जल पिशाच भाग 20

आस पास फैलती प्रकाश की तरंगों के ताप से पिया का हिमखंड पिघलने लगा था। उन दोनों के पास अब किताब भी नही थी जो उनकी मदद करती। पिया और विभु तेज गति से दिमाग के घौडे दौड़ा रहे थे लेकिन इस मुसीबत से निकलने का कोई रास्ता उन्हें समझ नही आ रहा था। 

" किताब के जलने का ये मतलब तो नही न कि हमे भी जलना होगा " विभु ने कहा।

" हम ही जल जाएंगे तो फिर फिर जलेश्वर से कौन मिलेगा " पिया ने गुस्से में कहा।

" तो बचेंगे कैसे, देखो ये चम्पो हर जगह से पिघल रही है कर मेरी तरफ का हिस्सा किसी भी पल नीचे चला जायेगा औऱ मैं भी या तो नीचे टपक जाऊँगा या फिर जल जाऊँगा " विभु ने अपने माथे का पसीना पोंछते हुए कहा। 

" अगर तुम्हारी तरफ का हिस्सा पिघल रहा है तो मेरी तरफ के हिस्से पर आ जाओ और मेरा हाथ भी पकड़े रहो " पिया ने कहा।

विभु खिसककर पिया की तरफ आ गया। उसकी तरफ का आधा हिमखंड पूरी तरह पिघल गया था। पिया के तरफ का हिमखंड भी अब एक पतली सी बर्फ़ की सिल्ली की तरह रह गया। 

" अरे यार ........ पिया मुझे सब समझ आ गया " विभु ने कहा।

"क्या समझ आ गया " पिया ने पूछा 

" मेरी तरफ का बर्फ़ वाला हिस्सा जल्दी पिघल गया मतलब उस तरफ  सबसे ज्यादा तेज यानी कि लाल रंग की रोशनी की गर्मी ज्यादा थी और तुम्हारे तरफ का बर्फ़ का हिस्सा अभी तक नही पिघला मतलब इस तरफ सबसे कम यानी कि पीले रंग की रोशनी की कम गर्मी है। " विभु ने कहा

" तो फिर नारंगी रंग की गर्मी कहाँ गई। देखो विभु कुछ भी मत सोचो अब , अब कुछ नही हो सकता। ये बर्फ़ सिल्ली भी अब पिघलने ही वाली है " पिया ने निराश होते हुए कहा। 

विभु ने पिया का हाथ अपने हाथों में थाम लिया। थोड़ी ही देर में देखते ही देखते वो बाकी बचा हिमखंड भी गर्मी से पिघल गया। लेकिन उसके पिघलने के बाद भी पिया और विभु नीचे नही गिरे बल्कि बीच मे ही स्थिर रहे। वो कुछ समझ पाते उससे पहले ही उन्हें तीनो रंग की रोशनी अपनी तरफ तेजी से सिमटते हुए दिखी। 

दोनों को एक तीव्र करंट जैसा अहसास हुआ। जैसे मानो पूरा सूरज उनके शरीर मे समा गया हो। असीम ताप और ऊष्मा से मानो शरीर भाप बन गया हो। 

न उनके शरीर का अस्तित्व बचा था न ही उस रोशनी का। सब कुछ उन्ही में समा के हवा हो गया और वे दोनों भी अब हवा हो चुके थे। लेकिन जैसे अपना शरीर खोकर भी वे दोनों अपने आप को महसूस कर पा रहे थे। चेतना अब भी थी। संवेदना अब भी थी। पर सब कुछ अदृश्य था। 

अचानक जैसे तपते रेगिस्तान में मूसलाधार बारिश हुई हो। जैसे सूरज के तपते ललाट पर चन्द्र की शीतलता ने तिलक किया हो। उसी शीतलता में उन दोनों ने एक दूसरे के हाथों को महसूस किया जो एक दूसरे को थामे हुए थे। उन्होंने अपनी आँखे खोलीं तो एक दूसरे को जिंदा पाया। दोनों रो पड़े पर आँसू न बह सके। पिया ने विभु को गले लगा लिया। 

विभु ने पिया को खुद से अलग करते हुए उसे चारो तरफ देखने का इशारा किया। 

पिया ने चारों तरफ देखा तो खुद को उसी जगह पाया जहां वह सबसे पहले आई थी। वही सर्द मौसम, वही बर्फ़ की नदी। पीछे खड़ा अंतरिक्ष की ऊंचाइयों तक जाता हिमपर्वत और उस पर चढ़ती हुई हिमनदी। 
लेकिन पिया इस बार उस हिमपर्वत की ओर नही जा रही थी बल्कि वो तो हिमनदी की विपरीत दिशा में बने कई छोटे छोटे पर्वतों की ओर जा रही थी। उसने नीचे देखा तो वे दोनो जन उसी हिमखंड के ऊपर सफर कर रहे थे जिसका नाम उन्होंने चम्पो रखा था। 

पिया ने तो उस हिमखंड पर झुककर उसे चूम लिया। विभु भी बेहद खुश था लेकिन ये नजारा उसने पहले नही देखा था इसलिए वो हतप्रभ नजरो से चारो तरफ देख रहा था और सबसे ज्यादा विस्मित तो उसे वो विशाल हिमपर्वत कर रहा था। जबकि पिया ये सब देख चुकी थी पहले ही। 

" मैंने यहीं से सात रंगों के सफर की शुरुआत की थी शायद ये सफर खत्म हो गया है विभु अब हम पूरे सात सवाल पूछ सकते हैं , इसलिए गलती से भी हम कोई 
फालतू सवाल नही करेंगे। बल्कि जल पिशाचो के खात्मे से जुड़ी एक एक चीज बारीक तरीके से पता करेंगे , तुम सुन रहे हो न विभु " पिया ने विभु को झकझोरते हुए कहा तो उसने भी हाँ में सिर हिला दिया। दरअसल इतना विलक्षण दृश्य देखकर वो बिल्कुल गूंगा ही हो गया था। पिया उसकी ये हालत देखकर बोली - " अगर तुम इस विशाल हिमपर्वत पर चढ़कर अंतरिक्ष का नजारा देख लेते तो फिर शायद हार्ट अटैक से ही मर जाते तुम " 

" मतलब तुमने इस पर्वत पर चढ़कर अन्तरिक्ष देखा अपनी आँखों से.... कैसे तुम इसपे चढ़ी कैसे , इसकी तो चोटी भी दिखाई नही दे रही " विभु हैरान होते हुए बोला।

" अरे पागल फालतू सवाल मत करो अभी समझाया था न " पिया बिफरी ।

"अरे पर उत्तर तो नही आया न " विभु उससे भी ज्यादा बिफरते हुए बोला।

" हाँ, पर उत्तर क्यों नही आया, हम यहाँ से बाहर कैसे निकलेंगे जवाब दो " पिया आस पास चिल्लाती हुई बोली लेकिन कहीं से कोई जवाब नही आया।

पिया ने अपना माथा पकड़ लिया - " हे भगवान कोई उत्तर क्यों नही आ रहा, ऐसे तो हम हमेशा के लिये यहीं फँसे रह जाएंगे। न किताब है हमारे पास और न ही कोई हमारे सवालों के जवाब दे रहा है। ऐसे में हम धरती पे वापस कैसे जायेंगे और उन जल पिशाचों से कैसे लड़ पायेंगे ......  विभु तुम मेरी बात सुन रहे हो न " 


" पिया ...... सामने देखो ... जलेश्वर " विभु ने सामने की ओर इशारा किया और पिया भी उस ओर देख कर हतप्रभ रह गई। 

क्रमशः .... 

- आस्था जैन "अन्तस्"