कहानी- बड़े घराने की बहू
भाग - 23
लेखिका - आस्था जैन "अन्तस्"
श्रेणी- हॉरर, सस्पेंस-थ्रिलर, आध्यात्मिक, स्त्री-विमर्श
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बड़े घराने की बहू

पार्ट 23

रात के 10 बज रहे थे, राहुल में केबिन में नायक जी, रामायणी जी, नीति , राहुल और दयान बैठे हुए थे । सभी रिश्तेदारों के साथ -साथ कविता जी , जगदीश जी , स्नेहा ,नव्यम और कल्पना को भी समझा बुझाकर नायक जी ने राधौगढ़ से बाहर निकलवा दिया, राहुल ने रावत जी को खास तौर पे स्नेहा पे नजर रखने के लिए भेजा था , उसे डर था कि सबको चकमा देकर कहीं स्नेहा वापस पैलेस न आ जाये, राहुल भूत प्रेतों से हजारों तरह के डर दिखा  के नव्यम को वहाँ से जाने के लिए मना पाया था और नीति किसी की भी न सुनकर वहीं रुकी रहीं ।

केबिन के बीचों बीच से टेबल हटा कर घेरा बनाकर सभी बैठे हुए थे ।

राहुल - " बहुत देर हो गई , दयान और कितना वक्त चाहिए होगा"

दयान - " कोशिश तो कर रहा हूँ लेकिन पहले की ही तरह मेरी विद्याओं को यहाँ प्रवेश नही मिल रहा, अब या तो ये गहने हमें उन आत्माओं तक पहुंचा सकते हैं या फिर वो आत्माएं खुद हमें उनकी दुनिया मे प्रवेश दें।"

राहुल - "वे हमें अपनी इच्छा से प्रवेश क्यों देंगी और इन गहनों के साथ हम 1 घण्टे से भावनात्मक रूप से जुड़ने की कोशिशें कर रहे है लेकिन कुछ नही हो रहा, कोई और रास्ता नही है क्या दयान, इस तरह तो पूरी रात निकल जायेगी "

दयान - " तुम्हे उन आत्माओ ने अपनी इच्छा से प्रवेश दिया था और स्नेहा उनसे जुड़ी हुई चीजों के जरिये उन तक पहुँची है , इसके अलावा सिर्फ तंत्र का तरीका है और उस तंत्र के लिए यहाँ मेरी किसी भी सिद्ध की हुई विद्या को अंदर आने की अनुमति नही मिल रही "

नायक - " हम अगर उनकी दुनिया मे चले भी गए तो इससे कोई फ़ायदा नहीं है, हम सिर्फ़ उनकी मौतें देख सकते हैं बस, जैसे कि राहुल ने देखी लेकिन वो कुछ नही कर पाया , उसकी आवाज तक उन आत्माओं ने नहीं सुनी, अगर हम भी इसी तरह जाकर वापस आ भी गए तो भी कुछ नहीं कर पाएंगे" 

रामायणी - "राहुल को उन्होंने शायद डराने के लिए प्रवेश दिया था , क्योंकि वापस वो स्नेहा की वजह से आया था, स्नेहा तो संयोगवश उस काले नग से भावनात्मक रूप से जुड़ गई थी और तुम्हारी माई से वो तो पहले से ही काफ़ी लगाव रखती है जबसे उसे तुम्हारे बारे में पता चला है तबसे ही "

दयान - " शायद इसीलिए स्नेहा को दोनों बार उन आत्माओं ने  ही वापस भेजा था और वो माई से बात भी कर पाई थी उन्हें अपनी बातों से समझा भी पाई थी , हमें कुछ भी करके इन गहनों के साथ अपनी भाव ऊर्जा का संयोग करना ही होगा वरना समय इसी तरह निकल जायेगा और ये आखिरी मौका भी हम खो देंगें" 

राहुल - " लेकिन भावों का  संयोग एक सहज प्रक्रिया है , हम सहज रूप से उसी से जुड़ सकते हैं जिसे हम जानते हैं , और जिनके ये गहने हैं , उनके तो हम नाम भी नहीं जानते "

" लेकिन दददू का नाम तो हम सब जानते हैं ना, सबसे ग्रेट हमारे दददू विनायक सिंह राठौड़ " दरवाजे की तरफ से आवाज आई।

सबने मुड़कर देखा तो एक हाथ कमर पे रखे और दूसरा हाथ हवा में उठाकर शक्तिमान जैसी मुद्रा में खड़ी स्नेहा दिखाई दी।

राहुल ने अपना सिर पीट लिया।

स्नेहा -" क्या हुआ आप सब ऐसे क्यों देख रहे हैं, अरे मेरे पास बहुत बढ़िया योजना है , हम सब न सबसे पहले..." 

" सबसे पहले दददू से जुड़ने की कोशिश करेंगे " स्नेहा के पीछे से आते हुए नव्यम ने कहा।

नायक - " मुझे पता था तुम नहीं मानोगी बेटा, ख़ैर नव्यम की क्या जरूरत थी" 

नव्यम - " मैं भी आपका बेटा हूँ , अगर आप किसी मुसीबत से लड़ रहे हैं तो मेरा आपके साथ होना जरूरी है ना पापा"

राहुल - " लेकिन स्नेहा का यहाँ होना बिल्कुल जरुरी नहीं था , जाओ अभी के अभी ....." 

दयान - " क्या योजना है तुम्हारी, बताओ स्नेहा.... राहुल, अब हमारे पास समय बहुत कम है सब कुछ जानने के लिए औऱ फिर ठीक करने के लिए बहुत कुछ बाकी है" 

स्नेहा - " वो मैं ये कह रही थी कि हम दददू से बेहद आसानी से जुड़ सकते है इसके जरिए" स्नेहा ने एक कागज पे बना हुआ ॐ सबको दिखाया।

राहुल - " ये दददू का है?"

स्नेहा - "नहीं  , लेकिन दददू ने ही हमे ॐ का मतलब समझाया था , इसके जरिये उन पलों को याद करेंगे जब हम उनके साथ थे , तो हम बहुत आसानी से उनसे जुड़ जाएंगे" 

दयान - "उनकी मौत जानकर हम क्या कर लेंगे , उसका इन आत्माओं से क्या संबंध "

राहुल - "मौत नहीं, जीवन, जीवन जान सकते हैं हम उनका , दददू एक पवित्र आत्मा हैं , उनके अंतस में उनकी मृत्यु का कोई रोष, कोई पीड़ा नही है ,  उन्होंने जीवन की तरह ही मृत्यु को स्वीकार किया है " 

स्नेहा - " बिल्कुल सही, यही बात दिमाग मे आते ही मैं दौड़ी चली आई, उनके जीवन मे कहीं न कहीं उनकी माँ और पत्नी का जिक्र होगा ही , और हो सकता है ये गहने उनमे से किसी से जुड़ें हों, तब हमारे लिए उन तक पहुंचना बहुत आसान हो जायेगा" 

दयान - "तो फिर देर किस बात की है , बैठिये सब एक साथ और लगाइए अपनी ऊर्जा इस ॐ में "

दयान ने बड़े सम्मान पूर्वक उस ॐ को एक चौकी पर रखा ।सब उसके चारों ओर घेरा बनाकर बैठ गए ।

राहुल - "सब एक दूसरे के हाथ पकड़ लें  ताकि अगर कोई एक भी दददू के जीवन काल से जुड़ सके तो बाकी सब भी उस मे प्रवेश पा सकें  । "

दयान - " ये कौन सी विधि है राहुल और ऐसा कैसे हो सकता है" 

राहुल - "हर व्यक्ति का अपना आभामंडल होता है, जो आत्मिक ऊर्जा के कारण प्रकट होता है , जो अपनी आत्मा से जितना जुड़ता जाता है उसका आभामंडल उतना ही शक्तिशाली और प्रभावशाली होता जाता है।

दो लोगों का स्पर्श उनके आभामंडल को बहुत हद तक प्रभावित करता है, इसी के कारण हम अच्छे और बुरे स्पर्श का ज्ञान कर पाते हैं, यदि आप बराबर किसी गलत मानसिकता के व्यक्ति के स्पर्श में आते है तो आपका आभामंडल क्षीण होता है, यदि अच्छी मानसिकता के व्यक्ति के  स्पर्श में आते हैं तो हमारा आभामंडल अधिक दैदीप्यमान होता है, इसीलिए हमारी संस्कृति में अनजान लोगों का हाथ जोड़कर अभिवादन किया जाता है और बड़े बुजुर्गों, गुरुओं, माता के चरण स्पर्श किये जाते हैं।" 

नव्यम - " ये आपको दद्दू ने बताया ?"

राहुल - " हाँ , बचपन में बताया करते थे , तब बस सिर हिलाया करता था ,अब अच्छे से समझ गया हूँ " 

नव्यम - " मैं तो उनसे यही शिकायत करूँगा , मुझे ये सब क्यूँ नहीं सिखाया " 

नीति - " उनसे तुम्हारा कोई संयोग न रहा होगा, लेकिन बड़ा भाई है ना, उससे सीखो तुम" 

दयान - " मतलब इससे हम सबकी ऊर्जा आपस मे भी जुड़ जाएगी, ठीक है, लेकिन फिर वापस आते समय भी हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि किसी का हाथ न छूटे , वरना वो हम सबके ऊर्जा तंत्र से अलग हो जाएगा और शायद वापस न आ पाए " 

सभी ने एक साथ ॐ का उच्चारण किया, और दददू से जुड़ी अपनी अपनी यादों से दुबारा जुड़ने का प्रयास किया। 

क्रमशः....