके दिल को चीर रही थी।

वो वापस ऊपर चली आई , उसने देखा वो लड़का उस औरत को तीसरी मंजिल के किसी कमरे में ले जा रहा था । 
अब कुछ और देखने और सुनने की अवस्था मे वो नही थी। वो बेतहाशा भागती हुई उसी कमरे में आ पहुँची जहां उस बेंदा वाली लड़की की तस्वीर थी ।

उसने कमरे में आकर दरवाजा बंद करना चाहा लेकिन वो दरवाजों को छू नही पाई। उसने जब नीचे देखा तो पाया कि उसके पैर भी जमीन से कुछ इंच ऊपर थे ।

अब उसे और भी डर लगने लगा वो वापस ऊपर सीढ़ियों की तरफ़ दौड़ पड़ी। अचानक सीढ़ियाँ चढ़ते हुए उसे एक आवाज़ सुनाई दी, किसी लड़की की बेहद खौफ़नाक आवाज... " वो सिर्फ मेरे हैं, तुम उन्हें एक अँगूठी पहनाकर अपना नहीं बना सकतीं, दुबारा ऐसी कोशिश भी की तो अपनी प्राण खो बैठोगी और ये एक सती का वचन है..." 

दहशत से काँपती हुई स्नेहा के पैर नहीं उठ रहे थे।
पीछे मुड़ने की भी उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। 
अचानक उसे महसूस हुआ कि कोई लड़की अपनी पायलों को छनकाती हुई सीढ़ियों पर चढ़ रही है।
उसके बिल्कुल पास आकर उसने स्नेहा के बालों में बड़े प्यार से हाथ फेरना शुरू कर दिया ।

स्नेहा जैसे जीते जी मर रही थी।

" इन सीढ़ियों को चढ़ने से मेरे स्वामी मुझसे अप्रसन्न होते हैं.... पर अपने स्वामी के लिए ही मैंने पहली बार ये सीढ़ियाँ चढ़ी हैं और उन सीढ़ियों को पार कर मैं क्या क्या कर सकती हूँ ये तुम सोच भी नहीं सकती , इसलिये दूर रहो उनसे" 

आवाज़ अब स्नेहा को उतनी भी खौफ़नाक नही लग रही थी।
बिना मुड़े ही बोली  , - " आप जैसा उचित समझें , रानी साहिबा " 

"जरा इधर देखो " उस लड़की ने कहा।

बड़ी हिम्मत जुटा कर आँखे मीचती हुई स्नेहा पीछे मुड़ी और आँखे खोलीं तो देखती ही रह गई।
इतना तेज़, इतनी सौम्यता, इतनी भव्यता , बिल्कुल वैसी ही जैसी दददू को देखकर अनुभव होती है।
उस लड़की ने मुस्कुराते हुए एक हाथ से स्नेहा का एक हाथ पकड़ा और एक हाथ से उसके गाल को सहलाते हुए बोली,- "क्या उन्होंने तुम्हे बताया कि हमारा नाम रानी साहिबा है"

स्नेहा -" नहीं, आपको देखकर मुझे लगा तो मैंने कहा दिया, सच मे आपका नाम..."

" नहीं , वो हमें पहली बार उन्होंने प्यार से यही कहा था, तो हमे लगा कि.... , देखो तुम बुरी नही हो लेकिन हम अपने स्वामी को तुम्हे नही दे सकते वरना वे अपने लक्ष्य से विचलित हो जायेंगे , तुम जाओ , अब यहाँ मत आना "
कहकर उस लड़की ने स्नेहा को एक जोरदार धक्का दिया ।

स्नेहा चक्कर खाकर नीचे गिर पड़ी।
उसके सिर में चोट आ गई  , अपना सिर पकड़ कर जब वो उठी तो पाया कि वो दूसरी मंजिल के उसी हॉल में थी और सामने खड़े दयान , रामायणी और राहुल उसे ही घूर रहे थे।

राहुल उसे संभालने के लिए उसके पास आया तो वो उससे दूर हो गई ।

रामायणी जी के पास आकर बोली - " माँ, मैंने शैतान देखा "

" कैसा  शैतान , क्या कह रही हो स्नेहा , कौन है शैतान"दयान ने घबराते हुए पूछा।

"दद्दू..." स्नेहा ने कहा और बेहोश हो गई।

क्रमशः....