भाग 18
लेखिका - आस्था जैन "अन्तस्"
जल पिशाच - भाग 18
संयोगी दोनों तरफ से फँसा हुआ महसूस कर रही थी। सामने के गलियारे से आ रही जल पिशाचों के गुलामो की भीड़ के हौलनाक नजारे से संयोगी की नजर हट ही नही रही थी। उसे नही पता था कि नेहा उसका क्या हाल करेगी लेकिन इतना तो तय था कि ये सामने आ रहे शैतान अकेली नेहा के मुकाबले ज्यादा खतरनाक थे। अकेली नेहा की लाश से तो संयोगी लड़ भी सकती थी। संयोगी के पास ज्यादा वक्त नही था। वो जल पिशाचो के गुलाम दरवाजे के नजदीक ही आ रहे थे।अब उसने तुरन्त फैसला लिया। वो उठ के खड़ी हुई और दरवाजा अंदर से लगा लिया । इधर नेहा भी पलंग से उठ चुकी थी। उसकी काली आँखों से काला पानी बह रहा था। जब संयोगी दरवाजा लगा कर पीछे मुड़ी तो नेहा की लाश से टकरा गई। और चीख़ के उससे दूर हो गई। संयोगी खिड़की के पास भागी । उसने नीचे देखा तो मैदान साफ था। जो जल पिशाच और उनके गुलाम पहले हॉस्पिटल के मैदान में थे वे अब अंदर आ चुके थे। संयोगी दो मंजिल नीचे कूदने का रिस्क लेने को भी तैयार थी , इतने डरावने माहौल में भी खिड़की से कूदने से पहले संयोगी ने मुड़कर नेहा को आखिरी बार देखना चाहा
लेकिन जब उसने मुड़कर अंदर देखा तो उसके होश उड़ गये। नेहा की लाश उसकी तरफ नहीं आ रही थी। बल्कि वो तो दरवाजे की तरफ जा रही थी। वो दरवाजा खोल रही थी। संयोगी ने समझा कि नेहा उन जल पिशाचो की मदद करने के लिए ऐसा कर रही है क्योंकि अब उसका शरीर उनका गुलाम जो बन चुका था। नेहा दरवाजा खोल चुकी थी। बाहर जल पिशाच और उनके गुलामों की भीड़ थी जो अंदर आने को आतुर थी।
" मेरे साथ चल संयोगी" एक गूंजती हुई सी आवाज़ दाईं तरफ से संयोगी के कानों में पड़ी।
संयोगी उस तरफ देखा तो नेहा के धुँधले से साये को अपनी ओर हाथ बढ़ाते हुए पाया। उसने दरवाजे की ओर देखा। नेहा की लाश दरवाजे पर खड़ी जल रही थी। और जल पिशाच उससे दूर हो रहे थे जबकि उनकी गुलाम लाशें नेहा के शरीर से निकल रही आग लपटों से झुलस कर खुद भी जल रहे थे। संयोगी का दिमाग सुन्न हो चुका था। एक साथ इतनी भावनाओ और विचारों के अतिरेक को उसका दिल और दिमाग झेल नही पा रहा था।
" चल संयोगी, अगर मेरी पूरी बॉडी जल गई तो फिर मेरी आत्मा भी चली जायेगी। मैं ज्यादा देर रुक नही सकती , चल न"
नेहा की आत्मा ने संयोगी से कहा। पर संयोगी जैसे सबकुछ देखसुनकर भी समझ नही पा रही थी। इतना ज्यादा डर और दर्द वो झेल नही पाई और वहीं बेहोश हो गई।
.........
संवर और खन्ना जी एम्बुलेंस के जरिये परी को ग़जरीगांव से बाहर ले आये थे। कस्बे से 60 किमी दूर मनेरी शहर के इलाके में वो लोग पहुँच चुके थे। उन लोगो को शहर पहुँचने में शाम हो चुकी थी। क्योंकि ग़जरीगांव से निकलते वक्त प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कई जल पिशाचो ने उन पर हमला करने की कोशिश की थी। हालांकि उनमें से कोई भी खन्ना जी से जीत नही सका था।
मनेरी शहर पहुँचते ही उन दोनों ने परी को एडमिट करवाया । हॉस्पिटल के अंदर सिर्फ संवर ही गया था परी को लेकर क्योंकि खन्ना जी का अजीब रूप देखकर अफरातफरी मच सकती थी। परी का इलाज शुरू हो गया था।
अब उन दोनों को संयोगी की चिंता थी। संवर वापस उस एम्बुलेंस में आया और उसने खन्ना जी से कहा - " सर, परी का ट्रीटमेंट शुरू हो गया है। और यहाँ आस पास देखकर लगता है कि अभी जल पिशाच यहाँ कहर नही मचा सके हैं। अगर हम संयोगी और नेहा को भी यहाँ ले आये तो वो दोनो यहाँ सुरक्षित रहेंगी"
" बचने और भागने का विचार बेकार है संवर बेटा। हमारे लिए लड़ना ही एकमात्र विकल्प है। जैसे जैसे रात हो रही है मैं खुद को शक्तिशाली महसूस कर रहा हूँ। हो सकता है रात में वे जल पिशाच भी शक्तिशाली हो जाएं। और ग़जरीगांव से आगे के इलाकों को भी अपनी चपेट में लेने लगें। हमे उस थॉमस से सच उगलवाना ही होगा। आखिर उसने ये जल पिशाच बनाये कैसे और इन्हें खत्म कैसे किया जाए। वापस ग़जरीगांव जाने में हमे ज्यादा वक्त लगेगा इसलिए जल्दी से जल्दी ग़जरीगांव पहुँचने की कोशिश करो"
संवर ने झिझकते हुए कहा - " क्या आप अपनी शक्तियों से .... अ मेरा मतलब कि अगर .."
" मैं नही जानता, मेरे पास क्या शक्तियाँ हैं और इन्हें कैसे उपयोग में लाना है। मेरे चाहने से कुछ नही होता । सब अपने आप होता है। जैसे कि कोई अनियंत्रित गाड़ी हो अपने आप चाहे जहां मुड़ जाती है। "
" ठीक है, हम एम्बुलेंस से वापस चलते हैं लेकिन क्या यहाँ किसी को आने वाली मुसीबत के बारे में सचेत करना ठीक रहेगा। मतलब यहाँ सब नॉर्मल है। अगले ही पल क्या मुसीबत आ सकती है ये नही जानते"
" कोई फायदा नही है संवर। हम आम जनता को बता भी दें तो क्या फर्क पड़ेगा। हम जल पिशाचों कैसे दूर जा सकते हैं। लोग अपने घरों को छोड़ के कहाँ जाएंगे रातों रात और घर के अंदर रहेंगे तो भी मारे जाएंगे, उन्हें दूसरे शहर भेज भी दिया जाए तो क्या फर्क पड़ेगा। वो जल पिशाच उस शहर भी पहुँच जाएंगे। उनका मकसद पूरी पृथ्वी को अपने कब्जे में करना है, अच्छा होगा कि अभी हम संयोगी, नेहा और थॉमस के पास चले क्योंकि मैं नही जानता कि उस हॉस्पिटल की इमारत पर किया गया मेरा जादू कितनी देर तक रहेगा "
" जी ... हम अभी ही निकलते हैं " संवर ने कहा और गाड़ी स्टार्ट कर दी लेकिन गाड़ी चली नहीं। संवर ने हैरानी से खन्ना जी की तरफ देखा। खन्ना जी अपने सामने की सीट की तरफ देख रहे थे जिस पर संयोगी बेहोश पड़ी हुई थी। संवर ने भी संयोगी की ओर देखा। उसका दिल धक्क से बैठ गया। शायद उसकी साँसे भी उसी वक्त रुक जाती अगर नेहा की आवाज उसे सुनाई न दी होती।
" ये बेहोश है। मैं मर चुकी हूँ। थॉमस भाग चुका है। मेरी लाश जल रही है उसके राख होते ही मैं मुक्त हो जाऊँगी "
नेहा की आत्मा भी वहीं थी।
नेहा के मरने की खबर से खन्ना जी और संवर दोनो को ही धक्का लगा।
" नेहा ...." संवर बस इतना ही बोल सका और उसकी आँखें भर आईं लेकिन वो फफक कर रो न सका।
" मैं अपनी लाश के जरिये भी अपनी दोस्त को नुकसान नही होने दे सकती थी। मुझे अपनी लाश को जलाना ही पड़ा। आई एम सॉरी मैं तुम सबको छोड़ कर जा रही हूँ। परी को भी सॉरी बोल देना मेरी तरफ से। और हाँ ,पिया और विभु ठीक हैं। मैं उन्हें देख सकती हूँ वो अंतरिक्ष के ही किसी दूसरे ग्रह पर हैं । वासु और राधे ग़जरीगांव में ही हैं। हमारे सती माई मोहल्ले में। सारा ग़जरीगांव तबाह हो चुका है। लेकिन सती माई मोहल्ला अब भी सुरक्षित है। ग़जरीगांव में सिर्फ वही जगह बाकी रह गई है जिसके अंदर जल पिशाच या उनके गुलाम जा नही पा रहे। और उस जगह को भी अपने कब्जे में किये बिना वो ग़जरीगांव से बाहर नही जा सकते। आप दोनों को वहाँ जाना चाहिए । अगर सती माई मोहल्ला बचा रहा तो पूरी दुनिया भी बची रहेगी "
इससे आगे नेहा कुछ नही कह पाई। उसका धुंधला साया अब धुँआ हो चुका था। शायद अब वो मुक्त हो चुकी थी।
" पिया उस विभु के साथ दूसरे ग्रह पर क्या कर रही है और वो लोग वहाँ पहुँचे कैसे " खन्ना सर ने गुस्से में कहा।
" जाहिर सी बात है सर, छुट्टियां मनाने तो गए नही होंगे। उनके साथ भी हम सबकी तरह कुछ अजीब ही हुआ होगा। आप चिंता मत करिए कम से कम से दूसरे ग्रह पर वो दोनों जल पिशाचो से दूर ही हैं और सुरक्षित हैं। अभी नेहा के कहे अनुसार हमे ग़जरीगांव चलना चाहिए हमारे मोहल्ले की तरफ। "
" नहीं , मैं वहाँ अकेला जाऊँगा। तुम परी और संयोगी के पास रहो। यहाँ के पुलिस थाने में ग़जरीगांव का सब सच बता दो। और मदद भेजने के लिए कहो, जाओ"
" लेकिन हम इंसानो को जल पिशाचों से कैसे लड़ा सकते है "
" तो अब देवता नही आएंगे यहाँ धरती पर क्योंकि धरती वालों के कर्म और विचार अब इतने अच्छे नही रहे हैं कि देवता उनकी मदद करें। अब इंसानों को खुद ही अपनी लड़ाई लड़नी होगी। तुम उतरो संयोगी को हॉस्पिटल के अंदर लेकर जाओ । मैं इस एम्बुलेंस के साथ ग़जरीगांव जाऊँगा. नेहा की बातों से उम्मीद मिली है। हमे जस उम्मीद का दामन नही छोड़ना चाहिये। "
संवर ने बस हाँ में सिर हिलाया और संयोगी को गोद मे लेकर एम्बुलेंस से उतरकर हॉस्पिटल के अंदर चला गया।
खन्ना जी एम्बुलेंस के साथ वापस ग़जरीगांव की ओर चल दिये थे।
क्रमशः ....
2 Comments
Vakai ek alag mod pe story aa gyi h Neha ne jate jate apna Kam kr Diya h ab dekhte h Khanna sir Kya krte hai
ReplyDeleteHAn neha ko bhejna to nhi chahti thi pr ek dost km ho hi gya
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