कहानी - बड़े घराने की बहू
भाग - 21
लेखिका- आस्था जैन " अन्तस्"
श्रेणी -हॉरर, आध्यात्मिक, स्त्री-विमर्श, सस्पेंस-थ्रिलर
" कल्पना भाभी, स्नेहा कहाँ है " राहुल ने हाँफते हुए कल्पना से पूछा।
कमरे के बाहर निकलती हुई कल्पना इस तरह राहुल को हैरान परेशान देखकर चौंक गई।
कल्पना - "वो ... वो तो गई "
राहुल - "क्या ! उसको जाने क्यों दिया आपने , उसकी तबियत पहले से ही खराब है "
कल्पना - " अरे पर वो जिद कर रही थी तो मैंने जाने दिया, बुआ है उसके साथ , उसे कुछ नही होगा , इतनी टेंशन मत लो "
राहुल - " आपका दिमाग..... अरे बुआ क्या कोई भगवान हैं जो उसे बचा लेंगी उल्टा उनकी भी जान खतरे में डाल दी आपने "
कल्पना - " अरे , साँस तो लो , कुछ नही होगा किसी को, अभी आ जाएंगी दोनो, अरे बस यहीं मन्दिर.... "
दयान भी राहुल के पीछे वहाँ पहुँच गया ।
" क्या हुआ, स्नेहा कहाँ है " दयान ने परेशान होकर पूछा।
" चली गई वो , बुआ को भी अपने साथ ले गई है, मेरे मना करने के बाद भी , कुछ नही करना मुझे , मुझे बस मेरी स्नेहा वापस चाहिए दयान " राहुल दीवार पर सिर पटक कर फफक फफक कर रो पड़ा ।
" तुम संभालो खुद को , मैं करता हूँ कुछ "कहकर दयान वापस जाने को मुड़ा और सदमे से लड़खड़ा कर राहुल के ही ऊपर गिर पड़ा।
सामने से स्नेहा हँसती खिलखिलाती , रेखा बुआ के साथ वहीं आ रही रही , दोनो के हाथ मे प्रसाद था ।
लेकिन सामने की परिस्थिति देखकर दोनो हक्की बक्की रह गईं ।
" क्या हुआ दयान भाई , आप ऐसे क्यों गिरे पड़े हैं और राहुल आप रो क्यों रहे .... " स्नेहा ने पूछा
राहुल से कुछ बोला न गया , मुँह फेर कर अपने आँसू पोंछ डाले उसने।
" कहाँ गई थी तुम बुआ जी के साथ " दयान ने अपने सदमे से उबर कर पूछा।
" मन्दिर , प्रसाद भी लाई हूँ , लीजिये" स्नेहा ने प्रसाद उसी तरफ बढ़ाते हुए कहा।
" मन्दिर...... , आप पहले नही बता सकती थीं" राहुल ने शिकायत भरी नजरों से कल्पना को देखते हुए कहा।
"बता तो रही थी, अपने आगे सुनी ही नहीं आपने, जब तक पूरा बोल पाती तब तक तो रो पड़े आप, अजीब हैं दोनों भाई बिल्कुल , एक से बोला नही जाता, दूसरा पूरी बात भी नही सुनता " कल्पना सफाई देते हुए बोली।
"हो क्या रहा है,कोई बतायेगा मुझे" बुआ बोलीं ।
" कुछ नहीं , चलो दयान यहाँ से " दयान का हाथ पकड़ कर राहुल वहाँ से चल दिया।
" अरे रुको तो सही , स्नेहा , बहन वो बेंदा तुम्हारे पास है क्या " दयान ने रुकते हुए पूछा
"नही , मैंने तो उसे कल राहुल के ही कमरे में देखा था, वहीं होगा, मेरे पास नही है" स्नेहा ने कहा
राहुल और दयान एक दूसरे का मुँह ताकते रह गए कि आखिर वो बेंदा गया कहाँ।
.....
" पिताजी तुमसे मिलने आये, लेकिन मुझसे नही मिले, शायद अब भी माफ नही किया उन्होंने मुझे, मैं इतने सालों से उन्हें ढूढ़ रहा था, और अब जाकर मिली भी तो ये ख़बर कि वो स्वर्गवासी हो चुके हैं और मैं आज भी उनका अपराधी हूँ तभी उन्हें मुखाग्नि भी न दे सका"
नायक जी बड़े दुखी मन से बोल रहे थे , शब्द भी उनके गले मे मानो फँस रहे थे , पश्चाताप की एक एक फांस मन को चीरते हुए गले मे घाव करती हुई शब्दों से बाहर निकल रही थी।
राहुल ने सब बड़ो के सामने सब कुछ जो 4 दिनों में घटित हुआ , सब कह दिया । दददू अब मनुष्य गति से देव गति को प्रस्थान कर चुके हैं, ये जानकर सब बहुत दुखी थे। अब तक तो उम्मीद भी थी कि वे किसी दिन जरूर मिलेंगे किन्तु अब वो उम्मीद भी खत्म होने से सब दुखी थे।
" मेरे ही कारण आपको ये सजा मिली है , न मैं वो षड्यंत्र रचती ,न आपके पिताजी आपको छोड़कर जाते और न ही उनकी मृत्यु.... " नीति सिसकते हुए कह रहीं थीं।
" बीती बातो को कुरेदने से क्या प्राप्त हो सकता है, अरे मुझे तो प्रसन्नता है कि राहुल के दददू को स्वर्ग गति प्राप्त हुई , वहाँ वे निश्चिंत होकर अपनी आत्मा का ध्यान लगायेंगे, फिर से मनुष्य गति पाकर अपने पुरुषार्थ को बढ़ाकर निर्वाण प्राप्त करेंगे , हम सब अपने स्वार्थ के लिए दुखी हो रहे हैं , अपने मोह के लिए, बल्कि ये पता चलने के बाद हमे खुश होना चाहिए, दददू की तरह ही अपनी गलतियाँ सुधार कर अपनी आत्मा की मुक्ति के उपाय करने चाहिए " रामायणी जी सबको संबोधन देते हुए बोलीं।
उनकी बातों से वातावरण बहुत सहज हुआ।
" हम में से कोई नही जानता कि दददू की मृत्यु कैसे हुई, लेकिन उनकी धर्मपत्नी, उनके पिताजी, उनकी माताजी इन सबकी मृत्यु कैसे हुई , ये आप सबको पता होगा ही" दयान ने सबकी तरफ देखते हुए कहा।
नायक -" मैंने अपनी माँ को कभी देखा ही नहीं , पिताजी कहते थे कि जब मैं 7 महीने का था , तभी उनकी मृत्यु बिजली के करंट लगने के कारण हुई थी, दादा दादी मैने कभी नही देखे , उनके बारे में पिताजी ने कभी कोई बात भी नही की"
राहुल बिजली के करंट की बात सुनकर एकदम सकते में आ गया।
" आपके पास दादी की कोई तस्वीर है क्या पापा? " राहुल ने पूछा।
नायक -" हाँ , है तो, नव्यम के मोबाइल में है हमारे परिवार का फैमिली ट्री बनाया था इसने , उसमे सब तस्वीरे हैं।"
नव्यम ने तुरन्त अपने मोबाइल में से दादी की तस्वीर राहुल को दिखाई, तस्वीर देख कर राहुल के दिमाग मे कई बिजली के तार एकदम झनझना उठे, ये वही औरत थी जिसे बिजली के करंट से उस आदमी ने मार कर पैलेस की तीसरी मंजिल से नीचे फेंक दिया था। उसने सबको बताया , सबके दिमाग के सुन्न पड़ गए।
नायक - " अगर तुम लोगो के देखे दृश्य सच्चे हैं , तो माताजी यहाँ राधौगढ़ में क्यों आईं, मैं तो हमेशा से ही मुम्बई में पला और बढ़ा हुआ, इस जगह का तो मैंने कभी नाम भी नही सुना पिताजी से "
रामायणी- " कुछ न कुछ तो होगा ही , क्या ऐसा कोई नही जिससे हमें अपने पुरखों के बारे में पता लग सके, इस जगह के बारे में पता लग सके, आप लोग 5 दिन पहले यहाँ आये है, मैं और राहुल लगभग 1 साल पहले आये हैं, यहाँ के बारे में हम कुछ नही जानते और आज तक ऐसा कुछ हुआ भी नही , जो अब हो रहा है , बल्कि मैंने तो कई बार यहाँ पूजा करवाई है ।"
नायक - " नही रमा, ऐसा कोई नहीं जो हमारे पुरखों के बारे में पूरी जानकारी रखता हो"
" जिससे मैने ये पैलेस खरीदा था, उससे बात करके देखते हैं , शायद उसे पैलेस के बारे में कुछ पता हो " रावत जी ने कहा।
" मैं तो ये सोच के हैरान हूँ कि दददू मेरे सामने थे , मेरे साथ आये ,इस पैलेस में आये जब मैंने उन्हें पहली बार राहुल से मिलवाया था, तब मैं क्यो न पहचान सकी उन्हें "
रेखा बुआ बोली
" क्योंकि आपकी याददाश्त कम हो गई है दीदी" जगदीश जी बोले , " सबसे ज्यादा समय दददू के प्रवचन रेखा दीदी ही सुना करती थीं और ये ही उन्हें पहचान नहीं पाई, हैरानी की बात तो है ,पर दरअसल आप उस समय बहुत खौफ़ में थीं इसलिए आप पहचान नही पाई होंगीं "
राहुल -" तो अब पता कैसे चलेगा , कल शादी है, सबकी जान खतरे में है, क्या करें , वो बेंदा भी गायब है, वरना दयान उससे कुछ पता लगा सकता था "
रामायणी - " वो बेंदा तो मेरे पास है..... "
सब रामायणी जी की तरफ देखने लगे , राहुल भी हैरान था, इतनी खरनाक चीज माँ ने क्यो ली.
" वो कल तुम्हारे कमरे में उसे देख कर मुझे कुछ अजीब सा लगा इसलिए मैं ले गई थी, रुको मैं अभी लाती हूँ" कहकर रामायणी जी उठी और पैलेस एक कमरे में चलीं गईं जहाँ वो रुकी हुईं थीं।
थोड़ी देर बाद रामायणी जी एक बडे से सुंदर से लाल बॉक्स के साथ राहुल के कमरे में आईं...
" ये तो राहुल की दादी के गहनों का बक्सा है ना रमा .... " रेखा बुआ ने कहा।
" दीदी कभी भी गहनो के बारे में कुछ नही भूल सकतीं" जगदीश जी ने कहा।
" हाँ दीदी, ये वही बक्सा है " रामायणी जी ने कहा और सबके सामने बक्सा खोलकर रख दिया।
" ये सब तो एक ही सेट के गहने हैं माँ" राहुल ने उन सब गहनों को देखते हुए कहा, दयान भी एक एक गहने को बारीकी से देख रहा था।
नायक-" ये गहने मुझे दददू ने ही दिए थे, रामायणी को देने के लिए, ये हमारे खानदान का रिवाज है, शादी के बाद इस सेट में से एक गहना नई दुल्हन के नाम से पूजा करके पति के हाथों से उसे दिया जाता है और सेट के बाकी के गहने उसे संभालने के लिए दिए जाते हैं"
रामायणी - " हां पर ये सेट अधूरा है, इसमे 9 गहने थे , जिसमे से मुझे बाजूबंद मिला था और मेरी बहु के लिए अँगूठी संभालने के लिए मिली थी, मेरी सास के कंगन सँभालने के लिए मिले थे बस बाकी के गहने इस सेट में नही थे, जब मैंने ये बेंदा देखा तो मुझे इसकी डिजाइन जानी पहचानी लगी , ये देखो"
सबने गौर से देखा, बेंदा की डिज़ाइन और उसके नग बाकी के गहनों से बिल्कुल मिल रहे थे।
रेखा- " दद्दू कहा करते थे कि 9 गहनों का खानदानी सेट था ये , 9 पीढ़ियों की एक परम्परा पूरी करनी है, जिसमें से आठवां गहना तुम्हारी माँ को मिला है, एक आखिरी गहना तुम्हारी पत्नी को मिलेगा और फिर इन 3 गहनों - बाजूबंद, कंगन और अँगूठी को देवी के चरणों में रखकर, आख़िर की दो बहुओं यानी तुम्हारी माँ और पत्नी को बिना 1008 बार ॐ कार का जाप करना होगा तब बाकी के 6 गहने स्वयम प्रकट होंगे और फिर उन सबको गला कर देवी माँ की सोने की पवित्र मूर्ति बनेगी और घर मे स्थापित होगी इससे तुम्हारे खानदान का कोई बड़ा श्राप है वो कट जाएगा"
रामायणी- " पर चिंता की बात ये है कि ये बेंदा उस रानी साहिबा की आत्मा का है और ये बिल्कुल हमारे खानदानी सेट से मिलता है, इसका मतलब तो ये हुआ कि वो भी हमारे ही घराने की कोई बहू है"
रामायणी जी की बात सुनकर सब सोच में पड़ गये।
क्रमशः.....
2 Comments
Ohh Bhai ab to ar Jada suspence ho chuka h mtlb jitni bhi Atma h sb ek hi ghr ki h ek hi khandan ki dekhte h ab Kya hota h Kya gahna ek sath jod k Baki k 6 gahno ko prakat kr k Mata ki murti bna k shrap katenge ya Kya hota h dekhte h
ReplyDeleteAre bhaai aap to mere se bhi jyada soch liye , gjjb 😍😍😍😄
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