जल पिशाच भाग 14

सबने परी की तरफ देखा तो उनकी जान ही निकल गई, नेहा अपने हाथों से परी के गले की नसें फाड़ रही थी, नेहा के पीछे खड़ा एक मटमैला लाल आँखों वाला चेहरा सबको दिखाई दे रहा था।


संयोगी तो जैसे बेहोश ही हो गई थी, संवर सदमे से एकदम पत्थर हो गया था, थॉमस डर के मारे काँप रहा था , उन सबको पीछे धकेलते हुए खन्ना सर आगे आये और नेहा के पीछे दिख रहे मटमैले लाल चेहरे को घूर कर एक अजीब सी भाषा मे कुछ बोले।


वो चेहरा गायब हो गया और नेहा वहीं बेहोश हो गई।

जबकि परी दर्द के मारे चीख़ रही थी, उन दोनो को लेकर वो किसी तरह हॉस्पिटल पहुँचे लेकिन वहाँ कोई नही था सिवाय कुछ लाशों के । 


संवर और संयोगी ने होस्पिटल में उपलब्ध सामान से किसी तरह परी के ज़ख्म की मरहमपट्टी की, लेकिन घाव बहुत भयानक था, परी को सांस तो आ रही थी लेकिन अब उसकी चीख़ तो क्या आवाज भी नही निकल पा रही थी। 


उसे जल्द ही इलाज की जरूरत थी जो कि अब नामुमकिन था। खन्ना सर ने जब उसपे अपनी शक्तियों का प्रयोग करने की कोशिश की तो उससे उसकी तकलीफ और बढ़ गई।


हॉस्पिटल में मौजूद एक एम्बुलेंस में परी को लेकर संवर तुरन्त ही गजरीगाव से बाहर शहर की ओर ले गया उसे रास्ते मे कोई परेशानी न आये इसलिए खन्ना सर खुद उसके साथ गए थे। गजरीगांव के हॉस्पिटल में सिर्फ़ संयोगी, थॉमस और नेहा रह गए थे।


नेहा थोड़ी देर में होश में आ गई , उसे परी के बारे में कुछ याद नही था और संयोगी ने भी उसे कुछ नही बताया।


थॉमस उन दोनों के साथ होस्पिटल के उस कमरे में था और बहुत परेशान था।


" जीसस उस लड़की को सेफ रखना प्लीज़" वो बार बार बुदबुदा रहा था।


" ये सब तुम्हारी ही वजह से हुआ है, अगर तुम उन पिशाचों को हमारी दुनिया मे नही बुलाते तो ऐसा कुछ नही होता , देखो अपने चारों तरफ, तुम्हारे एक आविष्कार ने लाशों के ढेर लगा दिए हैं " संयोगी उस पर बरसी।


"लाश, लाश , ...... ओह माय गॉड, इस हॉस्पिटल में तो मुर्दाघर होगा , जिधर बहुत सारे डेड बॉडीज होंगे , अब तो वो भी जल पिशाच हो चुके होंगें, ये हॉस्पिटल सेफ नहीं है , हमको अभी ही इधर से चलना चाहिए" 

थॉमस घबराया हुआ सा बोला।


" हाँ हाँ, इधर से बाहर निकलने के बाद तो देवता पुष्पों के हार लेकर खड़े तेरे जैसे हरामी मानुष के लिए , अबे बाहर भी वही सीन होगा जो फार्महाउस के बाहर देखा था" नेहा गुस्से में बोली।


नेहा को इतने गुस्से में देख कर संयोगी दंग रह गई क्योंकि परी और नेहा दोनों कभी भी इतना ज्यादा गुस्सा नही करती थीं।


" तुम दोनों लड़कियां पागल हो, खन्ना हमे इन लाशों से बचा सकता है इसलिए वो संवर उसे अपने साथ लेकर गजरीगाव से बाहर गया है , बच कर भाग गया वो लड़का इधर से , और हम सब यहाँ फँसे रह गए हैं, मैं जा रहा हूँ , मैं अभी जा रहा हूँ " थॉमस उस कमरे के गेट खोलकर बाहर जाने लगा।


संयोगी ने उसे रोकने की कोशिश की तो नेहा उसके सामने आ गई।


" जाने दे जहाँ जाना है उस प्रोफेसर के बच्चे को, जरा उसे भी अपने किये की सजा भुगतने दे" नेहा के मुँह से ऐसे गुस्से भरे शब्द सुनकर संयोगी से रहा नही गया। वो बोल पड़ी - " क्या हो गया है तुझे नेहा, उसके अलावा और कौन है जो हमे जल पिशाचों के बारे में बता सकता है, उसे भी अपने किये का पछतावा है , बस अभी डरा हुआ है और तू कबसे इतनी कठोर दिल हो गई " 


" मुझे नही पता, मुझे बस इतना पता है कि अब हम वापस उसे इस कमरे में नही आने देंगे" नेहा ने दरवाजा फिर से अंदर से बन्द कर दिया।


संयोगी अंदर ही अंदर डर गई थी। नेहा ने थोड़ी ही देर पहले परी पर जानलेवा हमला किया था और अब वो इतने गुस्से में भी थी और संयोगी उसके साथ एक ही कमरे में बंद थी, वो चाहती थी तो वहाँ से भाग जाती लेकिन वो नेहा को भी अकेले नही छोड़ सकती थी आखिर वो उसकी दोस्त थी। दरवाजा बन्द करके नेहा वापस पलंग पर बैठ गई। वो शारीरिक रूप से काफी कमजोर और थका हुआ महसूस कर रही थी सिर्फ उसका चेहरा ही गुस्से से कांप रहा था।


संयोगी ने उस कमरे की एकमात्र खिड़की को खोल दिया , चढ़ते दिन का उजाला कमरे में आने लगा, लेकिन सुबह की ही तरह इस उजाले में भी जलन थी, ताप था, चुभन थी। 


संयोगी ने उस खिड़की से बाहर देखा तो उसे हॉस्पिटल के सामने खाली पड़ी सुनसान सड़क दिखाई दी, वो दूसरी मंजिल के कमरे में थी। हॉस्पिटल के चारो तरफ सुनसान इलाका था, दाईं तरफ इक्का दुक्का मेडिकल स्टोर ही थे जो बन्द पड़े थे और बाईं तरफ हॉस्पिटल का मुर्दाघर था। नीचे सड़क की ओर देखती हुई संयोगी नेहा पर भी बराबर नजर बनाए हुए थी। 


" जाना होगा संयोगी" नेहा ने मरे हुए स्वर में संयोगी के पास आकर कहा।


संयोगी चौंक गई - " क्या कुछ भी बोल रही हो, कहाँ जाना है तुम्हें" 


" मुझे नही हमे, हाँ वो देख संयोगी, वो हमें लेने आये हैं" नेहा ने सड़क की ओर अपने हाथ से इशारा किया।


संयोगी ने उस तरफ देखा तो उसकी रूह काँप गई। हॉस्पिटल के सामने गन्दे पानी का नाला सा बन रहा था और धीरे धीरे एक आदमकद गन्दे चोगे का रूप ले रहे थे। 


" चलेगी न ..... मेरे साथ " नेहा ने कुटिलता से मुस्कुराते हुए संयोगी के कान में कहा।


.......


हरे घास के मैदान में पिया और विभु ने एकसाथ कदम रखा। उस अद्भुत हरियाली को देखकर विभु कुछ बोलने ही वाला था लेकिन पिया ने तुरन्त विभु की ओर चुप रहने का इशारा किया।


विभु उसका इशारा समझ गया और चुप हो गया।


पिया की वो किताब उसी हिमखंड पर रखी हुई थी जो कि पिया से थोड़ी ही दूर था।


पिया ने थोड़ा जोर से बोलते हुए कहा - " जिस गजरीगांव से हम वापस आये हैं वहाँ अभी हालात कैसे हैं ?


विभु ने डर से काँपती हुई पिया का हाथ थाम लिया और पिया ने महसूस किया कि विभु भी बेहद डरा हुआ था।


हवा में नदी की लहरों की कल कल की तरह एक मधुर आवाज़ गूँजी - " गजरीगांव इस समय जल पिशाचों की कैद में है, इंसानों में से अधिकतर मर चुके हैं और जल पिशाचों के गुलाम बन चुके हैं, सभी मुर्दा शरीर जल पिशाच बन चुके हैं, कुछ इंसान सही सलामत हैं लेकिन अनजान खतरे से डरे हुए हैं और छिपे हुए हैं, कुछ इंसान ऐसे भी हैं जो इस मुसीबत से लड़ने के प्रयास कर रहे हैं, एक इंसान पर जल पिशाचों का हमला होने के बाद भी वो उनका गुलाम नही बना और मरा भी नही बल्कि इंसान रहते हुए ही जल पिशाचो की समस्त शक्तियो को हासिल कर चुका है, दो व्यक्ति ऐसे भी हैं जो खुद को जल पिशाचों का गुलाम बनने से रोकने के लिए खुद से ही जूझ रहे हैं " 


आवाज बन्द होने के बाद पिया ने फिर पूछा - " ये जल पिशाच कौन हैं और इनका मकसद क्या है कैसे ख़त्म किया जा सकता है इन्हें " 


फिर से वही स्वर लहरी गूँज उठी- " नरक में रहने के लिए विवश पिशाचों के राजा नरक पिशाच की बनाई नई सेना का एक हिस्सा हैं जल पिशाच, कई सदियों बाद अब एक व्यक्ति द्वारा नरक पिशाच को फिर से धरती पर आने का निमंत्रण दिया गया था, मध्यलोक के सभी पदार्थों पर कब्जा जमाने के लिए नरक पिशाच ने सबसे पहले एक व्यक्ति को जल पिशाच बनाया और उसके जरिये सभी व्यक्तियों को जल पिशाचों का गुलाम बनाने का उद्देश्य पूरा कर रहा है, सभी इंसान जल पिशाचो के कब्जे में आने के बाद जानवरो और वनस्पति भी जल पिशाचो के कब्जे में होगी और एक इलाका कब्जे में आते ही ये कोहराम पूरी पृथ्वी पर मच जाएगा, पूरे मध्यलोक को अपने वश में करना ही जल पिशाचो का और नरक पिशाच का उद्देश्य है" 


आवाज़ गायब हो गई। 


" मेरे आखिरी सवाल का जवाब नही मिला विभु" पिया ने कहा।


" क्योंकि शायद तीन ही सवाल के जवाब मिलने थे"

विभु ने कहा।


पिया ने अपनी किताब वापस उठा ली और विभु के साथ आगे बढ़ने लगी।


काफी देर तक चलने के बाद भी हरियाली खत्म नही हो रही थी औए चारो तरफ़ बस हरा भरा मैदान ही दिखाई दे रहा था।


.......क्रमशः 


- आस्था जैन "अन्तस्"